शोध आलेख : ‘राजस्थान की समकालीन हिंदी कहानी और ‘लाल बजरी की सड़क’ में यथार्थवाद / ममता यादव
शोध सार :
प्रस्तुत आलेख में इक्कीसवीं सदी की ज्वलंत समस्या अंतरजातीय प्रेम विवाह, बलात्कार, पितृसता मानसिकता से ग्रसित समाज, व परम्परा के नाम पर स्त्री का शोषण व सीमा पर सैनिकों की तनावपूर्ण स्थिति, गाँवों का शहर में तब्दील होना इत्यादि विषयों को लेखक ने कथा का आधार बनाया है। इन कहानियों में मानवीय संवेदना के साथ-साथ तार्तिक चिंतन भी मौजूद है। रचनात्मक वैशिष्ट्य व लोक रंग का बहुत ही सुंदर चित्रण किया गया है। कथाकार अपनी जमीन से जुड़े होने के कारण इनकी कहानियों में गाँव का वातावरण, वहाँ का परिवेश, संस्कृति चित्रमयी शैली की तरह कहानी में आ रहे हैं। समाज की विभिन्न कुरूतियों व विसंगतियों को गहराई से देख-परख कर नुकीला बनाकर कहानी की किस्सागोई में लाते हैं। उत्तराधुनिक समय में गाँवों का स्वरुप कैसे बदलता जा रहा है ? भूमंडलीकरण व संचार क्रांति के साथ-साथ बाजारवाद किस तरह पाँव फैला रहा है ? इक्कीसवीं सदी में समाज कितना असंवेदनशील होता जा रहा है ? समाज में रोज मानसिक हिंसा, घरेलू हिंसा, पारम्परिक रुढियों के चलते महिलाओं का शोषण व बलात्कार, मीडिया जगत की ताजपोश ? अंतरजातीय प्रेम की विफलता तो कहीं महिला सशक्तिकरण के नाम पर 'मी टू' आन्दोलन व 'कैंडल मार्च' करती महिलाओं का प्रतिरोध मुखर होकर इनकी कहानियों में आया है। शोषित स्त्री अपना पक्ष रखने में सक्षम है। उनका प्रतिरोध मुखर होकर आता है।
बीज शब्द : कसुमल रंग, बलात्कार ,स्त्री, पुरुष, सैनिक, प्रतिरोध, ढाई-ढूकला, फंतासी, फ्लैशबैक, यथार्थवाद।
मूल आलेख :
कहानी कहने और सुनने की प्रवृति मानव सभ्यता के समान अति प्राचीन है। आदिम मनुष्य ने अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए चाहे जो भी माध्यम अपनाया हो उसके पीछे कोई ना कोई कहानी अवश्य रही होगी। 1900 ई. में सरस्वती मासिक पत्रिका के उदय के साथ ही हिंदी में मौलिक कहानियों का जन्म होना माना जा सकता है । सन 1915 में ‘सरस्वती पत्रिका’ में प्रकाशित ‘उसने कहा था’ राजस्थान की प्रथम हिंदी कहानी मानी जाती है, जिसके रचनाकार पं.चंद्रधर शर्मा गुलेरी हैं। राजस्थान की हिंदी कहानी यात्रा को गति प्रदान करने में अन्य कहानीकारों का प्रमुख योगदान है। स्वतंत्रता के पश्चात कहानी विधा में कई आन्दोलन हुए जिनका प्रभाव राजस्थान के कथाकारों पर भी पड़ा और समकालीन समय की समस्याओं को अपनी रचना में उकेरा, साठोत्तरी कहानीकारों की कहानियाँ यथार्थ के धरातल पर रची गयी हैं। अपने समय के यथार्थ को जनसामान्य के सामने लाने की पुरजोर कोशिश की गई और अपनी पहचान मुख्यधारा के कथाकारों में बनायी। 1990 के दशक में अनेक विमर्शों की शुरुआत होती है, जिनमें प्रमुख हैं - स्त्री विमर्श, किन्नर विमर्श, वृद्ध विमर्श, आदिवासी विमर्श, दलित विमर्श, इन सभी विमर्शों के विषय पर राजस्थान के कथाकारों ने अपनी लेखनी चलायी। इक्कीसवीं सदी के कथाकारों में हेतु भारद्वाज, डॉ. सत्यनारायण सोनी, राजेश कुमार भटनागर, ईशमधु तलवार, हेमंत शेष, प्रेमचंद गांधी, विश्वम्भर पुरोहित, सोहनदास वैष्णव, योगेश कानवा, संदीप अवस्थी, संदीप मील, चरणसिंह पथिक, माधव राठौड़, डॉ.