नियमगिरि आन्दोलन : एक मानव वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुमार आदित्य व डॉ. शैलेन्द्र कुमार मिश्र
शोध सार : भारतीय समाज के आम विमर्शों में आदिवासी भले ही एक बहिष्कृत इकाई है लेकिन वास्तविकता में इनके अधिकारों पर अतिक्रमण करने वाले इस बात को भली-भाँति जानते हैं कि इनसे लड़कर जीतना कितना असंभव हैl नियमगिरि में रहने वाली डोंगरिया कंध आदिवासी ने वेदांता एल्युमिना कम्पनी के खिलाफ एक दशक तक लगातार संघर्ष करने के बाद जीत हासिल कर, दुनिया को यह सन्देश देने में सफल रहे कि वैश्विक पूँजीवाद की निर्बाध गति को एक छोटे-से परिक्षेत्र में कैसे सीमित किया जा सकता है और किस तरह प्रतिवाद के छोटे-छोटे द्वीप, आपसी सहयोग को बढ़ाकर, नव-उदारवाद के खिलाफ संघर्ष कर सकते हैंl यह आन्दोलन विकास के प्रतिनिधि विमर्शों को विकास के लोक-विमर्श की एक सीधी चुनौती हैl
बीज शब्द :
डोंगरिया कंध, नियमगिरि, वेदांता एल्युमिना, नव-उदारवाद, लोक-विमर्श
मूल आलेख : स्वातंत्र्योत्तर भारत में आदिवासियों का विकास परियोजनाओं के खिलाफ उठ खड़ा होना विकास के सौंदर्यशास्त्र को नकरना नहीं बल्कि इसका परिमार्जन करना हैl आदिवासी ऐसा नहीं चाहते हैं कि नदियों पर बाँध, रहवास क्षेत्रों पर खनन और विशेष आर्थिक क्षेत्र को विकास के नाम पर उचित बता कर उन्हें विस्थापित कर दिया जाएl इसलिए आज विस्थापन विरोधी जन-आन्दोलन निश्चित रूप से प्रायोजित ना होकर स्वप्रेरित घटना बन गई हैंl अनिश्चित और अधूरा पुनर्वास, जनसुनवाई में पक्षपात, आदिवासियों का भंगुर आर्थिक समावेशन, राज्य के खिलाफ विरोधी विचारधारा समूहों और ग़ैर-सरकारी संगठनों का आदिवासी समूहों पर प्रभाव, प्रशासनिक अवहेलना, ऐसे मुख्य कारक हैं जो कि आदिवासी चेतना को विस्थापन के विरुद्ध उठ खड़ा होने के लिए बाध्य करता हैl
जल-जंगल-ज़मीन के लिए स्वतंत्र आदिवासी आन्दोलन समूहों का एकीकरण
आज एक वैश्विक घटना बन गयी हैl कोलंबियन मानव वैज्ञानिक अर्तुरो
एस्कोबार ने कोलंबियन पेसिफिक में विकास के एफ्रो-कोलंबियन प्रत्युत्तर जो कि
अलग-अलग आन्दोलन के वृहद् एकीकरण और सामूहिक भ्रातृत्ववाद से प्रेरित होकर अपनी
सांस्कृतिक-भौगोलिक अस्तित्वबोध के प्रति दृढ़ता का प्रकटीकरण करती है, उन्होंने
इसे अपने दार्शनिक अभिव्यंजना का मुख्य आधार बनाया हैl1 आज विकास परियोजनाओं की वृहद् पैमाने पर कीमत
चुकाने वाला समाज आदिवासी हैl वस्तुतः विस्थापन और पुनर्वास में बड़ी
विसंगति है, 1951-2000 के बीच कुल
विस्थापित हुए लोगों में ओडिशा सरकार ने 34 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश ने 28 प्रतिशत और
केरल ने कुल 13 प्रतिशत लोगों का पुनर्वास किया हैl इस तरह 1947 से 2000 के बीच पश्चिम बंगाल ने 9 प्रतिशत और असम ने कुल 5 प्रतिशत लोगों का
पुनर्वास किया हैl 2
वर्ष 2013 लोकसभा सचिवालय के रेफरेंस नोट No.30/RN/Ref./December/2013 में कुल पाँच करोड़ लोगों के विस्थापित
होने की बात कही गई हैl विस्थापन और पुनर्वास में इसी विसंगति
