बच्चों के मनोविज्ञान को प्रभावित करती बाल-पत्रिकाएँ
- सुशील कँवर राठौड़
शोध सार : बच्चों के बाल सुलभ मन को ध्यान में रखते हुए जो साहित्य लिखा जाता है वह बाल साहित्य कहलाता है।सरल शब्दों में कहूं तो जो साहित्य बच्चों के लिए लिखा जाता है। वही बाल साहित्य है। बच्चे राष्ट्र का भविष्य है और बाल साहित्य राष्ट्र की बहुमूल्य संपत्ति है। यह उच्च कोटि का सृजन कार्य है जिसके लिए असाधारण प्रतिभा की आवश्यकता होती है। चूँकिबालक स्वभाव से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है, वह अपने आसपास की प्रत्येक वस्तु व घटना के विषय में जानने के लिए जिज्ञासु रहता है। उसकी इस जिज्ञासा तथा उसकी मानसिक शक्ति को सही दिशा देने के लिए प्राचीन साहित्य में भी विधान था। पंचतंत्र, हितोपदेश, कथासरित्सागर और सिंहासन बत्तीसी जैसी रचनाओं के लेखकों के मन में निश्चित रूप से बालकों के व्यक्तित्व के विकास की रूपरेखा बनी होगी। रविंद्रनाथ टैगोर की मान्यता है कि बालक के कोमल, निर्मल और साफ मस्तिष्क को वैसे ही सहज तथा स्वाभाविक बाल साहित्य की आवश्यकता होती है।1 उसकी इस जिज्ञासा को तृप्त बाल साहित्य ही करता है, जिसमें बाल पत्रिकाओं का विशेष स्थान है। यह बाल पत्रिकाएं बच्चों के मनोभावों को दृष्टिगत रखते हुए विषय सामग्री प्रकाशित करती हैं। इनमें मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान वर्धन की सामग्री भी होती है। इनमें रोचक कहानियों के साथ-साथ पहेलियां, सवाल जवाब, शब्द पहेली, रंग भरो प्रतियोगी चित्र, रास्ता ढूंढो, चित्र पूरा करो आदि दिमागी कसरत के महत्वपूर्ण विषयों पर विषय सामग्री प्रकाशित की जाती है। जिनसे बच्चों का मानसिक विकास के साथ-साथ ज्ञान वर्धन भी होता है।
बीज शब्द : मनोविज्ञान, जिज्ञासु प्रवृत्ति, सृजनात्मकता, मनोरंजन, बौद्धिक विकास।
मूल आलेख : प्राचीन समय में बच्चों के मनोरंजन के लिए मां की लोरी, दादी-नानी की कहानियां थी। जिन्हें सुनकर
वे अपना मनोरंजन करते थे। जिसमें राजा-रानी की कहानियां, चिड़ी,
कौवे आदि जानवरों की कहानियां शामिल थी। इसके अतिरिक्त जैसा कि ऊपर
कहा जा चुका है पंचतंत्र की कहानियां, हितोपदेश, कथासरित्सागर और सिंहासन बत्तीसी जैसी रचनाएं भी बाल साहित्य का हिस्सा
थी। 1960के बाद बच्चों के लिए अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित होने
लगी। जिनमें बच्चों की रुचि एवं मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार
की विषय सामग्री प्रकाशित की जाती है। बच्चों का अपना अलग-अलग स्वभाव एवं मनोवृति
होती है। हर एक बच्चे की रुचि अलग-अलग होती है। उसी को ध्यान में रखते हुए यह
पत्रिकाएं परिकथाएं, पौराणिक कहानियां,
विज्ञान से संबंधित कहानियां, चुटकुले, पहेलियां, चित्र पूरा करो, रास्ता बताओ,
शब्द पहेली, रंग भरो आदि विषय सामग्री प्रस्तुत करती हैं ताकि हर बच्चा अपनी-अपनी
रूचि के अनुसार उस पत्रिका को पढ़कर आनंद उठा सके।
बाल साहित्य सामान्य साहित्य से भिन्न होता है। इसके सृजन में साहित्यकार बाल
