पुस्तक–समीक्षा:- दर्दजा:समानता,सुन्ना,सम्भोग और वैवाहिक दुष्कर्म –दिनेश पाल

    चित्तौड़गढ़ से प्रकाशित ई-पत्रिका
  वर्ष-2,अंक-23,नवम्बर,2016
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पुस्तक–समीक्षा:- दर्दजा:समानता,सुन्ना,सम्भोग और वैवाहिक दुष्कर्म –दिनेश पाल


औरतों के जिस्म को नहीं समझती! अरे, गुप्तांग के जो बहरी हिस्से हैं वे मर्दाना हिस्से हैं. जो अंदरूनी कोमल हिस्सा है वही जनाना हिस्सा है। वही ऊपरवाले ने औरत को माँ बनने के लिए दिया है. हमें हमारे जिस्म का इस्तेमाल सिर्फ़ माँ बनने के लिए करना चाहिए, ना कि यौन का विकृत आनंद उठाने के लिए.”(पृ.११)----यह मैं नहीं बल्कि इसी साल वाणी प्रकाशन से प्रकाशित जयश्री रॉय जीद्वारा लिखित कृति दर्दजाकी मुख्य पात्र माहरासे उसकी माँ कहती है। उपर्युक्त बातें माहराकी माँ उसके सुन्ना को लेकर कहती हैं, जी हाँ अफ्रीका के २८ देशों में यह रिवाज है, वैसे तो इनमें से १४ देशों ने इस रिवाज पर वाकायदा कानूनी तौर पर रोक लगा दिया है, मगर हक़ीकत में यह अब भी पूरी तरह चलन में है। तुम्हें सुन कर हैरत होगी कि १४० मिलियन औरतें फ़ीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (FGM या औरतों का सुन्नत- विस्तार के लिए गूगल पर खोजें) की शिकार हो चुकी हैं। दस साल तक की उम्र की लगभग १०१ मिलियन बच्चियाँ किसी ना किसी तरह के एफजीएम से गुजर चुकी हैं.”(पृ.१६८) जहाँ तक मुझे लगता है कि इन बालिकाओ का एफजीएम बलात्कार से भी वीभत्स व पीड़ादायी होता होगा लेकिन धर्म की कुप्रथा इसे बाल यौन शोषण नहीं बल्कि बाल यौन शुद्धिकरण के रूप में मान्यता प्रदान करती है।  
 
सुन्ना विभिन्न देशों व समाजों में विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे- इथोपिया में फालाशास, ईजिप्ट में ताहारा, सूडान में ताहुर, माली में बोलोकोली (पवित्र करना), ककिया में बुनडू आदि। हमसब जानतें हैं कि मुस्लिमों में खतना होता है परन्तु इस पुस्तक में मुस्लिम स्त्रियों के सुन्ना की जीवंत झांकी प्रस्तुत की गयी है जो कि बहुत ही वीभत्स तरीके से किया जाता है। ठीक है यह कथा अपने देश की नहीं है लेकिन पुस्तक में बहुत सारी कष्टकारी स्थितियां ऐसी हैं जिसे विदेशी मुस्लिम महिला के समान ही हमारे देश की तमाम महिलाओं को झेलना पड़ता है चाहे वे किसी भी धर्म के हों।

