शोध आलेख
पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका: झारखंड के विशेष संदर्भ में
परवेज शाहिद अली और डॉ.आशुतोष कुमार पाण्डेय
शासन के सभी स्तरों पर जनता की भागीदारी से ही लोकतंत्र की वास्तविक सफलता सुनिश्चित होती है। विश्व का महानतम लोकतंत्र कहलाने वाला भारत लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का एक श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता है। 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत की ग्रामीण संरचना को सशक्त करने का प्रयास किया गया है, जिसमें न केवल पुरुष बल्कि महिलाओं की भी राजनीतिक भागीदारी को एक ठोस आकार प्रदान किया गया है। पंचायत स्तर परमहिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है, संविधानत: महिलाएं राजनीतिक रूप से सशक्त हुई हैं। पंचायती राज के माध्यम से महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में एक आमूलचूल परिवर्तन हुआ है या कहें उन्हें एक नया जीवन प्राप्त हुआ है तो दूसरी ओर ऐसे भी उदाहरण है, जहाँ महिलाओं को पंचायतों में वास्तविक भागीदारी प्राप्त नहीं हो सकी है। इस आलेख के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका और निर्वाचित महिला नेताओं के समक्ष आने वाली समस्याओं और चुनौतियों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। यह आलेख साहित्य समीक्षा और क्षेत्र कार्य अनुभवों पर आधारित है।
बीज शब्द : लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण, स्थानीय स्वशासन, राजनीतिक भागीदारी, महिला सशक्तिकरण, पंचायती राज संस्था।
प्रस्तावना
भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रमों में तेजी लाने और वांछित जन सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से पंचायती राज की व्यवस्था को मूर्त रूप प्रदान किया गया। 1959 मेंगठित बलवंत राय मेहता समिति के सिफारिशों के आधार पर भारत में पंचायती राज़ व्यवस्था की शुरुआत हुई। प्रारंभिक दौर में स्थानीय सत्ता का गांव के पिछड़े वर्गों के स्थान पर जिनमें महिलाएं भी सम्मिलित थी, उच्च एवं विशेष वर्ग के हाथ में संकेंद्रित होने के कारण यह व्यवस्था असफल सिद्ध हुई। कालान्तर में समस्त दोषों को दूर करते हुए स्थानीय स्वशासन को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से पंचायती राज़ संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गयी। वर्तमान में पंचायती राज व्यवस्था महिलाओं के लिए एक वरदान के सदृश्य है, उन्हें राजनीति के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया गया है और साथ ही विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है, वर्तमान समय में हर क्षेत्र में महिला प्रतिनिधित्व बढ़ा है क्योंकि महिलाएं अपनी जिम्मेदारी न केवल समझ रही है बल्कि उन्हें बखूबी निभा भी रही हैं। वैश्वीकरण की इस दौड़ में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की कोशिश कर रही हैं। पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को बढ़ावा दिया गया है। 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से 1993 से त्रिस्तरीय ग्रामीण पंचायतों और नगरीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।(रानी, 2018)
भारत का 28वां राज्य झारखंड 15 नवंबर 2000 को बना। राज्य के गठन से लेकर आज तक कई महिलाओं की पंचायती राज में अहम भूमिका रही हैं। चाहे वह झारखंड आंदोलन के समय की बात हो या वर्तमान संसदीय चुनावों की। पंचायत में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के मामले में झारखंड अग्रणी राज्य बन गया है। वर्ष 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में 81 में से दस सीटों पर महिलाओं ने जीत हासिल की है। पंचायती राज व्यवस्था से महिलाओं के जीवन में अनुकूल प्रभाव हुआ है। महिलाएं समाज के एक विशेष सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभाएं इसकी व्यवस्था पंचायती राज़ व्यवस्था करता है। इस तरह महिलाओं को सशक्त करने की व्यवस्था होने के बावजूद भीवास्तव में महिलाएं पूरी तरह से पुरुषों के समान सशक्त नहीं हो सकी है, उनमें जागरूकता का अभाव भी दिखाई देता है। महिलाओं को सशक्त करने के लिए सरकार ने कई तरह की नीतियां, योजनाएं, विकास कार्यक्रम को प्रस्तुत किया है जिनका पूर्णलाभ भी ग्रामीण महिलाएं प्राप्त नहीं कर पा रही हैं। जिसमें पुरुष प्रधान समाज से महिलाओं को पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है। जिससे आज भी महिलाओं को योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाई है। (त्यागी, 2018-19)
