लोक कथाएँ/ शिल्पी गुप्ता
भाई दूज एक ऐसा पर्व है जिसमे भाई-बहन के रिश्ते को उल्लास के
साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार भारत के बहुत से राज्यों में मनाया जाता है।
रक्षाबंधन के जैसे ही बहन भाई को रक्षा का बंधन बांधती है और भाई रक्षा करने का
वचन देता है।बिहार में यह त्यौहार थोड़ा अलग तरह से मनाते हैं। कहने को यह त्यौहार भाई बहन का है लेकिन इस दिन हर माँ
अपनी बेटी को भाई बहन के रिश्ते को मजबूत करने के लिए कहानी सुनाती है। इन कहानियों
में बहन की रक्षा सिर्फ भाई ही नहीं करता बल्कि बहन भी अपने भाई की रक्षा करती है।
शायद भाई को इन कहानियों के बारे में पता भी नही होता है पर हर माँ इन कहानियों के
जरिये यह जरुर समझाती है कि अगर भाई में रक्षा करने की क्षमता है, तो बहन भी अपने
भाइयों की रक्षा करती है।
सोन चिरैया
सात भाई थे, उनकी एक छोटी बहन थी, सोन चिरैया। सब उनसे बहुत
प्यार करते थे। सातों भाइयों का विवाह हो चुका था। एक दिन सातों भाई पैसा कमाने के
लिए परदेश जाने लगें। तब सभी भाइयों ने अपनी-अपनी पत्नी से सोन चिरैया का ख्याल
रखने को कहा। पत्नियों ने कहा “आप जाई सोन चिरैया बहुत बढ़िया से रहियां। सोना के
झूलवा में झूलियन और चंदिया के कटोरी में खाना खाहियाँ।” सातों भाई संतुष्ट होकर
परदेश चले गए। उनके जाने के साथ भाभियों ने सोन चिरैया पर अत्याचार शुरू कर दिया।
छोटी भाभी स्वभाव में अच्छी थी, इसलिए उसने सोन चिरैया को नहीं सताया।
एक दिन भाभियों ने चिरैया को चलनी देकर बोली इसमें पानी भरकर
लाएं। सोन चिरैया चलनी लेकर नदी के किनारे चली गई। जब उसने चलनी में पानी भरा, तब
सारा पानी चलनी से बाहर गिर गया। यह देख सोन चिरैया जोर-जोर से रोने लगी, तभी चीटियों
की एक पंक्ति उसके पास आ कर रुकी और पूछने लगी “सोन चिरैया, बहिन काहे रोअत हाउ।”
तब सोन चिरैया ने अपनी व्यथा सुनाई “हमार भाभियन चलनी में पानी भर के लाए के कहली
हई!” चीटियों को एक सुझाव आया और उन्होंने कहा कि वे हर छेद में बैठ जाएंगी और फिर
वो पानी भर कर ले जा सकती हैं। इस तरह सोन चिरैया चलनी में पानी भर कर लाई और भाभियों
को दे दी। भाभियाँ यह देख कर आश्चर्य में रह गईं।
दूसरे दिन भाभियों ने उसे जंगल से लकड़ी काट कर लाने को कहा
और उसे रस्सी नहीं दिया। सोन चिरैया जंगल गई और लकड़ियाँ काट कर इकट्ठा की, तब उसके
पास लकड़ियों को बाँधने के लिए रस्सी नहीं था। वो परेशान होकर वहीं बैठ गई और थोड़ी देर
के बाद जब अंधेरा होने लगा तो वो डर के मारे रोने लगी। रोते हुए देख, सर्प देवता
आए और उसके रोने का कारण पूछा। सोन चिरैया ने उन्हें सारी बात बताई। यह सुनकर साप
ने बोला “हम जमीं पर लेट जा तनी, तू सब लकड़ियन के हमरे ऊपर रख के बांध ला, और अपने
आँगन में ले जा के पटक दिया। हम वहां से नाली के रास्ते निकल जाईम।” सोन चिरैया ने
वैसा ही किया। भाभियां फिर से अचंभित रह गई।
भाभियों ने गुस्से में फिर से सोन चरैया को परेशान करने के
