वन्यजीवनपारिस्थितिकी
संरक्षण में मीडिया की भूमिका (पन्ना राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश के विशेष संदर्भ में)
- अम्बरीष त्रिपाठी व डॉ. जे के पांडा
शोध सार : वन्यजीव पारिस्थितिकी संरक्षण के लिये स्थानीय लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सरकार की योजनाओं या कार्यक्रमों से संरक्षण को दिशा तो मिल सकती है, लेकिन स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना ये योजनायें और कार्यक्रम सफल नहीं हो सकते हैं। इनके क्रियान्वयन में मीडिया की जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हालांकि वन्यजीवन पारिस्थितिकी के संरक्षण के बारे में पूरी जानकारी न होना भी बड़ी चिंता का कारण कहा जा सकता है। यही वजह है कि मीडिया में जैव विविधता के संरक्षण के बारे में नियमित खबरों का न तो प्रसारण हो पाता है और न ही प्रकाशन। सारांश के तौर पर यही कहा जा सकता है कि जैव विविधता के संरक्षण में मीडिया की भूमिका तो है,लेकिन सक्रिय भूमिका नजर नहीं आती है।
बीज शब्द : पारिस्थितिकी,संरक्षण,मीडिया,प्रसारण,प्रकाशन,सक्रिय
भूमिका,जैव विविधता आदि।
मूल आलेख : वन्यजीवन शब्दव्यापक रूप से सभी जंगली जानवरों, पौधों और अन्य जीवों से संबंधित
होता है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग जैसे वैज्ञानिक,
सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद,राजनेता, पत्रकार और आमजन सभी
वन्यजीवसंरक्षण की बात करते हैं। अलग-अलग लोगों के लिएवन्य जीव संरक्षण के मायने अलग-अलग
हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य मेंवन्य जीव संरक्षण से तात्पर्य पारस्थितिकी तंत्र में
पाए जाने वाले जंगली पौधों,वनस्पतियों,जंगली
जानवरों के संरक्षण से है। यहां तक की अपने प्राकृतिक पर्यावरण से अलग हो गए
उद्यान और चिड़ियाघरों का संरक्षण भी इसमें शामिल है। पारिस्थितिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीवित और निर्जीव प्राणियों का
एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्ध और उनके पर्यावरण की जांच की जाती है। इस विषय का
अध्ययन पारिस्थितिकी तंत्र के खतरों और उसको नुकसान पहुँचाने वाले कारको के मानक
या मूल्यांकन संबंधी मुद्दे को इंगित करने के लिए किया जाता है। अधिक उपयुक्त रूप से पारिस्थितिकी का उपयोग केवल इस अर्थ
में किया जाता है कि यह एक अकादमिक अनुशासन है,जोगणित या भौतिकी की तरह से अधिक
मूल्यांकनात्मक नहीं है। एक मानक या मूल्यांकन शब्द के रूप में देखें तो पारिस्थितिकी
के लिए पर्यावरण शब्द का उपयोग करना अधिक उपयुक्त होता है, जिसका तात्पर्य पर्यावरण की गुणवत्ता या पर्यावरण की क्षति से है।
अधिकांश पर्यावरणविद इस बात से संतुष्ट हैंकि आज
पारस्थितिकी के मानक अर्थ में परिवर्तन आया है। तीन दशक पूर्व पारिस्थितिकी की
अज्ञानता थी, जबकि तुलनात्मक रूप से आज पारिस्थितिकी के प्रति जागरूकता को प्राथमिकता दी जा रही है।
वन्यजीवन
शब्द आम तौर पर गैर-पालतू कशेरुकियों से जुड़ा है, लेकिन व्यापक रूप से सभी जंगली
जानवरों, पौधों और
अन्य जीवों से संबंधित है। सभी गैर-पालतू जानवर और बिना खेती वाले पौधे वैज्ञानिक
रूप से वन्यजीव के रूप में जाने जाते हैं। वाइल्डलाइफ शब्द को पहली बार वर्ष 1913
