- भरतपुर दुर्ग - लोहागढ़
- नटवर त्रिपाठी
- (समस्त चित्र स्वतंत्र पत्रकार श्री नटवर त्रिपाठी के द्वारा ही लिए गए हैं-सम्पादक )
भरतपुर राजस्थान को सिंहद्वार है। पूरब आडिणे हीमाड़ा पै पैरां पै ऊबो ई किला की लोहागढ़ नाम सूं खास पछाण है। जस्यो नाम वस्याः ही गुण वाली बात ईं किला का वास्ते मानबा म्ह आवे है। अणी दुर्जेय किला क्ह साथे जाट राजावां की शूरवीरता अर पराक्रम का अंचम्भा वाळा आख्यान जुड्या तका हैं। लोहागढ़ किला को निर्माण महाराजा सूरजमल कीदो। अठा का राजा महाराजा अणी किला सूं मुस्लिम हमलावरां का दांत खाटा किदा अर अंग्रेजां का छक्का दुड़ाया। सन् 1805 म्ह लार्ड लेक न्ह अठे मान-मर्दन कीदो। ब्रिटिश हुकमत अर लार्ड लेक की इज्जत खाक म्ह मळगी। भरतपुर का किला क्ह बास्ते एक खास उक्ति हैः
दुर्ग भरतपुर अडग जिमि, हिमगिरि की चट्टान ।
सूरजमल के तेज को, अब लौं करत बखाण त्र्
आपणा शिल्प शास्त्रों म्ह भरतपुर किला को नाम खूब सुन्दर आखरां म्ह लिख्यो तको है। यो अस्यो किलो है कि ईं किला की बारली आगे की प्राचीर, सुरक्षा परकोटो - दीवार गारा की बणाई तकी है ताकि हमला की टेम तोपां का गोळा जमीन म्ही धंस जावे। परकोटो तोपां सूं टूट ही न सके। ईंण बास्ते दुश्मन यो किलो आसानी सूं फतह नी कर सक्या और यो किलो अभेद्य रयो। ऊंचा-ऊंचा मंगरा, पहाड़ां पर बणयां किला तो दुश्मन तोपा का गोळा सूं फतह कर लिदो पण लोहागढ़ का परकोटा क्ह आगे बणी तकी गारा-मिट्ठी का परकोटा म्ह तोपा कामयाब नी कर सकी।
सन् 1733 ई. म्ह वणी टेम का महाराज कुंवर सूरजमल भरतपुर किला की नींव राखी। ईं किला का पेली इण जगह खेमकरण जाट की एक काच्ची गढ़ी (किला को छोटो रूप) ही, जिन्हं चौबुर्जा केता हा। वणी टेम का किला की कमियां की आच्छी तरसूं जांच कर, करा..र वणी टेम की जुरूरत का माफिक जबर मजबूत किलो नया सिरा सूं बणवायो। भरतपुर का लोहागढ़ नामक अणी किला न्ह बणबा म्ह आठ बरस लाग्या हा। अणी किला को काम अतरो करड़ो जबर हो क्ह आठ बरस म्ह तो खाली खास-खास किलाबन्दियां बणी। वस्याण साठ बरस तक अणी किला को काम चालतो ही रह्यो। अणी म्ह दो खाईयां भी ही। एक खाई तो शहर की चार दीवारी क्ह बारण-बारण ही और दूजी खाई कम चौड़ी पण ऊंडी किला क्ह घेर-घूमेर ही। अणी इलाका म्ह बाढ़ को पाणी रोकबा क्ह वास्ते अर अकाल सूं सहायता क्ह वास्ते दो बांध अर दो जलाशय बणवाया। अणी किला का निर्माण म्ह बदलाव, विस्तार अर रूपान्तरण को काम बेटा, पोता अर पड़पौता चार पीढ़ियां मे महाराजा जसवन्त सिंह जा महाराजा सूरजसिहजी का प्रपोता हा, तक चालतो ही रह्यो। जदः यो किलो बण-बणा..र तिय्यार व्हैग्यो तो यो हिन्दुस्तान को सबसूं दुर्जेय किलो मान्यो ग्या। कोई माईको लाल इण किला न्ह तोप तलवारां सूं फतह नीं कर सक्यो। हवाई जहाज का आविष्कार सूं फैली इणे जीतबो होरो नी हो।
