अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-35-36, जनवरी-जून 2021, चित्रांकन : सुरेन्द्र सिंह चुण्डावत
UGC Care Listed Issue 'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL)
फेक न्यूज़ के प्रसारण को रोकने
के प्रयासों का अध्ययन / डॉ. उमेश कुमार
शोध सार -
फेक न्यूज़ के प्रसरण को रोकने के
प्रयासों का अध्ययन[i]।फेक न्यूज़ पर चर्चा आज सम्पूर्ण विश्व
में हो रहा है। इन्टरनेट पर फेक न्यूज़ शब्द को खोजने पर एक सेकंड में लगभग दो अरब
लिंक उपलब्ध हो जाते हैं। इससे इसकी गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है35। ऑक्सफोर्ड
डिक्शनरी ने ‘पोस्ट ट्रूथ’ शब्द को वर्ष 2016 का ‘वर्ड ऑफ द ईयर’ घोषित किया था।[ii] इस शोध पत्र में फेक न्यूज़ और मीडिया
तथा भारत और विभिन्न देशों में फेक न्यूज़ को रोकने के लिए किए गए विधिक प्रयासों
की चर्चा की गई है। इसके साथ ही साथ यह भी देखने का प्रयास किया गया है कि फेक
न्यूज़ को किस प्रकार से रोका जा सकता है।
बीज शब्द - फेक न्यूज़, विश्वसनीयता, मीडिया, विधि,
सामग्री प्रसरण
मूल आलेख -
समाचार के रूप में अफवाहों का प्रसारण फेक न्यूज़ कहलाता है।यह एक तरह की पीत पत्रकारिता (येलो जर्नलिज्म) है। इसके तहत किसी के पक्ष में प्रचार करना व झूठी खबर फैलाने जैसे कृत्यों को शामिल किया जा सकता है। किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को नुकसान पहुंचाने या लोगों को उसके खिलाफ झूठी खबर के जरिए भड़काने को कोशिश फेक न्यूज है। सनसनीखेज और झूठी खबरों, बनावटी हेडलाइन के जरिए अपनी पाठक संख्या और ऑनलाइन शेयरिंग बढ़ाकर क्लिक रेवेन्यू बढ़ाना भी फेक न्यूज की श्रेणी में आते हैं। फेक न्यूज किसी भी सटायर (व्यंग्य) या पैरोडी से अलग है। क्योंकि इनका मकसद अपने पाठकों का मनोरंजन करना होता है, जबकि फेक न्यूज का मकसद पाठक को बरगलाने का होता है।पिछले कुछ सालों से फेक न्यूज सम्पूर्ण विश्व में विमर्श के रूप में उभर कर सामने आया है। अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव के समय इस शब्द का प्रयोग बहुत अधिक हुआ है।[iii]मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में हुए अध्ययन में कहा गया है कि सोशल मीडिया से झूठी खबरें छह गुना अधिक तेजी से फैलती हैं। इस अध्ययन के लिए 2006 से 2016 के बीच माइक्राब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर ट्वीट की गई 1.26 लाख खबरों का आकलन किया गया। इस दौरान देखा गया कि झूठी खबर 70 फीसदी अधिक बार रीट्वीट की गई। प्रमुख शोधकर्ता और शोध के सह लेखक देब रॉय के अनुसार सही खबर को तलाशने और 1500 लोगों तक पहुंचने में छह गुना अधिक समय लगता है। सच्ची खबरों के मुकाबले झूठी खबरें या जानकारियां ज्यादा दूर तक और ज्यादा लोगों तक पहुंच जाती हैं।
देश में सोशल मीडिया और फेक न्यूज को लेकर चली बहस के बीच राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने पहली बार फेक न्यूज,अफवाह फैलाने को भी अपराध की श्रेणी में मानते हुए उससे जुड़े आंकड़ों को प्रकाशित किया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में फेक न्यूज को लेकर कुल 257 मामले दर्ज किए गए है। इस रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में फेक न्यूज और अफवाह फैलाने के मामले को लेकर सबसे अधिक 138 मामले दर्ज किए गए। वहीं अपराध के मामले में नंबर वन उत्तर प्रदेश में फेक न्यूज के केवल 32 मामले और सर्वाधिक शिक्षित माने जाने वाले केरल में 18 मामले दर्ज किए गए हैं। 