सब में राम ही राम
नाम चतुर्गन
पंचयुग कृत द्वौ गुनी बसु भेखि ।
सकल चराचर जगत मे
राम हि देखी । ।
इस श्लोक को गौर
से पढिए और इसका मतलब समझने की कोशिश कीजिए। क्या समझ मे आया ? श्लोक में बहुत
गहरी बात छिपी हुई है। इसका महत्व हम धार्मिक संदर्भों में तो स्पष्ट देख सकते हैं, लेकिन यहॉ मैं इस श्लोक के सहारे आपको गणित
चिंतन की रोचक यात्रा पर ले चलना चाहूँगा। पिछली गर्मियों में शिक्षक प्रशिक्षण के
दौरान मुझे राजसमन्द ज़िले के देवगढ़ ब्लॉक के गणित शिक्षकों के साथ काम करने का
अवसर मिला। इस दौरान इस श्लोक पर गहराई से सोचने समझने का संयोग बना। यह लेख इसी श्लोक
से जुडे कुछ अनुभवों और कुछ चिंतन का मिश्रण है।
अब से कुछ दो साल
पहले चित्तौड़गढ जिले के एक शिक्षक प्रशिक्षण मे पहली मर्तबा यह श्लोक मेरे सामने
आया था। हमारे प्रशिक्षक जी ने छह दिवसीय षिक्षक प्रशिक्षण के पहले दिन गणित के
महत्व पर बात करते हुए बोर्ड पर दो श्लोक लिखे थे।
यथा शिखा मयूराणां
नागानां मणयो यथा।
तथा
वेदागशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितिम ।।
नाम चतुर्गन
पंचयुग कृत द्वौ गुनी बसु भेखि ।
सकल चराचर जगत मे
राम हि देखी । ।
पहले श्लोक के
संदर्भ में उन्होने बताया कि ‘जिस प्रकार सभी
मोरों में से शिख पर पंख वाले मोर और नागों में मणिधारण करने वाले नाग का महत्व है,
उसी प्रकार सभी वेदों और शास्त्रों में गणित
विषय सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।'
हालांकि, आज हम सब यह मानते हैं कि कोई भी विषय कम या
ज्यादा महत्वपूर्ण नही होता है। किसी बच्चे को एक अच्छा और समझदार इंसान के रूप
में तैयार करने के लिए जितना महत्व गणित का है उतना ही महत्व भाषा, विज्ञान तथा सामाजिक अध्ययन जैसे अन्य सभी
विषयों का भी है।
दूसरे के संबध
में उन्होने बताया कि ‘यह श्लोक गणितीय
रूप से सिद्ध करता है कि सारे जगत में राम ही राम है। आप कोई भी नाम लेगे उसमे राम
नाम छुपा हुआ मिलेगा।’ इस श्लोक के अर्थ
पर तब बहुत विमर्श नही हो सका था। हम सभी लोग बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि ‘कण कण मे व्यापे हैं राम’। श्लोक की दूसरी पॅक्ति भी कुछ ऐसा ही अर्थ - ‘पूरे जगत मे राम ही राम देखा ’- बता रही है। उस समय बात कुछ नई नही लगी थी। अतः
हम सभी संभागियों ने भी सहजता से मान लिया था कि सब जगह राम ही राम है। तब इस श्लोक
मे छिपे अर्थ को न हम लोग पूरी तरह समझ सके थे और न ही हमारे प्रशिक्षक जी बेहतर
ढॅग से समझा सके थे। बात आई गई हो गई।
इस साल की गर्मियों
के शिक्षक प्रशिक्षण मे मुझे राजसमंद जिले के देवगढ़ ब्लॉक में रहने का अवसर मिला।
यहॉ पर एक बार फिर इस श्लोक से मुलाकात हो गई। इस बार हमारे प्रशिक्षक सुरेन्द्र
जी थे। सुरेन्द्र जी गणित मे रूचि रखते है साथ ही संस्कृत भाषा पर भी उनकी अच्छी
पकड है । उन्होने बताया कि यह श्लोक गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है। उन्होने इस श्लोक
