आलेख: सोशल मीडिया का बढ़ता साम्राज्य और हिन्दी पत्रकारिता/ डॉ. मनीष गोहिल

      सोशल मीडिया का बढ़ता साम्राज्य और हिन्दी पत्रकारिता


               "मैं इससे परेशान नहीं हूँ कि तुमने मुझसे झूठ बोला,
      मेरी दिक्कत यह है कि अब मैं तुम पर भरोसा नहीं कर सकता।"
                                                                                                              -  नीत्से।

गूगल से साभार
सोशल मीडिया के बढ़ते साम्राज्य में नीत्से का यह कथन सटीक बैठता है। कारण सीधा सा है कि आज जिस प्रकार सोशल मीडिया में बदलाव हो रहा है, उसको ध्यान में रखकर यह बात माननी पड़ेगी कि अब चारों ओर कुछ हद तक एक प्रकार के झूठ का साम्राज्य फैल रहा है। परिणाम यह आएगा कि लोग इस पर भरोसा नहीं कर पाएँगे। सोशल मीडिया महाठगिनी बन रहा है। हम जानते हैं कि सोशलसाइट्स में फ़ेसबुक हो या ट्विटर हो या व्होटस्एप सभी अपने अपने फ़र्जी एकाउण्ट को डिलीट कर रहे हैं। क्योंकि इन पर आरोप लगे हैं और दुनियाभर में इनको अपनी शाख़ बनाये रखने के लिए हर देश के नियमों के आधीन रहना पड़ेगा। इससे हम मुँह नहीं मोड़ सकते कि आज सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक नवोदित बाज़ार बनकर उभर आया है।वर्तमान समय सोशल मीडिया की गिरफ्त में है, एसा प्रतीत हो तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। आज सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि मनुष्य सोशल मीडिया की कैद में है या कि सोशल मीडिया मनुष्य की कैद में? उत्तर देना कठिन है।

  सोशल मीडिया को समाज का पाँचवा स्तंभ कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। सोशल मीडिया मनुष्य की आपूर्ति का साधन बन गया है। कितनी सारी साइट्स आ गयी है, जिससे व्यक्ति आसानी से अपने मुश्किल से मुश्किल काम को चुटकी बजाते कर सकता है। जब से स्मार्टफॉन आ गया है, तब से और आसान हो गया है सोशल मीडिया से कनेक्ट रहना। पत्रकारिता के बनाये गए मापदंडों में एक नया मापदंड सोशल मीडिया का गिना जाएगा। आज की पत्रकारिता में सोशल मीडिया की अहम भूमिका मानी जाएगी। पलक झपकते आप दुनियाभर में घटी कोई भी घटना की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। पत्रकारिता के इस नये रूप को जानने के लिए उसके सत्य और असत्य पक्ष को भी देखना पड़ेगा। आज जो लोकप्रिय सोशल मीडिया की साइट्स है उनमें मुख्य जो है वो इस प्रकार हैं

Twitter, Linkedin, Google+, YouTube, Pinterest, Instagram, Tumblr, Facebook, WhatsApp, QQ, WeChat, Qzone,  Skype, Viber, LINE, Snapchat, Telegram आदि। वैसे तो सन् 2018 के सर्वेक्षण में कुल 60 सोशलसाइट्स का उपयोग विशेष रूप से हो रहा है। भारत में भी इनमें से कई सोशलसाइट्स का उपयोग हो रहा है। इन सोशलसाइट्स के कारण व्यक्ति खुद पत्रकार भी बन गया है। उसके आसपास जो भी कुछ घट रहा है उसे वह पलभर में सोशल मीडिया पर अपलोड़ कर देता है। सोशल मीडिया एक मायाजाल है। बच्चों से लेकर बुढ़ो तक इसके दिवाने हैं। कुछ बिंदु है, जिस पर चर्चा करना आवश्यक है