आयताकार नुमा ईं किला को फैलाव छः दशमलव चार वर्ग किलोमीटर है। गणा उम्दा तराशिया तका शिलाखण्ड क्ह वजह सूं किला की शान अर पैछाण एकदम न्यारी है। किला की दो भारी प्राचीरां है। किला की अणी प्रकार की बणावट कीदी क्ह बारली दीवारों तो तालाब-बंधा की न्यान काच्चा गारा की अर अन्दर की दीवारां मजबूत ईंटा की है, कारण क्ह लड़ाई की टेम तोपां का गोला बेअसर वे-जाता हा। तोंपा का गोला प्राचीरां का बारणा ही फस जाता हा। दीवारां की मिट्ठी धस जाती पण अन्दर का मेल-माळिया अर लोग सुरक्षित रेता हा। वास्तुकला का उच्चतम गुर ‘मानसार’ म्ह वर्णित मानकां क्ह अनुसार यो किला बणायो ग्यो।
दुर्ग स्थापत्य कला की रीत सू किला क्ह चारो मेर घेर-घूमेर विशाल खाई है, जिण म्ह मोतीझील सूं पाणी सुजानगंगा नहर द्वारा लायो ग्यो। या झील रूपारेल अर बाणगंगा नदियां क्ह संगम पै जल बांध का रूप म्ह बणाई ग्यी। अणी तरह सूं भरपूर चौड़ी अर गहरी अपार जलराशि सूं निहाल परिक्रमा अर मिट्ठी का परकोटा सूं भरतपुर किलो असाधारण रूप सूं सुरक्षा को कवच हो।
भरतपुर किला की मजबूत प्राचीरों म्ह 8 मोटी मोटी बूर्जां, 40 अर्द्धचन्द्राकार बुर्जां, दो विशाल दरवाजा है। या दरवाजा मूं उत्तर दिशा वाळो दरवाजो अष्टधातु अर दक्षिणी आडिलो दरवाजो लोहिया दरवाजा केवातो हो। यो भव्य, मजबूत अर कलात्मक अष्टधातु को दरवाजो महाराजा जवाहरसिंह 1765 ईं. म्ह मुगलां का शाही खजाना लूटबा की टेम ऐतिहासिक लाल किला सूं उतार लाया हा। एक जनश्रुति का अनुसार यो अष्टधातु को दरवाजो फैली चित्तौड़ किला पै हो जिन्ह अलाउद्दीन वांका चित्तौड़ हमला की टेम जीत..र लेग्यो हो। किला की आठ विशाल, बड़ी-बड़ी जवाहर बुर्जा महाराजा जवाहरसिंह की दिल्ली जीत का स्मारक के रूप म्ह पैहचाणी जावे है। अंग्रेजा पै जीत की प्रतीक बुर्ज 1805 ई. म्ह बणी ही। किला की दूजी बुर्जा म्ह सिनसिनी बुर्ज, भैंसावाली बुर्ज, गोकुला बुर्ज, कालिका बुर्ज, बागरवाली बुर्ज अर नवलसिंह बुर्ज खास-खास बुर्जां है।
भरतपुर किला की आ दुर्भेद्य स्वरूप की चर्चा करता तका कुंवर नटवरसिंह लिख्यो है कि ‘यो किला कई दृष्टिकोणों सूं असाधारण रचना वालो हो। इंकी बारली खाई लगभग 250 फीट चौड़ी अर 20 फीट गहरी ही। ईं खाई का मलबा सूं 25 फीट ऊंची अर 30 फीट मोटी दीवार बणाई गई। या खाई शहर न्ह चारों मेंर घेर मेल्यो है। इण म्ह 10 बड़ा बड़ा दरवाजा है। व्ह दरवाजा का नाम है - मथुरापोल, वीरनारायण पोळ, अटलपोळल, नीमपोळ, अनाहपोळ, कुम्हेरपोळ, चांदपोळ, गोवर्द्धनपोळ, जघीनापोळ अर सूरजपोळ।
इण म्ह कस्या भी दरवाजा सूं घूंसबा पै गेलो एक पक्की सड़क पै जा मिले है जिंण क्ह आगे खाईं आवे है। या खाई 175 फीट चौड़ी अर 40 फीट गहरी ही। इण खाई म्ह चूना भाटों को फर्श बिछायो ग्यो। दोन्याई आडिने दो पुल हा, जिण माथे किला का खास द्वारां तक पहुंच सके है। खास किला की दीवारां 100 फीट ऊंची ही, अर वांकी चौड़ाई 30 फीट ही। किला को मोहरो-सामने वाळो भाग पत्थर, ईंट अर चूना को बणियो तको है पण बाकी और सब मिट्ठी की बणावट है। अस्या मिट्ठी का अजब-गजब किलां उपरै तोपां की मार फस्स वे जाती ही। कई असर नीं वेतो हो।
