नवोन्मेषी शिक्षण-अधिगम में मीडिया की भूमिका
- डॉ. अरविंद कुमार
मूल आलेख :
वर्तमान समय में हम सभी के घर-परिवार में मीडिया के अनेकों ऐसे आधुनिक तरीके एवं उपकरण मौजूद हैं जिनकी सहायता से हम घर बैठे-बैठे ही देश-दुनिया की खबरें प्राप्त कर सकते हैं और अपने भावों,विचारों एवं संदेशों को एक ही बार में हजारों लोगों तक पहुंचा सकते हैं । आज संचार के साधनों में जितनी विविधता है, दैनिक जीवन में पहले कभी भी नहीं थी । मीडिया के जिन साधनों जैसे- टीवी, समाचार-पत्र, सिनेमा, रेडियो आदि को निष्क्रिय व एक तरफा माना जाता था, वर्तमान परिस्थितियों में तो यह समाज की प्रथम पाठशाला परिवार तथा शिक्षा का सक्रिय साधन स्कूल से भी आगे निकलता प्रतीत हो रहा है । मीडिया के नवीन साधन नौनिहालों, बच्चों, किशोरों तथा युवाओं के जीवन में गहराई से प्रवेश कर गए हैं, उन्हें आकर्षित कर रहे हैं । यहाँ तक कि उनकी सोच, मान्यताओं, क्षमताओं, धारणाओं तथा व्यवहार को बदलकर एक नया मीडिया प्रधान / लती समाज का निर्माण कर रहे हैं ।
मीडिया की सहायता से लोगों को अपने हुनर जैसे- डांस, गायन, वादन, लेखन, कला, कौशल, विचारों आदि को समाज के सम्मुख रखने के अवसर प्राप्त हो रहे हैं । समाज के सभी लोग आज शैक्षिक, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा, मनोरंजन एवं समाचार आदि के लिए मीडिया पर ही निर्भर है । संचार के साधन के रूप में मोबाइल आज सर्वाधिक प्रयोग किए जाने वाला साधन बन गया है । लोग अपने जीवन का सबसे अधिक समय मोबाइल पर ही गुज़ार रहे हैं । एप एनी की द स्टेट ऑफ़ मोबाइल रिपोर्ट (अमर उजाला, 2022, पृ. 18) के अनुसार ‘वर्ष 2021 में मोबाइल यूजर्स ने 365 दिनों में मोबाइल पर लगभग 43 करोड़ साल बिता दिए ।’ मीडिया के साधनों से विद्यार्थियों को डीप लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, मशीन टू मशीन संचार, प्रिंट, 3-डी मॉडल, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के द्वारा सीखने की नवीन अवसर प्राप्त हो रहे हैं । मीडिया के अनेकों साधन एवं प्लेटफॉर्म्स ने शिक्षण-अधिगम को नवीन दिशा प्रदान की है । मीडिया के ऑनलाइन साधन जो कि शिक्षा का भविष्य माने जाते थे आज वह अनिवार्यता बन गए हैं । जब से समाज कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है तब से तो शिक्षण-अधिगम का दारोमदार मीडिया के ऊपर ही आ गया है । सिंह (2020) के अनुसार-‘कोरोना के दौर में शिक्षण गतिविधियों पर एक तरह से विराम लग गया है, लेकिन इसके बावजूद भी ऑनलाइन शिक्षण ने नए रास्ते खोलें हैं ।' इस विपरीत समय में यदि इन माध्यमों ने सहारा न दिया होता तो निश्चित रूप से करोड़ो विद्यार्थी शिक्षा से वंचित हो जाते हैं, उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती, उनका उपलब्धि स्तर भी प्रभावित होता । इस संदर्भ में कुमार (2020) ने शोध कर अपने अध्ययन में पाया कि- ‘74.62 प्रतिशत विद्यार्थियों तथा 74.01 प्रतिशत शिक्षकों ने माना कि जो विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करने से वंचित रह गए हैं उनका उपलब्धि स्तर प्रभावित होगा ।’
मीडिया के विभिन्न साधनों यथा-श्रव्य, दृश्य, तथा श्रव्य-दृश्य (Audio-Visual Aids) का प्रयोग शिक्षण में लम्बे समय से किया जाता रहा है । मीडिया के साधन जटिल संप्रत्ययों को भी आसानी से बोधगम्य एवं अनुपयोगी बना सकते हैं जिसे कि कोई भी शिक्षण विधि या शिक्षण तकनीक नहीं बना सकती । इसीलिए कहा भी जाता है कि जिस संप्रत्यय को समझाने में सभी शिक्षण विधि / प्रविधि फेल हो जाती है वहां शिक्षण-अधिगम सामग्री या कहें कि मीडिया के विभिन्न साधन ही काम में आते हैं ।
शिक्षण-अधिगम में उपयोगी मीडिया के साधन :
शिक्षा के साधन के रूप में मुख्यतः प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा डिजिटल मीडिया का प्रयोग किया जाता है –
