शोध
आलेख : दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के जीवन में मीडिया माध्यमों की भूमिका का
अध्ययन
(भोपाल शहर के विशेष संदर्भ में )
-
प्रज्ञा
गुप्ता एवं डॉ. मनीषकांत जैन
शोध सार
: वर्तमान परिपेक्ष्य में मीडिया का
प्रभाव इतना बढ़ गया है कि समाज का प्रत्येक वर्ग इससे प्रभावित है। ऐसे में
दृष्टिबाधित व्यक्ति भी इससे अछूते नहीं हैं। ब्रेल लिपी के आविष्कार से
दृष्टिबाधित व्यक्तियों का शैक्षणिक एवं आर्थिक स्तर तो बढ़ा है साथ ही इनको
दुनिया से जुड़े रहने व मनोरंजन के क्षेत्र में वृद्धि के लिए आकाशवाणी ने तो
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ही है किंतु वर्तमान समय में मीडियामाध्यमों की व्यापकता
से इनको कितना सहयोग मिल रहा है, यह जानना जरूरी है। मीडिया का प्रभाव विशेषकर युवा वर्ग में देखने
को मिलता है, जो अपने कैरियर और भविष्य को लेकर नई दिशा व दशा प्रदान करने के
लिए इन माध्यमों को अपना सलाहकार मानते हैं। युवाओं को नई दिशा प्रदान करने की बात
आती है तो, यह जानना जरूरी है कि यह दृष्टिबाधित विद्यार्थियों को किस तरह प्रेरित
करता है। इसलिए प्रस्तुत शोध में दृष्टिबाधित विद्यार्थियों से अनुसूची के माध्यम
से उनके मीडिया आदतों को जानने का प्रयास किया गया है।
बीज शब्द - दृष्टिबाधित, मीडिया,
मीडिया माध्यम, मीडिया आदत।
मूल आलेख : जितना मानव और उसकी सभ्यता पुरानी है, उतनी ही संचार की संकल्पना।
मानव ही क्यों विश्व के सभी जीव-जंतु अलग-अलग तरह से संचार करते हैं। एक समय ऐसा
था, जब मौखिक शब्दों के उपयोग से लोग अपरिचित थे। ऐसा पूर्वानुमान लगाया जाता है
कि तब संचार के लिए लोग शोर मचाकर, ढोल की आवाज, विभिन्न संकेतों, इशारों व
मुद्राओं आदि के द्वारा अपने विचारों का
आदान- प्रदान किया करते होंगे।प्राचीन काल से संचार के विकास का यह सिलसिला जो चला
आ रहा है कभी रूका नहीं है और न ही कभी रूकेगा। यह सृष्टि का सिध्दांत है। संचार
मानव-समाज का आधार है अगर ये कहा जाए कि संचार मानव-जीवन का पर्याय है तो
कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मीडिया संचार का एक सशक्त माध्यम है और इसी संचार ने
मीडिया को जन्म दिया है। मीडिया हमेशा से ही एक ऐसा माध्यम रहा है, जिसके द्वारा
सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। आरम्भ से ही इसका प्राथमिक उद्देश्य सूचना
देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना है। यह अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों
के कारण व्यक्ति और समाज के जीवन की गहराई की अनुभूति कराता है। जनता को शिक्षित
करने से लेकर किसी घटना, परिघटना की वास्तविकता से अवगत कराने का काम मीडिया ने किया है।
यही कारण है कि आज मीडिया से जुड़े रहना लोगों की आदत बन गयी है।
मीडिया
माध्यम से आशय है संदेश के प्रवाह में प्रयुक्त किए जाने वाले माध्यम और ये माध्यम
है प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और न्यू मीडिया। मीडिया माध्यमों के विकास के पीछे
मुख्य कारण है तकनीकी विकास साथ ही मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना। वर्तमान
