भारत में संचार के लिए स्मार्टफोन की उपयोगिता व इसका संचार पद्धतियों पर प्रभाव
- डॉ. परमवीर सिंह
बीज शब्द : मोबाईल मीडिया, स्मार्टफोन, राजनीतिक संचार, मोबाईल संचार, संचार पद्धतियां, मोबाईल पत्रकारिता, मोबाईल एप्पलीकेशन।
मूल आलेख :
पूरी दुनिया में डिजिटल तकनीक के लाभ उठाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों मे भारत में भी डिजिटल क्रांति का दौर चल रहा है। समाज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें डिजिटल तकनीक की उपयोगिता न बढ़ी हो। मनोरंजन, कृषि, व्यापार, संचार, सरकारी सेवाएं, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों को डिजिटल तकनीक ने बिलकुल बदलकर रख दिया है। भारत सरकार ने भी डिजिटल तकनीक के लाभों को भूनाने के लिए डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की है। इसी कार्यक्रम के तहत भारतनेट परियोजना के लिए भारत सरकार ने सन् 2021 में 19000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इस बजट से भारत के 2.5 लाख गांवों को तीव्र गति के इंटरनेट से जोड़ा जाना है। इस परियोजना से लगभग 60 करोड़ ग्रामीण भारतीयों को डिजिटल तकनीक का लाभ मिल पाएगा (न्युज18 हिन्दी, 2021)।
डिजिटल तकनीक को दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसारित करने में स्मार्टफोन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस डिजिटल यंत्र ने भारत की तकनीकी पृष्ठभूमि को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया है। अमेरिका द्वारा सन् 2018 में किए गए एक सर्वेक्षण में यह सामने आया था कि भारत में सिर्फ 24 प्रतिशत उपभोक्ता ही स्मार्टफोन के माध्यम से इंटरनेट का प्रयोग कर रहे थे(दैनिक भास्कर, 2018)। यह संख्या 2020 में 77 प्रतिशत हो गई। इस वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान सस्ते स्मार्टफोनों का रहा (मिश्रा, 2020)। स्मार्टफोन के माध्यम से इंटरनेट का सबसे अधिक प्रयोग करने में भारत फिनलैंड के बाद दूसरे स्थान पर है। नोकिया की मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडिया ट्रैफिक इंडेक्स (एमबिट)-2020 रिपोर्ट के अनुसार भारत के लोग स्मार्टफोन पर सबसे अधिक समय व्यतीत करते हैं। इस रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि भारत के लोग प्रतिदिन 5 घंटे स्मार्टफोन पर बिताते हैं, जो कि वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक है (भाषा, 2021) ।
समार्टफोन की उपयोगिता व उसका प्रभाव -
डिजिटल तकनीक ने सामाजिक व पारिवारिक संचार की पद्धतियों को बिलकुल बदलकर रख दिया है। इसमें भी स्मार्टफोन की अहम भूमिका है। आज हम आभासी समाज का निर्माण कर आपस में संचार कर रहे हैं। परिवार के किसी भी सदस्य से दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी कोने में संचार करना इस तकनीक के कारण बेहद आसान हो गया है। साईबर मीडिया रिसर्च द्वारा सन् 2020 में भारत में किए गए शोध में यह सामने आया कि 79 प्रतिशत भारतीय यह मानते हैं कि स्मार्टफोन के कारण उन्हे अपने परिजनों से सम्बन्ध बनाए रखने में सहायता मिलती है(एक्सप्रेस न्यूज सर्विस, 2020)। आज भारतीय विभिन्न उद्देश्यों के लिए सोशल मीडिया पर समूह बनाकर भी संचार कर रहे हैं। दोस्तों का समूह हो, किसानों, व्यापारियों, कर्मचारियों का समूह हो सभी अपनी आवश्यकताओं व रुचि के अनुसार संचार कर पा रहे हैं। भारत में सबसे सस्ते मोबाईल और इंटरनेट डाटा की उपलब्धता के कारण सोशल मीडिया को बड़ी तेजी से अपनाया गया है (बीबीसी, 2019)। सन् 2019 में भारत यूट्यूब को अपनाने में दुनिया में अग्रणी रहा (लगाटे, 2019)।
