विवेकी राय के
साहित्य में नारी शिक्षा
भारतीय समाज में
सर्वत्र लैंगिक विविधता विद्यमान है। लेकिन आज भी पुरुष प्रधान व्यवस्था ने नारी
को इतना महत्त्व नहीं दिया जितना देना
चाहिए था। उसके प्रति परंपरागत दृष्टि से देखा और सोचा जाता है। अगर सामाजिक विकास
में परिपूर्णता लानी है तो नारी को शिक्षा के साथ अन्य अधिकारों में भी समानता का
हकदार बनाना चाहिए। घर में तो उसे प्रतिष्ठित किया जाता हैं किंतु समाज में नहीं।
स्त्रियों के शील संरक्षण के लिए परदा प्रथा और घर से बाहर न निकलना जैसे नियम
बनाए गए। आज वैसी स्थिति नहीं है फिर भी नारी के प्रति पुरुष की दृष्टि अभी भी
बदली नहीं है।
समाज हित इसी में
है कि नारी की पुनर्प्रतिष्ठा करें। ‘‘नारी को भवतारिणी कहा गया है, जो उचित ही है।
पुरुष को अपनी जीवन नौका को इस भवसागर से
पार करने के लिए स्त्री-रूपी दांड की आवश्यकता अपरिहार्य है।’’1 पुरुष की जन्मदात्री और सहधर्मिनी वही है। अतः
उसे शिक्षित बनाने या प्रतिष्ठित करने में उसे नहीं तो पुरुष के लिए ही लाभदायी
है। पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को कुशलता से निभाने के लिए उसका शिक्षित
होना नितांत जरूरी है। उसे न केवल शिक्षा में बल्कि सामाजिक व्यवस्था में प्रतिष्ठित
करने की आवश्यकता है। विवेकी राय ने नारी की इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए
शिक्षित, अर्द्धशिक्षित और
अशिक्षित स्त्रियों का चित्रण करते हुए शिक्षा व्यवस्था और नारी के परस्पर संबंध
पर प्रकाश डाला है।
शिक्षा, समाज और नारी
शिक्षा समाज का
महत्त्वपूर्ण अंग है और समाज का आधा हिस्सा स्त्रियों से बनता है, अतः शिक्षा पर उनका उतना ही अधिकार है जितना
पुरुषों का। ग्रामीण महिलाओं की तुलना में शहरी महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में आगे
है। अर्थात् शिक्षा के अधिकार को शहरी महिलाओं ने प्राप्त कर लिया है। अर्थात्
शिक्षा के अधिकार को शहरी महिलाओं ने प्राप्त कर लिया है। शिक्षा से उनकी कई
समस्याओं का निराकरण हो गया है। ‘‘शिक्षित महिलाओं
के जीवन संबंधी दृष्टिकोण में पर्याप्त अंतर आया है परंतु अशिक्षित ग्रामीण
महिलाओं के जीवन की समस्याएं आज भी वैसी ही हैं जैसी कि स्वतंत्रता के पूर्व थी।’’2 अतः ग्रामीण महिलाओं को शिक्षा के साथ जोड़ने
की अपेक्षा है। विवेकी राय ने इसी दृष्टि से विचार करते हुए ग्रामीण महिलाओं के
शिक्षा पर प्रकाश डाला है।
’सोनामाटी’
उपन्यास का पात्र रामरूप सोचता है कि ’’इस देश में वह दिन कब आएगा जब निचाट देहात के
साधारण घरों में जनमी लडकियों में सही मायने में ’शिक्षा’ का प्रवेश होगा और वे परंपरागत विवाह-बनाम
खरीद-बिक्री के दुष्चक्र से मुक्त होगी।’’3 जब तक गांवों में नारी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ नहीं बनती तब तक वे जाग्रत
नहीं होंगी। शिक्षा से ही वह जाग्रति आती है जिससे स्त्रियां परंपरागत कुरीतियों
का विरोध करती हुई स्वतंत्रता का अनुभव करती है। गांवों की सामाजिक व्यवस्था ही