फ़तेह सिंह भाटी अग्रगण्य हैं, जो नए कलेवर व तेवर के साथ कहानी विधा को और अधिक पुष्ट कर रहे हैं। इन सभी कथाकारों को इक्कीसवीं सदी के पुरोधा कथाकार भी कहा जा सकता है। नब्बे के बाद उदारीकरण व निजीकरण ने अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए, जिसके कारण पूरा विश्व एक बाजार में तब्दील हो गया। साथ ही तकनीक के जरिए समाज व साहित्य को भी एक साझा मंच मिला है। जिससे समाज व साहित्य दोनों पर बहुत गहरा प्रभाव देखने को मिल रहा है। इस शोधालेख में सुप्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार व सम्पादक ईशमधु तलवार के कहानी संग्रह ‘लाल बजरी की सड़क’ की कहानियाँ अपने समकालीन साहित्य परिप्रेक्ष्य में अपना स्थान पाती है। किन-किन समस्याओं पर लेखक ने अपनी लेखनी चलायी है। साहित्यकार ईशमधु तलवार के समकालीन लेखकों के कहानी संग्रह की बात की जाये तो इनमें प्रमुख रूप से चरण सिंह पथिक का कहानी संग्रह ‘मै बीड़ी पीकर झूठ नहीं बोलता’ की कहानियों मे विशेष रूप से समानता नजर आती है, इस संग्रह की ‘कसाई’ कहानी के जरिये गाँवों की राजनीति से राष्ट्र की राजनीति को समझ सकते हैं। इस कहानी में पात्र गुलबी का प्रतिरोध इतना मुखर होता हैं की रिश्तों की मर्यादों को तोड़कर अपने पति व परिवार का विरोध भरी मंडली में करती है, ऐसा ही प्रतिरोध ‘नीम अंधेरा’ के पात्र संतों करती है गाँवो का बदलता स्वरूप दोनों ही कथाकारों की कहानियों मे देखने को मिलता है तो वहीं समकालीन लेखक किशोर चौधरी की कहानी ‘छोरी कमली’ का प्रमुख विषय अंतरजातीय प्रेम विवाह है। समकालीन लेखकों के मुख्य विषय रूढ़िवादी परम्पराओं का प्रतिरोध, आमजन के जीवन के संघर्ष, विसंगतियों, विषमताओं एवं विद्रूपताओं की खुली पहचान करना है। इन सभी विषय पर शोधालेख में संक्षेप में विचार किया गया है। इनकी कहानियों के प्रमुख विषय समाज से सीधे सरोकार रखते हैं। इन्होंने समाज की कड़वी सच्चाई से पाठकों को रु-ब-रु करवाया है। राजस्थान के समकालीन कहानीकार अपने परिवेश के प्रति अपने समय की परिस्थिति के प्रति सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, इत्यादि संबंध होने के कारण इन कहानियों को समकालीन कहानी कही जा सकती है। इन सभी विषय पर शोधालेख में संक्षेप मे विचार किया गया है।
