चित्तौड़गढ़ से प्रकाशित ई-पत्रिका
वर्ष-2,अंक-23,नवम्बर,2016
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शोध:नुक्कड़ नाटक और शिवराम –शिवकुमार वर्मा
रंगशालाएँ और प्रेक्षागृह तो सभ्यता के चरण पार करने के बाद बने होंगे ।
नुक्कड़ नाटक प्राचीन लोक-नाट्य परम्परा को नये कलेवर में ढ़ाल कर हमारे समक्ष
प्रस्तुत करता है । अत: जितनी मानव सभ्यता पुरानी है उतना ही नुक्कड़ नाटक का अतीत
। यदि यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सृष्टि का पहला नाटक तो कोई
नुक्कड़ नाटक ही रहा होगा।सामान्यत: नुक्कड़ नाटक एक ऎसी नाट्य
विधा है जो परम्परागत रंगमंचीय नाटकों से भिन्न है । इनके लेखन के लिए राजनीतिक और
सामाजिक परिस्थितियों और संदर्भों से उपजे विषयों को उठा लिया जाता है और अपने
उद्देश्य पूर्ति या विचारधारा से जन सामान्य को अवगत कराने के लिए बुद्धिजीवियों
द्वारा किसी नुक्कड़ पर मदारी की तरह मज़मा लगाकर नाटक या तमाशा दिखाया जाता है ।
दरअसल आजादी से पहले स्वतंत्र भारत
में समाजवाद का जो सपना आम आदमी को दिखाया गया । वह सपना; सपना ही रह गया और आपातकाल के दौरान जब उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर
भी अंकुश लगा दिया गया तो आम जन के सहन की चरम सीमा ही समाप्त हो गई और जनता पागल
होकर अपने उद्दगारों के आक्रोश को विभिन्न नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से अभिव्यक्ति
प्रदान करने लगी क्योंकि नुक्कड़ नाटक एक आंदोलनकारी विधा है और आंदोलन कभी खत्म
नहीं होते । अत: हिंदी में नुक्कड़ नाटकों का भविष्य उज्जवल है ।
स्वतंत्रता के पश्चात उत्तर
औपनिवेशिक भारत में पूंजीवादी-सामंती व्यवस्था से मोहभंग के कारण छायावादोत्तर एक
दूसरी परम्परा निर्मित व विकसित हुई । जिसके निर्माण में नागार्जुन, मुक्तिबोध, धूमिल, दुष्यंत, निराला, यशपाल, रामविलास शर्मा,
शिवदान सिंह चौहान, आदि की महत्वपूर्ण सृजनात्मक भूमिका थी । शिवराम आख्यान उसी दूसरी परम्परा
के संघर्षशील सृजनकर्मी थे । जिनका प्रसिद्ध नुक्कड़ नाटक “जनता पागल हो गई है” आपातकाल के दौरान
1974 से पहले सव्यसाची द्वारा संपादित पत्रिका “उत्तरार्द्ध” में प्रकाशित हुआ
। जिससे शिवराम भारत के श्रेष्ठतम नुक्कड़ नाटककारों की श्रेणी में शामिल हो गए ।
यह देश में सर्वाधिक मंचित व लोकप्रिय नुक्कड़ नाटक रहा । (अभिव्यक्ति अंक-39 पृ.- 105,132, 221)
“जनता पागल हो गई है” की लोक प्रियता का राज़ सिर्फ यह नहीं था कि वह हिंदी का पहला
नुक्कड़ नाटक था बल्कि यह था कि उसके चरित्रों में आम लोगों ने खुद को देखा और यह
जनता की पीड़ाओं तथा उसके शोषण और सत्ता के साथ मिलकर पूंजी की लूट, राज्य और पुलिसिया तंत्र की सांठगांठों और बर्बरता को सामने
लाता है और साथ ही जनता तथा जनपक्षकारी शक्तियों के प्रतिरोधों, संघर्षों और उनकी मुक्तिकामी इच्छाओं को भी सकारात्मक
अभिव्यक्ति प्रदान करता है । (अभिव्यक्ति अंक-39 पृ.-104) यथा सम्पूर्ण देश की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली “जनता” पात्र का यह कथन
पूरी व्यवस्था की हक़ीकत बयां करता है –
ओ ! मेरी सरकार, मेरी अन्नदाता, माई बाप
पांच बरसों में दिखाई दी नहीं इक बार
आप
मालदारों ने घुड़क कर छिन ली रोटी
मेरी
चूस ली हड्डी, चबाई जिस्म की बोटी मेरी
खेत सूखे, पेट भूखे, गांव है बीमार
हम लोगों की मेहनत, कोठे भरता जमींदार
देह सूखी, प्राण सूखे, सूना सब संसार
कोई सुनता नहीं हमारी क्या बोले
सरकार (जनता पागल हो गई है पृष्ठ सं.- 12
)
ढोर डागर मर गए सब, खेत पडे वीरान
तिस पर बनियां और पटवारी मांगे ब्याज
लगान
बालक भूखे मरें हमारे, हम कुछ ना कर पाऍ
ऎसी हालत है घर-घर में, जीते जी मर जाऍ (जनता पागल हो गई है पृष्ठ सं.- 14 )
शिवराम शोषित- पीड़ित आम आदमी के
प्रति गहन संवेदना रखने वाले प्रगतिशील नाटककार थे । जिनका उद्देश्य सिर्फ लेखन तक
सीमित नहीं था बल्कि पूंजीवादी-सामंती व्यवस्था और सत्ता के विरुद्ध जन संघर्ष
करते हुए देश में भेदभाव रहित शोषण विहिन समतामूलक समाजवादी व्यवस्था की स्थापना
करना था । (अभिव्यक्ति अंक-39 पृ.-49) उनके नाटकों में
मुख्य रूप से शोषण और बेगारी के खिलाफ आवाज़ उठाई गई है एवं जनता को वे नाटकों के
माध्यम से इस पूंजीवादी व्यवस्था का ताना-बाना उधेड़कर दिखाते रहे है । वह अपनी
विचारधारा को आमजन के मन: मस्तिष्क में पहुंचाकर इस व्यवस्था के विरूद्ध सोचने के
लिए मजबूर करना चाहते थे और यही कारण है कि वह अपनी बात कहने के लिए रोटी कपड़ा और
मकान की बुनियादी आवश्यकता पूर्ति मे व्यस्त जनता के प्रेक्षागृह में आने का
इंतजार नहीं करते वरन नुक्कड़ नाटक के माध्यम से प्रेक्षागृह को ही जनता के मध्य ले
जाते है ।
संदर्भ ग्रंथ :
1. हिंदी रंगकर्म : दशा और दिशा, जयदेव तनेजा, तक्षशिला प्रकाशन, दिल्ली
2. नुक्कड़ नाटक , चन्द्रेश,
राधाकृष्ण प्रकाशन नई दिल्ली
3. हमारे पुरोधा-शिवराम, महेन्द्र
नेह, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर
4. जनता पागल हो गई है, शिवराम,
बोधि प्रकाशन जयपुर
5. “अभिव्यक्ति” अंक-39 शिवराम विशेषांक, संपादक-महेन्द्र
नेह,
प्रकाशन – दिनेश राय द्विवेदी, कोटा
6. नुक्कड़ पर प्रतिरोधी नाटक (आलेख) , डा. सुभाष चन्द्र
शिव कुमार वर्मा
शोधार्थी, कोटा विश्वविद्यालय, कोटा, राजस्थान
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