के कारण समाज में व्यापक असंतोष उत्पन्न होता है एवं राज्य और समाज के बीच एक गहरी
दीवार का निर्माण कर सामाजिक संरचना और राज्य की लोकतान्त्रिक अभिव्यक्ति को प्रभावित
करता है l विस्थापन विरोधी
आन्दोलनों के मामले में पूर्वी भारत में स्थित ओडिशा, इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण हैl ओडिशा एक प्राकृतिक संपदा संपन्न राज्य है जिसके एक ओर
बंगाल की खाड़ी एवं और दूसरी ओर खनिजों से
भरी हुई, पूर्वी-घाट विद्यमान हैl ओडिशा में पूर्वी घाट उत्तर में मयूरभंज जिले से लेकर
दक्षिण-पश्चिम में स्थित मलकानगिरि जिले तक फैली हुई हैl
पूर्वी घाट की इस लम्बी शृंखला में बड़ी संख्या में आदिवासी निवास करते हैंl बॉक्साइट खनिज की प्रचुरता और कंध आदिवासी समूह के रहवास
स्थल होने के कारण ब्रिटिश भूगर्भशास्त्री ए.एल वाकर ने वर्ष 1902 में यहाँ पाए
जाने खनिज का नाम खोंडालाइट रख दिया थाl3 वर्तमान समय में इस क्षेत्र में मुख्य
रूप से कोंध, गोंड, संथाल, भुइयां, साओरा, पोरोजा, गडाबा, उरांव, कोया, मुंडा और
जुआंग आदिवासी निवास करते हैंl
खनिज संपदा की आदिवासी बहुल क्षेत्रों में प्रचुरता एवं संरचनात्मक
विकास के दबाव ने प्रदेश में व्यापक स्तर पर आदिवासी जीवन को प्रभावित किया हैl संरचनात्मक विकास जैसे बाँध, खनन, विशेष आर्थिक क्षेत्र,
अगर आदिवासियों के जीवन में विस्थापन के रूप में उत्पीड़न का प्राथमिक उत्पाद है तो
वन्य भूमि पर आजीविका पर विशुद्ध निर्भरता, साक्षरता दर में कमी और जटिल क़ानूनी
प्रक्रिया के प्रति अनभिज्ञता इनके जीवन में उत्पीड़न का सहउत्पाद हैl जिसके कारण आदिवासी विस्थापित होकर आधुनिक कृषि कार्य,
आर्थिक लेन-देन और जटिल क़ानूनी प्रक्रिया में अन्य विस्थापित ग़ैर-आदिवासी समूह की
तुलना में नई सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक चुनौतियों के साथ स्वयं को अनुकूलित करने में विफल हो
जाते हैंl4 हालाँकि वर्तमान समय में आदिवासियों का
उत्पीड़न अकेले में होने वाली घटना नहीं रह गई हैl खासकर ओडिशा के संदर्भ में आदिवासियों के विस्थापन संबंधी उत्पीड़न से उपजे
ज़मीनी स्तर के प्रतिवादी स्वर ने एक संगठित संचेतन नागरिक संघ की प्रेरणा को जन्म
दिया हैl ज़मीनी स्तर पर विस्थापन विरोधी जनआन्दोलन की समेकित चेतना
का सर्वश्रेष्ठ उदहारण नियमगिरि में वेदांता एलुमिना के विरुद्ध आदिवासियों और
दलितों की सामूहिक एकता है l जिसने जनआन्दोलन के माध्यम से विस्थापन
विरोधी स्वरों को लोकतान्त्रिक रूप से उठाया और ग्रामसभा के माध्यम से नियमगिरि
में खनन पर पूर्ण विराम लगा दियाl
शोध प्रविधि -
मानवविज्ञान में क्षेत्र कार्य परम्परा, सूचनाओं के एकत्रीकरण के
लिए एक सार्वभौम पद्धति हैl क्षेत्रकार्य
के शोधार्थियों को शोधक्षेत्र में स्थानीय निवासियों के बीच प्रवास करके सूचनाएँ
एकत्र करना होता हैl स्थानीय निवासियों के
बीच रहकर सूचनाओं का प्रश्नावली या फिर स्वतंत्र रूप से अवलोकन के माध्यम से
सूचनाओं के एकत्रीकरण को सहभागी अवलोकन कहते हैंl