में द न्यूयॉर्क जूलॉजिकल पार्क के निदेशक विलियम हॉर्नडे द्वारा लिखित एक पुस्तक
"अवर वैनिशिंग वाइल्डलाइफ" में पढ़ा गया था। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने वन्य
जीवन को "किसी विशेष क्षेत्र के मूल जीव और वनस्पति" के रूप में
परिभाषित किया है, जबकिवेबस्टर ने वन्य जीवन को "जीवित चीजें जो न तो मानव
हैं और न ही पालतू हैं" के रूप में परिभाषित किया है। वन्यजीव संरक्षण से तात्पर्यलुप्तप्राय
पौधों और जानवरों की प्रजातियों और उनके आवासों की रक्षा करना है। वन्यजीव संरक्षण
का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि आने वाली पीढ़ियों के सुखद जीवन और प्रकृति का
आनंद लेने के लिए वन्य जीवन और जंगल की भूमि के महत्व कोपहचाना जाए। वनों की कटाई की वजह से कई
खतरनाक प्रभाव देखने को मिले हैं,जिनमें प्रमुख हैं जानवरों के आश्रयों का विनाश, ग्रीनहाउस प्रभाव,जहरीली गैसों
में वृद्धि, हिम स्खलन, ग्लेशियरों का
पिघलना आदि जिसके कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि हो रही है, ओजोन परत को क्षति हो रही है और तूफान, बाढ़,
सूखा आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं,जो कि
पूरे विश्व के लिए चिन्ता का विषय है। कई देशों में वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध सरकारी एजेंसियां
हैं जो वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए तैयार की गई नीतियों को निष्पादित करने
में मदद करती हैं। कई स्वतंत्र, गैर-लाभकारी संगठन और व्यक्ति भी विभिन्न वन्यजीव संरक्षण
को प्रोत्साहित करते हैं।
वन्यजीव संरक्षण, वन्यजीव प्रबंधन औरपर्यावरणीय जागरूकता तथा पर्यावरण
शिक्षा में व्यापक चेतना लाने में मीडिया भी उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है। पर्यावरणीय
नीतियों के निर्धारण और नियोजन में जनसामान्य की सहभागिता को प्रभावी बनाने के लिए
पर्यावरणीय मुद्दों की पर्याप्त सूचना एवं जानकारी लोगों तक पहुंचाने में मीडिया सकारात्मक
भूमिका निभासकता है।
पूर्व
साहित्य का अध्ययन
क्लार्क(1973) ने कहा कि पारिस्थितिकी किसी पारिस्थितिक तंत्र
में जीवित जीवों और उनके भौतिक परिवेश के बीच पारस्परिक अंतःक्रियाओं की समग्रता
का विज्ञान है।
स्कोनफेल्ड1979,स्पेक्टर और किट्स्यूज, (1977) ने अपने शोध अध्ययन के बाद कहा
किपर्यावरणीय मुद्दों की पहचान और व्याख्या करने में जनसंचार माध्यम प्रमुख कारक
हैं। लोगों में पर्यावरण की जागरूकता लानेएवं वन्यजीव संरक्षण की दिशा में समस्याओं
और चुनौतियोंको भी सामने लाने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष, प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण के प्रति मानव धारणा, प्रकृति, दृष्टिकोण और व्यवहार को बदलने मे भी मीडिया की भूमिकामहत्वपूर्ण है।
डिस्पेंसा औरब्रुले (2003) के अनुसार मीडिया वैश्विक वन्यजीव संरक्षण और
प्रबंधन में एक आवश्यक भागीदार बन गया है,वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन के मुद्दे
मीडिया में महत्व प्राप्त करने लगे हैं। वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता के समाचारों
की मीडिया कवरेज में 1990 के बाद से लगातार वृद्धि हुई है, पहले शायद ही इन विषयों को मीडिया
में जगह मिलती थी। प्रदूषण,जलवायु परिवर्तन, वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता के
