आलेख : व्यतिरेकी विश्लेषण की अनुवाद में उपयोगिता /
(जर्मन और हिंदी भाषा के विशेष संदर्भ में)
उपर्युक्त चार्ट के अतिरिक्त भी वर्णात्मक भाषाविज्ञान और
अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की शाखाएँ हैं। जिस पर विस्तार पूर्वक अकादमिक संवाद हो सकता
है। किन्तु इस प्रपत्र में मुख्य रूप से व्यतिरेकी भाषाविज्ञान का प्रयोग करते हुए
स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा को समझने का प्रयास किया जाएगा।
अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान
जिस प्रकार सामान्य विज्ञान में प्रयुक्त होने वाले विज्ञान
अर्थात व्यावहारिक पक्ष के विज्ञान को 'अनुप्रयुक्त विज्ञान' कहते हैं, उसी प्रकार भाषाविज्ञान के व्यावहारिक पक्ष
में प्रयोग होने वाले विज्ञान को अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (Applied
linguistics) कहते हैं। “भाषासंबंधी मौलिक नियमों के विचार की नींव पर
ही अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की इमारत खड़ी होती है। संक्षेप में, इसका संबंध व्यावहारिक क्षेत्रों में भाषाविज्ञान के अध्ययन के उपयोग से है।”[1]
तुलनात्मक भाषाविज्ञान
तुलनात्मक भाषा विज्ञान के अंतर्गत एक ही परिवार की दो भाषाओं
को समतुल्यता के आधार पर अध्ययन किया जाता है। यहाँ दो भाषाओं के इतिहास को जोड़कर संबंध
स्थापित किया जाता है। इसके अंतर्गत यह आवश्यक नहीं है कि भाषाविद् को उस भाषा का ज्ञान
हो। किन्तु भाषाविद् भाषाओं के बारे में चर्चा करते हैं। जैसे कि विश्व में कई परिवार
की भाषा बोली जाती है। इन परिवार के भाषाओं की भी शाखाएँ होती है। इसके साथ कई संरचनाएँ
भिन्न-भिन्न होती हैं। एक ही परिवार की दो भाषाओं का व्याकरण पूरी तरह समान नहीं होता
है। सभी भाषा के रूप में ध्वनि, लेखन, व्याकरण,
शब्द, अर्थ, लिपि संस्कृति
के स्तर पर समता और विषमता पाई जाती है।
व्यतिरेकी भाषाविज्ञान
सुप्रसिद्ध भाषाविद् हॉगेन और वाईनरिख (1953) के ‘द्विभाषिकता’
के अध्ययन से व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रारंभ माना जा सकता है।
किन्तु इसको सैद्धांतिक आधार देने का श्रेय रॉबर्ट लाडो को दिया जाना चाहिए है। रॉबर्ट
लाडो ने प्रसिद्ध भाषाविद् फ्रीज़ (1945) के मत के
आधार पर कहा कि दोनों भाषाओं की तुलना के द्वारा समान, असमान और
अर्धसमान संरचनाओं का पता लगाया जा सकता है।
व्यतिरेकी विश्लेषण में मूल रूप से ध्वनि, लेखन, व्याकरण, शब्द, अर्थ, लिपि संस्कृति
के आधार पर ही दो भाषाओं में विषमता ढूँढी जाती है। जिसे अंग्रेजी में इसे constructive analysis कहा जाता
है। जिसका हिंदी पर्याय व्यतिरेकी विश्लेषण होता है। व्यतिरेकी विश्लेषण के लिए दो
भाषाओं की समझ अनिवार्य है। तभी दो भाषाओं
की विषमता ढूँढी जा सकती है। अन्यथा यह व्यतिरेकी विश्लेषण में न समाहित होकर
किसी अन्य शाखा में समाहित होगी।
व्यतिरेकी विश्लेषण की परिभाषा
रोमानियत इंग्लिश कंट्रास्टिव एनालिसिस प्रोजेक्ट के आयोजक के अनुसार- व्यतिरेकी
विश्लेषण की परिभाषा कुछ इस प्रकार है। दोनों
भाषाओं की ध्वनि व्यवस्था, व्याकरण, शब्दावली
एवं लेखन व्यवस्थाओं की तुलना प्रस्तुत करना। इस तुलना का उद्देश्य दोनों भाषाओं में
विद्यमान ऐसी संरचनागत समानताओं और असामान्यताओं पर प्रकाश डालना है जो दो भाषाओं को
सीखने वाले के लिए में मन में मनोवैज्ञानिक उलझनें पैदा कर देती है।
