त्रैमासिक ई-पत्रिका
अपनी माटी
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
वर्ष-4,अंक-25 (अप्रैल-सितम्बर,2017)
किसान विशेषांक
महाराष्ट्र राज्य
के किसानों के साथ आरले श्रीकांत और बोईनवाड कृष्णा की बातचीत
महाराष्ट्र के किसानों का साक्षात्कार
लेना अत्यंत कठिन कार्य है क्योंकि महाराष्ट्र एक ऐसे भूभाग से युक्त राज्य है
जहाँ – ‘चार कोस पर बदले पानी और
आठ कोस पर बदले वाणी’ – कहावत चलती है।
अर्थात् यहाँ मराठवाड़ा, विदर्भ, पश्चिम महाराष्ट्र की भूमि तथा उससे प्राप्त जल
में बहुत अधिक मात्रा में अंतर पाया जाता है। पश्चिम महाराष्ट्र उपजाऊ भूमि के लिए
प्रसिद्ध है तो उसकी तुलना में विदर्भ और मराठवाड़ा की भूमि कम उपजाऊ पायी जाती
है।
महाराष्ट्र के इन्हीं संघर्षशील किसानों का
हाल जानने श्री आरले श्रीकांत लक्ष्मणराव तथा श्री बोईनवाड कृष्णा बाबुराव,
नांदेड, महाराष्ट्र उनके बीच पहुँचे। उन्होंने महाराष्ट्र के एक
छोटा-सा गाँव गोरठा, तहसिल उमरी,
जिला नांदेड के किसान रावसाहब, रामराव बाबूराव, कृष्णा बोईनवाड और पांडुरंग से विस्तार से बात की।
प्रणाम ! कृपया
अपना परिचय दीजिए।
किसान - मेरा नाम
रावसाहेब दिगंबर सावंत है। गाँव गोरठा, तहसिल उमरी, जिला नांदेड,
महाराष्ट्र। उम्र 57 वर्ष।
किसान - मेरा नाम
पांडुरंग दत्तराम गोणासे है। गाँव गोरठा, तहसिल उमरी, जिला नांदेड,
महाराष्ट्र। उम्र 44 वर्ष। (पर लगते 60 वर्ष के हैं)
आपके घर में
कितने सदस्य हैं?
किसान – हमारे परिवार में हम तीन भाई हैं। एक भाई की
मृत्यु हो गयी है। हम चार भाईयों के चार परिवार और चारों की चार पत्नियाँ हैं।
मुझे दो बेटियाँ और दो बेटे हैं। मुझसे जो छोटा भाई है उसे भी दो बेटियाँ और दो
बेटे हैं। तीसरे नंबर का जो भाई है उसे भी चार संतान है, तीन बेटियाँ और एक बेटा। इनमें से एक बेटी की शादी हो गई
है। सबसे जो छोटा है उसे दो बेटे हैं। मेरा नाम रावसाहेब है। दूसरे नंबर का जो था
वो नागोराव था वह गुजर चुका है। तीसरे नंबर का माधव था उसे गुजरे बहुत वर्ष बीत गए
हैं, वो नागोराव से पहले गुजर
गया था। और चौथे नंबर का शंकर दिगंबर सावंत और सबसे छोटा दत्ता दिगंबर सावंत है।
(कुलमिलाकर पाँच भाई थे, अब तीन हैं।)
अभी आप अलग-अलग
रहते हैं या एक साथ?
किसान – अभी तक संयुक्त परिवार था। परंतु सद्यपरिस्थितियों के कारण हम अलग-अलग रहने
लगे हैं।
अलग होने का क्या
कारण है?
किसान – ऐसा कारण कुछ नहीं है। सभी की स्वतंत्र रहने की
इच्छा होती है। और पुरूषों का कुछ नहीं होता है, थोडे-बहुत अन्य मतभेद होने पर...और स्वेच्छा से अलग हुए हैं,
उसमें कोई मतभेद नहीं है कि... हर किसी को
स्वतंत्र रहने की इच्छा होती है।
अभी आप के घर में
कमाने वाले कितने हैं?
किसान – नहीं... कमाने वालों में यानी हम सभी लोग काम
करते हैं। हमारे छोटे बच्चे सभी पढ़ाई में हैं। काम करने के लिए हम तीन भाई ही हैं
और औरते काम करती हैं। खेती के अलावे हमारा कोई अन्य व्यवसाय नहीं है...।
पांडुरंगजी आप
बताईए कि आप के घर में कितने सदस्य हैं?
किसान – हम दो भाई हैं। भाई को दो संतान हैं ओर हमें
तीन, दो बेटे और एक बेटी।
हमारी बेटी की शादी हो गई है, भाई के भी हो गई
है। खेती का काम करते हैं।
आप अकेले ही खेती
का करते है या घर में सभी लोग करते हैं?
किसान – हम सभी करते हैं।
घर में कोई नौकरी
करता है क्या?
किसान – नहीं, कोई नहीं करता है।
रावसाहेबजी आप
खेती के अलावा कोई और उद्योग करते हैं या केवल खेती पर ही निर्भर हैं?
किसान – साहब खेती पर निर्भर रहकर कुछ नहीं हो सकता है।
जोड़ उद्योग यानी हमने दूध उत्पादन के लिए कुछ जानवर लिए हुए हैं। इसके साथ अन्य
छोटी-मोटी बाज़ारू बिक्री चलती है। खेती पर पूरी तरह निर्भर रहकर हमारा कुछ नहीं
हो सकता है क्योंकि हमारी खेती बाग़ाईत(ऊपरी पानी से युक्त) नहीं होने के
कारण...और सूखी (बिन पानी की) जमीन है। उसपर ईश्वर का कोप... उससे हमें बारिश की
कमी होती
इस दुग्ध व्यवसाय
के अतिरिक्त और कोई व्यवसाय ?
किसान – और कोई व्यवसाय नहीं है... बेटे पढ़ाई में हैं।
पांडुरंगजी आप
कोई और उद्योग-व्यवसाय करते हैं क्या?
किसान – हमारे यहाँ कोई उद्योग – व्यवसाय नहीं है।
जानवर ही हैं, दूध के व्यापार
के लिए। दूसरा कुछ भी नहीं है। बेटा पढ़ाई में है।
नौकरी में कोई
नहीं है क्या?
किसान – नहीं, कोई नहीं है।
इसका क्या कारण
है कि घर में कोई नौकरी के लिए नहीं है...
किसान – नहीं है इसका क्या ... हम तो पढ़ाई किए ही नहीं हैं, हमें पिताजी ने पढ़ाया ही नहीं है।
बेटे की पढ़ाई...
किसान – बेटे की पढ़ाई है... एक बेटा पढ़ता है और दूसरा खेती करता है।
रावसाहेबजी आपको
कुल कितने एकड़ जमीन हैं?