-   इक्किसवीं सदी की पत्रकारिता का रूप
 वर्तमान समय घड़ी की सूई से भी अधिक स्पीड़ में भागने की कोशिश में हैं। पर समय मजबूर है, घड़ी की नोंक पर। कहने का तात्पर्य यही है कि आज समाज के हर तबके में सोशल मीडिया ने अपना पूर्ण वर्चस्व जमा लिया है। व्यक्ति का  व्यक्तित्व सिमटकर एक यंत्र बनता जा रहा है। उसके पास डिज़ीटल युग के सारे उपकरण मौज़ूद हैं। वह पलभर में दुनिया के कोई भी कोने में पहुँच सकता  है। यही हाल हिन्दी पत्रकारिता में भी देखने को मिलता है। आज की पत्रकारिता का रूप बदल गया है। ढ़ेरो सारे परिवर्तन देखने को मिलते हैं। प्रिन्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया दोनों परिवर्तित हो चुके हैं। कारण है अब इण्टरनेट के द्वारा किसी भी घटना का तुरन्त कवरेज़ हो जाता है। यहां तक की कोई भी व्यक्ति पत्रकार बन सकता है। घटना पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी पत्रकार की भूमिका में  रिपोर्टिंग कर सकता है, वीडियोग्राफी करके कोई भी न्यूज़ चैनल को भेज सकता  है। इसीलिए न्यूज़चैनल्स भी दर्शको को अपने कार्यक्रम का भागीदार बनाकर उनको इनाम भी देने का आयोजन करती है। 

हमने देखा है कि विशेष परिस्थिति में न्यूज़ चैनल्स नागरिकों से मदद लेकर इलाके की जानकारियाँ साझा करती है। मसलन अभी हुई केरल की बाढ़ विपदा। हमने देखा है कि विकट परिस्थिति में दुर्गम स्थान पर मीडियाकर्मी नहीं पहुँच सकते तब लोकल नागरिक द्वारा स्मार्ट फोन के ज़रिये उस स्थान के फोटोग्राफ्स, वीडियो आदि प्राप्त कर उसकी जानकारी देश के कोने कोने में पहुँचाते हैं। साथ ही साथ मदद के लिए भी न्यूज़ चैनल्स अभियान शुरु करते हैं। यही बात इण्टरनेट के माध्यम से भी कई वेब न्यूज़ चैनल्स भी करती है। आज इण्टरनेट पर ढेरों वेब न्यूज़ चैनल्स कार्यरत है। यही कार्य प्रिन्ट मीडिया में भी होता है।

  सोशल मीडिया मात्र न्यूज़ नहीं देता बल्कि न्यूज़ के साथ साथ जीवनपयोगी जानकारियाँ भी मुहैया कराता हैं। हेल्थ को लेकर आज जो अवेर्नेस देखने को मिलता है, उसके पीछे सोशल मीडिया ही है। इसी प्रकार स्वच्छता अभियान हो, बैंक फ़्राड की घटना हो, किसी एक्सप्रेस हाई-वे पर बनी एक्सिडण्ट की वारदात हो, पेज थ्री की ख़बरें हो, ठेठ गाँव में बनी कोई भी बात या किसी व्यक्ति की विशेष हुन्नर की बात हो तुरन्त मुख्य धारा के न्यूज़ बन जाते हैं। आज तो सोशल मीडिया ने समाज के हर तबके को प्रभावित कर दिया है।इक्किसवीं सदी का मीडिया कोर्पोरेट बन गया है। आज ज्यादातर न्यूज़ चैनल्स् किसी न किसी कोर्पोरेट समूह के है। चमक दमक के साथ न्यूज़ रूम तथा न्यूज़रिडर हमारे सामने प्रस्तुत हो रहे हैं। यह इक्किसवीं सदी की,डिज़ीटल युग की क्रांति कही जाएगी। आज समाचारों की भाषा तथा उसके कलेवर में परिवर्तन देखने को मिलता है।

