साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' (ISSN 2322-0724 Apni Maati ) मार्च-2014
चित्रांकन वरिष्ठ कवि और चित्रकार विजेंद्र जी |
यह सच है कि जिस व्यक्ति ने जन्म लिया है वह एक दिन अवश्य मरेगा, तब अस्तित्ववादी चिन्तन के अनुसार, ‘उस व्यक्ति विशेष के मरने पर शोक कैसा? बल्कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसके द्वारा छोड़े गये अधूरे कार्यों को पूर्ण करना ही हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए।’’1मृतक प्राणी कितना भी समीपस्थ हो कितना भी प्रिय हो, लेकिन हर प्राणी में उसके प्रति एक अपेक्षाभाव जन्म ले लेता है। यह अलग बात है कि यह अपेक्षा-भाव किसी में एकदम आए और किसी में कुछ कालोपरान्त।’’2
जिन्दगी कितनी दुखों से भरी हो, परन्तु व्यक्ति मरना नहीं चाहता। ‘श्मशान’ कहानी के माध्यम से मन्नू भण्डारी ने इस सत्यता को उजागर किया हैं एक युवक अपनी पत्नी की मृत्यु पर विलाप करता है, ‘अब मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता। तुम मुझे अपने पास बुला लो, नहीं तो मुझे ही तुम्हारे पास आने का कोई उपाय करना पड़ेगा...अब में जीवित रहकर करूँगा भी क्या?...मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, किसी तरह भी नहीं रह सकता।’ इस विलाप को सुनकर श्मशान कल्पना करता है कि यह अपनी पत्नी के बिना जीवित नहीं हरेगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ तीन वर्ष के के पश्चात् दूसरी पत्नी के मर जाने पर विलाप करता है, ‘अब मैं तुम्हारे बिना कैसे जीवित रहूँगा...मुझे अपने पास बुला लो अब मैं इस संसार में नहीं रह सकूँगा।’’3 दो वर्ष भी बीत नहीं पाये थे कि मृत्यु पर विलाप करता है-‘उसके बिना वह एक दिन भी जीवित नहीं रह सकता। वही पुरानी बातें, वही विलाप, वही क्रन्दन, मानो उसकी भावना के साथ कोई सम्बन्ध हो न हो कंठस्थ पाठ की तरह वह उसे दुहरा रहा हो। इस प्रकार ‘जो इन्सान प्रेम करता है, उसे जीवन भी कम प्यारा नहीं। वह प्रेम की पूर्णता के लिए प्रेम करता है। जीवित रहने का प्रयास करता है, हर कष्ट को सहन करता है परन्तु मरना नहीं।
वरिष्ठ कथाकार मन्नू भण्डारी जी |
मन्नू भण्डारी ने अस्तित्वादी चिन्तन के अनुरूप अपनी कहानियों तथा उपन्यासों में स्थान-स्थान पर यथार्थ की स्वीकृति को महत्त्व प्रदान किया है। उन्होंने मानव जीवन के यथार्थ चित्रण को ही वरीयता प्रदान की हैं यद्यपि चित्रण के नाम पर कतिपय लेखकों और लेखिकाओं ने नितांत तिरस्कृत, घृणित, भौंडी और अक्षब्ध परम्परा का सूत्रपात किया है; मगर मन्नू भण्डारी ने इसका तिरस्कार करते हुए मूल्य आधारित स्वीकार्य यथार्थ को सदैव प्रस्तुत किया वे अपने प्रति और जीवन के प्रति हमेशा बेहद ईमानदार रही हैं। यही कारण है कि उनका यथार्थ जीवन को शक्ति प्रदान करने वाला है।
मन्नू भण्डारी के कथा साहित्य में दंशकारी प्रवृत्तियों संत्रास अजनबीपन, निराशा, शून्यता, व्यथा, भय, घृणा आदि का प्रतिपादन जहाँ एक ओर उन्हें अस्तित्ववादी चिन्तकों के निकट ले आता है, वहाँ वे इन दंशकारी प्रवृत्तियों का अंकन करते हुए व्यक्ति और समाज के वर्तमान स्वरूप को पूर्ण सशक्तता के साथ प्रस्तुत करने में पूर्ण सफल रही हैं।
वाजिद रसीद खाँ
शोध छात्र
हिन्दी विभाग,
ए0एम0यू0, अलीगढ़
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सन्दर्भ
1. अस्तित्ववाद और कहानी-डॉ0 लालचन्द्र गुप्त ‘मंगल’ प्रबन्ध प्रकाशन दिल्ली 1975, पृ0-230
2. कथा लेखिका मन्नू भण्डारी-डॉ0 ब्रजमोहन शर्मा कादम्बारी प्रकाशन 1911, पृ9-65
3. मैं हार गयी-मन्नू भण्डारी अक्षर प्रकाशन दिल्ली 1980, पृ0-37
4. तीन निगाहों की एक तस्वीर-मन्नू भण्डारी श्रमजीवी प्रकाशन इलाहाबाद 1951, पृ0-20
5. वही, पृ0-16
6. वही, पृ0-26
7. वही, पृ0-25
8. वही, पृ0-16
9. वही, पृ0-22, 23
10. वही, पृ0-26
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंBadhai Wajid sahab..
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