किसान – हमें पूरी 29 एकड़ जमीन है, चार भाईयों में। उसमें सारी जमीन बीज बोने लायक नहीं है, कुछ बंजर भी है। पहाड़ी इलाका होने के कारण कुछ
बंजर जमीन है। वैसे बीज बोने लायक 10-15 एकड़ होगी। उसी में कपास...
ये जमीन पूर्णतः
आपके मालकी की ही है या उस पर सरकार का भी कुछ....
किसान – नहीं नहीं... हमारी ही मालकी है। उसका उपयोग
करने के लिए हम उसके मालिक है।
पांडुरंगजी आपको
कितने एकड़ जमीन हैं?
किसान – हमें 10 एकड़ जमीन हैं। हम दो भाई हैं। मेरे नाम पर साढ़े तीन एकड़ जमीन हैं। सारी बिन
पानी की जमीन है।
रावसाहेबजी क्या
इतनी जमीनें आपके परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त हैं? यानी इससे होने वाले उत्पादन से आपके घर का खर्चा पूरा होता
है या नहीं...
किसान – नहीं, इससे कुछ भी नहीं होता है। एक एकड़ में कपास तीन-चार क्विंटल यानी
बाग़ाईत(ऊपरी पानी से युक्त) नहीं होने के कारण फसल कम आती है। इसलिए खर्चा ...
मँहगाई इतनी बढ़ गयी है। एकाध छोटे बच्चे के लिए कपड़ा खरीदना होगा तो 500-1000 रुपये लग रहे हैं और खेती में उत्पादित माल को
भाव नहीं है। सालभर सोयाबीन को घर में रखकर भी उसे 2700-2800 में बेचना पड़ रहा है। जो आज बाज़ार में बीज है उसकी 2700-2800 प्रति बॅग बिक्री होती है। 30 किलो वाले बैग की 2800 रुपये में बिक्री होती है और और हमारे 100 कि. को उतने ही रुपये देते हैं। उसमें भी
कट्टी, अड़त लगाया जाता है। खेती
केवल सातबारे पर है।... परमेश्वर ने किसान कहकर जन्म दिया है तब उसके सिवाय कोई
पर्याय नहीं है, खेती करनी ही
पड़ेगी। उत्पन्न निकलेगा, नहीं निकलेगा ये
उसके (प्रकृति के) स्वाधीन है। पर हमें ये करना ही पड़ेगा, उत्पन्न आने दो या न आने दो। (छोड़ भी नहीं सकते हैं - एक
लड़के ने कहा)। कर्ज बाज़ार इतना हो गया है कि अब किसान को बेटी की शादी करनी है
तो उसे पर्याय ही नहीं है। इसलिए यदि जमीन है तो दूसरा कोई विचार नहीं आता है।
बेचने निकलो एक एकड़ जमीन... क्या कर सकते हैं...
क्या आपकी जमीन
को सही भाव मिलता है?
किसान – क्यों देंगे बाहर मार्केट के लोग.. उन्हें यदि
पता चल गया कि इसके यहाँ ऐसी-ऐसी अड़चनें हैं... मजबूरी से... जो वस्तू 10 रुपये में लेनी है... वे फायदा उठाते हैं।
इसमें उनकी भी कोई गलती नहीं है। यदि हम उनके स्थान पर रहेंगे... यह वस्तू हमें
बाज़ार में 10 रुपयो के एवज
में... जिन लोगों को जल्दी बेचकर जाना होता है उनमें से एकाध 5 रुपये में देकर चला जाता है। वो समय के महत्व
को देखता है।
पांडुरंगजी क्या
आपकी जमीन से होने वाले उत्पादन से आपके घर का खर्चा पूरा होता है?
किसान – नहीं होता है। हम मजदूरी करते हैं।
आप अपनी खेती में
काम करने के अलावे दूसरों के खेत में मजदूरी भी करते हैं! आपको मजदूरी कितनी मिलती
है?
किसान – मजदूरी क्या...200-250 रुपये मिलते हैं।
पांडुरंगजी आप
किस प्रकार की खेती करते हैं? पारंपरिक या
आधुनिक।
किसान – पारंपारिक खेती ही करते हैं।
खेती के अलावा
आपकी आय का कोई और साधन है क्या?
किसान – नहीं, कोई साधन नहीं है। जानवर
हैं, दुग्ध व्यवसाय के लिए।
रावसाहेबजी आपकी
खेती में सिंचाई व्यवस्था के साधन क्या हैं? मौनसून या बोअरवेल तथा नहर आदि कुछ...?
किसान – खेती में पहली बार जब बोअरवेल लगाया तब बहुत
पानी था। दो-चार साल बोअरवेल चला और उसके बाद बंद हो गया। उसके बाद फिर से बोअरवेल
लगाया... ऐसे तीन-चार बोअरवेल लगाये...सफल नहीं हुए...कुछ दिन चलते थे और बंद हो
जाते थे। फिर कुआँ खोदा। कुएँ में पानी है किंतु उस कुएँ के पानी पर अब थोड़ी-बहुत
जाड़े की (बाग़ाईत) फसल, कपास, गेंहू आदि होता है... दूसरी कुछ ऐसी फसल नहीं
आती है। थोड़े दिनों तक पानी मिलता है।
इस बोअरवेल तथा
कुएँ के पानी के अलावा आपको केवल मौनसून पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
किसान – हाँ... कॅनल का पानी है लेकिन बहुत दूर है।
उसका अभी तक हमें कोई उपयोग नहीं मिल पाया है। उस पर अभी कम-से-कम डेढ़ लाख रुपये
खर्च करने पडेंगे, खेती तक पानी ले
जोने के लिए।... अभी के मँहगाई के समय में...।
इसके लिए आपने
कोई प्रयास किया है क्या... सरकार के साथ पत्र-व्यवहार आदि कुछ?
किसान – नहीं... कुछ नहीं किया है। पत्र-व्यवहार क्या...
घर पर ही करना पड़ेगा...
सरकार कुछ नहीं
करेगी, ऐसा आपको लगता है?
किसान – हाँ... कर्ज माँगने पर वे हमें देंगे... पर हमने कभी वैसी माँग नहीं की है।
– कर्ज के अलावा
सरकार से आप कहेंगे कि हमारी खेती तक कॅनल के पानी की सुविधा होनी चाहिए तो...
सरकार के द्वारा।
किसान – हाँ... पर अभी नहीं होगा न। ये जो बड़ा कॅनल
गया है उससे जमीन की उँचाई ज्यादा है और कॅनल नीचे है। इसलिए पाईप लाईन के द्वारा
ही पानी ले जाना पड़ेगा।... मन की ईच्छा थी कि पाईप लाईन करके पानी ले जाए...किंतु
इसमें व्यावहारिक ऐसी बाधाएँ आयीं कि... एकदम दूसरी बाधा आने से सब कुए खत्म हो
जाता था।
आपने सरकार से भी
कोई कर्ज नहीं माँगा है। इसका क्या कारण है... कर्ज लेने से डर लगता है या...