मनोविज्ञान का ध्यान रखता है। क्योंकि बाल साहित्य का सृजन बच्चों के लिए
किया जाता है। जिसमें शाश्वत मूल्यों के साथ-साथ मनोरंजन का समावेश भी आवश्यक है।
डॉक्टर सुरेंद्र विक्रम तथा जवाहर इंदु ने कहा-"बाल मनोविज्ञान का अध्ययन किए
बिना कोई भी रचनाकार स्वस्थ एवं सार्थक बाल साहित्य का सृजन नहीं कर सकता। यह
बिल्कुल निर्विवाद सत्य है कि बच्चों के लिए साहित्य लिखना सबके बस की बात नहीं
है। बच्चों का साहित्य लिखने के लिए रचनाकार को स्वयं बच्चा बन जाना पड़ता है। यह
स्थिति तो बिल्कुल परकाया प्रवेश वाली है। "2
बाल साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान सोहनलाल द्विवेदी ने बाल साहित्य को स्पष्ट
करते हुए कहा है- "बाल साहित्य वही है जिसे बच्चा सरलता से अपना सके और भाव
ऐसे हो जो बच्चों के मन को भाए, यूं तो साहित्यकार बालकों के लिए लिखते रहते हैं किंतु सचमुच जो बालकों के
मन की बात बालकों की भाषा में लिख दे वही सफल बाल साहित्य लेखक है।"3
बच्चों के लिए हर चीज नई होती है इसलिए वह हमेशा प्रश्नों से घिरा रहता है। इन
प्रश्नों का जवाब परिवार, समाज और अपने आस-पड़ोस से प्राप्त करने की कोशिश करता
है। ऐसा अक्सर होता है कि वह अपनी समस्त जिज्ञासाओं का उत्तर नहीं खोज पाता तो ऐसे
में बाल पत्रिकाएं अहम भूमिका निभाती हैं। बाल पत्रिकाएं मनोविज्ञान के आधार पर
सुरुचिपूर्ण तरीके से ज्ञानवर्धक सामग्री को बच्चों के सामने पेश करती है। इसका
उद्देश्य ही सीखना या सीखने के लिए प्रेरित करना है। बाल पत्रिकाएं बच्चों को
सीखने और जानने के लिए मनोवैज्ञानिक वातावरण तैयार करती है। इन पत्रिकाओं का
उद्देश्य मुख्यतः मनोरंजन, ज्ञान और नैतिक मूल्यों की शिक्षा होता है। बाल
पत्रिकाओं में विद्यमान नवीनता, रोचकता एवं मनोरंजनात्मक शैली बालक की जिज्ञासा को
शांत करने में सहायक होती है।4
1960
के बाद हमारे देश में विभिन्न बाल पत्रिकाएं प्रकाशित होनी शुरू हुई
जो बच्चों में बहुत ही लोकप्रिय रही। 1960के बाद प्रकाशित
होने वाली पत्रिकाएं है- फुलवारी 1961, बाल दुनिया1961, बाल लोक1961, बेसिक बाल शिक्षा1961,बाल वाटिका 1962, रानी बिटिया 1962,शेरसखा1963,लंदन 1964,मिलन 1964,जंगल1965,बाल प्रभात 1966,बाल
जगत 1967,बच्चों का अखबार1967,बालकुंज 1968, चंपक 1968,नटखट1969,चंद्र
खिलौना 1969,बाल रंगभूमि 1970,मुन्ना 1970,गोलगप्पा 1970,बच्चे और हम 1972,चमाचम 1972,हंसती दुनिया 1973,गुड़िया
1973,मिलिंद 1973,बाल बंधु 1973,प्यारा बुलबुल 1974,लल्लू पंजू 1975,बाल रुचि 1975,देव छाया 1975,शिशु
रंग 1977,कलरव 1977,ओ राजा 1977,बाल पताका 1978,मुस्कुराते फूल 1978,बाल कल्पना 1979,मेला 1979,देवपुत्र
1979,बाल मन 1980,कुटकुट 1981,नन्हे तारे 1981,चंदन 1982,लल्लू
जगधर, 1982,सुमन सौरभ 1983,किलकारी1984,ओपन 1985,बालहंस 1986,नन्हे
सम्राट 1988,बाल मंत्र 1987,बाल मेला 1989,समझ झरोखा1989,बाल मिलाप 1998,बाल
प्रतिबिंब 2003,अभिनव बालमन 2009,बाल
प्रभा2012,बाल युग 2014,
उपर्युक्त बाल पत्रिकाओं में सभी का विवरण यहां दे पाना संभव नहीं है।