भारत में पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक संचार में भी स्मार्टफोन का बहुत उपयोग होने लगा है। पिछले लोकसभा चुनावों में फेसबुक और ट्वीटर के माध्यम से राजनीतिक संचार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सन् 2014 के लोकसभा चुनावों से 2019 तक के लोकसभा चुनावों तक आते आते सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता लगभग 8 गुणा बढ़ गए और इस संचार माध्यम द्वारा किए जाने वाले राजनीतिक संचार पर होने वाला खर्च 150 प्रतिशत बढ़ गया है। भारतीय राजनेता भी डिजिटल तकनीक की ताकत को जान चुके हैं और उन्हें पता है कि यह तकनीक उन्हे देश भर के मतदाताओं से संवाद की सुविधा प्रदान करती है। वे बिना किसी व्यवधान के अपनी बात जनता तक बहुत ही सुगमता से पहुंचा सकते हैं (महायान, 2018)।
कृषि की सूचनाओं के आदान-प्रदान में भी स्मार्टफोन ने अहम भूमिका निभाना शुरु किया है। मौसम की जानकारी प्राप्त करनी हो, खाद-बीज के प्रयोग का परामर्श, फसल बुआई-कटाई से सम्बन्धित सूचनाएं, या फसल के मूल्य की सही सूचना, किसानों को ये सूचनाएं मिलना बेहद मुश्किल होता था। स्मार्टफोन व इंटरनेट के संगम ने इन चुनौतियों से पार पाने में किसानों की काफी हद तक सहायता की है। आज किसान बहुत ही सुगम तरीके से कृषि संबंधी सूचनाओं को स्मार्टफोन के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। किसान सुविधा, इफको-किसान कृषि, आरएमएल किसान कृषि मित्र, पूसा कृषि, दामिनी एप्प, मौसम एप्प, मेघदूत व आत्मनिर्भर कृषि जैसी अनेकों एप्प भारतीय किसानों को कृषि से जुड़ी सूचनाओं को उपलब्ध करवाने के साथ-साथ कृषि में आने वाली समस्याओं के निपटारे में भी सहायता कर रही हैं (स्वाति राव, 2021)।
पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है। इस महामारी ने मानव दैनिक जीवन में अनेक बदलाव किए हैं। एक ऐसा समय भी आया जब हम सभी लॉकडाउन के कारण घरों में बंद रहने को मजबूर हुए। ऐसी परिस्थितियों में शिक्षा प्रदान करना एवं ग्रहण करना अपने आप में चुनौती बन गया। इस चुनौती को भी पार पाने में स्मार्टफोन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। जब देश के सभी विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय बंद थे, तब शिक्षाविदों ने डिजिटल माध्यमों से शिक्षा प्रदान करना प्रारम्भ किया। ज़ूम, गूगल क्लासरुम, गूगल मीट, माईक्रोसॉफ्ट टीम्ज, वेबएक्स इत्यादि ऐसी स्मार्टफोन एप्पलिकेशन व वेबसाईट हैं जिन्होने कोरोना काल में प्रसिद्धि हासिल की है जो कि ऑनलाईन शिक्षा व संवाद के लिए प्रयोग की जा रही हैं। इसके अलावा इन स्मार्टफोन एप्पलिकेशनों ने पूरी दुनिया के विद्वानों को एक मंच पर लाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। वेबएक्समीट, गोटू मीटिंग, गूगल मीट, गो टू सेमिनार इत्यादि कई ऐसी एप्पलिकेशन कोरोनाकाल में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों व सेमिनारों के आयोजन के लिए प्रयोग की गई जाने लगी हैं जिनके माध्यम से दुनियाभर के विद्वानों को एक डिजिटल मंच पर लाना बेहद आसान हो गया है।
स्वास्थ्य से संबंधित सूचनाओं को आम जनता तक पहुंचाने के लिए भी सरकार ने स्मार्टफोन का प्रयोग करना प्रारम्भ किया है। सरकार ने नेशनल हेल्थ पोर्टल इंडिया की मोबाईल एप्पलिकेशन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएं आसानी से पहुंचानी प्रारम्भ की हैं। हेल्थीयु कार्ड, एम्स-डब्ल्युएचओ- सीसी, एबी-जेएवाई जैसी अनेक मोबाईल एप्पलीकेशन हैं, जो कि सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं व सूचनाओं का लाभ उठाने के लिए शुरु की गई हैं (एम-हेल्थ, 2021)। इसके अलावा नीजि क्षेत्र द्वारा भी कई मोबाइल एप्पलीकेशन चलाई जा रही हैं, जो भारतीयों को स्वस्थ रहने से संबंधी सूचनाएं एवं सेवाएं प्रदान कर रही हैं। हेल्थीफाई मी, नेटमेडस, 1एमजी, डॉक्सएप्प इत्यादि स्वास्थ्य संबंधी मोबाइल एप्पलिकेशन भारत में लोकप्रिय हो रही हैं (नीरज अग्रवाल व बिजीत बिस्वास, 2020)।