महिलाएं समाज के लगभग आधे हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं,
लेकिन उनकी राजनीतिक भागीदारी लगभग नगण्य रही है। वर्तमान पंचायती राज व्यवस्था सामाजिक समानता और न्याय, आर्थिक विकास और व्यक्ति की गरिमा के आधार पर ग्रामीण जीवन को नया रूप देने का एक सामूहिक प्रयास है। इसी क्रम में पंचायती राज संस्थाओं में सभी स्तरों पर महिलाओं की भागीदारी महिला सशक्तिकरण के लिए किये जा रहे प्रयासों का एक प्रमुख घटक है। भारतीय संविधान के 73वें संविधान संशोधन के अनुसार पंचायती राज में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। महिलाओं को आरक्षण देकर समाज के विभिन्न वर्गों की महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं में भाग लेने का अवसर मिला है। इसलिए आधुनिक भारत में विशेषकर ग्रामीण संरचना को समझने के लिए महिला नेतृत्व की उत्पत्ति और उनके मूल्यों, विचारों और परिवर्तित जीवन पद्धति को जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है। (शर्मा, 2013)
वर्तमान में लोकतंत्र शासन प्रणाली का सबसे अच्छा उदाहरण है। इसका सार लोगों की भागीदारी में निहित है। यह लोकतंत्र पुरुषों और महिलाओं दोनों को वृद्धि और विकास के समान अवसर प्रदान करता है, लेकिन फिर भी महिलाओं को वह उचित स्थान नहीं मिला है जिसकी वे विकास के विभिन्न चरणों में हकदार हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि आज महिलाओं ने जीवन के हर क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान दर्ज किया है, लेकिन अधिकांश क्षेत्रों में 33 फीसदी अशिक्षित कोटा हासिल करने के बावजूद महिलाओं की उपस्थिति न के बराबर है। यह बहुत आश्चर्य की बात है कि भारतीय संविधान ने महिला सशक्तिकरण को सुनिश्चित किया है, लेकिन वास्तव में उनका सशक्तिकरण केवल सतही स्तर पर है। विश्व की लगभग आधी आबादी में महिला होने के बावजूद सत्ता के सिंहासन पर महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत लगभग शून्य है। (गर्ग, 2019)
झारखंड पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका
लोकतन्त्र को मानव गरिमा, व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं समानता, राजनीतिक निर्णयों में जनभागीदारी के कारण शासन का श्रेष्ठतम रूप माना जाता है। लोकतंत्र न केवल एक राजनीतिक परिस्थिति या सरकार चलाने का एक तरीका है, बल्कि यह एक देश की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति को भी दर्शाता है। लोकतंत्र भी एक विशेष प्रकार की सरकार, एक विशिष्ट सामाजिक व्यवस्था, एक विशेष दृष्टिकोण और एक विशिष्ट जीवन शैली है। लोकतंत्र का सार लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में निहित है। लोकतंत्र का आधार शासन में जनता की भागीदारी के साथ-साथ शासन का निम्न स्तर तक विकेंद्रीकरण है, उसी भावना का साकार स्वरूप पंचायती राज व्यवस्था है। गांधीजी ने अपने अंतिम सार्वजनिक लेख वसीयतनामे में लिखा था कि "सच्चा लोकतंत्र केंद्र में बैठे 10-20 लोगों द्वारा नहीं चलाया जा सकता, इसे गांव के हर आदमी द्वारा नीचे से चलाया जाना चाहिए।"(कुमार, 2019)
73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1999 के तहत अनुच्छेद 243 (डी) और 243 (टी) जोड़े गए जिसमें पंचायती राज के प्रत्येक स्तर पर कम से कम एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। झारखंड में पंचायती राज संस्थाओं में 56 प्रतिशत महिलाएं प्रतिनिधि हैं। झारखंड में 2360 मुखिया, 2444 पंचायत समिति सदस्य, 246 जिला परिषद् और 25698 वार्ड सदस्यों के पदों पर महिलाओं ने आरक्षण के कारण जीत हासिल की। पंचायतों में मुखिया के रूप में महिलाएं प्रतिनिधि होती हैं लेकिन महिला के प्रतिनिधि के बजाय उनके पति का वर्चस्व होता है। महिला प्रतिनिधि केवल नाममात्र के प्रतिनिधियों के लिए केवल हस्ताक्षर प्रतिनिधि मात्र बन कर रह गई हैं। पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को कई अधिकार दिए गए हैं लेकिन जानकारी के अभाव में वे ठीक से काम नहीं कर पाती हैं। जानकारी होने पर भी पुरुषों द्वारा उनकी शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है। महिलाएं जितनी अधिक आत्मनिर्भर होंगी, उनका प्रदर्शन उतना ही बेहतर होगा।