लिए लोगों की जागरूकता बढ़ाने मे मीडिया सामाजिक दायित्व के रूप मे अपनी भूमिका
निभा रहा है।
शोध
के उद्देश्य
1-पन्ना राष्ट्रीय
उद्यान की पारिस्थितिकी और वन्य जीवन का अध्ययन करना।
2-पन्ना राष्ट्रीय
उद्यान में वन्यजीव संरक्षण के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने में मीडिया की
भूमिका का अध्ययन करना।
3-पूर्व में संचालित
किये गये मीडिया अभियानों की समीक्षा करना।
शोध समस्या का विवरण
२१वीं सदी में वन्यजीव संरक्षण धीरे-धीरे अधिक महत्वपूर्ण
हो गया है,उनके प्राकृतिक
निवास स्थान का विनाश, अवैध शिकार, वन्यसंसाधनों
का अत्यधिक दोहन, तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष का पारिस्थितिकी
तंत्रऔर जैवविविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़रहा है। कई शताब्दियों से वनों की कटाई को रोकने या कम
करने के लिए वैश्विक प्रयास किये जा रहे हैं क्योंकि लंबे समय से यह सबको पता है
कि जंगलों की कटाई ने पर्यावरण को नष्ट कर दिया और कुछ मामलों में तो यह देश के
पतन का कारण भी बनता जा रहा है। वन्यजीवों के अवैध शिकार के बढते हुए मामले
वन्यजीव आबादी पर एक विपरीत प्रभाव डालते हैं। वन्यजीवोंके अवैध शिकार और अवैध
व्यापार के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेशेवर शिकारियों के सुव्यवस्थित गिरोह
शामिल हैं। यह स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है और पारिस्थितिक
असंतुलन, प्रदूषण, वनों की कटाई और
वन्यजीवोंके प्राकृतिक आवासों के विनाश के कारण जैव विविधता को सीधा नुकसान होता
है। मानव आबादी और मानव द्वारावन्यजीवन में हस्तपक्षेप की गतिविधियों में वृद्धि
के कारण वन्यजीवोंके प्राकृतिक आवास जैसे जंगल, घास के मैदान,
रेगिस्तान, आर्द्रभूमि, प्रवाल
भित्तियाँ आदि के अस्तित्व पर खतरा है|
यह खतरा विश्वव्यापी है। प्रस्तुत
अध्ययन में मध्यप्रदेश के पन्ना
बायोस्फियर
रिजर्व को प्रशासकीय इकाई के रूप में चयनित किया गया है। इस अध्ययन के माध्यम से
यह जानने का प्रयास किया गया है, कि वन्य जीवों के संरक्षण की जागरूकता लाने के
लिये मीडिया की क्या भूमिका है।
अध्ययन का महत्व
किसी क्षेत्र का पारिस्थितिक
संतुलन वनों और वन्य जीवन पर निर्भर करता है|वन हमारे पर्यावरण और
अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण घटक होने के साथ-साथ पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त
रखने और मिट्टी के कटाव को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैवविविधता
का व्यापक स्वरूप और उसका आनुवंशिक, वाणिज्यिक, चिकित्सा,
सौंदर्य, पारिस्थितिक महत्व के कारण जैव
विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर जोर देता है। बड़े पैमाने पर अवैध शिकार,
अवैध व्यापार गतिविधियों, आवास विनाश और
मानव-पशु संघर्षों के परिणामस्वरूप अधिकांश जंगली जानवरों और पक्षियों की आबादी
में तेजी से गिरावट आई है। लगातार बढ़ रहे वनों की कटाई, अवैध
शिकार, वन्यजीव व्यापार और वन्यजीवन तथा प्रकृति के प्रति हमारी
लापरवाही वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्र के अस्तित्व के लिए खतरनाक है। हमें हमारे वन्य जीवन को अमूल्य संपत्ति के रूप
में देखना होगा और उनके बचाव के बारे में सोचना होगा, यह तभी संभव है जब हम न केवल
