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(22 फरवरी सन् 1906 को कानपुर के पास बिंदकी नामक स्थान पर जन्मे सोहनलाल द्विवेदी हिंदी काव्य-जगत् की अमूल्य निधि हैं। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया,ऐसे ही भूले बिसरे व्यक्तित्व को डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंघवी के इस आलेख ने फिर हमारे मानस के सामने लाने का प्रयास किया है-सम्पादक )
राष्ट्रीय-चिंतन का उद्देश्य समष्टि में आत्म-गौरव की भावना का निर्माण कर उसे उन्नति के पथ पर अग्रसर करने में है । राष्ट्रीय-भावना को स्पष्ट करते हुए डॉ. गोविन्द राम शर्मा ने लिखा है- “ जाति या राष्ट्र के व्यक्तियों की एक साथ मिल कर रहने और सामूहिक रूप में अपनी तथा अपने देश को उन्नत बनाने की इच्छा ही राष्ट्रीय भावना कहलाती है ।” इसमें अपने देश के लिए अगाध भक्ति, अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति गौरव, विदेशी शासन के प्रति घृणा और अपने देश की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दशा में सुधार की भावना निहित होती है ।
सन् 1920 ई. के लगभग भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन की बागडोर महात्मा गाँधी के पास आ गई थी । उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय आन्दोलन जनव्यापी बन रहा था, किन्तु जातीय भेद, साम्प्रदायिक वैमनस्य, भाषायी विविधता आदि ऐसे कई तत्त्व थे, जो राष्ट्रीय-एकता में बाधक थे । इन विभेदक तत्त्वों को पहचानते हुए हिन्दी की राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्यधारा के कवियों ने राष्ट्रीय-भावना को मुखरित किया । उनमें राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ माखन लाल चतुर्वेदी, सुभद्राकुमारी चौहान, पं. सोहन लाल द्विवेदी के नाम उल्लेखनीय हैं ।
राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा के अत्यधिक ओजस्वी कवि रहे हैं। इनके भैरवी, विषपान, वासवदत्ता, कुणाल, युगान्धर, वासंती, झरना, बिगुल, चेतना आदि अनेक काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए । वासवदत्ता, कुणाल, विषपान आदि प्रबंधात्मक रचनाओं के माध्यम से पं. द्विवेदी जी ने अतीत की ओर उन्मुख देश के गौरवशाली इतिहास और भारत की सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय-संघर्ष के लिए प्रेरक स्रोत बनाया ।
पं. द्विवेदी ने राष्ट्रीयता का मुक्त कंठ से गान किया था । “भैरवी” के विप्लवी गीतों में कवि के प्राण राष्ट्रीय भावना में बहते हुए से दिखाई देते हैं । राष्ट्र की चेतना को संपूर्ण रूप में प्रस्तुत करते हुए कवि ने स्वयं अपने स्वरों को राष्ट्र-प्रेम पर समर्पित कर उत्साह का संचार किया, यथा-
वन्दना के इन स्वरों में,
एक स्वर मेरा मिला दो ।
वंदिनी माँ को न भूलो,
राग में जब मत झूलो ।
अर्चना के रत्न कण में,
एक कण मेरा मिला लो।।
(भैरवी)
‘युगान्धर’ की सभी कविताओं में राष्ट्रीय-चेतना की जागृति का स्वर विद्यमान है । इसमें बापू के प्रति, रेखाचित्र, बापू गाँधी, गाँधी-ग्राम, सेवाग्राम, भ्रमण, गीत, उगता राष्ट्र, हलधर से, मजदूर, जागो हुआ विहान, हमको ऐसे युवक चाहिए, जो तरूण, ओ नौजवान, प्रयाण-गीत, अभियान-गीत, जागरण, कणिका, बेतवा का सत्याग्रह, विश्राम, कैसी देरी, अनुरोध, गृह त्याग, राजबंदी राष्ट्रकवि, दीनबंधु ऐंड्रज के प्रति, उद्बोधन, राष्ट्रध्वजा, क्रांतिकुमारी, भारतवर्ष शीर्षक कविताओं का संग्रह है, जो राष्ट्रीय-चेतना का संचार करने में सहायक रही है । अभियान-गीत शीर्षक कविता की उक्त पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं-
सत्याग्रही बने वह, जिसका देश प्रेम से नाता हो ।
प्राणों से भी प्यारी जिसको अपनी भारत माता हो।।
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बलिवेदी पर भीड़ लगी है, आज अमर बलिदानों की ।
आज चली है सेना फिर से, धीर-वीर मस्तानों की।।
(युगांधर)
