विधि-निर्माण को प्रभावित करने में मीडिया की भूमिका
- डॉ. सुनीता मंगला
शोध सार :भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में मीडिया संगठन कितनी प्रभावी भूमिका निभाते हैं यह एक अध्ययन का विषय है। लोकतन्त्र में मीडिया को शासकों और शासितों के बीच सेतु के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस पेपर का उद्देश्य इस तथ्य का विश्लेषण करना है कि मीडिया किस तरह से सरकार संबंधी सूचनाएँ जनता को प्रदान करके ‘लोकतन्त्र के प्रहरी' की भूमिका निभाता है और दूसरा, वह नागरिकों के विचारों की आवाज बनकर किस हद तक एक जनमत का निर्माण करता है। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक लोकतंत्र के माध्यम से राष्ट्र निर्माण के एक प्रतिनिधि मंच के रूप में मीडिया की भूमिका केवल सूचना और मनोरंजन के प्रसार करना ही नहीं है बल्कि जनता को सामाजिक और राजनीतिक हलचलों के बारे मे शिक्षित करना उसके पश्चात जनमत का निर्माण करना है, जिसके बाद जनमत की राय प्रत्यक्ष या अप्रयत्क्ष रूप से विधान निर्माण को प्रभावित करती है। जिस देश में बड़े पैमाने पर गरीबी, बेरोज़गारी और पिछड़ापन है वहाँ मीडिया का रुख विकासात्मक पत्रकारिता की तरफ़ होना चाहिए जो जनमत के निर्माण के साथ-साथ जो विधानपालिका और राजनीतिक दलों को देश के आमजन की प्रगति को प्रभावित करने वाले मुख्य क़ानूनों का निर्माण करने को मजबूर कर सकती है। अतः यह शोध लेख आमजन की प्राथमिकताओं को नीतिगत आकार देने की मीडिया की क्षमता का आंकलन करता है। जनमानस से समक्ष आने वाली समस्याओं को प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साइटों जैसे कि ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप्प द्वारा जनता और सरकार के समक्ष रखा जाता है तत्पश्चात जनमत का निर्माण किया जाता है यह जनमत उन समस्याओं को नीतिगत आधार देता है और उन्ही से संबन्धित विधानों का भी निर्माण होता है।बीज शब्द : मीडिया, विधायी व्यवहार, संसद, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया, नागरिक, नीति-निर्माण, प्रशासन।
साहित्य की समीक्षा(Review of Literature) :
पूर्व में भी कई पुस्तकें और शोध लेख और प्रकाशित हुए हैं जिनका उद्देशय यह पता लगाना था कि मीडिया द्वारा विधि निर्माण और जनमत निर्माण को किस तरह प्रभावित किया जाता रहा है और विधायी प्रक्रिया में मीडिया की भूमिका कितनी महत्त्वपूर्ण है। इस क्षेत्र मे किए गए शोधों की समीक्षा निम्नांकित है -
Ready,G. Gopal Reddy,MediaandPublicPolicy,The Indian Journal of Political Science,Vol. 67, No. 2 (June, 2006), pp. 295-302https://www.jstor.org/stable/41856216
जी. गोपालरेड्डी ने अपने लेख में उल्लेख किया है कि नीतियाँ विधान निर्माण पर मीडिया के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। नीति पर मीडिया का प्रभाव दो कारकों पर निर्भर करता है पहला मीडिया किसी विषय का कैसा चित्रण प्रस्तुत करती है। दूसरा अतीत में मीडिया किस तरह जन संबंधी विशेष मुद्दों को प्रमुखता देती है। इस दोनों तत्त्वों का अध्ययन करने के बाद ही नीति निर्माताओं और मीडिया के अंतरसंबंधों पर राय बनानी चाहिए।
Stromback, Jesper, Four Phases of Mediatization: An Analysis of the Mediatization of Politics, 2008
इस शोध पत्र में लेखक इस तथ्य के बारे में सहमत हैं कि मीडिया या पत्रकारों, संसद के सदस्यों(सांसदों) और सरकार के सदस्यों के बीच लगातार संपर्क रहता है जिसकी वजह से दोनों ही एक दूसरे की कार्यवाहियों और गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं। राजनीतिक और मीडिया अभिनेताओं के बीच का पारस्परिक शक्ति संबंध जटिल काफी जटिल है और समय की ज़रूरतों के अनुसार निरंतर बदलता भी रहता है।
Halima Zoha Ansari, Press And Policy: Can The Media Influence Policy-Making?https://feminisminindia.com/2020/11/04/press-and-policy-can-the-media-influence-policy-making/
इस लेख में मीडिया और राजनीति के बीच के संबंधों को संवेदनशील संबंध बताते हुए मीडिया और प्रेस पर विनियमन की आवश्यकता को दर्शाया है। मीडिया लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकप्रिय रूप से नागरिकों को राजनीतिक भागीदारी प्रदान करने और दोनों के बीच की खाई को पाटने का कार्य करता है। समाचार पत्र-पत्रिकाओ, रेडियो, टीवी और सोशल मीडिया की खबरें राजनीतिक जागरूकता को जन्म देती है, जो बाद में जनमत को आकार देते हैं और जनता की राय अंत में क़ानून और नीति को प्रभावित करती है। लेखक बताते हैं कि किस तरह समाचार कवरेज द्वारा मीडिया स्वयं राजनीतिक एजेंट के रूप में कार्य करके भी जनता की राय से सरकार को परिचित कराने में सफल रही जिसके प्रमुख उदाहरण 2012 के निर्भया बलात्कार मामला, नागरिकता संशोधन अधिनियम, किसान अधिनियम के साथ ही भारत-चीन तनाव पर भारतीयों की प्रतिक्रिया आदि है।