वन्य जीवन को बचाए बल्कि उन्हें पनपने का अवसर भी प्रदान करें, यदि आवश्यक हो तो
हमें उन्हें उचित वातावरण में रखकर उनकी संख्या बढ़ाने का प्रयास भी करें|मानव अतिक्रमण के दुष्परिणामों
को दूर करने के लिए कई राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य और संरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए
हैं। भारत में वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय वन्य जीव कार्य
योजना, राष्ट्रीय उद्यान,टाइगर
परियोजना और अभयारण्य, जैव-क्षेत्रीय रिजर्व कार्यक्रमआदि चल
रहे हैं। जनजातियों और अन्य स्थानीय लोगों
के बीच संचार गतिविधियों की कमी के परिणामस्वरूप महाविनाश होता है। ऐसे मे वन्यजीवन पारस्थितिकी संरक्षण मे मीडिया की भूमिका का अध्ययन बहुत उपयोगी साबित हो सकता है|
अध्ययन क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक
रूपरेखा
वन्यजीवों और वानस्पतिक विविधता
से संपन्न मध्यप्रदेश में कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य हैं| पन्ना
राष्ट्रीय उद्यानअपनी प्राकृतिक संपदा,संरचना एवं वन्यजीवोंऔर वानस्पतिक विविधता के लिए जाना जाता है|पन्ना
राष्ट्रीय उद्यान भारत में मध्य प्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिलों में स्थित एक
राष्ट्रीय उद्यान है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान 1981 में बनाया गया था। इसे 1994 में भारत सरकार
द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC)ने वर्ष 2011 में इसे बायोस्फियर रिज़र्व घोषित किया था। वर्ष 2020 में' पन्ना टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व' सूची में
शामिल किया गया है|इस उद्यान का
क्षेत्रफल 542.67वर्ग
किलोमीटर है। इस उद्यान को तीन क्षेत्रों
में विभाजित किया गया है, जैसे कि ताडोबा उत्तर
क्षेत्र, मोरहुली
क्षेत्र और कोलसा दक्षिण रेंज।
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में केन नदी,जो दक्षिण से उत्तर की बहती है,
घड़ियाल, मगरऔर अन्य जलीय जीवों का घर है और सबसे कम प्रदूषित
नदियों मे से एक है| यह यमुना की सहायक नदियों में से एक हैतथामध्य
प्रदेश की सोलह बारहमासी नदियों में से एक है और वास्तव में इस राष्ट्रीय
उद्यान की जीवन रेखा है। इस रिज़र्व में बाघ के अतिरिक्त तेंदुआ, नीलगाय, चित्तीदार
बिल्ली, चिंकारा, चीतल,साही और सांभर जैसे जानवर तथा 200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ,
जिनमें हनी बुझार्ड,लाल सिर वाला गिद्ध,बार-हेडेड हंसऔर भारतीय गिद्ध आदि शामिल हैं, निवास
करती हैं। यहाँ केन नदी में घड़ियाल और मगरमच्छ भी पाए जाते हैं। वनस्पति प्रकारों में यहाँ उष्णकटिबंधीय शुष्क
पर्णपाती, सागौन, बोसवेलिया वन,
एनोजिअस पेंडुला वन के साथ-साथ पठारों की खड़ी ढलानों पर बबूल के
वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं।
पन्ना बायोस्फीयर रिजर्व के गांवों की अपनी संस्कृति और परंपरा है। रिजर्व में
गोंड (राजगोंड, नंदगोंड और सौरगोंड) और खैरुआ और
यादव (दौवा) जैसी जनजातियां निवास करती हैं। वे जनजातियां स्थापित कृषक हैं और
पारंपरिक जीववादी धर्म में विश्वास करते हैं। हाल के दिनों तक, ऐसा लगता है कि वे प्रकृति और जंगलों के साथ सामंजस्य बिठाते हुये जीवन