प्रिंट मीडिया (Print Media) - आम लोगों तक पहुँच के हिसाब से जनसंचार का यह सबसे पुराना, सस्ता और विश्वसनीय माध्यम है । इसमें संवाद का माध्यम लिखित या दृश्यात्मक होता है । विद्यार्थी एवं शिक्षक अपने नवाचारी विचारों को जर्नल, कॉलेज मैगजीन, पुस्तकों एवं समाचार पत्रों में प्रकाशित कराकर जनसमूह को जागरूक कर सकते हैं । सामाजिक एवं शैक्षिक मुद्दों आदि पर आधारित विभिन्न सूचनाएं एवं लेख (जैसे- ‘ऑनलाइन क्लास कैसे जब 27 प्रतिशत बच्चों के पास फोन और लैपटॉप नहीं, ’‘निजी स्कूलों से गायब बच्चों का भविष्य, ‘हिस्सेदारी में पिछड़ती महिलाएं,’ ‘शिक्षा पद्धति के पूर्वाग्रह, शिक्षा में सुधार का रास्ता आदि ) विभिन्न समाचार पत्रों (अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान एवं नवभारत टाइम्स आदि) में प्रकाशित होते रहते हैं । इसी प्रकार जर्नल्स- भारतीय आधुनिक शिक्षा, प्राथमिक शिक्षक, अपनी माटी, भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका, अन्वेषिका तथा टीचर सपोर्ट आदि के द्वारा भी वृहद स्तर पर लोगों को नवाचारी शोध एवं विचारों (जैसे- कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन शिक्षा के प्रति विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं अभिभावकों का दृष्टिकोण, ’‘शिक्षण-अधिगम में मीडिया की भूमिका, ’‘मानव जीवन में योग का महत्व, ’‘शिक्षा में खेल एवं गतिविधियों का महत्त्व’ आदि) से परिचित कराया जा सकता है।
शिक्षण-अधिगम को प्रभावशाली बनाने हेतु शिक्षक गण प्रिंट मीडिया के विभिन्न रूपों- पुस्तक, पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्र, बुलेटिन बोर्ड, पोस्टर, ग्लोब, रेखाचित्र, डायग्राम, मानचित्र, वास्तविक सामग्री, मॉडल, पोस्टर, श्यामपट्ट एवं चित्र आदि का प्रयोग शिक्षण में करते रहे हैं । जैसे- यदि कक्षा में विज्ञापन (Advertising), ‘यातायात के साधन,’ तथा ‘पौधे के भाग,’ आदि टॉपिक पढ़ाने हों तो समाचार-पत्रों की कटिंग्स तथा प्रिंटेड सामग्री शिक्षण-अधिगम में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है । इसकी सहायता से शिक्षक एवं छात्र शिक्षण-अधिगम सामग्री का निर्माण कर सकते हैं, टेक्स्ट पढ़कर परावर्ती कौशल प्राप्त कर सकते हैं जैसा कि बी.एड. पाठ्यक्रम में व्यावसायिक दक्षता बढ़ाने (EPC-Enhancing
Professional Capacities) हेतु ‘रीडिंग एंड रेफ्लेक्टिंग ऑन टेक्स्ट’ कौशल आधारित विषय में होता है । मीडिया का विद्यार्थी के मस्तिष्क पर गहरा तथा विश्लेषणात्मक प्रभाव पड़ता है जिससे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया आसान हो जाती है । विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति तथा धारण शक्ति बढ़ती है । ख्याति प्राप्त शिक्षाविदों, काउंसलर्स का साक्षात्कार, नवीन शिक्षण विधियों, तकनीकों, सामान्य ज्ञान, रोजगार, तथा शैक्षिक क्रियाकलापों का समावेशन (Coverage) लिखित रूप में प्रिंट मीडिया ही करती है । सुबह की चाय के साथ समाचार-पत्र तथा यात्रा आदि के साथ पत्र-पत्रिकाओं को छूकर पढ़ने में जो आनंद की अनुभूति होती है वह और किसी भी मीडिया के साधन में संभव नहीं है ।
इलेक्ट्रॉनिक / ब्रॉड कास्टिंग मीडिया (Electronic / Broadcasting) - इसमें समाचार, सूचनाओं तथा मनोरंजनात्मक सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाया जाता है । टीवी, रेडियो तथा फिल्म आदि की सहायता से विद्यार्थियों को जागरूक तथा उत्प्रेरित किया जाता है । प्रख्यात शिक्षाविदों की शैक्षिक मुद्दों पर राय-विश्लेषण, चर्चा-परिचर्चा, समीक्षा, साक्षात्कार, घटना, व्यक्ति / समूह विशेष का विश्लेषण तथा पाठ्यवस्तु का मनोरंजन के साथ प्रस्तुतीकरण टीवी / रेडियो द्वारा किया जाता है । इन कार्यक्रमों द्वारा शिक्षण-अधिगम को एक नई दिशा प्रदान की जा सकती है । इन साधनों पर प्रसारित शिक्षण-अधिगम सामग्री उच्चस्तरीय एवं विश्वसनीय होती है । आज झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के यहाँ भी डीटीएच तथा टीवी / रेडियो उपलब्ध हैं । इन साधनों के द्वारा अशिक्षित लोगों को भी सामाजिक