तुलसी के राम - आधुनिक
संदर्भों में
तुलसी किसी परिचय के मोहताज नहीं....... उनकी ख्याति सदियों से भारतीयों, प्रवासी भारतीयों एवं विदेशों में दूर दूर तक है। एक कालजयी व्यक्तित्व के रूप में वे अमर हैं। उनकी रचनाओं को पढ़ने समझने वाला बहुत बड़ा वर्ग भारतीय परिवेश में वह है जो भक्ति रस में आकंठ निमग्न हो उनकी चैपाइयों को हृदय की गहराइयों तक आत्मसात् करने को आतुर रहता है। सदियों से रामकथा वाचन की लोकश्रुत शैली ने रामकथा को लोकप्रसिद्धि के नये आयाम प्रदान किए हैं। राम कथा को कहने सुनने की बहुविध प्रणालियों ने नित्य नए नए प्रयोग कर राम कथा को जनमानस के लिये अधिक रूचिकर बनाए जाने के प्रयास किये और राम-महिमा, राम-नाम सुमिरन को जन साधरण के बीच लोकप्रिय बनाने पर बल दिया। कहना आवश्यक होगा कि ये सभी प्रयास लोकरुचि को ध्यान में रखते हुए भक्त प्रेमियों को राम कथा से जोड़े जाने के प्रयास थे। भक्त कवि तुलसी ने ‘सीय राम मय सब जानी करउं प्रणाम जोरि जुग पानी’ कहते हुए समस्तजग में सीता राम के दर्शन किए उन्हीं की लीला का गुणगान किया। राम कथा को सरल ढंग से कहने की उनकी अनुठी कला ने वाल्मीकी रामायण’ से भी अधिक ख्याति अर्जित की।
भक्तिकाल में कबीर के विद्रोही तेवर जिस प्रकार से सामाजिक ताने बाने में समाए
विकारों, विकृतियों पर तीखेप्रहार
कर रहे थे तुलसी दास की रचनाएं अत्यंत सरल शालीनता पूर्वक रामकथा के महात्म्य के
माध्यम से भारतीय समाज के संस्कारों का पोषण करती है। नैतिक मूल्यों की स्थापना
धर्म-पालन, आचार-विचार शुद्धता, सामाजिक सम्बन्धों की व्याख्या का आदर्श रूप
जिस प्रकार से तुलसीदास ने अपने काव्यों में चित्रित किया है वैसा अन्यत्र दुर्लभ
है। उनकी पहचान एक कवि के रूप में कदापि नहीं की जा सकती। वे राम भक्त हैं, उन्हें भक्त कवि के रूप में साहित्यिक
वैशिष्ट्य प्रदान करने के निमित्त इतिहासकारों ने विधिवत रूप से उन्हें बौद्धिक
वर्ग में नए नए विमर्श रचने और उनके काव्य का गहन अध्ययन करने, शोध के माध्यमें से नए नए अर्थों को जानने के
अवसर प्रदान किए हैं। ‘हरि अनन्त हरिकथा अनन्ता’ की भांति आज भी बुद्धिवेता रामचरितमानस, ‘विनय पत्रिका’, ‘‘दोहावली,
‘कवितावली आदि रचनाओं
के अर्थ प्रयोजनों पर एक राय बनाने में विफल रहे हैं।
तुलसी का काव्य भरतीय जनमानस के लिये धरोहर ‘स्वरूप अनमोल हैं। ‘रामचरितमानस’
अपने कृतित्व के
रूप में उनकी ‘अमर’ कृति है। लोक कल्याणकारी कथा के रूप में राम
चरित्र-गाथा का बखान करने वाली यह रचना अपने रचनाकाल के 500 वर्षों के पश्चात् भी सतत् लोकप्रिय बनी हुई है निश्चय ही
यह साधारण कवि की साधारण रचना नहीं हो सकती। तुलसीदास ने लोकमंगल की कामना से
प्रेरित हो ‘सर्वहिताय सर्वसुखाय’ राम कथा का प्रचार किया। तुलसी के राम घट
घटवासी हैं, भवसागर से पार उतारने
वाले हैं वे मर्यादा पुरुषोत्तम है,