निर्वाह करते थे क्योंकि वन संसाधन व्यापक थे और प्रचुर मात्रा में थे,और आधुनिक विकास के लिए अप्रभावित थे। हालांकि, पिछले
कई वर्षों में उनकी जीवन शैली, जरूरतों और बाहरी दुनिया के
साथ व्यवहार में तेजी से परिवर्तन देखा जा सकता है। पन्ना बायोस्फीयर रिजर्व, में रहने वाले लोगों की अर्थव्यवस्था ज्यादातर कृषि, पशुपालनतथा दूध उपज आदि पर आधारित है। बायोस्फीयर रिजर्व का भौगोलिक
क्षेत्र 6 ब्लॉकों को कवर करने वाले 2 जिलों में वितरित किया जाता है, प्रत्येक जिले में 3 ब्लॉक के कुछ हिस्सों को कवर किया जाता है। कुल
मिलाकर303 गांव (ग्रामीण) और 3 शहरी समूह (यानी, पन्ना,
खजुराहो और अजयगढ़) रिजर्व के भीतर स्थित हैं। पन्ना बायोस्फीयर रिजर्व का मौसम लगभग 7 महीने
तक गर्म और शुष्क रहता है। यह क्षेत्र अर्ध-शुष्क से शुष्क उप-आर्द्र के अंतर्गत
आता है। औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1100 मिमी है। कुल मिलाकर, यह
स्पष्ट है कि रिजर्व की स्थलाकृति, वर्षा और मिट्टी की
स्थिति में भिन्नता है, जो प्रबंधन उपकरणों के कार्यान्वयन
और जैव विविधता के संरक्षण के लिए चुनौती है।
अध्ययन
क्षेत्र में मीडिया की स्थिति
प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र में मध्यप्रदेश के दो जिलों पन्ना और छतरपुर की
सीमायें लगती है। पन्ना और छतरपुर जिले मध्यप्रदेश के बुदेलखंड क्षेत्र के जिले है।
वैसे तो दोनों जिलों में स्थानीय स्तर पर कई समाचार पत्रों का प्रकाशन होता
है,लेकिन इन समाचार पत्रों का ज्यादा प्रभाव स्थानीय स्तर पर नहीं है। इसलिये
अध्ययन के लिये राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर के समाचार पत्रों में से तीन
महत्वपूर्ण समाचार पत्रों का चयन किया गया है। इसके अलावा बढ़ते इलेक्ट्रानिक
मीडिया के कारण रीजनल न्यूज चैनलों में से तीन चैनलों का चयन किया गया है।
शोध के लिये
चयनित किये गये समाचार पत्र और चैनल इस प्रकार से है।
शोध के लिये
चयनित न्यूज चैनल |
शोध के लिये
चयनित समाचार-पत्र |
1-आईबीसी-24
न्यूज चैनल |
1-दैनिक भास्कर
समाचार पत्र |
2-जी
न्यूज(मप्र/छग) |
2-दैनिक
पत्रिका |
3-न्यूज-18(मप्र/छग) |
3-दैनिक
नईदुनिया |
भारत
में पारिस्थितिकी और वन्यजीव संरक्षण के लिए कदम और कानून
भारत में वन्यजीव संरक्षण 1873 में मद्रास अधिनियम के
माध्यम से जंगली हाथियों के बेतरतीब विनाश को रोकने के लिए और पूरे भारत के लिए
1912 में जंगली पक्षियों और जानवरों की रक्षा अधिनियम की घोषणा के साथ शुरू हुआ। भारत
सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी और वन्यजीव तथा उसके अवैध
व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम [wildlife (protection)
act], 1972 लागू किया। भारत वास्तव में पहला देश है जिसने अपने
संविधान में पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के प्रावधान किए हैं। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 को जंगली जानवरों और उनके आवासों
के नियंत्रण और प्रबंधन के लिए पहला व्यापक कानून माना जा सकता है। इस अधिनियम का मूल उद्देश्य वन्यजीवों की रक्षा
करना है जिसमें जंगली जानवरों और पौधों को अनुसूची I-VI के तहत शामिल किया गया है, जिसमें स्तनधारियों, उभयचरों, सरीसृपों, पक्षियों, कीड़े और पौधों की विभिन्न लुप्तप्राय