लिए उसे धान कूटने के लिए दिया वो भी बिना ओखल मुसहर के। वह धान छत पर ले जाकर
रोने लगी क्यूंकि उसके सामने कोई उपाय नहीं था, जिससे वो धान कूट सके। तभी चिड़ियों
का झुण्ड सोन चिरैया को अकेले छत पर बैठे देख कर उसके पास आया। बुजुर्ग चिड़िया ने
सोन चिरैया से रोने का कारण पुछा। सारी बातें सुन कर बुजुर्ग चिड़िया ने सभी चिड़ियों
को अपने चोच से सारे धान में से चावल निकालने के लिए कहा। सोन चिरैया खुश होकर सारे
चावल को लेकर भाभियों के पास गई। जब भाभियों ने चावल गिना, तो एक चावल का दाना कम
पाया। उस पर उसकी भाभियों ने सोन चिरैया को बहुत डाटा और खोए हुए चावल को ढूंढ कर
लाने को कहा। वह चावल के दाने को हर जगह ढूँढने लगी। कही नहीं मिलने पर वह परेशान
होकर छत पर फिर से जा कर रोने लगी। फिर सारी चिड़ियाँ वहां आई और उसके रोने का कारण
पूछी। तब उसने बताया की चावल का एक दाना कम है। उनमें से बूढी चिड़िया समझ गई की
जरुर कानी चिड़िया ने ही दाना लिया होगा। जब सबने उस कानी चिड़िया को ठोर ठोर मारा
तो वह दाना गिर गया और सोन चिरैया ने वह एक दाना भाभियों को दे दिया।
हर बार सोन चिरैया को सफल देख कर भाभियों ने अपना अत्चाचार
कम नहीं किया। उन्होंने अगले ही दिन सोन चिरैया को काला कम्बल सफ़ेद करने को कहा।
उस कम्बल को लेकर सोन चिरैया नदी के किनारे चली गई। वो उस कम्बल को धोते रही लेकिन
उसका रंग नही बदल। जब उसके पास कोई चारा नहीं बचा तो वह अपने भाइयो को याद करके
रोने लगी। उसी समय सोन चिरैया के सातों भाई पैसा कमा कर वापस आ रहे थे। बड़े भाई ने
रोने की आवाज सुनी तो उन्हें लगा की उनकी ही बहन रो रही है। दूसरे भाइयों को जब
बताया तो किसी ने विश्वास नहीं किया। सब यही बोले की सोन चिरैया तो सोने के पलंग
पर सोती होगी और चांदी के बर्तन में खाती होगी। फिर भी आत्मसंतुष्टि के लिए नदी के
किनारे सभी भाई पहुचें और वहां सोन चिरैया को रोत हुए देखा। यह देख सभी भाइयों को
बहुत गुस्सा आया। तभी बड़े भाई ने अपने जांघ चीर कर अपनी बहन को अन्दर बैठा लिया और
घर की तरफ निकल गए। जैसे ही सारे भाई घर के दरवाजे पर पहुंचे तो उनकी पत्नियाँ
स्वागत में लग गयीं। कोई पानी लेकर आई तो कोई पिढहा लगाने लगी, और कोई खाना परोसने
लगी। लेकिन न भाइयों ने पानी छुआ, न खाना छुआ और न ही बैठे, उन्होंने सबसे पहले
सोन चिरैया के बारे में पूछा। पत्नियों ने कहा की शायद वो सो रही होंगी। लेकिन भाइयो
के आवाज लगाने से जब वो नहीं आई तो फिर उन्होंने कहा की खेलने गई होंगी। यह सब
सुनकर बड़े भाई ने अपनी जांघ को चिरकर अपनी बहन को बाहर निकाला। यह देख सारी पत्नियां डर गईं। भाइयों ने पूछा किसने उनकी
बहन को सताया है। तब सबने डर से कहा कि किसी ने भी उन पर अत्याचार नहीं किया है।
तब एक भाई ने जलते चूल्हे पर कढाई में गरम तेल चढा दिया और सातों पत्नियों को एक
दुसरे का हाथ पकड़ कर चूल्हे के चारों तरफ चक्कर काटने को कहा और बोलने को कहा – “ताई