वर्तमान शोध, नियमगिरि आन्दोलन का एक महत्त्वपूर्ण कालखंड (2007-2013) बीत
जाने के बाद हुआ हैl वस्तुतः मीडिया
विमर्श एवं क़ानूनी पक्ष की दृष्टिकोण से नियमगिरि आन्दोलन पर विराम लग गया है
लेकिन ज़मीनी स्तर पर नियमगिरि में डोंगरिया कंध, कुटिया कंध एवं दलित अभी भी सरकार
एवं वेदांता कम्पनी के खिलाफ द्वन्द्व से गुजर रहे हैं l कम्पनी से निकलने वाला प्रदूषित जल एवं
नियमगिरि पहाड़ी की गोद में बसा एल्युमिनियम संयंत्र, वहाँ के रहवासियों के मन में,
खनन के भय को कम नहीं किया हैl इसलिए जब
मैं क्षेत्र कार्य के लिए कालाहांडी गया तो मेरी आशंकाओं के इतर, वहाँ मैंने
आदिवासी नेताओं एवं आदिवासियों को उसी स्वरूप में पाया जैसे उनके अस्तित्वबोध पर
आपातकाल लगा होl वर्तमान शोध के लिए मैंने
सूचनाओं का एकत्रीकरण जनवरी से मार्च 2019, जून 2019, नवम्बर 2019, जनवरी से 16
मार्च 2020 एवं दिसंबर 2020 से फरवरी 2021 तक किया हैl
डोंगरिया कंध और नियमगिरि -
नियमगिरि
पहाड़ियों का समुच्चय है जिसका क्षेत्रफल
240 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ हैll नियमगिरि हिल रेंज का विस्तार
दक्षिण-पश्चिमी ओडिशा के रायगड़ा और कालाहांडी जिलों में हैl इस हिल रेंज के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में करलापाट वन्यजीव
अभयारण्य और इसके उत्तर-पूर्व क्षेत्र में कोटगढ़ वन्यजीव अभयारण्य अवस्थित हैंl इसलिए यह हिल रेंज वन्यजीवों के आवागमन के लिए अति
महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैl यहाँ वन्यप्राणियों और विविध वनस्पतियों
के संतुलित तारतम्यता में डोंगरिया कंध आदिवासी निवास करते हैंl इस पहाड़ी की सबसे विशिष्ट बात यहाँ से निकलने वाली नदियाँ
नागाबली और वंशधारा हैं जो आसपास के लाखों लोगों के लिए जल का एक महत्त्वपूर्ण
स्रोत हैl डोंगरिया कंध एक विशिष्टतः असुरक्षित जनजातीय समूह(PVTg) हैl5 यह क्षेत्र शेड्यूल पाँच के तहत संरक्षित क्षेत्र हैl6
नियमगिरि,
डोंगरिया कंध आदिवासियों का भरण-पोषण करती हैl यह आदिवासी समूह पूरी तरह से अपनी आजीविका के लिए इस पहाड़ी पर ही निर्भर हैl इस पहाड़ी को डोंगरिया कंध नियम डोंगर कहते हैंl जहाँ डोंगर का शाब्दिक अर्थ पहाड़ी और नियम का अर्थ धर्म हैl अतः डोंगरिया कंध के लिए यह एक धर्म की पहाड़ी हैl हालाँकि कुछ बुद्धिजीवी इसे नियमगिरि में नियम को क़ानून मानकर इसकी व्याख्या
करते हैं और इसे क़ानून का पहाड़ी की तरह विवेचना करते हैं l7 हालाँकि विवेचनाओं का अपना मूल्य है
लेकिन डोंगरिया कंध की विश्वदृष्टि और नियमगिरि के प्रति इनकी मान्यता देखकर इसका
उचित मूल्याङ्कन धर्म के पहाड़ी के रूप में किया जाए तो यह ज्यादा सटीक बैठता हैl डोंगरिया कंध ऐसा मानते हैं कि इनके देवता यानी नियमराजा इसी पहाड़ी के ऊपर वास
करते हैंl पहाड़ों पर वास करने वाले इनके धर्म देवता यानी नियमराजा,
राजा हैं और डोंगरिया कंध उनकी प्रजा हैl इसलिए
समूचे नियमगिरि परिक्षेत्र में डोंगरिया कंध के 112 पदर (गाँव) नियमराजा की आराधना