झारखंड में पंचायत स्तर पर महिलाओं की अधिक भागीदारी के कारण स्थानीय स्तर पर उनके जीवन में बदलाव आया है। महिला प्रतिनिधियों की शक्ति ने न केवल जातीय रूप बल्कि आर्थिक और सामाजिक समीकरण को भी बदल दिया है। महिलाओं की शिक्षा, महिलाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि, उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने पर जोर, राजनीति में महिलाओं की स्वीकृति को पंचायतों द्वारा बढ़ावा दिया गया है। पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से हर वर्ग की महिलाओं को आरक्षण देने और उन्हें ग्रामीण विकास से जोड़ने का प्रयास किया गया है। यदि इस कार्य में अधिक जागरूकता लाई जाए तो (चाहे मजदूरी रोजगार हो या स्वरोजगार) महिलाओं को विशेष महत्व देकर गांवों का विकास किया जा सकता है। पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण के प्रावधान से लेकर उनमें कई बदलाव देखने को मिले हैं। विकास की प्रक्रिया में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। सामाजिक रूप से वे बदल गए हैं और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ है। पुरुषों के साथ काम करने में महिलाएं जिस चीज से झिझकती थीं या काम करने से डरती थीं वह अब कम हो रही है। अब वह आसानी से पंचायत स्तर के उच्चाधिकारियों से संपर्क स्थापित कर अपनी समस्याओं को उनके सामने रखने में सक्षम हैं। पिछड़े वर्ग की महिलाओं को अब केवल आरक्षण के माध्यम से राजनीति में भाग लेने का अवसर प्रदान किया गया है। (कुमारी, 2018)
बिहार में पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास बहुत प्राचीन है। इन संस्थानों में समय-समय पर उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। समय-समय पर इन संस्थाओं ने राज्यों में रचनात्मक कार्य किये तथा इन्हें अधिकार दिये जाने की दिशा में ठोस निर्णय लिये गये, क्योंकि कई वर्षों तकइन संस्थानों का चुनाव नहीं किया गया था और इन्हें प्रशासकों द्वारा ही चलाया जा रहा था। (शर्मा, 2013)
महिला सशक्तीकरण
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है कि नारी शक्ति, जो उन्हें अपने अधिकारों का सही प्रयोग करने में सक्षम बनाती है, समाज में पीछे नहीं रहती है और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने निर्णय ले सकती है और सिर उठाकर समाज में चल सकती है। महिला सशक्तिकरण का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को उनका अधिकार देना है। महिला आरक्षण के माध्यम से ही पहली बार महिलाएँ नए प्रावधानों से निर्वाचित होकर राजनीतिक सहभागी बनीं। निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को उनके अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों और राजनीतिक अनुभव की कमी के बारे में विशेष प्रशिक्षित ज्ञान नहीं है। अधिकांश भूमिकाएँ या तो महिला प्रतिनिधियों के पतियों ने निभाई हैं, यदि पति की राजनीति में रुचि नहीं है तो निर्णय अभिजात वर्ग और राजनीतिक दलों के प्रभावशाली नेताओं द्वारा प्रभावित होते हैं। इन महिला प्रतिनिधियों को विकास योजनाओं की जानकारी की कमी ने उन्हें संकीर्ण व्यवहार पर निर्भर बना दिया है, जिसका लाभ प्रभावशाली सत्ता के पुरुषों द्वारा उठाया जा रहा है जो पहले से ही राजनीति में उतर चुके हैं। इस प्रकार पंचायती राज व्यवस्था ने ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को कई अवसर प्रदान किए हैं लेकिन वे प्रशिक्षण की कमी के कारण अपनी स्वतंत्र भूमिका नहीं निभा पा रही हैं। (कुमारी, 2018)
