शोध आलेख : समाचार पत्र पाठकों का डिजिटल मीडिया की ओर बढ़ता रुझान / सूरज कुमार बैरवा व मोनिका राव


शोध आलेख : समाचार पत्र पाठकों का डिजिटल मीडिया की ओर बढ़ता रुझान 

- सूरज कुमार बैरवा व मोनिका राव
 

शोध सार : समाचार पत्र को संचार का एक शक्तिशाली माध्यम माना जाता है। भारत में पहला अखबार सन 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने बंगाल गजटके नाम से प्रकाशित किया था। इसके बाद कई बाधाओं को पार करते हुए समाचार पत्र लगातार नए सोपान में विकसित होते चले गए। भारत में समाचार पत्रों की यात्रा 240 वर्षों से अधिक की हो गई है। प्रस्तुत शोध आलेख में द्वितीयक आंकड़ों के माध्यमों से यह जानने का प्रयास किया गया है कि डिजिटल मीडिया का समाचारों के नए माध्यम के रुप में दायरा कितना व्यापक है। साथ ही, समाचार पत्र पाठकों का इस नए माध्यम की ओर कितना रुझान है। इंटरनेट के साथ स्मार्टफोन्स की आम आदमी तक पहुंच आसान होने से समाचारों के लिए परंपरागत माध्यमों से इतर नए माध्यमों का दायरा लगातार बढ़ता नजर आ रहा है। पिछले कुछ सालों में इंटरनेट की कीमतों में गिरावट से भी डिजिटल मीडिया ने नई ऑडियंस शामिल करने में कामयाबी हासिल की है। समाचार पत्रों के साथ ही अऩ्य परंपरागत संचार माध्यमों पर डिजिटल माध्यम भारी पड़ता नजर आ रहा है। भले ही यह तस्वीर अभी इतनी साफ न हो लेकिन जैसे- जैसे इंटरनेट का दायरा बढ़ेगा यह और साफ होती जाएगी।

 

बीज शब्द : समाचार पत्र, डिजिटल मीडिया, पाठक, इंटरनेट।

 

मूल आलेख : इक्कीसवीं सदी ने सूचना-प्रौद्योगिकी को ऐसे आयाम दिए हैं जिनसे दुनिया एक ऐसे दौर में प्रवेश कर गई है जहां कल्पनाएं विभिन्न रूपों में वर्चुअल यानी आभासी दुनिया में जाकर आकार लेती हैं और साकार होती हैं। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि इंटरनेट के आगमन से दुनिया के बीच दूरियां कम हुई है, मार्शल मैक्लुहान द्वारा दी गई ग्लोबल विलेज की अवधारणा को साकार किया है। इंटरनेट के आविष्कार ने लगभग सभी क्षेत्रों को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है। लेकिन संचार के क्षेत्र में जो क्रांति इंटनरेट के कारण उत्पन्न हुई, उसने कई परिभाषाओं और अवधारणाओं को बदल दिया है। बिना आवाज के आरंभ हुआ संचार, मुद्रण, रेडियो और टीवी से होते हुए आज ऐसे दौर में आ पहुंचा है जहां यह सारी खूबियां एक ही माध्यम समेटे हुए है।

 

डिजिटल मीडिया आज जिस गति के साथ बढ़ रहा है, उससे तो ऐसा लग रहा है कि जल्द ही यह सभी माध्यमों पर हावी हो जाएगा। खासकर भारत में साक्षरता कम होने के बावजूद इसका विस्तार तेजी से हो रहा है। हालांकि डिजिटल मीडिया ने शुरू से ही रफ्तार पकड़ ली थी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एशिया महाद्वीप में रेडियो को 5 करोड़ लोगों तक पहुंचने में 38 साल का समय लगा तो वहीं टीवी को 13 और केबल टीवी को 10 साल लगे। लेकिन इंटरनेट ने यह मुकाम केवल 5 वर्षों में ही हासिल कर लिया। डिजिटल मीडिया ने अपनी शैशावस्था में ही अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया था। 2002 में हुए राष्ट्रीय पाठक सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई कि शहरी युवाओं का रूझान डिजिटल मीडिया की तरफ होने लगा है। हालांकि उस समय तक न तो भारत में इंटरनेट की व्यापक पहुंच थी और न ही कंप्यूटर या मोबाइल की। लेकिन आज तस्वीर बिल्कुल अलग है। भारत में आज करीब 69 करोड़ से ज्यादा स्मार्टफोन उपयोगकर्ता है, वहीं इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या करीब 80 करोड़ है। साथ ही ये आकड़ें बहुत तेज गति से बढ़ रहे हैं।1