किसान – नहीं नहीं.... किस बात का डर है। पिछली बार
हमने कुएँ के लिए कर्ज लिया था। कर्ज माफी के बाद जो कर्ज था... वह हमने स्वयं
जाकर भोकर के बँक में चुकाया है। तब बँक वालों ने हमारा सत्कार किया क्योंकि
उन्हें लगता था कि कोई कर्ज चुकायेगा नहीं। कर्ज नहीं होना चाहिए ऐसी मेरी ईच्छा
थी।
पांडुरंगजी आपके
के खेत में पानी की क्या सुविधा है?
किसान - हाँ... पाईप लाईन किया हुआ है।
आपने पाईप लाईन
कहाँ से किया है?
किसान – कॅनल से किया है।
क्या आपने स्वयं
के खर्चे से किया है या कर्जा लिया है?
किसान – स्वयं के खर्चे से किया है। कर्जा भी लिया है, 2014 में 50,000 रुपये... परंतु
ये स्वयं के खर्चे से किया है।
आपका कर्ज माफ हो
गया या...
किसान – अब क्या हुआ क्या नहीं ये तो नहीं पता... कौन
देखने गया कि कर्ज माफ हुआ है नहीं।
क्या आपकी जानने
की ईच्छा नहीं होती है कि कर्ज माफ हुआ है या नहीं... क्या आपको नहीं लगता है कि
वहाँ जाना चाहिए और देखना चाहिए...
किसान - ...जाना
चाहिए लेकिन जाने में बहुत सारी बाधाएँ आती रहती हैं। कभी फुर्सत ही नहीं मिलती
है।... समय ही नहीं मिला है।
रावसाहेबजी आपके
खेत किस तरह के हैं? टुकड़ों में बँटे
हुए छोटे-छोटे प्लॉट या एक जगह बड़ा प्लॉट।
किसान – हमारा खेत इस दिशा में है, इधर (दक्षिण दिशा में)। वह एक ही बड़ा प्लॉट
है। दूसरी तीन एकड़ जमीन सड़क के किनारे है।
बड़े प्लॉट में
कितने एकड़ जमीन है?
किसान – तीन एकड़ यहाँ है। उधर 26 एकड़ है, एक ही प्लॉट में।
26 एकड़ में सारी
जमीन खेती करने लायक है या उसमें पहाड़ी बंजर जमीन भी है?
किसान – पहाड़ी बंजर जमीन भी है। 15 एकड़ जमीन बीज बोने लायक है। बंजर जमीन में
सागवान के पेड़ तथा इंधन के लिए लकड़ी आदि की ऊपज होती है। उसमें फसल आदि का
उत्पादन नहीं होता है।
पांडुरंगजी आपका
खेत कितने टुकड़ों में बँटा है?
किसान – तीन टुकड़ों में बँटा है। 7 एकड़ जमीन तीन टुकड़ों में बँटा है। जो दूसरा
साडेतीन एकड़ का खेत है वह भी दो टुकड़ों में बँटा हुआ है। उसमें एक टुकड़े में
पानी की सुविधा की गयी है, ऐसी 2 से 2.5 एकड़ जमीन है। बाकी सारी मौनसून आधारित जमीन है।
आजकल मौनसून का
संतुलन बिगड़ रहा है। इसका खेती पर क्या असर पड़ रहा है?
किसान – खेती पर तो असर पड़ ही रहा है। फसल सूख रही है,
बढ़ नहीं रही है। चिंता होने लगी है... दूसरों
से लिया हुआ कर्जा खेती में लगाया गया है। अब हम ऊपर वाले की ओर नज़रें लगाये बैठे
हैं...
रावसाहेबजी आपको
क्या लगता है कि किस प्रकार का असर पड़ रहा है?
किसान –साहब अभी जो बारीश हुई है, बीज बोने से पहले, उससे बीज बुआई आदि काम व्यवस्थित हुए थे। किसान को इतना
समाधान हुआ कि अब समय पर बारीश हुई है, बीज बुआई भी समय पर हुई है इसलिए फसल अच्छी आयेगी ऐसी उम्मीद थी। लेकिन अभी तक
इतनी बड़ी बारीश नहीं हुई है। मौनसून विभाग द्वारा लगाए गए अनुमान से कहीं और ही
बारीश होती है। अभी जानवरों को पीने के लिए भी कहीं पानी नहीं है। अभी की यह सद्य
परिस्थिति है।... अभी बारीश नहीं हो रही है, फसल में फूल लग रहा है, बारीश न होने के कारण कम फसल आयेगी। मूँग, उड़द की फसल धूप सेजल रही है। फूल आने के समय में जो बारीश आवश्यक होती है वह
अगर 4-8 दिन बाद होगी तो उसका
कोई उपयोग नहीं होगा। अभी कुछ अपेक्षाएँ हैं कि उस फसल में फूल दिख रहा है तो आज
या कल बारीश होगी... इतनी ही अपेक्षा है दूसरा कुछ नहीं। अभी इसका परिणाम तो ...
थोड़ी-बहुत बारीश हो रही है... इसके बाद अगर इतनी ही बारीश होती है तो कपास में
आने वाले फूल झड़कर उसका नुकसान होगा। अभी बारीश अगर ज्यादा मात्रा में होगी तो
अन्य फसलों के आने की थोड़ी-बहुत तसल्ली मिलेगी।
यदि जरूरत से
अधिक बारीश होती है तो इसका फसलों पर क्या परिणाम होगा?
किसान - यदि
जरूरत से अधिक बारीश होगी तो कुछ ज्यादा नुकसान नहीं होगा। थोड़ा-बहुत नुकसान होगा
तो भी वह अगली फसल के माध्यम से भर कर निकलेगा।... जानवरों के लिए चारा तो
मिलेगा... ‘सूखे अकाल की अपेक्षा
बाढ़ से आने वाला अकाल फायदेमंद होता है’ (मराठी में - कोरड्या दुष्काळा पेक्षा ओला दुष्काळ बरा)।
रावसाहेबजी आप
खेती कैसे करते हैं? ट्रेक्टर आदि से करते हैं या बैल आदि से
पारंपरिक खेती करते हैं।
किसान – सभी तरफ अभी बैल का व्यवसाय कम हो गया है।
ट्रेक्टर से ही जमीन तैयार की जा रही है... जल्दी होगा इसलिए। जो काम एक दिन में
ट्रेक्टर करता है वहाँ 5-6 दिन बैल से करने
में लगता है। जिनके पास बैल हैं वे भी बैलों को तकलीफ़ नहीं देना चाहते हैं। 4-8 दिन कौन लगाए उसे...