मे उपयोग किए गए सभी शब्दों का न सिर्फ अर्थ बताया बल्कि कुछ उदाहरणों को लेकर श्लोक
में कही गई बात को समझाने का प्रयास भी किया।
नाम चतुर्गन
पंचयुग कृत द्वौ गुनी बसु भेखि ।
सकल चराचर जगत मे
राम हि देखी ।।
सुरेन्द्र जी ने
बताया कि श्लोक में कहा जा रहा हैं कि अपने नाम मे आने वाले ‘कुल अक्षरों की संख्या’ को चार से गुणा करें और प्राप्त संख्या में पॉच जोड दें। अब
जो नई संख्या मिली है उसे दो से गुणा करें। इस तरह प्राप्त हुई संख्या को आठ से
भाग कर दें। आप को राम नाम मिल जाएगा।
पहली बार में बात
स्पष्ट नही हो पाई थी। अतः उन्होने एक उदाहरण लेकर समझाया।
मान ले कि कोई ‘कमल’ नाम का व्यक्ति है। उनके नाम में 3 अक्षर हैं ..........क म और ल । श्लोक के अनुसार
नाम के अक्षरों
को चार से गुणा करना है। फिर प्राप्त हुई संख्या में पॉच का योग कर देना है।
नाम चतुर्गन
पंचयुग
4×3+5 इस प्रकार 17 मिलेगा।
अगले चरण में इस 17 को दोगुना करना है। फिर प्राप्त हुई संख्या को
8 से भाग कर देना है।
कृत द्वौ गुनी
बसु भेखि
17×2=34
34/8
34 को 8 से भाग करने पर शेषफल 2 बच जाएगा।
राम नाम मे भी दो
ही अक्षर हैं।
इस तरह सभी नामों
में राम नाम मिल जाएगा। इसीलिए तुलसीदास जी कह रहे हैं कि उन्हे सारे जग मे बस राम
ही राम दिखते हैं।हमारे प्रशिक्षक
जी ने कुछ लोगों के नाम बोर्ड पर लिख कर इस बात को साबित कर के भी दिखाया। संभागी
के रूप में शामिल राजेश सर ने बोर्ड पर जा कर अपना नाम ‘राजेश’ लिखा और इसमे
छिपे राम नाम को खोजने लगे।
‘राजेश’ शब्द मे भी 3 अक्षर हैं। सो ‘नाम चतुर्गन पंचयुग’ के
अनुसार........ 4×3+5
सबसे पहले 17 प्राप्त हुआ।
अब अगले चरण मे ‘कृत द्वौ गुनी बसु भेखि’ के अनुसार........17 को दो गुना करके 8 से भाग करना था।
इस तरह 34/8
34 को 8 से भाग देने पर शेषफल 2 बचता है।
राजेष सर को अपने
नाम मे राम नाम मिल गया था। कुछ अन्य शि’क्षक साथियों ने भी बोर्ड पर आ कर अपने
अपने नाम की जॉच परख की। जहॉ कुछ गडबड होती सुरेन्द्र सर मदद करते थे। किसी न किसी
तरह सब 2 पर जा पहॅुच रहे थे।
सबके नाम मे राम नजर आ रहे थे। मुझ से भी न रहा गया।
मैने भी अपनी कापी पर ही अपना
नाम लिख कर हल करना प्रारंभ किया।
मोहम्मद उमर
8 अक्षर हैं।
4×8+5=37
(2×37)/ 8
74/8
मुझे भी शेषफल 2 प्राप्त हो रहा था।
मुझे खुशी हुई कि
मेरे नाम ‘मोहम्मद उमर’ मे भी राम नजर आ रहे हैं। लोग बेकार ही धरम के
नाम पर लड़तें हैं। यहॉ देखिए कोई अंतर नही है। सब जगह राम ही राम मिल रहे हैं।
मैने आस पास देखा।
अन्य लोग भी अपने अपने नाम में राम खोजने मे लगे हुए थे। थोडी ही देर बाद मुझे
महसूस हुआ कि मुझसे शायद एक गलती हुई है। मेरे नाम मोहम्मद उमर मे एक आधा म आ रहा
है जिसे मैं पूरे अक्षर के रूप मे अपनी गिनती मे ले रहा हॅू। अपने पडोसी शिक्षक से
पूछा तो उन्होने कहा कि आधे म को गिनती मे नही लेना चाहिए। मैने अपना हल दोबारा शुरू