करते हैंl
डोंगरिया
कंध और नियमगिरी एक दूसरे के पूरक हैंl वे इन
पहाड़ियों पर खेती(डोंगर चास) करके अपना जीविकोपार्जन करते हैंl इन आदिवासी समूहों का संकेन्द्रण नियमगिरि की पहाड़ी में
कब हुआ इसका ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल
हैl लेकिन डोंगरिया कंध की मौखिक परम्परा के अनुसार नियमराजा
उनके आदिदेव हैं और नियमगिरि उनकी पारंपरिक निवास स्थली हैl इस पहाड़ी से सैकड़ों बरसाती और सदाबाहर झरनों की निष्पति
होती हैl डोंगरिया कंध और
नियमगिरि के आसपास रहने वाले लोगों के अनुसार इस पहाड़ी से 36 सदाबहार झरने और दो
नदियाँ क्रमशः नागबली और वंशधारा निकलती हैंl नागबली और वंशधारा के जल से आसपास के लाखों लोगों को जलापूर्ति होती हैl8 डोंगरिया कंध बहुत सधे हुए बागबान हैंl नियमगिरि की पहाड़ियों में यह समुदाय पिछली कई पीढ़ियों से
बागबानी करती आ रही हैl नियमगिरि के पहाड़ी ढलानों पर डोंगरिया
कंध हल्दी, कटहल, संतरा, नीम्बू, केला,
अनानास की खेती करते हैंl साथ ही अन्न के रूप में मंडिया, दलहन
में अरहर (कांदुल) इत्यादि का उत्पादन कर अपना भरण-पोषण करते हैंl जंगल के उत्पाद जैसे साल के पत्ते, जलावन की लकड़ियाँ,
इमली, आम, कन्धा मूल, इत्यादि को जमा कर
ये आसपास के बाजारों जैसे कि मुनिखल(मुनिगुडा), चाटीकोना, हाट मुनिगुडा, लंजिगढ़,
त्रिलोचनपुर बाजारों में उसकी बिक्री करते
हैंl इन विक्रय से जो धन की प्राप्ति होती उसका सदुपयोग
डोंगरिया कंध घर की आवश्यक ज़रूरतों की पूर्ति के लिए करते हैंl
नियमगिरि आन्दोलन -
नियमगिरि
हिल रेंज में वेदांता एलुमिना और ओडिशा माइनिंग कारपोरेशन के संयुक्त तत्त्वावधान
में डोंगरिया, कुटिया और अन्य जनों के रहवास क्षेत्र में प्रस्तावित खनन के विरोध
में हुए जनआन्दोलन को नियमगिरि आन्दोलन की संज्ञा दी गयी हैl इस आन्दोलन का नामकरण नियमगिरि के पारस्थितिकीय और सांस्कृतिक विशिष्टता को
ध्यान में रखकर किया गया हैl एक दशक से अधिक कालखंड तक चले इस
आन्दोलन का सम्पूर्ण दौर क़ानूनी दांव-पेंच, राजनीति एवं छोटे-बड़े आन्दोलन से भरा
रहाl वैसे तो इस आंदोलन का बीजारोपण वेदांता एवं ओडिशा माइनिंग कॉर्पोरेशन के बीच
वर्ष 1997 में ओडिशा में बॉक्साइट खनन के करार से ही हो गया थाl लेकिन इसका जीवंत
स्वरुप तब नज़र आया जब 6 जून 2002 को
कालाहांडी के जिलाधिकारी ने लंजिगढ़ तहसील में स्थित, बेल्मबा, बसंतापाड़ा,
सिन्धीबहल, बंधागुडा, कापागुडा, बोरभाटा, किनारी, करद्वार, डेंगासर्गी, कंसारी,
बोरिंगपदर और टुरीगुडा नामक 12 ग्रामों के
ग्रामवासियों को प्रस्तावित बॉक्साइट खनन परियोजना की सूचना दी गई और इस सन्दर्भ
में ग्रामवासियों को मंतव्य स्पष्ट करने को कहा गयाl अधिकतर ग्रामवासियों ने अपने मंतव्य में
प्रस्तावित खनन परियोजना को पूरी तरह नकार दिया थाl लेकिन सरकार ने
ग्रामवासियों के विरोध के बावजूद बल
प्रयोग के माध्यम से लान्जिगढ़ तहसील में ग्रामवासियों की ज़मीन का अधिग्रहण कर
लियाl
जमीन
अधिग्रहण के वेदांता कम्पनी ने वहाँ एल्युमिनियम शोधन संयंत्र के लिए निर्माण