ताई जो नन्दी सताई एही में झौसाई।” यह बोलते बोलते सारी भाभियां चक्कर काटने लगी
और देखते-देखते बड़ी छह भाभियां गर्म तेल में गिर गईं। लेकिन छोटी भाभी बच गई। और
इस तरह भाइयों ने अपनी बहन को आगे चल कर बहुत प्यार दिया।
राजा और सर्प
एक राजा अपनी रानी के साथ महल में रहते थे। रानी एक सर्प के
साथ फसी हुई थीं। इसलिए एक बार रानी और सर्प ने राजा को मारने के लिए षड्यंत्र रचा। सर्प राजा के जूते में घुस जाएगा और जब राजा उस जूते में
अपना पैर डालेंगे तो सर्प उनको कांट लेगा। उसके बाद सर्प और रानी हमेशा के लिए एक
हो जाएँगे।
षड्यंत्र के अनुसार सर्प राजा के जूते में जा कर बैठ गया।
जब राजा जूता पहनने लगें तो उन्होंने जूते को झारा जिसकी वजह से सर्प धरती पर गिर गया।
राजा और उनके मंत्री ने सर्प को देखा ओर उसी समय सर्प को मार दिया गया। जब राजा
अपनी रानी से मिले तो उन्होंने सारी घटना रानी को सुनाया, यह सुन कर रानी बहुत
दुखी हुई और सर्प को मार कर कहाँ फेका है उसका पता पूछी। राजा ने बताया कि महल के
पीछे एक बरगद के पेड़ पर उस सर्प का शव लटका हुआ है। रानी तुरंत वहां गई और सर्प के
शव को देखकर राजा से बदला लेने के बारे में सोचने लगी। रानी सर्प के शव को महल में
वापस ले आई और उसके सात टुकड़े कर दिए। उन टुकडों में से एक टुकड़े को अपने जुड़े के
अन्दर, दुसरे को अपने वस्त्र में, एक दिया के नीचे और चार पलंग के पायों के नीचे
छुपा दिया। कुछ दिनो के बाद रानी ने राजा से एक पहेली बुझने को कहा। राजा मान गए
और रानी ने वचन लिया कि अगर राजा उस पहेली का सही उत्तर दे दिए तो वो जीवित रहेंगे
और रानी खुद आग में जल कर अपने प्राण त्याग देगी। परन्तु यदि राजा ने उत्तर नहीं
दिया तो राजा स्वयं अपने प्राण त्याग देंगे। पहेली सुन कर राजा असमंजस में फंस गए
और सोचे कि अगर वो उत्तर नहीं दे पाएं तो उन्हें आग में जल के मरना होगा। बहुत देर
तक वो सोचते रहें लेकिन उन्हें कुछ समझ नहीं आया। बहुत सोचकर राजा ने रानी से थोडा
वक़्त मांगा ताकि वो अपनी बहन से एक बार मिल सकें। रानी उनकी बात को मान ली। राजा
अपनी बहन के घर पहुंचे। भाई को देख बहन ने उनके अचानक आने का कारण पूछा। तब भाई ने
बताया कि रानी ने एक पहेली बुझाया है और अगर वो पहेली का उत्तर नही दे सकें तो
उनकी मृत्यु हो जाएगी। इस पर बहन ने भाई से पहेली पूछा। पहेली था – ‘एक जुड़ा, एक फुरहुरा, कुछ घाटी और एक बाती।’ पहेली सुन कर बहन उत्तर
सोचने लगी लेकिन उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। बहन, भाई को इस अवस्था में अकेला
नही छोड़ना चाहती थी इसलिए बहन भी भाई के साथ चल दी और कहा अगर वो दोनों उत्तर नहीं
दे पाए तो दोनों ही आग में जल कर मर जाएँगे। दोनों भाई-बहन महल की ओर चल पड़ें। रास्ते
में विश्राम करने के लिए दोनों एक पेड़ के नीचे लेट गए। भाई बहुत थका हुआ था, तो तुरंत ही सो गया लेकिन
बहन सिर्फ उस पहेली के बारे में सोच रही थी। तभी उसे आवाज सुनाई दी। उसने देखा की