AnkithaPraveen, Role of Media in Democracy and Good Governance, https://www.lawctopus.com/academike/role-media-democracy-good-governance/
प्रस्तुत लेख दर्शाता है कि मीडिया राष्ट्र के शासन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है यह न केवल सूचना का प्रसार करता है बल्कि जनमत की राय का निर्माण करने, अच्छा क़ानून बनाने और अच्छे निर्णय लेने में भी मदद करता है। लेखक ने भारतीय संविधान के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों, ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ और 'सूचना का अधिकार' पर विशेष ज़ोर देते हुए शासन में मीडिया के दायरे की व्याख्या की है। एक लोकतांत्रिक देश मे जनता का निर्णय सर्वोच्च होता है अतः जनसंचार माध्यम यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि लोग उचित निर्णय लें। अतः सुशासन में मीडिया की भूमिका की सकारात्मक भूमिका सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।
Soroka, Stuart N.Issue Attributes and Agenda-Setting by Media, the Public, and Policymakers in Canada, 2002
यह शोध लेख नीति निर्माण पर मीडिया कवरेज के प्रभावों पर, विशेषकर एजेंडा-सेटिंग चरण, पर केंद्रित है। इनके अनुसार राजनेता आमतौर पर मीडिया को उनके राजनीतिक मुद्दों का मनचाहा आकार देने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण हथियार मानते हैं। लेखक ने यह प्रदर्शित करने की कोशिश की है कि पिछले दशकों में बड़े पैमाने पर मीडिया वर्ग विशेष की समस्याओं के समाधान के लिए नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित करके नीति एजेंडों को प्रभावित कर सकता है।
Yanovitzky, Itzhak, Effects of News Coverage on Policy Attention and Actions: A Closer Look into the Media-Policy Connection, 2002
यह शोध मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के मीडिया और संसद(कांग्रेस) के अंतरसंबंधों और क़ानून निर्माण के दौरान मीडिया की भूमिका पर आधारित है। यह दर्शाता है कि मीडिया रणनीति कांग्रेस के विधायी कार्य का अहम हिस्सा है और मीडिया कवरेज क़ानून बनाने की प्रक्रिया की अवधि को प्रभावित कर सकता है। हम बिलों(कानूनों) के परिणामों के बारे में कम जानते हैं, खासकर मल्टीपार्टी सिस्टम में, इसलिए मीडिया का उद्देशय जनता की समस्याओं के बारे में सरकार का ध्यान पर नीतिगत तथ्यों की ओर आकर्षित करना और समाधान निवारण संबंधी क़ानून ने निर्माण का आग्रह करना है ।
Wolfe, Michelle, Putting on the Brakes or Pressing on the Gas? Media Attention and the Speed of Policymaking, 2012.
वोल्फ के अध्ययन से पता चलता है कि मीडिया जनमत निर्माण कर क़ानून प्रक्रियाओं की गति को प्रभावित करती है। मीडिया नई जानकारी प्रदान करके जनता के लिए उपयोगी आवश्यक नीति निर्माण संबंधी रूपरेखाओं को आकार दे सकता है जिनके माध्यम से नीति निर्माण या क़ानून निर्माण की प्रक्रिया सुचारु रूप से चलती रहती है। यह शोध मीडिया का क़ानून निर्माण में प्रभाव का अध्ययन करके बताता है कि मीडिया के प्रभाव के परिणामस्वरूप नीदरलैंड में(अर्द्ध) सार्वजनिक अधिकारियों के पारिश्रमिक का कानूनी विनियमन हुआ।
कुमार अभिनव, समाज में मीडिया की भूमिका, https://navpradesh.com/November 4, 2020
इस लेख में यह बताया गया है कि लोकतांत्रिक समाज में जहां अधिकारियों का चुनाव किया जाता है वहाँ जनता की राय के आधार पर ही क़ानून बनाए जाते हैं। मीडिया सार्वजनिक नीति पर सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभावों में से एक है क्योंकि सरकारें अपने मामलों को नियंत्रित करने के लिए मीडिया का उपयोग करती हैं और आमजन अपनी समस्याओं को सरकार के सम्मुख रखने के लिए मीडिया का उपयोग करते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान राजनेताओं और प्रचारकों ने सोशल नेटवर्किंग साइटों और फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से अपने-अपने विचार साझा किए हैं।
भारत मे विधायिका और मीडिया पर अलग-अलग रूप में तो शोधों की कमी नहीं है परंतु विधान निर्माण पर मीडिया के प्रभाव संबंधी अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत कम प्रयास हुए हैं इसीलिए यह शोधकर्ताओं के लिए नया और आंशिक रूप से नजरंदाज किया गया विषय है। भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश मे मीडिया जनता के समक्ष आने वाली समस्याओं को मुद्दा बनाकर सरकार और पूरे देश के समक्ष रखती है जिससे प्रभावित होकर सरकार उनको प्राथमिकताएं देकर नीति निर्माण में शामिल करती है और उसी से संबंधित क़ानून बनाती है।