यथार्थवाद का अर्थ-: यथार्थवाद का अंग्रेजी रुपांतरण realism है। real शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के realis से हुई है जिसका अर्थ है 'वस्तु' । इस प्रकार realism का शाब्दिक अर्थ हुआ 'वस्तु वाद' या वस्तु सम्बन्धी विचारधारा। वस्तुतः यथार्थवाद वस्तु सम्बन्धी विचारों के प्रति एक दृष्टिकोण है जिसके अनुसार संसार की वस्तुएं यथार्थ हैं। इस वाद के अनुसार केवल इन्द्रीयजन ज्ञान ही सत्य है। अर्थात संसार में जो घटनाएँ हमारे आस-पास घटती हैं, जिसको हम अनुभव कर सकते हैं, जो वास्तविक हैं, सत्य हैं, जो दिखाई देती हैं, वे यथार्थ हैं। यथार्थवाद साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है। जिसका उदय उन्नीसवीं सदी में हुआ था। मार्क्सवाद का सम्बन्ध प्रगतिवाद से माना जाता है और प्रगतिवाद को यदि यथार्थ पर आधारित सिद्धांत कहेंगे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। यही कारण है कि हिंदी साहित्य में यथार्थ की आलोचनात्मक अभिव्यक्ति उन्नीसवीं सदी के आधुनिक साहित्य में होने लगती है, लेकिन प्रभाव प्रगतिशील आंदोलन से दिखाई देने लगता है।
डॉ. शिव कुमार मिश्र के शब्दों में “यथार्थवाद सत्य को उजागर करने वाली कला
है और वह उसे ईमानदारी तथा सम्पूर्ण वस्तुपरकता के साथ उजागर करती है। यह सही है
कि सच्ची यथार्थदृष्टि वस्तुनिष्ट होती है, परन्तु वह मात्र संकलनात्मक नहीं होती।
यह भी सही है कि यथार्थवादी लेखक सत्य को ब्यौरेवार प्रस्तुत करता है, परन्तु उसे मात्र ‘फोटोग्राफिक’ नहीं बना देता। यथार्थवादी रचनाकार इस
अनंत रूपात्मक जगत तथा उसके समूचे विस्तार को पैनी नज़रों से देखता है। व्यापक
सामाजिक जीवन में प्रविष्ट होकर नाना प्रकार की स्थितियों तथा चरित्रों से
साक्षात्कार करता है, अनुभवों
की मूल्यवान समष्टि का स्वामी बनता है, किन्तु सारी बातों को फोटोग्राफिक शैली में
ज्यों का त्यों प्रस्तुत नहीं कर देता। सारी घटनाओं तथा पात्रों को सामाजिक जीवन
से प्राप्त यथार्थ अनुभवों की खराद पर चढ़ाता है, उन्हें तरासता है, नुकीला बनाता है और अपनी कृति के अंतर्गत
उनकी कलात्मक नियोजन करता है”1 अर्थात कह सकते हैं कि लेखक अपने आस-पास के
परिवेशजन्य घटनाओं को अपनी लेखनी की कला से अपनी रचना में वास्तविकता को जनसामान्य
या पाठक वर्ग तक पहुंचाने का काम करता है। जिस समय जो घट रहा है। उस विषय की
समस्या को ईमानदारी से उठाना और अपनी रचना में शामिल करना ही यथार्थवाद है।
इक्कीसवीं सदी के कथाकारों की अपनी कहन शैली व तेवर नये ढंग से उभरकर आये हैं। सभी कथाकारों की अपनी भाषा शैली है। प्रस्तुत कहानी संग्रह ‘लाल बजरी की सड़क’ के कथाकार ईशमधु तलवार की गिनती इक्कीसवीं सदी के पुरोधा कहानीकारों में की जाती है। इनकी कहानियां समाज का आईना है । इनकी कहानियों में इनके व्यक्तित्व की छाप नजर आती है। ‘रफ ड्राफ्ट’ कहानी पर पत्रकारिता का प्रभाव मिलता है, तो वहीं ‘दफन नदी’ कहानी उनकी माँ की यादों का बक्सा कहा जा सकता है। इनकी कहानियों पर संगीतकार का प्रभाव भी लगता है। सभी कहानियाँ अलग-अलग विषयों पर लिखी गयी हैं। ये कथाकार अपनी जमीन से जुड़े हैं। इनकी कहानियों में गाँव का वातावरण, वहाँ का परिवेश, संस्कृति चित्रमयी शैली की तरह कहानी में आ रही है। समाज की विभिन्न कुरूतियों व विसंगतियों को गहराई से देख-परख कर नुकीला बनाकर कहानी की किस्सागोई में लाते हैं। उत्तराधुनिक