समय में इन माध्यमों से समाज का गहरा संबंध एवं निकटता है। इसके द्वारा जन सामान्य
की रूचि एवं हितों को स्पष्ट किया जाता है। मीडिया माध्यमों ने ही सूचना, शिक्षा एवं मनोरंजन को सर्वसुलभ कराया है। उपरोक्त माध्यम मानव
सभ्यता के विकास का परिचायक है। इनकी अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। मीडिया माध्यम आज
के दौर में नए समाज की संरचना की एक नयी परिभाषा लिख रहे है। ये जन माध्यम आम जनता
की आवश्यकता बन चुकी है और इन्हीं आवश्यकताओं के कारण आदतों का निर्माण होता है।
मीडिया आदतों को कई प्रकार के मीडिया माध्यमों,
उनकी प्राथमिकता, पसंद और रूचि के उपयोग के आधार पर देखा जा सकता
है। दृष्टिहीन व्यक्तियों के मीडिया संबंधी आदतों में वर्तमान समय में कोई
परिवर्तन आया है कि नहीं, यदि आया है तो किस प्रकार के माध्यमों में उनकी दिलचस्पी बढ़ी है, इन्ही सभी सवालों के जवाब इस अध्ययन के माध्यम से जानने के प्रयास
किए गए है।
साहित्य समीक्षा -
अरदा उस्लु,
पिनार सरिसराय-बोलुकी (2020).फेसबुक
के उपयोग के बारे में एक केस स्टडी,एंराइडका उपयोग दृष्टिबाधित लोगों के
लिएप्लेटफार्म,अंतर्राष्ट्रीय
सम्मेलन इंटरफेस और मानव कंप्यूटर इंटरैक्शन.
वर्तमान में सोशल मीडिया का उपयोग हमारे जीवन
में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें दृष्टिबाधित भी भाग ले सकते हैं। इस
पेपर में,
फेसबुक पर दृष्टिबाधित के सामने आने वाली समस्याओं और अंतःक्रियाओं का पता लगाने
की कोशिशपहले से तैयार किए गए कार्यों की मदद से की गई। शोधकर्ताओं ने प्रतिभागी
को आवश्यक चरणों को पार करने में मदद की,यदि प्रतिभागी को कोई समस्या आती है तो,
इन पूर्व निर्धारित कार्यों को पूरा करें। पहले कारक के अनुसार,जिम्मेदार
बिंदुओं के संदर्भ में प्रदर्शित किया गया। दूसरे,
कार्य
को पूरा करने के लिए आवश्यक समय की जाँच की जाती है। तीसराकारक यह है कि क्या
प्रतिभागी इसे पहले से जानता था या नहीं। परिणामस्वरूप,
प्रयोज्यता
और अभिगम्यता के संदर्भ में निष्कर्षजैसी बात हुई। इसलिए,यह
पता लगाने की कोशिश की कि इन मुद्दों के समाधान के लिए क्या किया जा सकता है।
सौम्या थंकम वर्गीस,
डॉ. माया रत्नासबपति
(2018).भारत में अंधापन और सोशल मीडिया,
इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के
अंतर्राष्ट्रीय जर्नल. इस
अध्ययन में लेखक ने सोशल मीडिया और दृष्टिबाधित लोगों के बारे में बखुबी से
विस्तार करते हुए समझाया है। वर्तमान दुनिया में,
सोशल
नेटवर्किंग साइट्स व्यक्तिगत रूप से संवाद करने,
सहयोग
करने और सामाजिकरण करने के लिए एक महान मंच प्रदान करती हैं,पेशेवर रूप से हमारे
आसपास की दुनिया के साथ। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार,
नेत्रहीन
लोग एक महत्वपूर्ण समूह हैं, जिसमें
पूरी तरह से 45
मिलियन शामिल हैंअंधे और 285
मिलियन आंशिक रूप से अंधे। यह पेपर भारत में और बाहर नेत्रहीन लोगों द्वारा सोशल
मीडिया के गैर (उपयोग) पर अध्ययन की समीक्षा करता है। यहपिछले शोध के आधार पर
सामाजिक नेटवर्क साइटों के संबंध में दृष्टिहीन लोगों की बाधाओं,
उपलब्धियों
और अपेक्षाओं की जांच करता है।