किया। इस बार अपने नाम में आ रहे आधे म को अनदेखा कर यह मान लिया कि मेरे नाम में 7 अक्षर ही हैं।
4×7+5=33
(2×33)/8
66/8
इस बार भी शेषफल 2 प्राप्त हुआ। ये थोडा आश्चर्यजनक लगा।
कुछ अन्य शिक्षकों
ने भी इस प्रक्रिया को अपने नाम तक ही सीमित न रख वस्तुओं के उपर भी परख लिया था। ऐसे
ही एक शिक्षक ने हम सब का ध्यान इस तरफ खींचा - सर जी, ‘पॅखा’ के लिए भी शेषफल 2 ही आ रहा है। उन्होने बोर्ड पर आ कर हल करके भी
दिखाया। ‘पॅखा’ शब्द में 2 अक्षर हैं।
4×2+5 =13
(2×13)/ 8
26/8 ,
शेषफल 2 प्राप्त हुआ।
पीछे की तरफ से
भी एक शिक्षक की आवाज आई ‘ सर जी, अलमारी में भी राम नाम मिल गया है।’ हम संभागियों को थोडा आश्चर्य हुआ कि लोगों के
नाम के अलावा ,वस्तुओं के नाम
मे भी राम नाम कैसे मिल रहा है। लेकिन हमारे प्रशिक्षक जी ने बहुत ही सहजता से
बताया कि तुलसीदास जी सिर्फ लोगों के नाम की बात नही कर रहे हैं। वे तो इस जगत के
सभी चीजों के नाम मे राम के बसे होने की बात कर रहे हैं। आप किसी भी चीज का नाम
सोच कर देखो। यह श्लोक सभी जगह लागू होगा।
यह सत्र सभी को
अच्छा लगा था। सदन में यह स्थापित हो गया था कि तुलसी दास जी ने बहुत ही सही बात
कही है। हम सभी के नाम मे राम नाम छिपा है। दुनिया की हर चीज के नाम मे राम नाम
पाया जा सकता है।
सरकारी प्रशिक्षणों
को कुछ लोग बहुत ही आलोचनात्मक नजरिए से देखते हैं। मेरे लिए ये सदैव सीखने सिखाने
का एक बेहतर माध्यम रहा है। हर शिक्षक प्रशिक्षण किसी न किसी रूप में मुझे कोई न
कोई नयी सीख दे जाता है। इसीलिए मै हमेशा ही इस तरह के प्रशिक्षणों को बहुत
गंभीरता से लेता हॅू।
प्रशिक्षण से
लौटकर मै इस राम नाम वाली बात पर सोचता रहा। कोई भी नाम लिखने पर शेषफल 2 बच रहा था। ये रोचक भी था, लेकिन समय अभाव के कारण सत्र मे ये बात और आगे
नही जा पाई थी। मुझे लगा कि इस बात को गणितीय नजरिये से भी परखने की जरूरत है।
इसमें जो गणितीय रहस्य छिपा है उसे भी खोजने की आवश्यकता है।
शाम में एक बार
फिर से सोचना शुरू किया। अभी मेरी जिज्ञासा इस बात में ज्यादा थी कि मेरे खुद के
नाम ‘मोहम्मद उमर’ में 8 अक्षर और 7 अक्षर मान लेने पर भी दोनो ही स्थितियों में ये बात सही
कैसे साबित हो गई थी। मैने कापी पर हल करना शुरू किया। पहली परिस्थिति जब मैने
माना था कि मेरे नाम मे 8 अक्षर हैं।
4×8+5 =37
(2×37)/ 8
74/8 ,
शेषफल 2 मिल रहा है।
और दूसरी
परिस्थित जब मैने माना कि मेरे नाम मे 7 अक्षर हैं।
4×7+5 =33
(2×33)/ 8
66/8=2
यहॉ भी शेषफल 2 मिल रहा है।
प्रशिक्षण कक्ष
में 2 , 3 ,4 तथा 5 अक्षर वाले नामों की जॉच हम क्रमषः पॅखा,
राजेश, दलपत आदि शब्दों से कर ही चुके थे। ऐसा लगने लगा कि शायद सभी जगह ये बात लागू
होगी। अगर ऐसा सही है तो एक अक्षर के साथ भी यह सही होना चाहिए। हालॉकि एक अक्षर
का कोई नाम नही होता है,फिर भी जॉच करना
चाहिए। मैने मान लिया कि कोई नाम है क। यहॉ एक ही अक्षर है। देखते हैं क्या होता
है?