2017 की राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में जम्मू कश्मीर को लेकर फेक न्यूज का आंकड़ा भी चौंकाने वाला है। रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू कश्मीर में फेक न्यूज को लेकर मात्र 4 मामले ही दर्ज किए गए। यह तब है कि जब इस साल जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के लिए सोशल मीडिया पर फेक न्यूज (खबरों) को सरकार ने सबसे बड़ी चुनौती माना था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट के अनुसार बिहार, हरियाणा और झारखंड में साल 2017 में फेक न्यूज का कोई भी मामला सामने नहीं आया। यह तब है जब पिछले कुछ सालों में इन राज्यों में बढ़ती मॉब लिचिंग की घटनाओं के पीछे सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों को बड़े पैमाने पर जिम्मेदार ठहराया गया है। इसके साथ ही रिपोर्ट के मुताबिक देश के पूर्वातर राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश,मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में फेक न्यूज का कोई भी मामला दर्ज नहीं हुआ है। फेक न्यूज को लेकर नेशनल क्राइम ब्यूरो ने ऐसे मामलों को शामिल किया है जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 505 और आईटी एक्ट के तहत दर्ज किए गए है।[iv]
फेक न्यूज़ और मीडिया -
इंटरनेट क्रांति के वर्तमान दौर में सोशल मीडिया का वर्चस्व लगातार बढ़ते जा रहा है। यह एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा विचारों और योजनाओं को कुछ ही मिनटों में हजारों-लाखों लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। आज के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं सभी प्रकार के विकास में सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। सोशल मीडिया आज आम आदमी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है, परंतु अब इस मीडिया का नकारात्मक स्वरूप भी बड़ी तेजी से उभर कर सामने आने लगा है। कुछ सोशल मीडिया प्लेटफार्म में सक्रिय यूजर्स के अवांछनीय गतिविधियों के चलते यह मीडिया अपनी विश्वसनीयता खोने लगी है। फेसबुक, वॉट्सएप और इंस्टाग्राम जैसे अनेक सोशल मीडिया प्लेटफार्म दुष्प्रचार, फेक न्यूज, आपत्तिजनक और अश्लील कटेंट्स के चलते सवालों के घेरे में हैं। इस मीडिया की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें उपलब्ध सूचनाओं के विश्वसनीयता और संपादन की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। फलस्वरूप यह अनियंत्रित हो चुका है।सोशल साइट्स की आलोचना इस बात पर भी हो रही है कि वे गलत जानकारी को रोकने में लगभग नाकाम हैं। सोशल मीडिया में कुछ लोग नफरत फैलाने व गाली-गलौच की सीमा को लांघ चुके हैं। दुनिया भर में फेक न्यूज चिंता का विषय बनी हुई है। विभिन्न देशों की सरकारें फेक न्यूज के असर और समाज में इससे फैलने वाली अशांति से परेशान हैं। चुनावों के दौरान फेक न्यूज को कई राजनीतिक दल हथियार भी बनाते हैं। वहीं, इससे सौहार्द्र बिगड़ने के भी कुछ मामले सामने आए हैं। इंटरनेट किसी सुचारू रूप से चल रहे लोकतांत्रिक ढांचे को बहुत हद तक नुकसान पहुंचा सकता है। इस मीडिया में देश के महापुरूषों और अधीनस्थ राजनेताओं के बारे में बेहद आपत्तिजनक सूचनाएं तथा सम्पादित व गलत छायाचित्र एवं वीडियो प्रसारित किए जा रहे हैं। सायबर अपराध इस मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती है। हालांकि देश में इससे निबटने के लिए अनेक आईटी कानून मौजूद हैं। बावजूद इस पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है। विगत पारंपरिक मीडिया की घटती साख के बीच सोशल मीडिया से लोगों को निष्पक्ष और विश्वसनीय सूचनाएं मिलने की अपेक्षा थी, लेकिन अब लोग निराश होने लगे हैं।
भारत में सोशल मीडिया का का प्रसार बहुत
ही तेजी से हुआ है। इन्टरनेट पैक सस्ते होने तथा स्मार्ट मोबाइल के आ जाने के कारण
अब सोशल मीडिया देश की अधिसंख्य जनसंख्या तक पहुँच चुका है। यह एक ऐसा प्लेटफार्म
है जिसमें सभी धर्म,
जाति, उम्र तथा आर्थिक हैसियत वालों को