बिहार राज्य में महिला सशक्तिकरण में पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। यहां महिलाओं की कुल जनसंख्या में 47.93 प्रतिशत और पंचायती राज के कुछ महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं का 65 प्रतिशत प्रतिनिधित्व है। पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से विकेंद्रीकरण प्रणाली शुरू की गई थी जिसमें 50 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए थे। परिणामस्वरूप पंचायत स्तर पर इतनी बड़ी संख्या में भागीदारी ने न केवल महिलाओं में विश्वास जगाया है, बल्कि उन्हें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक स्तर पर जागरूक, निडर और सशक्त भी बनाया है। पंचायत स्तर पर विभिन्न संस्थाओं में महिलाओं का बहुसंख्यक समूह है और जब महिलाएं समूह में होती हैं तो उन्हें सबसे बड़ी कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह व्यवस्था सामाजिक समानता,
स्थानीय विकास और स्थानीय स्वशासन के समन्वय को दर्शाती है। प्रस्तुत शोध लेख में मुख्य रूप से इस बात का अध्ययन किया गया है कि किस प्रकार पंचायती राज जैसी संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका बिहार राज्य में महिला सशक्तिकरण की दिशा में उपयोगी सिद्ध हुई है। (कुमारी, 2018)
महिलाओं के बदलते आयाम
विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था भारत की प्रमुख विशेषता है। लोकतंत्र मूल रूप से विकेंद्रीकरण पर आधारित शासन प्रणाली है। शासन के उच्च स्तरों पर भी लोकतंत्र तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि निचले स्तरों पर लोकतांत्रिक विश्वास और मूल्य मजबूत न हों। यदि लोकतंत्र का अर्थ लोगों की समस्याओं और उनके समाधान की प्रक्रिया में लोगों की पूर्ण और प्रत्यक्ष भागीदारी है, तो प्रत्यक्ष, स्पष्ट और विशिष्ट लोकतंत्र का प्रमाण कहीं और उतना सटीक रूप से नहीं देखा जाएगा जितना स्थानीय स्तर पर है। वास्तविक लोकतंत्र में महिलाओं की स्थिति, साक्षर पंचायत: आरक्षण,
विकेंद्रीकरण, संवैधानिक स्थिति जैसे विभिन्न स्तरों पर हुए बदलावों को पांच दशक हो चुके हैं। (देव, 2018)
झारखंड की महिलाएं जो वर्तमान समय में राजनीति में रुचि लेती दिख रही हैं, चाहे शिक्षित परिवार की महिलाएं हों या गरीब परिवार की महिला राजनीति के महत्व को समझने लगी हैं और प्रतिनिधि बनकर चुनाव में भागीदारी सुनिश्चित कर रही हैं। कुछ महिला विधायक हैं जो अपने कार्यों के माध्यम से पूरे झारखंड राज्य में महिलाओं के विकास के लिए कार्य करती दिखाई देती हैं। झारखंड राज्य के हजारीबाग के बड़कागांव निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विधायक अंबा प्रसाद ने भी अपने क्षेत्र में अच्छा काम किया है। इन सबके अलावा महिला आयोग की अध्यक्ष रह चुकी महुआ मांझी जो एक लेखिका हैं उन्होंने अपनी पुस्तकों के माध्यम से महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों के साथ-साथ उनके विकास के उपायों पर भी नजर डाली हैं। सांसद गीता कोड़ा ने अपने पति मधु कोड़ा की विरासत को संभालते हुए पहली महिला सांसद है। अन्नपूर्णा देवी एक केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री हैं। इन सबमें सबसे छोटी घाटशिला का प्रत्याशी सिडेªला हैं जो 26 साल की उम्र में चुनाव लड़ रही है। इन सभी के काम से पता चल रहा है कि भले ही क्षेत्र अलग हो लेकिन राजनीति में भागीदार बन कर यह समाज और महिलाओं के विकास के लिए काम कर रही है। (कुमार, 2019)
पंचायती राज में महिलाओं का दबदबा दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। आज देश में 2.5 लाख पंचायतों में लगभग 32 लाख प्रतिनिधि चुन कर आ रहे हैं। इनमें से 14 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं, यह आंकड़ा यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि महिलाएं राजनीतिक कार्यों में कैसे भाग ले रही हैं, इससे महिलाओं के गांवों में फैली सामाजिक असमानता भी दूर होगी। (चौधरी, 2018)
महिलाएं हमारे देश की आबादी का आधा हिस्सा हैं। इसलिए महिलाओं की भागीदारी के बिना देश का समग्र विकास नहीं हो सकता। भारत में अनादि काल से महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ सह-अस्तित्व में रही हैं, लेकिन विकास के विभिन्न चरणों में महिलाओं को उचित स्थान नहीं मिला है। भारतीय संविधान ने महिला सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया है, लेकिन यह सतही स्तर पर है। वर्तमान शोध पत्र 73वें संविधान संशोधन के बाद राजस्थान में महिलाओं की भूमिका का विश्लेषण करने के लिए है। क्योंकि 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया था। यह संशोधन ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। (श्रृंगी, 2018)