धर्म के मार्ग पर
चलते हुए समाज के कल्याण के लिये सदैव तत्पर रहने वाले हैं, तुलसी का सम्पूर्ण काव्य राममय है! सर्वत्र
प्रभु के दर्शनों की पिपासा है् धर्म अर्थ मोक्ष के निमित्त राम कथा-संप्रेषण के
कारणों पर भी विचार किया गया हैं सगुण साकार रूप में राम और रामभक्त प्रेमियों को
भक्ति की रस-गंगा में आनन्द प्रदान कराते हुए तुलसी ने साधन और साध्य की एकरूपता
पर बल दिया है। राम अलौकिक शक्ति के पर्याय हैं। दिव्य शक्ति सम्पन्न राम का
पृथ्वी पर अवतरण प्रयोजन सिद्ध हैं। संतों और पवित्र हृदयवालों की रक्षा के
निमित्त अवतरित होकर वे कौतुक लीलाएं करते हैं, कौतुक उन्हें प्रिय है तुलसीदास अनेक, स्थलों पर उनके लिये ‘कौतुक निध कृपाल भगवाना’ का उल्लेख करते हैं। सीता स्वयंवर के लिये धनुष भंग की रचना
उनके कौतुक प्रेम को दर्शाती है। लक्ष्मण धनुष भंग में सक्षम होते हुए भी राम से
निवेदन करते हैं। ‘‘कौतुक करो बिलोकिअ सोउफ।’’ अर्थात खेल तमाशा दिखाना हो मैं भी दिखा सकता
हूं पर इस प्रतिज्ञा को पूरा करना आपके प्रण के लिए अनिवार्य है सो आप कौतुक करें।’’ राम परमात्मा के स्वरूप है, वे अलौकिक क्रियाएं करने में समर्थ हैं पर
रामचरितमानस के राम साधारण मनुष्यों की भांति लीलाएं भी करते हैं- वे संकोची हैं, गुरुवन्दन कर उन्हें श्रेष्ठता प्रदान करते हैं, माता पिता के लिये आज्ञाकारी पुत्र हैं, अनुजों के लिये सहोदर भ्राता हैं, एकव्रतधारी पति हैं, पत्नी वियोग में विलाप करते हैं और वानर-मित्र बन ईश्वर और
भक्त का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करते हैं।
राम के लोक रंजक मर्यादा पुरुषोत्तम रूप का प्रस्तुत करने में तुलसी का कोई
सानी नहीं। राम भक्ति से सरोबार तुलसी के लिये-
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप
किए चरित्र पावन परम, प्रकृत नर अनुरूप
अर्थात् राम अपनी भक्ति-प्रदर्शन के लिये भक्तों की रक्षा के लिए न जाने किस
किस रूप में अवतरित होते हैं उनका चरित संसार को सुख प्रदान करने वाला है, कलियुग के समस्त दोषों से मुक्ति प्रदान करने
वाला है। स्नेह आत्मीयता, भक्त वत्सलता, सद्भाव और प्रेम की ‘‘अद्भुत मिसाल हैं - राम’, प्रेम उनसे जुड़ने और जोड़ने का साधन है। राममय बनने और उनके
महात्म्य को समझने के लिये-
रामहिं केवल राम पिआरा
जानि लेउ जो जान निहारा।
जो राम कथा सुनता है, पढ़ता है, सुनाता है वह स्वयं राममय हो जाता है।
रामकथा गायन के माध्यम से राम नाम सुमिरन करने की एक लम्बी परम्परा रही है।
सदियों से भारतीय जनसमाज राम कथा के सर्वोपरि आधार स्तम्भ रामचरितमानस और उसके
रचनाकार तुलसीदास से सम्बद्ध रहा है। विदेशों में प्रवासी भारतीयों ने भी इस क्रम
को आज तक बनाए रखा हैं पारिवारिक उत्सव हो मांगलिक कारज, व्यापार वृद्धि, नए कार्य का श्री गणेश राम चरितमानस अभिन्न रूप से चिरसाथी के रूप में