कार्य शुरू किया जिसकी आधारशिला रखने के लिए तत्कालीन ओडिशा सरकार के मुख्यमंत्री
नवीन पटनायक कालाहांडी स्थित लान्जिगढ़ तहसील पधारे थेl एल्युमिनियम शोधन संयंत्र
के शुरुवाती निर्माण कार्य के दौरान कम्पनी ने शोधन संयंत्र के निर्माण कार्य के
लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से शोधन संयंत्र के निर्माण के लिए पर्यावरण मंजूरी
के लिए आवेदन दियाl इस आवेदन में कम्पनी ने निर्माण कार्य क्षेत्र में वन भूमि की
अनुपस्थिति की बात छुपाई थीl वस्तुतः एल्युमिनियम शोधन संयंत्र ठीक नियमगिरि पहाड़ी
की तलहटी में हो रही थीl यही नहीं निर्माण कार्य के ठीक समीप ही कालाहांडी की जीवन
रेखा, वंशधारा नदी का उद्गम स्थल भी है एवं इसके आसपास कुटिया कंध एवं दलितों की
एक बड़ी आबादी निवास करती है और नियमगिरि पहाड़ी की ढलानों पर, जिसके समीप निर्माण
कार्य हो रहा था एवं जिस पहाड़ी पर वेदांता ने बॉक्साइट खनन के लिए प्रयासरत थे,
वहाँ डोंगरिया कंध एवं झरनिया कंध निवास करते हैंl लेकिन मंत्रालय को भेजे गए
आवेदन में कम्पनी ने वन भूमि की बात को छुपाकर आवेदन कर दियाl लेकिन प्रस्तावित
एल्युमिनियम संयंत्र के निर्माण के दौरान वन भूमि के अतिक्रमण की अनदेखी कर दिनांक
22 सितम्बर 2004 को पर्यावरण और वन मंत्रालय ने एम/एस. स्टरलाइट (वेदांता की पैतृक
कंपनी) को नियमगिरि पहाड़ी पर खनन से शोधन संयंत्र को अलग रखते हुए, 75 मेगावाट की
कोयला आधारित बिजली उत्पादन संयंत्र एवं 1 मिलियन टन प्रतिवर्ष क्षमता की
एल्युमिनियम शोधन संयंत्र के लिए वन मंजूरी प्रदान की l
एल्युमिनियम
शोधन संयंत्र की स्थापना के लिए मंत्रालय द्वारा वन मंजूरी के खिलाफ भूवैज्ञानिक,
श्रीधर मूर्ति, ओडिशा वाइल्ड लाइफ सोसाइटी के विश्वजीत मोहंती एवं मानवाधिकार
कार्यकर्ता प्रफुल्ला सामंतराय ने उच्चतम न्यायलय के समक्ष याचिका दायर कियाl
जिसमें प्रस्तावित एल्युमिनियम संयंत्र एवं इसकी नियमगिरि की पहाड़ी पर निर्भरता के
आसन्न संकटों के विषय पर आशंका व्यक्त की गई थीl इस याचिका का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सेन्ट्रल
एम्पोवेरेड कमेटी को शिकायत की जाँच करने का आदेश जारी कियाl वस्तुतः सेंट्रल एम्पोवार्ड कमेटी का गठन दिनांक
9 मई 2002 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया गया थाl इस कमेटी का मुख्य कार्य
वनभूमि के निकट हो रहे विकास परियोजनाओं पर स्थानीय या अन्य किसी भी सरकारी या
ग़ैर-सरकारी संस्थाओं की आपत्तियों पर सुनवाई कर सुप्रीम कोर्ट को उचित सलाह देना
हैl सेंट्रल एम्पोवार्ड कमेटी ने समस्त तथ्यों की गहन विवेचना के बाद सुप्रीम
कोर्ट को सलाह दी कि वर्तमान संयंत्र नियमगिरि में रहवास कर रहे डोंगरिया कंध के
अस्तित्व के लिए एक गंभीर संकट है इसलिए नियमगिरि को छोड़कर अन्यत्र कहीं वैकल्पिक
बॉक्साइट खनन स्रोत उपलब्ध हो जाने तक संयंत्र निर्माण कार्य को स्थगित रखा जाएl
सेन्ट्रल