 

फेसबुक, वाट्सएप और इंस्टाग्राम सहित सोशल प्लेटफॉर्म लोगों की पढ़ने और देखने की आदत तेजी से बदल रहे हैं। इनका असर खासतौर से युवा पीढ़ी पर ज्यादा है। महानगरों में अब लोग अखबार पढ़ने और टीवी देखने में 3-4 साल पहले की तुलना में ज्यादा वक्त बिता रहे हैं। देश के अग्रणी उद्योग मंडल एसोचैम की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। एसोचैम द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के निष्कर्ष में यह कहा गया है कि भारतीय समाचार उद्योग अच्छी हालत में है और करीब 6.2 करोड़ अखबार प्रकाशित हो रहे हैं और आम घरों में अभी भी सुबह-सुबह अखबार खरीदा जा रहा है। लेकिन परिवारों में अखबार पढ़ने के वक्त में तेजी से कमी आई है और फेसबुक पर लोग ज्यादा वक्त बिता रहे हैं। खासतौर से युवा पीढ़ी में यह चलन तेजी से उभरा है।2

 

सस्ते इंटरनेट से डिजिटल मीडिया के बढ़ते कदम -

द इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या में तेजी से वृद्धि होने के साथ ही ग्रामीण भारत में डिजिटल अपनाने की प्रकिया में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक इस ट्रेंड को देखते हुए चार साल बाद यानी सन 2025 तक कुल सक्रिय इंटरनेट आबादी  90 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। ट्राई की ब्रॉडबैंड सब्सक्राइबर रिपोर्ट के मुताबिक 5 साल पहले के मुकाबले ब्रॉडबैंड ग्राहकों की तादाद 4 गुना बढ़ चुकी है। जहां सितंबर, 2016 में 19.23 करोड़ ब्रॉडबैंड ग्राहक थे, वहीं जून, 2021 में यह 79.27 करोड़ हो गए हैं। विशेषज्ञों का मानना हैं कि डेटा की खपत में बढ़ोतरी और इंटरनेट यूजर्स की तादाद में भारी इजाफे की वजह डेटा की कीमतों में हुई कमी है। दरअसल जियो की लॉंचिंग से पूर्व तक डेटा की कीमत करीब 160 रूपये प्रति जीबी थी जो सन, 2021 में घटकर 10 रूपये प्रति जीबी से भी नीचे आ गई। यानी पिछले 5 वर्षों में देश में डेटा की कीमते 93% कम हुई है। डेटा की कम हुई कीमतों के कारण ही आज भारत देश-दुनिया में सबसे किफायती इंटरनेट उपलब्ध कराने वाले देशों की लिस्ट में शामिल है। अक्टूबर से दिसंबर, 2016 की ट्राई की परफॉरमेंस इंडीकेटर रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि प्रति यूजर डेटा की खपत मात्र 878.63 एमबी थी। सितंबर, 2016 में जियो लॉन्च के बाद डेटा खपत में जबरदस्त विस्फोट हुआ और डेटा की खपत 1303 प्रतिशत बढ़कर 12.33 जीबी प्रति यूजर हो गई। जियो के मार्केट में उतरने के बाद केवल डेटा की खपत ही नही बढ़ी डेटा यूजर्स की संख्या में भी भारी इजाफा देखने को मिला।3

 