तथा शैक्षिक मुद्दों के प्रति जागरूक किया जा सकता है । इधर पिछले कुछ वर्षों से ज्वलंत सामाजिक और शैक्षिक मुद्दों पर आधारित फिल्म यथा- तारे जमींपर, 3 ईडियट्स, आरक्षण, पाठशाला, टॉयलेट- एक प्रेमकथा, हिंदी मीडियम, इंग्लिश मीडियम, बाय चीट इंडिया, मैरी कॉम तथा आई एम कलाम जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ है, जिन्होंने समाज व अभिभावकों को यह सोचने को मजबूर किया है कि बच्चों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए ? उनकी शिक्षा व्यवस्था आखिर कैसी हो ?, समाज का आधुनिकीकरण कैसे किया जाए ?,
विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर, चाल-चलन, आदत-व्यवहार सभी पर टीवी / रेडियो तथा सिनेमा का प्रभाव देखने को मिल रहा है । अनेकों शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण रेडियो के ज्ञानवाणी चैनल पर यथा- मीना की दुनिया, आओ अंग्रेजी सीखें, शिक्षा वाणी, स्वच्छता जागरूकता, जनपहल तथा टीवी पर स्वयंप्रभा (34 चैनल), हिस्ट्री, डिस्कवरी, साइंस आदि कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020, पृ. 97) में भी ‘रेडियो, टीवी और सामुदायिक रेडियो द्वारा चौबीस घंटे सातों दिन शैक्षिक कार्यक्रम उपलब्ध कराने की बात की गई है ।’ कोविड-19 महामारी के दौरान रेडियो तथा टीवी पर कक्षा 1 से 12 तक के विद्यार्थियों हेतु एनसीईआरटी आधारित पाठ्यक्रम का प्रसारण किया गया ।
डिजिटल मीडिया (Digital media) - इस मीडिया में संचार के साधन कंप्यूटर, स्मार्टफोन, टेबलेट, लैपटॉप, एलसीडी प्रोजेक्टर, स्मार्ट/इंटरैक्टिव बोर्ड, विभिन्न एप्स एवं सॉफ्टवेयर आदि होते हैं । इसके तहत कंप्यूटर द्वारा किसी भी प्रकार की सूचना, चित्र, चलचित्र आदि को डिजिट के रूप में बदला जा सकता है । यह साधन विद्यार्थी और शिक्षक के मध्य अंतःक्रिया को सजीव (Live) रूप में भी प्रसारित कर सकते हैं । पलक झपकते ही सूचना को किसी भी समय कहीं भी बैठे विद्यार्थी तक भेज सकते हैं, स्टोर तथा रिकॉर्ड कर सकते हैं । डिजिटल मीडिया विद्यार्थियों को सीखने के बहुआयामी अवसर प्रदान करती है । श्रीवास्तव (2020) अपने लेख में कहते हैं कि-‘डिजिटल दुनिया बच्चों के लिए एक सपनों की दुनिया की तरह है जहाँ उनके लिए कुछ खोजने एवं अनुभव करने हेतु बहुत कुछ है जिन इच्छाओं / आकांक्षाओं को बच्चे अपने वास्तविक जीवन में पूरा नहीं कर पाते हैं उन्हें वह विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से पूर्ण कर लेते हैं जैसे- डिजिटल गेम में सैनिक आदि पात्रों की भूमिका का चयन करना ।’ एलन (2014) भी इस संदर्भ में कहते हैं कि- ‘डिजिटल मीडिया बच्चों में सकारात्मक प्रेरणा का बहुत ही सुगम स्रोत है ।’ डिजिटल शिक्षा प्रदान करने में यूट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, स्काइप, पॉडकास्ट (ऑडियो-वीडियो की डिजिटल रिकॉर्डिंग जिसे क्रिएट या डाउनलोड किया जा सकता है), गूगल मीट, माइक्रोसॉफ्ट टीम, गूगल क्लास, ई-बुक, ई-जर्नल्स, वर्चुअल क्लास, ब्लॉग, वेबसाइट, टि्वटर एवं ईमेल जैसे मीडिया के अनेकों साधन एवं प्लेटफॉर्म्स महती भूमिका निभा रहे हैं । शिक्षण-अधिगम निर्बाध रूप से संचालित करने हेतु भारत सरकार ने विभिन्न डिजिटल मीडिया के साधन यथा- दीक्षा पोर्टल ,रीड अलोंग एप, संपर्क बैठक, ई-पाठशाला, निष्ठा प्रोग्राम, स्वयं, राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी, स्पोकन ट्यूटोरियल, वर्चुअल लैब- क्लास, मोबाइल एप्लीकेशन तथा शिक्षा के लिए निःशुल्क और ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर आदि के माध्यम से विद्यार्थियों, अभिभावकों एवं शिक्षकों तक पहुंच बनाने का प्रयास किया है । कोविड काल में डिजिटल मीडिया के द्वारा ही शिक्षा विद्यार्थियों के द्वार पर पहुँच रही है । कुमार (2021) ने भी अपने शोध में ‘कोविड-19 से स्थिति सामान्य होने तक डिजिटल माध्यम से शिक्षण-अधिगम को चालू रखना पाया था ।’ सोशल मीडिया पर शिक्षाविद एवं विद्यार्थी एनईपी- 2020, शिक्षा क्यों जरूरी, वर्कशॉप, ओरियंटेशन, रिफ्रेशर, फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम, कोविड जागरूकता वेबिनार्स, विभिन्न शिक्षण विषयों को सीखने की आसान ट्रिक, शिक्षण-सहायक सामग्री निर्माण जैसे कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण कर तथा ऑडियो-वीडियो अपलोड कर अपनी प्रतिभा का परिचय दे रहें हैं ।
