पीत
पत्रकारिता की अवधारणा
- डॉ. चन्द्रप्रकाश
मिश्र
शोध सार : पीत पत्रकारिता, पत्रकारिता का एक ऐसा प्रकार है जिसका उद्देश्य सनसनी फैलाना, समाचार या विचार को उत्तेजक तथा अतिशयोक्तिपूर्ण बनाना, व्यावसायिक लाभ लेना और पत्र की बिक्री या चैनल की टी० आर० पी० को बढ़ाना होता है। इसमें जनसरोकार प्रमुख नहीं होता, बल्कि स्वहित, स्वार्थ और मीडिया संस्थान को लाभ पहुँचाना प्रमुख होता है जिसके कारण समाचार, विचार, चित्र या वीडियो की सत्यता प्रभावित होती है। ‘येलो जर्नलिज्म’ के हिंदी प्रतिरूप ‘पीत पत्रकारिता’ को ‘टैब्लायडपत्रकारिता’ के रूप में भी जाना जाता है। विलियम रैंडोल्फ हर्स्ट और जोसेफ पुलित्जर इस प्रकार की पत्रकारिता को बढ़ावा देने वालों में प्रमुख स्थान रखते हैं। चरित्र-हनन करना, डर पैदा करना और ब्लैकमेल करना पीत पत्रकारिता के परिणाम हैं जिससे पत्रकारिता के आदर्श तार-तार हो जाते हैं और पाठक/दर्शक भी उसे समझ जाता है।
बीज शब्द : पीत पत्रकारिता,
समाचार, विचार, सत्यता, पत्रकार, मीडिया संस्थान।
मूल आलेख :
पत्रकारिता के अनेक रूप हैं जैसे खेल पत्रकारिता,
सिने पत्रकारिता, खोजी पत्रकारिता, विकास पत्रकारिता आदि। पत्रकारिता के विभिन्न रूपों में
संतुलित, निष्पक्ष और आदर्श पत्रकारिता की छवि की अपेक्षा रहती है
लेकिन पत्रकारिता के रूपों में से अनेक ऐसे हैं जो आदर्श और संतुलित पत्रकारिता की
छवि को खंडित करते हैं और पाठक/दर्शक को भी ऐसे रूपों से अरुचि होती है,
फिर भी उनका पत्रकारिता में प्रचलन और प्रभाव बढता जा रहा
है। पपराज़ी पत्रकारिता, पीत पत्रकारिता, पेज थ्री पत्रकारिता इसी श्रेणी में आते हैं। यहाँ प्रश्न
उठता है कि पीत पत्रकारिता क्या है? अक्सर समाचारपत्रों और टेलीविजन तथा सोशल मीडिया पर ऐसे
समाचार या वीडियो देखने में आते हैं जिनका उद्देश्य सनसनी पैदा करना होता है
जिसमें समाचार को ऐसा उत्तेजक और अतिश्योक्तिपूर्ण बना दिया जाता है कि उसका
वास्तविक स्वरूप छिप जाता है और लोग उससे भ्रमित हो जाते हैं। बाद में ऐसी अनेक
खबरें फेक न्यूज निकलती हैं और वीडियो भी फर्जीपाए जाते हैं।सच तो यह है कि यह
व्यावसायिक परिवेश में विकसित होने वाला पत्रकारिता का विकृत रूप है जिसका
उद्देश्य सनसनी पैदा करने के साथ-साथ पत्र की बिक्री या चैनल की टी० आर० पी० को
बढ़ाना और पाठक/दर्शक वर्ग को अपनी ओर खींचना होता है।
पीत
पत्रकारिता ‘येलो जर्नलिज्म’ का हिंदी अनुवाद है। पत्रकारिता के आदर्शों को न मानना और
उसकी आचार-संहिता का सही प्रकार से पालन न करना इसके मूल में है। यही कारण है कि
अनेक बार समाचारों की सत्यता प्रभावित होती है। ब्रिटेन में इसे ‘टैब्लायड पत्रकारिता’
के रूप में जाना जाता है। यह शब्द अमरीका की देन है। इस शब्द
के निर्माणकर्ता में ‘न्यूयार्क प्रेस’ के संपादक इरविन वार्डमैन का नाम लिया जाता है। सन् 1895-1898 के बीच अमेरिका के दो समाचारपत्रों में इस प्रकार की
पत्रकारिता का चरम रूप देखा गया। इसके पहले प्रखर प्रयोगकर्ता संभवतःअमेरिका के
मीडिया व्यवसायी विलियम रैंडोल्फ हर्स्ट माने जाते हैं। अहमद शहजाद के अनुसार “यह एक ऐसा वक्त था जब अमेरिका में एक नये मध्यम वर्ग का उदय