-   आम आदमी भी पत्रकार

 मैं ने आगे कहाँ ही है कि आज हर नागरिक पत्रकार है। वारदात पर मौज़ूद व्यक्ति घटित घटना की रिपोर्टिंग करके सोशल मीडिया पर अपलोड़ कर सकता  है। समय के अभाव में कई लोग सोशल मीडिया पर ही न्यूज़ देखने लगे हैं। अब तो न्यूज़ पेपर्स मंगवाने वालों की संख्या में कमी हो रही है। कारण हैसबकुछ तो इण्टरनेट पर उपलब्ध है। सोशल मीडिया पर अनेक वेब न्यूज़ पोर्टल मौज़ूद है। कोई सामाजिक बातें करता है तो कोई क्राइम की तो कोई मेडिकल रिपोर्ट द्वारा  गंभीर, असाध्य बीमारी पर चर्चा करता है तो कोई शरीर और स्वास्थ्य संबंधी बातें  करता हैं। कहीं पर देखा गया है कि कुछ वेब न्यूज़ चैनल्स् विशेष वर्ग के लोगों के न्यूज़ को प्रसारित करती रहती है। जैसे –DNN MEDIA, दलित न्यूज़ NETWORK सामाजिक अन्याय के खिलाफ जंग। जिसमें समाज के पीछड़े लोगों के न्यूज़ दिए जाते हैं। इस प्रकार की चैनल्स् शुरु करने के पीछे का कारण शायद यही हो सकता  है कि मुख्य धारा की न्यूज़चैनल्स् इन उत्पीडित लोगों की न्यूज़ को अहमियत नहीं देती।यह सब वेबपोर्टल पर देखने को मिलता है। मनोरंजन की गोसीप तो चलती ही है, पर एक्सक्लूज़िव इंटरव्यू भी लाइव होने लगे हैं। लगता है जैसे हर व्यक्ति पत्रकार बन गया है। सब अपने ज्ञान की पूर्णता के लिए एड़िचोटी का ज़ोर लगाते नज़र आ रहे हैं। अब तो स्वयं न्यूज़ चैनल्स् दर्शकों को न्यूज़ देने के लिए आमंत्रित करने लगे हैं। दर्शक को अपनी राय देने के लिए भी चैनल्स् पर दिए गए मोबाइल नंबर पर मेसेज करने के लिए बार-बार सूचित करती रहती है। जिससे आम आदमी न्यूज़ चैनल्स् के साथ जुड़ता है।सोशल मीडिया में जो फेक़ वीडियोस् आने लगे हैं, उस पर अब ज्यादातर न्यूज़ चैनल्स् ने वायरलवीडियो के पड़ताल पर न्यूज़ देना शुरु किया है, जो एक स्पृहणीय कार्य माना जाएगा। जिससे वायरल वीडियों की सत्यता का पता चलता है। पर कई बार ऐसा भी होता है कि लोगों के द्वारा प्राप्त समाचार झूठ साबित होते हैं। साथ ही यह भी मानना पड़ेगा कि कई बार लोगों के द्वारा दिए जाने वाले समाचार ही न्यूज़ चैनल्स् के लिए संकटमोचन का काम करती है।