एम्पोवार्ड कमेटी की रिपोर्ट को आधार बना कर सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2006 में इस
पूरे विषय को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत विकास कार्यों के लिए वन भूमि
के हस्तांतरण को देखने वाली संस्था फारेस्ट एडवाइजरी कमेटी (FAC) को सौप दियाl
फारेस्ट एडवाइजरी कमेटी, वन संरक्षण क़ानून (1980) के अंतर्गत, एक सांविधानिक
संस्था है जो कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तहत काम करती हैl इसका मुख्य कार्य,
वन-भूमि का उद्योग, खनन, विशेष आर्थिक क्षेत्र, सड़क निर्माण, बाँध निर्माण जैसे
ग़ैर-वन प्रकल्पों के लिए भूमि हस्तांतरण के सन्दर्भ में वस्तुस्थिति का अध्ययन कर,
मंत्रालय को सलाह देना हैl मंत्रालय,
फारेस्ट एडवाइजरी कमेटी की सलाह को मानते
हुए इस विषय पर एक जाँच कमेटी बनाई जिसके आधार पर वर्ष 2007 में कम्पनी को कुछ शर्तों के साथ खनन के लिए
मंजूरी प्रदान कर दी गईl 9
मंत्रालय
के द्वारा खनन के लिए शर्तों के साथ कंपनी को खनन की अनुमति प्रदान करने की सूचना
मिलने के बाद आदिवासी कार्यकर्ताओं ने आन्दोलन को तीव्र कर दियाl स्थानीय स्तर पर एक के बाद एक जनसभा एवं प्रदेश
की राजधानी भुवनेश्वर में प्रदर्शन हुएl
इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता श्री सिद्दार्थ नायक ने सुप्रीम कोर्ट में
नियमगिरि एवं डोंगरिया कंध के अंतर्संबंध को विस्तृत रूप में बताते हुए सुप्रीम
कोर्ट में एक याचिका दायर कीl हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को ख़ारिज करते
हुए दिनांक 08 अगस्त 2008 के अपने अंतिम निर्णय में, नियमगिरि पर 660.749 हेक्टेयर
वन भूमि, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज लिमिटेड एवं ओडिशा माईनिंग कापोरेशन लिमिटेड को
सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास पैकेज एवं
विकास की गति से समाज को जोड़ने की शर्तों पर खनन को क़ानूनी मान्यता प्रदान कर दी
लेकिन इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस सन्दर्भ में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय एवं
अनुसूचित जाति एवं जनजाति मंत्रालय को इस सन्दर्भ को देखने की सलाह दीl
10 अगस्त
2009, राज्य सरकार ने खनन परियोजना के लिए द्वितीय चरण की मंजूरी के लिए पर्यावरण
एवं वन मंत्रालय में आवेदन दिया, इसके पहले मंत्रालय ने वर्ष 2004 में एल्युमिनियम शोधन संयंत्र के लिए प्रथम चरण की
पर्यावरण एवं वन मंजूरी दी थी जिसके आधार
पर वेदांता का संयंत्र स्थापित हुआ थाl
लेकिन द्वितीय स्तर की वन मंजूरी के दायरे में नियमगिरि पहाड़ी पर खनन एवं
एल्युमिनियम शोधन संयंत्र का छह गुणा विस्तार होना था इसलिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने द्वितीय स्तर के
वन मंजूरी निर्गत करने से पहले 01 जनवरी 2010 को,डॉ उषा रामनाथन(भूमि-अधिकार एवं
आदिवासी विशेषज्ञ), विनोद ऋषि(हाथी परियोजना के पूर्व निदेशक) एवं जे. के
तिवारी(क्षेत्रीय वन संरक्षक) के संयुक्त तत्त्वावधान में एक समिति का गठन कियाl