साहित्य की समीक्षा
विपिन कुमार सिंघल(2014) नें इस पत्र में बताया हैं कि भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था का मूल आधार पंचायती राज व्यवस्था रही है, सभ्य समाज की स्थापना के समय से ही जब मानव ने समूहों में रहना सीखा, तब से पंचायती राज के आदर्श और बुनियादी सिद्धांत उसकी चेतना में विकसित होते रहे हैं। औपचारिक राजनीतिक संगठनों में महिलाओं की भागीदारी न केवल महिलाओं की वर्तमान शक्ति की स्थिति है बल्कि महिलाओं के अधिकारों और विकास को बढ़ावा देने के लिए भी आवश्यक है। महिलाओं के लिए औपचारिक राजनीतिक गतिविधियों जैसे चुनाव या राजनीतिक दलों, सामाजिक आंदोलनों या प्रदर्शनों में भाग लेना पर्याप्त नहीं है, लेकिन उन्हें स्थानीय स्तर पर राजनीतिक भागीदारी और अन्य स्तरों पर व्यवस्था में भागीदारी से ही सशक्त बनाया जा सकता है। (सिंघल, 2014)
कृष्ण चंद्र चौधरी(2018) नें इस पत्र में बताया हैं कि पंचायती राज में महिलाओं का दबदबा बढ़ता जा रहा है। आज देश में ढाई लाख पंचायतों को चुनने के लिए करीब 32 लाख प्रतिनिधि आ रहे हैं, इनमें से 14 लाख से ज्यादा महिलाएं चुनकर आ रही हैं। यह आंकड़ा यह बताने के लिए काफी है कि महिलाएं किस तरह राजनीतिक कार्यों में भाग ले रही हैं। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी न केवल महिलाओं के स्वाभिमान के लिए सकारात्मक संकेत है, बल्कि यह भारत में फैली सामाजिक असमानता को भी दूर करेगी।
(चौधरी, 2018)
राजेश कुमार (2018) ने इस पत्र में बताया है किपंचायती राज संस्थाओं में महिला नेतृत्व विकास वर्तमान भारत की एक बहुत ही महत्वपूर्ण चर्चा है। चूंकि यह महिलाओं की स्वतंत्रता,
समानता, शक्ति और महत्व की वकालत करता है, इसलिए इसे पूरे मानव समाज के आधे हिस्से की बेहतरी से संबंधित विमर्श कहा जा सकता है। इस बेहतरी को स्थापित करने के लिए भारत में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की विकेन्द्रीकृत व्यवस्था शुरू की गई है। यह विकेंद्रीकरण जमीनी स्तर पर हुआ है और इन संस्थानों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें (वर्तमान में कई राज्यों में 50 प्रतिशत) आरक्षित होने से जमीनी स्तर पर काफी बदलाव आया है। अब स्थिति यह है कि पंचायतों में भागीदारी के साथ-साथ उनकी आत्मनिर्भरता भी बढ़ी है। उनमें भी जागरूकता आई है और वे छोटे स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से अपना स्वरोजगार अपना रहे हैं और देश के राष्ट्रीय विकास में अपना सहयोग भी दे रहे हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि पंचायतों से ही महिलाओं के राजनीतिक और सशक्तिकरण के अभियान को गति मिली है। जब पंचायतों में उनकी भागीदारी बढ़ी, तभी वे हर दिशा में आगे बढ़ पाई हैं। अब तो उन्हें संसद में आरक्षण देकर उनके नेतृत्व विकास को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। (कुमार, 2018)
मुकेश कुमार (2019) ने इस पत्र में बताया है किपंचायती राज संस्थाओं में महिला नेतृत्व विकास वर्तमान भारत की एक बहुत ही महत्वपूर्ण चर्चा है। चूंकि यह महिलाओं की स्वतंत्रता,
समानता, शक्ति और महत्व की वकालत करता है, इसलिए इसे पूरे मानव समाज के आधे हिस्से की बेहतरी से संबंधित प्रवचन कहा जा सकता है। इस बेहतरी को स्थापित करने के लिए भारत में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की विकेन्द्रीकृत व्यवस्था शुरू की गई है। यह विकेंद्रीकरण जमीनी स्तर पर हुआ है और इन संस्थानों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें (वर्तमान में कई राज्यों में 50 प्रतिशत) आरक्षित होने से जमीनी स्तर पर काफी बदलाव आया है। आज भारत में 12 लाख से अधिक महिला निर्वाचित प्रतिनिधि हैं जो दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं। इतना ही नहीं यदि पूरे विश्व की निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो वह संख्या इन भारतीय निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों से कम है। देखा जाए तो पंचायतों में महिला नेतृत्व का विकास एक ऐसी मूक क्रांति की निशानी है, जो राष्ट्रीय स्तर पर भले ही सार्वजनिक रूप से अब तक नजर न आए, लेकिन इसकी धीमी लौ भारतीय लोकतंत्र को मजबूत जरूर बना रही है। (कुमार, 2019)
