टिप्पणी : ओस आभा सा सृजन : कुसुमलता / डॉ. संदीप कुमार मेघवाल
इसी प्रकार की कला यात्रा मध्यप्रदेश
के ग्वालियर की चित्रकार डॉ. कुसुम शर्मा की रही हैं। कुसुम कहना हैं कि मेरी कला
प्रकृति के बहुत करीब हैं। एक चित्रकार के रूप मे कई प्रतीकात्मक और अमूर्त चित्र
बनाए हैं। जिनमें प्रकृति के कई रूप मेरे अनुसार, वास्तव में मानव स्वभाव का हिस्सा
हैं। प्रकृति और मनुष्य एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मनुष्य की कल्पना
नहीं की जा सकती। प्रकृति ब्रह्मांड की प्राप्ति है। कला में प्रकृति का अर्थ है
कि प्रभाव विशेष कलाकार का मौलिक सृजन आधार बनता हैं। प्रतीकात्मक और अमूर्त के
मिश्रण से बनी पेंटिंग जो मेरी मूल शैली है। मेरा चित्रण किसी प्रकृति विषय पर
आधारित है, जो वर्णनात्मक शैली में बना है, मैने अपनी पेंटिंग्स में धार्मिक
सामाजिक और आध्यात्मिक विषयों पर भी काम किया है, जैसे सृष्टि, रघुवंशम, कृष्ण लीला, द बर्थ, जल कुंभी इत्यादि
में एक्रेलिक इंक और पेस्टल से कैनवास और पेपर पर काम करती हूं कभी कभी मिक्स
मीडिया में भी काम करती हूं। कुसुम की कला को वर्णनात्मक चित्र कला शब्द प्रयोग
ठीक किया हैं। क्यूंकि इनके चित्र मूल रूप के अलावा अंदर के सहयोगी रूप वर्णनात्मक
चित्र कहानी कहते दिखाई पड़ते हैं। इसमें अनंत रूप विन्यास हैं। देखने पर चित्र
वर्णन खत्म नहीं हो रहा हैं।
अमूर्त रूप का प्रयोग भी कहां लेकिन
किसी रूप को कोई माध्यम मिल गया तो वह अमूर्त नहीं हो सकता, मूर्त हो जाता हैं।
सामान्यत: हमें किसी रूप से परिचय नहीं होता है, तो हम उन्हें
अमूर्त कह देते हैं। इनको अमूर्त की जगह नया विचार कहे तो सम्मानजनक होगा। कुसुम
की कला में बड़े रूप के प्रयोग के साथ भारतीय लघुचित्रण की तरह बारीकी लिए लोक रूप
अभिव्यंजीत है। यह ठीक वैसे ही जैसे अजंता की पद्मपाणी बोद्धिसत्व चित्र का
संपूर्ण प्रभाव और पृष्ठभूमि में विषय से सम्बन्धित अन्य मूल विषय से छोटे अनगिनत
रूप अभिव्यक्त हुए हैं। ठीक ऐसी ही कुशलता का प्रयोग कुसुम की कला में देखने को
मिलता हैं। किसी रूप विचार के साथ भावना और कौशल दक्षता का मेल हो जाए तो सुंदर
सृजन होता हैं।
कला इतिहास में बिंदुवाद के कलाकार
जॉर्ज सोरा की तुलना एक दक्ष गृहिणी से की है, ऐसी गृहिणी जो एकचित होकर, घर की सब वस्तुओं
को उचित स्थान पर सुव्यवस्थित रचाती हैं। सोरा की कला में रूपों का सरलीकृत कर
कुशलता पूर्वक बिंदु से चित्रण करने की देन हैं। मानो चित्र पर जैसे रंगीन
मधुमक्खियां बैठी हों। एक चित्र में लाखों की संख्या में बिंदु लगाने के कारण ही
सोरा की तुलना दक्ष गृहिणी से की है। बिंदु में कोई अन्य रूप आकृति नहीं बनाई पर
हां इसमें रंग विज्ञान का गहरा विचार हैं।
कुसुम की कला में भी बिंदुवाद की तरह छोटे छोटे बिंदुनुमा रूप
प्रतीकों का तानाबाना हैं। कुसुम ने लोक से जुड़े हुए प्रतीकों को बिंदुनुमा आकृति
में बनाया हैं। चित्र को ठीक पास से देखने पर बारीक प्रतीकों का अद्भुत लोक संसार
हैं। कुछ दूरी से देखने पर महीन
प्रतीकों की रचना से गूंथा हुआ सम्पूर्ण प्रभाव लिए मूल विषय स्पष्ट दिखाई पड़ता
हैं। इन प्रतीकों में लोक से जुड़े हुए रूपाक़ार है। गांव, शहर, बस्ती, झोपडी, पक्षी, पहाड़, अंतरिक्ष, झरना, नदी, नीला आकाश, पर्वत पठार, जैसा दिव्य संसार
दिखाई पड़ता हैं। यह अपने आसपास के लोक जीवन प्रकृति के प्रतिबिंब का सहज रूपांकन
हैं।
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जन्मी कुसुम की संपूर्ण शिक्षा दृश्यकला में हुई हैं। अभी भोपाल में रहकर ही कला साधनारत है। आपको चित्रण कला सृजन में कई राष्ट्रीय एवं अंतररष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार सम्मान मिले हैं। बॉम्बे आर्ट सोसायटी, हैदराबाद सोसायटी, प्रफुला धनकर मुंबई, रज्जा अवॉर्ड, आई सी सी अवॉर्ड मैक्सिको सिटी, यामिनी राय अवॉर्ड इत्यादि, आप कई कला शिविर कार्यशालाओं में हिस्सा बनकर कला सृजन किया है। आपकी कला एकल एवं समूह प्रदर्शनियां देश विदेश के कई हिस्सों की कला दीर्घाओं में प्रदर्शित हो चुकी हैं। आपको 2018 में सीसीआरटी के द्वारा सीनियर कलाकार श्रेणी में फैलोशिप भी प्रदान की गई हैं। आप कला जगत में कुसुम भोपाल, मध्यप्रदेश शहर में रहकर सक्रिय रूप से चित्र संसार रच रही हैं। ईमेल kusumbobby@gmail.com इनका संपर्क सूत्र हैं।
डॉ. संदीप कुमार मेघवाल, दृश्य कलाकार, उदयपुर
9024443502, ईमेल- sandeepart01@gmail.com
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-37, जुलाई-सितम्बर 2021, चित्रांकन : डॉ. कुसुमलता शर्मा UGC Care Listed Issue 'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL)
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