इस समिति को वन अधिकार कानून, 2006, एवं
नियमगिरि की जैव-विविधता पर प्रस्तावित
खनन परियोजना के प्रभाव का अध्ययन करने नियमगिरि भेजा गयाl तीनों विशेषज्ञों ने अपनी अलग-अलग रिपोर्ट
दिनांक 25 फरवरी 2010 को मंत्रालय को सौंपी एवं पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को सलाह
दी कि इस विषय पर एक विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता हैl मंत्रालय ने उपर्युक्त कमेटी की बातों का
संज्ञान लेते हुए दिनांक 16 अप्रैल 2010
को डॉ. एन सी सक्सेना, डॉ. अमिता बाविस्कर, डॉ. प्रमोदे कान्त एवं डॉ. एस.
परसुरामन के नेतृत्व में एल्युमिनियम शोधन संयंत्र एवं प्रस्तावित खनन क्षेत्र पर
एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए नियमगिरि जाने का निवेदन कियाl सक्सेना कमेटी
ने अपने अध्ययन में पाया कि वेदांता कम्पनी , पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, वन
संरक्षण अधिनियम 1980 एवं वनाधिकार कानून 2006, उल्लंघन की स्पष्ट रूप से दोषी हैl10
सक्सेना
कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर मंत्रालय ने
दिनांक 24 अगस्त 2010 को वेदांता कम्पनी को खनन के लिए द्वितीय चरण की वन मंजूरी देने से
मना कर दियाl वन मंजूरी निरस्त हो जाने के बाद ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन ने सुप्रीम
कोर्ट में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के इस निर्णय को चुनौती दीl सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनते हुए
वर्ष 18 अप्रेल 2013 को नियमगिरि में ग्रामसभा करवाने का आदेश दियाl आदेश का पालन करते हुए ओडिशा सरकार ने नियमगिरि
में वर्ष 2013 में जुलाई और अगस्त के महीने में कालाहांडी और रायगड़ा के कुल 12
गांवों में ग्रामसभा का आयोजन कियाl ग्रामसभा ने खनन परियोजना को पूरी तरह नकार
दिया जिसके बाद वेदांता का नियमगिरि में खनन के इरादे पर ग्रहण लग गयाl इस निर्णय के बाद वर्ष 2014 के जनवरी में
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने वेदांता एलुमिना के नियमगिरि पर खनन परियोजना के लिए
वन मंजूरी को पूरी तरह से निरस्त कर दियाl जिसके बाद वेदांता एलुमिना के
विरुद्ध डोंगरिया, कुटिया, दलित और आम
जनों के आन्दोलन को विराम लग गयाl 11
निष्कर्ष :
नियमगिरि पर्वत, संकटग्रस्त अल्पसंख्यक डोंगरिया कंध आदिवासी के
लिए एक पर्वतों का समुच्चय न होकर, दैहिक-दैविक और भौतिक इकाई हैl लेकिन ओडिशा
माइनिंग कम्पनी एवं वेदांता ने इसे संसाधन के रूप में देखा और यहाँ खनन के लिए
वर्ष 1997 से लेकर 2013 तक प्रयास करते रहेl आदिवासियों का कंपनी के इन्हीं
प्रयासों के खिलाफ एकजुट संघर्ष, नियमगिरि आन्दोलन हैl 240 वर्ग किलोमीटर में फैली
नियमगिरि पहाड़ियों के घने जंगलों में रहने वाले डोंगरिया कंध बाहरी दुनिया के
प्रति अपनी असहजता को त्यागकर वेदांता और ओडिशा सरकार के द्वारा, नियमगिरि पर खनन
की प्रबल इच्छा के विरुद्ध अपनी आवाज उठाईl
बहिष्करण से अभिषिक्त इस समाज में अपने अधिकारों के लिए मुखरता से बोलना,
