अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-34, अक्टूबर-दिसम्बर 2020, चित्रांकन : Dr. Sonam Sikarwar
'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL)
संपादकीय : ‘तोत्तोचान’- खिड़की में खड़ी एक नन्ही लड़की’ / जितेन्द्र यादव
इस पुस्तक की यात्रा वहाँ से शुरू होती है जब तोत्तोचान को अपने पहले स्कूल से इसलिए निकाल दिया जाता है क्योंकि उसे भी बाकी सबकी तरह बाल–शिक्षा के पारंपरिक व पढ़ाने के वही रटे–रटाए तरीके से पढ़ाई में बिलकुल दिलचस्पी नहीं रहती। वह स्कूल की खिड़की में खड़ी होकर बाहर के नजारों को जी भरकर देखती रहती है पंछियों से बातें-शरारतें करती है। वह अत्यधिक चंचल लड़की है और अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण शिक्षिका से सवाल करती रहती है। ये सब उस शिक्षिका को अच्छा नही लगता है इसीलिए तोत्तोचान की माँ को बुलाकर कह देती है कि ये लड़की इस स्कूल में नही पढ़ सकती। तब तोत्तोचान की माँ उसको बिना बताये चिंतामग्न हो कर ‘तोमोये’ में हेडमास्टर कोबायाशी के स्कूल में प्रवेश के लिए ले जाती है। तोत्तोचान अब भी अपनी माँ के साथ चलती हुई काफी चंचल रहती है लेकिन उसकी माँ अंदर–अंदर गम में डूबी रहती है, उसको भय रहता है कि यदि यहाँ भी प्रवेश नही मिला तो वह फिर क्या करेगी? बाल-केन्द्रित शिक्षा के सारे सिद्धांत अपने वास्तविक और ठोस रूप में इस किताब में पाए जाते हैं। इसलिए यह सीखने–सिखाने व स्कूल की एक अभिनव और साहसिक परिकल्पना प्रस्तुत करती है। दुनियाभर में इस पुस्तक से प्रेरणा लेकर नए किस्म के स्कूल खुले जो सोसाकु कोबायाशी के विचारों से प्रभावित हैं।
तोत्तोचान जब अपने दूसरे नये स्कूल को देखती है तो आश्चर्यचकित हो जाती है क्योंकि स्कूल की बिल्डिंग की जगह रेल का पुराना डिब्बा था उसी में क्लास चलती थी। तोत्तोचान अपनी माँ के साथ हेडमास्टर के यहाँ गई। हेडमास्टर से तोत्तोचान पहली बार में ही पूछती है कि आप हेडमास्टर हैं या स्टेशन मास्टर? यह सुनकर उसकी माँ घबरा जाती है लेकिन हेडमास्टर हँस देते हैं, फिर वे तोत्तोचान को अपने बारे में बोलने के लिए कहते हैं, वह तीन घंटा लगातार बोलती ही रहती है उसको बाद में पता चलता है कि मैंने इतना घंटा बोल दिया। हेडमास्टर ने कहा कि अब तुम इस स्कूल की छात्रा हो। यह स्कूल तोत्तोचान को खूब पसंद आता है यहाँ बच्चों को अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतन्त्रता मिलती है।
तोत्तोचान अपने नए विद्यालय में बहुत खुश थी वह जब भी स्कूल से घर जाती तो अपने स्कूल की गतिविधि के बारे में माँ से जरुर चर्चा करती थी। उसको अपने विद्यालय जाने की बहुत बेचैनी रहती थी कि कब सुबह हो और वह स्कूल जाए। जापान का स्कूल- ‘तोमोये’ और उसके हेडमास्टर श्री कोबायाशी बच्चों से बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध रखते थे, बच्चों के हर एक क्रियाकलाप पर ध्यान देते थे, कोबायाशी बच्चों की हर जिज्ञासा को शांत कर देना चाहते थे। हेडमास्टर जी का मानना था कि सभी बच्चे स्वभाव से अच्छे होते हैं उस अच्छे स्वभाव को उभारने, सींचने–संजोने और विकसित करने की जरूरत है। स्वाभाविकता मूल्यवान है। चरित्र यथासंभव स्वाभाविकता के साथ निखरे। बच्चे अपनी निजी वैयक्तिकता के साथ बड़े हों। आत्मसम्मान के साथ व बिना किसी हीन भाव और कुंठा के। बच्चों को पूर्व निश्चित खांचो में डालने की कोशिश न करें। उनके सपने तुम्हारे सपनों से अधिक विशाल हैं। एक बार स्कूल में रेल का नया डब्बा आने वाला होता हैं, बच्चे हैरान रहते हैं कि आखिर यहाँ कैसे रेल का डिब्बा आएगा कोबायाशी ने उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए रात में यही आने के लिए कहते हैं।सभी बच्चे रात में तोमोये में बैठकर रेल के डिब्बे का इंतजार करते हैं। रेल का डिब्बा जब टेलर गाड़ी से आता है तो सारे बच्चे देखकर स्तब्ध रह जाते हैं।