वैचारिक स्वतंत्रता मिली हुई है। नि:संदेह पिछले डेढ़ दशक में सोशल मीडिया ने भारत
के सामाजिक स्वरूप और मानव स्वभाव में बड़े बदलाव किए हैं। इंटरनेट एंड मोबाइल
एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआईएमएआई) की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर छह माह में सोशल
मीडिया उपयोगकर्ताओं की संख्या 17–18 फीसदी की दर से बढ़ रही है। यह
सम्पूर्ण विश्व के किसी भी देश से सबसे ज्यादा है। भारत में सोशल मीडिया
उपयोगकर्ताओंकी कुल संख्या 50 करोड़ से अधिक हो गयी है, इनमें से फेसबुक से 27 करोड़, व्हाटसएप से 20 करोड़ तथा ट्विटर से 3.3
करोड़ उपयोगकर्ताएं जुड़े हुए हैं।[v] इसका आशय यह है कि देश की लगभग आधी
आबादी बड़ी तेजी से एक ऐसे समाज में तब्दील हो रहा है जो सोशल मीडिया के जरिए ही
अपने सामाजिक सारोकारों को पूरे कर रहे हैं।
आयु के आधार पर सोशल मीडिया के उपयोग को देखने पर ज्ञात होता है कि सोशल मीडिया से सभी आयु के लोग जुड़े हुए हैं परंतु इस मीडिया के उपयोग में युवा वर्ग सबसे आगे हैं जो देश के भविष्य के साथ–साथ विकास और बदलाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। एक शोध के मुताबिक देश के 84 फीसदी युवा सोशल मीडिया प्लेटफार्म से जुड़े हुए हैं। संचार की इस नई तकनीक ने एक नई दुनिया को जन्म दिया है जिसे आभासी दुनिया या वर्चुअल वर्ल्ड का नाम दिया गया है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसने युवाओं के बीच देश भाषा, धर्म, जाति व लिंग के बंधनों को खत्म कर दिया। सोशल मीडिया इस दौर की सबसे बड़ी ताकतों में से एक है, जिसने पारंपरिक मीडिया की ताकत को भी विभाजित कर दिया है। नि:संदेह युवाओं के जीवन में सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइट्स ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है लेकिन इस माध्यम का स्याह पक्ष युवाओं के लिए अब ज्यादा घातक साबित होने लगा है। सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव देश के राजनीतिक, सामाजिक समरसता और कानून व्यवस्था पर दृष्टिगोचर होने लगा है। चूंकि देश की बहुत बड़ी आबादी युवाओं की है इसलिए वे कई राजनीतिक और धार्मिक संगठनों के निशाने पर हैं। अनेक धार्मिक, जातिवादी और अलगाववादी चरमपंथी संगठन इस मीडिया का दुरूपयोग युवाओं को गुमराह करने, उनमें धार्मिक व जातिवादी कट्टरता का बीज बोने में कर रहे हैं।[vi]
फर्जी सामग्री की जाँच करने की विधि -
1. सोशल मीडिया पर मिलने वाले संदेश या वेबसाइट
के लिंक में स्पेलिंग मिस्टेक है,
तो उसके फर्जी होने की संभावना बहुत
ज्यादा होती है।
2. किसी भी चौंकाने वाले संदेश को बिना सोचे-समझे
या उसकी वास्तविकता चेक किए बिना फॉरवर्ड न करें। ऐसा करने पर आपके खिलाफ भी अफवाह
फैलाने के लिए कार्रवाई हो सकती है।
3. फेक मैसेज को ज्यादा भरोसेमंद बनाने के लिए
उसके फोटो या वीडियो का प्रयोग किया जाता है, जैसा कि आजकल पाकिस्तान कश्मीर में
नरसंहार की झूठी खबरें प्रसारित करने के लिए कर रहा है। इन पर बिना सोचे-समझे
भरोसा न करें। ये जरूर चेक करें कि क्या वही फोटो या वीडियो किसी भरोसेमंद समाचार
पत्र और चैनल पर दिखाई जा रही है या नहीं।
4. गूगल रिवर्स इमेज से भी फोटो की वास्तविकता
पता की जा सकती है। यहां से आपको ये मालूम चल जाएगा कि दिखाई जा रही फोटो कहां की
और कब की है।[vii]
5. अगर किसी मैसेज कंटेंट पर संदेह है और उसकी
सच्चाई आप पता नहीं लगा पा रहे हैं,
तो उसके बारे में इंटरनेट पर सर्च करें
और देखें कि क्या किसी भरोसेमंद वेबसाइट पर उस बारे में कोई जानकारी है या नहीं।
अगर नहीं है तो मैसेज फर्जी होगा।
6. धार्मिक या किसी क्षेत्र विशेष या समहू विशेष
की भावनाएं भड़काने या उनके प्रति घृणा फैलाने वाले मैसेज फर्जी होते हैं। ऐसे
मैसेज किसी व्यक्ति विशेष या समूह द्वारा हिंसा फैलाने के लिए साजिश के तहत वायरल