सर्वप्रथम उपस्थित रहा है। गांव- देहात में राम कथा वाचन की दिल को छू लेने वाली
प्रस्तुतियाँ हैं और ग्रामीण समाज रामचरितमानस के माध्यम से उनका चिर सिहचर! स्वर
लहरियों, स्थानीय लोकधुनों अपनी
रुचि-वैशिष्ट्य प्रस्तुतियों से राम कथा कहने-बाँचने और उस असीम सुख से लाभान्वित
होने के अपने-अपने अंदाज हैं। इसे तुलसी की विशिष्टता ही माना जाए कि अलग-अलग
राज्यों-प्रांतों-कस्बों में रहने वाले जनसमूह तुलसी को अपने ही समकक्ष मान अपने
प्रिय रचनाकार की रचना को घर-घर में सम्मानपूर्वक स्थापित कर गौरवान्वित होते हैं।
गीता प्रेस ने राम-कथा विस्तार के महत् लक्ष्य’ को निस्वार्थ भाव से आत्मसात् किया। न्यूनतम लागत में
रामचरित मानस का प्रचार प्रसार करते हुए व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के दौर में भी
विज्ञापनों के अभाव में इस निष्काम कार्य को पूर्ण करने में वे कृत संकल्प है।
तुलसी और उनकी रामचरितमानस मनुष्य के उत्कर्ष का गान है। प्रत्येक काण्ड का
अपना वैशिष्ट्य है। ज्ञानी पुरुष इनके आध्यात्मिक महात्म्य को धारते हैं। स्वयं
तुलसीदास बार बार राम कथा को मानव-उद्धार की प्रेरक गाथा मान कर मोक्ष प्राप्ति का
अनमोल साधन बताते हैं।
राम कथा सत्कर्मों की ओर ले जाती है, भक्ति का भाव जगाती है। मानव जीवन का आदर्श रूप क्या हो सकता है। इसका विचार
जगाती है, धर्म का उदात्ता स्वरूप
क्या है? इसकी प्रेरणा देती है।
अयोध्या अर्थात जहां युद्ध नहीं;
स्वार्थ भावना
नहीं, विषमता नहीं वहीं अयोध्या
है। कैकेयी के मन में विषम जावों के जागृत होने पर स्वार्थ भाव पनपने की दशा में
राम अयोध्या से गमन कर जाते हैं। कलह बैर क्लेश अशांतिपूर्ण वातावरण से दूर राम मनुष्य को वैर मुक्त होकर शांतिपूर्ण जीवन
जीने और दूसरों के सुख के लिये अपने सुखों का त्याग करने की सीख प्रदान करता है।
राम कथा को आध्यात्मिक अर्थों में भी यदि हमारा आधुनिक मन ग्रहण न करे तो उसके
साधारण अर्थ भी उतने ही श्रेष्ठ हैं। राम को विष्णु अवतार न मान कर यदि उन्हे एक
साधारण मानव के रूप में स्वीकृत कर इस पूरी कथा के निहितार्थ आज के समय में अभी भी
प्रासंगिक माने जा सकते हैं! आधुनिक जीवन में टूटते परिवार, आपसी कलह, भाईयों के विद्वेष पूर्ण सम्बन्ध, प्रतिस्पर्धा ने न चाहते हुए भी अनेक समस्याओं को जनम दिया
है। मानसिक क्लेश, सम्बन्धों में दरार, पारस्परिक सौहार्द के अभाव में हम सब आहत हैं।
भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व-पारिवारिक एकता, समरसता, परोपकार संतोष और धर्म
परायणता’ न जाने कब से दिव्य
स्वप्न बन चुके हैं।
वासनाग्रस्त आधुनिक मन काम भोग के लिये आतुर है भौतिक सुखों की लालसाए नाना
प्रकार की इच्छाएं उसे व्याधियों की ओर प्रेरित करने में लगी हैं। वह अनेक प्रकार
की भय और चिन्ताओं से व्याकुल है। राम कथा के माध्यम से तुलसी ने वासनाओं के शमन