संगीता मेश्राम (2014) नें इस पत्र में भारतीय संविधान में महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार बताया हैं। पंचायती राज व्यवस्था द्वारा सत्ता के विकेन्द्रीकरण में महिलाओं को अनिवार्य भागीदारी भी प्रदान की गई है। भागीदारी न केवल औपचारिक बल्कि सक्रिय होनी चाहिए। ग्रामीण महिला पंचायत प्रतिनिधि भी लगातार समस्याओं से लड़ते हुए अपनी भूमिका के कुशल निर्वहन के लिए निरंतर प्रयास कर रहीं हैं। उनका रास्ता अभी भी कठिन है लेकिन पंचायती राज संस्था के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं ने अपना स्थान महत्वपूर्ण बना लिया है। ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है। (मेश्राम, 2014)
राजेंद्र कुमार सिंह (2018) नें इस पत्र मेंबताया है कि73वें संविधान संशोधन द्वारा प्रदान किए गए पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण और बाद में राज्यों द्वारा कोटा में वृद्धि ने भारत में अभूतपूर्व बड़ी संख्या में महिलाओं को शासन में लाया है। इतने बड़े पैमाने पर महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक है। उपरोक्त अधिनियम को लागू हुए एक चौथाई सदी बीत चुकी है और अधिकांश राज्यों में पंचायतों की चौथी या पांचवीं पीढ़ी है। पंचायतों में महिला नेतृत्व, जो एक अस्थिर शुरुआत के साथ शुरू हुआ,
निश्चित रूप से अच्छी तरह से स्थापित और मान्यता प्राप्त है। (सिंह, 2018)
अध्ययन का उद्देश्य
Ø झारखण्ड पंचायत राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका का अध्ययनकरना।
Ø पंचायत राज संस्थाओं में महिला निर्वाचित नेताओं के सामने आने वाली समस्याएं और चुनौतियों का पता लगाना।
सामग्री और कार्यप्रणाली
इस आलेख में द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों को अध्ययन का आधार बनाया गया है। पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका पर छपे आलेखों, सरकारी दस्तावेजों एवं पुस्तकों से प्राप्त सूचनाओं, तथ्यों को अध्ययन का आधार बनाया गया है।
तालिका 1.1 भारत में पंचायती राज संस्थाओं में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या
स्त्रोत : https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1658145
तालिका 1.1 से स्पष्ट है की पंचायत राज संस्थाओं में महिला निर्वाचित नेताओं के सामने आने वाली समस्याएं और चुनौतियों के बावजूद भी पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की अहम भूमिका है। झारखंड पंचायती राज संस्थाओं मेंप्रतिनिधियोंकी कुल संख्या 59638 है जिसमें से निर्वाचित महिला प्रतिनिधियोंकी कुलसंख्या 30,757हैं।अरुणाचल प्रदेश में 9383 में से 3,658 महिला प्रतिनिधि, बिहार में 136573 में से 71,046 महिला प्रतिनिधि, छत्तीसगढ में 170465 में से 93,392 महिला प्रतिनिधि और मध्य प्रदेश में 392981 में से 196490 महिला प्रतिनिधि हैं।
पंचायती राज संस्थाओं में महिला प्रतिनिधियों कीराजनैतिक भागीदारी में समस्याएं
1.
अपनी सांख्यिकीय शक्ति के बावजूद विभिन्न सामाजिक-आर्थिक बाधाओं के कारण महिलाओं को समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं है। जिसकारणअनौपचारिक राजनीतिक गतिविधियों में वृद्धि के बावजूद महिलाओं की राजनीतिक संरचना में भूमिका लगभग अपरिवर्तित रही है।
2.
कई महिला प्रतिनिधियों, विशेष रूप से कमजोर वर्गों की महिलाओं को आर्थिक समस्याओं के कारण अपने परिवार का समर्थन करने के लिए कृषि कार्य या श्रम पर जाना पड़ता है। उनका मानना है कि अगर वे पंचायत की बैठकों में जाएंगे तो उनके परिवार की देखभाल कौन करेगा।
3.
यह देखा गया है कि जिन महिला प्रतिनिधियों के परिवार में 13-16 सदस्य हैं, वे परिवार की देखभाल और घर के काम करने के कारण शायद ही कभी पंचायत की बैठकों में भाग ले पाती हैं। जिन महिला प्रतिनिधियों का परिवार कृषि पर निर्भर है, वे कृषि कार्य के लिए समय नहीं होने के कारण पंचायत की बैठकों में भाग नहीं ले पाती हैं।
4.
