Tower of Victory @ नटवर त्रिपाठी


  • कीर्तिस्तम्भ(विजय-स्तम्भ): हिन्दू देवी देवताओं का दुर्लभ संग्रहालय 
  • नटवर त्रिपाठी

भगवान शिव का विहंसता स्वरूप, हिमालय पर प्रतिबिबिम्बत चन्द्र प्रकाश, देवताओं का स्वर्ग, कैलाश, अचम्भों एवं विविधताओं से अलंकृत मेरू, मेवाड़ के देदिप्यमान इतिहास का व्योम बिहारी स्तम्भ, चित्तौड़ दुर्ग के भाल पर अभिमण्डित तिलक एवं मुकुट-मणी कीर्तिस्तम्भ (विजय-स्तम्भ) महाराणा कुम्भा ने अपने देवाधिदेव, भगवान विष्णु को समर्पित किया था। कुछ इतिहासविदों का मानना है यह किसी विजय के स्वरूप यह निर्मित नहीं हुआ। इसकी हर मंजिल पर हिन्दू देवी-देवताओं का दुर्लभ संग्रहालय है।

लगभग साढ़े पांच सौ वर्ष पूर्व महाराणा कुम्भा ने वि.स. 1505 सन् 1449 ई. चित्तौड़ दुग पर यह अनुपम स्मारक बनाया था। पर्यटक यहां हर दिन आते हैं और इसकी विशालता को विलक्षणता के दर्शन कर इस अकल्पनीय इमारत के निमार्ण कौशल को देखेत रह जाते हैं। चकित और रोमांचित होते हैं। इसमें अपार देवी-देवताओं की मूर्तियों का खजाना है।, स्तम्भ के क्या अन्दर और क्या बाहर एक से एक सुन्दर मूर्तियां बनी हुई हैं, लगता है कई मन्दिरों का यह, हिन्दू देवी-देवताओं का यह महा-मन्दिर, महादेवालय, महा-कीर्तिपताका है। वस्तुतः यह कीर्तिस्तम्भ ही है परन्तु कालान्तर में इसका नाम विजयस्तम्भ होगया और  अब जैन स्तम्भ को कीर्तिस्तम्भ के नाम से जाना जाता है।

कीर्तिस्तम्भ की एक-एक कर नौ मंजिलों पर क्या अभिमंण्डित है, जरा देखते चलें:- कर्नल टाड एवं गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार मालवे के सुल्तान मोहम्मद खिलज़ी को हराकर विजय स्मृति में कीर्तिस्तम्भ बनाया गया जिसे रामवल्लभ सोमानी व कई अन्य इतिहासकार नकारते हैं। यह कुम्भा ने अपने उपास्य देव भगवान विष्णु के निमित्त बनाया था। यह 12 फीट ऊंची और 42 फीट चौड़ी वेदी पर स्थित है। मध्य भाग गोल न होकर चौरस है। नीचे से 30‘ चौड़ी है। लम्बाई 122’ है। निर्मित काल 1496 से 1516 वि.स. माना जाता है। इसकी परिसमाप्ति यद्यपि वि.स. 1505 माघु सदी 10 होगई परन्तु इस पर निमार्ण कार्य आगे भी चलता रहा। इसकी पुष्ठि इसमें लगे शिलालेखों से होती है। इसमें कई लघु लेख लग रहे हैं ये जईता से सम्बन्धित हैं जिससें जईता द्वारा समाधिश्वर को प्रमाण करना उललेखित हैं। इससे स्पष्ट होता है कि यह भाग उस समय तक बन चुका होगा। 
इसकी दूसरी मंजिल में जाली के पास वि.स. 1507 श्रावण सुदी 11 के तीन पंक्तियों के लघु लेख में कुम्भा क्षरा कीर्तिस्तम्भ का निमार्ण करानेका उल्लेख है। वि.स. 1510 के एक लेख के सूत्रधार पोमा का उल्लेख है। चौथी मंजिल में लगे लेख में वि.स. 1510 का श्रावण सुदी 11 का लघु लेख है। इसमें सूत्रधार जईता के साथ-साथ उसके पुत्र नापा भूम, चूथी आदि का उल्लेख है। वि.स. 1515 चैत्र शुक्ला सप्तमी के लेख में समाधिश्वर ने भक्त महाराणा द्वारा कीर्तिस्तम्भ बनाना उल्लेखित है।। इस लेख से यह भी ज्ञात होता है कि अन्य निमार्ण कार्य मुख्य द्वारा, राणापाली, कुम्भ श्याम मन्दिर भी इसी जईता परिवार ने बनाया था। आखिरी प्रशस्ति 1517 में लगाई गई थी जिसमें यह प्रमाणित होता है कि इस पर 1517 तक निमार्ण होता रहा। 