आरती भट्ट
((2017). उत्तराखंड में
महिलाओं की मीडिया आदतों का अध्ययन. शोधकर्ता ने
अपने शोध उत्तराखंड में महिलाओं की मीडिया आदतों का अध्ययन में अध्याय तीन में
मीडिया आदत के स्वरूप, परिभाषा
एवं उत्पत्ति का विस्तृत वर्णन किया है। साथ ही मीडिया आदत को प्रभावित करने वाले
कारकों का वर्णन भी शामिल है। इस अध्याय में मीडिया माध्यमों के बारे तथा इन
माध्यमों के उपयोग व लोगों द्वारा इनकी उपयोगिता को बताया गया है। मीडिया आदत को
कई दृष्टिकोण से समझाया गया है। यह भी अच्छे से बताया गया है कि समय के अनुसार लोगों
की मीडिया आदतें भी बदलती रहती हैं। यह अध्याय मीडिया आदत को समझने में काफी
मददगार है।
सुषमा बत्रा (1981), सोशल इंटररेक्शन ऑफ
दी ब्लाइण्ड विद दि नॉर्मल परसन. लेखिका
सुषमा बत्रा ने अपनी पुस्तक सोशल इंटररेक्शन ऑफ दी ब्लाइण्ड विद दि नॉर्मल परसन, में उन कारकों का पता लगाया है जो, नेत्रहीनों के समाज के साथ
एकीकरण पर असर डालते हैं चाहे वे शैक्षिक हो,
आर्थिक हो या रोजगार संबंधित हो। उनके तथ्य बताते हैं कि
व्यक्तियों का नेत्रहीनों के प्रति व्यवहार संतोषजनक नहीं है। नेत्रहीनों की
अक्षमता केवल शारीरिक नहीं है, उन्हें सबसे अधिक कठिनाई सामान्य दृष्टिवान व्यक्तियों से एकीकरण
में उत्पन्न होती है, जिसका
कारण अज्ञानता है किंतु लेखिका को आशा है कि सामान्य व्यक्ति नेत्रहीनों के संसर्ग
में आएंगे तो सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न होंगे।
शोध का उद्देश्य
·
दृष्टिबाधित
विद्यार्थियों में मीडिया माध्यम की प्राथमिकता को जानना।
·
दृष्टिबाधित
विद्यार्थियों के मीडिया के उपयोग एवं आदतों का अध्ययन।
·
दृष्टिबाधित
विद्यार्थियों के जीवन को बेहतर बनाने में मीडिया की भूमिका का अध्ययन।
शोध प्रविधि
प्रस्तुत शोध अन्वेषणात्मक
अनुसंधान प्ररचना एवं विश्लेषणात्मक अनुसंधान पर आधारित है। शोध में उद्देश्यपूर्ण निदर्शन का उपयोग किया गया है जो, कि
असंभावित निदर्शन तकनीक के अंतर्गत आता है। शोधार्थी द्वारा अपने शोध विषय के
उद्देश्य को लेकर उत्तरदाताओं का चयन किया गया। उत्तरदाताओं में हायर सेकेंडरी व
उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों को लिया गया है,जिसमें बालक छात्रावास नीलबड़, मोहनी गर्ल्स एवं बॉयज हॉस्टल इंद्रपुरी एवं आईटीआई गोविंदपुरा के
दृष्टिबाधित विद्यार्थियों का चयन किया गया।इन सभी जगहों से हमें केवल 40 विद्यार्थीही मिले जो इस शोध के
निदर्शन हैं। शोध
अध्ययन में आकड़ों के संकलन के लिए संरचितअनुसूची का इस्तेमाल करके गुणात्मक एवं
संख्यात्मक आकड़ों को संग्रहीत किया गया है।
आकड़ोंकाविश्लेषणएवं
प्रस्तुतीकरण
शोधार्थी
द्वारा सभी दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के लिए एक ही अनुसूची का प्रयोग किया गया
है। अनुसूची में कुल 13 प्रश्नों का प्रयोग किया गया है, जिसमें प्रश्नसंख्या-1,2,3,4,5,6,9(i),11 बंदप्रश्नावलीहै एवंप्रश्न
7,8,9(ii).10,12,13 खुली प्रश्नावली है। उत्तरदाताओं से प्राप्त आकड़ोंकाशोधार्थीद्वाराविश्लेषण
किया गया है, जो इसप्रकारहै-
प्र.1 आप किस मीडिया माध्यम
का उपयोग सबसे अधिक करते हैं ?