समय में गाँवों का स्वरुप कैसे बदलता जा रहा है ? भूमंडलीकरण व संचार क्रांति के साथ- साथ बाजारवाद किस तरह पाँव फैला रहा है ? इक्कीसवीं सदी में समाज कितना असंवेदनशील होता जा रहा है ? समाज में रोज मानसिक हिंसा, घरेलू हिंसा, पारम्परिक रुढियों के चलते महिलाओं का शोषण व बलात्कार, मीडिया जगत की ताजपाशी, सीमा पर जवानों की तनावपूर्ण स्थिति ? अंतरजातीय प्रेम की विफलता तो कहीं महिला सशक्तिकरण के नाम पर मीटू आन्दोलन व कैंडल मार्च करती महिलाओं का प्रतिरोध मुखर होकर इनकी कहानियों में देखने को मिलता है? तो सबसे महत्वपूर्ण विषय इन कथाकारों ने पुरुषों की पितृसत्तात्मक मानसिकता की पोल खोलकर रख दी है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार ईशमधु तलवार के व्यक्तित्व के भी विभिन्न आयाम हैं। ईशमधु कथाकार होने के साथ-साथ अच्छे पत्रकार भी रहे हैं। इनका बचपन गाँव में बीता, इनके गाँव के आस-पास का परिवेश, भाषा, रहन-सहन व वहाँ की समस्याएं ही इनकी कहानियों के लिए कच्चे माल की तरह उपयोगी रही। इनका उपन्यास ‘रिनाल खुर्द’ देश विभाजन की त्रासदी पर आधारित है । इन्होंने बॉलीवुड के प्रसिद्ध संगीतकार दानसिंह के जीवन संघर्ष पर लिखी पुस्तक ‘वो तेरे प्यार का गम’ चर्चित कृति रही है । कोरोना काल पर इनकी कहानी ‘’चीन का पंक्षी उड़ उड़ आय’ कहानी बहुत ही मार्मिक व तार्किक है। कथाकार अपने गाँव की सौंधी महक के साथ वहां के लोगों की यादें भी अपने जहन में बरकरार रखते हुए कहानी का प्लाट तैयार करता है। इनकी पहली कहानी ‘लाल बजरी की सड़क’ जो 1986 में सारिका पत्रिका में प्रकाशित हुई। इसी कहानी को केंद्र में रखकर लेखक ने अपने पहले कहानी संग्रह का नाम ‘लाल बजरी की सड़क’ रखा जो 2019 में कलमकार मंच, जयपुर से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में कुल आठ कहानियां हैं। सभी कहानियों का अपना अलग कलेवर व कहन है। कोई भी कहानी छोटी नहीं कही जा सकती। सभी कहानियों की अलग-अलग समस्या है। सभी कहानियों में एक बात समान है वो है,पूर्वदीप्त शैली। लेखक की यह शैली ही उन्हें अन्य कथाकारों से अलग स्थान पर लाकर खड़ा करती है। सभी कहानियां समाज के यथार्थ पर लिखी गयी हैं। अलवर जिले की स्थानीय बोली मेवाती का बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रण किया है। कहानी की बात करें तो कहानी की किस्सागोई एकदम धारा प्रवाह पाठक को बांधे रखती है। इनके कहानी संग्रह में लोक रंग बहुत ही सुंदर ढंग से आते हैं। इक्कीसवीं सदी की समस्याओं को तो कथाकार ने बखूबी ध्यान में रखा है। साथ ही समाज की समस्याएं पाठक वर्ग के सामने प्रतिबिम्ब बनकर नजर आने लगता हैं। कहानी के साथ पाठक छोटे बच्चे की तरह उंगली पकड़कर चलता रहता है। इसी आत्मीयता व भावनात्मक स्तर पर कहानी लाकर छोडती है। संग्रह की ‘रफ ड्राफ्ट’ कहानी में एक लेखक की व्याकुलता और द्वन्द के साथ-साथ लेखक की विवशताओं का बहुत ही सुंदर शैली में वर्णन किया गया है। इस कहानी