सैयद दाऊद रिज़वी की कविता

पहचान


किलकारी जब गूंजी, मेरी
तो अपनों ने ही ठुकराया
अपशगुन हो गया जैसे, कोई
नज़रें तक ना मिलायी मेरे, जनक ने
खुद से है मेरा सवाल
क्या हूँ मैं?

        (2)

अभी सीखा ही था, चहकना
तो बोली मेरी माँ, आँखों से
मत चहको ऐसे, तुम
हुआ मुझे एहसास, ग़ुलामी
खुद से है मेरा सवाल
क्या हूँ मैं?

        (3)

थी मैं अभी नन्ही कली सी
ढका गया मुझे, ओढ़नी से
जकड़ा गया मुझे, पायलों से
पहनाया गया मुझे मुकुट, मर्यादा का
खुद से है मेरा सवाल
क्या हूँ मैं?

         (4)
रखा था कदम अभी, यौवन में
रहने लगी मैं, सहमी-सहमी
अपने ही थे मेरे, भेड़ियें
नोचते-खाते थे नज़रों से, मुझे
जीती थी रोज़, मरती थी रोज़
खुद से है मेरा सवाल
क्या हूँ मैं?

        (5)
सहती हूँ पीड़ा मैं, अनंत
कुचला गया कभी, अस्तित्व को
उजाड़ा गया कभी मेरी, कोख को
कर रही हूँ संघर्ष, जीवन से
खुद से है मेरा सवाल
क्याहूँमैं?

सैयद दाऊद रिज़वी,शोधार्थी (हिंदी),रूम नं. ए-73, बशीर मेंस हॉस्टल,,अंग्रेज़ी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय,हैदराबाद 500007,मो. 9701042118,ई-मेल - daudrizvi05@gmail.com

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-5, अंक 28-29 (संयुक्तांक जुलाई 2018-मार्च 2019)  चित्रांकन:कृष्ण कुमार कुंडारा

Post a Comment

और नया पुराने