-  सोशलमीडिया के हर क्षेत्र में हिन्दी पत्रकारिता का प्रभाव

 हिन्दी पत्रकारिता का साम्राज्य आज सोशल मीडिया के हर क्षेत्र में विद्यमान है। हर न्यूज़चैनल्स ने अपनी अपनी वेबसाइट लॉन्च कर दी है। इससे आगे कहूँ तो हर न्यूज़चैनल्स ने अपनी अपनी एप खोल दी है। अब तो इण्टरनेटसाइट का ज़माना गया, एप का ज़माना आ गया है। एपडाउनलॉड़ करने पर विशेष आकर्षण भी मुहैया कराया जाता है। एप का जाल मात्र न्यूज़चैनल्स में ही नहीं पर मनोरंजन, स्पोर्टस्, ऑन लाइन शोपींग, मेडिकल, हेल्थ आदि सभी में व्याप्त हैं। सोशल मीडिया का कमाल है कि आज इसने ईश्वर का रूप ले लिया हैं यत्रतत्र सर्वत्र। आज हर बात एक ख़बर बन गयी हैं। अब तो #Me Too जैसे आंदोलन चलने लगे हैं। नारी स्वयं अपने पर हुए अत्याचारों को खुलकर कहने लगी हैं। इसे सोशल मीडिया की क्रांति ही कहेंगे। बेबाक रूप से नारी अपने अत्याचार को लोगों के सामने रख रही है। इसके लिए सोशल मीडिया के कई रूप का इस्तेमाल किया जा रहा है। कोई फ़ेसबूक पर लिख रहा है तो कोई इन्स्टाग्राम पर तो कोई ट्विटर पर तो कोई अन्य किसी माध्यम से अपनी बात रख रहा है। इसकी असर ये हो रही है कि जिन जिन सेलिब्रिटियों पर इल्ज़ाम लगाया गया है, उन्हें या तो अपने कई काम समेटने पड़े हैं, (फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर, संगीतकार अनूमलिक आदि।) तो किसी को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। ( पूर्व पत्रकार तथा वर्तमान सरकार में केन्द्रीय मिनिस्टरएम.जे. अकबर।)1.

  यह सोशल मीडिया की ताकत कही जाएगी। इसे हम हिन्दी पत्रकारिता के संदर्भ में देख सकते हैं, क्योंकि इस आंदोलन को न्यूज़ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सोशल मीडिया का बढ़ता साम्राज्य लोगों की निजी ज़िन्दगी को ओपन कर रहा है। खासकर के सेलिब्रिटिस्, राजनेता आदि। हिन्दी पत्रकारिता का रूतबा ऐसा हो रहा है कि आज यह मीडिया के हर क्षेत्र में अपना सिक्का गाड़ रहा है। अब तो न्यूज़ की सनसनी पहले से ही वेब की दुनिया में फैलने लग जाती है। प्राइवेट सेक्टर हो या सरकारी सेक्टर सभी जगह हिन्दी पत्रकारिता अपने दायित्व को निभा रही हैं। ये सारी घटनाएँ ज्यादातर हिन्दी में ही प्रस्तुत होती रही है। भले ही मीडिया की हिन्दी का रूप बदल गया हो पर देश का आम आदमी सरलता से अगर कोई भाषा में बात को समझता है तो वह हिन्दी में ही हैं। अत: हिन्दी का प्रभुत्व बरकरार है।