परिचय :
अगर यह तय करने का अधिकार हम पर छोड़ दिया गया जाये, कि हमे समाचार पत्रों के बिना सरकार चाहिए या सरकार के बिना अखबार, तो दूसरे विकल्प को स्वीकार करने में एक पल का भी संकोच नहीं करना चाहिए1
थॉमस जेफरसन -
मीडिया, संचार के साधन के रूप में, हमारे समाज में रोजमर्रा की ज़िन्दगी का सार तत्त्व बन गया है। मीडिया एक समग्र तंत्र बन गया है जिसमे प्रिंट मीडिया(समाचार पत्र और पत्रिकाओं), इलेक्ट्रोनिक मीडिया(रेडियो, टेलीविज़न) और सोशल मीडिया या डिजिटल इंटरनेट (इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर समाचार, फिल्में, धारावाहिक, ई-सामग्री) के आगमन ने लोगों के संचार के परिदृश्य को बदल दिया है। समाज का प्रत्येक जन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संचार के इन साधनों के साथ जुड़ा है कोई भी समाज, सरकार, वर्ग, संस्था, समूह व्यक्ति मीडिया की उपेक्षा कर आगे नहीं बढ़ सकता। प्रसिद्ध जनसंचार सिद्धांतकार डेनिस मैकक्वाइल का कहना है कि संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जो न केवल सामान्यता को बढ़ाती है, बल्कि सभी में समानता के तत्त्वों से भी अवगत कराती है जिसके लिए संचार की आवश्यकता होती है। अतः संचार गतिशीलता के साथ जुड़ा है।2 अतः संचार के साधन के रूप मे मीडिया समाज को गति प्रदान करके जनमानस को इस से अवगत करती है।
यद्यपि हम यह नहीं कह सकते कि जब मीडिया के साधन नहीं थे तो शासक और शासित के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं था। प्राचीनकाल में राज्य द्वारा जनता के साथ अलग-अलग साधनों को संचार के साधन के रूप मे अपनाया जाता था जैसे; बेबीलोनियन राज्य के हम्मुराबी का कोड, पत्थरों के खंभों पर अंकित किए गए क़ानूनों का एक समूह था, जिन्हें लगभग 1792-1750 ई.पू. के बीच में जनता के साथ संवाद करने और उनको जागरूक करने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर रखा गया था। 268-232 ईसा पूर्व में अशोक के शिलालेखों को जिसमें पत्थर के खंभों पर उनके धार्मिक, प्रशासनिक विचारों के बारे में संवाद के रूप मे राज्य के कई स्थानों पर रखा गया। प्राचीन भारतीय कालजयी ग्रंथ महाभारत मे महर्षि वेदव्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी जिसके द्वारा संजय ने नेत्रहीन धृतराष्ट्र को महाभारत-युद्ध का हर अंश सुनाया इस घटना को संचार या संवाद के रूप मे आज भी याद रखा जाता है।3 रोमन गणराज्य मे 131 इसा पूर्व एक हस्ताक्षर एक्टा डायर्ना, जिसमे दैनिक घटनाओं का एक रिकॉर्ड रखा जाता था, उस समय की क़ानूनी कार्यवाही, सरकारी नोटिस आदि रोज़मर्रा के समाचारों को जनता के सम्मुख सार्वजनिक तौर पर प्रचारित किए जाते थे। ये समाचार बुलेटिन आमतौर पर पत्थरों, धातुओं, पेपिरस पर उकेरे जाते थे और रोम में सार्वजनिक स्थानों पर रखे जाते थे। "शहर की बाधाओं के अलावा लड़ाई, आपदा, एक चमत्कार या राज्याभिषेक से संबन्धित जो भी उद्घोषणाएं होती थीं उनका प्रचार पैम्फलेट्स के गाथाओं, गीतों, ब्रॉडसाइड, समाचार पैम्फलेट्स के द्वारा होता था।4 मुगलकाल के दौरान, एक वेनिस यात्री, निककोला मनुची(NiccolaManucci), जो औरंगज़ेब के दरबार का दौरा करने आए थे। उन्होने औरंगज़ेब के गुप्त समाचार लेखकों वाक्विआ-नेविस(vaquia-navis) और कन्फियानवीस(confianavis) के बारे में लिखा है जो राज्य के दैनिक विवरणों के साथ-साथ साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों से राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं के बारे में लिखित रिपोर्ट तैयार करते थे।5 औपनिवेशिक काल के दौरान लोगों के साथ संवाद करने के महात्मा गांधीजी ने इंडियन ओपिनियन, सत्याग्रह, यंग इंडिया, नवजीवन और हरिजन और डॉ. अम्बेडकर ने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता और प्रबुद्ध भारत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मराठा और केसरी, गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप को जैसे समाचार पत्रो को प्रकाशित किया था। आज सभी राजनीतिज्ञ, सांसद और विधायक नियमित रूप से समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कॉलम लिखते हैं। कांग्रेस के शशि थरूर, एमजे अकबर, भाजपा के वरुण गांधी, जनता दल(यू) के पूर्व नेता अली अनवर अक्सर पत्रिकाओं या समाचार पत्रों में लिखते हैं। जब भारत मे द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रेडियो के सारे लाइसेन्स रद्द कर दिए गए तो 1941 में रेडियो द्वारा जर्मनी से सुभाषचंद्र बोस ने भारतीयों के नाम संदेश भेजकर रेडियो के इतिहास में एक और प्रसिद्ध अध्याय जोड़ दिया जब नेताजी ने कहा था, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा।” इसके बाद 1942 में आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना हुई जो जर्मनी ,सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिये समाचार प्रसारित करके भारतीयों में स्वशासन के लिए जोश पैदा करता रहा।