का मार्ग सुझाया है। राम को राज्य का लोभ नहीं! भाई के हितों की पूर्ति के लिये
सौतेली मां के वचन की खातिर वे वनगमन की ओर प्रस्थान करते हैं। पिता से प्राप्त
राज्य कैकेयी पुत्र भरत को अभीष्ट नहीं उनका मानना है- ‘‘यह राज्य मेरे भाई का है। मैं तो उनका सेवक हूं।’’ लक्ष्मण स्वयं राम के साथ अयोध्या का त्याग कर
देते हैं राम के चरणों की प्रतीति और सीता की सेवा उन्हें सबसे प्रिय है। वन में
राम प्रसन्न हैं, गूह राजा अपना राज्य राम
के चरणों में अर्पित करते हैं पर राम स्वीकार नहीं करते ऐसे भाव धारण करने की
प्रेरणा निश्चय ही मन में स्फुर्ति और संस्कार पैदा करने की क्षमता रखती है।
वासनाओं का नाश आवश्यक है, अज्ञान से मुक्ति
अपेक्षित है। ज्ञान शक्ति के विकास के लिये, सात्विक जीवन जीने की संजीवनी तुलसी प्रदान करते हैं।
तुलसी का काव्य हम में बोध जगाता है कि वासनाएं मन में खलल उत्पन्न करती हैं, प्रभु के साथ मैत्री भाव हमारी सर्वोपरि कामना
रहे-जीव ईश्वर के साथ मैत्रीभाव कर सकता हैं। एकान्त चिन्तन-मनन हमारे आत्मिक बल
को सुदृढ़ करता है। सत्कर्मों की ओर रुझान करके मनुष्य अपने जीवन को चिन्तामुक्त
बना सकता है। निष्काम और निस्वार्थ प्रेम, समस्त जीवों के प्रति स्नेह का भाव, परोपकार,
सद्जीवन को गति
प्रदान कर सकता है। भक्तिमय जीवन विकारों का नाश करने में सक्षम है।
वर्तमान समय तेजी से बदल रहा है निरंतर बदलती परिस्थितयों ने नये प्रकार की
समस्याओं को जन्म दिया है। सरल जीवन जीने की परिकल्पना आज दिव्य स्वप्न बन चुकी
है। हाईटैक जीवन शैली से अनेक प्रकार की व्याधियों - विकारों को जन्म दिया हैं
इससे सामाजिक संरचना में बदलाव,
सामाजिक -
पारिवारिक सम्बन्धों में आशातीत बदलाव देखें जा रहे हैं। महानगरीय जीवन शैली ही नहीं
ग्रामीण अंचल भी नए दौर की आबो-हवा से सुरक्षित नहीं रहा। ऐसे में आदर्श काव्य के
रूप में रामचरितमानस का पठन-पठन,
अध्ययन - अध्यापन
मानस - औषधि के रूप में लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
‘‘रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट
संचारि।’’ अर्थात- रामकथा का
सानिध्य गंगा स्नान तुल्य है। यह शारीरिक मानसिक एवं आचार-विचार परिष्कार की एक
व्यवस्थित योजना प्रस्तुत कर सात्विकभावों की ओर प्रेरित करती है। इस दृष्टि से आज
भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है।
‘प्रीति राम सो नीति पथ
चलिय राम रस प्रतीति’ आज भी शाश्वत है। अकंठ
डूबे भोग विलासी मन को श्रद्धा प्रेम और भक्ति के माध्यम से परिष्कृत करने में
तुलसी का भक्ति काव्य आज भी प्रासंगिक कहा जा सकता है। बुद्धिजीवी मन तर्कों
वितर्कों से जीवन की नयी परिपाटी गढ़ने में व्यस्त है, वैज्ञानिक पुष्टि से जीवन संचालन करने को उद्यत है। न चाहते
हुए भी सांसारिक सुखों की श्रेष्ठता से अभिभूत है, अनंत विषय विकारों से ग्रस्त है और स्वाभाविक जीवन की