- टी.आर.पी की होड़ में आधी हकीकत आधा फँसाना

सोशल मीडिया के बढ़ते साम्राज्य पर सबसे ज्यादा अगर किसी का प्रभाव है तो वह आम आदमी का। मीडिया में गला काट स्पर्धा हो रही है। इसके लिए निजी  मूल्यों को भी दाँव पर लगा दिया जाता है। सभी को प्रथम नम्बर पर रहना है। नम्बर देनेवाली अजेंसी सप्ताह के निश्चित दिन पर टी.आर.पी रेटिंग के आंकड़े ज़ाहिर करती है। उस रोज़ हर न्यूज़ एजन्सी अपने कार्यक्रम के रेटिंग को देखकर कार्यक्रम के स्तर पर चर्चा करती है और जिस प्रोग्राम को कम रेटिंग मिलती है, उस प्रोग्राम के इनचार्ज को आदेश की भाषा में धमकी देकर उस प्रोग्राम के लिए कुछ भी करके रेटिंग सुधारने का प्रेसर बढ़ा दिया जाता हैं। परिणामस्वरूप प्रोग्राम का हेड कोई भी हथकण्डा अपनाकर टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए तैयार हो जाता है। जिसकी वज़ह से कई बार न्यूज़ में आधी हकिकत आधा फँसाना की बात हो जाती है। न्यूज़ की सत्यता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। हमने देखा है कि कईबार कुछ न्यूज़ गलत होते हैं। अब तो आश्चर्य भी नहीं होता कि ब्रेकिंग न्यूज़ कैसे होते हैं। मीडिया चैनल्स् ने हर न्यूज़ को ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया है। कुछ चेनल्स् हर बार ग्रुप डिस्कसन ही करते रहते हैं, मुद्दा कोई भी हो। मीडिया को अपना दायित्व निभाते हुए आधारभूत और सत्यता को जाँच परख कर न्यूज़ प्रसारित करने चाहिए। इण्टरनेट की वज़ह से कई एसी एजन्सियाँ मशरूम की तरह ऊग आयी है, जो अपनी ख़िचडी पकाने में और सोशल मीडिया पर प्रसिध्दि लेने के लिए उलजुलुल बातों की ख़बरें बनाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है।

-  फ़ेक एवं पेड न्यूज़ का अंतरजाल

थोड़े समय पहले ही एक घटना घटित हुई थी, जिसमें NDTV इंडिया के रवीश कुमार को सफाई देनी पड़ी थी। वो घटना थी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद किस तरह रवीश कुमार के एक बयान को गलत तरीके से वायरल किया गया, ताकि एक भीड़ पैदा हो जाए और वो हिंसा पर ऊतारु हो जाए।फ़ेक न्यूज़ का एक ओर हमसफ़र है पेड न्यूज़। पैसा लेकर पेड न्यूज़ और फ़ेक न्यूज़ बनाये जाते हैं। चुनाव संग्राम में पेड न्यूज़ के आतंक से हम सब भली भांति जानते हैं। अब पेड न्यूज़ के कई तरीके आ गए हैं। चुनाव आते ही विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ स्टिंग ऑपरेशन की बाढ़ आ जाती हैं। सर्वे ज्यादातर पेड न्यूज़ पर आधारित होते हैं। ताज़ा उदाहरण है यूपी चुनाव। यूपी चुनाव में गलत सर्वे छापने को लेकर विवाद भी हुआ था। पेड न्यूज़ में होता यह है कि पैसा लेकर उम्मीदवार के बारे में ख़बरे छपती रहती हैं कि जनसैलाब उमड़ा, फलाना ढ़िमका की चल रही है लहर आदि।

 आज दुनियाभर में फ़ेक और पेड न्यूज़ लोकतंत्र का गला घोंटने और तानाशाहों की मौज का ज़रिया बन गया है। देश तथा विश्व में फ़ेक और पेड न्यूज़ गढ़ने और फैलाने में एक पूरा तंत्र विकसित हो चुका है। कमज़ोर हो चुका मीडिया उनके सामने सही तथ्यों के रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। फ़ेकन्यूज़ का जाल एसा है कि आपके व्होटस्एप पर कोई झूठी ख़बर अफ़वाह बनकर आ जाए और पता भी नहीं चलता। अभी बच्चों को चुराने वाली गेंग की घटना ऐसी फैली थी, जिनमें देशभर में कई जगहों पर निर्दोषों को मार दिया गया। गुजरात में भी इस घटना से कुछ लोगों की जाने गयी थी। मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करके इस पर जनता को संदेश देना पड़ा और पुलिस को सख्त कार्यवाही के आदेश देने पड़े थे।असामाजिक तथा शरारती तत्व सोशल मीडिया की व्यापक पहुंच का फ़ायदा उठा कर समाज में अशांति और गड़बड़ी फैलाने के लिए कर रहे हैं।मोबलिंचिंग जो आजकल सुनायी दिया जानेवाला शब्द है। इसी प्रकार कुछ समय पूर्व दिल्ली में बंदरों की घटना सामने आयी थी तो गुजरात में भी कुछ लोगों के द्वारा अफ़वाह फैलायी गयी थी कि कोई अन्जान व्यक्ति रात में आकर लोगों के कान खा जाता है, जिससे गांव में लोग रात को चौकी पहरेदारी करते थे। यह सब फ़ेकन्यूज़ ही कहे जाएँगे।