इसलिए मैं यहां कुछ बाल पत्रिकाओं का विवरण प्रस्तुत कर रही हूं जो बच्चों में
बहुत ज्यादा लोकप्रिय रही हैं।
नंदन- यह
पत्रिका 1964 से प्रकाशित हो रही है। इसकी शुरुआत पंडित
जवाहर नेहरू की स्मृति में हुई थी। इसका पहला ही अंक पंडित नेहरू को समर्पित था।
प्रमुख रूप से नंदन की कहानियों में पौराणिक कथाएं होती थी परंतु समय के साथ अपने
बाल पाठकों की रुचि को ध्यान में रख कर नंदन में समकालीन विषय एवं प्रसिद्ध जीवनियां
प्रकाशित करना शुरूकरदिया। आज तक नंदन में
10,000 से भी अधिक कहानियां प्रकाशित हो चुकीहैं। पत्रिका
में छपने वाली सुशील कालरा द्वारा बनाई गई कॉमिक चित्र कथा 'चिंटू
नीटू' काफी लोकप्रिय थी। इसमें राजा रानी, परी कथा, दंतकथा,पौराणिक
कथा से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान, रोबोट युग, डिजिटल वर्ल्ड की रचनाएं कहानी/कविता के माध्यम से
प्रस्तुत होती आई है। इसके स्तंभ में- पत्र मिला, आप कितने
बुद्धिमान है?, कहकहे, तेनालीराम, ज्ञान पहेली,नई पुस्तकें,
पुरस्कृत कथाएं ,पत्र मित्र आदि मिलते हैं। साथ में बाल
साहित्य समाचार पत्रिका जगत में बाल अखबार का एक नया प्रयोग है।
चित्र कथाएं-
डमरु और फैशन, चीकू, दादाजी और अंतरराष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे,
विशेष पृष्ठ- मजेदार विज्ञान, नन्ही कलम से। 7
लोटपोट- यह
हिंदी में प्रकाशित होने वाली एक लोकप्रिय बाल पत्रिका है। A-5, मायापुरी दिल्ली से
1969 से निरंतर प्रकाशित हो रही है। यह मुख्यतः कार्टून पत्रिका है लेकिन इसमें
कहानी, कविताएं आदि भी प्रकाशित होते हैं। मोटू, पतलू, घसीटा
आदि लोटपोट के लोकप्रिय व नियमित कार्टून चरित्र हैं। एक समय इसमें साबू व चाचा
चौधरी भी छपते थे किंतु 1982 के आसपास ये
चरित्र इसमें छपने बंद हो गए। इसी समय चिंपू व्वे मिनी चरित्र लोटपोट में
प्रकाशित होने लगे जो लगभग 25 साल तक इसमें लगातार छपते रहे। इन चरित्रों के
रचयिता काजल कुमार थे। इसके अलावा इसमें बिल्लू चरित्र भी छपता था।8
नन्हे सम्राट-
यह बच्चों के लिए प्रकाशित होने वाली एक मासिक पत्रिका है। इसके संपादक आनंद दीवान
है।
चिरैया- यह एक
मासिक पत्रिका है। बाल साहित्य में बाल पत्रिकाओं के योगदान को भुलाया नहीं जा
सकता। चिरैया पत्रिका के जून 2016 के अंक के समीक्षा करते हुए उमेश चंद्र
कहते हैं’’ कि मुझे चिरैया बाल पत्रिका का जून 2016 का अंक प्राप्त हुआ। पहली नजर
में यह पत्रिका दिल को छू गई। मुझे चिरैया टीम का बाल साहित्य का यह खजाना रोचक
लगा"। इस अंक में सात कहानियाँ,सात कविताएँ और विभिन्न विषयों की जानकारी
देते नो आलेख हैं। इस पत्रिका में ज्ञान विज्ञान की जानकारी बढ़ाने व भरपूर
मनोरंजन के साधन है। पत्रिका के संपादक बेला जैन अपने संपादकीय में बच्चों से
रूबरू होती है और पर्यावरण के
प्रति बच्चों को जागरूक करती हैं। फुहार कोलम में बच्चों के हंसने के लिए
सुंदर-सुंदर चुटकुले हैं जो बच्चों को हंसाने में सक्षम है। स्वास्थ्य जगत कोलम के