परिपाटी को विस्मृत कर रहा है। मानव व्यवहार, जीवन शैली,
सामाजिक - जीवन
की व्याख्या ओर पारस्परिक सम्बन्धों का अनुशीलन जो तुलसी ने रामचरितमानस के माध्यम
से विवेचित किया है वह अनुकरणीय है - इनमें वर्णित विविध विषयक सूक्ति वाक्य
श्रेष्ठ जीवन का आधार बन सकते हैं।
‘हरि भक्ति रसामृत सिन्धु’ कहते हुए तुलसी ने बार बार राम शरण जाने का
अनुमोदन किया हैं ‘मंत्र तीर्थ ब्राह्मण, देव, औषधि या और गुरु में जैसी भावना होगी वैसा ही फल प्राप्त होगा- इस भाव से
तुलसी ने भक्तजनों के विवेक पर राम-सुमिरन का निर्णय छोड़ दिया हैं आधुनिक जीव अपनी
सुविधानुसार, विवेकानुसार जगत, माया, ब्रह्म मोक्ष, द्वैत-अद्वैत भावों की
किस प्रकार व्याख्या करता है यह उस पर निर्भर करता है। साधन स्पष्ट है- निष्काम
प्रेम, राम के प्रति समर्पण भाव
विषयी मन के भक्ति में लीन होने के सब मार्ग सुझाए गए हैं। सामाजिक राजैनतिक, धार्मिक अनुशीलन के साथ-साथ उनमें प्रगतिशील
तत्वों का समावेश चमत्कृत करने वाला है। सामाजिक प्रतिबद्धता और मूल्यबोध की
प्रवृत्ति तुलसी व उनके भक्ति काव्य को उदात्त स्वयप प्रदान करती है। सामाजिक
संस्कारों को जागृत करने, कुमति पर सुमति की विजय
दर्शान, कर्तव्यबोध कर्म की
प्रेरणा, देना, धर्म के मार्ग पर प्रशस्त करना ही इसका लक्ष्य
है-
‘‘जहां सुमति तहं सम्मति
नाना’’
‘‘जहं कुमति तहं विपति
निधाना।’’
इसीलिये राम ‘‘मंगल भवन अमंगलहारी’’ कहे गए हैं। उनका गान पाप का नाशक और शौर्य
शक्ति की स्थापना का काव्य है जो संघर्ष की प्रबल प्रेरणा से अनुप्राणित है। विषय
परिस्थितियों में कुंठाओं, तनाव पूर्ण माहौल में
सार्थक जीवन कैसे जिया जाए - रामचरितमानस इसका प्रेरक साहित्य हैं। प्रकृति और जीवन
की समरसता को स्थापित करने का आधार हैं राम! लोक चेतना उन्मुख करने में इसका कोई
सानी नहीं। रामकथा को सम्पूर्ण समाज के लिये ग्राह्य बना कर तुलसी अमर हो गए।
स्वान्त्सुखाय से समष्टि तक विस्तार देते हुए तुलसी ने इसे ‘बहता नीर’ बनाया है। युगीन संदर्भों से जुड़ते हुए रामकथा सदियों तक
अमर रह सकती है यदि सही प्रकार से भावी पीढ़ियों तक हम इसका महत्व प्रतिपादित कर
सकें तो! कार्टून चैनलों के माध्यम से आगामी पीढ़ियां जिस प्रकार से राम, रामकथा के पात्रों, राम -चरित का अनुशीलन आधे अधूरे ढंग से कर नहीं रही है!
सुविधापरस्त पीढ़ी भावी पीढ़ी से संवादहीनता का सम्बन्ध विकसित कर रही है तो राम-कथा
का विस्तार कैसे होगा.... कब तक होगा राम जानें। प्रश्न गम्भीर हैं यदि विचार नहीं
किया गया तो परिणाम गंभीर होंगे।
डॉ. मधु लोमेश, एसोसिएट प्रोफेसर, अदिति महाविद्यालय,दिल्ली विश्वविद्यालय)
अपनी माटी(ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-4,अंक-27 तुलसीदास विशेषांक (अप्रैल-जून,2018) चित्रांकन: श्रद्धा सोलंकी