पर लेखक का एक रिपोर्टर होने का प्रभाव लगता है। इस कहानी का मुख्य विषय ‘बलात्कार’ है। एक स्त्री के साथ “वहशियाना हमला; चेहरे को नोचा गया, जिस्म पर जगह- जगह चोट के निशान, दरिंदगी की कहानी कह रहे थे। दुष्कर्म के बाद उसे सड़क के किनारे फेंकदिया गया था”2 आये दिन किसी न किसी उम्र की महिला के साथ दुष्कर्म की खबर सुनने को मिलती रहती है और पीड़िता अपने भविष्य की जिन्दगी के लिए लड़ाई लड़ती रहती है। बार-बार कभी डॉक्टर से, कभी मीडिया से तो कभी कानून के रखवालों से एक ही बात को दोहराकर उस हादसे से बार-बार गुजरती है। एक स्त्री का विरोध इस कहानी में बखूबी दिखाया गया है। “एक तो आपने मेरे साथ दुष्कर्म करा दिया, ऊपर से आप एक लड़की को एक्सपोज कर इस घटना को अब पूरे समाज को बताना चाहते हो? क्या ऐसा करके आप दुष्कर्म नहीं कर रहे? इसलिए मैंने नकली नाम रखा है-रजनी। फिर समाज को कैसे पता चलेगा कि तुम्हारे साथ दुष्कर्म हुआ? मर्द के लिए नाम कोई मायने नहीं रखता। उसके लिए स्त्री होना ही काफी है।”3
'रफ ड्राफ्ट' कहानी में एक महिला का प्रतिरोध मुखर
होकर आता है। वह कहती है किसी जमाने में स्त्री को देवी कहकर छला गया। अब तुम उसे
निर्भया कह कर छलना चाहते हो।” पीड़िता कहती है कि नाम बदलने से समस्या नहीं
बदल रही। जिस प्रकार रफ कॉपी पर कुछ भी लिखकर मिटा सकते हैं, वैसे ही कथाकार रफ ड्राफ्ट में पात्रों,
चरित्रों को बदल
देता है। बलात्कार पीड़िता मानसिक तनाव से गुजरती रहती है। तो वहीं कहानी में कानून
व्यवस्था पर भी व्यंग्य किया गया है। एक लेखक होने के नाते आज के समय को जैसा है
वैसा लिखता है। प्रस्तुत संग्रह की पहली कहानी ‘जीरो लाइन’ में सीमा सुरक्षा के जवान पात्र
नत्थूराम के जरिए एक सैनिक की बॉर्डर पर मनोस्थिति से बखूबी परिचित कराया है।
जिसमें फौजियों के ह्र्दय में सभी के लिए अनुराग है तो जिस्म पर वर्दी की कठोरता
के बीच कशमकश की जिन्दगीं जीता जवान है। नत्थूराम की यह कहानी पूरे भारत के जवानों
की कहानी कहती है। जो सैनिक सीमा पर माहौल ठीक रहने पर आपस में भाईचारे से मिलते
हैं साथ उठते -बैठते हैं एवं अपनी-अपनी संस्कृति का बखान करते हैं। वही सैनिक सीमा
पर तनाव जैसे प्रतिदिन सीमा का उल्लंघन और गोलीबारी के साथ बढ़ती आतंकी गतिविधि को
देखकर अपना कड़ा विरोध दर्ज करते हैं, तो भाईचारा दुश्मनी में तब्दील हो जाता है।
जहाँ फूल उगाये गये थे, वहां
कांटो की लम्बी लम्बी जालियाँ खींच दी जाती हैं। फूलों का कांटो में बदलना एक
सैनिक को असंवेदनशील बनने पर मजबूर कर देता है। इसी कहानी में बॉर्डर का यह दृश्य “आदमी को जानवर में बदलने का यह स्विच
ऊपर से दबाया गया है। सुबह अखबारों में खबर थी कि पाकिस्तान के वजीरे आजम की
कुर्सी तेजी से डोल रही है और सत्ता के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई है। पाक के
शहरों में हाहाकार मचा हुआ है। पुलिस फायरिंग में कई लोगों की मौत हो चुकी है।