पारंपरिक खेती
करते समय आपको नहीं लगता था कि इतना समय लग रहा है या बरबाद हो रहा है...
किसान – इससे पहले कोई साधन ही नहीं थे... तब कोई
पर्याय ही नहीं था। उस समय... अब सुखदायक वस्तु आये हैं... अन्य जो कपड़ा-लत्ता
था... जो वस्तु 100 रुपये में मिल
जाती थी उसके लिए अब 1000 रुपये लग रहे
हैं। ऐसे हो रहा है। (एक अन्य किसान - पहले हमें आलस्य नहीं था। हम रात-दिन खेती
में काम करते थे। अब ऐसे लग रहा है कि काम नहीं करना पड़े तो अच्छा रहेगा। बिना
काम के रुपये कैसे कमाये जाए...)
अभी आप खेती कैसे
करते हैं? स्वयं का ट्रेक्टर आदि है
या....
किसान – नहीं नहीं...
जो बाहर किराये से ट्रेक्टर चलते हैं, काम करने वाले, किसानों के पास जो हैं... किराये से लेते हैं। जो भाव है उस भाव से... उसमें
सभी काम उससे कर लेते हैं। कुछ लोग बीज बुआई भी उसीसे कर रहे हैं अभी...
आप खेती तैयार
करने से पहले मिट्टी का परीक्षण आदि करते हैं या ऐसे ही ...
किसान – नहीं नहीं... पारंपरिक खेती यानी... पहले से
वही... (अभी सिर्फ यंत्रों का उपयोग करते हैं।) यंत्र यानी वही काम होने तक...
मिट्टी का परीक्षण आदि कुछ नहीं... पूर्वज भी पारंपरिक खेती करते आये हैं। उनका
अनुभव यह कि पहाड़ी(खारबाड़) जमीन है, इस जमीन में हम दूसरी कोई फसल, कपास आदि
लगायेंगे तो नहीं आयेगी... वहाँ केवल साधारण फसल लेनी है। उड़द लीजिए... और यहाँ
दूसरा क्या आयेगा... सोयाबीन बोईये आयेगा।
खेती तैयार करने
से पहले उसमें दवाई या गोबर से बना खाद आदि कुछ डालते हैं क्या...
किसान – गोबर से बना खाद डालते हैं।... घर में जानवर
होंगे तो भी डालते हैं और नहीं तो भी खरीद कर डालते हैं। थोड़ी-सी खेती में ही
डालते हैं, सारी खेती में नहीं डाल
सकते हैं।...
पांडुरंगजी क्या
आप भी ऐसी ही खेती करते हैं? आपके पास बैल हैं?
किसान – हाँ, ऐसी ही खेती करते हैं। बैल हैं।
पांडुरंगजी आप
साल भर में कितने फसल पैदा कर लेते हैं?
किसान – एक ही फसल लेते हैं। बिन पानी की खेती में एक
ही फसल... कपास और ज्वारी। उड़द, मूँग थोड़ासा
डालते हैं लेकिन वह हमारी जमीन में नहीं आता है... वह जानवरों के चारा भर के लिए
हो जाता है।...
पांडुरंगजी जहाँ
पानी की सुविधा है, जो कॅनल से आप ले
जाते हैं, वहाँ तो दो-तीन फसल आप
लेते ही होंगे।
किसान – नहीं नहीं।... कॅनल है लेकिन उसमें पानी नहीं
है। कॅनल में पानी महिने में एक ही बार आता है, हमेशा नहीं।
रावसाहेबजी आप के
खेती में जहाँ पानी की सुविधा है, जैसे बोअरवेल है,
कुआँ है, वहाँ आप कितने फसल लेते हैं?
किसान – वहाँ... अभी बरसात के दिनों में तो कोई
आवश्यकता नहीं है। यदि कमी महसूस हुई तो देना पड़ता है, कपास, उड़द, मूँग आदि को। उसके बाद सर्दियों में कपास को
पानी देते हैं। थोडा-बहुत गेंहू, चारा दूसरा कुछ
नहीं...
अभी सोयाबीन है,
उसके बाद यदि मूँगफली की फसल लेनी हो तो...
किसान – सहाब मूँगफली के लिए हमारे यहाँ उतना पानी भी
नहीं है और विशेषतः हमारे यहाँ जंगली जानवरों की इतनी समस्या है, उसकी इतनी पीड़ा होती है कि वे आज की फसल ही
नहीं होने दे रहे हैं, कल की तो बात ही
रही... अब इतनी हानि होती है कि अंत तक हमारे हाथ में कुछ आने की कोई
उम्मीद(विश्वास) नहीं रहती है।
इसका मतलब आप साल
भार में केवल दो ही फसल लेते हैं।
किसान – हाँ, क्योंकि दूसरा कुछ आता ही नहीं है। पानी होगा तो गेंहू आयेगा। जिसके पास पानी
की सुविधा होती है वे ले सकते हैं।
सरकार किसानों के
लिए कई तरह की सुविधाएँ जैसे कि बीज, खाद, ट्रेक्टर, थ्रेसर आदि सब्सिडी के साथ उपलब्ध करा रही है
तथा कई कृषि सुधार के लिए कई योजनाएँ चला रही है। क्या आपको इन सुविधाओं और
योजनाओं का लाभ मिल रहा है?
किसान – सहाब अब... खेती से संबंधित जिन अवजारों,
बीज आदि पर सब्सिडी होने की बात होती है,
वह आया है या नहीं इसकी जानकारी अभी तक हमें
किसी ने नहीं दी है। ग्रामपंचायत में ये मिल रहा है, लेकर जाईए, इसके संदर्भ में
अभी तक किसी ने हमें बताया नहीं है। समझिए कृषि विभाग में उड़द का बीज आया है,
छोटे किसान के लिए... मैं पिछली बार गया था
माँगने के लिए... मुझे उन्होंने कहा कि खाद ले जाईए। मैंने कहा चने का बीज आया है
आपके यहाँ, उड़द, अरहर के बीज के बॅग आये हैं वो दीजिए न हमें।
वहाँ थोड़ासा तू-मैं हुआ। आप क्यों नहीं दे रहे हैं? आप और लोगों को दिए हैं, हमें क्यों नहीं दे रहे हैँ? नहीं हैं, खत्म हो गये हैं
ऐसा हमें लिख कर दीजिए, ऐसा हमने उनसे
कहा है। उन्होंने कहा खत्म हो गये हैं। बीज आया है इसकी जानकारी हमें पहले क्यों
नहीं मिली? आपने किस-किस को दिया है
कि खत्म हो गया है। हमें अब तक कुछ भी नहीं मिला है। आपको किसे देना था और किसे
नहीं इससे कोई... एकाद समय तो लाभ होना चाहिए न किसान को। हर किसीको लगता है कि
मिलना चाहिए...
बीज नहीं मिलने
का क्या कारण हो सकता है?
