शांति की
संस्कृति और शिक्षा
शांति के लिए शिक्षा की जो अवधारणा है वह ऐसे ज्ञान कौशल, अभिरूचि और मूल्यों का पोषण करती है जिनसे शांति की संस्कृति निर्मित होती है। शांति के लिए शिक्षा समग्रतामूलक है। मानवीय मूल्यों के जिस ढांचे के भीतर बच्चों का भौतिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास होता है यह अवधारणा उन्हीं की निर्मिति है। शांति के लिए शिक्षा के दो मुख्य निहितार्थ है पहला शांति मानवीय अस्तित्व के सभी पहलुओं और आयामों को परस्पर निर्भर तरीके से अपने भीतर शामिल किये हुए है। शांतचित वाले लोग ही दूसरों के साथ शांतिपूर्ण व्यवहार कर सकते है और समाज में ऐसी संवेदनशीलता का विकास कर सकते है जो प्रकृति के प्रति उचित और अनुरागी हो। दूसरा शांति पारस्परिकता में अतंर्निहित है। प्रेम, स्वतंत्रता और शांति सरीखे मूल्य दूसरों मे बाॅटकर ही पोषित किये जा सकते है। इनके वितरण में ही इनकी वृद्धि और समृद्धि निहित है। शांति के लिए शिक्षा Education for Peace की अवधारणा प्रथम उदेश्य लोगो को हिंसा का मार्ग चुनने के बजाय शांति का मार्ग चुनने में सशक्त बनाना है। दूसरा आम जन-मानस को शांति का उपभोक्ता बनाने के साथ-साथ उसका सर्जक बनाने की तरफ बढ़ाना है।
शांति को सामान्यतः हिंसा की अनुपस्थिति समझ
लिया जाता है। गांधी शांति को शोषण और हिंसा का सबसे जाना-पहचाना और व्यावहारिक
रूप बताते है। शोषण चाहे व्यक्ति, समूह, सरकार या तकनीक किसी के भी द्वारा किसी का भी
हो। प्रेम, सत्य, न्याय, समानता, सहनशीलता,
सौहाद्र, विनम्रता, सहजता, एकजुटता और आत्मसंयम शांति इन सारे मूल्यों को
व्यवहार में लाने पर बल देती है। वास्तव में ये सभी वे जीवन-मूल्य है जो हमारे
दैनिक व्यवहार को संगठित और संतुलित बनाते है। हम अपने सामाजिक जीवन में मानसिक
सुकुन और सकारात्मक उर्जा से भरे हुए सभी क्रिया-कलापों को सम्पन्न करना चाहते
हैं। शांति की प्राथमिक दशा किसी भी तरह के तनाव, हिंसा और टकराव की अनुपस्थिति है। हिंसा, शोषण और अन्याय के सभी रूपों की अनुपस्थिति तथा
सहकार एवं सहयोग की संस्कृति ही शांति है। पारिस्थितीकीय संतुलन, संरक्षण और संवर्द्धन वाली ऐसी जीवन-शैली का
वरण जो सजृन की पूर्णता में सहायक हो सतत् शांति वाला समाज निर्माण करती है। मन की
शांति या शांति का मनो-आध्यात्मिक आयाम भी कम महत्वपूर्ण नहीे हैं। शांति व्यक्ति
से शुरू होकर परिवार, समुदाय, राष्टृ और विश्व समाज तक फैलती जाती है
इसलिए शांति की स्थायी संस्कृति का निर्माण
मानव कल्याण के लिए आवश्यक है। शिक्षा इसका प्रभावी माध्यम बन सकता है। शांति की
संस्कृति को विकसित करने में शिक्षा की महती भूमिका हो सकती है। इसको प्रोत्साहित
करने में दो स्तरीय रणनीति काम आ सकती है। जिनके जरिए समाज को हिंसा की बजाय शांति
की ओर उन्मुख किया जा सकता है। शांति की संस्कृति से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को भी गुणात्मक
ढ़ंग से परिवर्तित और परिवर्द्धित किया जा सकता है। वास्तव में एक सभ्य समाज में
मनुष्य के जीने का तरीका शांति के अनुशासन से ही निर्देशित और संचालित होना मानवीय
गरिमा की स्थापना माना जा सकता है। शिक्षा ही इस वातावरण को प्रभावकारी ढ़ंग से
निर्मित करने का एक आवश्यक आधार है। इस काम को करने के लिए शांति के लिए शिक्षा की
अवधारणा सबसे उत्तम ढंग से मनुष्य का मार्ग-दर्शन कर सकती है। शांति की संस्कृति
ही मनुष्य को मानसिक रुप से स्वस्थ रख सकती है।
प्रसिद्ध विद्वान स्टीफेन्स प्रबल आग्रह के
साथ बार-बार कहते है कि शैक्षणिक सुधार की एक महत्त्वपूर्ण पूर्व आवश्यक शर्त
शांति ही हो सकती है। अधिकांश विकासशील देशों में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति अच्छी
नहीं है। विकाशील समाजों में लगातार पिछड़ने, गरीबी, कुपोषण और
अस्वस्थता के चलते संकट गहराते ही जा रहे है। इस पेचिदा स्थिति के अनेक कारण हैं।