और कमजोर प्रजातियों को शामिल किया गया है।
1976में संविधान संशोधन द्वारा वन्य जीवों
और पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया
गया था। देश की चल रही पारिस्थितिक तबाही को रोकने के लिए 1972 से 1993 तक वन्य जीवन
अधिनियम में विभिन्न संशोधन आवश्यक निराशा और तात्कालिकता दोनों को दर्शाते हैं। 1991
के संशोधन अधिनियम के माध्यम से, निर्दिष्ट पौधों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अध्याय III-Aको अधिनियम में शामिल
कियागया। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के
प्रावधानों के तहत वन्यजीवों के शिकार के खिलाफ कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है
जिसमें उनके शोषण और वाणिज्यिक शोषण शामिल हैं। सुरक्षा और खतरे की स्थिति के
अनुसार जंगली जानवरों को कानून के विभिन्न कार्यक्रमों में रखा गया है। अधिनियम के प्रावधानों के तहत संरक्षित क्षेत्र
तैयार किए गए हैं जिनमें देश भर में राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों, महत्वपूर्ण वन्यजीवों के आवास शामिल हैं ताकि वन्यजीव और उनके निवास
सुरक्षित हो सकें। वन्यजीव अपराध नियंत्रण
ब्यूरो को वन्यजीव, जंगली जानवरों और उनके उत्पादों के अवैध
व्यापार के नियंत्रण के लिए गठित किया गया है।
भारत में जैविक विविधता के संरक्षण के लिए भारत की संसद द्वारा जैविक
विविधता अधिनियम, 2002 भी अधिनियमित किया
गया है।
शोध प्रविधि
इस शोध पत्र की प्रकृति विवरणात्मक है। यह अध्ययन द्वितीयकडेटा
पर आधारित है। अध्ययन प्रिंट और ऑनलाइनदोनों पर उपलब्ध संबंधित साहित्य की समीक्षा
पर केन्द्रित है। द्वितीयकडेटा के संग्रह के लिए संदर्भ प्रिंट और ऑनलाइनदोनों पर उपलब्ध
लेखों,हिंदी और अंग्रेजी समाचार पत्रों में प्रकाशित लेख, रिपोर्टऔरकेंद्र और
राज्य सरकार के रिकॉर्ड, प्रकाशित और अप्रकाशित
शोध कार्य, इंटरनेट और अन्य वेब स्रोत जैसे विभिन्न मंत्रालय
और वन विभाग की वेबसाइटों काअध्ययन किया गया है।
वर्तमान शोध अध्ययन मध्यप्रदेश के पन्ना राष्ट्रीय उद्यान की पारिस्थितिकी
और वन्यजीव संरक्षण के विषयों और मुद्दों की मीडिया कवरेज का अध्ययन करने के लिये
चयनित किये गये समाचार पत्र जिनमें दैनिक भास्कर,दैनिक पत्रिका और दैनिक नई दुनिया
समाचार-पत्रों की अध्ययन अवधि के दौरान प्रकाशिक लेखों और खबरों का विश्लेषण किया
गया है।
इसी प्रकार से चयनित किये गये न्यूज चैनलों जिनमें
आईबीसी-24, न्यूज-18 और जी न्यूज(मप्र-छग) में अध्ययन अवधि के दौरान प्रसारित होने
वाली खबरों की समीक्षा की गयी है.
अध्ययन अवधि
प्रस्तुत शोध के प्रथम दो उद्देश्यों की पूर्ति के लिये
अध्ययन अवधि का निर्धारण किया गया है। यह अवधि 15 दिसंबर 2021 से 15 जनवरी 2022 के
बीच में किया गया है।
उद्देश्य क्रमांक तीन की पूर्ति के लिये पूर्व में मीडिया समूहों के द्वारा
संचालित मीडिया अभियानों की समीक्षा की गयी है।
पन्ना बायोस्फेयर रिजर्व में चलाये गये मीडिया अभियानों का
अध्ययन
1-सेव अवर टाइगर्स अभियान
यह अभियान 2010 में एनडीटीवी ने एयरसेल के साथ मिलकर चलाया था। इस
अभियान का उद्देश्य टाइगर के संरक्षण के मामले में जागरूकता फैलाना था। संयुक्त
अभियान के दौरानसदी के महानायक अभिताम बच्चन के साथ 12 घंटे का लाइव टेलीकास्ट कर