डॉक्टर राम नाथ सहाय - व्यतिरेकी
भाषा वैज्ञानिक विवरणों के आधार पर स्रोत और लक्ष्य भाषाओं के विविध पक्षों की गहराई
में समानताएं और असामानताएं ढूंढी जाती हैं।
डॉक्टर भोलानाथ तिवारी - व्यतिरेकी
भाषाविज्ञान भाषाविज्ञान के उस प्रकार को कहते हैं ,जिसमें दो
भाषाओं या भाषा- रूपों के विभिन्न स्तरों पर तुलना करके उनके आपसी विरोधों या व्यतिरेकों
का पता लगाते हैं।
स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा के रूप जर्मन और हिंदी भाषा का
चयन-
जर्मन भाषा की तुलना में हिंदी भाषा में कार्य करने
की संभावना बहुत है। इसका प्रमुख कारण है कि जब भी किसी रचना का अनुवाद विदेशी भाषा
से हिंदी भाषा में होता है तो इसकी प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है-
Mein Kampf |
My Struggle |
मेरा संघर्ष |
स्रोत भाषा जर्मन |
लक्ष्य भाषा अँग्रेजी स्रोत भाषा- अँग्रेजी |
लक्ष्य भाषा हिंदी |
जेम मर्फ़ी नें 1936 में माइन काम्फ़ का अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद किया था।
किन्तु हिंदी में अनुवाद करते समय इस रचना की स्रोत भाषा अँग्रेजी हो गई। यदि अनुवादक
को जर्मन भाषा का ज्ञान होता तो वह लक्ष्य भाषा में जर्मन भाषा का चयन करता न कि अँग्रेजी
भाषा का। “ये किताब भारत में लोकप्रिय है,
ख़ासकर
हिंदू राष्ट्रवाद के प्रति झुकाव रखने वाले राजनेताओं के बीच।”[2] दूसरा इस अनूदित रचना के माध्यम
से हिटलर को भारत में एक नायक का दर्जा प्राप्त हो गया। जबकि इस पुस्तक के संदर्भ जर्मनी
में स्थिति भारत की तुलना में प्रतिकूल है। लेकिन लक्ष्य भाषा में दक्षता न होने के
कारण कोई भी mein kampf नहीं पढ़ेगा।
जो भी जर्मन साहित्य की कई रचनाओं का अनुवाद हिंदी में हुआ है वे सभी अँग्रेजी
हाइवे के माध्यम से भारत पहुंची है। जैसे विश्व प्रपंच का अनुवाद आचार्य रामचंद्र शुक्ल
ने किया किन्तु स्रोत भाषा में अँग्रेजी थी न की जर्मन भाषा।
किन्तु कुछ वर्ष पहले नमिता खरे और राजेन्द्र डेंगले (जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय) द्वारा वाणी प्रकाशन की सहयोग से हेर्टा म्युलर के का जर्मन शीर्षक ‘आटेमशाऊकेल’ ‘भूख का व्याकरण’ नाम से अनुवाद
हुआ। इस अनुवाद को करते समय व्यतिरेकी विश्लेषण को आधार बनाया। अनुवादक नें यहाँ स्रोत
भाषा में जर्मन और लक्ष्य भाषा में हिंदी का चयन किया। जबकि इसके पहले ऐसी रचनाओं का
अनुवाद सीधे तौर पर नहीं होता था। यदि भाषिक विषमता के स्तर पर देखा जाए तो यह उपन्यास
जर्मन भाषी के लिए भी जटिल है।
इसलिए यह पाया जाता है दो विभिन्न परिवार की भाषाओं में समानताएं
तो नहीं होती है किंतु और असमानताएं पाई जाती है। यदि असमानता को ढूंढ कर अनुवाद किया
जाए तो अनुवादक द्वारा किया गया अनुवाद सरल एवं सहज होगा। पाठक के लिए सरल होगा। अनुवाद
के प्रारंभिक दौर की स्थिति पर आचार्य
रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं “भाषा बिगड़ने का एक और सामान दूसरी ओर खड़ा हो गया था। हिंदी
के पाठकों का अब वैसा अकाल नहीं था ,
विशेषत: उपन्यास
पढ़नेवालों का। बँग्ला उपन्यासों के अनुवाद धाड़ाधाड़ निकलने लगे थे। बहुत से लोग हिंदी
लिखना सीखने के लिए केवल संस्कृत शब्दों की जानकारी ही आवश्यक समझते थे जो बँग्ला की
पुस्तकों से प्राप्त हो जाती थी। यह जानकारी थोड़ी बहुत होते ही वे बँग्ला से अनुवाद
भी कर लेते थे और हिंदी के लेख भी लिखने लगते थे......