इस पुस्तक के केंद्र में एक गरीब मुस्लिम परिवार है जिसमें तमाम बच्चे पैदा हुए- कुछ मरे, कुछ जीवित रहे. उसी परिवार में माहराभी है. माहरा के बड़ी बहन का जब सुन्ना होता है और घर से बाहर एक झोपड़ी में महीना भर घाव सुखाने के लिए रखा जाता है तब माहराबढ़िया से समझ नहीं पाती है। घाव सुखाने हेतु अलग झोपड़ी में रखा जाता है जिसमें से बहुत कम ही लड़की स्वस्थ घर लौट पाती हैं क्योंकि सुन्ना की प्रक्रिया के बाद अधिकांश लड़कियाँ हथियार के संक्रमण या सही उपचार की कमी के कारण मर जाती हैं या दीर्घावधि तक झेलतीं रहती हैं। कुछ के तो मुत्रद्वार हमेशा-हमेशा के लिए ख़राब हो जाता है जिसके कारण पेशाब को रोकना असंभव हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप वे हमेशा बदबू देती रहती हैं। ऐसे स्त्रियों को घर, परिवार और गाँव से बहार निकल दिया जाता है और उसे पागल घोषित कर दिया जाता है। इसी तरह की एक स्त्री-पात्र के माध्यम से लेखिका समाज को धिक्कारती है- “...करे कोई और भरे कोई! बदबू आती है मुझसे? घिन आती है? आने दो! मेरे तो शारीर से बदबू आती है, लेकिन तुम सबके रूह से बदबू आती है, तुम सबके सब सड़ गए हो.....कीड़े पर गये हैं तुम सबमें...”(पृ.७४) खैर वो लौट  आई लेकिन कुछ ही साल बाद माहराके अब्बा ने उसकी शादी अपने से भी ज्यादे उम्र के व्यक्ति से तय कर दी, ऊंट और बकरी के लालच में जिसके कारण वे घर से भाग निकली जबकि वो एक लड़का से प्रेम करती थी और उससे निकाह भी करना चाहती थी परन्तु उस हिंसक समाज में तो ऐसा सोचना मात्र ही गुनाह था फिर निकाह दूर की कौड़ी है। घर से निकली थी नयी दुनिया की तलाश में लेकिन कुछ ही दिन बाद उसके सिर्फ वस्त्र हाथ लगे, यह वहां की लड़कियों के लिए आम घटना थी, क्योंकि तमाम लड़कियां मानव के मुख से बचने में जानवर के मुँह का शिकार होती थीं...बहरहाल..

एक दिन माहराकी माँ कहती है- माहरा! मेरी अच्छी बेटी...आज वह ख़ास मौका आ गया है जिसका इंतजार इस देश की हर नेक मुसलमान औरत को होता है! पाकीज़ा और ख़ास होने का अवसर! औरत होने, निकाह के और माँ होने के काबिल होने का किमती मौका! तुम्हें हिम्मत और सब्र रखना है और बस, सबकुछ आसान और जल्द हो जायेगा। अल्लाह तुम्हारा निगाहबान है.”(पृ.