किसान - ...जिन
लोगों को पता होता है... जो उनके संपर्क में रहते हैं वे लेकर गायब कर देते हैं...
दूसरा क्या कारण हो सकता है उसमें।... उनमें किसी को खेती है या नहीं है इसका
विचार ही नहीं करते हैं वे लोग। मैं यदि उनका नज़दीकी रहा तो मुझे दो बॅग माँगने
पर दे ही देंगे वे, खेती हैं या नहीं
ये नहीं देखा जाता है वहाँ।...
आपको क्या लगता
है कि कृषि विभाग के लोग जिन लोगों को बीज देते हैं, जो सरकार द्वारा निश्चित किया गया भाव है उसी भाव में देते
हैं या अधिक भाव लगाकर देते हैं।
किसान – कौन बताएगा सहाब... उसी भाव में देते हैं या
किस भाव में, वे बतायेंगे
क्या!...
पांडुरंगजी आपने
कभी प्रयास किया है क्या कि सब्सिडी का बीज आदि प्राप्त करने का...
किसान – हम कभी गए ही नहीं। हमें कुछ पता ही नहीं है।
हम हमारे घर में रखे बीज का ही उपयोग करते हैं।
रावसाहेबजी क्या
आप किसान क्रेडिट कार्ड से लाभान्वित हो रहे हैं?
किसान – हमने किसान क्रेडिट कार्ड लिया ही नहीं है।
बैंक में खाता है पर... एटीएम का कभी उपयोग ही नहीं किया है... सीधे बैंक से ही
रुपये लेते हैं।
पांडुरंगजी इसके
बारे में आपको कुछ जानकारी है कि सरकार ने आपके लिए किसान क्रेडिट कार्ड बनाया
है...
किसान – नहीं, कुछ भी नहीं पता है।
रावसाहेबजी बैंक
से किसानों को कम व्याज दरों पर ऋण दिया जाता है, क्या आपको इसका लाभ मिला है?
किसान – बैंक की सुविधा यानी सहाब... किसान के संबंध
में अच्छी है। उसका हमें लाभ मिला है।
पांडुरंगजी आप
कर्ज लिए हैं न, उसका क्या आपको
लाभ हुआ है?
किसान – कर्ज लिए हैं, लाभ भी हुआ है किंतु हमने कर्जा नहीं चुकाया है।
किसान – बाहर जो लोग कर्ज देते हैं उससे कई गुना अच्छा
है। किसान के संबंध में बहुत ही सुविधाजनक है।
( किसान - सहाब 2 साल हो गये मुझे तो बैंक कर्जा ही नहीं दे रहा
है।... साक्षात्कारकर्ता – नहीं दे रहा है
इसका क्या कारण है?... आप का नाम क्या
है? नारायण सावंत।...
साक्षात्कारकर्ता- आपको जमीन कितनी हैं? नारायण – साडेतीन एकड़
है।... कर्ज नहीं दे रहे हैं।... कल आईए, परसों आईए, आठ दिन बाद आईए,
ऐसे कहकर सता रहे हैं।... सभी कागजपत्र होने पर
भी सता रहे हैं। बैंक में दो-दो दिन सोये थे हम, पिछले साल। अभी ये मेरा तीसरा साल है... अभी भी मैं कर्ज के
लिए तरस रहा हूँ। मेरे ऊपर बाहर का बहुत सारा कर्जा हो गया है, बैंक ने मुझे कर्जा नहीं दिया है। अब मुझे खेती
बेचकर ही बेटियों की शादी और लोगों की भरपाई करनी पड़ेगी... अब मैं इन सब से बहुत
ही थक चुका हूँ।...)
पांडुरंगजी कृषि
अधिकारी और मौसम विभाग आप लोगों को किस प्रकार सहायता करता है?
किसान – वे लोग कभी आए ही नहीं है और हमें कभी किसी ने
पूछा भी नहीं है।
रावसाहेबजी इस
बारे में आपका क्या अनुभव है?
किसान – मदद करने के लिए सहाब उन्होंने कभी किसी प्रकार
की जानकारी हम तक पहुँचाई ही नहीं है।... कभी पूछ-पाछ नहीं, मिलना नहीं, कुछ भी नहीं...
आप कभी उनके पास
गए हैं क्या? मदद माँगने के
लिए...
किसान – नहीं, कभी नहीं गए हैं... वे कभी मिलते ही नहीं हैं।
वर्तमान समय में
किसानों की आत्महत्याएँ बढ़ी हैं, विशेषतः अपने
मराठवाड़ा और विदर्भ में... इसके क्या कारण हैं? आपके देखने में ऐसा कोई किसान है क्या, जो फाँसी लिया हो..
किसान – हाँ, ऐसा हो रहा है... इसका कारण साहूकारी कर्ज... अड़चन आने पर क्या करेंगे...
सरकार कर्जा नहीं दे रही है इसलिए साहूकारी कर्ज लेना पड़ रहा है।
साहूकार से कर्ज
लेने का क्या कारण है, उसकी इतनी
आवश्यकता क्यों पड़ रही है?
किसान – अब यही सब... बेटी की शादी के लिए...
बेटी की शादी के
लिए कर्जा लेने का क्या कारण है?
किसान – बेटी की शादी करने के लिए लड़के वाले बहुत सारे
दहेज की माँग कर रहे हैं।... बिना दहेज के कोई शादी करने के लिए तैयार नहीं है।
शादी में बहुत सारा खर्चा हो रहा है। इसलिए साहूकार से कर्जा लेने से कर्जबाज़ारी
बढ़ने ही वाली है।
साहूकार किस
व्याज दर से कर्जा देते हैं?
किसान – साहूकार 5 रुपये प्रति शेकड़ा व्याज दर से कर्जा देते हैं।... किसान
की मजबूरी देखकर वे व्याजदर लगाते हैं। मजबूरी का फायदा उठाते हैं।
सरकार तो कहती है
कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और....
किसान – सरकार कहती है... सरकार की कौन सुनता है...
दहेज बंद ही नहीं हो रहा है।
पांडुरंगजी आपको
कितनी बेटियाँ हैं?... क्या उनकी शादी
हुई है... क्या आपने दहेज दिया है... दिया है तो क्यों दिया है.. अपनी मर्जी से
दिए हैं या उन्होंने माँगा था?
किसान – एक बेटी है।... उसकी शादी हो चुकी है... 2,50000(दो लाख पचास हजार रुपये) दहेज दिया है... लड़के
वालों ने दहेज की माँग की थी इसलिए दहेज देना पड़ा।
रावसाहेबजी किसान
आत्महत्या के संबंध में आपको क्या लगता है?
किसान – मानसिक पीड़ा किंवा अन्य कुछ कर्जबाज़ारी...