पर 'अंग्रेजी
में विचार करने वाले'
जब आप्टे
का अंग्रेजी संस्कृत कोश लेकर अपने विचारों का शाब्दिक अनुवाद करने बैठते थे तब तो
हिंदी बेचारी कोसों दूर जा खड़ी होती थी। वे हिंदी और संस्कृत शब्द भर लिखते थे, हिंदी भाषा नहीं लिखते थे। उनके बहुत
से वाक्यों का तात्पर्य अंग्रेजी भाषा की भावभंगिमा से परिचित लोग ही समझ सकते थे, केवल हिंदी या संस्कृत जाननेवाले नहीं।”[3]
इस
कथन में व्यतिपेरक विश्लेषण का सार छिपा हुआ है। जिससे यह तो स्पष्ट होता है कि समानता
से कहीं महत्त्वपूर्ण है विविधता ढूँढना।
विदेशी भाषा के रूप में जर्मन भाषा एक बेहतर विकल्प-
DW हिंदी रेडियो
के अनुसार “भारत में 2.11 लाख लोग जर्मन सीख रहे हैं. 2015 से वहां
जर्मन सीखने वालों की तादाद 57,000 बढ़ी
है। वैसे स्कूलों में विदेशी भाषा के तौर पर जर्मन फ्रेंच के बाद दूसरे स्थान पर है
लेकिन यूनिवर्सिटियों में जर्मन को लेकर बहुत क्रेज है। वहां पांच साल में जर्मन सीखने
वालों की संख्या 13 गुना वृद्धि के साथ 2,300 से 30 हजार तक जा पहुंची है। जर्मनी को पढ़ाई और रिसर्च
के लिए एक आर्कषक देश माना जाता है।”[4]
स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा के रूप जर्मन और हिंदी का व्यतिरेकी
विश्लेषण और अनुवाद-
राम घर जाता है। (स्रोत भाषा हिंदी)
Ram geht nach Hause. (लक्ष्य भाषा जर्मन)
इस वाक्य का महत्त्व इसलिए है हिंदी के वाक्य को जर्मन में
अनुवाद किया गया है। स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा का व्यतिरेकी विश्लेषण किया जाए तो
दोनों के भाषिक संरचना दोनों भाषा की विविधता को रेखांकित करने के लिए पहले अनूदित
करना अनिवार्य है।
राम घर जाता है। (स्रोत भाषा हिंदी)
Ram geht nach Hause. (लक्ष्य भाषा जर्मन)
हिंदी
वाक्य की लिपि देवनागरी है जबकि जर्मन वाक्य की लिपि रोमन है।
राम घर जाता है। कर्ता, कर्म
और क्रिया SOV
Ram geht nach Hause. S/V/O जर्मन भाषा में तो क्रिया हमेशा दूसरी
स्थान पर रहती है।
Heute
kommt Ram um
9.Uhr
राम
आज 9 बजे आ रहा है।
दोनों
के वाक्य संरचना में जो विषमता पाई गई उसके लिए व्यतिपेरक विश्लेषण किया गया किन्तु
यह बिना अनुवाद किए संभव नहीं है।
स्रोत
भाषा और लक्ष्य भाषा के स्तरों का समिश्रण-
जर्मन |
हिंदी |
Er ist gegangen
|
वह चला गया है। |
Sie ist gegagen
|
वह चली गयी है। |
जर्मन
भाषा में देखते हैं कि लिंग भेद सर्वनाम Er/Sie के आधार पर हुआ है जबकि हिंदी भाषा में यह कार्य क्रिया
के द्वारा हुआ है। चला गया है और चली गई है। अर्थात जर्मन में शब्दपरक और हिंदी में
रूपपरक का भेद हुआ है।
जर्मन
और हिंदी भाषा के सर्वनाम की विषमता को रेखांकित करना अनिवार्य है-
Er |
वह |
Sie |
|
Es |
|
Ist das dein Buch? |
क्या यह तुम्हारी
किताब है? |
जर्मन
भाषा में देखा जा सकता है कि क्रम द्वारा निर्देशक वाक्य को बदला गया है जबकि हिंदी