पं. द्विवेदी का काव्य-संग्रह ‘प्रभाती’ में भी राष्ट्रीय जागरण का स्वर मुखरित हुआ है । इस कृति में उन्होंने साहित्य-सृजन पर टिप्पणी करते हुए कहा,“शताब्दियों से उपेक्षित, तिरस्कृत और बहिष्कृत जनता के लिए हम लिखें ओर उसकी भाषा में लिखें, जिसे वह समझ सके । आज हमारे राष्ट्र की माँग यही है कि हम जनता के लिए साहित्य-सृजन करें ।” उन्होंने स्वयं जन-भाषा में प्रभात-फेरी के गीत लिखे, जो जनता का जागरण करते थे तथा देश-प्रेम की भावना का संचार करते थे । ‘प्रभात-फेरी’ कविता की उक्त पंक्तियाँ अवलोकनीय हैं-
‘संतान शूरवीरों की हैं, हम दास नहीं कहलायेंगे ।
या तो स्वतंत्र हो जायेंगे, या तो हम मर मिट जायेंगे ।
हम अगर शहीद कहायेंगे,
हम बलिवेदी पर जायेंगे,
जननी की जय-जय गायेंगे।।
(प्रभाती)
कविवर सोहन लाल द्विवेदी ने स्वतंत्रता सेनानियों के चरित्र का गुणगान भी किया, ताकि जनता उनसे प्रेरणा लें । ‘भैरवी’, ‘चेतना’, ‘सेवाग्राम’ आदि काव्य-संग्रहों में महान् राष्ट्रनायकों का गुणगान हुआ है । ‘लौह-पुरूष’ सरदार पटेल को समर्पित कवि की निम्न पंक्तियाँ दर्शनीय हैं-
‘लौह पुरूष सरदार! करूँ वन्दन तेरा किन शब्दों में ।
राष्ट्र-पुरूष तुमसे मिलते हैं किसी राष्ट्र के अब्दों में ।।
तेरा गर्जन एक, कि निर्बल में नवीन बल आता है ।
तेरा वर्जन एक, कि बैरी बढ़ पीछे मुड़ जाता है ।।
(चेतना)
राष्ट्रकवि पं. सोहनलाल द्विवेदी की कविताओं में स्वतंत्रता पश्चात् भी राष्ट्रीय-जागरण के स्वर दिखाई देते हैं । ‘चेतना’ और ‘मुक्तिगंधा’ काव्य-कृतियों में जहाँ उत्सव और उल्लास की कविताएँ हैं, वहीं सम-सामयिक परिस्थितियों और समस्याओं को भी उठाया गया है । युवक और युवतियों को प्रगति-पथ के वरण का संदेश भी दिया है । स्वतंत्रता की ध्वजा को सुरक्षित रखने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा-
शुभारंभ जो किया देश में, नव चेतनता आई है ।
मुरदा प्राणों में फिर से, छायी नवीन तरूणाई है ।
स्वतंत्रता की ध्वजा न झुके, यही ध्रुव ध्यान करो ।
बढ़ो, देश के युवक-युवतियों, आज पुण्य प्रस्थान करो ।।
(मुक्तिगंधा)
‘मुक्तिगंधा’ के पुरोवाक् में कवि ने लिखा है- “स्वातंत्र्योत्तर काल में देश जिन आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक गतिविधियों के मोड़ से गुजरा है, जनता पर जो उसकी प्रतिक्रिया हुई है, उसकी मानसिक आशा, निराशा, आकांक्षा, आक्रोश के भाव साकार होकर आपसे साक्षात्कार करना चाहते हैं ।” इसमें प्रकाशित ‘जागरण-गीत’ के माध्यम से कवि ने सजग रहने एवं कर्तव्य के प्रति जाग्रत रहने का संदेश दिया है, पंक्तियाँ अवलोकनीय हैं-
‘अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर, मैं जगाने आ रहा हूँ ।
- - -
विपथ होकर मैं तुम्हें मुड़ने न दूँगा,
प्रगति के पथ पर बढ़ाने आ रहा हूँ।’
(मुक्तिगंधा)
पं. द्विवेदी जी को हिन्दी अनन्य प्रेम था । वे किसी भी परिस्थिति में विदेशी भाषा को स्वीकार्य नहीं मानते थे । उन्होंने अंग्रेजों के साथ ही विदेशी भाषा अंग्रेजी को समाप्त कर अपनी भाषा और संस्कृति को अपनाने का आह्वान किया । ‘पुण्य-प्रयाण’ शीर्षक गीत में कवि का स्वर चिंतन योग्य है-
यही समय है, जागो अपनी भाषा के ओ सम्मानी ।
यही समय है, जागो अपनी संस्कृति के ओ अभिमानी ।
यही समय है, जागो अपनी जननी के ओ बलिदानी ।
तुमको समय पुकार रहा है, आज अमर अभियान में ।
चलो साथियों । चलो साथियों । पावन पुण्य-प्रयाण में ।।
(मुक्तिगंधा)
समग्रतः राष्ट्रीय-चेतना के गायक कवि पं. सोहन द्विवेदी का गुणगान करते हुए प्रत्येक भारतवासी गौरव का अनुभव करता है, क्योंकि उन्होंने अपने कलम के साथ राष्ट्रीय-आन्दोलन को दिशा व गति प्रदान की । उन्होंने न केवल अपने कवि जनित कर्तव्य का निर्वाह किया, वरन् राष्ट्रप्रेमी सेनानी बनकर दूसरों को प्रेरित किया । अपने युग के महान् कवि को मेरा शत-शत नमन् ।’
(अकादमिक तौर पर डाईट, चित्तौडगढ़ में वरिष्ठ व्याख्याता हैं,आचार्य तुलसी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर ही शोध भी किया है.निम्बाहेडा के छोटे से गाँव बिनोता से निकल कर लगातार नवाचारी वृति के चलते यहाँ तक पहुंचे हैं.वर्तमान में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की चित्तौड़ शाखा के जिलाध्यक्ष है.शैक्षिक अनुसंधानों में विशेष रूचि रही है.'अपनी माटी' वेबपत्रिका के सम्पादक मंडल में बतौर सक्रीय सदस्य संपादन कर रहे हैं.)
ई-मेल:singhvi_1972@rediffmail.com
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