तोमोये एक ऐसी प्राथमिक शाला थी, जहां हमेशा कुछ न कुछ नया होता रहता था। जो बच्चों को एक अलग अनुभव कराता था। बच्चे रुचि और आजादी के साथ पठन–पाठन करते थे, विद्यालय उनके लिए उमंग और उत्साह की जगह थी जहां जाने के लिए माँ-बाप को धक्के देकर नहीं ले जाना पड़ता था बल्कि बच्चे खुद बैचेन रहते थे कि कब सुबह हो और हम अपने स्कूल जाएँ। कोबायाशी तरणताल में तैरने के लिए बच्चों को प्रेरित करते हैं, सभी बच्चे बड़े आनंद के साथ तैरते हैं। कोबायाशी गर्म ‘सोता’ का भी शैर कराते हैं जिसमें बच्चों को बहुत-सी ऐसी चीज देखने को मिलती है जिसका पहली बार वे अनुभव ले रहे होते हैं, जैसे कि नाँव कैसे बनती है ‘सोते’ कैसे होते हैं इत्यादि। कोबायाशी बच्चों को स्कूल में सबसे खराब कपड़े पहनकर आने को कहते है ताकि खेलने कूदने में फट भी जाये तो कोई बात नहीं। तोत्तोचान के स्कूल में ताहाकाशी नाम का विकलांग बच्चा भी पढ़ने आता है जिसको तोत्तोचान की सहानुभूति और मदद दोनों मिलती है।
तोत्तोचान एक दिन बालों की चोटी बनाकर जाती है और सोचती है कि अब मैं बड़ी दिख रही हूँ, सभी छात्र मेरा अदब करेंगे लेकिन होता इसका उल्टा है एक छात्र तो उसके चोटी का मजाक ही बना देता है पकड़कर खीचने लगता है और वह गिर जाती है। उसकी चोटी भी बिगड़ जाती है। रोते हुए हेडमास्टर के पास जाती है। हेडमास्टर उस लड़के को बाद में बहुत ही नैतिकपूर्ण ढंग से समझाते हैं। एक बार एक अध्यापिका मानव विकास समझा रही होती है तभी बंदर का जिक्र आता है कि पहले आदमी के पास भी इसी तरह पूँछ थी और मजाक में एक लड़के से पूछती है कि क्या तुम्हारे पास भी पूँछ है, लड़का गंभीर हो जाता है और सभी बच्चे हँसने लगते हैं। इस बात को कोबायाशी सुन लेते हैं।अध्यापिका को अपने कमरे में बुलाकर उनकी गलती महसूस करवाते हैं। कोबायाशी एक बेहद संजीदा व्यक्ति थे। उनकी पाठशाला बच्चों के अंदर की सृजनात्मक क्षमता को उभारने वाली थी, वहाँ बच्चे बिना किसी बंदिश और रोक–टोक के सीखते थे।
एक दिन हेडमास्टर ने खेती करने वाले किसान को खेती के बारे में बच्चों से अनुभव बाँटने तथा बच्चों को खुद खेत में ले जाकर जानकारी के लिए अपने स्कूल में बुलाते हैं और कहते हैं- ये तुम्हारे टीचर है पहले तो बच्चे सोच में पड़ जाते है लेकिन बाद में खेत में जाकर बकायदा अनुभव प्राप्त करते हैं। कोबायाशी कभी भी तोत्तोचान को निराश नही करते हैं वे कहते हैं- ‘तुम सच में एक अच्छी बच्ची हो’। तोत्तोचान अपनी मौसी से रिब्बन मांगी रहती है जो उसके लिए बहुत खुबसूरत था। अपने बालों में लगाकर जाती है। उसके रिब्बन को देखकर कोबायाशी की बेटी भी इसी तरह के रिब्बन की मांग करती है। वे बाजार में उसको बहुत खोजते हैं लेकिन नही मिलता है। बाद में तोत्तोचान को बुलाकर रिब्बन न लगाकर स्कूल आने के लिए कहते हैं और वे मान जाती है।
इस स्कूल में हर दिन टिफिन के बाद कोई बच्चा सबके बीच खड़ा होकर भाषण देता था, हेडमास्टर जी के मुताबिक शिक्षा में ‘लिखित’ शब्द पर ज्यादा ज़ोर गलत है। इससे बच्चे का एंद्रिय-बोध, सहज ग्रहणशीलता और अन्तर्मन की आवाज सब क्षीण हो जाते हैं। हेडमास्टर जी ने रेल के डिब्बे में बने पुस्तकालय को दिखाते हुए कहा था– ‘यह है तुम्हारा पुस्तकालय’ कोई भी बच्चा किसी भी किताब को पढ़ सकता है। जो अच्छा लगे पढ़ो। तुम सब जितना ज्यादा पढ़ सको, पढ़ो। बच्चे इस तरह से प्रशिक्षित होते थे कि वे अपना काम पूरी तन्मयता के साथ करें, चाहे आसपास कुछ भी होता रहे।
द्वितीय विश्व युद्ध की भयावह स्थिति चल रही थी। एक दिन ऐसा भी आया जब बम ‘तोमोये’ के स्कूल पर भी गिरा दिया गया, वह जल रहा था। तब कोबायाशी दूर खड़े रास्ते पर से देख रहे थे और अपने बेटे से पूछा ‘अब हमारा स्कूल कैसा होना चाहिए? वह आश्चर्य से कोबायाशी की तरफ देखा। स्कूल जल रहे थे लेकिन कोबायाशी के सपने नही टूटे थे वह नये स्कूल की कल्पना कर रहे थे।
'तोत्तोचान' पुस्तक आज की शिक्षा व्यवस्था के
सामने एक मिसाल पेश करती है हमारी ज्वलंत समस्या के सामने एक मशाल की तरह राह भी दिखाती है जिससे बहुत कुछ प्रेरणा लेकर हम
प्राथमिक पाठशाला में बदलाव की शुरुआत कर सकते हैं। यह पुस्तक जब तक हमारी
शिक्षा पद्धति रटंत, उबाऊ और
निर्जीव बनी रहेगी तब तक तोमोय का स्कूल और उसके नवाचारी हेडमास्टर कोबायाशी हमारे जेहन में जिंदा रहेंगे।
जितेन्द्र यादव
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