मनोरंजन की दुनिया को भी स्मार्टफोन ने बिलकुल बदल दिया है। एक समय ऐसा था जब हमारे पास मनोरंजन के लिए टेलीविजन, रेडियो व सिनेमा अलग-अलग माध्यम होते थे, लेकिन स्मार्टफोन के कारण ये सभी एक ही यंत्र में समाहित हो गए हैं। ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्म ने सिनेमा व टेलीविजन की पूरी दुनिया ही बदल दी है। अमेजॉन प्राईम, ज़ी5, हॉटस्टार, ऑल्ट बालाजी, नेटफ्लिक्स, सोनी लिव व एमएक्स प्लेयर इत्यादि ओटीटी सेवा प्रदाताओं ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सिनेमा व टेलीविजन कार्यक्रमों को भारतीय दर्शकों तक पहुंचाना प्रारम्भ किया है(परमवीर सिंह, 2019)। भारतीय दर्शकों ने भी इस डिजिटल तकनीक को हाथों हाथ लिया है। आज बहुत-सी ऐसी फिल्में हैं, जो सिर्फ इन्हीं ओटीटी प्लेटफार्मों पर रिलीज की जा रही हैं। इसके अलावा बहुत सारे ऐसे टेलीविजन कार्यक्रम हैं जो कि सिर्फ इन सेवाओं के माध्यम से ही दर्शकों तक पहुंचाए जा रहे हैं।
इंटरनेट क्रांति ने पत्रकारिता के क्षेत्र को भी पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। स्मार्टफोन ने मोबाईल पत्रकारिता को नए आयाम दिए हैं। ज़्यादातर समाचार चैनल अब मोबाईल से रिकॉर्ड किए गए दृश्यों को ही प्रसारित कर रहे हैं। स्मार्टफोन में वीडियो और ऑडियो की रिकॉर्डिंग करने की सुविधा ने समाचार चैनलों की समाचार निर्माण की लागत को काफी कम कर दिया है। स्मार्टफोन में कैमरे की गुणवत्ता के कारण फुटेज को टेलीविजन पर प्रसारित करने में किसी प्रकार की कोई असुविधा नहीं होती है। इसके अलावा स्मार्टफोन के प्रचलन के कारण बहुत से यूट्यूब चैनल भी ऑनलाईन उपलब्ध करवाए जाने लगे हैं। पत्रकारिता में रुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति बहुत ही कम बजट के साथ अपना यूट्यूब समाचार चैनल शुरु कर सकता है। इसके लिए उसके पास सिर्फ एक स्मार्टफोन होना ही पर्याप्त है। स्मार्टफोन से समाचारों की रिकॉर्डिंग करना तो आसान है ही, साथ ही उन्हे इंटरनेट के माध्यम से भेजना भी अत्यंत सुगम है। पत्रकार किसी भी समाचार की रिकॉर्डिंग करके उसे बिना देरी किए व्हाट्सएप्प जैसी सेवाओं के माध्यम से अपने मुख्यालय में बेहद आसानी से भेज सकता है (सुनयन भट्टाचार्जी, 2020)।
स्मार्टफोन में कैमरे की उपलब्धता ने प्रिंट पत्रकारिता के लगभग सभी पहलुओं को भी बदल दिया है। आज शायद ही कोई ऐसा फोटो पत्रकार हो, जो स्मार्टफोन से फोटो ना खिंचता हो। स्मार्टफोन से फोटो लेना जहां सुगम और सरल तो है ही, साथ ही उसे प्रकाशन के लिए भेजना भी बेहद आसान है। फोटो को सम्पादित करने की सुविधा भी स्मार्टफोन में उपलब्ध होने के कारण उसे सम्पादित करके ही मुख्यालय को प्रकाशन के लिए भेज दिया जाता है। स्मार्टफोन ने समाचारों को प्रकाशन के लिए भेजने की प्रवृति को भी बदल दिया है। आज स्मार्टफोन में नोट्स जैसी एप्पलिकेशन उपलब्ध है, जिसमें पत्रकार समाचार लिख लेता है और उसे प्रकाशन हेतु भेज देता है। इसके अलावा बहुत से पत्रकार व्हाट्सएप्प के माध्यम से भी समाचारों को मुख्यालय को संप्रेषित करते हैं।