विश्लेषण-उपरोक्त
आकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि 65 प्रतिशत ऐसे दृष्टिबाधित विद्यार्थियों हैं, जो डिजीटल मीडिया का
सबसे अधिक उपयोग करते हैं वहीं 23 प्रतिशत विद्यार्थी रेडियों का उपयोग अधिक करते हैं, जबकि न्यूज पेपर व टेलीविजन उपयोग करने वाले विद्यार्थियों की
संख्या लगभग समान है, जो कि इस मीडिया का कम उपयोग करते हैं।
प्र.2 आपके द्वारा उपयोग
किए जाने वाले मीडिया माध्यम का इस्तेमाल आप किस तकनीक से करते हैं?
विश्लेषण-उपरोक्त
आकड़ों से ज्ञात होता है कि 7 प्रतिशत दृष्टिबाधित विद्यार्थी ब्रेल लिपि की मदद लेते हैं जबकि 58 प्रतिशत विद्यार्थी अन्य तकनीक का
इस्तेमाल करके स्वयं इन माध्यमों का उपयोग करते हैं, वहींकेवल 10 प्रतिशत लोग अपने सहयोगी की मदद
लेते हैं। अतः यह देखा जा सकता है कि इनकी निर्भरता दूसरों पर कम होने लगी है और
ये न्यूज पेपर व मैगजीन का उपयोग कम करते हैं।
प्र.3 आपउपयुक्त मीडिया
माध्यम का उपयोग किस समय अधिक करते हैं?
विश्लेषण-तथ्यों
के आधार पर कहा जा सकता है कि 63 प्रतिशत दृष्टिबाधित विद्यार्थी अपनी सुविधा के अनुसार इन माध्यमों
का उपयोग करते हैं। केवल कुछ ही विद्यार्थी ऐसे हैं, जो सुबह व शाम को ही इसके
उपयोग को प्राथमिकता देते हैं, जबकि 10 प्रतिशत विद्यार्थी रात में समय मिलने पर इन माध्यम का उपयोग कर
पाते हैं।
प्र.4 निम्न मीडिया
माध्यमों पर आप कितने निर्भर हैं?
विश्लेषण-उपरोक्त
आकड़ों के अनुसार 55 प्रतिशत ऐसे विद्यार्थी हैं, जो न्यूज पेपर मैगजीन पर बहुत कम
निर्भर रहते हैं वहीं डिजीटल मीडिया पर निर्भर रहने वाले विद्यार्थियों का प्रतिशत
सबसे अधिक है जो कि 75 प्रतिशत है। जबकि रेडियो पर 37 प्रतिशत विद्यार्थी अधिक
निर्भर है जो कि टेलीविजन की तुलना में बहुत ज्यादा है। इस प्रकार आकड़ों के आधार
पर कहा जा सकता है कि डिजीटल मीडिया पर विद्यार्थियों की निर्भरता सबसे अधिक व
टेलीविजन और न्यूज पेपर मैगजीन पर निर्भरता सबसे कम है।
प्र.5 आप एक दिन में कितने
घंटे मीडिया माध्यम का उपयोग करते हैं?
विश्लेषण-उपरोक्त
तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि न्यूज पेपर मैगजीन व टेलीविजन का उपयोग
दृष्टिबाधित विद्यार्थियों द्वारा बहुत ही कम किया जाता है। परंतु वहीं पर डिजीटल
मीडिया के उपयोग को 75 प्रतिशत विद्यार्थी प्राथमिकता देते हैं। साथ ही डिजीटल
मीडिया का 1 से कम घंटे उपयोग करने वाले विद्यार्थी केवल 5 प्रतिशत ही है। यह भी
देखा जा सकता है कि 3 घंटे से अधिक केवल रेडियो व डिजीटल मीडिया का उपयोग किया
जाता है, जबकि बिल्कुल नहीं में न्यूज पेपर का स्थान सबसे अधिक है।
प्र. 6 आप मीडिया माध्यम का
उपयोग करते समय किस तरह की विषय वस्तु को प्राथमिकता देते हैं?
विश्लेषण-आकड़ों
से ज्ञात होता है कि दृष्टिबाधित विद्यार्थी न केवल शिक्षा व मनोरंजन के लिए इन
माध्यमों का उपयोग करते हैं बल्कि यह सभी तरह की विषय-वस्तु को जानने के जिज्ञासु
होते हैं। 95 प्रतिशत विद्यार्थी सभी तरह की
विषय-वस्तु को प्राथमिकता देते हैं, वहीं केवल 5
प्रतिशत विद्यार्थी ही शिक्षा संबंधी जानकारी को ही प्राथमिकता
देते हैं। इस तरह से इन माध्यमों में उपलब्ध सभी प्रकार की विषय-वस्तु का लाभ
दृष्टिबाधित विद्यार्थी लेते हैं।
प्र. 9 (i) क्या आप सोशल मीडिया
का उपयोग करते हैं?
विश्लेषण-प्राप्त
आकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि अधिकतर दृष्टिबाधित विद्यार्थी सोशल मीडिया
का उपयोग करते हैं। केवल 8 प्रतिशत विद्यार्थी ऐसे हैं, जो सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करते
हैं जबकि 92 प्रतिशत विद्यार्थियों का सोशल
मीडिया अकाउंट है और वे इसका इस्तेमाल करते हैं।
प्र.11 आपके जीवन में मीडिया
की कितनी भूमिका है?
विश्लेषण-52
प्रतिशत दृष्टिबाधित विद्यार्थियों का मानना है कि उनके जीवन में
मीडिया की बहुत अधिक भूमिका है जबकि 48 प्रतिशत विद्यार्थी मीडिया की भूमिका को अपने जीवन में अधिक मानते
हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि शतप्रतिशत दृष्टिबाधित विद्यार्थी अपने जीवन में
मीडिया की भूमिका को अह्म मानते हैं। कोई भी दृष्टियाधित विद्यार्थी मीडिया से
अछूता नहीं है।
प्रश्न
संख्या-7,8,9(ii),10,12,13 व्याख्यात्मक प्रश्न
हैं, जिसमें सभी ने अपने-अपने विचार दिए। इनसे प्राप्त उत्तरों को शोधार्थी द्वारा
विश्लेषण किया गया है जो इस प्रकार है -
प्र.7 आपके विचार से आपके
लिए कौन-सा मीडिया माध्यम उपयुक्त है और क्यों ?
विश्लेषण- यह
खुला प्रश्न है, जिसमें सभी ने अपने-अपने विचार दिए। अधिकांश दृष्टिबाधित
विद्यार्थियों का मानना है कि उनके लिए डिजीटल मीडिया सर्वाधिक उपयुक्त है क्योंकि
यह उनके पास हर वक्त उनके हाथों में होता है,
इसे चलाने के लिए उन्हें किसी की सहयोग की आवश्यकता नहीं होती है, इसमें दिए गए बोलने वाले सॉफ्टवेयर की मदद से इसे वे आसानी से
इस्तेमाल कर सकते हैं। इस माध्यम से उन्हें कोई भी जानकारी किसी भी वक्त तुरंत मिल
जाती है, जो अन्य माध्यमों में इन्हें आसान नहीं लगता है। इसकी विषयवस्तु को
वे सॉफ्टवेयर की मदद से सुन सकते हैं साथ ही इसमें ऑडियो भी उपलब्ध होता है, जिनकी
सहायता से ये किसी भी जानकारी को आसानी से ग्रहण कर सकते हैं। वहीं कुछ
विद्यार्थियों का कहना है कि रेडियो उनके लिए उपयुक्त माध्यम है, क्योंकि इसका
इस्तेमाल वे शुरू से ही करते आ रहे हैं, इसलिए यही आसान लगता है। इसमें क्रिकेट की जो कमेंट्री होती है,
इससे वे पूरी तरह से संतुष्ट होते हैं जो किसी और माध्यम से नहीं मिलती है और यह
अन्य माध्यमों की अपेक्षा सस्ता भी होता है किंतु अब रेडियो भी डिजीटल मीडिया में
आ गया है, इस वजह से वे इसका लाभ डिजीटल ही लेने लगे हैं। कुछ विद्यार्थी
ब्रेल लिपि में आने वाली पत्रिका को वर्णों के ज्ञान हेतु एवं विश्वसनीय माध्यम
मानते हैं।
प्र. 8 आप मीडिया माध्यमों
से किस तरह की विषय-वस्तु चाहते हैं ?
