- “ महावीर को मोक्ष गौतम को ज्ञान ”
- डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंघवी
संपूर्ण भारत वर्ष दीपोत्सव अत्यंत हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाता है । जैनियों के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन भगवान महावीर का निर्वाण हुआ और गौतम गणधर को केवल्य ज्ञान हुआ । अतः जिन धर्म में यह पर्व निर्वाणोत्सव के रूप में मनाया जाता है ।
आज से लगभग 2500 वर्ष पुरानी घटना है । कार्तिक मास की काली अमावस्या, चारों ओर अंधकार का साम्राज्य ओर उस दिन भगवान महावीर विहार के पश्चात पावापुरी पहुंचे थे । उस समय एक अलौकिक घटना हुई । सूर्य की किरण प्रस्फुटित होने से पूर्व ही भगवान महावीर निर्वाण पद के अनुगामी हो गए । महावीर को जब यह मोक्ष पद प्राप्त हुआ तो संपूर्ण पावापुरी धन्य हो गई। अमावस्या की काली रात्रि दीपों के प्रकाश से जगमगा उठी । चारों दिशाओं में हर्ष का वातावरण छा गया । तब से यह दीपोत्सव ‘महावीर निर्वाणोत्सव’ के रूप में मनाया जाने लगा ।
जनता शोक-मिश्रित हर्ष का अनुभव कर रही थी । एक तरफ महावीर को खोने का दुःख था तो निर्वाण प्राप्ति का समाचार उन्हें सुखद अनुभूति प्रदान कर रहा था । संपूर्ण दृश्य हर्षमय शोक और शोकमय हर्ष का स्वरूप लिये हुए था । दीपमालाओं से संपूर्ण जगत उसी दिन आलोकित हो रहा था । अतः प्रकाश पर्व भी कहा जाता है । महावीर का निर्वाण दिवस होने से इसी दिन ‘वीर संवत्’ भी आरंभ हुआ ।
तीर्थंकर भगवान महावीर को प्रातः मोक्ष पद प्राप्त हुआ और उसी दिन सांयकाल उनके प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम को केवल ज्ञान प्राप्त हो गया । इस तरह यह दिवस द्विगुणित महिमामय हो गया । लोगों के हर्ष की सीमा नहीं रही । भगवान महावीर के वियोग से दुखी धर्म प्रजा को केवली गौतम प्राप्त हुए, इससे उन्हें कुछ सांत्वना मिली । इस तरह महावीर को मोक्ष एवं गौतम को ज्ञान प्राप्ति के समाचारों ने संपूर्ण जगत् को आलोकित कर दिया । जैनी दीपमालाएं सजाकर यह निर्वाणोत्सव मनाते हैं । दीप ज्ञान का प्रतीक है जो अज्ञान रूपी अंधकार का विनाश करता हैं ।
(अकादमिक तौर पर डाईट, चित्तौडगढ़ में वरिष्ठ व्याख्याता हैं,आचार्य तुलसी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर ही शोध भी किया है.निम्बाहेडा के छोटे से गाँव बिनोता से निकल कर लगातार नवाचारी वृति के चलते यहाँ तक पहुंचे हैं.शैक्षिक अनुसंधानों में विशेष रूचि रही है. राजस्थान कोलेज शिक्षा में हिन्दी प्राध्यापक पद हेतु चयनित )
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