अरे सुनो!
अमेजन, नील
गंगा और ह्वांग-हो!
तुम्हें ही डिहाइड्रेशन नहीं हो रहा है
हमारी आँखों का पानी भी
सूखता जा रहा है
हमने सोचा था मायूस होकर--
तुम्हारे जलशून्य होने पर
गुजारा करेंगे हम
अपनी आँखों का पानी पीकर
पर, हाय!
दन्त्य-कथा में परिणत हो चुकी
वियोगिनियों की
गंगा-जमुना बहाने वाली आँखें
पहले ही गुम गईं हैं
काल-चक्र की
मिथिकीय द्रुत रफ़्तार में,
और बची-खुची भावुक-ह्रदय आँखें भी
पथरा गई हैं
आपत्तिजनक बदलावों के
शुष्क बयार में
उफ्फ!
किस भगीरथ को गुहारूं मैं
कि वे अपनी तपस्या से
शिव को विवश कर दें
एक नई गंगा बहाने के लिए,
अब न भगीरथ आएँगे
न शिव ही
आखिर, कहाँ से लाएंगे
वे पानी
हिमालय के वक्ष पर
लू के प्रेत आग उगलने लगे हैं,
अमेजन की घाटियों में
दानवाकार लपटों के पेड़ों पर
शोलों के फल लदने लगे हैं
एक गंभीर प्रश्न है--
अब प्रलय क्यों आएगा पानी से?
और गरल गैसों में घुटकर ही
संसार कालकवलित होगा,
शेषनाग को चेता दो--
कि वे मिथ्याभिमान त्याग दें
कि वे पानी में डुबो-डुबोकर
पृथ्वी को मारेंगे
आवेश में.
डा. मनोज श्रीवास्तव
आप भारतीय संसद की राज्य सभा में सहायक निदेशक है.अंग्रेज़ी साहित्य में काशी हिन्दू विश्वविद्यालयए वाराणसी से स्नातकोत्तर और पीएच.डी.
लिखी गईं पुस्तकें-पगडंडियां(काव्य संग्रह),अक्ल का फलसफा(व्यंग्य संग्रह),चाहता हूँ पागल भीड़ (काव्य संग्रह),धर्मचक्र राजचक्र(कहानी संग्रह),पगली का इन्कलाब(कहानी संग्रह),परकटी कविताओं की उड़ान(काव्य संग्रह,अप्रकाशित)
आवासीय पता-.सी.66 ए नई पंचवटीए जी०टी० रोडए ;पवन सिनेमा के सामने,
जिला-गाज़ियाबाद, उ०प्र०,मोबाईल नं० 09910360249
,drmanojs5@gmail.com)
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जय हो मनोज जी ,आपकी ये पंक्तिया दिल को छु गयी ,
जवाब देंहटाएंजियो
किस भगीरथ को गुहारूं मैं
कि वे अपनी तपस्या से
शिव को विवश कर दें
एक नई गंगा बहाने के लिए,
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
अच्छी कविता है मनोज जी
जवाब देंहटाएंSunder kavita !
जवाब देंहटाएंmanoj ji bahut bahut badhai..
प्रभावशाली रचना है मनोज जी !
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें