त्रैमासिक ई-पत्रिका
अपनी माटी
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
वर्ष-4,अंक-25 (अप्रैल-सितम्बर,2017)
किसान विशेषांक
कृषक जीवन की
त्रासद महागाथा:किसान का कोड़ा/ डा.योगेश राव
इस भयावह दौर में
जब किसान और मजदूर मरने के लिए विवश हो रहे हों या मारे जा रहे हों तब हमें जोतीराव फुले की अमर कृति ‘किसान का कोड़ा’ का उल्लेख करना बेहद प्रसांगिक हो जाता है । आधुनिक भारत की
सामाजिक–सांस्कृतिक क्रांति के
प्रणेता राष्ट्रपिता जोतीराव फुले की रचना ‘किसान का कोड़ा’ (कल्टीवेटर्स व्हिप कोर्ड) एक महत्त्वपूर्ण कृति है I प्रकाशन के एक सौ
चौतीसवें वर्ष में इस कृति का पुनर्पाठ भारतीय समाज की उसकी मूलभूत सच्चाइयों से
रूबरू कराना है, जो अभी तक हमारी
अपर्याप्त दृष्टि के चलते ओझल रही और काल के गाल में समाने से बच गयी I
जोतीराव फुले ने
उन्नीसवीं शताब्दी में किसानों और मजदूरों की इस दीन-हीन अवस्था के कारणों को
जाँचाI उन्होंने इन कारणों को
उजागर करके तथा शूद्र किसानों के रक्षार्थ एवं उनकी समस्या की ओर ध्यान आकर्षित
करने के लिए सन् 1882-1883 में इस पुस्तक
की रचना कीI यह किताब 18 जुलाई 1883 को लिखकर पूरी हुई, परन्तु उनके जीवित रहते उनकी यह पुस्तक प्रकाशित न हो सकी I
पुस्तक के भाग जैसे–जैसे लिखकर पूर्ण होते जाते वैसे-वैसे जोतीराव पूर्ण हो
चुके अध्यायों का जाहीन वाचन करते I मुंबई, पूना, ठाणे, जुन्नर, ओतूर, हडपसर, बंगड़ी तथा माल के कुरुल नामक गांव में भी उन्होंने इस किताब का वाचन किया था I
बड़ौदा के महाराज
सयाजीराव गायकवाड के समक्ष जब जोतीराव ने इस किताब का वाचन किया, तो महाराज ने इसे बड़ा ध्यानपूर्वक सुना और
क्रांतिकारी फुले को सम्मानित किया I जोतीराव ने ‘किसान का कोड़ा’
पुस्तक की जो हस्तलिखित प्रति तत्कालीन भारत के
गवर्नर जनरल सर फ्रेडरिक हैमिल्टन को कलकत्ता भिजवाई थी I यहाँ से जाते समय इस किताब के महत्व को समझते हुए ब्रिटिशों
ने इस पुस्तक की प्रति कलकत्ता के राष्ट्रीय ग्रंथालय में सुरक्षित रखी थी I
महान चित्रकार धनंजय कीर तथा एस. जी मालशे ने
यहीं से इस पुस्तक की माइक्रो फिल्म प्राप्त करके 1967 में सर्वप्रथम इसे प्रकाशित कियाI
इस पुस्तक के
अनुवादक संजय गजभिए इस पुस्तक के सन्दर्भ में अपने अनुवादकीय में लिखते हैं : “इस किताब को जुल्म करने तथा जुल्म सहने वाले
सभी लोगों को पढना चाहिए I जुल्म करने वालों
को इस किताब के पढ़ने से समझ में आ जाएगा कि वे अपने ही समान रक्त-मांस के मानव के
साथ कितनी अमानवीयता के साथ बर्ताव करते हैं तथा जुल्म सहने वालों को भी पता चल
जाएगा कि वे वास्तव में गुलाम हैंI”1
जोतीराव फुले ने
इस ग्रन्थ की भूमिका में लिखा है : “यह ग्रंथ मैने अंग्रेज़ी, संस्कृत तथा
प्राकृत के कई ग्रंथो और वर्तमान अज्ञानी शुद्रातिशुद्रों की दयनीय स्थिति के आधार
पर लिखा है I शुद्र किसानों की
दुर्दशा के अनेक धार्मिक व राजनैतिक कारणों में से चंद कारणों की विवेचना करने के
उद्देश्य से यह रचना लिखी गई है I शूद्र किसान बनावटी व अत्याचारी हिन्दू धर्म,
सरकारी विभागों में ब्राह्मणों की भरमार एवं
भोगी-विलासी यूरोपियन सरकारी कर्मचारियों के कारण ब्राह्मण कर्मचारियों द्वारा
सताएं जाते रहेंI उनकी हालत आज भी
कमोबेश यही हैंI इस पुस्तक को
पढ़कर वे अपना बचाव कर सकें, इसी उद्देश्य से
इस पुस्तक का नाम ‘किसान का कोड़ा’
रखा गया हैI” 2
कोड़ा का मतलब है चाबुक, किसान कोड़े का प्रयोग तभी करता है जब बैल ठीक
से काम नहीं करता I पहले तो वह कोड़ा
उठाकर बैल को डराता धमकाता है और इस पर भी बैल काम न करे तो वह बैल की पीठ पर कोड़ा
लगाता है I तब अलसाया हुआ बैल तुरंत
ठीक से काम करने लगता है I जोतीराव ने
किसानों के अज्ञान का लाभ उठाकर उन्हें लूटने वाले, स्वयं चैन की बंशी बजानेवाले तथा मनगढंत, बेकार की कहानियां कहकर उन्हें ठगने वाले
वरिष्ठ वर्गों तथा सरकारी कर्मचारियों को कोड़े लगाये हैं I साथ ही अग्रेजों को भी आगाह किया है कि यदि वे किसानों का
शोषण बंद न करे, तो उन पर भी कोड़ा
चलाना पड़ेगा I
पुस्तक की प्रस्तावना में जोतीराव ने
शूद्रों में व्याप्त ‘अज्ञान’ फलस्वरूप उनका किस प्रकार से पतन हो गया I
इसका विशद विवेचन किया है, वे कहते हैं :
“विद्या बिन मति गयी, मति बिन नीति गयी I
नीति बिन गति गयी, गति बिन वित्त I
वित्त के आभाव में शूद्रों का पतन हुआ I”3
अर्थात सारे
अनर्थो का मूल अविद्या है I पुस्तक की भूमिका
में जोतीराव ने स्पष्ट किया है कि आज किसान के तीन प्रकार हैं - शूद्ध किसान
अर्थात कुर्मी (कुनबी), माली और गड़ेरिये I
तीन भेद होने का कारण यह है कि प्रारंभ में
किसानों में मूलतः खेती से ही जीवन निर्वाह करने वाले लोग, कुर्मी कहे जाने लगे I धीरे-धीरे जो किसान अपनी खेती संभालते हुए बागवानी करने लगे,
उन्हें माली कहा जाने लगा और फिर जो किसान खेती,
बागवानी दोनों करते हुए भेड़-बकरियां पालने लगे,
वे गड़ेरिया कहलायें I प्रारम्भ में कामों के आधार पर किसान के ये तीन वर्ग बने,
पर ये आज तीन पृथक जातियां हैंI इनमें आज शादी–ब्याह छोड़, खानपान आदि के
सारे व्यवहार होते हैं I इससे पता चलता हैं कि कुर्मी, माली और गड़ेरिया एक ही शूद्र किसान वंश से निकले थेI
बाद में इन तीनों जातियों के लोग अपना मूल धंधा
‘खेती’ को छोड़कर जीवन-निर्वाह के लिए अन्य धन्धे करने
लगें I इनमे से प्रायः अनपढ़–आस्तिक और थोड़े साहसी लोगों ने नंगे–भूखे रहने पर भी अपनी खेती को ही संभाले रखा I
पूर्णत: बेसहारे लोग गाँव छोड़कर, जिधर ठीक लगा उधर जाकर धंधा करने लगें I
कुछ चारे का तो कुछ लकड़ी का, कुछ कपड़े का, कुछ ठेके का कारोबार करने लगे और कुछ लिखने का काम पकड़कर,
अंत में पेंशन लेकर इठलाने लगें I इन लोगों ने इस तरह पैसे कमाएँ और जायदाद
खरीदीं I
पर इनके बाद
शिक्षा–विमुख इनके लापरवाह बच्चे
जल्द ही कंगाल होकर अपने पिता को कोसने लगेंI कितनों के पूर्वजों ने सिपाहीगिरी और समझदारी के बल पर
जागीरें बनाई थीं, इनाम आदि पाये थेI
कुछ तो शिंदे–होलकर जैसे राजा ही बन गये थे I पर आज अज्ञानी–निरक्षर होने से इनके वंशज अपनी–अपनी जागीरें और इनाम की अपनी जमीनें गिरवी रखकर या बेचकर कर्जदार बन गये हैं I
कितने तो अन्न के भी मोहताज़ हैं I बहुत से
इनामदारों और जागीरदारों के पूर्वजों ने कैसे–कैसे पराक्रम किये थे, कैसे–कैसे दुःख झेले
थे आदि की कल्पना भी नहीं हो सकती I वे बिन मेहनत के मिली जागीर पर, अज्ञानवश कुसंगति में पड़कर मौज–मस्ती और
दुर्वसनाओं में डूबे रहे I इस तरह विरले ही
जागीरदार और इनामदार बेकर्जदार मिलेंगे I आज जो इनके छोटे–मोटे राजघराने
(समस्थानिक) हैं, उन पर भले ही
कर्ज न हो, किन्तु उनकी आसपास के लोग
और ब्राह्मण कर्मचारी इतने स्वार्थी, धूर्त और चालक हैं कि वे इन राजघरानों को विद्या प्राप्ति का चस्का ही लगने
नहीं देते I इस कारण इन
राजघरानों के लोग अपने वैभव को खोकर ऐसा समझते हैं कि उनके पुरखों ने केवल उनके
मौज मस्ती के लिए ही राज्य बनाया थाI
अपनी पुस्तक के
पहले भाग में जोतीराव ने ब्राहाणों द्वारा किसानों का किस प्रकार शोषण किया है I
इसकी करुण कहानी सुनायी I वे कहते हैं कि ये ब्राहाण पुरोहित धर्म के नाम
पर इन निरक्षर शूद्र किसानों को सम्पूर्ण वर्ष भर बचपन से मृत्यु तक तथा
गर्भावस्था से लेकर तीर्थयात्रा तक किसी न किसी पाखंडी अन्तहीन कर्मकाण्डों में
उलझाकर रखते हैं और उनसे दान–दक्षिणा वसूल
करते रहते हैं I जो ब्राहाण
संस्कृत न जानने के कारण पुरोहित नहीं बन सकते वे साधु बन जाते हैं और इस निरक्षर
तथा निर्धन बहुजन समाज के अज्ञान पर अपनी आजीविका कमाते हैं I ब्रिटिश शासन में किसानों की दुर्गति का वर्णन
करते हुए जोतीराव ने अपनी पुस्तक में कहा कि, इन किसानों के पास अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए धन
नहीं है I उधर अंग्रेज़ अधिकारी अपना
सारा समय मौज-मस्ती में नष्ट करते हैं इसलिए वो इन किसानों की समस्यायों की ओर
ध्यान नहीं देतें I सरकारी कामकाज के
लिए वे उनके अधीन कार्यरत ब्राहाण अधिकारियों के परामर्श पर निर्भर रहते हैं I
किसानों के पास उनके परिवारों के भोजन के लिए न
तो पर्याप्त अन्न हैं और पहनने के लिए वस्त्र I किसान की कष्टमय स्थिति का वर्णन करते हुए जोतीराव ने लिखा
है :
“बदन पर लंगोटी I
दौड़ते हैं हल के पीछे
एक कमली के अलवा I
सोने को दूसरा कुछ नहीं स्त्रियों को
छाछ-कनियों से
भरते हैं जो पेट I वे धन्य हैं इस
संसार में
वस्त्रों की होती
हैं कमी I चिपकते हैं एक–दुसरे से
सरकारी पट्टी नेट
I साबका पड़ें तीन शिखावाले
से
ऋणपत्र लिखता है
ब्राहाणI निर्दय मारवाड़ी का भाट
आज्ञानी कुछ
समझता नहीं I पटवारी जो है
लिखता
वकील होता है
खर्चीला I न्यायाधीश को दया नहीं
जहाँ पाप–पुण्य कुछ नहीं I सब स्वार्थ के दादाभाई I”4
ब्राह्मण व
मारवाड़ी-साहूकार किस प्रकार निरक्षर किसानों का शोषण करते हैं इस सन्दर्भ में
जोतीराव आगे लिखते हैं : “उन्हीं दिनों
बहुत से ब्राह्मण व मारवाड़ी-साहूकार बिन भरोसे वाले निरक्षर किसानों से कहते हैं,
‘सरकारी कानून के कारण तुम्हें खेत गिरवी रखकर
हम कर्ज नहीं दे सकते I इसलिए यदि तुम अपने खेत हमारे नाम कर दो तो हम
तुम्हें दे दें I और कर्ज चुका
देने पर हम फिर तुम्हे तुम्हारे नाम करके खेत लौटा देंगे’ इस तरह वे कसमें खाकर बोलतें हैं I पर इन धार्मिक-अहिंसक साहूकारों से ये अनपढ़ भोले किसान अपने
खेत शायद ही वापस ले पाते हैं I”5
जोतीराव फुले
अपनी इस कृति में आर्यों का भारत पर आक्रमण और इसके परिणाम स्वरुप शूद्रों को
शिक्षा, संपत्ति और शस्त्र रखने
के अधिकारों से वंचित कर हजारों वर्षो की गुलामी में धकेल दिया I जिसका दु:खदायी परिणाम भारत देश की बहुसंख्य
जनता को सदियों तक गुलामी के रूप में भुगतना पड़ा, अगर यहाँ के देशवासियों को शस्त्र रखने का अधिकार दिया गया
होता तो ये देश कभी गुलाम न होता I जिसका प्रभावी
वर्णन जोतीराव फुले अपनी इस कृति में करते हैं वे कहते हैं: “यदि यह सत्य नहीं है, तो इंग्लैंड के टॉमस पेन व अमेरिका के जार्ज वाशिंगटन अपनी
वंशानुगत वीरता व् बुद्धिमानी की शेखी बघारने वाले राजा-महाराजाओं को कैसे
शर्मिंदा करते हैं? इनके अतरिक्त
बहुत से अनपढ़, काले सिपाही केवल
पेट के लिए या कोर्ट मार्शल के भय से काबुल या इजिप्त के जवांमर्दों का मुकाबला
करके युद्ध में अपनी जवांमर्दी दिखाते हैं I और इसी तरह
अमेरिका के समझदार विद्वानों में से पारकर और मेरियन जैसे लोगों ने किसान के घर
जन्म लेकर भी अपने देश के शत्रुओं से साहस और जीत के संकल्प के साथ युद्ध किया I
अत: बस यही सिद्ध होता है कि वीरता और कायरता
वंशानुगत न होकर प्रत्येक व्यक्ति के स्वाभाव के गुणों और उसके वातावरण पर निर्भर
है I”6
डॉ. बेंजमिन
फ्रेंकलिन व टॉमस पेन ने अपने देशवासियों के उद्धार के लिए जो कार्य किया, उसकी जोतीराव ने सराहना की है I उन्होंने लिखा है : “ब्राह्मणों ने अपना ज्ञान वेद अध्ययन तक ही सीमित रखा,
जिससे उनका युद्ध विद्या तथा विज्ञान से
सम्बंधित ज्ञान विकसित न हो सका I इससे वे दूरबीन
के प्रयोग से वंचित रहे I वे नहीं जानते थे
की दूरबीन की सहायता से अचूक हमला कैसे किया जाता हैI”7
ब्राहाणों को
संबोधित करते हुए जोतीराव ने लिखा है : ”यदि ब्राहाण सचमुच देश का उद्धार करना चाहते
हैं I तो उन्हें
जातिभेद तथा ऊँच-नीच की सीख देने वाले अपने धर्म की भर्त्सना करनी चाहिए और
जातिभेदों को समाप्त कर देना चाहिए जब तक सामाजिक समानता स्थापित नहीं हो जाती,
तब तक एकता नही हो सकती कुछ अल्प शिक्षित
शुद्रों को अपने पक्ष में कर लेने में कुछ ब्राहाणों को भले ही सफलता मिली हो,
लेकिन उन शूद्रों को सच्ची स्थिति का ज्ञान
होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा और वास्तविकता जान लेने पर अंत में उन्हें दुःख ही
होगा I”8
दूसरी तरफ किसानों द्वारा अपने बच्चों की
कम उम्र में शादी किये जाने पर उसके दुष्परिणामों से होने वाले हानि के लिए लताड़
लगायी है, वे कहते हैं: “कम उम्र में ब्याहे जाने वाले लड़के और लडकियों
की उम्र आने पर एक–दूसरे के रंग-रूप,
आचारण और स्वभाव अच्छे नहीं लगते और दोनों में
अनबन हो जाती है और कुछ नासमझ जवान लड़के अपनी जवान पत्नी को छोड़ देते हैं ये
परित्यक्त लड़कियां अपने पिता के घर ही उम्र बिता लेती हैं शेष ऐसी लावारिस लड़कियां
जीवन के थपेड़े खाते–खाते मर जाती
हैं। किसानों के माता-पिता बच्चों की राय लिए बिना ही बचपन में उनकी शादी कर देते
हैं इसलिए पत्नी न पसंद आने पर ऐसे लड़के दूसरा विवाह कर लेते हैं या किसी दूसरी
स्त्री को रख लेते हैं। वे अपराधी हैं,
मैं यह कह पाने में मुश्किल में हूँ I किन्तु चार–पांच शादियां कर लेने को कोई क्या कहेगा? मेरे विचार में
उन्हें पांचवी शादी कर लेनी चाहिए, क्योंकि तब उनकी
मौत पर उनके बच्चे उनके अंतिम संस्कार से मुक्त हो जायेंगे I”9
जोतीराव ने यह भी
सुझाव दिया है कि तमाशा (नौटंकी) करनेवालों को अश्लील गीत गाने की मनाही की जाये I
जोगनो, कलाबाज, नटनियों, मुरलियों (नांचकर भक्तिगीत गानेवालियाँ),
वेश्यायों की अलग बस्तियां हों I इससे किसानो की नई पीढ़ी तंदरुस्त और बलशाली
होगीI
किसानों के मृत
हो चुके खेतो को उपजाऊ बनाने हेतु तथा कृषि सुधारों के बारे में उनके विचार काफी
महत्वपूर्ण हैं : “हमारी रहम दिल
सरकार को चाहिए कि वह सभी किसानों को शिक्षा देने के साथ ही यूरोपियन किसानों के
सामान यंत्रो से खेती करने के ज्ञान होने तक सभी गोरों, मुसलमानों पर रोक लगा दें कि वे भारतीय गाय, बैल, बछडे, न काटें I वे इनकी जगह भेड़-बकरी मारकर खायें अथवा विदेशी
गाय-बैल लाकर, उन्हें मारकर
खायें I वर्ना यहाँ के किसानों को,
खेती के लिए पर्याप्त मात्रा में पशु नहीं मिल
सकेंगे I फिर गोबर आदि खाद की भी
कमी हो जाएगी, जिससे किसान और
सरकार दोनों को लाभ नहीं मिलेगा I पत्ते, फूल, मरे हुए कीड़े–मकोड़े व जानवर के
सड़े-गले सत्व ग्रीष्मकालीनी वर्षा से बर्बाद हो जाते हैं I इसलिए हमारी उद्दमी सरकार को चाहिए कि गोरे, काले सैनिकों और पुलिस विभाग के अन्य
कर्मचारियों की आवश्यकतानुसार मदद लेकर, छोटे गड्ढे–तालाब बनाकर,
इन सड़े-गले तत्वों को पानी के साथ खेतों में
पहुँचाए और शेष पानी को नदी में बहा दें I ”10
इसके अतिरिक्त
कृषि सम्बन्धी अन्य सुधारों में - हमारी सरकार जल-अनुमानकों से राज्य के सभी खेतों
का निरीक्षण करवाए और जहाँ-जहाँ मोटे चलाने लयाक पानी का अनुमान होगा, उन सभी जगहों को चिन्हित कर सम्बंधित गावों का
मानचित्र बनवाएं, किसानों को ऋण
मुक्त किया जाएँ, साथ ही उत्तम बीज,
हल, औजार देकर उन्हें प्रशिक्षित किये जाएँ, श्रावणमास में कृषि प्रदर्शनी लगायी जाएँ तथा कृषि को बढ़ावा
देने के लिए कृषि-विद्यालय स्थापित किये जाएँ I
इस ग्रन्थ के अंत में जोतीराव ने स्काटिश
मिशन और सरकारी संस्थाओं का कृतज्ञतापूर्वक उल्लेख किया है जिन्होंने उन्हें
मनुष्य के अधिकारों के बारे में ज्ञान दिलाया I जिन अंग्रेज सज्जनों ने उनकी सहायता दी, उनको उन्होंने धन्यवाद दिए हैं साथ ही उन्होंने
अंग्रेजी शासन को भी धन्यवाद दिया है जिसमें वे अपने विचार खुले रूप से और
निर्भयता के साथ प्रकट कर सकें I अंत में जोतीराव
ने प्रार्थना की है कि विधाता किसानों को उनके कठिन जीवन की प्रतीति कराए I
अस्तु: कहा जा सकता है कि जोतीराव फुले
द्वारा किसानों के जीवन से जुड़ी समस्यायों का लेखन आधुनिक भारत का सर्वप्रथम
बेहतरीन प्रयास था, जो बाद में आगे
चलकर साहित्यिक क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी मील का पत्थर साबित हुआ
जो आज भी हमारे लिए प्रेरणाश्रोत बना हुआ हैI
संदर्भ
1. किसान का कोड़ा: जोतीराव फुले, अनुवादक-संजय गजभिए, सम्यक प्रकाशन 32/3, पश्चिम पुरीं,नई दिल्ली, द्वतीय संस्करण-2012,
पृष्ठ-10
2. किसान का कोड़ा: जोतीराव फुले, अनुवादक-संजय गजभिए, सम्यक प्रकाशन 32/3, पश्चिम पुरीं, नई दिल्ली, द्वतीय संस्करण-2012,
पृष्ठ-13
3. किसान का कोड़ा: जोतीराव फुले, अनुवादक-संजय गजभिए, सम्यक प्रकाशन 32/3, पश्चिम पुरीं, नई दिल्ली, द्वतीय संस्करण-2012,
पृष्ठ-13
4. युगपुरुष महात्मा फुले : मुरलीधर जगताप,
महात्मा फुले चरित्र साधने प्रकाशन समिति,
द्वारा-उच्च व् तंत्र शिक्षा विभाग, महाराष्ट्र शासन, मंत्रालय मुंबई-400032, प्रथम संस्करण-11 मई 1993, पृष्ठ-168
5. किसान का कोड़ा : जोतीराव फुले, अनुवादक-संजय गजभिए, सम्यक प्रकाशन 32/3, पश्चिम पुरीं, नई दिल्ली, द्वतीय संस्करण-2012,
पृष्ठ-39
6. किसान का कोड़ा : जोतीराव फुले, अनुवादक-संजय गजभिए, सम्यक प्रकाशन 32/3, पश्चिम पुरीं, नई दिल्ली, द्वतीय संस्करण-2012,
पृष्ठ-43
7. युगपुरुष महात्मा फुले : मुरलीधर जगताप,
महात्मा फुले चरित्र साधने प्रकाशन समिति,
द्वारा-उच्च व् तंत्र शिक्षा विभाग, महाराष्ट्र शासन, मंत्रालय मुंबई-400032, प्रथम संस्करण-11 मई 1993, पृष्ठ-171-172
8. युगपुरुष महात्मा फुले : मुरलीधर जगताप,
महात्मा फुले चरित्र साधने प्रकाशन समिति,
द्वारा-उच्च व् तंत्र शिक्षा विभाग, महाराष्ट्र शासन, मंत्रालय मुंबई-400032, प्रथम संस्करण-11 मई 1993, पृष्ठ-172
9. किसान का कोड़ा : जोतीराव फुले, अनुवादक-संजय गजभिए, सम्यक प्रकाशन 32/3, पश्चिम पुरीं, नई दिल्ली, द्वतीय संस्करण-2012,
पृष्ठ-80
10. किसान का कोड़ा : जोतीराव फुले, अनुवादक-संजय गजभिए, सम्यक प्रकाशन 32/3, पश्चिम पुरीं, नई दिल्ली, द्वतीय संस्करण-2012,
पृष्ठ-90
डॉ.योगेश राव
6/666,विकास नगर,लखनऊ,मो.-09452732748, ई-मेल yogesh2011rao@gimail.com
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