इन्होंने जैसे कहा है। उसके सिवाय कोई पर्याय नहीं रहा... तब क्या करेगा कोई,
अब वह... सोच-विचार कर... उसपर घर का तनाव होता
है... अन्य अब... बेटी का रिश्ता पक्का हुआ है, बाज़ार करना है, ये चाहिए वो लाना है, उन्हें देना
है... अन्य जो दूल्हे वाला पक्ष होता है उनकी इच्छा पूरी करनी है... उसके लिए लगने
वाला जो... आर्थिक पक्ष के मदद में जो है, जो चाहिए... वो समय पर नहीं मिला तो उसके मन को थोड़ा-सा पछतावा होता है
उसका...
रावसाहेबजी आपको
कभी कर्ज लेने की जरूरत पड़ी है क्या? साहूकार आदि कहीं बाहर से...
किसान – नहीं सहाब... अब ये व्यवहार है कहीं से तो लेना
ही पड़ता है।
आपने कभी किसी को
कर्ज दिया है क्या?
किसान – कर्जा मतलब... व्यवहार है... चालू घटनाओं में
हम किसीको देते हैं, किसी से लेते
हैं... ऐसा करना ही पडेगा न।... एक-दूसरे की मदद के रूप में लेना-देना चलता ही
है।... यदि किसी के पास कर्जा नहीं मिलता है तो किसान के पास जो खेती होती है उसे
वह बेचने को तैयार हो जाता है।...
देशभर में किसान
आंदोलन हो रहे हैं, इसके बारे में
आपकी क्या राय है? जो बहुत पहले से
होते आ रहे हैं... क्या ये आंदोलन सही अर्थ में किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता
देते हैं?
किसान – सहाब ये आंदोलन सही अर्थ में किसोनों के लिए ही
होंगे इसमें कोई सत्यता नहीं दिखाई देती है। उसमें स्वयं(राजनेताओं का) का स्वार्थ
भी हो सकता है।
नहीं, आज तक जितने आंदोलन हुए हैं उनका आपको कभी
फायदा हुआ है क्या?
किसान-
...किसानों की इच्छा होती ही क्या है सहाब... किसान क्या करेगा कि... कर्जा माफ
हुआ या नहीं हुआ ये आप पर निर्भर होता है... यदि आंदोलन से कर्जा माफ हो गया तो
किसान को थोड़ा-सा दिलासा (तसल्ली) मिलता है। लेकिन उससे वह समस्याओं से पूर्णतः
मुक्ति नहीं पाता है वह... फिर से लेना पडता है, फिर से घर चलाना पडता है... नहीं हुआ तो उसे देना ही पड़ेगा
न।
पांडुरंगजी आपको
क्या लगता है? जो आंदोलन हो रहे
हैं क्या वे आपको पता हैं... आप कभी उसमें हिस्सा लिए हैं...
किसान – हाँ, हो रहे हैं। ... हम कभी नहीं गए हैं... हमें कभी समय ही नहीं मिलता है। जानवर
को चराना आदि काम होते हैं... जानवर भूखे रह जाने कि हमें चिंता होती है...
क्या सरकार के
द्वारा किया जानेवाला ऋणमाफी किसान समस्या का स्थायी हल है?
किसान – उसमें सब कुछ अच्छा ही है।
किसान – सहाब इस बार अकाल पड़ा है, अभी आप कर्जा वसूलने आए हैं, आपसे कर्जा लिया हुआ है, वह चुकाना योग्य है... व्यवहार है करना सही है... समझिए
हमारी खेती में उत्पादन ही नहीं हुआ है... हमारे मन में बहुत इच्छा है... आप सक्ती
से वसूलेंगे तो हम कहाँ से देंगे... तब यदि कर्जा माफ हुआ तो किसान को उतनी ही
तसल्ली मिलती है... ये कोई अंतिम या स्थायी पर्याय या समाधान नहीं है।... अभी यदि
कर्जा माफ हुआ तो अगली फसल के लिए किसान किसी से कर्जा लेकर बीज आदि खरीद सकता
है... समस्या का अस्थायी हल होगा।
क्या आप अपनी
संतानों को किसान बनाना चाहेंगे? या सरकारी नौकरी
करते हुए देखने की इच्छा है?
किसान – सहाब किसान बनने की अभी के लड़कों की इच्छा ही
नहीं है, वे किसानी कर ही नहीं
सकते हैं। क्योंकि हम किसानी करके भी विकास नहीं कर पाएँ हैं, इसकी हमारे बेटों को जानकारी है। किंतु उन्हें
इतना अवश्य पता है कि घर के पूर्वज हमारी पढ़ाई के लिए कहीं से भी क्यों न हो मदद
कर रहे हैं...।
आपका सही है
किंतु आपको ऐसा लगता है क्या कि उसे किसान ही बनना चाहिए।
किसान – नहीं, नहीं... हमारे उत्पादन से देखा जाए तो वे किसान बने ऐसा हमें कभी नहीं लगता
है।... क्योंकि हमारे खुद का ही उसमें निर्वाह नहीं होता है... और वे (किसानी) कर
भी नहीं सकते हैं और हमारी इच्छा भी नहीं है।... कहीं भी कोई व्यवसाय क्यों न करें,
उनका स्वयं का भरण-पोषण हो, वे स्वयं के पैरों पर खड़े हो जाए यही हमारी
इच्छा है।...
पांडुरंगजी आपको
क्या लगता है? जैसे डॉक्टर को
लगता है कि मेरा बेटा भी डॉक्टर ही बने... वैसे आप किसान है, जीवन भर आपने किसानी की है और अपने बेटों को भी
अपने साथ किसानी ही करनी चाहिए, ऐसे आपको लगता है
क्या?
किसान – अब के लड़के क्या किसानी करेंगे!... नहीं,
किसानी में कुछ रहा ही नहीं है।...
आप अपने बेटे को
पढ़ा रहे हैं, कभी उसे रुपये
भेजने में कुछ अड़चन आती है और आप भेज नहीं पाते हैं तब इसपर उसकी क्या
प्रतिक्रिया होती है?
किसान - बेटे की प्रतिक्रिया क्या सहाब... वे भी इस तरह
से सोच-विचार करने वाले हैं... वे अपने घर का, माता-पिता का विचार करते हैं कि हम यहाँ हैं, सारे परिवार का पालन-पोषन करके... एक वर्ष का
अपने घर का कितना उत्पादन है... इस आधार पर वे सोचते हैं अपेक्षा करते हैं कि एकाद
कोई.....
आपके बच्चों में
क्या ये सब जानने की शक्ति है? कि सद्यपरिस्थिति
क्या है, अपने माता-पिता की क्या
दिक्कतें हैं...
किसान – हाँ, है। ऐसे कैसे हो सकता है? कुछ लड़कों के
पास होती है। कुछ सोचने वाले बच्चें सोच सकते हैं और कुछ वैसे भी होते हैं... सभी
को समान कैसे कह सकते हैं?...
आप अभी खेती बेच
कर कुछ और उद्योग करना चाहेंगे तो आपकी खेती को क्या भाव (कीमत) मिल सकता है?
किसान – खेती कौन लेगा सहाब अभी! … लेगा तो भी हमारी मजबूरी का फायदा उठाएगा...
उतना भाव नहीं मिलेगा। आज नांदेड जैसे शहरों के पास में एक एकड़ जमीन 50-50 लाख, 70 लाख रुपये में बिकती है... आज उधर की एक एकड़ जमीन 70 लाख रुपये में बेचकर, यहाँ 4 लाख 3 लाख में 10 एकड़ जमींन लेकर मनुष्य ऐशोआराम कर सकता है, बचे हुए रुपयों में... कहाँ लगायेंगे वो...
पश्चिम
महाराष्ट्र के किसानों से आप अपनी तुलना कैसे करेंगे?
किसान – उनके यहाँ उत्पन्न बहुत ज्यादा मात्रा में होता
है सहाब।
इसका क्या कारण
है?
किसान – कारण क्या है... कि कर्ज माफी, कर्ज माफी जिसे कहा गया है, अपने यहाँ कहा गया है कि एक हेक्टर से अधिक
जमीन धारकों का कर्जा माफ नहीं होगा। जिस पश्चिम महाराष्ट्र में एक-एक एकड़ पर 25-25 लाख, 50-50 लाख रुपये कर्जा दिया हुआ है और हमारे यहाँ दे-देकर एक लाख
से कम ही कर्जा दिया गया है। हमारे यहाँ बिना पानी की जमीन को 20 से 30 हजार और पानी युक्त खेती के लिए 50-50 हजार ही कर्जा दिया जाता है।
इस तफ़ावत का
क्या कारण हो सकता है, आपको क्या लगता
है? इसका मतलब उनसे ये उम्मीद
है कि कर्जा चुका सकते हैं इसलिए 50-50 लाख कर्जा दिया गया है...
किसान – उनका अलग होता है... फल-फलादि से युक्त खेती है,
ये है वो है... पश्चिम महाराष्ट्र में उत्पादन
अधिक है। उसपर.... भिन्न-भिन्न फसलें ली जाती हैं। वे जो फसल लेते हैं, हमारे यहाँ वो फसल आती नहीं है। उनके यहाँ सारी
सुविधाएँ हैं। इसलिए उस बाग़ाईत माल को भाव (कीमत) होने के कारण उस हिसाब से
उन्हें कर्जा देते हैं, उधर के उन लोगों
को। हमारे यहाँ उत्पन्न नहीं है। तब एक एकड़ पर 25-30 हजार रुपये ही कर्जा देते हैं, उससे अधिक नहीं देते हैं हमारे यहाँ। तब उससे क्या हो सकता
है। एक खाद का थैला (50किलो ग्राम) एक
हजार रुपये का हुआ है।
आप पश्चिम
महाराष्ट्र से इस प्रकार तुलना करते हैं, विदर्भ से आप कैसी तुलना करेंगे? विदर्भ के लोग कहते हैं कि हम मराठवाड़ा के लोगों से भी अधिक पिछड़े हैं। उनसे
आप अपनी कैसी तुलना करते हैं? उनसे आप अच्छे
हैं या उनकी तुलना में आपकी अवस्था विकट है?
किसान – सहाब नहीं भी होगी तो समाधान मान लेना पड़ता
है... क्योंकि पश्चिम महाराष्ट्र की अपेक्षा हमारा उत्पन्न कम हैं अर्थात् हमारी
पद्धति से हम अच्छे हैं ऐसा समझने में कोई दिक्कत नहीं है।... विदर्भ के लोगों को
हमसे पिछड़े कैसे कहा जा सकता है सहाब... फसल एवं उत्पादन के संबंध में कम-अधिक
हमारे जैसी ही अवस्था है उनकी भी। किसी किसान को जैसे यहाँ मैं ही हूँ, मेरे पड़ोस में दूसरा किसान है। मेरे खेत में 4 क्विंटल ही कपास का उत्पादन होता है और दूसरे
किसान के खेत में 10 क्विंटल कपास का
उत्पादन होता है....
अर्थात् पश्चिम
महाराष्ट्र, विदर्भ और
मराठवाड़ा सब यहीं पर हैं।
किसान –
समाधान मान लेना पड़ता है सहाब।... जो है सो...
जैसे कहा गया है कि ‘ठेवीले आहे जैसे
तैसेची रहावे’ (जैसे रखा गया है
वैसे ही रहना चाहिए)। इस प्रकार समाधान रहना ठीक होगा। हमारे बीच यहाँ आधुनिक खेती
करने वाले किसान भी उपस्थित हैं... आप इनसे पूछ सकते हैं...
आरले श्रीकांत –
आप अपना परिचय दीजिए।
किसान – मेरा नाम रामराव बाबुराव सावंत है। मेरी उम्र 30 वर्ष है। थोड़ी-बहुत आधुनिक खेती करने का
प्रयास करता हूँ। ठीबक सिंचन, गादी वाफनी,
थोड़ी-बहुत फूलों की खेती है।
आपको कितनी एकड़
जमीन है?
किसान – सर हमारी 20 एकड़ जमीन है।
क्या आप आधुनिक
पद्धति से खेती करते हैं?
किसान – हाँ, आधुनिक में थोड़ी-बहुत हल्दी की खेती ठीबक सिंचन से करते हैं, कुछ फूलों की खेती है, कुछ धान की...
आप एक वर्ष में
अलग-अलग ऐसे कितने फसल पैदा कर लेते हैं ?
किसान – एक ही समय में अब बहुत सारे लेते हैं। अब कपास,
सोयाबीन, उड़द, मूँग, हल्दी, फूल, धान आदि सब कुछ लेने का
प्रयास करते हैं। कुछ मौनसून पर आधारित हैं और कुछ बाग़ाईत से लेते हैं। हमारी
जमीन टुकड़ों में विभाजित है, एकत्र नहीं है।
इस वजह से बाग़ाईत खेती करने में बाधा उत्पन्न हो रही है। यहाँ ध्यान देना,
वहाँ ध्यान देना... थोड़ा त्रासदायक काम है।
आपके यहाँ पानी
की क्या व्यवस्था है?
किसान – हमारे यहाँ कॅनल है, बोरवेल है और कुआँ भी है। कुएँ में पानी कम होने के कारण
पहले बोरवेल का पानी कुएँ में छोड़ते हैं उसके बाद ठीबक सिंचन से पानी दिया जाता
है। इससे फसल को जितना पानी चाहिए होता है उतना ही दिया जाता है, पानी की बरबादी नहीं होती है।
आपके पास खेती
करने के साधन किस प्रकार के हैं? अर्थात् ट्रेक्टर
है या बैल आदि।
किसान – हमारे पास बैलों की जोड़ी ही है।
आपको क्या लगता
है कि ट्रेक्टर से योग्य खेती की जा सकती है बैलों से?