एक चकवा और चकैया का जोड़ा आपस में बातें कर रहे थे।
चकवा ने चकैया से कहा “अब राजा का का होई! अगर उ रानी क उत्तर न दे सकलन त उनके आग में जल के मरके जाईं!” चकैया रानी की पहेली समझ गई थी क्यूंकि वो महल में रानी के व्यवहार को देख रही थी। इसलिए चकैया ने भी दुखी होकर बोला “राजा के पहेली का उत्तर खोजेके ही पड़ीं”, तभी चकैया ने उस पहेली का उत्तर चकवा को बताई कि रानी ने एक मरे शर्प के सात टुकड़ें करके सात जगह छुपा दिया है। एक अपने जुड़े में, एक अपने वस्त्र में, चार पलंग के पौओं में और आखिरी दीया के नीचे और वही सात जगह राजा को बताना है। यह सब सुन कर बहन सारी बात समझ गई और कुछ देर बाद दोनों महल की ओर निकल पड़े। जब दोनों महल पहुचते हैं, तो बहन अपनी भाभी से पहेली दोहराने को कहती है। पहेली के अनुसार बहन पहले रानी का जुड़ा खोलती है जिससे सर्प का एक टुकड़ा गिरता है। फिर बहन ने रानी के वस्त्र को जोर से खींचा और उसमें से एक और टुकड़ा गिरा। बहन उसके बाद पलंग खिचवाती है और चार पौओ के नीचे से सर्प के शरीर का चार भाग मिल जाते हैं। आखिरी में उनके पलंग के बगल के दीपक को उठाती है और वहाँ से एक टुकड़ा मिलता है। इस तरह बहन ने पहेली का सही उत्तर दे कर अपने भाई को बचा लेती है और आखिरी में रानी को अपना प्राण त्यागना पड़ा।
चकवा ने चकैया से कहा “अब राजा का का होई! अगर उ रानी क उत्तर न दे सकलन त उनके आग में जल के मरके जाईं!” चकैया रानी की पहेली समझ गई थी क्यूंकि वो महल में रानी के व्यवहार को देख रही थी। इसलिए चकैया ने भी दुखी होकर बोला “राजा के पहेली का उत्तर खोजेके ही पड़ीं”, तभी चकैया ने उस पहेली का उत्तर चकवा को बताई कि रानी ने एक मरे शर्प के सात टुकड़ें करके सात जगह छुपा दिया है। एक अपने जुड़े में, एक अपने वस्त्र में, चार पलंग के पौओं में और आखिरी दीया के नीचे और वही सात जगह राजा को बताना है। यह सब सुन कर बहन सारी बात समझ गई और कुछ देर बाद दोनों महल की ओर निकल पड़े। जब दोनों महल पहुचते हैं, तो बहन अपनी भाभी से पहेली दोहराने को कहती है। पहेली के अनुसार बहन पहले रानी का जुड़ा खोलती है जिससे सर्प का एक टुकड़ा गिरता है। फिर बहन ने रानी के वस्त्र को जोर से खींचा और उसमें से एक और टुकड़ा गिरा। बहन उसके बाद पलंग खिचवाती है और चार पौओ के नीचे से सर्प के शरीर का चार भाग मिल जाते हैं। आखिरी में उनके पलंग के बगल के दीपक को उठाती है और वहाँ से एक टुकड़ा मिलता है। इस तरह बहन ने पहेली का सही उत्तर दे कर अपने भाई को बचा लेती है और आखिरी में रानी को अपना प्राण त्यागना पड़ा।
प्रस्तुति :
शिल्पी गुप्ता,सहायक
प्राध्यापक, स्पेनिश भाषा,वी.आई.टी.,
वेल्लूर,ई-मेल -
shilpigupta.jnu@gmail.com
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-5, अंक 28-29 (संयुक्तांक जुलाई 2018-मार्च 2019) चित्रांकन:कृष्ण कुमार कुंडारा
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