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति किसी से पीछे नहीं है। अगर कोई महिला आगे बढ़कर कुछ काम करना चाहती है तो भी समाज उसे स्वीकार नहीं करता है। परदा प्रथा, पुराने रीति-रिवाज और रूढ़िवाद आज भी समाज में मौजूद है, जिसके कारण महिलाएं विकास प्रक्रिया में पूरी तरह से भाग नहीं ले पाती हैं।
5.
कई गांवों में आज भी जातिवादी प्रथाप्रचलितहै। कुछ गांवों में जहां महिला सरपंच अनुसूचित जाति से संबंधित है, अन्य महिला प्रतिनिधि जो सामान्य और पिछड़ा वर्ग पंच महिलाएं हैं, पंचायत की बैठकों में शामिल नहीं होती हैं क्योंकि क्योंकि वे श्रेष्ठ और हीन की भावना से ग्रसित है।
6.
अनपढ़ महिला प्रतिनिधियों को भी लगता है कि उन्हें भी शिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे भी पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से ग्रामीण विकास के कार्यक्रम तैयार और कार्यान्वित कर सकें। महिला प्रतिनिधियों को पंचायत का प्रतिनिधि बनने से पहले या बाद में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। जिन गांवों में पंचायत भवन की व्यवस्था नहीं है वहां महिला प्रतिनिधि पंचायतों की बैठकों में शामिल नहीं हो पा रही हैं। अधिकांश सभाएँ गाँव के स्कूलों में होती हैं, जो गाँव से काफी दूरी पर होती हैं।
7.
पंचायती चुनाव में कई क्षेत्रों में देखा गया कि समाज के प्रभावशाली लोगों ने अपनी पत्नी, बहन, मां या किसी अन्य रिश्तेदार महिला को चुनाव में उम्मीदवार के रूप में रखा जाता है, जो बाद में उनके कहने पर काम करने के लिए मजबूर हो जाती है। इस प्रकार महिलाओं के लिए आरक्षित एक-तिहाई और अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षित एक-तिहाई सीटों का उल्लंघन किया जाता है। गांवों में गुटबाजी के कारण छोटे-छोटे झगड़े होते रहते हैं और वे जनकल्याण की योजनाओं के संबंध में सही निर्णय नहीं ले पाते हैं।
8.
वर्तमान समय में भी पुरुषों का बोलबाला है, वे महिलाओं को कठपुतली के रूप में अपने हाथों में रखते हैं। अशिक्षा के कारण महिलाएं भी विकास के पथ में पिछड़ जाती हैं। झारखंड जैसे छोटे से राज्य में आज भी गांवों में लड़कियों की शिक्षा पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता है। कम उम्र में शादी कर दी जाती हैं। अशिक्षा रूपी बुराई के कारण महिलाएं अपने अच्छे या बुरे के बारे में नहीं सोच पाती हैं। (निशीथ, 2005)
सुझाव
महिलाओं के प्रतिपुरुष समाज की रूढ़ीवादी सोच को बदलना होगा। महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए सभी लोगों को विशेषकर महिलाओं को भी पहल करना होगा।महिलाओं को जागरूक कर, उन्हें सशक्त बनाकरउन्हें आगे बढ़ने के अवसर देने होंगे।महिलाओं में साहस पैदा करना होगा और महिलाओं को अपनी आंतरिक क्षमता और ताकत पर विश्वास करना होगा। अधिकांश महिला प्रतिनिधि अशिक्षित हैं, जिसके कारण उन्हें पंचायत खातों, नियमों को पढ़ने या लिखने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसलिए महिला पंचायत प्रतिनिधियों को शिक्षा देना जरूरी है। प्रौढ़ शिक्षा का लाभ उठाकर यदि कोई शिक्षित व्यक्ति अनपढ़ व्यक्ति को शिक्षित करने का संकल्प करे तो निरक्षरता का कलंक शीघ्र ही दूर किया जा सकता है और पंचायतें कुशल बन सकेंगी। जन जागरूकता और देश के आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों पर जोर दिया जाएगा। ऐसा वातावरण बनाना होगा जिसमें इन मूल्यों को उचित महत्व दिया जाए, तभी महिलाएं उठकर पंचायती राज संस्थाओं में भाग ले सकेंगी। निर्वाचित प्रतिनिधियों और विकास अधिकारियों के बीच संपर्क के माध्यम से महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता है। लगातार बैठकों और विचार-विमर्श के माध्यम से कार्य योजना तैयार की जानी चाहिए। महिला विकास कार्यक्रम स्थानीय अधिकारियों से जुड़े होने चाहिए,
ताकि विकास में महिलाओं की अधिक प्रभावी भागीदारी संभव हो सके।