अंतर्गत बच्चों को मिले हेल्थी स्टार्ट, पठनीय और महत्वपूर्ण आलेख है। डॉ. शशि
गोयल की बाल कविता ' गुलगुली
सी चुहिया', बाल मन को सुनने वाला बाल गीत है। बद्री प्रसाद
वर्मा का अनजान की बाल कहानी, बादलों का गुस्सा मानव के लिए चेतावनी है व मानव को
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं । डॉ जय राम आनंद के बाल गीत 'बदला गुड़िया रानी' बेहद सुंदर व रोचक है। ज्ञान
विज्ञान की जानकारी के अंतर्गत ‘प्याज की आत्मकथा' जो बड़े
ही अनोखे अंदाज में प्रस्तुत की गई है। इस पत्रिका में एक विशेष कॉलम रखा गया है
जिसके अंतर्गत पंचतंत्र की कविता व कहानियों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया जाता
है। इस अंक में है ‘महामुनी और चुहिया' की प्रसिद्ध रोचक
कथाएं जो बच्चों के दिल को छूने वाली है। पक्षी जगत कॉलम में 'महोख और सैंड पाइपर' पक्षियों के बारे में जानकारी दी गई है। फूल चोर, सच्ची
जीत ,चक्कर टाइम टेबल का बहुत ही सुंदर और रोचक कहानियां है। मध्य प्रदेश में हुए
सिहस्थ कार्यक्रम की झलकियां भी इस अंक में दी गई है। बाल साहित्य लेखन में
विशिष्ट स्थान रखने वाले तथा बाल साहित्य के कुशल चितेरे परशुराम शुक्ल का सुंदर
बाल गीत' पर्यावरण बचाओ' बेहद सुंदर बन
पड़ा है। पहेलियां भी इस अंक में दी गई है। 10
सुमन सौरभ- यह
दिल्ली से प्रकाशित होती है। यह बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए प्रेरक प्रसंग, ज्ञानवर्धक
आलेख एवं कैरियर की पत्रिका है। यह 9 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बालकों के लिए है
। 11
अक्कड़
बक्कड़- नर्सरी और प्राइमरी स्कूल के बच्चों के लिए इस पत्रिका में प्राय: चित्र
कथाओं की बहुतायत रहती है। कहानियों में पंचतंत्र , पुराण कथा तथा जातक कथा के स्तंभ होते हैं। इसके साथ ही मैथ्स
कॉर्नर, रंग भरो, खेलो और सीखो जैसे कॉर्नर बाल रचनात्मकता को बढ़ाते हैं। यह
पत्रिका 3 वर्ष से लेकर 8 वर्ष तक के बच्चों के लिए है। 12
बाल वाणी-
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान,लखनऊ से प्रकाशित इस पत्रिका में ज्ञानवर्धक लेख,
कविताएं , कहानियां, ज्ञान विज्ञान ,नाटक बच्चों की कलम से, पुस्तक समीक्षा बच्चों
की तूलिका... हर चीजें हैं, वह भी किफायती कीमत में। यह बच्चों की एक संपूर्ण बाल
पत्रिका है। यह 9 वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक के बच्चों के लिए है। 13
चंदा मामा- यह
बच्चों की सबसे पुरानी पत्रिकाओं में से एक है। जो जुलाई 1947 से मद्रास से
प्रकाशित होकर बाल साहित्य का संवर्धन करती आ रही है। पहले इसमें जादुई कथा तथा
मिथक की प्रधानता हुआ करती थी। अब जूनियर चंदामामा के रूप में इसमें कथा चित्र,Riddles, puzzles, quizes... जैसी रचनात्मकताएं
आने लगी है। 14
बालभारती- यह
बाल पत्रिका भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा बच्चों के लिए प्रकाशित की जाती
है।15
बालहंस- यह
बाल पत्रिका राजस्थान पत्रिका द्वारा प्रकाशित की जाने वाली एक पाक्षिक पत्रिका