अतः हम कह सकते कि समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिकाओं, टीवी तथा रेडियो आदि में अपनी विचारों के प्रसारित करने हेतु जहाँ कि जुगाड़, अनुनय-विनय करना पड़ता है, धनराशि देनी पड़ सकती है । वहीं डिजिटल मीडिया इन सबसे परे आपकी प्रतिभा का पूरा मूल्य चुकता करती है । समाज का कोई भी व्यक्ति शिक्षण-अधिगम सामग्री अपलोड कर सकता है । हालांकि डिजिटल मीडिया पर सर्फिंग में समय बर्बादी, अविश्वसनीयतथा स्तरहीन शिक्षण-अधिगम सामग्री आदि की भरमार रहती है । विद्यार्थी मस्तिष्क पर ज़ोर दिए बिना विभिन्न वेबसाइट / ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से पाठ्य-सामग्री को हु-बहु (Cut
& Pest) ही कक्षा में लेकर आ रहे है । वह स्कूल, परिवार, मित्र-मंडली, खेल तथा समाज आदि के कार्यों, गतिविधियों में कम रूचि ले रहे हैं । इन साधनों तक ग़रीबों की पहुँच नहीं हो पाती है, यह साधन सभी को सीखने के समान अवसर प्रदान नहीं करते हैं, ऐसा कोविड महामारी के समय देखने को भी मिला ।
नवोन्मेषी शिक्षण-अधिगम तकनीक –
आभासीय क्षेत्र भ्रमण /वर्चुअल फील्ड ट्रिप (Virtual
Field Trip/Online Tour)- यह शिक्षण-अधिगम का एक ऐसा तरीका है जिसमें विद्यार्थी कक्षा को बिना छोड़े ही इंटरनेट, मोबाइल ,लैपटॉप एवं टेबलेट आदि की मदद से देश-दुनिया के किसी भी शैक्षिक संस्थान / स्थान, आदि का इंटरैक्टिव भ्रमण कर सकता है । यह सीखने का छात्र केंद्रित तरीका है जैसे-विद्यार्थी यदि भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली, क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान अजमेर, शिलोंग तथा ताज़महल,राष्ट्रीय उद्यान, चिड़ियाघर, मंगल ग्रह की यात्रा आदि का ई-भ्रमण करना चाहता है तो वह इन संस्थाओं / स्थानों से संबंधित वेबसाइट से चित्र, एनिमेशन, क्लिप वीडियो, ऑडियो- वीडियो, विभिन्न विभागों के क्रियाकलापों तथा गतिविधियों को इंटरनेट की सहायता से डाउनलोड करके या फिर यदि संभव हो तो वहाँ के जवाबदेह कार्मिकों से ऑडियो-वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करके वर्चुअल भ्रमण कर सकता है, रिपोर्ट तैयार कर सकता है । वर्चुअल फील्ड ट्रिप वेबसाइट एवं फ्री एप (गूगल अर्थ वीआर, गूगल मैप्स, नियर पोड, स्टोरी कॉर्प्स, नोवा आदि) की सहायता से विद्यार्थी यह कार्य आसानी से कर सकते हैं । इसमें विद्यार्थियों को बिल्कुल वास्तविक भ्रमण की तरह ही अनुभव तथा आनंद की प्राप्ति होती है । भविष्य में जब कभी भी वहाँ जाता है तो उस जगह से जुड़ाव महसूस करता है और वहाँ उसे किसी भी समस्या या चुनौती का सामना भी नहीं करना पड़ता है I इससे उनमें खोज की प्रवृत्ति का विकास होता है तथा नवीन वातावरण में सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं । दिव्यांग व्यक्तियों, छोटे बच्चों, महिलाओं तथा कोविड-19 जैसी महामारी आदि में यह तकनीक बहुत ही सुरक्षित, समय व धन बचाऊ तथा सक्रिय ज्ञान/अनुभव प्राप्ति का साधन है ।
क्यू आर कोड तकनीक (Quick Response Code Technique) - इसमें पाठ्य-सामग्री या उत्पाद से जुड़ी जानकारी एक श्वेत एवं श्याम (Black
