साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका
अपनी माटी
सितम्बर अंक,2013
छायाकार-नितिन सुराणा |
मित्रो,खाली मनोरंजन के नाम पर हमने वैसे भी सालों तक कई घप्पड़-सप्पड़ फ़िल्मों में समय-धन गंवाया है।ऐसे परिदृश्य में एक आयोजन जहां आमजन के सहयोग से गुल्लक में पैसे एकत्र कर प्रतिरोध दर्ज कराती दस्तावेजी फ़िल्मों का प्रदर्शन बड़ा प्रेरित कर गया।किसी घरानेदार के पैसे के बगैर हुए इस आयोजन में बड़े बड़े घरानों पर खुल्लेआम प्रश्न दागे गए।सवाल उठाने और उनके सही-सलामत हल ढूँढने की हमारी आदतों को बिसार देने के बाद अब ऐसे आयोजन हमारी बुद्धि फिर से ठिकाने लगाने के लिए काफी है।फ्री-फंट के भंडारे वाले आयोजन के बरक्स ऐसी छोटी मगर धारदार प्रस्तुतियां रास आयी जिनमें मेहमान कोई नहीं,बस आये हो तो स्वागत मगर लंच पैकेट के सताईस रुपये तो चुकाने पड़ेंगे।तमाम साहित्य सहयोग राशि चुकाकर लेना है।वहाँ रोमांचक अनुभूति का पूरा इंतज़ाम। देश के हालात पर पुख्ता तथ्यों सहित परोसी गयी फ़िल्मों को नज़रों से स्केन के बाद भी फिर भी हमारा खून नहीं खोले और हमारा दिल सुस्त बना रहे तो इस केस में हमें किसी दिमागी डॉक्टर साहेब से मिल लेना चाहिए।प्रतिरोध का सिनेमा के उदयपुर वाले आयोजन ने कई युवा दर्शकों सहित बड़े-बुजुर्गों को दिशा दी होगी ऐसा मेरा मानना है।बकौल हिमांशु पंड्या ''ये नए ढ़ंग का सिनेमा हमें आईना दिखाता है और हटकर सोचने को कहता है। यहाँ नए ढ़ंग से एक वैकल्पिक सौन्दर्यबोध विकसित करने की पर्याप्त गुंजाईश है।'' इसी आयोजन के एक सत्र में कम-लोकप्रिय मगर दस्तावेजी फ़िल्मकार बेला नेगी ने बड़ी ज़रूरी बात रखी कि व्यावसायिक सफलता को ही असली सफलता का पर्याय मान लेना हमारी एक बड़ी गलतफहमी होगी।
हमारा हिन्दी सिनेमा भले ही सौ साल का हो गया है मगर सोचने बैठें तो जिस अंजाम तक हम पहुंचे हैं वहाँ आकर उपजे निराशाजनक माहौल में फिर से बलराज साहनी ही बार-बार याद आते हैं। ऐसा क्यूं? सोचना पड़ेगा।नहीं सोचोगे तो बेमौत मारे जाओगे। बकौल दस्तावेजी फ़िल्मकार और एक प्रखर एक्टिविस्ट सुर्यशंकर दाश ''मुख्यधारा से हटकर ये प्रतिरोध की संस्कृति वाली फ़िल्में केवल जानकारी देती हैं मनोरंजन नहीं।दाश कहते हैं कि यह मुख्यधारा का सिनेमा और मीडिया कभी भी सच को सच के ढ़ंग से हमारे सामने रखने के बजाय कन्फ्यूजन फैलाता है।मतलब सीन बहुत गंभीर है।''
अपनी बात के आखिर में बस यही कि हम अपने जीवित होने का परिचय देते रहें।अपनी वैचारिकी को सदैव विवेक से छानते रहे ताकि धोका खाने से बचे रहे। हम भी 'कवि' जैसी पत्रिका के पुन:प्रकाशन का स्वागत करते हैं। महीनेभर में कुछ अच्छी खबरें यह रही कि हमारी इस ई-पत्रिका अपनी माटी को अब अप्रैल-2013 से आईएसएसएन कोड ( ISSN 2322-0724 Apni Maati ) जारी हो गया है।दूसरी बात यह कि हमारे अपनी माटी संस्थान, चित्तौड़गढ़ का राजकीय संस्थाओं के अंतर्गत 50/चित्तौड़गढ़/2013 संख्या पर पंजीकरण भी हो गया है।तीसरी खबर यह कि हमारा संस्थान पंजीकरण के बाद पहला आयोजन राजस्थान साहित्य अकादमी के साथ मिलकर 'माटी के मीत-2' कर रहा है।