निष्कर्ष :
आज भारतवर्ष में स्थानीय स्वशासन की परिस्थितियां काफी परिवर्तित हो चुकी है।पंचायतों मेंसंविधान के 75वें संशोधन द्वारामहिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। महिलाओं को पंचायत के सभी पदों पर निर्वाचित किया जा रहा है और उन्हें उनके दायित्वों और कर्तव्यों के निर्वहन में क्रियाशील भी देखा जा रहा है। पंचायत राज संस्थाओं में महिला निर्वाचित नेताओं के सामने आने वाली समस्याओं और चुनौतियों के बावजूद भी पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की अहम भूमिका है। झारखंड पंचायती राज संस्थाओं मेंप्रतिनिधियोंकी कुल संख्या 59638 है जिसमें से निर्वाचित महिला प्रतिनिधियोंकी कुलसंख्या 30,757हैं। अब महिलाएं भी ग्राम सभा और ग्राम पंचायतों की बैठकों में भाग लेती हैं। वह सरकारी अधिकारियों के साथ अच्छे तालमेल से काम कर रही है। महिला पंचायत सदस्यों ने खुद को पुरुषों की तुलना में अधिक जवाबदेह तरीके से प्रस्तुत किया है।
सन्दर्भ :
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कपिलदेव
: ‘पंचायती राज-वर्तमान संदर्भ में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन’, जरनल ऑफ एडवांस एण्ड स्कोलर्ली रिसर्च इन एलाईड ऐजुकेशन
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किरण कुमारी :ग्रामीण महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता का शैक्षणिक परिवेश से संबंध राजस्थान के जयपुर जिले की दूदू तहसील के संदर्भ में एक अध्ययन (पी.एच.डी उपाधि के उपाधि के लिए प्रस्तुत अप्रकाशित शोध प्रबंधन),मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय,
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9. राजेंद्र कुमार सिंह : ‘वोमेन इन पंचायत’,कुरुक्षेत्र, जुलाई, 2018,पृ. 34-41
10. राजेशकुमार : ‘पंचायती राज एवं महिला नेतृत्व विकास-एक विमर्श’,
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12. विनोद कुमार गर्ग : ‘राजनीति में महिला सहभागिताः एक विश्लेषण’, जरनल ऑफ एडवांस एण्ड स्कोलर्ली रिसर्च इन एलाईड ऐजुकेशन
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13. विपिन कुमार सिंघल : ‘पंचायती राज व्यस्था एवं महिलाएं-73वे संविधान संशोधन के सन्दर्भ में एक विश्लेसनात्मक अध्ययन’,इंडियन कौंसिल फॉर सोशल साइंस रिसर्च,
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14. संगीता मेश्राम : ‘पंचायती राज व्यवस्था में महिला प्रतिनिधि: एक परिदृश्य’,गोल्डन रिसर्च थॉट्स(अंक-9), 2014, पृ. 01-02
15. सपना त्यागी : पंचायती राज व्यवस्था तथा महिला सशक्तिकरण (आगरा एवं ग्वालियर जनपदों का तुलनात्मक अध्ययन), (पी.एच.डी उपाधि के उपाधि के लिए प्रस्तुत अप्रकाशित शोध प्रबंधन ),दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट,
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16. सीमा रानी :‘ग्राम पंचायतों में ग्रामीण महिलाओं की भूमिका’, शोध मंथन (अंक-04), मार्च, 2018, पृ. 22-27
17. राकेश शर्मा निशीथ : ‘पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की बढती भूमिका’, कुरूक्षेत्र, जुलाई, 2005,पृ. 01-05
डॉ. आशुतोष कुमार पाण्डेय, सहायक प्राध्यापक, राजनीति विज्ञान विभाग, संत जेवियर्स महाविद्यालय रांची
akpandey04@gmail.com, 943171062
परवेज शाहिद अली, शोधार्थी, राजनीति विज्ञान विभाग,
रांची विश्वविद्यालय, रांची
pervezalihhts@gmail.com, 919113148907
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-37, जुलाई-सितम्बर 2021, चित्रांकन : डॉ. कुसुमलता शर्मा UGC Care Listed Issue 'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL)
अपनी माटी का 37वाँ अंक सुंदर रचनाओं और आलेखों के साथ प्रकाशित होने पर बधाई एवं शुभकामना
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