सामाजिक न्याय के लिए लड़ना और लक्ष्य को प्राप्त करना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण
कार्य हैl लेकिन डोंगरिया कंध, जिसे
सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक नवाचार के सन्दर्भ में काफी पिछड़ा माना जाता है,
इन्होंने अपने अधिकार की लड़ाई लड़ने के बाद, बहिष्करण, उत्पीड़न, शोषण के खिलाफ
संघर्ष कर रहे अन्य समुदायों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया हैl इसलिए यह
आन्दोलन ओड़िशा के विभिन्न इलाके जैसे, काशीपुर, नारायणपटना, गंधमरदान, माली पर्वत
एवं खंडुआल माली में चल रहे आन्दोलनों की सामूहिक अभिव्यक्ति का माध्यम बना
हैl भारत के आन्दोलनों में मुद्दों की
विविधता, क्षेत्रीय विभाजन एवं कालखंड में
भिन्नता के कारण एक आन्दोलन दूसरे आन्दोलन से जुड़ नहीं पाता हैl नियमगिरी आन्दोलन एक ऐसे कालखंड में हुआ जब
गंधमरदान में आदिवासी एक लम्बी लड़ाई लड़ने के दौरान, काशीपुर, नारायणपटना और
कलिंगनगर में सक्रिय थेl आन्दोलनकारियों और आदिवासियों की स्मृतियों में कलिंगनगर
और काशीपुर में अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे आदिवासियों की पुलिस गोलीबारी में
मौत की घटना ताज़ा थीl आदिवासियों का ऐसा
उत्पीड़न दुबारा ना हो और डोंगरिया कंध, कुटिया कंध और दलित, खनन के कारण अनैच्छिक
विस्थापन, अनिश्चित भविष्य और अपूर्ण पुनर्वास से पीड़ित ना हों इसलिए ओडिशा
परिक्षेत्र के विभिन्न स्थलों में सक्रीय आन्दोलनकारी नियमगिरि में सामूहिक से रूप
से अभिव्यक्त हुए और आन्दोलन का लोकतान्त्रिक स्वरुप बनाए रखाl नियमगिरि
आन्दोलन भारत में सोशल मीडिया के प्रचार-प्रसार के शुरुआती युग में हुआ जिस
कारण, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोग, नव-उदारवाद की विभीषिका से परिचित
हुएl नियमगिरि, वर्तमान समय में देश में अन्य आन्दोलनों के विमर्श का एक
महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैl आज यह आन्दोलन, भारतीय सामाजिक आन्दोलन के लोक विमर्श का
एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया हैl यह नियमगिरि में डोंगरिया कंध आदिवासी का पुरुषार्थ ही है जब भारत के किसी आन्दोलन
विमर्श में लोग डोंगरिया कंध प्रतिनिधियों को अपनी आँखों से देखना चाहते हैं एवं
उनकी संघर्ष की गाथा को सुनकर उनसे लड़ने की प्रेरणा लेते हैंl
सन्दर्भ :
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https://twitter.com/caresearch_au.
कुमार
आदित्य
शोधछात्र,
इलाहबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
डॉ. शैलेन्द्र कुमार मिश्र (शोध निर्देशक)
अस्सिस्टेंट प्रोफेसर, इलाहबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-38, अक्टूबर-दिसंबर 2021
चित्रांकन :Yukti sharma, Student of MA Fine Arts, MLSU UDAIPUR
UGC Care Listed Issue 'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL)
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