सेना ने मोर्चा सम्भाल लिया है। जब भी ऐसा होता है,सरकारें जनता का ध्यान बंटाने के लिए
बॉर्डर पर पतंग की तरह डोर की खींच बढ़ा देती हैं। ऊपर से डोर कसी जाती है और
बॉर्डर पर खूंखार चेहरे नजर आने लगते हैं।”4 इस कहानी में लेखक ने मानवीय प्रेम से बढ़कर
राष्ट्रप्रेम को दर्शाया है। यह कहानी सीमा पर तैनात जवान की शारीरिक इच्छा को भी
उजागर करती है। साथ ही सीमा पार से आ रहे अफीम तस्कर व आतंकवादी को सैनिक नत्थू
किस तरह उस बाहरी तस्कर को शिकंजे में कसता है और देश की सुरक्षा करता है। इस
संग्रह को केंद्र में रखकर लिखी गयी कहानी 'लाल बजरी की सड़क' में प्रकृति का सौन्दर्यमयी चित्रण के
साथ-साथ लेखक ने युवा मन का हाल बेहद ही सुंदर शब्दों के साथ व्यक्त किया है।
कहानी 'मैं'
शैली में रची
गयी है। जिस प्रकार समुंद्र में लहरें ऊपर-नीचे उठती हैं उसी प्रकार युवा मन भी
अनंत कल्पनाएँ बुनने लगता है। नायक का नायिका के लिए अटूट प्रेम जो एक स्पर्श भर
से ही सिहरन पैदा कर देता है। नायिका इला को याद करता है। और इला के बिछुड़ने के
बाद अकेला थका हुआ स्वयं को पाता है। लाल बजरी की सड़क पर, यादों के बोझ को कन्धों पर लादे रहता
है और चलता है। लाल बजरी की सड़क पर “यही सड़क जब अस्पताल को जाती है तो कैसी लगती
है-दरख्तों की छांव में सनी सामने अस्पताल की बिल्डिंग तक दौड़ती सड़क लगता है,
ऑपरेशन थियेटर
तक ले जाकर ही दम लेगी। यही सड़क जब कॉलेज कैम्पस को जाती है तो कैसी लगती है-चारों
और जींस पहने लड़के-लड़कियां हाथ में दबी पुस्तकें सर्र से गुजरती कारें, स्कूटर, अजीब-सी खुशबूओं के झौंके। यही सड़क जब
शादी के घर के दोनों और गमले लगाकर दुल्हन-सी सजाई जाती है तो कैसी लगती है। लोगों
के पाँव इस सड़क पर अंग्रेजी धुन के साथ कैसे थिरकने लगते हैं शादी, दुल्हन गमले।”5
यह कहानी जिन्दगी के सफ़र को एक सड़क के माध्यम से तय करने की कवायद करती है कि एक सड़क बहुत जगह जाती है लेकिन तय इंसान को करना है कि उसे जाना कहा हैं? रुकना कहाँ हैं? पैंतीस साल पहले लिखी गयी कहानी आज भी युवाओं के दिलों पर गहरी छाप छोडती है। इसी संग्रह की ‘दफन नदी’ कहानी में देश विभाजन (भारत-पाकिस्तान) की त्रासदी का बहुत ही मार्मिक वर्णन है, जो सीमा पार बसे अपनों के प्रेम में पड़ी मांडूली उर्फ़ सलमा के दफ़न की कहानी कहती है। भौतिक दृष्टि से राजस्थान में विलुप्त होती सरस्वती नदी जो कि पाकिस्तान में हाकड़ा नदी बनकर दफ़न हो जाती है। कहानी की पात्र मांडूली पाकिस्तान में सलमा बनने का सफर तय करती है। पाकिस्तान में भी सलमा अपने देश हिन्दुस्तान के लोकगीत के रंग बिखेरती है।
“मारू थारे देस में निपजें तीन रतन
एक
ढोला, दूजी
मारवन, तीजो
कसूमल रंग।”6