सितम्बर अंक में हमें कोशिश की है कि नए लेखक साथियों से आग्रह कर रचनाएं प्रकाशित की जाए जिसमें हम अलवर के आलोचक डॉ जीवन सिंह, प्रतिरोध का सिनेमा के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी, विमल किशोर शामिल कर उनका आभार मानते हैं। नवोदित सृजनकर्ताओं में इस बार किरण आचार्य की कविताएँ और नितिन सुराणा के छायाचित्र शामिल हैं। हिन्दी सिनेमा के सौ साल के साथ ही प्रगतिशील अभिनेता और लेखक बलराज साहनी की जन्म शताब्दी पर हमने रेणु दीदी से आग्रह कर 'गर्म हवा' पर एक समीक्षात्मक टिप्पणी लिखवाईं है।एक गेप के बाद हमारे ही साथी कालुलाल कुलमी ने भी एक यात्रा वृतांत और एक पुस्तक समीक्षा उपलब्ध कराई है। कुलमिलाकर अंक ठीक स्वरुप में आ गया है। आशा है आपको रुचेगा।
- अनुक्रमणिका
- सम्पादकीय : संतन के लच्छन रघुबीरा
- झरोखा:कबीर
- आलेख:शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के लेखन में देश की मिट्टी की सुगंध आती है/ कुमार कृष्णन
- आलेख:निराला काव्य की युगीनअर्थवत्ता / डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंघवी
- समीक्षा:'विभ्रम के विचार को तोड़ती कहानियां 'वाया 'लालछींट वाली लूगड़ी का सपना' / कालुलाल कुलमी
- समीक्षा: ‘गर्म हवा’:पार्टीशन का दर्द बयाँ करती एक फ़िल्म / डॉ.रेणु व्यास
- व्यंग्य:ऑडिटास्त्र / एम.एल. डाकोत
- यात्रा वृतांत: तालाब है, घाट भी हैं,पर हर जाति का घाट अलग।/ कालुलाल कुलमी
- छायाचित्र:चित्तौड़गढ़ दुर्ग Vaya नितिन सुराणा
- पुन:प्रकाशन:प्रतिरोध के सिनेमा की आहटें/ संजय जोशी और मनोज कुमार सिंह
- कविताएँ:डॉ. जीवन सिंह
- कविताएँ:किरण आचार्य
- कविताएँ:सुधीर कुमार सोनी
- कविताएँ:विमला किशोर
डॉ. सत्यनारायण व्यास
अध्यक्ष
अपनी माटी संस्थान
29 ,नीलकंठ,छतरी वाली खान,सेंथी, चित्तौड़गढ़-312001,
राजस्थान-भारत,
info@apnimaati.com
|
अशोक जमनानी
info@apnimaati.com
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जवाब देंहटाएंDear Manik ji,
first of all congrats for getting the apnimaati registered.
Now u will b able to institutionalise the things..also it was
good to here abt the Maati Ke Meet -2..
i just went through some articles of the edition..The snaps of Nitin ji r really
good one.I dont know the photography much but the balance,side n other rooms,the angle
and the overall feel of the photos are impressive, specially when it is regarding our fort.
The poems of Kiran di are welcome..kulmi ji Yatra Vritant is also ok..
Good work..keep it up.
rest all well..take care.
Harish Laddha
MBA Participant
NIFM, Faridabad
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