१२) फिर माँ माहराको एक पत्थर के टीले के पास ले जाती है जहाँ थोड़ी देर बाद एक जल्लाद की तरह औरत आती है और जंग खाए भोथरा चाकू तथा काँटों को पत्थर पर रखती है जिसे देख माहराके पांव कांपते हुए पीछे खिसकने लगते हैं, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी वो बच नहीं पाती है। उसकी माँ उसके दोनों हाँथ व सीना को दबाये रहती है तो वो जल्लाद उसके दोनों पांवों को फैलाये-दबाये हुए उसके गुप्तांग के बहरी हिस्से (भगनासा समेत उसके बाहरी ओष्ठ) को भोथरा-मुर्चाये चाक़ू से काट के काँटों-धागों से सिल देती है और माहराचीखते-चिल्लाते पस्त हो जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उसके अन्दर काम भावना न उत्पन्न हो यदि उत्पन्न हो भी जाये तो वो सम्भोग न करा पाए। जरा सोचिये इससे भी कुछ बुरा हो सकता है भला..खैर.. माहराको एक झोपड़ी में रखा जाता है जहाँ उसे खाना-पानी दिया जाता है. वहां उसकी छोटी बहन मासाको नहीं जाने दिया जाता है लेकिन एक दिन किसी तरह देख लेती है और बहुत दुखी होती है। झोपड़ी से स्वस्थ लौटने के बाद माहरा’ ‘मासाके साथ एक अंग्रेज-दंपत्ति के यहाँ झाड़ू-पोछा करने जाने लगती है। अंग्रेज-दंपत्ति इन छोटी बच्चियों से काम नहीँ कराना चाहते पर इनकी गरीबी को देख कर कम पर रख लेते हैं, लेकिन इन्हें बहुर प्यार करते हैं। इनके लिए खाने-पीने के साथ-साथ पढ़ने तक की व्यवस्था करते हैं पर इनके माता-पिता को लगता है की वे ईसाई बना देंगे, जबकि वे इनके प्रदेश में इनकी कुरीतियों को दूर करने व समाज-सुधारने के ही मकसद से आए थे। खैर कुछ दिन बाद उसी तरह मासाका भी सुन्ना होता है लेकिन मासास्वस्थ नहीं हो पायी बल्कि दिनोदिन सुखती चली गयी जिसे देख माहराबहुत दुखी रहने लगी। इसी बीच पास के रिश्ते में नाना लगने वाले जहीरसे उसकी शादी तय हो जाती है। यह सुनते ही माहरा और मासा दोनों दुखी हो जाती हैं एवं आपस में उस बुढ्ढे जहीरका मजाक भी उड़ाती हैं - अधकचरा बाल तथा अधुरा दांत.. लेकिन तार्किक माहराको उसकी माँ भावनाओं में बांधने की कोशिश करते हुए अपनी इज्जत-मर्यादा की शर्त पर उसे शादी को तैयार करती है। जहीर इसके एवज में माहराके बाप को ढेर सारे ऊँट, बकरी एवं संपत्ति देता है और फिर निकाह कर माहराको ले जाता है, तब माहरा की उम्र १२ साल है जबकि सुन्ना के समय ८ साल की थी. लेखिका कहती है- जीवन में सपनों का न होना, उम्मीद का ना होना सबसे बड़ी ग़रीबी है! मुफ़लिसी है.”(पृ.१३२) जबकि अवतार सिंह पाशकहते हैं कि- सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जानाखैर।