जागरूकता का संदेश दिया गया है। इसके अलावा इस अभियान के तहत फोटो प्रदर्शनी भी आयोजित
की गयी। इस अभियान में राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों,गैर सरकारी संगठनों के
प्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों के साथ स्थानीय लोगों को जोड़ा गया।
2-जंगल न्यूज अभियान
यह अभियान न्यूज नेशन मीडिया समूह ने संचालित किया। न्यूज नेशन
चैनल ने वन्य प्राणी संरक्षण के लिये पूरी सीरीज प्रसारित की। इस सीरीज का नाम ही
जंगल न्यूज रखा गया।
3-सोशल मीडिया अभियान
यह अभियान मध्यप्रदेश सरकार ने गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से
संचालित किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बाघों का संरक्षण था। एमपी टाईगर
फाउन्डेशन सोसायटी ने अपने वेब पेज पर कम समय में ही हजारों की संख्या में लोगों
को जोड़कर बाघ संरक्षण के लिये जागरूक किया।
इन अभियानों का स्थानीय स्तर पर असर
मीडिया समूहों और सोशल मीडिया पर संचालित किये गये इन अभियानों का व्यापक असर
देखने को मिला। अभियान में लोग हजारों की संख्या में सिर्फ जुड़े ही नहीं बल्कि
कुछ लोगों ने आर्थिक मदद की पेशकश भी की।
मीडिया अभियान की चूक
इन मीडिया अभियानो से देश-दुनिया के लोग तो जुड़े,आर्थिक मदद भी मिली। लेकिन
ये अभियान स्थानीय लोगों खासकर रिजर्व क्षेत्र के वन्य ग्रामों में रहने वाले
आदिवासियों को अपने अभियान से नहीं जोड़ पाये।
निष्कर्ष : वन्यजीवन का संरक्षण और उनका प्रबंधन निरंतर चलने वाली व्यापक प्रक्रिया है। ऐसी प्रक्रियाओं को कानून बनाकर या सिर्फ सरकारी स्तर पर पूरा नहीं किया जा सकता है। वन्यजीवन संरक्षण के लिये स्थानीय स्तर के लोगों को अभियान से जोड़ना ही अभियान की सफलता की पहली सीढ़ी कहा जा सकता है। फिलहाल मीडिया अपने अभियानों से या फिर खबरों के माध्यम से स्थानीय लोगों को जोड़ने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है। अध्ययन के दौरान सबसे बड़ी बात जो सामने आयी है कि स्थानीय स्तर पर जिलों में काम करने वाले मीडिया कर्मियों को ही पूरे नियमों की जानकारी नहीं है। जिन मीडियाकर्मियों को पूरी जानकारी है,उनकी अपनी सीमा है कि रिजर्व क्षेत्र की खबरें कितनी संख्या में प्रकाशित या प्रसारित कर सकते है। मीडियाकर्मी इन अभियानों से जुड़कर स्थानीय स्तर पर लोगों को जागरूक करना चाहते है,लेकिन उनके मीडिया समूह उनका सहयोग नहीं करते है। सबसे बड़ी समस्या मीडिया समूह के प्रबंधन की है। लगभग सभी मीडिया समूह का प्रबंधन अपने स्थानीय संवादताताओं से सनसनीखेज खबरों की डिमांड करता है। इसी प्रकार की खबरे मिलने के बाद ही उनको प्रसारित किया जाता है,यही वजह है कि स्थानीय मीडिया कर्मी भी अपने आपको असहाय महसूस करते है। कुछ मीडिया कर्मी सोशल मीडिया के जरिये जरूर अभियान संचालित कर रहे है,लेकिन इन अभियानों की सफलता इसलिये संदिग्ध मानी जाती है,क्योकि संरक्षण के लिये जो सबसे ज्यादा जिम्मेदार है,उन लोगों के पास न तो सोशल मीडिया से जुड़े उपकरण है और न ही न्यूज चैनल देखने के लिये टेलीविजन के साथ ही बिजली की व्यवस्था है। जरूरत इस बात की है कि स्थानीय स्तर पर लोगों को जागरूक करने के लिये स्थानीय लोगों को जोड़कर अभियान शुरू किया जाये। स्थानीय लोगों को उनकी ही शैली यानि परंपरागत रूप से जागरूक करने का अभियान शुरू किये जाये। हाल ही में जो मीडिया अभियान संचालित हो चुके है या संचालित किये जा रहे है। उन अभियानों का सिर्फ यह फायदा अध्ययन के दौरान देखने को मिला है कि सरकारी अधिकारी-कर्मचारी जो अपनी ड्यूटी के दौरान लापरवाही करते है,वे जरूर मीडिया के जरिये एक्सपोज हो जाते है। इसके अलावा ये अभियान स्थानीय स्तर पर लोगों को नहीं जोड़ पाये है।
