मुख्यपृष्ठ17 'अपनी माटी' ई-पत्रिका का 17वाँ अंक Unknown सोमवार, जनवरी 05, 2015 0 सम्पादकीय नर्मदा डायरी/अशोक जमनानी झरोखा स्वामी दयानंद सरस्वती/ जीतेंद्र प्रताप बातचीत डॉ. गीतांजलि श्री से संवाद करतीं डॉ. राजेश्वरी अपना-अपना सिनेमा ‘कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे’-गोपालदास नीरज वाया कुसुम सिंह समीक्षा-पक्ष पाठकों को जोड़ती कहानियां/ प्रदीप श्रीवास्तव भाषा सिर्फ व्याकरणभर नहीं है /विजेन्द्र प्रताप सिंह यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ/डॉ.राजेश चौधरी दरकती संवेदना की कविता है ' आँगन की धूप'/ कमलानंद झा शोध जारी है नरेश मेहता के उपन्यासों में समाजबोध/ नितिका गुप्ता संत दादूदयाल के साहित्य में धर्म का स्वरूप/ डॉ. नवीन नन्दवाना समकालीन हिन्दी उपन्यासों में उत्तर आधुनिकता/डॉ. गोपीराम शर्मा कथा-समय दो लघु कथाएँ/अन्नू सिंह हलवा, कपड़े और सियासत/संदीप मील इश्क़ वो आतिश है ग़ालिब/सुशांत सुप्रिय मीडिया-संसार 21वीं सदी में जनसंचार माध्यम की चुनौतियाँ/डॉ. धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ‘जोक’ का सामाजिक प्रकार्य एवं मीडिया में हास्य की उपयोगिता/डॉ.मनीषा स्त्री विमर्श की दुनिया आधी आबादी का पूरा संघर्ष '-प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु की ‘स्त्री-दृष्टि’/मधु ‘एक कहानी यह भी’ और ‘अन्या से अनन्या’ के सन्दर्भ में स्त्री प्रश्न/डॉ. प्रीति सागर कविता के आलोक में समकालीन हिन्दी कविता में लोक चेतना/छोटे लाल गुप्ता प्रगतिशील हिन्दी कविता में यथार्थ जीवन की प्रतिष्ठा/डॉ.जी.प्रसाद कुछ कविताएँ संतोष कदम दिलीप वशिष्ठ गोविंद प्रसाद ओझा गीत-ग़ज़ल आशीष नैथानी ‘सलिल’ मित्र पत्रिका 'उम्मीद' हमारे आयोजन चित्तौड़गढ़ आर्ट फेस्टिवल चित्रांकन राजेश पाण्डेय, उदयपुर
एक टिप्पणी भेजें