विश्लेषण-
दृष्टिबाधित विद्यार्थियों का कहना है कि है इन सभी माध्यमों में दृष्टिबाधित
व्यक्तियों के बारे में एक विशेष कार्यक्रम या कॉलम आना चाहिए जिसमें
दृष्टिबाधितों की शिक्षा, ब्रेल लिपि, उनके यंत्रों आदि के बारे में जानकारी हो, जिससे लोगों को भी इनकी
जानकारी मिले और दृष्टिबाधित व्यक्ति भी इससे जागरूक होकर आगे बढ़े। कुछ
विद्यार्थियों का कहना है कि टेलीविजन में दृष्टिबाधित लोगों का कार्यक्रम कराया
जाए साथ ही टेलीविजन के डिबेट जैसे कार्यक्रमों में इनको भी सम्मिलित किया जाए
ताकि वे दुनिया के सामने आ सके। विद्यार्थियों ने यह भी बात कही कि जो भी विषय
वस्तु है उसे हमारे लायक उपयुक्त बनाकर परोसा जाए तो और बेहतर होगा। जिस तरह से अब
तक रेडियो हमारे लिए बेहतर था, उसी तरह डिजीटल मीडिया को हमारे लिए ओर बेहतर बनाया
जाए।
प्र.9 (ii) आप सोशल मीडिया का
इस्तेमाल किस प्लेटफार्म पर और किस उद्देश्य से करते हैं ?
विश्लेषण-
शतप्रतिशत दृष्टिबाधित विद्यार्थी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं जिसमें उनका
फेसबुक, ट्वीटर, व्हॉटसएप और इंस्टाग्राम पर अकाउंट है। इन विद्यार्थियों का कहना
है कि सोशल मीडिया के माध्यम से ये अपने विचारों को पूरी दुनिया तक फैला सकते हैं।
पढ़ाई संबंधी जानकारी को अपने मित्रों तक आसानी से साझा कर सकते हैं। कोई भी
जानकारी तुरंत मिलती है। सोसाइटी की न्यूज जानने के लिए,
नई जानकारी को साझा करने के लिए,
एवं एक दृष्टिबाधित से दूसरे दृष्टिबाधित को कोई भी सूचना विस्तार
से देने के उद्देश्य से सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं।
प्र. 10 आपकी कार्यक्षमता को
बढ़ावा देने हेतु कौन-सा मीडिया माध्यम अधिक उपयोगी है और क्यों?
विश्लेषण-अपनी
कार्य क्षमता को बढ़ावा देने हेतु लगभग सभी दृष्टिवाधित विद्यार्थी डिजीटल मीडिया
को अधिक उपयोगी मानते हैं, क्योंकि इसके उपयोग से इन्हें किसी अन्य व्यक्ति पर
निर्भर नहीं रहना पड़ता है। कोई भी जानकारी डिजीटल मीडिया के माध्यम से ये तुरंत
प्राप्त कर लेते हैं। मोबाइल में इनके लिए उपयोगी कई सॉफ्टवेयर की मदद से अब ये
अपना काम जैसे कोई भी जानकारी लेना, लेटर लिखना, किसी से कुछ सूचना लेना व उन्हें भेजना आदि काम स्वयं करने लगे हैं,
जिससे इनके खुद में आत्मविश्वास बढ़ता है और इनकी कार्य क्षमता को बढ़ावा मिलता
है। कुछ एक-दो विद्यार्थी ऐसे हैं, जो रेडियो को उपयोगी मानते हैं, क्योंकि वे
इनसे शुरू से ही जुड़े हैं, और ये पूर्ण रूप से श्रव्य माध्यम है तो इनको आसान
लगता है।
प्र.12 क्या मीडिया ने आपके
जीवन को उन्नत बनाया है ?