इस कहानी में पात्र सलमा द्वारा अपनी मिट्टी का दूसरे देश में जाकर भी गुणगान करते हुए दिखाया गया है। इस कहानी का पात्र अरबाज,जो शराब पीकर सलमा से रोज मारपीट करता था, घरेलू हिंसा भी इस कहानी में दिखाई है तो वही सलमा द्वारा आत्महत्या कर लेना इस कहानी को कमजोर कर देती है। लेकिन हमारे समाज की यही विसंगति है। कहानीकार ने समाज में व्याप्त समस्या से पाठकवर्ग को सच्चाई दिखाई है, आगे चलकर लेखक ने इसी कहानी को आधार बनाकर ‘रिनाल खुर्द’ उपन्यास लिखा है । तो वहीं अंतिम कहानी ‘क्यों’एक प्रश्नवाचक शैली में पितृसत्ता सोच के ऊपर ‘मी टू’ के जरिए तमाचा मारा है। इक्कीसवीं सदी में स्त्री 'मी टू' आन्दोलन के जरिए अपने ऊपर हुए शारीरिक शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही है। यह कहानी आज की स्त्री की अपने ऊपर हुए अत्याचारों पर प्रतिक्रिया देने वाली कहानी है। तो वहीं ‘खड़खड़ाते पत्ते’ कहानी के पात्र अंजली अपने प्रेमी, दोस्त, पात्र नीलकांत से कहती है कि तुम्हे ‘ब्रॉड माइंडेड’ होना पड़ेगा तो वही नीलकांत अपनी प्रेमिका को पाने के लिए बाजारवाद के प्रभाव में आकर देखा-देखी कार खरीद लेता है। विश्वविद्यालय वातावरण व परिवेश को इस कहानी के जरिये बखूबी समझ सकते हैं। यह कहानी विश्वविद्यालय छात्रों के जीवन में प्रेम पर आधारित एक अधूरी प्रेम कहानी है। “फूल सुख गए, रामगढ बाँध का पानी सूख गया, मोहब्बत सूख गई।”7
इस कहानी में लेखक ने कवितात्मक शैली को अपनाया है। ‘नीम अँधेरा’ कहानी गाँव की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी कहानी है । लेखक ने इक्कीसवीं सदी में विलुप्त खेल ढाई-दुकला(छुपम-छुपाई) व गुलाम लाकड़ी व (काईडंका) को संरक्षित करने का प्रयास किया है। यह कहानी अंतरजातीय प्रेम कथा पर आधारित है, जिसका नायक भोर्यां निम्न जाति का है। वही नायिका संतो उच्च जाति की है ।इनके प्रेम पर समाज का आतंक जमा होता है और निम्न जाति के पात्र भोर्यां की हत्या करके आत्महत्या का करार पंच सरपंचो द्वारा दिलवाया जाता है। “यह तुमने क्या किया ससुर जी ? “एक ही आदमी को आपने दो बार मारा! गरीब आदमी की बार- बार मौत होती है। पहले इंसान को मारा, फिर उसने जानवर की जूण में जन्म लिया तो उसे भी नहीं छोड़ा । क्या इसे हर जूण में मारते रहोगे? यह कहाँ का न्याय है ?”8 इक्कीसवीं सदी में भी जहाँ कानून व्यवस्था पूरे देश में लागू है, वहां पंच सरपंचो द्वारा न्याय किया जाता है। घर के कामों में खटती संतों और साथ में परिवार वालों का शोषण व रूढ़िगत परम्पराओं को संतों पर थोपना पति के मर जाने पर उसके भाई से नाता जोड़ना, आज के समय में भी गलत परम्पराओं को बढ़ावा देते समाज को लेखक ने सबके सामने रखा है। इस कहानी में मुहावरे और लोकोक्ति स्वाभाविक ही आ जाते हैं। देशज शब्दों की वजह से कहानी में मनोरंजनात्मकता बनी रहती है तो वहीं संग्रह की लयकारी कहानी में एक गाँव शहर की चपेट में आ जाने पर गाँव नहीं रहता। “शहर जब फैलता है तो गाँव को भी अपने पंजों में ले लेता है। जुगावर गाँव के साथ भी यही हुआ, जहाँ लयकारी रहती थी। गाँवों के चारों और खेत थे। इन खेतों पर मकान खड़े हो गये और नाम पड़ गया मालवीय नगर।”9 इस कहानी की भी मुख्य समस्या ‘सामूहिक बलात्कार’ है। पात्र लयकारी के साथ पहले बहुत से लोग शादी का झांसा देकर सम्बन्ध बनाते हैं और बाद में उसके साथ सामूहिक बलात्कार करके मरने के लिए छोड़ देते हैं। फिर भीड़ उमड़ती है, हड़तालें होती हैं,नेताओं के दौरे शुरू होते हैं। इन सब में लयकारी के साथ हुआ सामूहिक दुष्कर्म एक राजनीति अखाड़ा बनकर रह जाता है।