4×1+5 =9
(2×9)/ 8
18/8
ओह, यह तो आश्चर्यजनक है। यहॉ भी शेषफल 2 मिल रहा है। ............तो क्या तुलसीदास जी
ने एक ऐसी बात लिख दी है जो हर परिस्थिति मे सही साबित हो रही है। नाम, वस्तु, जगह या जानवर या
फिर कोई अकेला अक्षर ही क्यों न हो। सब जगह राम ही राम हैं।
एक बात और सूझने
लगी ,वो ये कि प्रशिक्षण कक्ष
में कुछ ही नाम लेकर जॉच की गई थी। घर पर आ कर मैने भी कुछ और नाम तथा शब्द लेकर
जॉच की हैं। इससे पहली नजर में तो ये जरूर लगने लगा है कि यह बात हर जगह लागू होगी, लेकिन पक्के तौर
पर नही कहा जा सकता कि यह बात हर जगह पर लागू होगी ही होगी। गणित में हज़ार बार जॉच
कर लेने के बाद भी यह दावा नही किया जा सकता कि आगे भी ऐसा ही होगा। सामान्यीकरण
करने से पहले हमे उन्हें गणितीय रूप से सिद्ध भी करना पडता है। तो, अगर हम इस श्लोक के अनुरूप यह मानना या कहना
चाह रहे हैं कि सारे जगत में राम ही राम हैं तो हमें इस कथन को गणितीय रूप से भी
साबित करना होगा। अन्यथा लाख उदाहरणों को परख लेने के बाद भी हम इसे सही नही
मानेगें। क्योकि यह संभव है कि आगे कहीं जाकर यह खारिज हो जाए।
आइए इसे सिद्ध
करने का प्रयास करते है। उपर प्राप्त हुए नतीजों को अब हम व्यवस्थित रूप में उपयोग
करेगें। सबसे पहले एक अक्षर के नाम क पर आधारित नतीजा ले लेते हैं।
1 अक्षर का नाम क
4×1+5 =9
(2×9)/ 8
18/8
शेषफल 2 मिल रहा है।
इसे व्यंजक के
रूप में जमा लेते हैं। व्यंजक का मतलब होता है किसी कही गई बात या विचार को गणितीय
प्रतीकों मे प्रदर्शित करना।
2(4×1+5)/ 8
गौर से देखें तो
आप पाएगें कि यह गणितीय व्यंजक तुलसीदास जी द्वारा कही गई बात ‘नाम चतुर्गन पंचयुग कृत द्वौ गुनी बसु भेखि ’
का ही गणितीय स्वरूप है।
अब हम 2 अक्षर का नाम ‘पॅखा’ से प्राप्त हुए
व्यंजक को भी देखते हैं। ............ 2(4×2+5) / 8
इसी तरह तीन
अक्षर का नाम राजेश से प्राप्त व्यंजक ............. 2(4×3+5) / 8
चार अक्षर का नाम
कमलेश से प्राप्त व्यंजक ............. 2(4×4+5) / 8
किसी पॉच अक्षर
वाले नाम से प्राप्त व्यंजक ........... 2(4×5+5) / 8
.....................................................................................