भाषा देखा जा सकता है कि प्रश्नवाचक सर्वनाम द्वारा ही ऐसे वाक्य को बदला जा सकता है।
यहाँ जर्मन में वाक्यपरक और हिंदी में शब्दपरक का बदलाव हुआ है।
Bitte
komm herein- अंदर आइए
Bitte
setzen Sie hier - यहां बैठिए
जर्मन के बीटे शब्द का अर्थ कृपया हिंदी में क्रिया के शिष्ट
रूप (आइए बैठिए) में समाहित है। इसलिए इस शब्द को अलग से अनुवाद करने की आवश्यकता नहीं
है। किन्तु ऐसा देखा जाता है कि निर्देश/सुझाव में इस शब्द का प्रयोग होता है।
Er kann schwimmen. |
उसे तैरना आता है। |
वह तैरना जनता है। |
|
वह तैर सकता है। |
जर्मन वाक्य में वह के लिए Er एर का प्रयोग
हुआ है जिससे यह पता चलता है कर्ता का लिंग
पुल्लिंग है या लिंग भेद सर्वनाम के पुल्लिंग का प्रयोग हुआ है। किन्तु हिंदी यहाँ
स्रोत भाषा के रूप में है और जब हिंदी अनूदित वाक्य को देखते हैं तो यह लिंग का भेद
क्रिया से स्पष्ट होता है। जहां जानता है। इसे लिंग सापेक्ष रचना कह सकते हैं। जबकि
हिंदी के दूसरे अनूदित वाक्य में उसे तैरना आता है में पुल्लिंग की स्पष्टता तैरना
संज्ञयार्थ से स्पष्ट होता है। यहाँ विधेय की क्रिया की उपस्थिती के साथ हुई। ऐसे वाक्य
के कारण कर्ता के लिंग का पता नहीं चलता है। इसे लिंग निरपेक्ष वाक्य रचना कह सकते
हैं। अनूदित किए हुए तीसरे वाक्य में तैर सकना का अर्थ क्षमता से है। इस प्रकार भाषिक
विषमता को सझ सकते हैं। क्योंकि इस अनुवाद के दौरान भी अनुवादक के सामने यह विषमता
आती है ।यहाँ दोनों अनुवाद में अंतर है और इसका प्रयोग अलग अलग संदर्भ में इसका प्रयोग
किया जा सकता है।
Ich
mag klassische Musik |
मैं शास्त्रीय संगीत सुनना पसंद करता हूँ। मैं शास्त्रीय संगीत सुनना पसंद करती हूँ। मुझे शास्त्रीय संगीत पसंद हैं। |
Großvater |
दादा और नाना |
Gromutter |
दादी और नानी |
Alt |
पुराना और उम्र(अवस्था) |
शब्द के स्तर पर जर्मन में अभेद और हिंदी में विभेद को समझा
जा सकता है।
इसी प्रकार निम्नलिखित वाक्य के स्तर पर भी जर्मन में अभेद
और हिंदी में विभेद का समझा जा सकता है-
Ich gehe nach
Hause. |
मैं घर जा रहा हूँ। (पुल्लिंग) |
मैं घर जा रही हूँ। (स्त्रीलिंग) |
Personal Pronomen सर्वनाम
(Nominativ)
Singular |
Plural |
|
1. PERSON उत्तम पुरुष- |
Ich मैं |
Wir हम लोग |
2. PERSON मध्यम पुरुष |
Du तुम |
Sie
(Höflichkeitsform) आप
|
3. PERSON अन्य पुरुष |
er
(maskulin) वह
|
sie वे लोग |
Konjugation Präsens gehen/ जाना
Singular |
Plural |
|
1. PERSON उत्तम पुरुष- |
ich geh-e मैं जाता हूँ। मैं
जाती हूँ। मैं
जा रहा हूँ। मैं
जा रही हूँ। |
wir
geh-en हम लोग जाते हैं। हम लोग जा रहें हैं। |
2. PERSON मध्यम पुरुष |
du geh-st- तुम
जा रहे हो /तुम
जाते हो। आप जा रहे हैं। आप जाते हैं। |
ihr geht- तुम