किसान – ऐसा है सहाब कि खेती करने के लिए ट्रेक्टर भी
जरूरी है परंतु ट्रेक्टर के उपयोग के लिए जमीन भी वैसी चाहिए न। जमीन अधिक भी होनी
चाहिए और बारीश अधिक होने से खेतों में ट्रेक्टर नहीं जा सकता है। ऐसे में बैलों
का ही उपयोग करना पड़ता है। बैल अधिक उपयोगी है, भले ही समय अधिक लगता हो।
क्या आप भी कर्जा
लेकर खेती करते हैं?
किसान – नहीं, हम अभी तक तो कर्जा नहीं लिए हैं।
क्या आप दूसरे
किसान को मदद के रूप में कर्जा देते हैं?
किसान – हाँ, मदद के रूप में देते हैं। हमारे पास दुग्ध-व्यवसाय होने के कारण देते हैं। हम
खेती के साथ-साथ दुग्ध-व्यवसाय भी करते हैं।
दुग्ध-व्यवसाय के लिए आपको शासन की ओर से कुछ
मदद अर्थात् स्किम, सब्सिडी आदि मिला
है क्या?
किसान– नहीं, अभी तक तो कोई स्किम नहीं लिए हैं।...
आपकी शासन से ऐसी
कौन-सी इच्छाएँ हैं कि जिन्हें वह पूर्ण कर सके? शासन आपके लिए कौन-
कौनसी सुविधाएँ दे, जो सीधे आप तक पहुँच सके।
किसान – शासन सबसे पहले बिज़ली की और पानी की व्यवस्था
दे, जो मूलभूत आवश्यकताएँ हैं
खेती की। क्योंकि पानी रहने से सीजन बढ़ सकता है... मनुष्य का उत्साह बढ़ता है और
शासन खेती के उत्पादन (माल) को योग्य भाव (दर) देना चाहिए।... ऐसा है कि आज किसान
उत्पन्न निकालता है परंतु उसके उत्पादित माल को भाव नहीं मिलता है न। उस उत्पादन
को योग्य भाव मिलना चाहिए ऐसी हमारी इच्छा है।
किसान – आप उत्पादित माल की बिक्रि कहाँ करते हैं?
यानी छोटे व्यापारियों के पास ले जाते हैं या
बड़े व्यापारियों के पास।
किसान – खेती से प्राप्त उत्पादित माल को बिक्रि के लिए
हम बाज़ारपेठ में छोटे व्यापारियों के पास ले जाते हैं। व्यापारी छोटा हो या बड़ा
भाव तो वही होता है। एक किसान का उत्पादित माल बहुत कम होता है इसलिए वह छोटे
व्यापारी के पास ले जाता है। बड़े व्यापारी के पास जाने के लिए उत्पादित माल अधिक
चाहिए होता है। सभी किसानों का थोड़ा-थोड़ा उत्पादित माल जमा करके इकट्ठे ले जाने
का भी प्रयास करेंगे तो सभी किसान कभी तैयार नहीं होंगे क्योंकि किसी किसान को
रुपयों की अतिआवश्यकता होती है। तब वह कहता है मैं कहाँ आपकी राह ताकते बैठूँ,
मुझे रुपयों की अड़चन है...
किसान – ग्राम पंचायत के माध्यम से प्रत्येक गाँव के
लिए तालाब, मछली पालन, दुग्ध-व्यवसाय, जानवरों को पानी पीने के लिए हौद आदि के लिए प्रति वर्ष शासन
की ओर से एक ग्रामपंचायत के लिए 3 लाख रुपये दिए
जाते हैं। इसके संबंध में आपको कोई जानकारी है क्या?
किसान – कुछ भी जानकारी नहीं है।
किसान – उस पहाड़ी इलाके में मेरे ही खेत में गड्ढे
खोदकर 2-3 वर्ष हुए स्किम उठा रहे
हैं कुछ लोग, ... मैंने बंद करवाया था। मैंने कहा मैं इस जमीन का मालिक हूँ,
मुझे बिना पूछे आप यहाँ गड्ढे क्यों खोद रहे
हैं? हमें इसकी कोई सूचना भी
नहीं दी गयी थी कि ऐसा किया जाएगा या किया जा रहा है... इसके रुपये भी वे लोग लेकर
बिनधास्त खा गए।... मैं मालिक हूँ न उस खेत का, कम-से-कम मुझे तो पूछना चाहिए न।...
आप सभी का
बहुत-बहुत धन्यवाद! आपने अपना बहुमूल्य समय देकर महाराष्ट्र के किसानों की स्थिति
की जानकारी दी। आपसे रू-ब-रू होकर किसानों की स्थिति के बारे में जानना हमारे लिए
एक विशेष महत्वपूर्ण कार्य है।
(उपर्युक्त बातचीत
से स्पष्ट होता है कि माहाराष्ट्र का किसान इतनी सारी समस्याओं से लढ़ते हुए भी
हार न मानकर जो है उसी में समाधान मान लेता है। वह दूसरों से कभी अपनी तुलना नहीं
करता है। परंतु जब उसकी सहनशीलता का बाँध टूटता है तब वह सरकार में स्थित बापू के
चेलों से किस प्रकार गुहार लगाता है, ये हमने ऊपर देखा है। गुहार लगाकर यदि कुछ नहीं होता है तो किसान अपने गले में
फाँसी का फँदा लगाकर स्वयं को ही मिटा लेता है)
“उधर खेती की उपज
से मिले माल
और बाज़ार भाव से
मिली उसकी कीमत को
बायें पलड़े में
डाला तो पलड़ा
चुनने से बची
कपास की तरह
हलका होकर अधर
में लटक गया।
वैश्वीकरण के
शक्तिशाली चुंबक ने
बिगाड़ दिया
पलड़ों का संतुलन
और
उसी में खो गया
किसान का वजूद
उत्पाद को सही
मूल्य देकर
और उत्पादन का
खर्च घटाकर
शायद सरकार कम कर
सकती थी
यह अंतर
लेकिन नहीं ...
आखिर किसान ने ही
ढूँढ लिया इस
प्रश्न का उत्तर
बायें पलड़े के
हुक में
फाँसी का फँदा
डालकर।”
(कवि- प्रकाश किनगावकर,
‘उत्तर’ – कविता से)
जगत् का अन्नदाता, पोषक किसान ही जब भूखा
रहने लगता है तब इससे दयनीय स्थिति और क्या हो सकती है। उसके सामने फाँसी का फँदा
डाल लेने वाले उत्तर से बेहतर उत्तर क्या हो सकता है?
आरले श्रीकांत और
बोईनवाड कृष्णा
हिंदी विभाग,
अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय,
हैदराबाद–500 007
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