6. पत्थर के खंभों पर शिलालेख, पत्र और संदेश भेजने के लिए पक्षियों का इस्तेमाल, चर्मपत्र और कागज पर लेखन से लेकर आज संचार के दायरे में कई बहुआयामी बदलाव आए हैं जिसके द्वारा सरकार की नीतियों से जनता का परिचय होता है और जनता की समस्याओं को सरकार और पूरे देश के समक्ष रखा जाता है जिससे प्रभावित होकर सरकार उन्ही से संबंधित क़ानून बनाती है। आज मीडिया से किसी भी तरह कोई भी राजनीतिक दल मुँह नहीं मोड़ सकता क्योंकि वो विभिन्न तरीकों से मीडिया को अपने अनुसार इस्तेमाल करते है। यदि हम विभिन्न निजी मीडिया घरानों, जिनमें समाचार पत्र, टीवी समाचार चैनल और समाचार पोर्टल शामिल हैं, की स्वामित्व संरचनाओं के साथ-साथ उनके राजनीतिक जुड़ावों की बात करें तो यह नहीं कहा जा सकता है कि सूचना का प्रसार बिलकुल गैर-राजनीतिक या राजनीतिक रूप से असंबंधित है। कई समाचारपत्र, टीवी चैनल, पत्रिकाएं, एफ एम रेडियो चैनल और समाचार पोर्टल के साथ-साथ वेबसाइटें भी हैं जो राजनीतिक दलों से सीधे जुड़ी हुई हैं जहां वे अपने विधायकों और पार्टी के विचारकों के लेखन, बहस और बयानों के साथ अपने विचारों को बढ़ावा देते हैं।
‘नेशनल हेराल्ड’ कांग्रेस दल, ‘द ऑर्गनाइज़र’ और ‘पंचजन्य’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता दल की विचारधारा से प्रेरित, दक्षिण भारत में एआईएडीएमके सिद्धांतों पर आधारित ‘जया टीवी’, डीएमके के लिए ‘सन टीवी’ और ‘कलईग्नार टीवी’ ऐसे मीडिया हाउस के कुछ उदाहरण हैं जो विशेष राजनीतिक दल के प्रति प्रतिबद्ध हैं। आज प्रत्येक सरकार मीडिया के सभी साधनों को अपनी आवाज़ के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। यह कहा जाता है कि 2014 के बिहार विधानसभा चुनाव मुख्य रूप से व्हाट्सएप्प पर लड़े गए थे क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगभग 60,000 लोगों के समूह बनाए गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आप नेता अरविंद केजरीवाल सहित प्रमुख राजनीतिक नेताओं के ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे सामाजिक प्लेटफार्मों पर भारी संख्या में अनुयायी हैं। कभी-कभी उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मो पर अपने निर्वाचन क्षेत्र से विकास की समस्याओं से संबंधित शिकायतें को सुलझाने मे गंभीरता का परिचय देते हैं। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ और ‘हम फिट हैं तो इंडिया फिट’ दो उदाहरण हैं जहां कई विधायकों, फिल्म अभिनेताओं और विधायकों ने सोशल मीडिया माध्यमों के द्वारा अभियान में भाग लिया और दूसरों को इसमें भाग लेने के लिए प्रेरित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “नमो ऐप” राजनीति में मीडिया की बढ़ती ताकत का हालिया उदाहरण है। प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ आज हर भारतवासी सुन रहा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पहले की सरकारों की तुलना में डिजिटल प्लेटफार्मों पर बहुत सक्रिय है। सरकार ने जनता को सीधे जोड़ने और संवाद करने के लिए कई वेबसाइट लॉन्च की हैं जिसका प्रमुख उदाहरण www.mygov.in, www.pmindiawebcast .nic.in, www.pmindia.gov.inहै। ये वेबसाइट सरकार की नीतियों, पहलों को भाषणों, लेखों और वेबकास्टिंग के माध्यम से प्रसारित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मीडिया विधि निर्माण को कैसे प्रभावित करता है? -
How does media affect law-making
मीडिया एक महत्त्वपूर्ण दबाव समूह के रूप में कार्य करता है मीडिया दबाव समूहों के रूप में कुछ विशेष और गंभीर मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके सरकार पर दबाव डालती रहती है 2010-2011 में अरब दुनिया में प्रसिद्ध जैस्मिन क्रांति पूरी तरह से सोशल नेटवर्किंग साइटों पर निर्भर थी। इसमें ट्यूनीशिया में हुए सड़क प्रदर्शनों की एक शृंखला शामिल थी जिसने 2011 में लंबे समय तक राष्ट्रपति ज़ीन एल अबिडीन बेन अली को बाहर करने का नेतृत्व किया।