विश्लेषण-
शतप्रतिशत दृष्टिबाधित विद्यार्थियों को लगता है कि मीडिया ने उनके जीवन को उन्नत
बनाया है। सभी चीजों की जानकारी उनके हाथों में ला दी है, जिससे वे अधिक
आत्मविश्वासी हो गए हैं, जागरूक हो गए हैं। पहले दृष्टिबाधिता के कारण ज्ञान से दूर थे
परंतु अब ऐसा नहीं लगता है। मीडिया ने इन्हें दृष्टिवान के समान होने का एहसास
दिलाया है। अब जानकारी का अभाव नहीं है, स्वयं जानकारी रखने के साथ-साथ दूसरों को भी जागरूक करने लगे हैं।
इससे नवीन विचार मन में आते हैं तो कुछ अलग कर पाते हैं। प्रेरणादायक खबरों से
प्रेरित होते हैं जिससे जीवन में कुछ अच्छा करने की कोशिश बनी रहती है और खुश रहते
हैं। रोजगार संबंधित जानकारी प्राप्त होती है जिससे हम भी उस क्षेत्र में आगे
बढ़ने लगे हैं।
प्र. 13 आपके द्वारा उपयोग
किए जाने वाले मीडिया माध्यमों में पहले और अब में क्या अंतर आया है ?
विश्लेषण- सभी
दृष्टिबाधित विद्यार्थियों का कहना है उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले मीडिया
माध्यमों मेंपहले और अब में बहुतअंतर आया है। वे इस परिवर्तन को नकार नहीं सकते।
उनके द्वारा कही गई बात इस प्रकार है–
-
पहले रेडियो का ही
इस्तेमाल अधिक करते थे तब हमारे पास और कोई उपयुक्त माध्यम नहीं था।
-
समाचार पत्र को सुनने के लिए पहले किसी की मदद
लेनी पड़ती थी अब ब्रेल लिपि में पत्रिका आती है तो हमें आसानी होती है साथ-साथ यह
डिजीटल मीडिया में भी उपलब्ध है।
-
हमें पहले जानकारी
केवल डीडी न्यूज और आकाशवाणी से ही मिलती थी और एक सीमित समय के लिए, अब
डिजीटलमीडिया के माध्यम से कोई भी जानकारी किसी भी समय प्राप्त कर सकते हैं।
-
पहले ब्रेल लिपि का
ही ज्यादा उपयोग करते थे, इससे हमारी जानकारी भी सीमित थी। तब हमारे पास सीमित साधन थे जिससे
हमारा ज्ञान भी सीमित था और ज्ञान का विकास भी कम होता था।
-
मनोरंजन के साधन के
रूप में हमारे पास पहले केवल रेडिया ही था, उसमें भी कार्यक्रम सीमित होते थे और
समय सीमा होती थी।अब डिजीटल मीडिया ने मनोरंजन को हमार साथ में ला दिया है।
-
इन मीडिया माध्यमों
के पहले हम केवल उपभोक्ता थे अब सोशल मीडिया के माध्यम से हम इसके सहभागी भी बन गए
हैं। इसके माध्यम से हम अपने विचार दुनिया के सामने रखते हैं।
-
सीमित साधन व अपनी
भागीदारी नहीं होने के कारण पहले रूचि कम होती थी अब देश-दुनिया की जानकारी रखने
और मीडियासे जुड़े रहने में रूचि आती है।
-
समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन के माध्यम से हमें जितनी जानकारी मिलती थी हमें उतना ही
पता होता था परंतु अब उस विषयसे संबंधित जो भी जानकारी चाहिए होती है डिजीटल
मीडिया के माध्यम से हम पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
दृष्टिबाधित
विद्यार्थियों द्वारा उपरोक्त बातें उनके द्वारा पहले और अब उपयोग किए जाने वाले
मीडिया माध्यम के अंतर को स्पष्ट करता है।
निष्कर्ष :
शोधार्थी द्वारा अपने शोध के दौरान शोध विषय पर
जो कार्य किया गया उसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के बाद जो महत्वपूर्ण
निष्कर्ष निकल कर आयें, वो निम्न हैं -