ऐसी है जहां स्त्रियों के लिए शिक्षा सुलभ
नहीं है। कहीं-कहीं लड़कियों को पढ़ाया जा रहा है लेकिन विवाह के बाद यह पढ़ाई खत्म
होती है। ’नमामि ग्रामम्’ में गांव लेखक को
बता रहा है कि ’’अब हवा बदली है। लड़कियों को भी पढ़ाया जाता है, मगर कुल मिलाकर इन्हें घर के भीतर रहने योग्य
पात्र ही बनाया जाता है। विवाह के बाद इनके जीवन का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है।’’4 अल्प शिक्षित महिलाओं की दुनिया चारदीवारों के
भीतर सीमित हो जाती है। समाज और ग्रामजीवन का अंग बनी महिलाएं दुनिया से दूर
अंधकारमय जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाती हैं। गांव बदल चुका है। उसका अंतर-बाह्य
परिवर्तन हो चुका है लेकिन महिलाओं के प्रति देखने की सामाजिक दृष्टि अभी तक
परिवर्तित नहीं हुई है।
नारी को स्वयं
शिक्षित होकर अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरुक रहना चाहिए। उनकी आंतरिक
चेतना ही उन्हें शाक्ति दे सकती है। महिलाओं में यह भी कमजोरी है कि वे शिक्षित
बनने के बाद अपनी जिम्मेदारियों से विमुख होती है। अतः दायित्व और अधिकारों का
समन्वय करते हुए उन्हें अपना विकास करना चाहिए।
शिक्षा, संस्कृति और नारी
नारी शिक्षा और
संस्कृति का विचार करे तो शिक्षित स्त्रियों में सांस्कृतिक पतन की स्थिति देखी जा
सकती है। गांव और नगर की लड़कियां जैसे ही शिक्षित बनी वैसे ही वे अपनी संस्कृति से
विमुख होती है। शिक्षित नारी ने सबसे पहले संयुक्त परिवार को विखंडित कर दिया है।
इसका अर्थ यह नहीं की सभी शिक्षित नारियां विभक्त रहना चाहती हैं। परंतु यह भी सच
है कि ज्यादातर शिक्षिता पृथक घर बसाना पसंद करती है। यह मात्र एक उदाहरण है इसके
अलावा संस्कृति के कई आयाम है जिन्हें शिक्षित नारियों ने तोड़ा है। विवेकी राय इस
सांस्कृतिक पतन के प्रति सात्विक आक्रोश प्रकट करते हैं।
’सोनामाटी’
उपन्यास में भुवनेश्वर के साथ पढ़नेवाली लड़कियां
गांव में आती हैं तब गांव की स्त्रियां उनके कपड़े और बालों को देखकर
हंसती-फुसफुसाती रहती है। ये तो विश्वविद्यालय में पढ़नेवाली लड़कियां है, अब देखा-देखी यह पतन गांवों में भी आ गया है।
कई प्रकार के प्रदर्शन और आंड़बर पढ़ी-लिखी लड़कियों में पाए जा रहे हैं, जिसका कोई सांस्कृतिक मूल्य नहीं है। स्त्रियां,
जिनकी साडिओं में भारतीय संस्कृति महकती थी,
उसके गायब होते ही संस्कृति भी गायब हो गई। ’गांव की गोरी’ निबंध में विवेकी राय लिखते हैं। ‘‘प्राइमरी के बाद? मिडिल के बाद? कितनी कीमत चुकाई
पढ़ाई के लिए? चौका गया,
गीत गया, खेल गया। अरे हां भाई यह सोचा ही नहीं था। आज गांव की
लड़कियां कौन-सा खेल खेलती है ? चुप्प’’5 यह ’चुप्प।’ महिलाओं के नैतिक
पतन को दर्शाता है। जब से स्त्री ने शिक्षित बनकर दहलिज को पार किया है तब से वह
नैतिक बंधनों को तोड़-मरोडकर उन्मुक्त हो बहकने भी लगी है। ’’जब से शिक्षा का प्रसार हुआ है, बेलबाटम में सजी-धजी लड़कियां स्कूल कॉलेज जाने लगी है तो गांव का ग्लैमर भी शहर के ग्लैमर से होड़ लेता नजर आने