यूं बात करां तो भरतपुर पै मरहठा और धणाई आक्रान्तावां का हमला व्या पण सबसूं जोरदार हमलो सन् 1905 म्ह अंग्रेज लोग कीदां। भरतपुर को राजा रणजीतसिंह अंग्रेजां का दुश्मन जसवन्तराव होल्कर न्ह आपणे अठे शरण दीदी। इण कारण अंग्रेज भरतपुर राजा पै कोप करता हा। अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक भरतपुर का राजा रणजीतसिंह न्ह पाठ भणाबा क्ह वास्ते ललकारियो अर भारी लाव लस्कर सूं किलो घेर लीदो। सेनापति लार्ड लेक की सेना म्ह लगभग एक हजार युरोपियन घोड़ा, अस्वार, घणों मोटो तोपखानों अर लाव-लसकर हो। सन् 1805 की जनवरी सूं अप्रेल तक चार महीना म्ह अंग्रेज लोगाहढ़ पै पांच जबर हमलो कीदो। ब्रिटिश तोपासूं गोला बरसाया जिकां कारणें मजबूत मिट्ठी की दीवारां धसगी। पण अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक की सब कोशीशां बेकार वेगी। वो किला भेद नी सक्यो। किलो पतन वेबासूं रह्ग्यो। आखिरकार अंग्रेजां न्ह सन्धि करणी पडी। 17 अप्रेल 1805 म्ह अंग्रेजी सेना को घेरो उठा लीदो। अंग्रेजा की अतरी बड़ी हार सूं भरतपुर की सेना को कालजो चौड़ो होग्यो अर भारतीयां का मन म्ह राष्ट्रीयता की लहर दौड़ गई। वणी टेम का गाया जाबा वाला गीता म्ह या बात रेर-रेर उजागर व्ही।
गोरा हट जा रे राज भरतपुर को
दूसरी आडिने भरतपुर म्ह अंग्रेजी सेना की पराजय सूं अंग्रेज हुकुमत को मनोबल टूट ग्यो पण मन की ज्वाला शांत नी व्ही। या बात को वर्णन ब्रिटिश हुकुमत चार्ल्स मेटकाफ द्वारा गर्वनर जनरल क्ह मोकल्यो कागद म्ह वर्णन कीदो। कागद म्ह लिख्यो ‘ ब्रिटिश फौजां की सैनिक प्रतिष्ठा भरतपुर का दुर्भाग्यपूर्ण घेरा म्ह दब ..गी है। ’
पण अंग्रेजां का प्रतिशोध को मौको वणी टेम मिल ग्यो जद रणजितसिंह की मृत्यु क्ह उपरान्त भरतपुर राजघराने म्ह अन्दुरणी कलह वेबा लाग्या। घर की ईं फूट को फायदो उठा..र अंग्रेजा की फौज सन् 1826 म्ह जोरदार आक्रमण कर किला पै कब्जो कर लीदो।
यो अंग्रेजा सूं लोहो लेबा वाळो लोहागढ़ किलो काल का जोरदार थपेड़ा बाद भी आज भी आपणी शान सूं खड़ो तको राजस्थान को गौरवशाली किलो, भारत की गौरवशाली परम्परा का शौर्य अर वीरता का प्रतीक स्वरूप देख्यो जा सके है।
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(समाज,मीडिया और राष्ट्र के हालातों पर विशिष्ट समझ और राय रखते हैं। मूल रूप से चित्तौड़,राजस्थान के वासी हैं। राजस्थान सरकार में जीवनभर सूचना और जनसंपर्क विभाग में विभिन्न पदों पर सेवा की और आखिर में 1997 में उप-निदेशक पद से सेवानिवृति। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।
कुछ सालों से फीचर लेखन में व्यस्त। वेस्ट ज़ोन कल्चरल सेंटर,उदयपुर से 'मोर', 'थेवा कला', 'अग्नि नृत्य' आदि सांस्कृतिक अध्ययनों पर लघु शोधपरक डोक्युमेंटेशन छप चुके हैं। पूरा परिचय
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