7 भारत में नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में हमने नए मीडिया की ताकत देखी है देश के सभी हिस्सों में मीडिया की सक्रिय भूमिका के आह्वान पर लोगों के विरोध एवं दबाव ने सरकार को जनमानस के पक्ष और अपराध विरोधी एक्ट लाने के लिए मजबूर किया। हज़ारे द्वारा लोकपाल बिल के समर्थन और भ्रष्टाचार के विरोध में किए गए अनशन संबंधी आंदोलन से प्राप्त मीडिया कवरेज ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया। लोकपाल विधेयक को अन्ना का समर्थन जनता तक पहुंचा जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए जनमत बनाने में मदद की।8 जो कहीं न कहीं दिल्ली मे सत्ता पलटने मे भी परोक्ष रूप से जिम्मेदार रही। इसके अतिरिक्त ट्रिपल तलाक का मामला, महिलाओं के सबरीमाला मंदिर प्रवेश पर प्रतिबंध संबंधी मामला, महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध की दर से जनता का परिचय कराना, बाल श्रम, पर्यावरण के मुद्दे आदि पर आधारित अपने विभिन्न कार्यक्रमों व विभिन्न रिपोर्टों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों के बारे में लोगों को शिक्षित करके मीडिया ने एक तटस्थ मंच प्रदान किया है जहाँ जनता अपने राजनेताओं से उनके द्वारा की गई कार्रवाइयों के बारे बिना किसी दबाव के जुड़ सकती है। हाल के समय मे जो COVID -19 की वजह से, जो वैश्विक संकट उत्पन्न हुआ, उसमें अखबारों, रेडियो, टीवी, इंटरनेट ने सार्वजनिक मंचो पर जनता को सरकारी नीतियों से परिचित करने में योग दिया। 2008 के वैश्विक खाद्य संकट के बाद कीमतों में बढ़ोतरी के बारे में भारतीय मीडिया की कवरेज ने सरकार पर दबाव डाला कि वह गरीबों और कमजोर लोगों को कीमतों के झटके से बचाने के लिए लक्षित रणनीतियों और नीतियों को पेश करे।9 व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि(CTBT) पर हस्ताक्षर करने के मुद्दे पर, जो सभी प्रकार के परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध पर आधारित थी, भारत में राजनीतिक दलों के विचार विभाजित थे, खासकर जब समझौता परमाणु प्रसार संधि से जुड़ा हुआ था। भारतीय समाचार पत्रों ने संधि को अस्वीकार करने का आह्वान किया जिससे जनता ने भी महसूस किया कि संधि अनिवार्य रूप से भेदभावपूर्ण है और भारत की संप्रभुता के लिए खतरा है और इसलिए बहुमत का मानना था कि इस पर हस्ताक्षर नहीं किया जाना चाहिए। अंततः सरकार ने भी जनमत से प्रभावित होकर इस संधि को नकार दिया। मीडिया ने मौजूदा नीतियों पर बहस करने के लिए एक मंच प्रदान किया और महिलाओं के लिए और कड़े क़ानून बनाने के लिए केंद्र पर दबाव डाला। मथुरा के बलात्कार के मामले में बलात्कार क़ानूनों में संशोधन और बलात्कार में 'सहमति' की अवधारणा को पुन: परिभाषित किया।
भंवरी देवी बलात्कार मामले के दौरान लोगों के बीच व्यापक असंतोष की परिणति, ऐतिहासिक विशाखा फैसले में हुई जिसके तहत कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यौन-उत्पीड़न, संविधान में निहित मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 15 और 21) और कुछ मामले स्वतंत्रता के अधिकार(19)(1)(G) के उल्लंघन के तहत भी आते हैं। इन निर्देशों को ही 'विशाखा गाइडलाइन्स' के रूप में जाना जाता है। इसे विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान सरकार और भारत सरकार मामले के तौर पर भी जाना जाता है।10 सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइन्स के तहत कार्यस्थल के मालिक के लिए ये ज़िम्मेदारी सुनिश्चित की थी कि किसी भी महिला को कार्यस्थल पर बंधक जैसा महसूस न हो, उसे कोई धमकाए नहीं। साल 1997 से लेकर 2013 तक दफ़्तरों में विशाखा गाइडलाइन्स का पालन किया जाता था। अतः जब 2013 में 'सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट' आया जिसमें विशाखा गाइडलाइन्स के अनुरूप ही कार्यस्थल में महिलाओं के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए असमानता, अभद्रता और यौन उत्पीड़न से मुक्त कार्यस्थल बनाने का प्रावधान शामिल किया गया दिया। हाल ही में पेश किए गए ट्रांसजेंडर व्यक्ति(अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम मे जिसने, भारतीय संविधान के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए 'थर्ड जेंडर' के रूप में क़ानूनी मान्यता दिलाई, में मीडिया ने जनता और नीति निर्माताओं के बीच प्राथमिक माध्यम के रूप में कार्य किया और इस मुद्दे पर आम राय को सरकारी संस्थानों द्वारा वैधता प्रदान कराई है। एक अन्य घटना जिसने जनमानस को उद्वेलित कर दिया था वह थी केरल में एक गर्भवती हथिनी की, कुछ शरारती तत्त्वों द्वारा अन्नानास में पटाखे मिलाकर खिलाने के बाद हुई मृत्यु। मीडिया, विशेषकर सोशल मीडिया, ने जानवरों के अधिकारों पर कड़े क़ानून बनाने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की मांग की। कोरोना की प्रथम लहर में मीडिया द्वारा प्रवासी मजदूरों की विकट दुर्दशा की छवियों को प्रसारित किया गया जिसने सरकारों को श्रम क़ानूनों में सुधार करने के लिए प्रेरित किया है। मीडिया और क़ानूनों के सहजीवी संबंध को समझने के लिए 2012 का निर्भया बलात्कार कांड एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। दिल्ली के इस सामूहिक बलात्कार मामले ने महिला अपराधों पर केंद्रित मीडिया बहस को बड़े पैमाने पर जन्म दिया। 