हजार अक्षरों
वाले नाम से प्राप्त व्यंजक 2(4×1000+5) / 8
और अब, अनंत अक्षर का नाम, जिसमे अक्षरों की संख्या n है। 2(4×n+5) / 8
यह 2
(4×n+5) / 8 एक बीजीय व्यंजक
है। ऊपर सब कुछ संख्या मे ही था। अतः जॉच करना आसान था। हम 8 से भाग कर के देख पाते थे कि सभी जगह शेषफल 2 बच रहा है। इस बीजीय व्यंजक के लिए भी हमें
अपनी जॉच करनी होगी।
2 (4×n+5) / 8
(8×n+10) / 8
(8n+8 +2) / 8
{(n+1)8 +2} / 8
वाह, क्या बात है। हम नतीजे तक पहुँच गए।
{(n+1)8 +2} /8
थोडी देर के लिए
सिर्फ सवाल के इस हिस्से {(n+1)8 +2} पर ध्यान दीजिए। यह एक बीजीय व्यंजक है। यदि
हम n स्थान पर बारी-बारी से पूर्ण संख्यायें यानी 0,1,2,3,4,5,6...........
आदि रखते हैं तो हर बार हमें एक ऐसी संख्या अवश्य
मिलेगी जो 8 के गुणज में 2 का योग करने से बनती है। ऐसी संख्याओं को हम
जब भी 8 से भाग करेगें तो अवश्य
ही शेषफल 2 बचेगा।
इसका अर्थ यह हुआ
कि एक से लेकर अनंत संख्या तक के अक्षर वाले नाम लेकर भी हम ‘राम’ नाम प्राप्त कर सकते है। बल्कि हम एक भी अक्षर न लें तो भी हमें शेषफल 2 ही मिलेगा।
विशुद्ध गणितीय
रूप मे देखें तो जब हम कोई भी अक्षर नही ले रहें है उस स्थिति में n के स्थान पर 0 रखना होगा।
{(n+1)8 +2}/8
{(0+1)8+2}/8
{(1)8+2}/8
{8+2}/8
10 / 8 , शेषफल 2
यानी अक्षरों की
संख्या यदि 0 भी हुई तो भी
कोई फर्क नही पडने वाला। अपने को ‘सकल जगत में राम
ही राम’ मिल जाएगें। तुलसीदास जी
के इस श्लोक के पीछे छिपा यह रोचक गणित देखकर मुझे अच्छा लगा। मन मे यह ख्याल आया
कि तुलसीदास जीने इस प्रकार के गणितीय ज्ञान और भाषा प्रयोग के मिश्रण से इतनी
बेहतर ढंग से अपनी बात कह दी थी। उनका अध्ययन कितना व्यापक रहा होगा।
मोहम्मद उमर
अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन,राजसमन्द
(शैक्षिक पत्रिका 'संदर्भ' से साभार)
(शैक्षिक पत्रिका 'संदर्भ' से साभार)
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) शिक्षा विशेषांक, मार्च-2020, सम्पादन:विजय मीरचंदानी, चित्रांकन:मनीष के. भट्ट
उमर भाई का लेख सब में राम ही राम बहुत ही बढ़िया लिखा है।
जवाब देंहटाएंराम राम
जवाब देंहटाएंसलाम, इस्लाम भी राम से ही बने शब्द हैं ।
श्रीराम श्रीराम करते करते ये शब्द सलाम में बदल गया।
इसी तरह अबराम यानि अब्राहम जी राम नाम है। अबराम यानि श्रीराम। क्रिश्चियन भी राम वाले ही हैं।
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