त्रैमासिक ई-पत्रिका
अपनी माटी
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
वर्ष-4,अंक-25 (अप्रैल-सितम्बर,2017)
किसान विशेषांक
तुम क्या समझोगे ?
तुम क्या समझोगे ?
जेठ की दुपरिहा में
पैरों में भू की तपन
तुम क्या समझोगे ?
पैरों में पत्थर की चोट
कांटे की दर्द भरी चुभन
तुम क्या समझोगे ?
आषाढ़ के महीनो में
घर की टूटी छत से
टपकते पानी को
तुम क्या समझोगे ?
भीगी लकड़ियों से
धुन्धुआते चूल्हे
धुँआई रोटी का स्वाद
तुम क्या समझोगे ?
माघ के महीने में
फटे चादर से सनसनाती हवा
नीचे से धरती की ठंडक
तुम क्या समझोगे?
दो दिन की भूख में
एक रोटी का स्वाद
तुम क्या समझोगे ?
सूखी मिट्टी में ठनकते फावड़े
हाथ में लगती चोट
और फूटे छाले को
तुम क्या समझोगे ?
मिट्टी से भरे टोकरे का
खोपड़ी पर पड़ते भार
सिर में चिलचिलाती
धूप
डगमगाते पैरों में उठे
दर्द
तुम क्या समझोगे ?
स्कूल की घंटी बजने पर
पढ़ने को लालायित होने पर
कलम की जगह हथौड़ा पकड़ने पर
ह्रदय और घायल हाथों के दर्द
तुम क्या समझोगे ?
कृष्णानन्द
एम.ए. द्वितीय
वर्ष (२०१६-१७)
शिवाजी कालेज ,
दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली
संपर्क सूत्र ..९९६८३९३२१३
उत्कृष्ट लेखन। एक किसान की व्यथा को सही ढंग से प्रदर्शित करती कविता है।
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