2012 के दिसंबर में एक छात्रा का सामूहिक बलात्कार किया गया और प्रताड़ित किया गया। अपराध की हिंसक प्रकृति ने इसे सनसनीखेज बनाने में मदद की जिसके परिणामस्वरूप व्यापक विरोध हुआ। इसने कई यौन उत्पीड़न कानूनों और कुख्यात आपराधिक कानून(संशोधन) अधिनियम 2013 सहित फास्ट ट्रैक अदालतों का निर्माण किया। इस अधिनियम ने बलात्कार और सहमति की परिभाषा का विस्तार किया, और भारतीय दंड संहिता में लिए नई धाराएं जिनके तहत, पीछा करने और एसिड अटैक को यौन अपराध घोषित कर दिया है।11 हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक पुलिस द्वारा एक अफ्रीकी-अमेरिकी, जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या का अमेरिका और विश्वभर की मशहूर हस्तियां द्वारा निंदा की गयी। इसने नस्लवाद के मुद्दे पर संयुक्त राज्य अमेरिका में अश्वेतों के साथ पुलिस की बर्बरता के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन को मीडिया द्वारा विश्वभर मे प्रसारित किया गया जिसने जनमानस को उद्वेलित कर दिया। अमेरिकी की ऐसी प्रथाओं की निंदा और विरोध की तरफ सबका ध्यान आकर्षित किया है जिसने न केवल जनमत को आकार देने में मदद की है बल्कि विरोध को गति भी दी है।12 ऐसे सभी उदाहरण संयुक्त रूप से दर्शाते हैं कि मीडिया ने जनमत निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। जनमत और कुछ नहीं बल्कि व्यक्तियों के विचारों, विचारों, विश्वासों और दृष्टिकोणों का एक समिश्रण है जो किसी विशेष विषय पर हो सकता है, जिसे समाज के तुलनात्मक रूप से महत्त्वपूर्ण वर्ग द्वारा आवाज दी जाती है।13 जनता को किसी प्रकार की राय बनाने में सक्षम बनाने के लिए जागरूकता पैदा करना मीडिया के हाथ में प्राथमिक कार्य है क्योंकि किसी विशेष मुद्दे पर एक राय बनाने के लिए यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि अंदर और आसपास क्या हो रहा है मानव स्वभाव ऐसा है जो अपने परिवेश के बारे में जानने के लिए उत्सुक बनाता है, सूचित होने की प्रवृत्ति, उन्हें जानकारी की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर रूप से सोचने के लिए प्रेरित करती है। समाचार चैनलों, इंटरनेट (सोशल मीडिया), समाचार पत्रों आदि सहित मास मीडिया के पास किसी मुद्दे पर लोगों के दृष्टिकोण को बदलने की शक्ति है, जनमत इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि जनता की राय की मदद से सरकार द्वारा कई नीतिगत निर्णय लिए जा सकते हैं। एक लोकतंत्र में, सरकारी नीतियां और कार्यक्रम जन-केंद्रित होते हैं और यह जानने के लिए कि क्या सरकार अपने कार्यों के माध्यम से जनता के बीच वांछित प्रभाव पैदा कर सकती है, मीडिया सरकार और जनता के बीच एक माध्यम के रूप में काम करता है। इसका कार्य लोगों को जानकारी प्रदान करना और इसके आधार पर राय बनाई जा सके। जनमत निर्माण द्वारा लोकतंत्र को मजबूत करने के साथ-साथ मीडिया सामाजिक परिवर्तन का भी एक उपकरण है।मी टू #, पैडमैन चैलेंज, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ, स्वच्छ शौचालयों के निर्माण और रखरखाव, स्वच्छ भारत, पानी की बचत और ईंधन की बचत, कोरोना काल मे मास्क और दो गज की दूरी जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा, मीडिया ने न केवल सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देने और कुछ हद तक महिला अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा की तरफ सरकार का ध्यान खींचने की भी सफल कोशिश की है। मीडिया किसी भी अन्य आपदा जैसी स्थितियों में ज़रूरतमंद लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए भी जिम्मेदार है। मीडिया प्रतिकूल आकस्मिकता के मामलों में हेल्प लाइन(कोरोना बीमारी के समय जब पूरा विश्व लॉकडाउन के तहत घरों में बंद था ऐसे समय मे रोहित सरदाना जैसे मीडियाकर्मी अपने कर्तव्यों को निभाते हुए मृत्यु के ग्रास बन गए) नंबर भी प्रदान करता है। केवल जनमत निर्माण के समय ही नहीं बल्कि संसद के सत्रों के दौरान बिलों पर होने वाली बहस का बाद मीडिया कई लिखित कॉलम और बहस(debate) के माध्यम से बिलों की कमी के बारे में प्रकाश डालती है जब क़ानून बनाए जा रहे हैं। क़ानून निर्माण के बाद मीडिया द्वारा क़ानून की सफलता दर की समीक्षा की जाती है। ये समीक्षाएं विशेष क़ानून के