मशहूर कथाकार ममता कालिया ने लाल बजरी की सड़क कहानी संग्रह के बारे में कहा कि “एक ऐसे समय जब हिंदी कहानी में विवाद समाप्त हो गये हैं और विमर्श बूढ़े, ईश मधु तलवार के कहानी संग्रह ‘लाल बजरी की सड़क’ की कहानियां गहरी आश्वस्ति और आशा का सन्देश देती हैं।”10 यह कहानी संग्रह एक तरह से समाज का आईना दिखाने का भरसक प्रयास करता है। लेखक ने वर्तमान समय में समाज में प्रतिदिन घट रही घटनाओं को ध्यान में रखकर विषयों को चुना है। समाज के यथार्थ को पाठक वर्ग के सामने लाने का पूरा प्रयास इस कहानी संग्रह में किया गया है। यह कहानी संग्रह पाठक को लेखक के रचनात्मक विविधता के बारे में बताता है। बलात्कार, सीमा पर जवानों की मनोस्थिति, अंतरजातीय प्रेम सम्बन्ध, गाँवों पर बाजारवाद का प्रभाव, गाँवों का शहरों में तब्दील होना एवं प्रेम के विषय को खुलकर उठाया गया है। भाषा शैली चुस्त व भावात्मकता के उच्च शिखर को छूती नजर आती है। इस कहानी संग्रह में मानवीय संवेदना से जुड़े रोचक और भावुक दृश्य दिखाई पड़ते हैं । तो वहीं लेखक ने अपने परिवेश का जीवंत चित्रण अपनी कथा में उकेरा है। इस प्रकार रचनाकार समाज का यथार्थ चित्रण कर पाठकों को सजग करने के साथ-साथ आज की विसंगतियों पर प्रश्न चिन्ह भी लगाता है। कहानीकार ने समाज की सभी समस्याओं को बेबाकी से पाठकों के समक्ष रखा है और अप्रत्यक्ष रूप से यह भी बता दिया है कि आज इक्कीसवीं सदी में भी हम किस परिवेश में जी रहे हैं। अत: निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि लेखक ने लाल बजरी की सड़क कहानी संग्रह में फंतासी, फ्लैशबैक, स्मृति, संवेदनाओं के साथ-साथ कल्पना का रचनात्मक सफ़र तय किया है। कहानीकार ने अपने यथार्थवादी चिंतन से समाज का सजीव चित्रण आलोच्य कहानी संग्रह में पेश किया है।
संदर्भ :
1. मिश्र शिवकुमार, यथार्थवाद : दी मैकमिलन कंपनी आफ इंडिया लिमिटेड नई दिल्ली , संस्करण 1978, पृ. 15
2. तलवार ईशमधु : कहानी संग्रह लाल बजरी की सड़क; कलमकार मंच जयपुर, संस्करण प्रथम 2019, पृ. 48
3. वही, पृ. 49
4. वही, पृ. 19
5. वही, पृ. 82
6. वही, पृ. 90
7. वही, पृ. 47
8. वही, पृ. 75
9. वही, पृ. 25
10. कालिया ममता : अमर उजाला शब्द सम्मान; श्रेष्ठ कृति सम्मान 2019
ममता यादव, शोधार्थी, हिंदी विभाग, राजस्थान केन्द्रीय विश्वविधालय
बांदरसिंदरी, किशनगढ, अजमेर
7877398366, mamtayadav712@gmail.com
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-37, जुलाई-सितम्बर 2021, चित्रांकन : डॉ. कुसुमलता शर्मा UGC Care Listed Issue 'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL)
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