स्मार्टफोन की लोकप्रियता को देखते हुए हुए ज़्यादातर मीडिया संस्थानों ने मोबाइल संचार माध्यम के लिए विषयवस्तु उपलब्ध करवाना प्रारम्भ किया है। सभी समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं ने अपने ई समाचार-पत्र व ई पत्रिकाएं शुरु कर दी हैं, जिन्हे बिना किसी शुल्क के पढ़ा जा सकता है। आज बहुत-सी ऐसी मोबाइल एप्पलिकेशन भी उपलब्ध हैं, जो कई समाचार पत्रों के समाचार एक साथ जनता तक डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रदान कर रही हैं। इसके अलावा लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने अपनी मोबाईल एप्पलिकेशन के माध्यम से समाचारों को पाठकों तक पहुंचाना प्रारम्भ किया है। समाचार पत्रों ने अपने लक्षित वर्ग को ना सिर्फ लिखित समाचार इस माध्यम पर उपलब्ध करवाना प्रारम्भ किया है बल्कि वीडियो व ऑडियो के माध्यम से भी समाचार प्रस्तुत करने प्रारम्भ कर दिए हैं, इससे स्मार्टफोन ने डिजिटल मीडिया के माध्यम से समाचार-पत्र व समाचार चैनल का भेद काफी हद तक कम कर दिया है। आज समाचार चैनल की बेवसाईट पर लिखित समाचार भी उपलब्ध हैं और समाचार पत्र की एप्पलिकेशन पर वीडियो के साथ समाचार भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं। स्मार्टफोन और इंटरनेट की उपलब्धता के कारण भारत मोबाईल पत्रकारिता के एक नए बाजार के रूप में उभरा है जहां सभी मीडिया संस्थान इस नए संचार माध्यम को पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना रहे हैं (टिस स्टाफर, 2020)।
कुछ खतरे भी हैं -
भारत में स्मार्टफोन के बढ़ते प्रयोग ने जहां समाज के प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया है, वहीं इस डिजिटल तकनीक ने नए प्रकार के खतरों को भी पैदा किया है, जो कि समाज के विभिन्न वर्गों के लिए चुनौती बनकर उभरे हैं। आज डिजिटल तकनीक को प्रयोग करना दोधारी तलवार बन गया है। इस तकनीक के जहां अनेक लाभ हम उठा रहे हैं, वहीं आर्थिक, समाजिक व निजी जीवन में अनेक हानियों से भी दो चार होना पड़ रहा है।
मिथ्या सूचनाएं –
पिछले कुछ समय से समाज में सूचनाओं का प्रवाह बेहद तेज़ हुआ है। हम तक विभिन्न माध्यमों से पहुंचने वाली सूचनाओं को हम आगे प्रसारित करते रहते हैं ताकि अपने सामाजिक दायरे के लोगों को सूचित करते रहें। इसी प्रवृत्ति ने मिथ्या सूचनाओं के बाजार को प्रफुल्लित किया है। फेक न्यूज जैसी समस्या से निपटने के लिए प्रशासन को ठोस कदम उठाने पड़ रहे हैं। झूठी और मिथ्या सूचनाएं संवेदनशील परिस्थितियों में तो बेहद खतरनाक हो जाती हैं। सांप्रदायिक दंगों को भड़काने व सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़ने में इन सूचनाओं का बड़ा योगदान होता है। व्हाट्सएप्प व फेसबुक इस प्रकार की सूचनाओं को प्रसारित करने का सबसे बड़ा माध्यम बनता है (संजय वर्मा, 2021)। इसलिए जब भी किसी क्षेत्र में स्थिति संवेदनशील हो जाती है तो प्रशासन सबसे पहले इंटरनेट को बंद कर देता है, ताकि झूठी और मिथ्या सूचनाओं को प्रसारित होने से रोका जा सके।
साईबर बुलिंग –
ऑनलाईन माध्यमों पर अभद्र व अश्लील भाषा, चित्रों व धमकियों से किसी को परेशान करना साईबर बुलिंग कहलाता है। इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता से भारतीयों पर साईबर बुलिंग का खतरा मंडरा रहा है। इस समस्या का शिकार वे लोग अधिक होते हैं जिन्होने अभी-अभी इंटरनेट का प्रयोग करना प्रारम्भ किया है। उन्हें इंटरनेट को प्रयोग करने संबंधी सामाजिक नियम ज़्यादा पता नहीं होते हैं, जिससे वे साईबर बुलिंग का शिकार हो जाते हैं। कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई परिस्थितियों में बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन आने के कारण उन पर साईबर बुलिंग का खतरा बढ़ गया है (स्तुति मिश्रा, 2020)। साईबर बुलिंग के चलते पीड़ित में आत्मसम्मान की कमी, आत्महत्या की प्रवृत्ति, निराशा, डर, गुस्सा इत्यादि दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं (रीतु रानी, 2020)।
साईबर ठगी –