 ‘स्त्री:उपेक्षिता’ (द सेकेण्ड सेक्स) में सिमोन द बोउआरलिखती हैं कि यूरोप के कुछ देश व समाज में लड़कियों के विवाह से पहले कौमार्य भंग कराने की कुप्रथा है क्योंकि एक मिथक थी कि कौमार्य के समय का खून जहर की तरह खतरनाक होता है पति की लिए, इसलिए लड़कियों के कौमार्य को नुकीले पत्थर से भंग किया जाता है। यह अविश्वसनीय प्रतीत होता है लेकिन दर्दजाके आलोक में इसमें कोई अविश्वसनीयता बची नहीं रह जाती। अब यह भी पूरा यकीन हो जाता है की मनुष्य जरुर कभी पशु या जानवर रहा होगा जिसके कुछ लक्षण (पशुता) अभी भी रह गए हैं। जयश्री रॉय कहती हैं कि-  बहुत से दर्द कुदरत ने नहीं, इनसान ने औरत के लिए पैदा किये हैं। इनसान अपनी बनाई हुई तकलीफों का शिकार है. दुनिया की आधी से ज्यादा तकलीफें मनुष्य नें खुद अपने लिए पैदा की हैं। जिस दिन वह चाहेगा, यह दुनिया बेहतर हो सकती है, इसके अधिकतर दुःख मिट सकते हैं।”(पृ ४४-४५) इतना ही नहीं मनुष्य स्वयं मनुष्य को ऊपर वाले का नाम लेकर दुःख पहुंचाता है।”(पृ.०५)