है। यह पत्रिका मुख्य रूप से 8 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बच्चों को ध्यान में
रखकर तैयार की जाती है। इसका मूल्य ₹10 है। अपने ज्ञानवर्धक, रोचक व
मनोरंजक सामग्री के कारण बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय पत्रिका है।
चकमक- यह
भोपाल से प्रकाशित होती है। 1985 से प्रकाशित इस पत्रिका में बच्चों के लिए लचीली
व जीवंत भाषा में साहित्य एवं विज्ञान विषय के अलावा कला के विभिन्न विषयों पर
सामग्री प्रस्तुत की जाती है। बच्चों के लिए वर्जित विषयों को बच्चों तक कैसे
पहुंचाया जाए यह भी चकमक को बखूबी आता है।
बाल किलकारी-
यह बच्चों की मासिक पत्रिका है। इसके संपादक शिवदयाल हैं। जून 2020 के अंक के
अनुसार इसके स्तंभ निम्नानुसार हैं- चिट्ठी पत्री, संपादकीय , कार्टून का पन्ना, कविताएं- बगुलों का दल, साफ
सफाई,तालाबंदी, फल की उदासी,मुझे सिखाती मेरी नानी, जीवन की रीत , आज को संवारो ,
मीठी बोली
कहानी- जाल
कोरोना से डरो ना ,स्वार्थी दानव,राधिका मौसी, तू डाल-डाल मैं पात-पात
एकांकी-
संवेदना- भगवती प्रसाद द्विवेदी
भाषा- वाक्य प्रयोग
द्वारा लिंग निर्णय
बाल उपन्यास-
परियों का पेड़
सम्मान- नोबेल
पुरस्कार- रामकरण
रोचक जानकारी
- लेखन का विकास, सुनामी, सुरंग
तुम्हारी रचना
कविता- मुझे
सिखाती मेरी नानी।16
पायस- यह एक ऑनलाइन
बाल पत्रिका है। इसकी शुरुआत जनवरी 2021 से हुई। इसके संपादक वहजनक अनिल कुमार जायसवाल
हैं। यह एक मासिक पत्रिका है। पायस के प्रवेश अंक में गणतंत्र दिवस को ध्यान में रखते
हुए जानकारी जुटाई गई है। इस अंक में समीर गांगुली की कहानी ‘नया साल
नई सुबह’ प्रकाशित हुई है। वरिष्ठ कथाकार एवं कवि देवेंद्र कुमार की कहानी ‘खुल गए
ताले पायल से’ प्रवेशांक में शामिल है। दिविकरमेश की कविता ‘मेरी सर्दी मेरा गीत’ इस
अंक में शामिल है। कविता का अंत बड़ा ही मार्मिक व यथार्थवादी है।17
टाबर टोली- यह
बाल पत्रिका 14 नवंबर 2003 से हनुमानगढ़ से प्रकाशित होती है इसे हम बच्चों का
अखबार भी कह सकते हैं। यह पाक्षिक है। इसके संपादक दीनदयाल शर्मा है जो कि स्वयं
बाल साहित्यकार है।इन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा राजस्थानी ‘बाल पणे री बातां’ पर राजस्थानी
बाल साहित्य का राष्ट्रीय पुरस्कार सन्2012 में मिला । इसके
अतिरिक्त राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर से डॉक्टर शंभू दयाल सक्सेना पुरस्कार
चिंटू पिंटू की सूझ पर1988में मिला। 1998 में राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर से जवाहरलाल
नेहरू बाल साहित्य पुरस्कार ‘शंखेसर रा सींग' परमिला। इनकी बाल साहित्य पर अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें चन्द्र
री चतराई ,टाबर टोली,शंखेसररा सींग,परीक्षा( बाल नाटक) तू काईं बणसी( बाल एकांकी)
चिंटू पिंटू की सूझ, पापाझूठ नहीं बोलते( बाल कथाएं), फैसला(
बाल नाटक), कर दो बस्ता हल्का( बाल काव्य) आदी इनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं। 18
इन उपर्युक्त पत्रिकाओं के अतिरिक्त भी कुछ लीक से हटकर बाल पत्रिकाएं
