रश्मि अग्रवाल की कविता
कलयुग का श्राप: वृद्धाश्रम
मात-पिता
को तूने अपने
वृद्धाश्रम
क्यों भेज दिया?
धिक्कार
तुम्हें निष्ठुर संतान
अपने
सम्मान को बेच दिया,
कर
दिया जिन्होंने तुम पर अपना
सब
कुछ था न्यौछावर रे,
उन
मात-पिता के उपकारों को
पल
भर में क्यों भुला दिया?
जिस
माँ ने रक्त से सींच-सींच
तुझे
अपनी कोख में पाला रे,
जिस
माँ ने जीवन गरल को पी
तुझे
अमृत-पान कराया रे,
जिस
माँ ने खुद काँटों में सो
तुझे
फूलों का बिस्तर था दिया,
उसकी
ममतामयी बगिया को
क्षण-भर
में तूने रौंद दिया।
जिस
पिता ने तुझको पग-पग पर
ठोकर
खाने से बचाया था,
खुद
सारी उम्र मशक्कत कर
पैरों
पर खड़ा कराया था,
जिस
पिता ने अपने सपनों को
सदा
तुझमें ही जीवन्त किया,
उस
पिता के सारे अरमानों का
पल
भर में क्यों खून किया?
हे
कलयुग के कुत्सित कपूत,
धिक्कार
है, धिक्कार
है।
जो
अपने फर्ज को भूल गई
औलाद
नहीं अभिशाप है।
माँ-पिता
को अपने तुम यूँ भला
क्यों
वृद्धाश्रम में भेजते हो?
जिसने
तुमको जीवन ये दिया
क्यों
उनका जीवन छीनते हो?
माँ-बाप
की सेवा कर न सके
सन्तान
से सुख क्या पाओगे,
जब
खुद बूढ़े हो जाओगे
तब
आप कहाँ फिर जाओगे?
माँ-बाप
को तुमने ठुकराया
तुम
भी ठुकराए जाओगे,
और
जैसी करनी वैसी भरनी
करनी
पर पछताओगे।
हो
ऐसा कोई कठोर विधान
जो
मात-पिता ठुकराएगा,
ता
उम्र कभी सम्मान से फिर वो
शीश
उठा नहीं पाएगा,
जीवन
भर ऐसा कर न सकंे
उन्हें
ऐसा सबक सिखाए हम,
माँ-बाप
के मान की खातिर
उनकी
नानी याद कराएं हम।
माँ-बाप
को बहलाने वाले
जो
सम्पत्ति के भूखे हैं,
धन
के मिलते ही कुलकलंक
वो
अपना रूप दिखाते हैं,
उन
बहरूपियों को कोई तो
कानून
बनाकर तंग करो,
उन
मात-पिता की सम्पत्ति
पुनः
उनके नाम सम्पन्न करो।
जो
मात-पिता से वंचित हैं
ऐसे
कुलश्रेष्ठ कुलीन पूत,
ठुकराए
गए माँ-पिता को तुम
जाकर
वृद्धाश्रम ग्रहण करो,
दुनिया
में रखो नयी मिसाल
उन
बेटों को भी मिले सबक
जिनको
तुमने ठुकराया है
हँस
हमने गले लगाया है।
है
अब भी हमारे पास समय
इन
वृद्धाश्रमों को बंद करें,
जिनके
हैं मात-पिता इनमें
उन्हें
कारागृह में बंद करें,
ताकि
सृष्टि में कोई कभी
माँ-पिता
को अपने भूले ना,
उनके
चरणों की रज से हम
निज
जीवन को प्रफुल्ल करें।
रश्मि अग्रवाल,रामनगर,
नैनीताल (उत्तराखंड),पिन 244715 संपर्क 8864866030
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-5, अंक 28-29 (संयुक्तांक जुलाई 2018-मार्च 2019) चित्रांकन:कृष्ण कुमार कुंडारा
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