& White) वर्गाकार आकृति के अंदर छुपी रहती है, जिसे मोबाइल कैमरा, स्कैन एप/बेवसाइट से स्केन करके ज्ञात तथा डाउनलोड किया जा सकता है पाठ्यवस्तु को स्कैन करके क्यूआर कोड क्रिएट करके किसी भी विद्यार्थी को किसी भी समय कहीं भी डिजिटल रूप में भेजा जा सकता है । सीखने के इस नवीन, रोचक तरीके में विद्यार्थियों को टेक्स्ट, ऑडियो-वीडियो, लिंक आदि एक ही प्लेटफार्म पर मिल जाते हैं । एक बार इन्हें डाउनलोड करके ऑफलाइन भी पढ़ा जा सकता है । यह तकनीक यशपाल समिति (1992-93) के ‘शिक्षा बिना बोझ’ के सिद्धांत पर भी खरी उतरती है । पूर्णतया पेपरलेस है तथा वेबसाइट के फालतू सर्फिंग से भी बचाती है । समान पाठ्यपुस्तक तथा समान पाठ्यक्रम को बढ़ावा देती है, कक्षा में यदि एक भी विद्यार्थी या शिक्षक के पास पुस्तक है तो अन्य विद्यार्थी भी किताब के क्यूआर कोड को स्कैन करके व्हाट्सएप, ईमेल आदि से शेयर कर सकते हैं, पढ़ सकते हैं । यात्रा के समय भी पुस्तक पढ़ने का आनंद लिया जा सकता है । चिंतन, मनन की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
ब्लॉग्स (Blogs) - यह एक तरह से ऑनलाइन डायरी है । पहले लोग अपने पास व्यक्तिगत रूप से एक डायरी रखते थे जिस पर रोजमर्रा के अनुभव व क्रियाकलाप लिखते थे । इसी का डिजिटल रूप ब्लॉग हो गया है । इसके लिए मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप, कंप्यूटर की जरूरत होती है । फ्री ब्लोगिंग प्लेटफॉर्म्स (जैसे- Wix, Weebly, Substract, Blogger आदि) पर अपना एकाउंट (एक तरह से अपनी वेबसाइट, चैनल) बनाकर विद्यार्थी किसी भी शैक्षिक टॉपिक कोविड-19 में शिक्षा, जीवन में योग का महत्त्व तथा शिक्षण कौशल आदि पर अपने विचारों को टेक्स्ट, ग्राफिक्स, वीडियो, इमेज, अन्य ब्लॉग, वेबसाइट आदि के लिंक अपने साथियों एवं आम लोगों तक फ्री में शेयर कर सकते हैं । ब्लॉग्स में लिखी हुई सामग्री में समयानुसार बदलाव भी किया जा सकता है । कहीं भी बैठे हुए शिक्षक या विद्यार्थी समूह बनाकर ट्यूटोरियल की भांति नोट्स, विचार आदि को आपस में शेयर कर सकते हैं । अपने नवाचारी विचारों से समाज के अन्य लोगों परिचित करा सकते हैं । इससे विद्यार्थियों में खोज, शोध, आत्मविश्वास, सृजनात्मकता तथा परावर्ती बोध क्षमता का विकास होता है । सहगामी अधिगम को बढ़ावा मिलता है । साथीगण या आम लोग विद्यार्थियों के लेखन/वीडियो के प्रति कमेंट कर उनको प्रेरित कर सकते है ।
समूह / दल शिक्षण (Team Teaching) - इस शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में शिक्षकों को एक मंच (Forum) प्रदान किया जाता है । जिसमें अपने-अपने विषय के विशेषज्ञों को रेडियोवार्ता, टीवी, सोशल मीडिया- फेसबुक, यूट्यूब लाइव या फिर वर्चुअल रूप से किसी विषय/उप विषय (जैसे- शिक्षण कौशल के अंतर्गत प्रस्तावना, व्याख्या, पुनर्बलन, उद्दीपन-परिवर्तन कौशल आदि) पर प्रदर्शन/विचार व्यक्त करने का अवसर प्राप्त होता है । यह विशेषज्ञ देश-दुनिया के किसी भी शैक्षिक संस्थान के हो सकते हैं । विद्यार्थी इन विशेषज्ञों से सीधे संवाद कर सकते हैं जिससे उन्हें विशिष्टिकृत अनुभवों की प्राप्ति होती है, अपसारी व अभिसारी चिंतन (Divergent
& Convergent Thinking) का विकास होता है । शिक्षण का यह तरीका शिक्षकों की कमी को भी पूरा करता है क्योंकि शिक्षण-अधिगम के इस तरीके में लाइव प्रसारण भी किया जा सकता है, इसलिए संस्था विशेष के विद्यार्थियों के साथ साथ जनसमूह को भी शिक्षित किया जा सकता है, परामर्श दिया जा सकता है । इस प्रसारण को रिकॉर्ड करके पुनः अभ्यास के रूप में प्रयोग जा सकता है । पाठ्य-वस्तु विद्यार्थियों को शेयर भी की सकती है ।
ब्रेनस्टॉर्मिंग / त्वरित उत्तर तकनीक (Brain Storming / Quick
Response Technique) - विचार मंथन शिक्षण- अधिगम के इस तरीके में विद्यार्थी कक्षा में एलसीडी प्रोजेक्टर, इंटरैक्टिव बोर्ड तथा डिजिटल साधन व प्लेटफॉर्म से जुड़कर दिए गए किसी भी शैक्षिक विषय (जैसे शिक्षक-शिक्षा पर निजीकरण का प्रभाव, डिजिटल मीडिया का शिक्षा पर प्रभाव आदि ) पर कुछ समय सोचते हैं, चर्चा-परिचर्चा करते हैं तत्पश्चात बारी-बारी से सभी विद्यार्थी अपने नवाचारी विचारों को कक्षा /आभासीय कक्षा में प्रस्तुत करते हैं । मस्तिष्क में उत्पन्न विचारों को पेपर, ब्लैक बोर्ड, चैट बॉक्स, नोट पैड, गूगल मीट का ब्लैक बोर्ड, मैंटीमीटर व फ्लिकर जैसे फ्री इंटरैक्टिव प्रेजेंटेशन टूल की सहायता