हो रहा था, राज्य की भूमिका भी बड़ी तेजी से बदल रही थी क्योंकि
उपनिवेशवाद के कारण इन देशों में अकूत पैसा पहुँच रहा था। नये मध्यम वर्ग,
खासकर युवाओं के बीच अपराध,
सेक्स, हिंसा, इंवेस्टीगेटिव रिपोर्ट और उत्तेजना से भरे समाचारों की खूब
डिमांड बनाई गई। यही एक कारण था कि हर्स्ट ने अमेरिका में असली खबरों और जनसरोकार
की पत्रकारिता को तिलांजलि देकर व्यापारिक और पीत पत्रकारिता को बढ़ावा दिया।”1 पीत पत्रकारिता को स्थापित करने में जोसेफ पुलित्जर का भी
योगदान है। हर्स्ट और पुलित्जर दोनों ने ‘न्यूयार्क जर्नल’ और ‘न्यूयार्क वर्ल्ड’ की होड़ द्वारा इसका परिचय लोगों से कराया। इस संबंध में
पुलित्जर द्वारा ‘येलो किड’ नामक कार्टून के प्रकाशन को महत्त्वपूर्ण माना जाता है “जो उस दौर में काफी लोकप्रिय हुआ। रिचर्ड एफ आउटकॉल्ट
द्वारा रचित इस कार्टून ने पीत पत्रकारिता शब्द का प्रचलन कराया। पुलित्जर के
प्रतिद्वंद्वी हर्स्ट ने इस कार्टून की लोकप्रियता भाँपते हुए कार्टूनिस्ट रिचर्ड
एफ आउटकॉल्ट को धन-बल पर जोड़ लिया। पुलित्जर ने भी एक नए कार्टूनिस्ट जार्ज लुक्स
को नियुक्त कर येलो किड कार्टून को जारी रखा।”2 इस प्रकार दोनों समाचारपत्रों ने प्रसार संख्या बढ़ाने,
पत्रकारों को अपनी ओर लाने और उन्हें कुछ अलग तथा नया कर
दिखाने की सीख दी ।
फ्रैंक लूथर मॉट ने पीत
पत्रकारिता की पाँच विशेषताएँ मानी हैं-
(1) छोटे-छोटे समाचारों का बड़े प्रिंट में सुखियाँ हासिल करना।
(2) चित्रों अथवा काल्पनिक चित्रों का इस रूप में उपयोग कि वे
भव्य लगें।
(3) भ्रामक सुर्खियों, नकली साक्षात्कारों का प्रयोग और तथाकथित विशेषज्ञों की
झूठी बातों को
प्रमुखता देना।
(4) कॉमिक स्ट्रिप्स के साथ पूरी तरह रंगीन रविवारीय सामग्री पर
बल।
(5) व्यवस्था के विरुद्ध उपेक्षित और शोषित के प्रति नाटकीय
सहानुभूति।
उपर्युक्त विवेचन के आधार
पर पीत पत्रकारिता के स्वरूप को इस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता हैं-
(1) किसी समाचार या विचार का प्रस्तुतीकरण पूर्वग्रह से ग्रस्त
होकर या अतिशयोक्तिपूर्ण तरीके से करना। इस संबध में बच्चन सिंह का कथन यहाँ
द्रष्टव्य है “कभी-कभी किसी खोज-खबर के पीछे पत्रकार का अपना अंतःप्रेरित
उत्साह या पेशेगत कर्त्तव्यबोध नहीं होता,
मनोविकार होता है इसलिए खबर एक विशेष दृष्टि से अभिप्रेरित
होने के नाते मूल रूप में ही विकृत हो जाती है। यह खबर एकपक्षीय होती है। खुद कुछ
नहीं कहती, उसका संकलनकर्ता ही बोलता रहता है। ऐसी खबर न तो विश्वसनीय
होती है और न ही पाठक-वर्ग पर कोई अनुकूल या स्थायी असर छोड़ती है। यह हेय होती है
और लोगों के अंदर सहानूभूति नहीं हिकारत पैदा करती है। इस तरह की खबरों से न तो
व्यवस्था में कोई हलचल उत्पन्न होती है और न ही जनता में। कुल मिलाकर ऐसी खबर
लिखनेवाला पत्रकार ही उपहास, उपेक्षा और तिरस्कार का पात्र होता है क्योंकि वह ऐसा करके
पत्रकारिता के मूल्य-सिद्धांत की बखिया उधेड़ रहा होता है।”4
पीत
पत्रकारिता का प्रतिनिधित्व करने वाले समाचारों का ध्येय अपने लाभ के लिए होता है
और पत्रकार का स्वार्थ प्रमुख होता है। पत्रकार “निहित स्वार्थों, मिथ्या अहं और संकुचित दृष्टि के कारण किसी व्यक्ति अथवा
संस्था के प्रति पैदा हुए मनोविकार को तुष्ट करने के लिए जो खबर गढ़ रहा होता है
उसमें सच्चाई तक पहुँचने की कोशिश का सर्वथा अभाव होता है।“5 किसी का चरित्र-हनन करना और डर पैदा करना पीत पत्रकारिता
में केंद्रीय बिंदु बन जाता है।
(2) किसी विचार या समाचार को सनसनीपूर्ण बनाकर प्रस्तुत करना।
ब्रिटिश साप्ताहिक टैब्लायड अखबार ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’
इस प्रकार के विचारों या समाचारों के लिए प्रसिद्ध था लेकिन
पाठकों में दिल में अपने लिए सम्मान नहीं पैदा कर सका। इसके बंद होने पर लिखित एक
लेख में बताया गया है कि “यह अखबार भले ही ज्यादा बिकता था,
लेकिन पाठकों के मन में उसकी कोई इज्जत नहीं थी। लोग उसे
चटखारे लेने के लिए ही पढ़ते थे। उसमें रसूखदार लोगों की निजी जिंदगी के चर्चे,
अपराध और सेक्स के किस्सों को नमक-मिर्च लगाकर परोसा जाता
था। स्टिंग ऑपरेशन के जरिये ऑडियो-वीडियो सुबूत इकट्ठे किए जाते और गाहे-बगाहे
प्रभावित लोगों को ब्लैकमेल भी किया जाता। इसी क्रम में अखबार के संपादकों ने फोन
हैंकिग का हथकंडा अपनाया था। जिन्होंने इस कृत्य को अंजाम दिया,
वे तो अखबार छोड़ गए,
बंदी का संकट झेलना पड़ा दूसरों को।”6 पीत पत्रकारिता का इससे बड़ा उदाहरण और परिणाम क्या मिलेगा?
इतना होने पर भी यह अखबार 168 साल की आयु के बावजूद सन् 2011 में बंद हो गया जो यह साबित करता है कि जनरुचि स्वस्थ और
आदर्श दृष्टि की चाह रखती है। केवल “सर्कुलेशन या धन की ताकत ही किसी अखबार के लिए पर्याप्त नहीं
होती, जनता की नजर में सम्मान सबसे बड़ी चीज है।”7
इसी
प्रकार फिल्म और अपराध से जुड़ी खबरों और विचारों को सनसनीपूर्ण और चटपटा बनाकर
प्रस्तुत किया जाता है ताकि समाज को लगे कि यह जानना उसके लिए बहुत उपयोगी है।
इसका परिणाम यह होता है कि समाज के लिए जो मुद्दे या विचार उपयोगी होते हैं वे
पीछे रह जाते हैं और उनका स्थान नगण्य होकर रह जाता है। इस संबंध में फिल्मी
अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की शादी, प्रेम और ब्रेकअप आदि के समाचारों को देखा जा सकता है जिसे
इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है मानो राष्ट्रीय महत्त्व का विषय हो। अपराध के
समाचार के रूप में ‘आरुषि हत्याकांड’ से जुड़ी मनगढंत कहानियों को लिया जा सकता है जो
समाचार-समूहों और चैनलों की पीत पत्रकारिता को उजागर करती हैं। ऐसे और भी उदाहरण
मिल जाएँगे।
मनगढ़ंत और मसालापूर्णकहानी
के संबंध में ‘द वायर’ की पत्रकार रोहिणी सिंह और जय शाह मामला लिया जा सकता है। ‘द वायर’ बनाम जय शाह मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार
रोहिणी सिंह के याचिका वापस लेने पर आश्चर्य प्रकट करते हुए स्पष्ट कहा कि “प्रेस की आजादी सुप्रीम है लेकिन यह वन वे ट्रैफिक नहीं हो
सकता, यह पीत पत्रकारिता है।...कोर्ट देश की जनता के सामने सच्चाई
रखना चाहता है, फिर क्यों यह याचिका वापस ली जा रही है?”8 इस मामले में ‘द वायर’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तस्वीरें
प्रकाशित कर रहा था जबकि मामले से इनका कोई जुड़ाव नहीं था। साथ ही जय शाह के
कारोबार में वृद्धि होने के आँकड़े भी दिए गए थे।
(3) ऐसे चित्रों को प्रसारित-प्रकाशित करना जिनसे शारीरिक और
मानसिक उत्तेजना बढ़ती हो। ऐसामुंबई से प्रकाशित होने वाले टैब्लायड अखबार ‘मिड डे’ ने किया जिसने शाहिद कपूर और करीना कपूर के प्रगाढ़ चुंबन की
फोटो प्रकाशित की। चर्चित पत्रकार गोविंद सिंह का कथन यहाँ द्रष्टव्यहै कि “फोटो छापकर, संभव है, अखबार ने अपना सर्कुलेशन कुछ बढ़ा लिया हो या इस बहाने उसका
नाम चर्चा में आ गया हो, लेकिन उससे ज्यादा फायदा उठाया उन टीवी चैनलों ने जिन्होंने
उन चुंबन-दृश्यों पर जैसे अपना कैमरा फोकस कर दिया था। हालांकि सभी समाचार चैनलों
ने इसका भरपूर लाभ उठाने की कोशिश की, लेकिन ‘स्टार न्यूज’ ने तो हद ही कर दी। उन दृश्यों को केंद्र में रखकर जबरन
झूठ-मूठ की बहसें दिखाई जाती रहीं। जाहिर है यह सब अपनी रेटिंग बढ़ाने की कवायद थी।”9
(4)किसी समूह से प्रभावित होकर समाचार प्रस्तुत करना। यह समूह
आर्थिक भी हो सकता है, राजनीतिक भी हो सकता है और धार्मिक भी हो सकता है। इसमें
मीडिया-संस्थान, प्रबंधन का निजी लाभ होता है। इस प्रकार पीत पत्रकारिता बड़े
मीडिया घरानों द्वारा एक औजार के रूप में प्रयुक्त की जाती है और अच्छी-भली पगार
पाने वाले पत्रकार भी इसमें सहायक होते हैं। इनसे उनका निजी हित तो सधता ही है,
समाचारपत्रों, वेबसाइटों, सोशल साइट्स के मालिकों को भी लाभ होता है। पीत पत्रकारिता
को बढ़ावा देने के बावजूद बड़ा मीडिया संस्थान और बड़े पत्रकार बच जाते हैं। ‘जी न्यूज’ को देश की भाजपा सरकार का समर्थन करने वाले समाचारों के
प्रसारण के लिए जाना जाता है तो ‘एनडीटीवी’ को भाजपा सरकार विरोधी समाचारों के प्रस्तुतीकरण के लिए। इस
प्रकार दोनों चैनल किसी-न-किसी समूह से प्रभावित हैं। ‘जी न्यूज’ के दो संपादकों द्वारा समाचार को छिपाने के बदले में 100 करोड़ रुपयों के विज्ञापन की जिंदल ग्रुप से माँग करना पीत
पत्रकारिता का निकृष्टतम उदाहरण है जिसमें इन संपादकों की गिरफ्तारी भी हुई थी और
उन्होंने यह कार्य मीडिया संस्थान की इच्छा पर किया होगा। इसी प्रकार ब्रिटिश
साप्ताहिक टैब्लायड अखबार ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’
के मालिक रूपक मडरेक ने भी अपने अखबार में स्वस्थ दिशा देने
की बजाय पीत पत्रकारिता को बढ़ावा दिया।
(5) विज्ञापन का पत्रकारिता की आर्थिक स्थिति का स्तंभ होना। यह
एक महत्त्वपूर्ण बिंदु है जो निरंतर बदलते पत्रकारीय परिवेश में पीत पत्रकारिता को
बढ़ावा देता है। बाजार का दबाव और पत्रकारिता का व्यवसाय में बदलना भी इसमें सहायक
हुआ है। प्रायः साधनहीन पत्र-पत्रिकाओं और पत्र के एकमात्र सर्वेसर्वा होने वाले
पत्रकारों में यह प्रवृत्ति देखी गई है। बच्चन सिंह के शब्दों में “लघु पत्र-पत्रिकाएँ प्रायः ऐसे लोगों के हाथों में होती हैं
जो सर्वेसर्वा होते हैं यानी वे एकतंत्रीय व्यवस्था के तहत प्रकाशित होती हैं और
मालिक/संपादक की रोजी-रोटी का एकमात्र सहारा होती हैं लेकिन विज्ञापन तथा प्रसार
से इतनी आय नहीं हो पाती जो अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बना सके। नतीजतन ऐसे
हथकंडे अपनाने ही पड़ते हैं जो स्वस्थ पत्रकारिता के अंतर्गत नहीं आते।”10
(6) धन प्राप्ति के लिए समाचार प्रकाशित करना। पत्रकारीय पेशे
में जुड़े लोगों के जल्दी से जल्दी धनवान बनने की इच्छा ने इसका विस्तार किया है।
सच तो यह है कि “ऐसे लोगों का अखबारी दुनिया में प्रवेश काफी चिंताजनक है
जिनका उद्देश्य ही अखबार की आड़ में नाजायज और समाज-विरोधी कार्यों को सफल अंजाम
देना होता है। ऐसे लोगों के लिए अखबार केवल एक ढाल होता है जो सुरक्षा प्रदान करता
हैं या सिर्फ मुखौटा होता है, जिसके पीछे विकृत-से-विकृत चेहरा छिपाया जा सकता है।...ऐसे
लोगों ने अखबारी दुनिया में एक नयी तरह की समस्या खड़ी कर दी है-कुकुरमुत्ते की तरह
जगह-जगह उगते जा रहे हैं और पत्रकारिता के आदर्शों को तार-तार किये दे रहे हैं।”11 सोशल मीडिया पर भी यह प्रवृत्ति खूब खुलकर देखी जा सकती
है। अनेक वेबसाइटें भी स्वलाभ के लिए चलाई जाती हैं। कभी वीडियो में हेराफेरी कर
उसे अपलोड कर दिया जाता है और कभी समाचार ही पूरी तरह प्रायोजित लगता है।
साधन-संपन्न मीडिया संस्थानों द्वारा पत्रकारों का शोषण करना भी इसके लिए एक बिंदु
माना जा सकता है।“हर समाचार संगठन यह दावे के साथ कहता है कि वह स्वस्थ
पत्रकारिता का पोषक है...लेकिन सच्चाई यह है कि पत्रकारिता ने एक नया चोला पहन
लिया हैजो सिर्फ व्यवसाय की भाषा समझता है। इसके लिए नए-नए तरीके ढूँढे गए हैं। हर
तरीका जाने-अनजाने में पीत पत्रकारिता को बढ़ावा देता है।”12पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों की इसमें कोई उपयोगिता नहीं
है, सभी चैनल मुख्यतः इसी में रंगे हैं। यह बीमारी पत्रकारिता को स्वस्थ,
संतुलितऔर निष्पक्ष नहीं होने देती। इस बीमारी को समाप्त
करना तो मुश्किल है लेकिन नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
संदर्भ :
1.
उद्धृत,
hindi.newslaundry.com, विलियम
रैंडोल्फ हर्स्ट के बहाने पीत पत्रकारिता का सफर, देवेश मिश्र,
24 अप्रैल 2020
2.
https://www.newswriters.in/27-03-2017/yellow-journalism/ पीत पत्रकारिता ऐतिहासिक परिपेक्ष्य,
राजेश कुमार
3.
https://en.wikipedia.org
4.
बच्चन सिंह, हिंदी पत्रकारिता के नये प्रतिमान,
पृ० 73, प्रथम संस्करण 1989, विश्वविद्यालय
प्रकाशन चौक, वाराणसी
5.
वही, पृ० 73
6.
https://www.livehindustan.com/news/article1-story-179882.html,
10 जुलाई 2011,
‘पीत पत्रकारिता के एक युग
का अंत’
7.
वही
8.
https://ndtv.in/india-news/journalist, 27/08/2019
9. https://www.newswriters.in पपराज़ी पत्रकारिता की सीमाएँ,
गोविंद सिंह
10.
बच्चन सिंह, हिंदी पत्रकारिता के नये प्रतिमान,
पृ० 74
11.
वही, पृ० 74
12. https://www.newswriters.in पीत पत्रकारिता: दांव पर पत्रकारीय सिद्धांतों की साख,
राजेश कुमार
डॉ. चन्द्रप्रकाश मिश्र
सह आचार्य, हिंदी विभाग, मोतीलाल नेहरू महाविद्यालय, बेनीतोजुआरेज मार्ग, नई दिल्ली-110021
cp13mishra@gmail.com, 9899537882
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
एक टिप्पणी भेजें