यह हिन्दू देवी-देवताओं का संग्रहालय है। प्रवेश द्वार पर जनार्दन की मूर्ति है। इनके चार हाथ हैं जिसमें दो हाथ खण्डित हैं। ऊपर के हाथों में खट्रांग और दूसरे में गदा और चक्र है। मूर्ति पद्मासन लगाए हुए हैं और नीचे उड़ता घोड़ा। प्रथम मंजिल की पार्श्व की ताकों में क्रमशः अनन्त रूद्र और बह्मा की मूर्तियां हैं। अनन्त विष्णु स्वरूप हैं। यह मूर्ति पद्मासन स्थित है। ऊपर के दोनों हाथों में पद्म और शेष दो हाथ खण्डित हैं। रूद्र के चार हाथ हैं, ऊपर के हाथों में चा्रांग और दूसरे में त्रिशूल है। बह्मा की मूर्ति चार भुजाओं वाली है। इनके निकट दूसरी मंजिल में जाने की सीढ़ियां बनी है। 
दूसरी मंजिल की तीनों पार्श्वों की ताकों में हरिहर (आधा विष्णु आधा शिव) का, अर्द्ध नारीश्वर    (आधा शिव व आधा पार्वती) का और हरिहर पितामह (विष्णु, शिव व ब्रह्मा) तीनों देवताओं की सम्मिलित मूर्तियां मख्य हैं। इनके मध्य रिक्त स्थानों में क्रमशः अग्नि, यम, भैरव, वरूण, धनद, ईशान और इन्द्र दिग्पालों की मूर्तियां बनाई गई हैं। इस प्रकार की मूर्तियां राजस्थान के कईअन्य भागों में मिलती हैं। त्रिपुरूष देव मत को मानने वालों में यह मूर्ति अधिकांशतः प्रचलित थी। इस प्रतिमा के 6 हाथ हैं, एक तरफ के तीन हाथोंमें त्रिशूल, चक्र और वेद और दूसरी तरफ के हाथों शंख, ममण्डल और एक हाथ में खण्डित वस्तु है। इसके दोनों तरफ कर्पूर, मंजरी और मालाधारी की प्रतिमा है। इसके पास ही इन्द्र की प्रतिमा है।

तीसरी मंजिल के तीनों पार्श्व की तीनों ताको में विरंचि, जयन्त, नारायण और चन्द्रार्क, पितामह की खण्डित मूर्तियां हैं। चन्द्रार्क्क पितामह की प्रतिमा में 6 हाथ हैं। इसमें शिव और पितामह के सम्मिलित भावों को व्यक्त किया गया है। ऊपर के दोनों हाथों में कमल, मध्य के हाथों मेें खड्ग और नीचे के हाथों में माला है। 

चौथी मंजिल देवी मूर्तियों से अभिमध्डित है। प्रत्येक पार्श्व मंें पहिले पेनल में तीन, दूसरे में पांच और तीसरे में तीन मूर्तियां हैं। इसी प्रकार दूसरे पार्श्व में भी इस प्रकार का पैनल है और तीसरा पार्श्व में भी मूर्तियों से अटा-पटा है। उत्कीर्ण मूर्तियों में त्रिखण्डा, तोतला, त्रिपुरा लक्ष्मी, नन्दा, क्षेमकरी, सर्व्वती, सलीला, लीलांगी, ललिता, लीलावती, उमा, पार्वती, गौरी, हिंगुलाज, हिमवती आदि देवियों, बसन्त, शिशिर, केमन्त, शरद, वर्षा, और ग्रीष्म ऋतुओं, गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों तथा गंधर्व, विश्कर्मा, कार्तिकेय आदि कई अन्य मूर्तियां विद्यमान हैं।