किये जाते हैं।
7. अगर कोई हिंसा या दहशत फैलाने वाला संदेहास्पद
मैसेज आपको प्राप्त होता है तो उसके बारे में पुलिस को सूचना दें। इससे आपको सच का
पता लग जाएगा और साथ ही पुलिस भी किसी बड़ी घटना को रोकने के लिए अलर्ट हो सकेगी।
8. झूठी खबरें फैलाने के लिए अक्सर किसी समाचार पत्र
में प्रकाशित खबर की फर्जी कटिंग का भी प्रयोग किया जाता है। मैसेज में दिखाई जा
रही खबर फर्जी हो सकती है,
जिसे कम्प्यूटर की मदद से एडिट किया गया
हो। आप उस समाचार पत्र की वेबसाइट पर जाकर भी मैसेज में दिखाई गई खबर के बारे में
सर्च कर सकते हैं। अगर खबर सही होगी तो अवश्य ही उसके बारे में समाचार पत्र की
वेबसाइट पर भी खबर होगी।
9. कोई संदेहास्पद मैसेज प्राप्त होने पर आप उसे
भेजने वाले से भी पूछ सकते हैं कि उसे वह जानकारी कहां से और कैसे मिली? क्या मैसेज भेजने वाला खुद उस जानकारी
के प्रति आश्वस्त है?
अगर ऐसा नहीं है तो मैसेज के फर्जी होने
की संभावना सबसे ज्यादा होती है।
10. किसी मैसेज में अगर तिथि मौजूद है तो उससे भी
संदेह के सही या गलत होने का अनुमान लगाया जा सकता है। अगर किसी मैसेज को फॉरवर्ड
करने से पहले आप थोड़ी-सी भी सतर्कता बरतते हैं तो आप किसी फर्जी मैसेज को वायरल
होने से रोक सकते हैं।[viii]
फेक न्यूज़ का मीडिया की विश्वसनीयता पर
सवाल-
एशिया प्रशांत शिखर सम्मेलन, नेपाल 2018 में “दुनिया के समक्ष वर्तमान चुनौतियों के संदर्भ में मीडिया की भूमिका’’ विषय पर चर्चा में सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार के बीच सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करते हुए विभिन्न देशों के शीर्ष पत्रकारों एवं मीडिया प्रमुखों ने फेक न्यूज को प्रेस की विश्वसनीयता के समक्ष गंभीर चुनौती करार दिया और स्व-नियमन पर जोर देते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने एवं स्वच्छ जलवायु :‘क्लीन क्लाइमेट: की तरह ‘क्लीन जर्नलिज्म’ :स्वच्छ पत्रकारिता: करने की जरूरत पर जोर दिया। वाशिंगटन टाइम्स के अध्यक्ष थॉमस पी मैक्डरविट के अनुसार सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के इस युग में सोशल मीडिया का प्रभाव काफी बढ़ गया है। सोशल मीडिया के माध्यम से जारी समाचार एवं सूचनाओं की पुष्टि के लिये कोई तंत्र नहीं है। ऐसे में आज विश्वसनीयता एवं भरोसे का संकट उत्पन्न हो गया है।मीडिया की विश्वसनीयता को बहाल करने के लिये पत्रकारों को सामाजिक पहलुओं पर ध्यान देते हुए विश्व शांति के विषय को न्यू मीडिया में शामिल करना चाहिए। जापान के शेकाई निप्पो समाचार समूह के प्रमुख माशिहिरो कुरोकी के अनुसार आज के दौर में मीडिया को जितनी जिम्मेदारी से काम करने की जरूरत है, उतनी पहले कभी नहीं थी। सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ने से कुछ फायदे हुए हैं लेकिन इसके साथ ही फेक न्यूज ने नई चुनौती खड़ी कर दी है। सरकार एवं मीडिया के संदर्भ में इसके कारण अलग तरह की समस्या पैदा हो गई है।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता के अनुसार
भारत में एडिटर्स गिल्ड ने मीडिया के लिये आचार संहिता तैयार की है। नयी
प्रौद्योगिकी का चलन तेजी से बढ़ने के साथ ही सोशल मीडिया का प्रभाव भी बढ़ा है।
ऐसे में मीडिया में नैतिकता की मांग बढ़ रही है। आज के दौर में तमाम चुनौतियों के
बावजूद मीडिया में स्व नियमन के माध्यम से ही आगे बढ़ने की जरूरत है। क्लीन
क्लाइमेट :जलवायु परिवर्तन: की तरह ही आज क्लीन जर्नलिज्म :स्वच्छ पत्रकारिता: समय
की मांग है । बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार हम्फ्री हॉक्सले के अनुसार आज मीडिया के
समक्ष सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हम रिपोर्ट पेश कर रहे हैं या विचार परोस रहे
हैं ?