लगा है।’’6 शहर और गांव में फैलता
यह आधुनिकता का विष सांस्कृतिक पतन को दिखाता है। ’मंगलभवन’ उपन्यास की
पार्वती, लक्ष्मी, ’अमंगलहारी’ की पार्वती और ’सोनामाटी’ की कनिया,
विद्या जैसी लड़कियां शिक्षित होकर भी सुशील और
संस्कृति का पालन करती हैं।
शिक्षा नारी के
लिए आवश्यक है लेकिन वह संस्कृति और नैतिकता का पालन करते हुए। नारी का सौंदर्य
सुशीलता में है। अतः शिक्षा उसी सुशीलता को पोषक करनेवाली हो। प्रदर्शन प्रियता,
आड़ंबर, बनाव, खोखली शृंगारिकता आदि के
प्रति आकर्षण नारी के गलत शिक्षा का द्योतक कहे जा सकते हैं। संक्षेप में आज
शिक्षा और संस्कृति के उचित समन्वय से नारी के व्यक्तित्व का विकास करने की
आवश्यकता है।
परंपरागत दृष्टि
नारी ने समाज,
ज्ञान, विज्ञान, तथा अन्य
क्षेत्रों में अपनी कुशलता का परिचय दिया है। पुरुष के समकक्ष स्त्री को अवसर
प्रदान किए जा रहे हैं। स्त्री पुरुष की अनुकर्ता न रहकर अपने अलग अस्तित्व
निर्माण के लिए सक्रिय रही है। उसने आत्मनिर्भर बनते हुए अपने मार्ग का निर्माण
किया है। यह परिवर्तन स्त्रियों में व्यापक शिक्षा प्रसार के बाद आया है। लेकिन
ग्रामीण महिला के प्रति न शिक्षा और न
समाज की दृष्टि बदली है। विवेकी राय ने जिन अंचलों और गांवों का वर्णन किया है।
वहां की महिलाएं आज भी पराधीन है।’’ अंचलों के सामाजिक जीवन में पुरुषों के बराबरी का स्थान स्त्री को प्राप्त
नहीं है। एक हद तक स्त्री आज भी पराधीन है। कभी-कभी इनको सिर्फ भोग का साधन माना
जाता है।’’7 इसी परंपरागत दृष्टि का
वर्णन विवेकी राय के साहित्य में हुआ है।
‘सोनामटी’ उपन्यास की विद्या इलाहाबाद विश्वविद्यालय में
पढ़ रही है। उसकी अन्य बहनें भी पढ़ाई में एक से बढ़कर एक तेज हैं। द्विवेदी जी पढ़ाई
में तेज इन पुत्रियों की चिंता कर रहे हैं। उनकी चिंता है कि इनकी शादी कब और
किसके साथ होगी। ज्यादा पढ़ी लिखी लड़कियों के बारे में समाज का नजरिया ठीक नहीं है,
इसलिए द्विवेदी जी की चिंता गलत नहीं है। वे
अक्सर कहते हैं कि ‘‘ज्यादा
पढ़ना-लिखना दिक्कत पैदा करेगा। लड़की चुल्हे-चौके के लिए बेकार हो जाएगी। ...विद्या
का और बहनों का क्या होगा। ससुरी पढ़ने में सबकी सब एक से बढ़कर एक पलीता। लेकिन
कीमत क्या रह गई पढ़ाई की। नौकरी दुःस्वप्न है। खानदान में या गांव-घर में किसी औरत
ने नौकरी की नहीं। इधर शादी के लिए देहात के गृहस्थ परिवार में अधिक पढ़ाई-लिखाई एक
भारी अयोग्यता।"8 गांव में इसी
प्रकार की चिंता लड़कियों के माता-पिता को खाए जाती है। इनकी सबसे बड़ी चिंता
लड़कियों की शादी है और गांव में ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की को अपनी बहू बनाने से लोग
कतराते हैं। विड़ंबना की बात यह है कि इस प्रकार की परंगरागत दृष्टि रखते हुए
स्त्रियां ही स्त्रियों का विरोध करती है। ‘नमामि ग्रामम्’ में गांव अपना आत्मकथन लेखक के सामने रखता है कि ‘‘दुनिया से दूर किसी कोने में सारा शरीर एक कपड़े में लपेटकर,