लोग जाते हो । तुम लोग जा रहे
हो। आप
लोग जाते हैं आप लोग जा रहे हैं। |
3. PERSON अन्य पुरुष- |
er geh-t वह जाता है। |
sie geh-en वे लोग जाते हैं वे लोग जा
रहे हैं। |
व्यतिरेकी विश्लेषण की उपयोगिता
व्यतिरेकी विश्लेषण को भाषा सीखने और सिखाने वालों के लिए
महत्वपूर्ण रूप से प्रयोग में लाया जा सकता है। व्यतिरेकी विश्लेषण ऐसा माध्यम है।
जिसके आधार पर भाषा के विभिन्न स्तरों को ढूँढ कर मौखिकी भाषा में भी सुधार किया जा
सकता है। व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रयोग मुख्य रूप से अनुवादक, जनसंचार में
काम करने वाले पत्रकार मशीन अनुवाद क्षेत्र में काम करने वाले इंजीनियर तथा यह भाषा
कर्मियों के लिए प्रासंगिक है। दूसरा एक और उदाहरण गूगल अनुवाद का दिया जा सकता है
जहां व्यतिरेकी विश्लेषण के माध्यम से अनूदित रचनाओं में सुधार किया जा सकता है।
जर्मन और हिंदी भाष का सांस्कृतिक व्यतिरेकी विश्लेषण
जर्मन भाषा को Deutsch, डॉयट्श कहा जाता है। भाषा बोलने वाले की संख्या के दृष्टि से देखा जाए तो यह यूरोप
की सब से अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह न सिर्फ जर्मनी की राष्ट्र भाषा है बल्कि
राजभाषा भी है। इसके साथ स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया की संपर्क भाषा और राजभाषा है। यह भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती
है। किन्तु अँग्रेजी भाषा की तुलना में a o u पर उमलाउट लगाया जाता है। जो इस
प्रकार है- ä/ö/ü/ß/Ä/Ö/Ü। इसे Indo-European इंडो-यूरोपीय भाषा-परिवार की
जर्मनिक शाखा के अंतर्गत रखा गया है। साहित्य क्षेत्र में जर्मनी में बहुत आगे है।नइसी का परिणाम था कि फ्रैंकफुर्ट
स्कूल जैसी विश्वप्रसिद्ध संस्थान का स्थापना होती है। जर्मन भाषा लगभग 14.1 करोड़
(12 करोड़ की मातृभाषा और 2.1 करोड़ लोगों की द्वितीय भाषा है। भाषा कोड इसका de है।
वहीं दूसरी तरफ हिंदी भाषा बोलने
वाली की संख्या 53 करोड़(43.63 की मातृभाषा और 9.37 करोड़ लोगों की द्वितीय भाषा है।
एक बात तो स्पष्ट है कि जर्मन की तुलना में हिंदी बोलने वालों की संख्या बहुत अधिक
है। हिंदी का कोड hin है।
हिंदी संख्या बल के हिसाब से विश्व की एक प्रमुख भाषा बन
जाती है। यह भारत में संघ की राजभाषा है जबकि संघ के कई राज्यों नें हिंदी को राजभाषा
का दर्जा नहीं दिया है। हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है। एक तरफ जर्मनी में प्राथमिक
शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी विषय की पढ़ाई जर्मन भाषा में की जा सकती है। जबकि
भारत में हिंदी बोलने वाले प्रदेश में भी हिंदी भाषा में सभी की प्रकार की शिक्षा नहीं
होती है। जर्मनी में राजभाषा का पालन अनुकूल तरीके से होता है वहीं भारत में स्थिति