पत्रकार के तौर पर हमारी भूमिका क्या है
? आज के समय में डिजिटल मीडिया हकीकत बन
गया है और ऐसे में पत्रकार के तौर पर हमें फेक न्यूज जैसी चुनौतियों से निपटने के
साथ कसौटी पर कसी जाने वाली पत्रकारिता की जरूरत है । नेपाल में रिपब्लिक मीडिया
की कार्यकारी निदेशक समृद्धि ग्यावली के अनुसार मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ
है। आज भूमंडलीकरण के इस युग में कट्टरपंथ के साथ ही फेक न्यूज का चलन बढ़ा है।
सोशल मीडिया और कुछ पोर्टल पर इसे बढ़ावा दिये जाने की खबरें सामने आई हैं। आज
सोशल मीडिया के साथ सिटिजन जर्नलिज्म का चलन बढ़ा है लेकिन इसमें संपादकीय
जवाबदेही तय किये जाने की जरूरत है। सटीक एवं जिम्मेदाराना ढंग से व्यवहार करने की
जरूरत है।[ix]
फेक न्यूज़ रोकने के लिए विश्व के देशों
में बने कानून
मलेशिया - मलेशिया उन कुछ पहले देशों में से एक
है, जिसने पिछले साल एंटी-फेक न्यूज का
कानून पिछले साल पेश किया है। इस देश में फेक न्यूज फैलाने के लिए 50000 मलेशियन Ringitsयानी की Rs85 लाख का फाइन या 6 साल तक की जेल की
सजा है।[x]
ऑस्ट्रेलिया - इस साल की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया में
एक कानून पेश किया गया था। इसके अनुसार, टेररिज्म, रेप, मर्डर और अन्य गंभीर अपराध से जुड़े
कंटेंट को सोशल मीडिया से हटाने में नाकाम होप्ने पर टेक एक्जीक्यूटिव के लिए 3
साल तक की सजा और कंपनी के टर्नओवर का 10 प्रतिशत पेनेल्टी के रूप में लिया जाता है।
कानून को ना मानने पर A$168000 यानि की करीब Rs80 लाख का फाइन व्यक्तिक तौर पर और
कॉर्पोरेशंस पर Rs4 करोड़ का फाइन लगता है।
फ्रांस - पिछले अक्टूबर, फ्रांस ने एंटी-फेक न्यूज से जुड़े दो
कानून पेश किये हैं। इस कानून के तहत कोर्ट के पास किसी भी नेटवर्क पर चल रही
न्यूज को ऑफ-एयर करने का अधिकार है।
रूस - रूस में मार्च 2019 में बना कानून राज्य
का अनादर करने वाली झूठी खबरें और सूचनाएं फैलाने वाले व्यक्ति और कंपनियों को
दंडित करता है। झूठी खबरें फैलाने पर पब्लिकेशन को 1.5 मिलियन रूबल्स (16 लाख
रुपये) तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। वहीं, राज्य के सिम्बल और अथॉरिटीज का अनादर
करने पर 300,000 रूबल्स (करीब 3 लाख रुपये) का फाइन देना पड़ सकता है। वहीं, दूसरी बार यह अपराध करने पर 15 दिन की
जेल भी हो सकती है।
चीन - चीन ने पहले से ही अधिकतर सोशल मीडिया
साइट्स और Twitter,
Google और
Whatsapp जैसी सेवाओं को बंद कर रखा है। चीन में
हजारों की संख्या में सोशल मीडिया मॉनिटर करने के लिए पुलिस मौजूद है।
सिंगापुर - सिंगापुर के ड्रॉफ्ट लॉ में सार्वजनिक
हितों को नुकसान पहुंचाने वाली ऑनलाइन झूठी खबर फैलाने वाले व्यक्ति को 10 साल तक
की जेल का प्रस्ताव है। वहीं,
अगर सोशल मीडिया साइट्स ऐसे कंटेंट के
खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम रहती हैं तो उनको 1 मिलियन सिंगापुर डॉलर (करीब 5
करोड़ रुपये) तक का फाइन देना पड़ सकता है। आम व्यक्ति को भी सोशल मीडिया पर डाली
गई पोस्ट बदलने और हटाने के लिए कहा जा सकता है। अगर वह व्यक्ति नियमों का पालन
नहीं करता है तो उसे 20,000 सिंगापुर डॉलर (करीब 10 लाख रुपये) का फाइन देना पड़
सकता है और 12 महीने तक की जेल हो सकती है।