समेटकर जिस प्रकार भारत की लक्ष्मी रुठी कहीं
बैठी है, उसी प्रकार गांवों का
नारी वर्ग अपने को छिपाकर आज भी अज्ञान की बेहोशी में पड़ा है।’’9 वैसे परिवार में नारी को सम्मान है। आरंभ से
पुरुषों ने उसे देवी का स्थान दिया है लेकिन परंपरावादी दृष्टि रखते हुए सामाजिक
जीवन से उसे दूर रखा है। अतः उनका विकास असंभवनीय बना है।
शिक्षा के दृष्टि
से शहरों की तुलना में ग्रामीण महिलाओं की हालत खराब है। उन्हें देवी का स्थान
देकर घर के अंदर परदों के पीछे गहने पहनाकर सम्मानित किया जाता है, परंतु समाज और शिक्षा में नहीं। शहरी लड़कियां
पढ़ रही है और नौकरियां कर रही है; लेकिन समाज की
उनके प्रति दृष्टि अच्छी नहीं है। हर जगह उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा
है।
परिवर्तित दृष्टि
नारी शिक्षित बन
रही है और उसने समाज के विविध क्षेत्रों में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया है।
उच्च पदों को विभूषित करते हुए अपने ज्ञान और तेज से समाज की परंपरावादी दृष्टि
में परिवर्तन लाने में वह सफल रही है। स्वयं पर होनेवाले अन्याय एवं अत्याचार का
उसने विरोध किया है। वह अब पुरुषों की कठपुतली नहीं तो सहायक बन गई है। यह स्थान
उसने स्व कर्तृत्व से प्राप्त किया है। ‘‘अब उसे ‘आत्मबोध’ हो गया है। उसका ‘स्वत्व’ जागृत हो गया
है। उसने अब समझ लिया है कि जब तक अपनी गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए स्वयं
स्त्री प्रयत्नशील नहीं होती तब तक यह गुलामी नष्ट नहीं होगी।’’10 इसी आत्मबोध के बलबूते पर वह शिक्षाभिमुख होकर
समाज में अपने लिए मान-सम्मान और उचित स्थान प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है।
विवेकी राय के प्रत्येक उपन्यास का प्रमुख पात्र रहे मास्टरसाहब की नजरों में
स्त्री का बहुत बड़ा सम्मान है। वे मास्टरसाहब स्वयं विवेकी राय के विचारों से
पुष्ट होकर उपन्यासों के अन्य पात्रों को प्रभावित करते हैं।
‘सोनामाटी’
में पात्र बनकर आई कनिया और विद्या उच्च
शिक्षित होने के बावजूद भी गांव और संस्कृति के साथ लगाव रखती है। इसी का परिणाम
है कि उन्हें परिवार और गांव में सम्मान है। रामरूप की बेटी कमली की शादी में वे
सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करने में सहयोग दे रही है। इन शिक्षिताओं को देखकर
रामरूप कृतार्थ होते हैं कि ये विश्वविद्यालय में पढ़ने के पश्चात् भी कितनी कुशलता
से कार्य करते हुए संस्कृति से जुड़ी रही है। ‘मंगलभवन’ में नीलम के
वाक्चातुर्य को सुनकर विक्रम मास्टर जगदीश को कहते हैं, ‘‘देखा पुत्री अर्चना की लड़की है। अभी बारहवीं कक्षा पास की
है। एम्.ए. तक पहुंचने पर शायद हमारे जैसे मास्टर नानाओं को चराने लगेगी।’’11 नीलम की वाक्पटुता पर विक्रम मास्टर और जगदीश
का खुश होना नारी शिक्षा के प्रति परिवर्तित दृष्टि का परिचय देता है। ‘नमामि ग्रामम्’ उपन्यास में इसी परिवर्तन की स्थिति को स्पष्टता से चित्रित
किया है। ‘‘स्वराज्य के बाद अवश्य ही