से लिखकर सभी विद्यार्थियों के साथ साझा किया जाता है । जो कि सभी प्रतिभागियों को लाइव दिखता भी है । गलत-सही, आलोचना-समालोचना की चिंता किए बिना टॉपिक से संबंधित जो भी विचार विद्यार्थी के मस्तिष्क में आते हैं उन्हें बोलने हेतु उसको प्रेरित किया जाता है । शिक्षक का कार्य निर्देशक का होता है वह विद्यार्थियों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं को वर्गीकृत / समूहबद्ध कर तथा चर्चा-परिचर्चा करता है, जैसे- विद्यार्थियों द्वारा बताए गए निजीकरण से संबंधित विचारों को पक्ष एवं विपक्ष में बांटना आदि । यह तकनीक समस्या समाधान के नवोन्मेषी (Innovative) तरीके सुझाती है यह एक स्वप्रेरणात्मक, मनोरंजक, सृजनात्मक, विषय को गहराई से सोचने-समझने, पूर्व ज्ञान को परखने तथा नवीन ज्ञान से जोड़ने में सहायक तकनीक है । विद्यार्थी में विद्यमान ज्ञान का मूल्यांकन कर उपचारात्मक शिक्षण किया जा सकता है । मस्तिष्क में गलत सही अर्थात असफलता का डर निकाला जा सकता है । वह एक दूसरे के विचारों का सम्मान तथा समूह में कार्य करना सीखते हैं। इससे उनमे बहुमुखी एवं अपसारी प्रदर्शन (Multidimensional
& Divergent Exposure) का विकास होता है ।
प्रोजेक्ट आधारित अधिगम / पूछताछ केंद्रित अधिगम (PBL- Project Based Learning) - यह शिक्षण-अधिगम का छात्र केंद्रित तरीका है । इसमें विद्यार्थी अकेले या समूह में कार्य करके वास्तविक दुनिया (Real World) की जटिल चुनौतीपूर्ण समस्या/ प्रश्न (Driving Problem/ Question) का नवाचारी समाधान खोजने का प्रयास करते हैं जैसे- जल शुद्धीकरण प्रणाली, स्लम एरिया में शिक्षा, आपके क्षेत्र में जैव विविधता, एवं मीडिया की मिथ्या सूचनाओं (fake Information) का विश्लेषण आदि । प्रोजेक्ट हेतु सूचनाओं का संग्रह प्रत्यक्ष बातचीत करके या गूगल फॉर्म के द्वारा तथा उनका विश्लेषण स्प्रेडशीट के द्वारा कर सकते हैं । ऑडियो-वीडियो तथा इमेजेज को डाउनलोड करने के लिए पिक्साबे व फ्लिकर (Pixabay
& Flickr) जैसी कॉपीराइट फ्री वेबसाइटस का प्रयोग किया जा सकता है । इस प्रकार के प्रोजेक्ट में कुछ दिन, महीने, सेमेस्टर, वर्ष या थोड़ा लम्बा समय भी लग सकता हैं । यह आजकल के मात्र यूनिट के अंत में सत्रीय कार्य के रूप में दिए जाने वाले प्रोजेक्ट की तरह नहीं हैं जिसे मुख्यतः अभिभावक या फिर कैफे वाले कट-पेस्ट करके पूर्ण करते हैं । विद्यार्थी किसी समस्या पर लंबे समय तक कार्य करने के कारण उसमें रम जाते हैं, अन्वेषक हो जाते हैं । इस प्रकार विद्यार्थी वास्तविक चुनौतियों का सक्रिय रूप से सामना करके अधिक गहन ज्ञान प्राप्त करते हैं जिसे वह जीवन भर कभी नहीं भूलते हैं । उनमें आत्मविश्वास, उच्च स्तरीय चिंतन, संप्रेषण, नेतृत्व, सृजनात्मक कौशल, उत्तरदायित्व की भावना, तार्किक क्षमता तथा सहगामी अधिगम क्षमता जैसे गुणों का विकास होता है । छोटे बच्चों को सरल से प्रोजेक्ट देकर प्रेरित किया जा सकता है, जैसे- समाचार पत्र / ई-समाचार पत्र की किसी भी विषय की पांच ख़बरों को काटकर उससे संबंधित तथ्यों (Facts) को हरे रंग से तथा राय (Opinion) को पीले रंग से चिन्हांकित (Highlight) करना ।
विद्यार्थियों को विभिन्न विषय जैसे-नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा-दीक्षा, आपके जनपद में प्रदूषण समस्या आदि की ऑडियो, वीडियो दिखाकर / सुनाकर उससे संबंधित अनुत्तरित प्रश्नों (Unanswered
Question) के समाधान शिक्षक या वेबसाइट, यूट्यूब आदि की सहायता से खोजने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है तथा इस परिणाम को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से अन्यत्र शेयर भी किया जा सकता है ।
मिश्रित / संकर अधिगम (Blended / Hybrid
Learning) - शिक्षण-अधिगम का यह तरीका मात्र सूचनात्मक ही नहीं बल्कि भावात्मक भी है । इसमें परंपरागत तथा डिजिटल शिक्षा का संयुक्त रूप समाहित रहता है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020,पृ. 98) में भी ‘सीखने के मिश्रित मॉडल अपनाने की बात की गई है ।’ यह विद्यार्थी केंद्रित तकनीक है । इसमें विद्यार्थी पाठ्य-वस्तु (जैसे- यातायात के साधन, गति आदि) को शिक्षक से आमने-सामने के रूप में (Face
to Face Mode) तत्पश्चात उसी या शेष बची पाठ्य-वस्तु को इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप, टेबलेट आदि के माध्यम से पढ़ता है । इस अधिगम में शिक्षक टॉपिक पढ़ाने से पूर्व या बाद में भी डिजिटल रूप में उसी टॉपिक का ई-कंटेंट, ग्राफिक्स, लिंक एवं ऑडियो-वीडियो आदि विद्यार्थी को शेयर कर सकता है । कक्षा में अगले दिन चर्चा कर सकता है, जैसे- पहले भी शिक्षक, विद्यार्थियों से कहते थे कल को यह टॉपिक पढ़कर आना है और अगले दिन छात्र-शिक्षक के मध्य एक स्वस्थ अंतःक्रिया देखने को मिलती थी । विपरीत परिस्थितियों में सैद्धांतिक कक्षा को ऑनलाइन मोड में तथा प्रयोगात्मक कक्षा को ऑफलाइन मोड में भी लिया जा सकता है । इस प्रकार से पढ़ने से विद्यार्थियों को अभ्यास तथा शंका समाधान के पर्याप्त अवसर प्राप्त होते हैं । विद्यार्थी तथा शिक्षक के संबंध प्रगाढ़ होते हैं क्योंकि ऑनलाइन पढ़ने के बाद वह शिक्षक से शंका समाधान हेतु सीधे अंतःक्रिया करते हैं । शिक्षक भी पूरी तैयारी के साथ कक्षा में आते हैं । कक्षा में विद्यार्थी की अलग पहचान बनती है, उन्हें ‘करके सीखने’ के अवसर प्राप्त होते हैं । स्मरण एवं धारण शक्ति बढ़ती है । स्व-अधिगम को बढ़ावा मिलता है । वह अपने साथियों के साथ कक्षा में तथा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के द्वारा अंतः क्रिया कर सकते हैं ।
रचनात्मक अधिगम (Constructivist Learning) - यह अधिगम इस मान्यता पर आधारित है कि बच्चे / लोग सीखते कैसे हैं (How People Learn) ?, बच्चा घर पर चीजों, वस्तुओं के साथ खेलता है, प्रयोग करता है, जोड़-तोड़ करता है, अवलोकन करता है, अनुभवों को अपनी कसौटी पर कसकर देखता है और आगे चलकर इन्हीं क्रियाकलापों के साथ वह कक्षा में प्रवेश करता है । इसीलिए रचनात्मकता को बढ़ाने के लिए बच्चे के घरेलू (बाहरी) परिवेश को कक्षा में जोड़कर पढ़ाना नितांत आवश्यक है । राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 में भी बच्चे की कक्षा को बाहरी परिवेश से जोड़ने की मंशा व्यक्त की गई है । सही मायने में बच्चा ही ज्ञान का वास्तविक सृजक होता है, वह पूर्व में प्राप्त प्रत्यक्ष अनुभवों / घटनाओं को नई परिस्थितियों में कसकर देखता है, परीक्षण करता है तथा बाहरी परिवेश से जोड़कर एक नए ज्ञान का सृजन करता है । वैसे भी सीखना हमेशा स्थानीय से वैश्विक (Local to Global) होता है । कोई भी बच्चा चाहे वह कम बुद्धि वाला ही क्यों न प्रतीत होता हो उसके पास भी कक्षा में बांटने के लिए कुछ न कुछ अनुभव जरूर होते हैं । बच्चे बहुत सारे खेल, गतिविधियां, अनुभव, कहानी, कविता, फिल्म्स, ऑनलाइन गेम्स, एनिमेशन, गाने एवं कार्टूंस आदि को घर पर तथा विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से सीखते एवं खेलते ही रहते हैं, एक तरह से यह उनके जीवन का नियमित हिस्सा हैं । यही गतिविधियाँ / क्रियाकलाप भविष्य में रचनात्मकता के स्तम्भ (Pillar) सिद्ध होते हैं । इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि वास्तविक एवं डिजिटल माध्यम से प्राप्त अनुभवों को कक्षा में जोड़कर पढ़ाया जाए ताकि अधिगम को सरल, सुगम, बोधगम्य एवं रचनात्मक बनाया जा सके ।
कक्षा में फ़्लैशकार्ड, चित्र, प्रयोग, चर्चा-परिचर्चा, अधूरी कहानी / कविता पूर्ति, ऑनलाइन गतिविधि, ट्रिकी तरीका, रिमिक्स, इंटरैक्टिव बोर्ड, खेल, सहगामी व अनुभवात्मक क्रिया-कलाप (Hands-On-Activities) कराकर, खुले प्रश्न (Open