जर्मनी - यहां फेक न्यूज रोकने के लिए जर्मनी
का नेटवर्क इन्फोर्समेंट एक्ट (Germany's
Network Enforcement Act) या
नेट्जडीजी (NetzDG)
कानून लागू है। ये कानून यहां की सभी
कंपनियों और दो लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड सोशल मीडिया यूजर्स पर लागू होता है।
कानून के तहत कंपनियों को कंटेंट संबंधी शिकायतों का रिव्यू करना आवश्यक है। अगर
रिव्यू में कंटेंट गलत या गैरकानूनी पाया जाता है तो उसे 24 घंटे के भीतर हटाना
अनिवार्य है। फेक न्यूज फैलाने वाले किसी व्यक्ति पर 50 लाख यूरो (38.83 करोड़
रुपये) और किसी निगम अथवा संगठन पर 5 करोड़ यूरो (388.37 करोड़ रुपये) तक का
जुर्माना लगाया जा सकता है। ये कानून उन लोगों पर भी लागू होता है जो इंटरनेट पर
नफरत भरे भाषण वायरल करते हैं। जर्मनी ने एक जनवरी 2018 को ये कानून लागू किया है।
यूरोपियन यूनियन - अप्रैल 2019 में यूरोपीयन संघ की परिषद
ने कॉपीराइट कानून में बदलाव करने और ऑनलाइन प्लेटफार्म को उसके यूजर्स द्वारा किए
जा रहे पोस्ट के प्रति जिम्मेदार बनाने वाले कानून को मंजूरी प्रदान की थी। इसका
सबसे ज्यादा लाभ उन लोगों की वास्तविक कृतियों को मिला, जिनका इंटरनेट पर अक्सर दुरुपयोग होता
था या उन्हें चोरी कर लिया जाता था। जैसे किसी और कि फोटो या पोस्ट को अपने प्रयोग
के लिए चोरी (कॉपी-पेस्ट) कर लेना। यूरोपियन यूनियन का ये कानून सोशल मीडिया, इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों और सर्च
इंजनों पर भी लागू होता है।[xi]
थाईलैंड - फेक न्यूज़ को लेकर थाईलैंड में पहले से
ही साइबर सुरक्षा कानून है। इसके तहत गलत सूचना देने वाले पत्रकार को सात साल की
सजा हो सकती है। इसके साथ ही साथ सरकार ऐसे न्यायिक कानूनों का भी पालन करती है जो
लोगों को शाही परिवार का अपमान रोकने के लिए बनाया गया है।
फिलिपींस – फिलिपींस सरकार फेक न्यूज़ को लेकर कड़े
नियम बना रही है। यहाँ की सरकार झूठी खबर फ़ैलाने वाले आरोपी को 20 साल तक की सजा देने
के लिए कानून में बदलाव कर रही है। सरकार ऐसे प्रावधान कर रही है जिसके तहत फेक
न्यूज़ फ़ैलाने वाले मीडिया संस्थानों पर सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी।[xii]
पाकिस्तान - पाकिस्तान में भी फेक न्यूज़ को लेकर
कड़े प्रावधान किए गए हैं। फेक न्यूज़ को रोकने के लिए पाकिस्तान सरकार ने वर्ष 2012
में प्रिवेंशन ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक साइबर क्राइम्स एक्ट पास किया। इसके अनुसार इस्लाम
की गरिमा को ठेस पहुँचाने,
किसी महिला का मानहानि करने या नफरत
फ़ैलाने वाली सामग्री के प्रचार प्रसार को फेक न्यूज़ माना गया है। पाकिस्तान में इस
कानून का उल्लंघन करने पर जेल और जुर्माना दोनों ही सजा का प्रावधान किया गया है।
निष्कर्ष -
फेक न्यूज़ समाज और मीडिया की
विश्वसनीयता के लिए एक भयानक खतरा बना हुआ है। इसको रोकने के लिए सरकारी स्तर पर
जहाँ कानूनों का निर्माण किया जा सकता है वहीँ नागरिक के स्तर पर लोगों को जागरूक
करना आवश्यक है। केवल कानून के माध्यम से फेक न्यूज़ को रोकना संभव नहीं है। दुनिया
के कई देशों में फेक न्यूज़ को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं। भारत में भी फेक
न्यूज़ को रोकने के लिए सशक्त कानून और मीडिया शिक्षण और जनजागरूकता बहुत आवश्यक