क्षेत्रों में अतिरिक्त विधायी हस्तक्षेप और उसके कार्यान्वयन को गति देने में सहायक होती हैं। मीडिया अपने सूचना के प्रवाह से लोगों की सोच को बदलने की क्षमता रखता है बाद में ये सोच ही वोट में परिवर्तित हो सकती है। चूंकि वोट राजनेताओं के लिए ऑक्सीजन का कार्य करती है इसलिए वे मीडिया के दबाव के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। इस प्रकार, प्रतिकूल मतदान के डर से राजनेता मीडिया द्वारा उठाए गए मुद्दों के माध्यम से लोगों की चिंताओं का क़ानून निर्माण करके जवाब देते हैं। अतः एक तरीके चुनाव की जवाबदेही को बनाए रखने के लिए मीडिया महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उनके जनता के विपरीत निर्णय चुनाव मे उन्हे शिकस्त दिला सकते हैं।
मीडिया के लिए स्व-नियमन के सिद्धांत -
(Principles of self-regulation for media)
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं इसीलिए जनमत को आकार देने में जनसंचार माध्यमों की भूमिका सकारात्मक भी हो सकती है और नकारात्मक भी। कभी-कभी मीडिया द्वारा पैदा किए गए विवाद अच्छे कारणों को गति देने में मदद कर सकते हैं जबकि कभी-कभी यह हानिकारक साबित हो सकते हैं। मीडिया का एजेंडा-सेटिंग सिद्धांत जनता कि राय को आकार देने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता हैपरंतु इस एजेंडा-सेटिंग सिद्धांत के दो पहलू हैं पहला, मीडिया वास्तविकता नहीं दिखाता है बल्कि वास्तविकता को प्रसारित करने से पहले वह अपने अनुसार फ़िल्टर और आकार देता है। दूसरा, यह आवश्यक नहीं है कि मीडिया वह सब कुछ तथ्यानुसार दिखाए बल्कि वह अपने अनुसार कुछ विषयों को ज्यादा महत्त्वपूर्ण मुद्दों के रूप में जनता के समक्ष रखकर उन्हें सोचने के लिए प्रेरित करता है।14 आलोचकों के अनुसार मीडिया अक्सर समाज में असभ्य और अवांछित प्रतिक्रियाओं को भी हवा देता है। उदाहरणस्वरूप सोशल नेटवर्किंग साइट्स जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर जब सरकार और न्यायपालिका के फैसलों पर प्रतिक्रिया देते है तो भले ही कोई आरोपी कोर्ट से बरी हो जाए लेकिन उस व्यक्ति को मिलने वाली सोशल बुलिंग मानसिक आघात का कारण बनती है जो किसी की भी प्रतिष्ठा को धूमिल कर सकती है। मीडिया कई बार लालच, भय, द्वेष, स्पर्द्धा, दुर्भावना एवं राजनीतिक कुचक्र के जाल में फंसकर अपनी भूमिका को कलंकित भी किया है। मीडिया के इस व्यवहार से समाज में अव्यवस्था और असंतुलन की स्थिति पैदा होती है। 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों को प्रभावित करने में रूसी एजेंसियों की भूमिका से पर्दा उठा जिसमें उन्होंने अमेरिकी नागरिकों के अकाउंट हैक करके हिलेरी क्लिंटन के ख़िलाफ़ प्रोपेगेंडा फैलाया जिससे इस पर बहस शुरू हुई कि क्या सोशल मीडिया लोकतंत्र के लिए एक ख़तरा है।15 किसी विषय की अत्यधिक कवरेज या संवेदनशील समाचारों का प्रचार कई बार साम्प्रदायिक दंगे भी करवा चुके हैं। इसलिए प्रेस को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अनेक सांविधानिक प्रावधान और संस्थाओं की आवश्यकता है जो मीडिया की सनसनीखेज प्रथाओं पर भी निगरानी रखती है ताकि अखंडता और नैतिक मानकों का बलिदान नहीं किया सके। इसलिए मीडिया की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए स्व-नियमन तंत्र आवश्यक हैं। ब्रिटिश शासन ने किसी भी विद्रोह और असंतोष को रोकने के लिये प्रेस को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878), आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (1923) और प्रेस(आपातकालीन शक्तियां) अधिनियम(1931) बनाए थे। यद्यपि भारतीय संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता को परिभाषित करने के लिए विशेष अधिनियम नहीं हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि अनुच्छेद 19(1)(A) प्रत्येक नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है, लेकिन यह भी "उचित प्रतिबंधों के अधीन है इसमें सभी मीडिया संगठन, चाहे प्रिंट, ऑडियो विजुअल, रेडियो या टीवी सभी को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने का प्रतिबंध लगाया गया। अनुच्छेद 361-A में प्रावधान है कि एक अखबार सार्वजनिक हित में सूचना के प्रसार का महत्त्वपूर्ण साधन है जो ‘जनता की भलाई’ की साथ जुड़ा है। इसलिए अखबार के प्रकाशक को दुर्भावना से काम नहीं करना चाहिए।