 कहने का तात्पर्य यह है कि सोशल मीडिया में फ़ेक और पेड न्यूज़ का जो साम्राज्य फैला है उसके कारण हिन्दी पत्रकारिता को जो सहन करना पड़ रहा है उससे बचने के कारगार उपाय सोचने पड़ेंगे। आज अतिवाद के महौल में इस प्रकार का कार्य बेबाक हो रहा है। देश का मीडिया इसके लिए एकजुट होकर नहीं बोलेगा तो भविष्य में मीडिया के लिए जो एक प्रकार के विश्वास का माहौल है, उसमें नुकसान हो सकता  है।

-   आज की पत्रकारिता पर सवालिया निशान

    महात्मा गाँधी ने पत्रकारिता की सत्यनिष्ठा, प्रजाभिमुखता, नीडरता को मुख्य गुण माना है। उनका कहना था कि - पत्रकारिता एक सामाजिक धर्म है। अगर सरकार भूल करती है तो उसकी ओर भी लाल आँख करने की ताकत रखने का साहस पत्रकार की गरीमा है। इतिहास गवाह है कि पत्रकारिता ने कई सरकारों को शासन से उतार दिया है। उनका नामोनिशान मिटा दिया है। यह थी ताकत पत्रकार की मीडिया की। अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थोमसजेफरसन ने कहाँ था कि –"अख़बार और सरकार में से किसी एक की पसंदगी करनी हो तो मैं नीडरता से कहुँगा कि सरकार का अस्तित्व हो या न हो, अख़बार का अस्तित्व होना चाहिए।" (पृ.12, गुजरात समाचार) समाज में मीडिया की अनिवार्यता इसलिए ज़रुरी है कि लोकशाही के तीन स्तंभ अपनी जिम्मेदारी तो बराबर निभा ही रहे हैं पर इन तीनों स्तंभो को प्रजा के साथ जोडने का काम चौथा स्तंभ अर्थात् मीडिया ही करता है। मीडिया ही प्रजा के प्रश्नों को उजागर करता है, तो सरकार भी मीडिया के बिना अधूरी है।

आज 'सूचना विस्फोट' का युग है। एक पत्रकार के शब्दों में - "समाचार पत्र जनता की संसद है, जिसका अधिवेशन सदैव चलता रहता है।"विश्वसनीयता और जिम्मेदारी के आधार पर मीडिया को भी लोकशाही के चौथे स्तंभ के रूप में गिना जाता है। मीडिया को यह रूतबा मिला है, क्योंकि मीडिया समाज का आयना है। दैनिक अख़बार में प्रकाशित होते समाचार हो या कि टी.वी. रेडियो पर प्रसारित होते बुलेटिन हो या चर्चाएँ, लोगों पर एक असर छोड़ जाती हैं। आज के डिज़ीटल युग में न्यूज़ लोगों की ऊंगली पर है, एसे में मीडिया का दायित्व बढ़ जाता है कि वह सत्यता के साथ रहे।
आज हिन्दी पत्रकारिता अपने मिजाज से थोड़ी हट गयी है एसा कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं। इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडिया दोनों पर सवालिया निशान लग रहा है। देश की वास्तविक घटनाओं पर आँखें मुंदी जा रही हैं। मीडिया का दायित्व है कि वह सत्य के पक्ष का निर्वाह करें। आज तो जो दिखाना चाहिए उसे नहीं दिखाया जाता और जो नहीं दिखाना चाहिए उसे दिखाया जाता है। अब तो प्रजा को क्या दिखाना है वह मीडिया तय करने लगा है। एसे में पत्रकारिता के मूल्यों का हनन हो रहा हो एसा लगता है। मीडिया को कभी भी चापलुसी करने की ज़रुरत नहीं है। पर अब एसा हो रहा है। प्रजा बहोत ही चतुर है, उसे भनक आ जाती है। पलकझपक्ते ही प्रजा जिसे सिंहासन पर बैठाती है, उसे ज़मीन पर भी ला सक्ती है। सो मीडिया को अपने दायित्व का निर्वाह इमानदारी के साथ करना चाहिए।