इस स्थिति में बदलाव आया है। गांव-गांव में स्कूल कॉलेज हो जाने से लड़कियां पढ़ने
के लिए घरों से निकल गई है। नई पीढ़ी में परदा ढीला हुआ है।’’12 आजकल ग्रामों में स्कूलों का निर्माण हो गया
है, अतः लड़कियां घर से बाहर
निकलकर पढ़ाई करने लगी है। लोगों की दृष्टि भी बदल चुकी है। यहां तक कि स्कूलों में
प़ढाई की दृष्टि से लड़कियां तेज है। परीक्षाओं में अव्वल स्थान प्राप्त करती
लड़कियां उच्च पदों पर आसीन होकर योगदान देने लगी है। उनका यही योगदान सामाजिक जीवन
में सम्मान और आदर का स्थान पाने में सहयोग दे सकता है।
निष्कर्षतः सामाजिक
जीवन में नारी को सम्मान और आदर का स्थान दिया जा रहा है। घर से बाहर निकलकर
लड़कियां स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई करती हुई महत्त्वपूर्ण पदों को हासिल कर चुकी
हैं। जिस समाज में उनके प्रति परंपरावादी दृष्टि रखी जाती है उसी समाज में उसे
परिवर्तित दृष्टि से भी देखा जा रहा है। विवेकी राय ने समाज, संस्कृति, पारंपरिक और परिवर्तित दृष्टि से शिक्षित नारी का सफल
चित्रण किया है। हालांकि उनका यह वर्णन सभी रचनाओं में व्यापकता से नहीं है लेकिन
जिन कृतियों में आया है वहां सार्थक बना है। विवेकी राय के साहित्य का आकलन करते हुए
अर्चना वर्मा द्वारा लिखित पाठ ‘कुरीति तोड़ो,
परिवार नहीं’ की याद ताजा हो रही है। यह पाठ अर्चना वर्मा जी द्वारा अपनी
बेटी को लिखा गया पत्र है। पाठ के अंत में वे बेटी को लिखती है कि "मैं
तुम्हें इतना ही कहना चाहूंगी कि दहेज जैसी कुरीति से लड़ने के लिए लड़कियों को सबसे
पहले शिक्षा प्राप्त कर स्वयं आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम
करना चाहिए।"13 अर्थात आर्थिक
आत्मनिर्भरता स्त्रियों को मान-सम्मान दे सकती है। पिता, भाई, पति, बेटे पर की निर्भरता स्त्रियों के अस्तित्व को
खत्म करती है। अतः स्वयं स्त्रियों द्वारा की गई कमाई उनको आत्मनिर्भर बनाएगी और
स्वाभिमान की जिंदगी मुहैया करेगी।
संदर्भ संकेत
1. उमा शुक्ला - भारतीय नारी : अस्मिता की पहचान,
पृ.20.
2. डॉ. विमल शंकर नागर - अनुसंधान के नए सोपान,
पृ.19.
3. विवेकी राय- सोनामाटी, पृ.139.
4. विवेकी राय - नमामि ग्रामम्, पृ.97.
5. विवेकी राय - जुलूस रूका है, पृ.62.
6. बलराम - समकालीन हिंदी कहानी का सफर, पृ.79.
7. डॉ. आण्टिणी पी.एम् - आंचलिक उपन्यास एकता की
खोज, पृ.102.
8. विवेकी राय - सोनामाटी, पृ.258-259.
9. विवेकी राय - नमामि ग्रामम्, पृ.50.
10. डॉ. रेखा कुलकर्णी - हिंदी के सामाजिक
उपन्यासों में नारी, पृ.125.
11. विवेकी राय - मंगलभवन, पृ.155.
12. विवेकी राय - नमामि ग्रामम्, पृ.50.
13. अर्चना वर्मा – कुरीति तोड़ो, परिवार नहीं, (गद्य के विविध
आयाम), पृ. 82
डॉ. विजय शिंदे
हिंदी विभाग, देवगिरी
महाविद्यालय, औरंगाबाद.
फोन - 7822894942
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) शिक्षा विशेषांक, मार्च-2020, सम्पादन:विजय मीरचंदानी, चित्रांकन:मनीष के. भट्ट
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