धर्म चाहे जो भी हो सबमें कुछ न कुछ कुरीतियाँ हैं जिसके साथ तर्क-वितर्क करना धर्म के ठेकेदारों को कतई पसंद नहीं है। लेखिका के अनुसार- लोगों की आँखों में मजहब, रीती-रिवाजों का ऐसा पर्दा पड़ा है कि वे कुछ तार्किक ढंग से सोच ही नहीं पाते।”(पृ.५१) कुछ लड़कियों के द्वारा सुन्ना के बारे में पूछने पर साबीला की दादीकहती हैं- औरत का जिस्म ही पाप का गढ़ है। जहाँ इच्छाएं जन्मती हैं, उत्तेजना पैदा होती है उस हिस्से को शरीर से अलग कर देना ही भला। औरत खता की पुतली होती हैं, हव्वा की बेटियां......इनका भरोसा क्या फिर जिस औरत का सुन्ना न हुआ हो, उसे कौन मर्द अपनायेगा, कैसे उसे भरोसा होगा कि इस औरत ने कोई गुनाह नहीं किया!... जवाब में एक लड़की बोली..क्यों मर्दों को तो यह साबित नहीं करना पड़ता कि वह कुँवारा है या नहीं।”(पृ.७७) इतना बोलते ही दादी तेज से डांट दीं मजहब के खिलाफ बोलती है कुफ़्र’. यहाँ लीला यादवकी पार्चडफिल्म याद आती है। क्या ऐसा बाकी धर्मों में नहीं है? है , बिलकुल है! कोई धर्म तर्क-वितर्क पसंद नहीं करता। एक चीज हर जगह देखने को मिलती है कि धर्म व रीती-रिवाजों के नाम पर स्त्रियों के मन-मस्तिष्क में ऐसा गोबर भर दिया जाता है कि स्त्री ही स्त्री का शोषक बन जाती है...उदाहरण के रूप में आप सास-बहू को देख सकते हैं। बहरहाल...

मैं माहराके निकाह की चर्चा कर रहा था, तो हाँ माहरा जहीर की संभवतः चौथी बीबी बन के जाती है। दो मर चुकी हैं और एक को लकवा मार गया है इसलिए घर में कोई काम करने वाली नहीं है। सुहागरात के समय उस उमस भरे कमरे में जहीर लालटेन ले के आता है और बिन कुछ बात किये माहरापर टूट पड़ता है, उसके मुंह से बदबू आती है और दांत भी कुछ टूटे हुए हैं जिसके कारण माहराको उकाई आती है पर यह उसके मुंह को भाभोरने में लगा है और माहरा उसे अपने ऊपर से धकेलने का प्रयास करती है पर धकेल नहीं पाती है और रो पड़ती है इधर सुन्ना के समय सिल देने से जहीर सम्भोग नहीं कर पा रहा था, बाहर से चाकू ले के आया फिर भी अंततः वह थक कर गुस्से में उसे तमाचा लगा बहार चला गया और वह रात भर रोती रही ..जरा सोचिये कितना अजीब है न कि पुरुष चाहे कितना भी महक रहा हो लेकिन चाहता है की पत्नी उसे प्यार से चूमे। आप अपने अगल-बगल, आस-पड़ोस में देख सकतें हैं, रोज दारू पी के आना और बीबी को पीटना तथा जबरदस्ती संभोग करना जिसे वैवाहिक दुष्कर्म कहा जाना चाहिए, यदि थोड़े देर के लिए मान लिया जाय की पत्नी दारू या गुटका से मुंह महका रही हो और पति धुम्रपान न करता हो तो क्या वह चुम्बन करने देगा? जरा कल्पना कीजिये, बिलकुल नहीं। कुछ माह पहले इसे (वैवाहिक-दुष्कर्म) लेकर अपने यहाँ भी हो-हल्ला मचा था। इसके लिए कानून बनना चाहिए और इसे दुष्कर्म मानना चाहिए बशर्ते की कानून का दुर्पयोग न हो। खैर.. अगले दिन जहीर माहरा के माँ को ले के आता है, माहरा के चहरे पे प्रसन्नता आ जाती है लेकिन शीघ्र ही प्रसन्नता शोक में बदल जाता है। माँ दो औरतों के साथ माहरा को बिस्तर पर पटक कर चाकू से सिले हुए भाग को काट देती है। उस समाज में जहीर को गर्भवती करना आवश्यक है वरना उसकी बेइज्जती होगी, लोग उसके मर्दानगी का मजाक उड़ायेंगे। वाह रे समाज और उसकी मर्दानगी! मनोवैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि स्त्रियों के अन्दर पुरुषों से कई गुना ज्यादा सेक्स पावर होता है, यदि वे अपने असली रूप में उतर जाएँ तो मर्द को दांत निपोरना पड़ सकता है। खैर, पुनः रात में जहीर आता है माहरा चाकू से कटने के दर्द से कराह ही रही थी कि जहीर बिना कुछ बात किये उसे चित कर अंदर घुसेड़ दिया, माहरा चिल्ला उठी जैसे लगा उसके भीतर कोई खूंटा ठोक दिया हो और अब प्राण नहीं बचेंगे, क्योंकि अभी उसके गुप्तांग का उचित विकास भी नहीं हुआ था, लेकिन इधर जहीर मुस्कुरा रहा था और गर्व महसूस कर रहा था जैसे किला फतह किया हो। सम्भोग करने के बाद वह बाहर चल जाता है और माहरा तड़पते हुए कब सो गयी या बेहोस हो गयी पता ही नहीं चला। सुबह जब उसे जगाया गया तो देखा कि कमरे में माँ सहित कई औरतें बिस्तर पर गिरे खून को देख कर बधाईयाँ दे रही हैं। माहरा बाद में उस घर में जो अनुभव करती है - मेरे औरत होने ने मुझे खत्म कर दिया है जैसे मैं खुद को ढोती हूँ और प्रतिपल जीने की कोशिश में मरती हूँ. जाने क्यों इस दुनिया के बाशिंदों ने जीवन को मृत्यु का पर्याय बनाकर रख दिया है. मौत से पहले भी मौत! एक बार नहीं, कई बार.....बार-बार!”(पृ.६०)