समाचार पत्र बनाम डिजिटल मीडिया -

आज विश्व के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले 10 समाचार पत्रों में 4 भारत के हैं।4 वहीं, इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में भारत दुनिया में दूसरे पायदान पर है। विश्व में इंटरनेट के कुल यूजर्स में भारत की हिस्सेदारी 12 फीसदी है।5 इक्कसवीं सदी के पहले दशक से डिजिटल मीडिया ने अपना प्रभाव दिखाना आरंभ कर दिया था। उस दौर में समाचार पत्रों पर इसके प्रभाव की बातें होने लगी थी। कुछ चिंताएं समाचारों पत्रों के संपादकों और मालिकों को भी थी इसीलिए सन 2009 में नई दिल्ली में स्वयंसेवी संस्था 'एक्सचेंज फॉर मीडिया' और अखबार मालिकों के संगठन 'आईएनएस' ने अखबारों के भविष्य पर परिचर्चा का आयोजन किया। 'इंडियन न्यूज पेपर कांग्रेस-2009' में विचार-विमर्श के बाद यह कहा गया कि टेलीविजन और इंटरनेट पर सूचनाओं और समाचारों की बाढ़ से अखबारों और पत्रिकाओं को कोई खतरा नहीं हैं।6 हालांकि उनके नतीजों में यह माना गया कि इंटरनेट पर खबरों की बाढ़ है और बावजूद इसके, उस बाढ़ को यह कहकर नजरअंदाज करने की कोशिश की गई कि फिलहाल उससे कोई खतरा नहीं हैं। इंटरनेट के भारत पहुंचते ही भारतीय समाचर पत्रों ने इस हाथों-हाथ अपना लिया, क्योंकि केबल टेलीविजन उनको एक चुनौती के रूप में सामने दिख रहा था। सबसे पहले चैन्नई से प्रकाशित 'द हिंदू' ने सन 1995 में अपने संस्करण को ऑनलाइन किया। उसके बाद अन्य समाचार पत्रों ने भी अपनी उपस्थिति ऑनलाइन दर्ज करा दी। नई सदी की शुरुआत से पहले ही उस समय के लगभग सभी मुख्य समाचार पत्र डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आ गए जिनमें द टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, अमर उजाला, प्रभात खबर सहित हंस और वर्तमान साहित्य जैसी पत्रिकाएं भी शामिल थी।

 

आज हर एक छोटा-बड़ा मीडिया चाहे वो मुद्रित हो या इलेक्ट्रॉनिक, वह डिजिटल मीडिया का प्रयोग कर रहा है। समाचार पत्रों के अपने वेब पोर्टल और सोशल मीडिया पर पेज के अलावा ई-पेपर भी वह अपनी वेबसाईट पर प्रकाशित करते हैं। बड़े मीडिया (मुद्रित और इलेक्ट्रॉनिक) के अलावा ऐसी कई वेबसाईट्स मौजूद है जिनकी रोजाना की पाठक संख्या लाखों में है और वे परंपरागत माध्यमों को कड़ी टक्कर दे रहें हैं। यह बात सही है कि पश्चिमी देशों के इतर भारत में समाचार पत्रों के पाठकों में वद्धि हो रही है। लेकिन समचार पढ़ने के लिए बिताए जाने वाले औसत समय में गिरावर्ट दर्ज की गई है।7

 

प्रारंभ में न्यूज पेपर विदेश में रहने वाले उन भारतीयों को ध्यान में रखकर ऑनलाइन अपलोड किए जाते थे जो अपने वतन की खबरें पढ़ना चाहते थे। हालांकि धीरे-धीरे ऑनलाइन समाचार पढ़ने वाले पाठकों का दायरा बढ़ने लगा। इंटरनेट की पहुंच के साथ ही इन्हें भारत में तवज्जो मिलनी शुरू हो गई। लंबे समय तक डिजिटल मीडिया की शक्ति को नकारने के लिए यह तर्क दिया जाता रहा कि ऑनलाइन समाचार पत्रों को केवल विदेश में रहने वाले भारतीय ही पढ़ते हैं। लेकिन एक शोध से यह स्पष्ट हो गया कि ऑनलाइन न्यूज पेपर पढ़ने वाले हर तीन भारतीयों में से दो भारत में ही रहतें हैं। विकसित देशों के उदाहरण देते हुए ऐसे कयास लगाए जाने लगे हैं कि आने वाले समय में लोग प्रिंट के बजाय डिजिटल माध्यम को पूरी तरह से अपना लेंगे। मशहूर कंसल्टेंसी फर्म एर्न्स्ट एंड यंग इंडिया और फिक्की ने हाल में एक रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक साल 2016 के मुक़ाबले 2017 में भारत में मीडिया और मनोरंजन का बाज़ार 13 फीसदी की बढ़त के साथ 1.5 लाख करोड़ का हो गया है। इस दौरान जहां प्रिंट मीडिया का रेवेन्यू महज़ तीन फीसदी बढ़ा, वहीं डिजिटल मीडिया के मामले में यह आंकड़ा 28 फीसदी रहा। इसी प्रकार जहां प्रिंट की रीडरशिप 11 फीसदी बढ़ी तो दूसरी तरफ डिजिटल सब्सक्रिप्शन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गयी है।8

 

पहले डिजिटल मीडिया कंप्यूटर तक सीमित था, लेकिन स्मार्टफोन के आने से डिजिटल मीडिया लोगों के कमरों से हाथों तक पहुंच गया है। शुरू में स्मार्टफोन्स बहुत मंहगें थे, इसलिए आम-आदमी की पहुंच से दूर थे। लेकिन अब उनके सस्ते होने के बाद स्थितियां बदल रही हैं। सस्ते इंटरनेट ने भी डिजिटल मीडिया को आम लोगों तक पंहुचने में मदद की है। स्मार्टफोन की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए सभी समाचार पत्र भी अपने मोबाइल ऐप बनाकर लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में अमेरिका में किए गए सर्वेक्षण में यह बात स्पष्ट रूप से ऊभर कर सामने आई है कि अब लोग खबरों के लिए डिजिटल मीडिया का प्रयोग कर रहें हैं। समाचार पत्र इस दौड़ में काफी पीछे रह गए हैं।9 हाल ही में इंडियन रिडरशिप सर्वे के आंकड़े भी जारी किए गए हैं जिसमें यह बात निकलकर सामने आई है कि करीब 39 प्रतिशत भारतीय अखबार पढ़ते हैं। हालांकि इस बार इस रिपोर्ट में एक नया आंकड़ा निकलकर आया है कि करीब 40 लाख लोग आनलाइन ई-पेपर पढ़ते हैं। लेकिन अगर इसमें अखबारों के वेब पोर्टल्स और अन्य वेब पोर्टल्स के विजिटर्स (ऑडियंस) को भी जोड़ लिया जाए तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ सकते हैं। भारत में वर्ष 2020 में ऑनलाइन न्यूज ऑडियंस 450 मिलियन से बढ़कर 468 मिलियन हो गई है। ऑनलाइन बिताए जाने वाले औसत समय में भी 32 फीसदी का इजाफा हुआ है। इंटरनेट पर अधिक समय बिताने वाले युवाओं तक पहुंचने के लिए टीवी चैनल भी यूट्यूब और फेसबुक का इस्तेमाल कर रहे हैं।10 एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय यूजर्स रोजाना औसतन पांच से लेकर छह घंटे तक सोशल मीडिया एप्स पर एक्टिव रहते हैं।11

 

डिजिटल मीडिया समाचार पत्रों से कई मायनों में अलग है जिसमें पाठक की भागीदारी और तात्कालिकता प्रमुख है।12 समाचार पत्रों में 'संपादक के नाम पत्र' के माध्यम से पाठक अपनी बात कह पाता है, लेकिन इस प्रक्रिया में बहुत समय लगता है। सभी पत्रों को अखबार में शामिल करना भी मुमकिन नहीं था, लेकिन डिजिटल मीडिया में किसी खबर या अन्य किसी टिप्पणी पर अपने विचार रखे जा सकते हैं। दूसरी सबसे अहम बात यह कि अखबार लोगों को आज की खबरें दूसरे दिन सुबह पहुंचाते हैं जबकि डिजिटल मीडिया पर हर पल की अपडेट प्राप्त की जा सकती है।13 वहीं एक व्यक्ति तक सभी अखबारों की पहुंच नहीं होती जिसके कारण खबर का सिर्फ एक पहलु ही उसके सामने होता है। डिजिटल मीडिया के माध्यम से वह एक ही खबर के कई दृष्टिकोण पढ़ सकता है।

 

कोरोनाकाल में डिजिटल मीडिया –

कोरोना के कारण मार्च, 2020 को अचानक हुए लॉकडाउन के कारण देश में यातायात सहित अन्य गतिविधियां बंद हो गई। इस दौरान समाचार पत्रों की पाठक संख्या में भारी कमी देखी गई। लोगों ने सूचनाएं प्राप्त करने के लिए डिजिटल मीडिया का सहारा लिया।14 मार्च, 2020 में ब्रॉडकॉस्टिंग ऑडियंस रिसर्च काउंसिल द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान इंटरनेट पर सूचना प्राप्त करने वालों की संख्या 57 प्रतिशत बढ़ गई। वहीं लॉकडाउन के बाद टीवी देखने वालों की संख्या में 8 प्रतिशत और मोबाइल से सूचना प्राप्त करने वालों में 6 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई।15 कोरोना के दौरान सभी अखबारों को डिजिटल का सहारा लेना पड़ा और कई का प्रकाशन हमेशा के लिए बंद हो गया।

 

आरएनआई की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 2020 तक भारत में 1 लाख 43 हजार 423 प्रकाशन (समाचारपत्र और पत्रिकाएं) पंजीकृत किए गए हैं। वर्ष 2019-20 के दौरान कुल 1,498 नए प्रकाशन पंजीकृत किए गए जबकि मार्च, 2019 के अंत में 1 लाख 19 हजार 995 प्रकाशन पंजीकृत थे। देश में प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्रों की संख्या वर्ष 2018-19 में जहां 10 हजार 167 थी वहीँ, वर्ष 2019 -20 में घटकर 9 हजार 840 ही रह गई।16

 

पिछले कुछ सालों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कारणों से भारत में डिजिटल क्रांति आई है। जिन गांवों में बिजली नहीं हैं, वहां भी स्मार्टफोन इंटरनेट कनेक्शन के साथ पहुंच गए हैं। उन इलाकों में डिजिटल मीडिया पहुंच चुका है जहां आजादी के बाद से अब तक समाचार पत्र नहीं पहुंच पाए हैं। मीडिया घरानों के अलावा कई ऐसी वेबसाईट्स भी है जिनका न तो कोई अखबार है और न ही कोई न्यूज चैनल, लेकिन वे रीडरशिप के मामले में समाचार पत्रों को टक्कर दे रहे हैं। आज समाचार पत्रों की दुनिया पर मुख्यधारा के मीडिया का अधिकार नहीं रह गया है। वेब पत्रकारिता के उदय ने सूचना और समाचारों को लोगों तक पहुंचाने के अनेक विकल्पों का सृजन किया है। यह एक ऐसी धारा है जिसके मंच पर मुख्यधारा के मीडिया की प्रभावशाली उपस्थिति तो है ही, लेकिन साथ ही इसने एक सक्रिय नागरिक को भी पत्रकार बना दिया है। प्रौद्योगिकीय युग में आज लगभग सभी समाचार पत्र, पत्रिकाएं, रेडिया और टीवी चैनल्स ऑनलाइन हो रहे हैं। आज समाचार चैनलों पर दिखाए जाने वाली खबरों और प्रोग्रामों का इंटरनेट वर्जन मौजूद है। सभी समाचार पत्र और पत्रिकाएं भी वेब पत्रकारिता की दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। इंटरनेट उपभोक्ताओं की तेजी से बढ़ रही संख्या इस ओर इशारा कर रही है कि अगले कुछ वर्षों में वेब मीडिया कहीं अधिक प्रभावशाली मंच बनने की ओर उन्मुख है। हालांकि पश्चिमी देशों में काफी हद तक यह पहले ही हो चुका है।

 

निष्कर्ष : डिजिटल मीडिया की शुरुआत के साथ ही अखबार भी डिजिटल होना प्रारंभ हो गए। हालांकि प्रारंभिक दौर में संख्या बेहद कम थी। चूंकि उस समय तक डिजिटल मीडिया की असल ताकत का अहसास शायद कुछ लोगों को ही था। ज्यादातर लोगों का यही मत था कि डिजिटल मीडिया समाचार पत्रों की पठनीयता को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करेगा। समय के साथ डिजिटल मीडिया का विस्तार होता गया और कई देशों में मुद्रित समाचार पत्रों के प्रसार की संख्या को प्रभावित किया। भले ही दुनिया के कई देशों में अखबारों पर खतरा मंडरा रहा हो, पर भारत में अब भी अखबारों की प्रसार संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। यह भी एक सच्चाई है कि यहां डिजिटल मीडिया बहुत तेज गति से अपने पैर पसार रहा है। भारत में लगभग सभी समाचार पत्र डिजिटल माध्यम का प्रयोग कर रहें हैं। यहां तक कि उनके मुद्रित संस्करण घरों में पहुंचने से पहले ही मोबाइल पर ऑनलाइन पहुंच जाता है। पल-पल की अपड़ेट देने के लिए सभी अखबारों के वेब पोर्टल भी हैं। वर्ष 2020 में ऑनलाइन न्यूज ऑडियंस 450 मिलियन से बढ़कर 468 मिलियन हो गई है, ऑनलाइन बिताए जाने वाले औसत समय में भी 32 फीसदी का इजाफा हुआ है, वहीं दूसरी ओर अखबारों के बंद होने की खबरें आ रहीं हैं। आरएनआई की सालाना रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचारपत्रों की संख्या साल 2018-19 में जहां 10 हजार 167 थी, वह साल 2019 -20 में घटकर 9 हजार 840 ही रह गई। स्मार्टफोन और इंटरनेट ने पाठकों के डिजिटलीकरण में अहम योगदान दिया है। रुचि की खबरों को तात्कालिक रुप से पाठकों तक पहुंचाना इस नए माध्यम की रीढ़ है। इसके अतिरिक्त भी यह अखबारों की तुलना में अन्य कई महत्वपूर्ण विशेषताएं समेटे हुए जिसके कारण समाचार पत्रों के पाठक भी डिजिटल की ओर रुख कर रहें हैं। बीते कुछ समय के दौरान डिजिटल मीडिया ने लोगों के पढ़ने के तरीकों और अनुभवों में आमूलचूल बदलाव कर दिया है।

 

संदर्भ :

1.https://techarc.net/at-4-9-cagr-for-smartphone-subscriber-growth-in-2020-30-decade-india-may-not-have-a-billion-smartphone-users-even-by-2030/

2.https://zeenews.india.com/hindi/business/assocham-survey-people-spend-more-time-on-social-media-than-newpapers-tv-news-channels/333943

3.https://www.jagran.com/technology/tech-news-reliance-jio-completed-5-years-in-india-data-cost-came-down-by-over-93-percent-know-all-big-changes-21996521.html

4.https://www.infoplease.com/culture-entertainment/journalism-literature/top-ten-top-daily-newspapers-world

5.https://economictimes.indiatimes.com/hindi/business-news/india-is-second-most-internet-using-country-know-who-is-first/articleshow/69758576.cms

6. https://www.bbc.com/hindi/news/2009/12/091207_summit_journalism_sm

7. वनिता कोहली खांडेकर:भारतीय मीडिया व्यवसाय, सेज (भाषा) प्रकाशन, नयी दिल्ली, 2017, पृ. 1

8.https://satyagrah.scroll.in/article/118031/print-media-vs-digital-media-ernst-and-young-report

9.http://www.pewresearch.org/fact-tank/2018/12/10/social-media-outpaces-print-newspapers-in-the-u-s-as-a-news-source/

10.https://www.livemint.com/industry/media/news-channels-hook-younger-audiences-online-11627469590321.html

11.https://www.amarujala.com/technology/tech-diary/report-revails-indian-users-spend-5-to-6-hours-daily-on-social-media?pageId=4

12.Lavanya Rajendran: THE IMPACT OF NEW MEDIA ON TRADITIONAL MEDIA,Middle-East Journal of Scientific Research 22 (4): 609-616, 2014 ISSN 1990-9233

https://www.researchgate.net/publication/309014723_The_Impact_of_New_Media_on_Traditional_Media

13. श्याम माथुर:वेब पत्रकारिता, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2010, पृ. 77-78

14.https://hindi.newslaundry.com/2020/03/25/corona-virus-covid-19-print-media-newspaper-vender-hawkers-slowdownt/media/covid-19-impact-tv-mobile-consumption-witness-major-spike/articleshow/74848508.cms

15. https://economictimes.indiatimes.com/industry/media/entertainmen

16. REGISTRAR OF NEWSPAPERS FOR INDIA. (2021). भारत के समाचार पत्र 201920. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार

 

सूरज कुमार बैरवा

शोधार्थी, जनसंचार केंद्र, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर

theskbairwa@gmail.com, 7610001054

 

मोनिका राव

सहायक आचार्य, समाजशास्त्र विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर

raodrmonica@gmail.com, 9610164606 

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च  2022
UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )

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