लेकिन उन सबको आच्छादित करता कटु सत्य यह है कि विकासशील देशों की सरकारें आज भी
अपने कुल वार्षिक बज़ट का आधा भाग सैन्य रख-रखाव और सुरक्षा पर खर्च करते है जो
निरन्तर बढ़ ही रहा है।
शांति की संस्कृति का विकास आज की आपात्
आवश्यकता है। विश्व समाज जिस तरह अंध-उपभोक्तावाद की भयानक चपेट में है। हर तरफ
हिंसा, अन्याय, असुरक्षा और प्रतिद्वंदिता का माहौल है। मनुष्य
जिस तरह बेबस सा घोर दबाव, तनाव और
चिंता में जीने का अभिशप्त है वह घायल मस्तिष्क लिए शारीरिक सौंदर्य और बलिष्टता
के वहम में नये-नये भ्रमित अभ्यास कर रहा है। जब तक संकट की व्यापकता को नहीं समझा
जायेगा हम उस अगम्य लक्ष्य को पाने के असफल प्रयास करते ही दिखेंगें।
मानसिक स्वास्थ्य का स्थायी आधार शांति की
संस्कृति ही प्रदान करेंगी। यह कार्य राज्य स्तर पर भारत के संविधान की रोशनी में
और भी आसानी से आगे बढ़ सकता है। हम एक विकासशील उदारवादी समाज के निर्माण में जो
लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की बुनियाद पर खड़ा होना है, उसमें शांति की संस्कृति के विकास का कार्य शिक्षा के
माध्यम से शुरु कर सकते है। भारतीय संविधान ने शासन को एक परिवर्तनकारी दृष्टि और
क्षमता की पहल करने की शक्ति प्रदान की है। शिक्षा को उसे साकार स्वरुप प्रदान
करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बनाया जा सकता है जो ढेरों नियोजित परिवर्तनों के
संदर्भ में देखा भी गया है। मानव स्वभाव शक्ति साधना का है। भय नियंत्रण का आम
हथियार है। इसलिए जरुरी है कि समाज में शांति की संस्कृति स्थापित की जाए तभी भय
को कम किया जा सकता है और उससे मुक्ति की दिशा में बढ़कर मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतर
लक्ष्य को हासिल किया जा सकता हैं। जैसे जातीय या लैंगिक भेदभाव एक तरह की
संरचनात्मक हिंसा है। मानव का हिंसक स्वभाव प्राकृतिक है नैसर्गिक है। उसे निरन्तर
समाज द्वारा समाजीकृत कर अहिंसक बनाने का प्रयास किया जाता है। हिंसा का निम्नतम्
स्तर ही सभ्य होने का पैमाना है। इसलिए शांति की संस्कृति का विकास एक सभ्य समाज
की प्रतिस्थापना की एक आवश्यक पूर्वशर्त भी है। किसी शांतिपूर्ण वातावरण में ही
मानसिक स्वास्थ्य का लक्ष्य हासिल हो सकता है और एक सभ्य समाज के निर्माण की दिशा
में बढ़ा जा सकता है।
शांति विभिन्न स्वरुपों और आयामों में
अवस्थित होती है सामान्यतः सकारात्मक और नकारात्मक स्वरुप आमतौर पर रोजमर्रा के
जीवन में हम यही देखते है। सकरात्मक शांति से आश्य उस सद्भावपूर्ण वातावरण से है
जिसे समाज सतत् बनाएं रखना चाहता है। शांति एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें सब साथ
मिलकर एक उत्तम समाज बनाने की कोशिश में निरन्तर आदर्श स्थिति के लिए प्रयास करते
है। ऐसी स्थितियां, परिस्थितियां और
मनःस्थितियां जिनमें सब रहना पसंद करे वहीं शांति है। शांति प्रक्रिया के माध्यम
से ही कोई व्यक्ति, समूह, समाज, राष्ट्र अथवा सरकार पूर्णता को प्राप्त करना चाहता है अपने सर्वोकृष्ट रुप में
उपस्थित होना चाहता है। एक देश के रुप में अभी तक जिन चुनौतियौं का सामना हमको
करना पड़ा है उन्हें जब हम भारतीय संविधान के संदर्भ में देखते हैं, तो उन असाधारण चुनौतियों का समाधान जिनका सामना
हमारा लोकतंत्र कर रहा है। उसका एकमात्र माध्यम शिक्षा नजर आती है। इसलिए शांति की
संस्कृति की राह भी शिक्षा ही बनायेंगी और भारतीय समाज को सभ्य एवं स्वस्थ समाज
रखने में।
संदर्भ:-
1. श्यामाचरण दुबे-समय और संस्कृति
2. कृष्ण कुमार - शांति का समर
3. यूनेस्को दूत - अंतर्राष्टृीय पत्रिका
4. रविन्द्रनाथ टैगोर-माइंडस् विदआउट फियर
5. राकेश राणा -विश्व शांति दिवस-पर दिया व्याख्यान
डॉ. राकेश राणा
(लेखक युवा समाजशास्त्री हैं)
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) शिक्षा विशेषांक, मार्च-2020, सम्पादन:विजय मीरचंदानी, चित्रांकन:मनीष के. भट्ट
एक टिप्पणी भेजें