 सोशल मीडिया के बढ़ते साम्राज्य में हिन्दी पत्रकारिता का टिके रहना उसके ठेठमज़बूत इरादों का नतीजा है। इरादों में कभी भी समझौता नहीं होना चाहिए, अन्यथा अपने स्थान से विचलित कर देने में देर नहीं लगेगी। सामाज के चौथे स्तंभ का दायित्व बराबर निभाते रहना ही पड़ेगा। मीडिया पर पूरे समाज को सही दिशा दिखाने की जिम्मेदारी है। अगर मीडिया ही अपनी दिशा भटक जाएगा तो देश, समाज कहाँ जाएगा? आज गलाकाट स्पर्धा चल रही है। मीडिया अपनी टी.आर.पी के लिए कुछ भी करने को तैयार है। कभी कभी तो सोशल मीडिया से कुछ वीडियो ले लिए जाते हैं जो घटना को ओर अधिक उलझा देते हैं। हमने देखा है कि आत्मविलोपन की घटना का वीडियो उतरता रहता है पर वीडियो उतारने वाले आत्म विलोपन करने वाले व्यकित को बचाने का तनिक भी प्रयास नहीं करते, बल्कि अपनी न्यूज़ चैनल के लिए लाइव रेकोर्डिंग करते रहते हैं। सवाल का उठना वाजिब है कि मानवमूल्यों का क्या? संवेदनाओं का हनन होता रहता है। एसे कई प्रश्न है जिस पर मीडिया पर ऊँगली उठती रही है।

 अंतत: कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि वर्तमान समय में सोशल मीडिया के बढ़ते साम्राज्य में हिन्दी पत्रकारिता के लिए एक नयी सोचने की पद्धति का निर्माण हो चुका है। सोशल मीडिया के साथ तालमेल बैठाकर आगे बढ़ने में ही समझदारी है। आनेवाले समय में शायद ऐसी स्थिति का निर्माण भी हो सकता है कि समाज को सोशल मीडिया के बिना क्षणिक भी नहीं चल सकेगा। समाज के सारे अंग सोशल मीडिया की गिरफ्त में होंगे। मनुष्य की सारी सोच का केन्द्र सोशल मीडिया बन जाएगा।सोशल मीडिया की गिरफ्त की कई ओर समस्याएँ होंगी पर वो एक अलग विषय रहेगा।सर्वविदित है कि यह युग सोशलमीडिया के वर्चस्व का युग है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वर्चस्व का यह मूलाधार है। आज सोशलमीडिया सिर्फ संचार नहीं है, सर्जक भी है। अत: इसकी सर्जकता का एक मापदण्ड़ इसका अपना नीजिरूतबा माना जाएगा।
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1. पृ. 17, गुजरात समाचार, दि.18 -10 – 2018


डॉ. मनीष गोहिल
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग
श्रीमती आर.डी.शाह आर्ट्स एंड श्रीमती वी.डी.शाह कोमर्स कॉलेज,
धोलका– 382225, जि. अहमदाबाद (गुजरात)
सम्पर्क 09825017616, kumarmvg@gmail.com

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-5, अंक 30(अप्रैल-जून 2019) चित्रांकन वंदना कुमारी

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