सुनो !
हमारी
मुक्ति
और
आज़ादी के लड़ाके
हमें
मुक्त करो
अपने नारों से
जलसों से
जुलूसों से
जालों से
महाजालों से
संजालों से
सेमिनारों से
संगोष्ठियों से
चारागाहों से
योजनाओं से
परियोजनाओं से
परम्पराओं से
जड़ताओं से...
हमें
नहीं चाहिए
आज़ादी का डिस्काउंट आफर
और
एक दिवसीय मुफ्त यात्रा की भीख
टुकड़ों-टुकड़े में
न्याय
और
बराबरी...
हमें
मुक्त करो
चर्चाओं से
परिचर्चाओं से
किस्सागों से
कहानियों से
उत्पादों से
व्यापारों से...
ख्वाहिश
नहीं है हमारी
बनूँ सीता तुम्हारी
पूजी जाउं
बनकर काली
संवरकर दुर्गा
हम
नहीं बनना चाहतीं
रेडियो की खबर
टीवी और फिल्मों का मनोरंजन
अख़बारों का विज्ञापन
फेसबुक की पसंद...
हम
तोड़ना चाहतीं
हैं नई जमीन
बनाना चाहती हैं
ख़बर आज़ादी की
नहीं
बनना चाहती
ख़बर
मजबूरी की.
हम
स्त्री हैं
आठ मार्च का झुनझुना नहीं
कि बजायी जाऊँ
मंच-दर-मंच
और
निकाली जायें रैलियां
उछाले जायें नारे
स्त्री मुक्ति की
लहरायी जायें
रंग-बिरंगी तख्तियां
और
फिर मैं खो जाऊं
तुम्हारे भूल-भुलैया में..
हमें
मालूम है
हमारे नाम पर मनाया जायेगा
आठ
मार्च
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
सलाना रश्म की तरह
हम
नहीं बनना चाहती
तुम्हारे बजट का
पांच वर्षीय कार्यक्रम
कि खर्चोगे
हमारे मुक्ति के नाम पर
लोगे नया संकल्प
बनाओगे नया प्रोजेक्ट
आज़ादी की लड़ाई का
अगले फंड के लिए
चलाओगे हमारे ही नाम पर
स्त्री मुक्ति का दुकान
सदियों से लड़ी जा रही है
आज़ादी की लड़ाई
बनाया जा रहा है मुद्दा
बावजूद इसके
21 वीं सदी की हूँ
सबसे गरम
मुद्दा
आज
भी सिमटी
है हमारी आज़ादी
कभी ड्योढ़ के अन्दर
कभी घूँघट में बंद
कभी बुर्के से ढंकी
कभी मुँह पर बंधी
सफ़ेद पट्टी..
हमारी
आजादी के सीमा को
तय करता है
एक आयोग
फिर शुरू होता है
सरकारी वियोग
अब
कबूल नहीं
पूजी जाऊं
मंदिर-दर-मंदिर
और
जलायी जाऊं
‘घर एक मंदिर में...
सुनों !
हमारी मुक्ति
के ठेकदारों
दुकानदारों
व्यापारियों
हमें
मुक्त करो
कि
उड़ना है
मुक्त गगन में
खिलना है
उन्मुक्त चमन में
फैलना है वसुंधरा पर
मिलना है सागर से
छूना है आसमान
पकड़ना है तारों को
खेलना है हवाओं से...
हम
खुद लड़ेंगे
अपनी आज़ादी और मुक्ति की जंग
डॉ. रमेश यादव
इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय,मैदान गढ़ी,नई दिल्ली
स्थित पत्रकारिता एवं नवीन मीडिया अध्ययन विद्यापीठ में
सहायक प्रोफ़ेसर हैं
समसामियक विषयों पर निरंतर लिखते आ रहे हैं.
संपर्क: E-Mail:dryindia@gmail.com
Cell 9999446
keval kavita nahi, Har Stri ke man ki baat hai. bahut badhai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
जवाब देंहटाएंएक एसी सच्चाई जिसके आईने में हम अपना दागदार चेहरा देखकर शायद शर्म से गड जाना पसंद करे !डा रमेश यादव साहब को स्त्री मन की व्यथा -कथा को भावनाओं के केनवास पर उतारने के लिए कोटिश: साधुवाद !
जवाब देंहटाएंसुनो !
जवाब देंहटाएंहकीकत सुनो.
जलता हुआ सच सुनो.
ठगों-ठेकेदारों की ठगी सुनो.
सुनो,
यह कविता सब कुछ सुनाती है...
सिर्फ और सिर्फ सुनो...
इस कविता के भाव को सुनो,
अब तक सुने क्यों नहीं ...?
सुनाने के लिए
रमेश जी को बधाई !
कविता छाप टिप्पणी के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें