भारतीय मीडिया और जनपक्षधरता
- मुकेश आर्य
‘मीडिया’ शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘मीडियम’ का बहुवचन है। इसका अर्थ संचार साधन, संप्रेषण माध्यम के रूप में लिया जाता है। मीडिया शब्द का प्रचलन ‘मास मीडिया’ शब्द के रूप में 1920 के दशक में शुरू हुआ। 1950 के दशक में यह ‘मीडिया’ शब्द के रूप में वैश्विक तौर पर प्रचलित हुआ, जिसका अर्थ है माध्यम या मध्य रूप। मीडिया शब्द का व्यापक अर्थ ‘जनसंचार के साधन’ रूप में लिया जाता है। ‘मीडिया’ अपने शाब्दिक अर्थ में यह इंगित करता है कि वह सत्ता या शासन और आमजन के बीच मध्यस्थ की भूमिका में है, योजक कड़ी है अथवा सत्ता एवं जनता के बीच परस्पर राय, मत, विचार की अभिव्यक्ति का साधन है। ‘मीडिया’ सूचनाओं के स्वच्छंद प्रवाह का माध्यम है। यह बहुआयामी संवाद का माध्यम है जिसके माध्यम से घटनाओं, सूचनाओं को वास्तविक स्वरूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस बात पर विचार किया जाना आवश्यक है कि आधुनिक समय में ‘मीडिया’ का चरित्र, उसकी भूमिका, उसका स्वरूप क्या है?
भारत के संदर्भ में मीडिया और अतीत :
अगर मीडिया शब्द का अर्थ हम राजसत्ता और जनता के बीच योजक के रूप में लें तब हम यह देखते हैं कि भारत में इसकी उपस्थिति प्राचीन काल से है। राजशाही के समय राजा के दूत और गुप्तचर राज्य की जनता, प्रशासन और पड़ोसी राजाओं की गतिविधि की सूचना राजा को प्रेषित करते थे। इस संदर्भ में यह एकतरफा संवाद माध्यम था। महाभारत में जब ‘संजय’ राज दरबार में धृतराष्ट्र को ‘आंखों देखा हाल’ सुनाते हुए हर्षा भोगले की भूमिका अदा कर रहे थे, तब यह आधुनिक इलेक्ट्रोनिक मीडिया का आदि संकेत था। इस रूप में मीडिया की उपस्थिति 17-18 वीं शताब्दी तक रही है जब व्यक्ति सशरीर संवाद माध्यम की भूमिका निभाते हुए राजदूत के रूप में आमजन की समस्याओं, राय-विचारों और राजकीय प्रशासन के हालात दरबार के समक्ष रखता था। उस समय सूचनाओं, सर्वेक्षण, ओपिनियन पोल का प्रवाह एक तरफा यानी राजसत्ता की ओर था।
भारत और इलेक्ट्रोनिक मीडिया :
आजादी के बाद प्रारंभिक दशक के अंत तक भारत में प्रिंट मीडिया ही मीडिया का प्रतिनिधि स्वरूप था। इसके अलावा ‘रेडियो’ दूसरा साधन था। ग्रामीण क्षेत्र में प्रिंट मीडिया की अनुपलब्धता एवं निरक्षरता के चलते रेडियो एकमात्र ऐसा संचार साधन था जो गाँव समाज को देश दुनिया से जोड़ रहा था। आजादी की पहली रात देश के प्रथम प्रधानमन्त्री का करिश्माई उद्बोधन देश ने रेडियो पर ही सुना। ग्रामीण समाज में दहेज़ तक में रेडियो का भेंट के रूप में दिया जाना इस संचार साधन की महत्ता की पुष्टि करता है। बीबीसी और आकाशवाणी के प्रसारण उस समय जनसामान्य के दिलोदिमाग पर छाये हुए थे और भारतीय जनमानस में इनके कार्यक्रमों की विश्वनीयता संदेह की सीमाओं से परे थी।
सन 1959 में जब भारत में सरकारी टेलीविजन चैनल दूरदर्शन की शुरुआत हुई, तब इस क्षेत्र में यह एक नए युग का सूत्रपात था। भारत में इसी चैनल पर सर्वप्रथम समाचारों का प्रसारण शुरू हुआ। स्वतन्त्रता के बाद चार दशकों तक ‘दूरदर्शन’ का एकछत्र राज रहा और समाचारों के प्रसारण में सरकारी चैनल ‘दूरदर्शन’ का एकाधिकार रहा। 1984 में एनडीटीवी की स्थापना के बाद अगले एक दशक तक इसकी भूमिका सरकारी समाचार चैनल के लिए आधा घंटे के कार्यक्रम के प्रोडक्शन तक सीमित रही।
नब्बे के दशक की शुरुआत में ही ‘जी मीडिया’ की स्थापना ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आधुनिक स्वरूप की बुनियाद तैयार की। 1995 में जी न्यूज के रूप में पहला 24×7 समाचार चैनल अस्तित्व में आया और यह एक शुरुआत भर थी। इसके बाद आज तक, स्टार न्यूज, इंडिया टीवी, IBN7 इत्यादि 24 घंटे के समाचार चैनल्स के प्रसारण की शुरुआत ने भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आधुनिक स्वरूप के विशाल भवन की सुदृढ़ नींव डाल दी। 21वीं सदी का प्रारंभिक दशक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास, प्रसार में ‘गेमचेंजर’ साबित हुआ। इस कालावधि में वर्तमान के 24×7 वाले समाचार चैनल्स का अवतरण हुआ और उन्होंने भारत में सूचनाओं, घटनाओं के नए रूप के साथ, प्रसारण क्षेत्र में एक नई इबारत लिख डाली।
24 घंटे समाचारों के प्रसारण की बाध्यता के चलते इन मीडिया चैनल्स पर भूत-भूतनी, अंधविश्वास बढ़ाने वाले, तथाकथित रूह कंपा देने वाले, संस्पेंस और खौफ पैदा करने वाले और सास-बहू धारावाहिक की तरह के कार्यक्रमों की बाढ़ सी आ गई। इस समय सरकारी समाचार प्रसारण कर्ता के रूप में डीडी न्यूज और NDTV ने अपनी विश्वसनीयता कायम रखते हुए जनसामान्य के मानस पटल पर अपनी अलग छाप छोड़ी। एक-एक घंटे के समाचार बुलेटिन के साथ ही समाचारों, घटनाओं के विश्लेषण के लिए विशेषज्ञों की आमद ने इन दोनों चैनल्स को दर्शकों का प्रिय बनाया। हालांकि आज तक, इंडिया टीवी जैसे चैनल्स ने भूत-प्रेत संबंधी कार्यक्रमों और अंधविश्वास बढ़ाने वाले समाचारों के आधे-आधे घंटे के प्रसारण के माध्यम से ग्रामीण अंचल में अपना विस्तार किया और इसमें इनकी सहायता एक नई प्रसारण तकनीक DTH (डायरेक्ट टू होम) ने की। सेटेलाइट से सिग्नल ग्रहण कर सीधे त्वरित प्रसारण की इस तकनीक ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विस्तार-विकास को व्यापक बनाया। गत दो दशकों की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विकास यात्रा को देखा जाए तो इसने देश के सामने मीडिया जगत के सशक्त हस्ताक्षरों को प्रस्तुत किया जिनमें पुण्य प्रसून बाजपेयी, रवीश कुमार, विनोद दुआ, प्रणय राय, प्रभु चावला, नीलम, मृणाल पांडे, राजदीप सरदेसाई, अंजना ओम कश्यप, दीपक चौरसिया, रजत शर्मा इत्यादि नामों के साथ यह सूची काफी बड़ी और समृद्ध है। इन पत्रकारों, प्रस्तोताओं की खास शैली ने अपना-अपना समर्थक अथवा प्रशंसक वर्ग तैयार किया है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और आम जनता की तकलीफ़ें :
आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए आम भारतीय ‘गोदी मीडिया’ शब्द का प्रयोग कर रहा है क्योंकि समाचार चैनल्स द्वारा सामान्य मानवी की दैनिक जीवन से जुड़ी समस्याओं, चुनौतियों और तकलीफों, पीड़ा को तरजीह न देकर ‘हिंदू-मुस्लिम’ के रूप में सांप्रदायिकता, भारत-पाकिस्तान, चीन की चर्चा, पाकिस्तान के आंतरिक मामलों की कवरेज, जातिवाद और अंधविश्वास के साथ-साथ विभाजनकारी मसलों पर विशेष फोकस किया जा रहा है। नोटबंदी के समय की तकलीफ रही हो या जीएसटी लागू करने के बाद अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण हिस्से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों पर पड़ी मार; कोरोना महामारी के कारण ऑक्सीजन-बेड्स की कमी से काल-कवलित हुए लोगों का मसला हो या महंगाई की चौतरफा मार अथवा किसी संक्रामक रोग की भांति तेजी से फैलती बेरोजगारी की समस्या। आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया चैनल्स इन मसलों पर बात करने के बजाय खबरों का प्रसारण इस रूप में कर रहे हैं जिनमें आम भारतीय की समस्याओं को आवाज नहीं मिल रही है।
इससे मीडिया की ‘सरकार और जनता के बीच की कड़ी’ की परिभाषित भूमिका का खतरनाक सीमा तक ह्रास हुआ है। आज सरकार की गलत नीतियों, अनुचित कानूनी विधानों अथवा जन-विरोधी कार्यक्रमों के खिलाफ कोई आवाज उठाता है तो उसे देशद्रोही करार दिया जा रहा है और अधिकतर मीडिया वर्ग इसी कार्य में अपनी उर्जा खपा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका को देखकर लगता है कि जैसे वह भारत में ‘राजा का दैवीय अधिकार सिद्धांत’ को प्रतिस्थापित करने के लिए उतावला है।
व्यक्ति, समाज, देश के भविष्य की संभावनाओं को सुनहरा बनाने के लिए लोकतंत्र में चुनावों की बहुत बड़ी भूमिका है, लेकिन हम देखते हैं कि मीडिया द्वारा चुनाव विश्लेषण के हर पहलू में जाति-धर्म को मुख्य कारक मानकर आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं और जनसामान्य के महत्वपूर्ण मुद्दों की अनदेखी की जाती है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा चुनाव से पूर्व पेश किए जाने वाले ओपिनियन पोल में भी निष्पक्षता का अभाव देखा जा सकता है। ऐसे सर्वेक्षण सत्ताधारी दल के पक्ष अथवा विपक्ष में बताकर आंकड़ों को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी भूमिका के साथ न्याय करता तो राष्ट्रीय एकता, अखंडता और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में स्वर्णिम भूमिका निभा सकता था।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल्स के चुनावी रिपोर्टिंग को देखने से साफ पता चलता है कि फलां चैनल किस प्रकार के श्रोता-दर्शक खोज रहा है या किस राजनीतिक दल के पक्ष में या विरोध में जनमत बनाने का एक तरफा प्रयास कर रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की इस प्रकार की भूमिका ने आम जनमानस के मन मस्तिष्क पर इसकी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष छवि को करारी चोट पहुंचाई है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और समाज में छवि निर्माण :
21वीं सदी के प्रारंभिक दशक में चूंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक तरह से शैशवकाल ही था, उस दौर में इसकी स्वतंत्रता, स्वायत्तता, निष्पक्षता जनसामान्य की नजरों में कायम रही। यह वह समय था जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने देश में तथाकथित बड़े-बड़े घोटालों की खबरों का प्रसारण स्वच्छंदता के साथ किया। देश में एक वातावरण निर्मित किया जिससे देश के जनमानस में भ्रष्टाचार के प्रति धिक्कार की भावना के साथ-साथ गुस्सा प्रकट हुआ। इस दशक के अंत में कॉमनवेल्थ घोटाला, कोयला घोटाला, 2G जैसे घोटाले की खबरों के लगातार प्रसारण ने देश के आम आदमी के मन-मस्तिष्क में उस समय की सरकार के प्रति गहरा क्षोभ उत्पन्न किया और भ्रष्टाचार के विरोध में दो सन्यासियों - अन्ना हजारे एवं बाबा रामदेव के नेतृत्व में एक व्यापक आंदोलन के लिए जमीन तैयार की। यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ही था जिसके 24 घंटे के प्रसारण ने रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे श्री अन्ना हजारे नामक व्यक्ति को अल्पकाल के लिए ही सही, देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बाद दूसरे सबसे लोकप्रिय व्यक्ति के रूप में प्रदर्शित किया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अगुआ चेनल्स पर इस समय केवल ‘तिरंगा ही तिरंगा’ छाया हुआ था और देशभक्ति तरानों की गूंज थी। इस प्रसारण ने देश की राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था में बड़े बदलाव की नींव रखी।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चकाचौंध ने देश के सामने एक कवि कम राजनेता को प्रस्तुत किया जिसका नाम था कुमार विश्वास। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह जैसों को आधुनिक भारत की राजनीति का चमकता सितारा बताया गया और उसी रूप में उन्हें स्थापित करने में भी मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई। इस प्रारंभिक दशक के अंत में और दूसरे दशक की शुरुआत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जनमत निर्माण में अपनी भागीदारी स्पष्ट रूप से परिलक्षित कर चुका था। इस कालखंड में युवाओं के मन-मस्तिष्क में सनातन भारतीय मूल्यों को पुनर्स्थापित करने में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी जीवंत भूमिका निभा रहा था। इमानदारी, देश-प्रेम, त्याग और समर्पण के आदर्शों की साकार मूर्ति श्री अन्ना हजारे बन चुके थे।
यह वह दौर था जब भारत में सोशल मीडिया का शैशव काल था और वह धीरे-धीरे विकास कर रहा था। इस कारण भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को ‘बदलाव का वाहक’ बनने में समर्थन मिला। भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की संभावनाओं को देखते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी दमदार भूमिका अंकित कर चुका था। शुरुआती समय में जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने विस्तार के बीज भूत-प्रेतों से संबंधित अंधविश्वास बढ़ाने वाले कार्यक्रमों या सास-बहू सीरियल टाइप कार्यक्रमों में खोज, देख रहा था। वह आज इन सबको अपनी प्रसारण-सूची से हटा चुका था।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया गोदी मीडिया के रूप में :
भारत में ‘प्रेस की आजादी’ को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ संबंधित संवैधानिक अधिकारों में शामिल किया गया है और स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं स्वायत्त प्रेस/मीडिया के पक्ष में अपना अभिमत प्रकट किया है। जैसा कि हम पहले कह चुके है कि आजादी के बाद से नब्बे के दशक के आखिरी वर्षों तक मीडिया मतलब प्रिंट मीडिया ही बना हुआ था और इसके साथ रेडियो जनसंचार का दूसरा प्रमुख साधन रहा। तकनीकी विकास, प्रसार और उदारीकरण-वैश्वीकरण के दौर में मीडिया जगत में भी निजी निवेश, विदेशी निवेश के द्वार खोले गए तथा इस क्षेत्र के व्यापक विकास एवं प्रसार की मजबूत बुनियाद तैयार हुई। 1975 में लागू आपातकाल की अवधि को छोड़कर भारत में प्रेस की आजादी बनी रही या कम से कम जनसामान्य के दिलो दिमाग में ‘स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं स्वायत्त प्रेस’ की छवि कायम थी। लेकिन जब 21वीं सदी की दहलीज पर निजी समाचार चैनल अस्तित्व में आए और उनके मालिक बड़े-बड़े औद्योगिक समूह बने तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को आम भारतीय शक और संदेह की दृष्टि से देखने लगा। अपनी शैशवावस्था (21वीं सदी का प्रारंभिक दशक) में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छवि कुछ हद तक स्वतंत्र, स्वायत्त एवं निष्पक्ष जनसंचार माध्यम की बनी रही और इस दौर में अनेक मामलों में मीडिया के प्रसारण के परिणामस्वरूप सरकारों द्वारा कठोर कदम भी उठाए गए। सांसदों के सवाल के बदले पैसे लेने का मामला हो या कारगिल युद्ध के समय ताबूत खरीद में भ्रष्टाचार का मामला हो, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रभाव स्पष्ट नजर आया। इसके बाद CAG की रिपोर्ट पर मीडिया हाउसेज द्वारा लगातार रिपोर्टिंग ने जनसामान्य के मन-मस्तिष्क में निष्पक्ष मीडिया की छवि निर्मित की।
सन 2014 के आम चुनावों के बाद, जब से वर्तमान सरकार अस्तित्व में आई तब से मीडिया के लिए ‘बिकाऊ’ शब्द का प्रयोग हल्की जुबान में किया जाने लगा और इस बात को अधिक बल तब मिला जब बड़े-बड़े पत्रकारों पुण्य प्रसून वाजपेई, अभिसार शर्मा, अजीत अंजुम, कुर्बान अली को तथाकथित तौर पर मुख्यधारा के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया समूह से निकाल दिया गया। आज इस समय अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल सरकारों की नाकामियों, विफलताओं को प्रस्तुत करने के स्थान पर राजनेताओं की छवि निर्माण या बदनाम करने के हथियार बन कर रह गए हैं। इसी वजह से हाल के वर्षों में जनसमान्य इस प्रकार की भूमिका के कारण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया के लिए एक विशेषण ‘गोदी मीडिया’ का प्रयोग करने लगा है। ‘गोदी मीडिया’ से अभिप्राय है कि मीडिया सत्ता की गोदी में बैठ गया है और उसे अपने कर्तव्य से कोई लेना-देना नहीं रह गया है।
यूट्यूब और मीडिया :
वर्तमान समय में मुख्यधारा के मीडिया का वर्गीकरण आम आदमी आसानी से कर सकता है कि फलां चैनल, समाचार पत्र किस राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में प्रसारित हो रहा है तब यूट्यूब मीडिया की स्वच्छंदता, स्वतंत्रता और अनौपचारिकता ने सामान्य मानवी के समक्ष एक सशक्त विकल्प प्रस्तुत किया है। वर्तमान जनमानस निष्पक्ष खबरों और जमीनी हकीकत जानने के लिए युट्यूब मीडिया के लोकल चैनल्स की ओर रुख कर रहा है। भारत में 2G (द्वितीय पीढ़ी) इंटरनेट के विस्तार ने स्मार्टफोन के वितरण को सार्वजनिक, सर्वभौमिक स्वरूप दिया और देश के हर वर्ग तक इन दोनों की पहुँच बढ़ी। इंटरनेट की चौथी पीढ़ी के विकास ने देश में जन संचार क्रांति में चार चांद लगा दिए और वीडियो अपलोडिंग, डाउनलोडिंग, स्ट्रीमिंग की द्रुतगति का विकास हुआ। सन 2014 के बाद देश के प्रमुख समाचार चैनल्स के साथ-साथ प्रतिष्ठित पत्रकारों ने भी यूट्यूब पर अपने चैनल्स बनाकर विचारों, घटनाओं, सूचनाओं के प्रसारण का स्वरूप बादल दिया।
यूट्यूब चैनल ‘लल्लनटॉप’, ‘द वायर’, ‘न्यूजलॉन्ड्री’, ‘न्यूज़ क्लिकइन’, ‘प्रिंट’, ‘क्विंट’ इत्यादि ने गोदी मीडिया के दौर में खबरों की तह तक जाने के प्रयास के साथ-साथ ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के संवैधानिक अधिकार को मूर्त रूप दिया है। आज जब मुख्यधारा का मीडिया - प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक, दोनों पर बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों का नियंत्रण है और इसी पहलू ने समाचारों के प्रसारण की स्वायत्तता, स्वतंत्रता को बाधित किया है, तब यूट्यूब पर पुण्य प्रसून बाजपेई, अभिसार शर्मा, शेखर गुप्ता, आरफा खानम शेरवानी और अजीत अंजुम जैसे ख्यातनाम पत्रकारों ने आम आदमी तक, आखिरी कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुँच बनाई है और समाचारों को जनोन्मुखी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जगत के इन सशक्त हस्ताक्षरों ने यूट्यूब पर समाचार, विश्लेषण, सूचना को औपचारिक सीमाओं, बंधनों से मुक्त कर समाज के हर वर्ग तक पहुंच बनाने के साथ-साथ जनसामान्य की आवाज, समस्याओं, जरूरतों और मांगों को देश-दुनिया के सामने रखा है।
सन 2014 में वर्तमान सरकार के पूर्व कार्यकाल से मुख्यधारा के समाचार माध्यमों - प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बारे में समाज में ‘गोदी मीडिया’ विशेषण प्रचलित होने के बाद देशभर में यूट्यूब पर उपरोक्त समस्त पत्रकारों को जबरदस्त समर्थन मिला है। विनोद दुआ के कार्यक्रम ‘जन गण की बात’ के दो सौ से ज्यादा एपिसोड का प्रसारण बताता है कि दर्शक-श्रोता समसामयिक घटनाओं पर अलग तरह के दृष्टिकोण, प्रस्तुतीकरण के प्रति झुकाव दिखा रहे हैं और परंपरागत रूप से खबरों के परोसे जाने से ऊब चुके हैं। विनोद दुआ ने अपने स्वतंत्र विचारों और अपनी खास शैली से घटनाओं के विश्लेषण से जनसामान्य में अलहदा छवि का निर्माण किया था।
यूट्यूब मीडिया और जन आंदोलन :
