कुछ कविताएँ : गुरुदयाल सिंह
(1)
तन्हाई भी अजब पहेली,
बिन पूछे सब बतलाती है।
थरथर
काँपे गात देखकर, चन्द्रहास
का म्यान निकलना।
बचपन,
यौवन और बुढापा,
चुप
चुप छुप छुप सबका ढलना।
चेहरे
का सब नूर उतर गया,
पर
उम्र बावली झुठलाती है।
तन्हाई
भी अजब पहेली,
बिना
पूछे सब बतलाती है।
वो
बचपन के स्वप्न सुनहरे,
इन्द्र-धनुष
से सतरंगी थे।।
नीलकंठ
और मोर, गौरेया,
सोनचिरैया
सब संगी थे।
ज्यों
पनघट पर नयी नवेली, दुल्हन
चलती इठलाती है।
तन्हाई
भी अजब पहेली,
बिन
पूछे सब बतलाती है।
कुछ
भूले कुछ स्मृति में,
वो
यादों के अनमोल खजाने।
कभी
रुआँसा एकाकी मन,
कभी
ख्वाब रंगीन लुभाने।
गाकर
लौरी थाप पीठ पर,
माँ
बालों को सहलाती है।
तन्हाई
भी अजब पहेली,
बिन
पूछे सब बतलाती है।
पौरुष
सारा ढल जाता है,
जब
बैठे हों निपट अकेले।
कभी
गहन सन्नाटा छाता,
कभी
सामने सजते मेले।
प्राण
प्रिय यदि दूर बसे हैं,
तो
उनकी मीठी याद सताती है।
तन्हाई
भी अजब पहेली,
बिन
पूछे सब बतलाती है।
कुछ
जाने कुछ अनजाने से,
कुछ अन्तस में ठेठ उतर गए।
बिन
वादों कुछ खरे उतर गए
कुछ वादों से मुकर गए।
चलचित्र-सी इस दुनिया में, मुलाकात कब हो पाती है?
तन्हाई
भी अजब पहेली,
बिन पूछे सब बतलाती है।
(2)
हिंडौले
झूलती ये सखी,
बिन पाटी बिन तार।
गगन
मण्डल में एक रूंख है,
सखी जाके फूटी असंख्य डाल।
डाल
पर झूलती ये सखी,
निरखती अजब बहार।
हिंडौले,,,,,,,,,,,।।
चाँद-सूरज
के बीच में ये
सखी, झूल रही दिन रात।
इड़ा
पिंगला की डोर में ये
सखी, सुखमण पाटी डार।
हिंडोले,,,,,,,,,,।।
कभी
न आलस्य थकना ये
सखी, मैं रमती आठों पहर।
इक्कीस हजार छह सौ झोटा ये सखी, लेती सब इकसार।
हिंडौले,,,,,,,,,,,,।।
आठ घाट पर नहाती ये सखी, निर्गुण पाटे बैठ।
विषयों का मल धोवती ये सखी, ज्ञान की थापी मार।
हिंडौले,,,,,,,,,,,,,।।
पाँच रंग की चुनड़ी ये सखी, पच्चीस भाँति की बेल।
शब्द
का सुरमा सारती ये सखी,
मैं करती सोलह शृंगार।
हिंडौले,,,,,,,,,,,,,।।
चन्दन हिंडौलो टूट गयो ये सखी, बिखर गया सब तार।
करणीदान की करनी से ये सखी, गुरुदयाल उतरा पार।
हिंडौले,,,,,,,,,,,,,,,,,,।।
गुरुदयाल सिंह गाँव- डाबड़ी धीरसिंह, जिला- झुंझुनूं, 97844 24749 |
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