संदर्भ :
1- एल. डब्लू . एडम (2005) अर्बन वाइल्ड लाइफ इकोलॉजीएंड कंज़र्वेशन : ए ब्रीफ
हिस्ट्री ऑफ़ डिसिप्लिन। अर्बन इकोसिस्टम 8, पृ.क्र.139–156|
2- सी रिचर्ड , के बस्नेट, जे पी साह (2000)ग्रासलैंड इकोलॉजी एन्ड
मैनेजमेंट इन प्रोटेक्टेड एरियाज ऑफ़ नेपाल|
3- डनबर ,ब्रान्डर ए ए 1934 द सेंट्रल प्रोविनेन्सद प्रिजर्वेशन ऑफ़
वाइल्डलाइफ इन इंडिया बी एन एच एस ,डायोसेसनप्रेस ,मद्रासइंडिया |
4- डिस्पेंसा और बुल्टे (2003) ,हैबिटैट कंज़र्वेशन ,वाइल्डलाइफ एक्सट्रैक्शन एन्ड
एग्रीकल्चर एक्सपांशन,जर्नल ऑफ़ एन्वायरमेंटल इकोनॉमिक्स एन्ड मैनेजमेंट 45, पृ.क्र.109–127|
5- डॉ योगेश कुमार गुप्ता(2017),भारत मे टेलीविजन चैनलं की
प्रभावशीलता(चयनित चैनलों) का तुलनात्मक,इंटरनेशनल जनरल आफ रिसर्च-ग्रंथालय5(7) पृ.क्र.-79-91।
6- दिलीप कुमार,रोल ऑफ कम्यूनिटी रेडियो इन रूरल डेवलमेंट,इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मल्टीडिसीप्लीनरी
एप्रोच एंड स्टडीज,जून-1(3)पृ.क्र.214-223।
7-इ. एच. बुल्टेऔर आर डी होरन (2003), हैबिटैट कंज़र्वेशन ,वाइल्डलाइफ एक्सट्रैक्शन एंड एग्रीकल्चर
एक्सपांशन 'जर्नल ऑफ़ एन्वायरमेंटल इकोनॉमिक्स एन्ड
मैनेजमेंट45, पृ.क्र.109–127|
8- जे. रॉबिंसन &एम. लेवी (1996) नई मीडिया यूज़ एन्ड द इन्फोर्मेडजर्नल ऑफ़ कम्युनिकेशन46(2),पृ.क्र.129|
9- जे. शैनन (1993) टेलीविज़न एन्ड द कल्टीवेशन ऑफ़ एन्वायरमेंटल कंसर्न : 1988-92 इन ए. हेंसन (एड) द मास मीडिया एन्ड
एन्वायरमेंटल इश्यूज181-97लीसेस्टर यूनिवर्सिटी|
10- जे चार्ल्स क्रेब्स(1972), इकोलॉजी द एक्सपेरिमेंटल एनालिसिस ऑफ़
डिस्ट्रीब्यूशन एंड एबूडेन्स।
11- क्लार्क (1973) ऑक्सीजन रिक्वायरमेंट्स फॉर रुट ग्रोथ इन थ्री स्पीशीज ऑफ़
डेजर्ट श्रब्स इकोलॉजी54पृ.क्र.1356–1362|
12- के के करंथ, आर.क्रेमर 2008 , कन्ज़र्वेशन एटीट्यूड्स ,पर्सपेक्टिव एन्ड चैलेंजेज इन इंडिया 2008 बायोलॉजिकल कन्ज़र्वेशन141, पृ.क्र.2357-2367|
13- एम के नपित 2013 एनीमल डाइवर्सिटी ऑफ़ पन्ना रिसर्च जर्नल ऑफ़ केमिकल एंड
एन्वायरमेंटल साइंसेज 1(4), पृ.क्र.56-60| (Online, Available from:http://www.aelsindia.com)
(Accessed: 18 may 2021) |
14-https://epaper.bhaskar.com/
15-https://epaper.patrika.com/
16-https://epaper.naidunia.com/epaper/
17-https://www.ibc24.in/live-tv
18-https://zeenews.india.com/hindi/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/live-tv
19-https://hindi.news18.com/livetv/news18-madhya-pradesh-chhattisgarh/
अम्बरीष त्रिपाठी,शोधार्थी
जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी,भोपाल(मप्र)
डॉ.
जे के पांडा,शोध पर्यवेक्षक(एसोसिएट प्रोफेसर)
जागरण लेक सिटी यूनिवर्सिटी, भोपाल(मप्र)
ambristripathi@jlu.edu.in, 9425162591, 9074881665
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
एक टिप्पणी भेजें