इंटरनेट और स्मार्टफोन की बढ़ती पहुंच के कारण इस तकनीक से पैसों की ठगी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। साईबर ठग विभिन्न तरीके अपनाकर चंद मिनटों में लोगों के बैंक खाते खाली कर दे रहे हैं। इन ठगों को पकड़ पाना भी पुलिस के लिए बेहद मुश्किल होता है क्योंकि वे किसी दूसरे देश में या हमारे देश के किसी दूरदराज क्षेत्र में बैठकर इस प्रकार की गतिविधियों को अंजाम देते हैं। देश में शायद ही कोई स्मार्टफोन उपयोगकर्ता है जिससे साईबर ठगी की कोशिश ना की गई हो, कुछ लोग साईबर अपराधियों के जाल में फंस जाते हैं। कई बार तो ये अपराधी फोन पर बात करते-करते ही उनके बैंक खातों को खाली कर देते हैं (आज तक, 2021)। बैंकों द्वारा बैंकिंग सेवाओं के डिजिटलीकरण के कारण साईबर ठगी का खतरा बहुत बढ़ सकता है। वित्तीय साक्षरता व डिजिटल मीडिया साक्षरता की कमी होने के कारण भी आम जन को साईबर ठगी का सामना करना पड़ता है (विजय प्रकाश श्रीवास्तव, 2021)।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं –
नोकिया द्वारा की गई एक शोध के अनुसार भारतीय स्मार्टफोन के माध्यम से सबसे अधिक वीडियो देखते हैं और यह प्रवृति आने वाले पांच सालों लगभग चार गुणा हो जाएगी(भाषा, 2021)। स्मार्टफोन की लत लगना अपने आप में एक बहुत बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। वीवो एवं साईबर मीडिया रिसर्च द्वारा किए गए शोध में यह सामने आया है कि स्मार्टफोन का अधिक प्रयोग पारिवारिक रिश्तों के लिए घातक साबित हो रहा है (एबीपी न्यूज, 2020)। सीएमआर द्वारा स्मार्टफोन्स एंड देयर इंपेक्ट ऑन ह्यूमन रिलेसनशिप शीर्षक से किए गए शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि ज़्यादातर लोग अपने स्मार्टफोन प्रयोग करने की लत को लेकर चिंतित हैं। इस शोध में यह सामने आया कि भारत में 75 प्रतिशत स्मार्टफोन उपभोक्ता किशोरावस्था से पहले ही स्मार्टफोन का इस्तेमाल शुरु कर देते हैं (सीएमआर)। छोटे बच्चों की स्मार्टफोन तक पहुंच भी कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं की ओर लेकर जा रही है। ऑनलाईन शिक्षा के लिए बच्चों को स्मार्टफोन दिया जाना लगभग अनिवार्य-सा हो गया है लेकिन इसके ज़्यादा प्रयोग के कारण उन्हे कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। नज़र का कमजोर होना, व्यवहार में बदलाव व उनकी शारिरिक गतिविधियों का कम होने जैसे दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
अश्लील विषयवस्तु के सामाजिक व मानसिक प्रभाव –
स्मार्टफोन ने हमारी पहुंच दुनियाभर की मनोरंजनात्मक व सूचनात्मक विषयवस्तु तक करवाई है, लेकिन इस विषयवस्तु में अश्लील विषयवस्तु की भी भरमार है। टेलीविजन और सिनेमा जहाँ सार्वजनिक माध्यम हैं, वहीं स्मार्टफोन पर उपलब्ध सिनेमा व टेलीविजन व्यक्तिगत माध्यम बन गए हैं। दर्शक अपने मनपसंद स्थान व समय पर मनचाही विषयवस्तु देख सकता है। इसी विशेषता का फायदा उठाकर विभिन्न वेबसाइटों ने अश्लील विषयवस्तु स्मार्टफोन के माध्यम से उपलब्ध करवाना प्रारम्भ कर दिया है, जिसके अनेकों सामाजिक व मानसिक दुष्प्रभाव हैं। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की न्यायाधीश दया चौधरी ने स्मार्टफोन और इंटरनेट पर उपलब्ध अश्लील सामग्री पर सवाल उठाते हुए उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस से पूछा कि क्या स्मार्टफोन व इंटरनेट पर उपलब्ध अश्लील सामग्री यौन अपराधों में वृद्धि का कारण बन रही है (कमल जोशी, 2018)। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायामूर्ती उमेश ललित ने भी अपने व्याख्यान में कहा है कि बाल मजदूरी और बाल तस्करी की ही भांति बाल पोर्नोग्राफी एक गंभीर समस्या है और उस पर ध्यान दिया जाना बेहद आवश्यक है (जीत कुमार, 2021)। इसी प्रकार एक मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने ऑवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्मों पर उपलब्ध अश्लील सामग्री पर चिंता व्यक्त की। अदालत ने कहा कि कुछ प्लेटफॉर्म पोर्नोग्राफी दिखा रहे हैं और उनकी स्क्रीनिंग की जानी बेहद आवश्यक है (न्युज-18 हिन्दी, 2021)।