प्रतिकूल है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की पांच राज भाषाओं में जर्मन और हिंदी
दोनों को आधिकारिक दर्जा प्राप्त नहीं है। किंतु संयुक्त राष्ट्रसंघ की सभी रिपोर्ट
को जर्मनी में देश की जनता के लिए अनुवाद करवाता है। यहाँ रेडियो प्रसारण सेवा भी प्रदान
करता है जबकि हिंदी भाषा में संयुक्त राष्ट्र की खबरों को न तो अनुवादित किया जाता
है न ही आशु अनुवाद के माध्यम से इसका प्रसारण किया जाता है। कभी होता है भी है तो
यह संख्या राई के ढेर में सुई ढूँढने जैसी है।
जर्मन भाषी साहित्यकार नें एक तरफ जहां 10 बार साहित्य में
नोबल पुरस्कार जीत चुके हैं। हिंदी भाषी साहित्यकार नें अभी तक एक भी पुरस्कार नहीं
जीता है। इसलिए व्यतिरेकी विश्लेषण सभी क्षेत्र में अवसर
प्रदान करने में सहायक हो सकता है। आवश्यकता है कि भाषा विज्ञान में अधिक से अधिक कार्य
करने की तभी यह संभव हो पाएगा।
निष्कर्ष
भारत के विद्यालय में दूसरी भाषा सीखाने के लिए अनुवाद का
सहारा लिया जाता है। किन्तु व्यतिरेकी विश्लेषण के आधार पर कभी इसे विश्लेषित करने
की बात नहीं होती है। अनुवाद करते समय सिर्फ शाब्दिक अनुवाद की चर्चा होती है। ध्वनि, लेखन, व्याकरण, शब्द, अर्थ, लिपि संस्कृति
के आधार पर ही दो भाषाओं में विषमता कभी ढूँढने का प्रयास नहीं किया जाता है। यदि व्यतिरेकी
विश्लेषण को ध्यान में रखकर भाषा की शिक्षा दी जाएँ तो अनुवाद की दुनिया में एक नया
बदलाव आ सकता है। इस परिवर्तन का प्रभाव साहित्य और समाज पर भी पड़ेगा। हिंदी भाषा
के लिए अँग्रेजी का विकल्प आगे भी रहेगा लेकिन नई भाषाओं के साथ भी संबंध स्थापित
होने चाहिए।
संदर्भ सूची
[1]https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
[2] https://www.bbc.com/hindi/international/2015/01/150118_vert_cul_dangerous_book_du
[3] shorturl.at/acdfA
[4] https://www.dw.com/h
सहायक
ग्रंथ एवं इंटरनेट सामग्री
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काशी
(संस्करण – संवत्
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(भाषाविज्ञान से
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4.
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भोलानाथ तिवारी; मानक
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रामचंद्र शुक्ल; हिंदी साहित्य का इतिहास; मलिक एंड कंपनी; जयपुर (संस्करण – 2009)
11.
https://en.wikipedia.org/wiki/German_language
डॉ. कुमार माधव
अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन, डुंगरपुर राजस्थान
सम्पर्क : kumarmadhav071@gmail.com, 96520433290
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-33, सितम्बर-2020, चित्रांकन : अमित सोलंकी
'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL)
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