Ended Questions) पूछकर तथा ऑडियो- वीडियो आदि सुनाकर / दिखाकर, विद्यार्थियों की सहभागिता, परावर्ती बोध क्षमता एवं कल्पनाशीलता को बढ़ाया जा सकता है । टॉपिक / विषय से संबंधित वेबसाइट तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स आदि की सहायता से अंतःक्रिया कर विद्यार्थियों में रचनात्मकता को प्रोत्साहित किया जा सकता है। विद्यार्थी अपने सृजनात्मक कार्यों को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, प्रदर्शनी, समाचार-पत्रों आदि में प्रकाशित करा सकते है तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे-ब्लॉग, वेबसाइट, ऑडियो / पॉडकास्ट (एंकर, पोडबीन, ऑडासिटी आदि फ्री एप) तथा वीडियो (यूट्यूब, प्रजेंटेशन ट्यूब आदि) पर बनाकर अपलोड भी कर सकते हैं तथा इन प्लेटफॉर्म्स से इन्हें बनाना भी सीख सकते हैं । यह अधिगम तकनीक सभी उम्र के विद्याथियों के लिए उपयोगी है । इससे उनमें उच्च स्तरीय चिंतन कौशल (HOTS- Higher Order Thinking Skills), रणनीतिक सूझ-बूझ, विश्लेषण, निर्णय क्षमता तथा सम्प्रेषण कौशल का विकास होता है ।
परिणामतः कहा जा सकता है मीडिया हम सभी को सीखने के नवीन, अंतःक्रियात्मक तथा बहुआयामी अवसर प्रदान करती है, बच्चों के जीवन में तो यह मजबूत विकल्प के रूप में उभर कर सामने आई है । इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि हम समय की चाल को समझें, शिक्षण-अधिगमकी प्रकिया में मीडिया के साधनों / प्लेटफॉर्म्स को एकीकृत करें । राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020, पृ. 95) नीति में भी ‘शिक्षा के सभी स्तरों पर तकनीकी / डिजिटल शिक्षा के एकीकरण की बात कही गई है ।’
संदर्भ :
अनिल कुमार तेवतिया : ‘दिल्ली के माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों और शिक्षकों पर लॉकडाउन के प्रभाव का अध्ययन’, भारतीय आधुनिक शिक्षा (अंक-1), जुलाई, 2020, पृ. 23-29
अरविंद कुमार : ‘कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन शिक्षा के प्रति विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं अभिभावकों का दृष्टिकोण,’ अपनी माटी (अंक-38), अक्टूबर-दिसम्बर, पृ. 38
चंदन श्रीवास्तव : ‘डिजिटल दुनिया और बच्चे, समकालीन परिदृश्य की सैद्धांतिक समझ,’भारतीय आधुनिक शिक्षा (अंक-1), जुलाई, 2020, पृ.
115-119
तीन सौ पैसठ दिन में स्मार्टफोन पर बिता दिए 43 करोड़ साल : अमरउजाला (बरेली संस्करण), 17 जनवरी, 2022, पृ. 18
निशा सिंह : ‘आज के दौर में बढ़ी आईसीटी की भूमिका,’ राष्ट्रीय सहारा (वाराणसी संस्करण), 27 जून, 2020, पृ. 6
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा : एनसीईआरटी, नई दिल्ली, 2005
राष्ट्रीय शिक्षा नीति :मानव संसाधन विकास मंत्रालय (शिक्षामंत्रालय), भारत सरकार, 2020
एलन, के०ए०, रायन, टी०एवं अन्य (2014) सोशल मीडिया यूज एण्ड सोशल कनेक्टेडनेस इन एडोलेसेंटस : द पॉजिटिव्ज एण्ड द पोटेंशियल पिटफाल्स, द आस्ट्रेलियन एजूकेशनल एण्ड डेपलपमेंटल साइकोलॉजिस्ट, 31 (1), 18-31
डॉ० अरविंद कुमार
असि0 प्रोफेसर, बी०एड०
राजकीय रज़ा स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामपुर(उत्तरप्रदेश) - 244901
arvindkmr37@gmail.com, 9411918004
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
नमस्ते सर जी सर जी मीडिया के वर्तमान समय में हमारे जीवन के उपयोग पर बहुत शानदार प्रकाश डाला गया परंतु सर मुझे कहीं ना कहीं लगता है कि इसमें उम्र का पड़ाव भी बहुत महत्वपूर्ण है जैसा कि सर कॉविड के समय में देखने में आया कि जो बच्चे समझदार थे उन्होंने ही तकनीकी के सहारे से शिक्षा को जारी रखा ज्यादातर छात्र समय की बर्बादी वाले गेम्स एवं वीडियोस में संलग्न हो गए जिसका उनके मानसिक स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ा फिर भी कहीं ना कहीं कोई भी कोविड समय में शिक्षा को एक मानसिक स्तर पर समाज में बनाए रखने का कार्य मीडिया का बहुत ही अहम था अगर हम ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो कहीं संचार की एवं तकनीकी की खासा जरूरत महसूस की गई उसके लिए प्रयास भी किए
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
सलीम अहमद रामपुर
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