अति सूचनाओं का बोझ –
देश में स्मार्टफोन और इंटरनेट की लत के कारण जनता अति सूचनाओं के बोझ के तले दबती जा रही है। युववर्ग तो इस समस्या से अधिक ग्रसित है। उनकी सोचने और विश्लेषण करने की क्षमता कम होती जा रही है। इसके अलावा काम में मौलिकता की भी कमी देखी जा सकती है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (एम्स) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि भारत में हर पांच में से एक बच्चा इंटरनेट की लत का शिकार है। बच्चों की स्मार्टफोन को प्रयोग करने की लत के कारण उनकी सीखने और याद रखने की क्षमता क्षीण होती जा रही है (शाशांक द्विवेदी, 2019)।
समाधान क्या हो? –
सरकार ने इन खतरों से निपटने के लिए सन् 2021 में कुछ नियमों को लागू किया है। भारत सरकार ने 25 फरवरी, 2021 को देश में डिजिटल मीडिया को नियंत्रित व नियोजित करने के लिए इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमिडिएटरी गाईडलाईंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रुल्स-2021 लागू किए हैं। इन नियमों के कारण आपत्तिजनक सामग्री को डिजिटल मीडिया के माध्यम से प्रसारित करना अवैध हो गया है और दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान किया गया है(नवीन कुमार पांडेय, 2021)। लेकिन अभी इंटरनेट और स्मार्टफोन के खतरों से निपटने के लिए सामाजिक स्तर पर भी अभियान चलाए जाने आवश्यक हैं। भारतीय जनमानस को डिजिटल मीडिया के प्रयोग के प्रति साक्षर करना बेहद आवश्यक है, जिसके लिए स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण, विद्यालयों व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम के माध्यम से डिजिटल मीडिया साक्षरता बढ़ाई जा सकती है।
निष्कर्ष :
स्मार्टफोन दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, व्यक्तिगत इत्यादि गतिविधियों में उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार और नीजि क्षेत्र ने बहुत सारी ऐसी मोबाईल एप्पलिकेशनों का निर्माण किया है जिनके माध्यम से विभिन्न सेवाओं और सूचनाओं का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा इस डिजिटल यंत्र ने मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संचार पद्धतियों को ही बदल दिया है। स्मार्टफोन तकनीक का आने वाले समय में और भी उपयोग बढ़ने के संकेत विभिन्न आंकड़ों और चलनों से मिल रहे हैं। आज इस रणनीति पर कार्य करने की आवश्यकता है कि जिससे इस डिजिटल तकनीक के लाभों को और बढ़ाया जा सके और डिजिटल मीडिया साक्षरता पर कार्य करके उसके दुष्परिणामों से बचा जा सके।
संदर्भ :
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(2021, अगस्त, 12) एग्रीकल्चर एप्पस: टॉप 10
एप्स जो खेती के लिए बहुत उत्तम हैं, जानिए, https://hindi.krishijagran.com/news/top-10-mobile-apps-that-are-great-for-farming/
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डॉ. परमवीर सिंह
सहायक आचार्य,
जनसंचार एवं मीडिया अध्ययन विभाग
पंजाब केन्द्रीय विश्विद्यालय, गांव- घुद्दा, जिला- बठिंडा (151401)
paramveerpotalia@gmail.com,
9466535900
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
बहुत बहुत धन्यवाद।
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