16 अतः मीडिया की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए स्व-नियमन तंत्र आवश्यक है। भारत में सूचना और प्रसारण मंत्रालय(एमआईबी) सार्वजनिक और निजी टेलीविजन और रेडियो प्रसारण संबंधी नियमन तय करती है वहीं भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के नियम हैं जो भारत में प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करते हैं। सोशल मीडिया पर सरकार का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है, यह विद्रोह प्रभावित जम्मू और कश्मीर में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जहां राज्य-स्थानीय सरकार अक्सर विज्ञापन राजस्व रोककर मीडिया को नियंत्रित करती है।17 यदि मीडिया पर चीन की सरकार के नियंत्रण की बात करें तो वहाँ टेलीविजन से लेकर इंटरनेट तक, सरकार तय करती है कि उसके नागरिकों को क्या देखना चाहिए और क्या नहीं. चीनी लोग इंटरनेट पर अपनी मर्जी और पसंद के अनुसार पोस्ट करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, इससे भी बुरी बात यह है कि इसे उनके बोलने के अधिकार का उल्लंघन भी नहीं माना जाता है। भारत में आज जब हम मीडिया को नियंत्रित करने की बात कर रहे है। तो यह भी आवश्यक है कि मीडिया पर से भी अनावश्यक दबावों को कम किया जाए। मीडिया को लोकतंत्र का संचारक बनने के लिए प्रेस की स्वतंत्रता आवश्यक और अनिवार्य है, लेकिन इसे अक्सर कार्यपालिका द्वारा चुप करा दिया जाता है, विधायिका और न्यायपालिका द्वारा दबा दिया जाता है, दबाव समूहों द्वारा चुप करा दिया जाता है।18
निष्कर्ष :
लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में संसद और मीडिया ने साथ-साथ अपनी यात्रा पूरी की है। विधान निर्माता(संसद और विधायक) लोगों के साथ संवाद करने के साथ-साथ उन्हें अपनी विचारधाराओं से प्रभावित करने के लिए मीडिया का उपयोग व्यापक रूप से करते हैं। समाचार पत्र-पत्रिकाएं, रेडियो, टीवी, वेब पोर्टल, सोशल मीडिया ऐसे मंच हैं जहां विधान निर्माता अपने विचार व्यक्त करते हैं और इन्ही मंचों के माध्यम से जनता से प्रतिक्रिया भी प्राप्त करते हैं। मीडिया और विधान निर्माताओं के सहजीवी सम्बन्धों से इनकार नहीं किया जा सकता। मीडिया प्रशासनिक त्रुटियों को उजागर करने, शिकायत निवारण और लोगों की ज़रूरतों पर प्रकाश डालने का सबसे बेहतर साधन है। यह लोगों की प्राथमिकताओं को प्रिंट या इलेक्ट्रोनिक माध्यमों के द्वारा सरकार के समक्ष रखते रहते हैं जिससे विधायक और सांसद सतर्क रहते हैं वे मीडिया रिपोर्ट के आधार पर ही प्रश्नों, प्रस्तावों आदि द्वारा लोक महत्त्व वाले कई मामलो को सदन में उठाते हैं और कानून व नीति निर्माण की आधारभूमि तैयार करते हैं। संचार के प्रमुख साधन के रूप में मीडिया किसी भी देश की संस्कृति को प्रभावित करता है। यह सरकार के अन्य तीन अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य संतुलन और नियंत्रण रखकर यह सुनिश्चित करना है कि लोग अपने आसपास हो रहे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक गतिविधियों से अवगत रहे। इसलिए किसी भी देश में लोकतंत्र की सफलता स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के पर बहुत निर्भर करती है। अतः आज मीडिया एक तरफ जहां राजनीतिक गलियारों में जनता की आवाज़ का प्रतिनिधित्व करती है वहीं दूसरी तरफ रणनीतिक गतिविधियों से जनता को अवगत भी कराती है।
संदर्भ :
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- Sharma,mahima,Role of Media in Policymaking, October 6, 2020 https://www.lexquest.in/role-of-media-in-policymaking/Studyhave also revealed the determining influence of the media on foreign policy matters.
- आख़िर कब और कैसे अस्तित्व में आई विशाखा गाइडलाइन्स? 17 अक्तूबर2018,https://www.bbc.com/hindi/india-45875865).
- Halima
Zoha Ansari,Press And Policy: Can The Media Influence Policy-Making? https://feminisminindia.com/2020/11/04/press-and-policy-can-the-media-influence-policy-making/
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- Iain McLean and Alistair McMillan, 'The Concise Oxford Dictionary of Politics', 3rd ed., Oxford University Press, 2009
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- Basu, Durga Das, Law of the Press. Law of the Press. 2nd ed. New Delhi: Prentice-Hall of India Private Ltd. 1986.
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- Ankita Praveen Role of Media in Democracy and Good Governancehttps://www.lawctopus.com/academike/role-media-democracy-good-governance/Accededon 22 October 2021.
डॉ. सुनीता मंगला
एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीतिक विज्ञान विभाग
कालिंदी कॉलेज दिल्ली विश्वविधालय
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
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