प्रकाशित हो रही है - जैसे जुगनू ,बालक नामा- यह दिल्ली की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों द्वारा लिखित
एवं चेतना एनजीओ द्वारा संचालित त्रैमासिक पत्रिका है। इसे सड़क एवं कामकाजी
बच्चों का अखबार भी कहते हैं।19
इन बाल पत्रिकाओं के अलावा दैनिक समाचार पत्र जैसे राजस्थान पत्रिका, दैनिक
भास्कर आदि में एक पृष्ठ बच्चों के लिए पठनीय सामग्री प्रकाशित करते हैं जिनमें
बच्चों के लिए कहानी, शब्द पहेली, प्रश्नोत्तरी , अधूरा चित्र पूरा करो, रास्ता
ढूंढो ,रंग भरो, सुडोकू, पहेलियां आदि विषयों पर सामग्री प्रकाशित की जाती है।
जिसके द्वारा बच्चों में सृजनात्मकता का विकास होता है। इस प्रकार दैनिक समाचार
पत्र भी बच्चों के लिए पठनीय सामग्री प्रकाशित कर उनका स्वस्थ मनोरंजन व उनके
मानसिक व बौद्धिक विकास में अपना सहयोग देते हैं।
बाल साहित्य बाल मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर लिखा जाता है। बाल मनोविज्ञान
अर्थात बच्चों के मन का विज्ञान । जो
बच्चों की आयु, उनकी मानसिक अवस्था एवं उनकी रुचि को ध्यान में रखकर लिखा जाता है।
बाल्यावस्था में बच्चे अपने आस पड़ोस की चीजों से परिचित होते हैं। उन्हें निरर्थक
कार्य करना पसंद आता है। चीजों को तोड़ना-फोड़ना, बिखेरनाआदि। अरस्तु का मत है कि
बच्चों की क्रियाएं कम की जा सकती है यदि उन्हें जिज्ञासा शांत करने वाली कहानियां
सुनाई जाएं।
बच्चों के घर के आस-पास पालतू जानवर, चिड़िया, कौवे आदि प्रिय बन जाते हैं।
अतः उन्हें उन्हीं की कहानियां पसंद आती हैं। चंदा मामा सभी बच्चों के प्यारे हैं
रोज आसमान में टिमटिमाने वाले तारे व चंदा मामा की कहानियां उन्हें पसंद आती है।
इसीलिए ये बाल पत्रिकाएं ही बच्चों के लिए
उनके पसंदीदा विषयों जैसे चिड़ी,कौवा, कुत्ता, बिल्ली, भालू, हाथी, शेर आदि की
कहानियां प्रकाशित करती हैं। इन्हीं से संबंधित कविताएं ऐसे में हाथी राजा, चूचू
चूहा बोला, चिड़िया रानी आदि पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। बच्चों के बाल मन में
उठने वाली जिज्ञासाओं का समाधान विभिन्न स्तंभों
के माध्यम से करती है। ये बाल पत्रिकाएं बाल मन को आकर्षित तो करती ही है
साथ ही बच्चों का स्वस्थ मनोरंजन एवं उनका मानसिक व बौद्धिक विकास भी करती हैं।
इनके द्वारा बच्चों में विभिन्न प्रकार की क्रियाएं करके रचनात्मकता का विकास होता
है। बाल पत्रिका में प्रकाशित कहानियों को पढ़कर बच्चा उन पात्रों के साथ काल्पनिक
व जादुई दुनिया में कल्पना के पंख लगा कर सैर
करता है व आनंदित होता है। विभिन्न विषयों पर प्रकाशित लेखों को पढ़कर
स्वयं अपने प्रश्नों का जवाब ढूंढने की कोशिश करता है जैसे - ऐसा क्यों है? इसके
पीछे कारण क्या है आदि। उसके अंदर सवाल जवाब करने की प्रवृत्ति का आविर्भाव होता
है।
चूंकि आज का युग डिजिटल युग है। आज हर घर में टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर आदि
उपलब्ध है । इसलिए आज के बच्चे अपना मनोरंजन टीवी या मोबाइल फोन पर गेम खेल कर