है।
सन्दर्भ -
- चतुर्वेदी, नवनीत (2019), जिओपॉलिटिक्स, अमेज़न किन्डल
प्रकाशन,
- विद्यार्थी, राजकुमार (2017) अफवाहों के पीछे : फेक
खबरों पर आधारित पड़ताल, अमेज़न किन्डल प्रकाशन
- किरण, शिप्रा (2020), लोकतंत्र की मोबलिंचिंग: वक्त
की आवाज, अमेज़न किन्डल प्रकाशन
- श्रीवास्तव, मुकुल (2018), सोशल मीडिया पर वायरल होते
फेक न्यूज और वीडियो की ऐसे करें पड़ताल, दैनिक जागरण, ऑनलाइन प्रकाशित https://www.jagran.com/news/national-how-to-check-fake-news-and-videos-learn-here-jagran-special-18461768.html
- सिंह दिगपाल, (2018), क्या है फेक न्यूज, क्यों इसको लेकर भारत ही नहीं दुनियाभर में मचा है
बवाल?, दैनिक जागरण, ऑनलाइन प्रकाशित https://www.jagran.com/news/national-what-is-fake-news-and-how-it-impact-governments-worldwide-jagran-special-17768734.html
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट 2017, भारत
सरकार, नई दिल्ली.
- इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया रिपोर्ट 2017
- शुक्ल, डॉ. संजय, (2019), सोशल मीडिया का युवाओं पर
प्रभाव, दैनिक हरिभूमि, ऑनलाइन प्रकाशित 10 अप्रैल 2019 https://www.haribhoomi.com/opinion/lok-sabha-elections-2019-fake-news-analysis-questions-on-social-media
- Find related images with reverse image searchhttps://support.google.com/websearch/answer/1325808?co=GENIE.Platform%3DAndroid&hl=en
- टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क, (2019), सोशल मीडिया पर झूठी
खबरों को ऐसे रोक रही दुनिया, नव भारत टाइम्स, ऑनलाइन प्रकाशित 26 सितम्बर 2019 https://navbharattimes.indiatimes.com/tech/gadgets-news/know-how-other-countries-are-regulating-fake-news-on-social-media/articleshow/71307812.cms
- टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क, (2019), फेक न्यूज की पहचान के
लिए शोधकर्ताओं ने तय किए 7 तरीके, नव भारत टाइम्स, ऑनलाइन प्रकशित 19 नवम्बर
2019 https://navbharattimes.indiatimes.com/world/science-news/researchers-have-identified-7-types-of-fake-news-identified-to-curb-its-use/articleshow/72118911.cms
- पंड्या, साक्षी, (2019), सोशल मीडिया पर Fake News फैलाने पर इन देशों में है कड़े कानून, Rs 5 करोड़ तक का है फाइन, दैनिक जागरण, ऑनलाइन प्रकशित,
26 सितम्बर 2019 https://www.jagran.com/technology/tech-news-fake-news-on-social-media-how-the-world-is-regulating-and-fighting-against-misinformation-know-here-19614984.html
- जानिए फेक न्यूज़ पर किस देश में क्या नियम https://www.patrika.com/miscellenous-india/know-what-s-the-rule-in-the-many-country-on-fake-news-2591978/
- Social Media पर आप भी तो नहीं फैला रहे फर्जी पोस्ट https://www.jagran.com/news/national-social-media-misuse-know-how-to-check-credibility-of-viral-or-fake-post-photos-and-videos-jagran-special-19611445.html
[i]यह शोध भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद्
द्वारा इम्प्रेस परियोजना के अंतर्गत स्वीकृत शोध “फेक न्यूज़: मीडिया की
विश्वसनीयता और समाज पर प्रभाव” विषयक शोध का एक भाग है.