पांचवी मंजिल में भी प्रतिमाओं का अतुलित खजाना है। पांचवी मंजिल के तीनों पार्श्वों के मध्य ताकों में कक्रमशः लक्ष्मीनारायण, उमामहेश्वर, ब्रह्मा-सावित्री की युगल मेर्तियां हैं। इनके मध्य में रिक्त स्थानों पर परशु, त्रिशूल, खठ्ग, शक्ति, कूंत, तोमर, तूण, शक्तिशल, भिल्ल, चक्र, शार्डघर, हल, भिंडि, डण्ड, मुद्गर, पशिका, कणक, कर्तरी, छुरिका, करवाल, फरिका, फलक, शंकु, अंकुश, दुःस्कोट, भुशंडी, पदृश, अर्गन्धाला, मृणाल, डमरू, कमल, आदर्श शंकु और खटवाडंग नामक शस्त्रों की मूर्तियां बनी है। इनके नीचे मूर्तियों की एक पंक्ति है जिसमें रूद्रलिंग ‘शिवलिंग’ कर्पूरमंजरी, शय्या, संभोग, शिल्पी, मृदगिरी नटी, शिक्षाकार बांधिक,  हनुमान, सीता, राम-लक्षमण, सुग्रीव, पांच पाण्डव, अर्जुन, भीम, युधिष्ठर, नकुल, सहदेव, द्रौपदी, भिल्ल, दंभ, भैरव, वैताल, भूत, कुलटा, अक्षमाला और कमण्डल की मूर्तियां हैं।

छठी मंजिल के तीनों पार्श्वों के मध्य ताकों में क्रमशः महा-सरस्वती, महालक्ष्मी, महाकाली की मूर्तियां हैं। बीच के खाली स्थानों में भृंगीगण, तपस्वी, पांच्याशभि, आग्नेय शक्ति, वैणिक, संवक, भैरव, नट, अनुमत, लक्षमण, चमरहस्ता, व्यजनिनी, सेविका, कमहस्ता, सावित्री, ब्रह्मा, गायत्री, गणधर, राणी, गलहार, शिवलिंग, पांण्डूरोगण, वारूणी, भैरवी, महाकाल, तरूणी, मलिका, सुवा, नर्तकी, सेवक, वरूण भैरव, गणेश, कार्तिकेय, शिव, पार्वती, सीतोगण, असितोगण, विजया, जया, नट-नर्तकी, श्रुतिधर, वांशिक, मार्दगिक कावेरी, वायवी, शिवपरिचारिका, पूजक, शिवीक्त, गायक, नंदीगण, भिल्ल, किरात, श्रद्र, शबरी रूप, भिल्ली आदि प्रतिमाऐं बनी हैं।
सातवीं मंजिल की सीढ़ियों के ऊपर के भाग में किन्नर युग्म बना है। इस मंजिल में  वरहा, नृसिंह, वामन, परशुराम, बलदेव, बुद्ध तथा विष्णु अवतारों की मूर्तियां बनी हुई हैं।

सीढ़ियां आठवीं मंजिल पर आती आती समाप्त हो जाती है। आठवी मंजिल पर गर्भ भाग मध्य में होने से कोई मूर्ति नहीं है। यहां चारों स्तम्भ बने हुए हैं। बाकी हिस्सा खुला हुआ है। इसके उपर 9वीं मंजिल पर जाने के लिए लकड़ी की एक सीढ़ी बनी हुई है। नवीं मंजिल पर गुम्बज बना था। नीचे कई शिलालेख 1517 मार्गशीषा थे जिसकी अब केवल दो शिलाऐं पहली और अन्त के पूर्व ही विद्यमान है। इन्हें भी काफी क्षतिग्रस्त किया गया है। इस प्रशस्ति की नकल हीराचन्द्र जी ओझा को मिली थी जिसमें महाराणा हमीर से मोकल तक का वर्णन है।
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नटवर त्रिपाठी
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ई-मेल:-natwar.tripathi@gmail.com 
नटवर त्रिपाठी

(समाज,मीडिया और राष्ट्र के हालातों पर विशिष्ट समझ और राय रखते हैं। मूल रूप से चित्तौड़,राजस्थान के वासी हैं। राजस्थान सरकार में जीवनभर सूचना और जनसंपर्क विभाग में विभिन्न पदों पर सेवा की और आखिर में 1997 में उप-निदेशक पद से सेवानिवृति। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।

कुछ सालों से फीचर लेखन में व्यस्त। वेस्ट ज़ोन कल्चरल सेंटर,उदयपुर से 'मोर', 'थेवा कला', 'अग्नि नृत्य' आदि सांस्कृतिक अध्ययनों पर लघु शोधपरक डोक्युमेंटेशन छप चुके हैं। पूरा परिचय 

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