यूट्यूब मीडिया ने जमीनी सच्चाई को उजागर करने और आम आदमी की मांग, आवश्यकता, विचार-मत को वास्तविक स्वरूप में देश-दुनिया के सामने रखने में अपनी उपयोगिता साबित की है। पिछले कुछ सालों में यूट्यूब मीडिया ने जनांदोलनों के जीवंत प्रसारण और विश्लेष्ण की शैली को नया आयाम दिया है और जनआंदोलनों की मूल भावना को वैश्विक पटल पर अपने वास्तविक स्वरूप में प्रस्तुत करने में सफल रहा है। भले ही सरकारी कर्मचारियों की पेंशन बहाली की मांग हो या फिर सीएए-एनआरसी विरोध, शाहीन बाग आंदोलन हो या हाल ही का किसान आंदोलन। सोशल मीडिया के इस प्लेटफोर्म ने हाल ही में सफलतापूर्वक समाप्त हुए किसान आंदोलन को जिस स्वरुप में देश-दुनिया, समाज के सामने रखा उससे अवश्य ही सरकारों पर दबाव बढ़ा। बिना किसी औपचारिक हदबंदी के यूट्यूब मीडिया ने सामयिक दो बड़े जन आंदोलनों - नागरिकता कानून विरोधी आन्दोलन एवं किसान आंदोलन (कृषि कानून विरोधी) के प्रस्तुतीकरण को जीवंत बनाने के साथ-साथ सामान्य से सामान्य मानवी की बात को बुलंद किया। मुख्यधारा का मीडिया आंदोलनों के साथ न्याय करने में विफल रहा, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। सस्ते डाटा पैक और स्मार्टफोन की उपलब्धता, द्रुतगति सम्पन्न चौथी पीढ़ी वाले इंटरनेट के कारण यूट्यूब मीडिया ने आंदोलनों की सच्चाई को बयान करने में सफलता प्राप्त की।
यूट्यूब मीडिया ने ‘सरकार और जनता के बीच की कड़ी’ की अपनी भूमिका को चमत्कारिक रूप से परिभाषित किया है और इसकी पहुंच छोटे-छोटे कस्बों, शहरों तक व्यापक तौर पर प्रसारित हुई है। आज यूट्यूब मीडिया संचार के साधन के रूप में अपने योगदान को अलग स्वरूप में पेश कर रहा है, जब वह छोटे-छोटे कस्बों, शहरों की समस्याओं के समाधान में अपनी भूमिका खोज रहा है और प्रशासन को जनोन्मुखी एवं उतरदायी बनाने में अहम कारक साबित हो रहा है।
खबरों, समाचारों के प्रसारण का स्वरूप बदला है, दर्शक-श्रोता-पाठक की अभिरुचियां बदली है क्योंकि तकनीक के प्रसार ने हर किसी के साथ हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन की पहुंच सुनिश्चित की है। इससे कदमताल करते हुए यूट्यूब मीडिया ने जहां मीडिया जगत की बड़ी-बड़ी हस्तियों के लिए नए द्वार खोले हैं वहीं छोटे कस्बों, शहरों की पत्रकारिता को नया आयाम दिया है जो औपचारिक मीडिया प्रसारण से अलहदा अपनी विशेष प्रकार की भाषा-शैली, तकनीक रखता है।
निष्कर्ष :
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया नाबालिग नजर आ रहा है क्योंकि एक्सक्लूसिव और ब्रेकिंग खबरों के मायाजाल में उलझकर अपने मूल मन्तव्य, उत्तरदायित्व से वह भटक चूका है। राष्ट्र निर्माण में अनिवार्य भूमिका को देखते हुए मीडिया को विविधताओं से परिपूर्ण समावेशी भारत की आवाज बनने के साथ-साथ सत्ता से सवाल करने की कुव्वत पैदा करनी होगी। यूट्यूब मीडिया के जमीन से जुड़े होने के साथ साथ यह भी ध्यान देने की बात है कि जब से इस मीडिया प्लेटफोर्म की शुरुआत हुई है तब से ऐसे अनेक अपरिपक्व पत्रकारों और युट्यूब मीडियाकर्मियों की बाढ़ आ गयी है जो गंभीर पत्रकारिता को नुकसान ही पहुंचा रहे है । इसी वजह से सरकार युट्यूब मीडिया के नियमन की दिशा में विधायी कदम उठा रही है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अनेक नामी मीडियाकर्मियों के युट्यूब संस्करण ने सूचनाओं, घटनाओं की पहुँच और विश्लेषण को जनसामान्य के लिए सुगम और विश्वसनीय बना दिया है ।
मुकेश आर्य
अध्यापक, भादरा(हनुमानगढ़)
हाल – उच्च माध्यमिक विद्यालय गोरिया, तहसील बाली (पाली), राजस्थान
mukeshaarya1987@gmail.com, 8905631916
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
सटीक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंBhartiya midia ka aagman jrurt ka stick vislssan ...wah guru
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