माहरा की छोटी बहन मासाको अंग्रेज-दंपत्ती इलाज हेतु बाहर ले गए तो पता चला कि उसे सुन्ना के समय संक्रमित औजार की वजह से एड्स हो गया है। यह सुन माहरा बहुत दुखी हुई। कुछ ही दिन बाद मासाकी मृत्यु हो जाती और इधर माहरागर्भवती हो जाती है साथ ही माहरा की माँ भी फिर से गर्भवती है। माहरा कहती है कि मासा कहीं नहीं गयी है मेरे पेट में पल रही है। इस बात को लेकर भी उसे डाट पड़ती है क्योंकि इस्लाम में पुनर्जन्म के बारे में सोचना भी गुनाह है। माहरा गर्भावस्था में घर का कम इतना ज्यादा करती है की एकदम कमजोर हो जाती है। एक दिन खबर मिलती है कि उसकी माँ प्रस्रव के समय चल बसी। इधर जहीर के घर में उसकी बेटी भी गर्भवती होकर मायके में आई है। खैर माहरा को एक बच्ची होती है, जिसका घर वाले कुछ नाम रखते हैं परन्तु वह उसे मासाके नाम से ही जानती व संबोधित करती है। धीरे-धीरे बड़ी होती है और सबकी चहेती भी बन जाती है। माहरा उसे भरपुर स्वच्छंदता प्रदान करती है लेकिन एक दिन जहीर का बड़ा बेटा उसे काँटों से पीटते व बाल पकड़ घसीटते हुए घर लाया क्योंकि बाहर लड़कों के साथ खेल रही थी। यह देख माहरा के आँख के आंसू सूख गए क्योंकि उसे जान से भी ज्यादा चाहती थी। मासाके घर से बहार निकलने पर प्रतिबन्ध लग जाता है। जहीर के बड़े बेटा की तीसरी नम्बर वाली बीबी मासाको अपने साथ रखती है और चाहती है कि अपने कलुठे व बेडौल अधेर भाई से इस कोमल फूल की निकाह करा दें जो कि मासा और माहरा दोनों को पसंद नहीं थे, बाकी परिवार में सबको पसंद था। एक दिन माहरा की अनुपस्थिति में मासा को पकड़ के सब उसी पत्थर के टीले के पास ले गए ताकि सुन्ना कर के उस कलुठे व बेडौल के साथ निकाह कर दिया जाय। थोड़ी देर बाद घर आने के बाद जब यह बात माहरा को पता चला तो बेतहासा भागती हुई चिल्लाते पंहुची जहाँ की मासा को दबाया जा रहा था और वह चिल्ला रही थी। माहरा पास में पड़े एक डंडे को उठाती है और वज्रपात की तरह बरसाने लगती हैं। न जाने कहाँ से उस वक्त इतना बल-शाली हो गयी थी, ऐसे भी अपने बच्चे के लिए मानव हो या पशु-पक्षी सबके मातृत्व में न जाने कहाँ से ढेर सारी शक्ति आ ही जाती है। मार के गिरा देती है और मासा का हाथ पकड़ बहुत दूर भाग जाती है। लोग पीछा  करते हैं पर पकड़ में नहीं आती है। वह अंगेज दंपत्ती के ट्रस्ट में पंहुच जाती है जहाँ सुन्ना के नाम पर भागी हुई तमाम लड़कियां रहती हैं। सुन्ना के खिलाफ ही वे अपना आन्दोलन चला रहे होते हैं जिसमे अंग्रेज पति को वहां के लोग मार डालते हैं फिर भी अंग्रेज औरत रास्ते से पीछे नहीं हटती। अब मासा युवा हो जाती है और उसे आस्ट्रेलिया में डॉक्टरी पढ़ने के लिए भेजने की तैयारी होती है कि इसी बीच एक दिन एक अपरचित लड़का पंहुचता है, और कहता है कि बुआ (जहीर की बेवा बहन) की हालत ख़राब है इसलिए वे मिलना चाहती हैं। इससे पहले जहीर के मृत्यु की भी खबर पहुंची थी तब माहरा ने कहला दी थी कि यहाँ नहीं है लेकिन इस बार मासा के जिद्द पर उसे जाना पड़ता है, जबकि उस वक्त अंग्रेजिन बाहर गयी हुयी थीं। स्त्री की ममता ही उसे मौत के मुह में भी धकेलती है। जब दोनों उस लड़के के साथ घर पहुंचती हैं तो माहरा को खूब पीट के एक कमरे में बंद कर दिया जाता है और भूखे-प्यासे मासा को फिर जहीर का बेटाबहू तथा एक और औरत जल्लाद महिला के साथ लेकर टीले के पास पहुंचते हैं। इधर भूखी-प्यासी माहरा को बेवा बूआ पानी पिलाती है और धीरे से डरते हुए दरवाजा खोलती है और एक चाकू पकड़ाती है, हाथ-पांव की रस्सी काटने के लिए. माहरा पुनः चीखती हुयी दौड़ती है और इस बार धारदार हथियार से चोट करती है, दोनों औरतें दो ओर गिर पड़ती हैं तबतक मासा पकड़ के लिपट जाती है। इतने में जहीर का बेटा इसके ऊपर वार कर देता है और ये गिर पड़ती है। स्त्रियों की यह एक बहुत बड़ी कमजोरी है की ऐसी स्थिति में वे अपनों के साथ मिलकर लड़तीं नहीं हैं, उलटे लिपट के उसे भी बाँध लेती हैं जिसके कारण विपक्षी को मौका मिल जाता है वार करने का। खैर फिर भी उठ खड़ी होती है और उसे भी दे मारती है और मासा को ले के भाग निकलती है। ये लोग पीछ करतें है तो वह थक कर गिर जाती है पर मासा को ललकार के भगा देती है और जूझते हुए इन्हें रोक लेती है और इस प्रकार उसका और साथ ही कथा का अंत हो जाता है।

दिनेश पाल
हिंदी शिक्षक,केन्द्रीय विद्यालय, अंगुल, ओडिशा

सम्पर्क:dinesh.dinesh.pal@gmail.com

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