[ii]श्रीवास्तव, मुकुल (2018), सोशल मीडिया
पर वायरल होते फेक न्यूज और वीडियो की ऐसे करें पड़ताल, दैनिक जागरण, ऑनलाइन प्रकाशित https://www.jagran.com/news/national-how-to-check-fake-news-and-videos-learn-here-jagran-special-18461768.html
[iii]सिंह दिगपाल, (2018), क्या है फेक
न्यूज, क्यों इसको लेकर भारत ही नहीं दुनियाभर में मचा
हैबवाल?, दैनिक जागरण, ऑनलाइन प्रकाशित https://www.jagran.com/news/national-what-is-fake-news-and-how-it-impact-governments-worldwide-jagran-special-17768734.html
[iv]राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो
रिपोर्ट 2017, भारत सरकार, नई दिल्ली.
[v]इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया
रिपोर्ट 2017
[vi]शुक्ल, डॉ. संजय, (2019), सोशल मीडिया का युवाओं
पर प्रभाव, दैनिक हरिभूमि, ऑनलाइन प्रकाशित 10 अप्रैल 2019 https://www.haribhoomi.com/opinion/lok-sabha-elections-2019-fake-news-analysis-questions-on-social-media
[vii]Find related images with reverse image searchhttps://support.google.com/websearch/answer/1325808?co=GENIE.Platform%3DAndroid&hl=en
[viii]टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क, (2019), सोशल
मीडिया पर झूठी खबरों को ऐसे रोक रही दुनिया, नव भारत टाइम्स, ऑनलाइन प्रकाशित 26 सितम्बर 2019 https://navbharattimes.indiatimes.com/tech/gadgets-news/know-how-other-countries-are-regulating-fake-news-on-social-media/articleshow/71307812.cms
[ix]टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क, (2019), फेक न्यूज की पहचान के लिए शोधकर्ताओं
ने तय किए 7 तरीके, नव भारत टाइम्स, ऑनलाइन प्रकशित 19 नवम्बर 2019https://navbharattimes.indiatimes.com/world/science-news/researchers-have-identified-7-types-of-fake-news-identified-to-curb-its-use/articleshow/72118911.cms
[x]पंड्या, साक्षी, (2019), सोशल मीडिया
पर Fake News फैलाने पर इन देशों में है कड़े कानून, Rs 5
करोड़ तक का है फाइन, दैनिक जागरण, ऑनलाइन
प्रकशित, 26 सितम्बर 2019https://www.jagran.com/technology/tech-news-fake-news-on-social-media-how-the-world-is-regulating-and-fighting-against-misinformation-know-here-19614984.html
[xi]जानिए फेक न्यूज़ पर किस देश में क्या
नियम https://www.patrika.com/miscellenous-india/know-what-s-the-rule-in-the-many-country-on-fake-news-2591978/
[xii]Social Media पर आप भी तो नहीं फैला रहे फर्जी पोस्ट https://www.jagran.com/news/national-social-media-misuse-know-how-to-check-credibility-of-viral-or-fake-post-photos-and-videos-jagran-special-19611445.html
डॉ. उमेश कुमार
सहायक
आचार्य,
भास्कर
जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान,
बुन्देलखण्ड
विश्वविद्यालय झाँसी (उप्र)
8127529762, umesh.or.kumar@gmail.com
एक टिप्पणी भेजें