करते हैं। जिससे आज बाल पत्रिकाओं का पाठक वर्ग बहुत कम हो गया है।
जिसके कारण कई पत्रिकाएं छपना ही बंद हो गई है। टीवी, मोबाइल भले ही आज के
समय में ज्यादा लोकप्रिय हो लेकिन जो स्वस्थ मनोरंजन पत्रिकाएं करती हैं वह
मनोरंजन टीवी में मोबाइल नहीं कर सकते। इनसे बच्चों का न तो स्वस्थ मनोरंजन ही होता है अपितु स्वास्थ्य
के लिए भी हानि प्रद है। जबकि बाल पत्रिकाएं बच्चों का स्वस्थ मनोरंजन तो
करती ही है साथ ही बच्चों का मानसिक व बौद्धिक विकासभी करती है ।
निष्कर्ष : आज
के इस भौतिकतावादी युग में मनोरंजन के यांत्रिक साधन ज्यादा लोकप्रिय हैं। जिसमें
मोबाइल, कंप्यूटर व टीवी आदि माध्यमों से बच्चे अपना मनोरंजन करते हैं। आज के समय
में अभिभावकों के पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय नहीं होने के कारण बच्चे भी
मोबाइल फोन में कार्टून गेम्स देखकर अपना समय व्यतीत करते हैं। मनोरंजन ये के साधन न
तो स्वस्थ मनोरंजन करते हैं अपितु बच्चों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक
हैं। इनके कारण बच्चों में तनाव, अवसाद व कुंठा जैसी विकृतियां उत्पन्न हो रही हैं।
बच्चों से उनका बचपन छिनता जा रहा है। ऐसे में अभिभावकों का कर्तव्य है कि
वे बच्चों को स्वस्थ मनोरंजन का साधन बाल पत्रिकाएं पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
बाल पत्रिकाएं न केवल स्वस्थ मनोरंजन करती हैं अपितु बच्चों का मानसिक व बौद्धिक
विकास भी करती हैं एवं उनमें रचनात्मकता की प्रवृत्ति का विकास करती हैं।
सन्दर्भ :
1.
डॉ. उर्वशी कुमारी
: बालकों के विकास में वाल-पत्रिकाओं का योगदान, अपनी माटी, जुलाई 2021 पृ० सं. 01
2.
वही, पृष्ठ सं. 02
3.
वही.पृष्ठ सं. 02
4.
पूजा तिवारी : बाल पत्रिका:
स्वरूप परिवर्तन की आवश्यकता, साहित्यशाला
5.
https://hi union
pedia.org
6.
https://www.wikiwand.com
7.
चंपक - संपादक
परेशनाथ, अगस्त प्रथम 2001 का अंक
9.
देवेन्द्र कुमार ‘देवेश’
: बाल पत्रिकाओं की भूमिका और दायित्व, अभिव्यक्ति पत्रिका
10.
htt://www.rachnakar.org
उमेश चंद्र सिरसवारी: बाल साहित्य में बाल पत्रिकाओं का योगदान भुलाया नहीं जा सकता
11.
डॉ. निकेश कुमार :
बाल साहित्य स्वरूप एवं विकास, पृष्ठ सं.169
12.
वही, पृष्ठ सं.169
13.
वही,
पृष्ठ सं.169
14.
वही,पृष्ठ
सं. 170
15.
देवेन्द्र
कुमार ‘देवेश’ :बाल पत्रिकाओं की भूमिका और दायित्व, अभिव्यक्ति पत्रिका
16.
बाल
किलकारी : पत्रिका का जून 2020 का अंक MHAS:
I Samvedna prakashan.com
17.
पायस
: जनवरी 2021 का अंक
18.
दीन
दयाल शर्मा : ‘मित्र की मदद’,बोधि प्रकाशन, जयपुर ISBN: 978-93-86253-101
19.
टावरटोली
: संपादकदीनदयालशर्मा 16-31 अक्टूबर 2021 काअंक
20.
डॉ.
निकेशकुमार, बाल साहित्य
स्वरूप एवं विकास पृष्ठ. सं. 172
सुशील कँवर राठौड़
वार्ड न. 20 देगाबास तारानगर
sushilkunwarrathore.aph@gmail.com, 8875524445
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
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