-
दृष्टिबाधित विद्यार्थियों में
डिजिटल मीडिया की उपयोगिता अन्य माध्यमों की अपेक्षा अधिक बढ़ गई है। डिजिटल
मीडिया नेदृष्टिबाधित विद्यार्थियों में रेडियो की उपयोगिता को भी कम कर दिया है।
वहीं, इनके द्वारा टेलीविजन का उपयोग भी कम हो गयाहै। कुछ ब्रेल लिपि में पत्रिका
आती है, जिनका लाभ ये लेते हैं।
-
स्मार्ट फोन के आने से दृष्टिबाधित
विद्यार्थी डिजिटल मीडिया का उपयोग अधिक करने लगे हैं, अब
हर हाथ में स्मार्ट फोन है,ऑडियो,
वीडियो,
टेक्स
और चित्र के मिश्रण ने इस मीडिया को न केवल दृष्टिवान बल्कि दृष्टिबाधित लोगों के
लिए भी सरल एवंसुलभ बना दिया है। स्मार्ट फोन ने डिजीटल मीडिया को बढ़ावा दिया है।
-
दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के पास
पहले पढ़ने के लिए केवल ब्रेल लिपि ही एक माध्यम था, उसमें भी इनको सिर्फ अपनी
पढ़ाई से संबंधित सामग्री ही मिलती थी परंतु अब ब्रेल लिपि में पत्रिका भी आने लगी
है और इनके पहुंच में है। शुरुआती दौर में ये सिर्फ रेडियो पर निर्भर रहते थे
क्योंकि, उस समय ना तो इनके पास डिजीटल मीडिया था और न ही इनकी लिपि में
कोईपत्रिका आती थी।
-
डिजीटल मीडिया में उपलब्ध तकनीक
टॉकबैक,
टॉकिम
टॉम,
जॉस,
एनवीडीए
आदि टॉकिंग सॉफ्टवेयर की मदद से ये आसानी से डिजीटल मीडिया का इस्तेमाल कर लेते
हैं। न्यूज पेपर मैगजीन, रेडियो और
टेलीविजन ये सभीअब डिजीटल मीडिया में उपलब्ध हैं, इससे दृष्टियाधित लोगों को आसानी
होती है वे सारी जानकारी डिजीटल मीडिया से ही ग्रहण कर लेते हैं। इन सभी कारणों की
वजह से ये विद्यार्थी डिजीटल मीडिया को ही सबसे उपयुक्त माध्यम मानते हैं।
-
दृष्टिबाधित विद्यार्थी सरलता एवं
सुलभता की दृष्टि से डिजीटल मीडिया को ही सबसे उपयुक्त मानते हैं और प्रतिदिन
इसकाउपयोग भी अधिक घंटे करते हैं, इसलिए अन्य मीडिया माध्यमों की अपेक्षा डिजीटल
मीडिया पर इनकी निर्भरता अधिक है।
-
डिजीटल मीडिया में न केवल समाचार ही
होते हैं बल्कि यह सूचना, शिक्षा और
मनोरंजन तीनों से परिपूर्ण होता है इसलिए दृष्टिबाधित विद्यार्थी भी इन सभी प्रकार
की विषय वस्तु को प्राथमिकता देते हैं।
-
देश-दुनिया से जुड़े रहने और अपने
विचारों को व्यक्त करने के उद्देश्य से मीडिया का उपयोग करते हैं। फेसबुक और
ट्वीटर के माध्यम से दुनिया में हो रही गतिविधियों के बारे में अपना मत माझा करते
हैं। इसमें अपनी भागीदारी दर्ज करते हैं। साथ ही पढ़ाई की कोई जानकारी या नई सूचना
अपने सहपाठियों तक साझा करने के लिए सोशल मीडिया इनके लिए एक अच्छा माध्यम है।
-
पहले ये केवल मीडिया के लिए पाठक,
श्रोता
या दर्शक मात्र थे किंतु, अब ये सोशल मीडिया के माध्यम से सहभागिता भी बनगए हैं।
-
अपने विचारों को,
अपनी
रचनाओं को देश-दुनिया में साझा करने से इनका आत्मविश्वास बढ़ता है। इन्हें भी कुछ
कर गुजरने की हिम्मत आती है। कोई भी जानकारी चाहिए या किसी को कोई जानकारी भेजनी
हो तो ये अब स्वयं कर लेते हैं इससे अब ये किसी पर निर्भर नहीं रहते हैं। इस तरह
से डिजीटल मीडिया ने इनके कार्य क्षमता को बढ़ावा दिया है। इस दृष्टि से
दृष्टिबाधित विद्यार्थी मीडिया की भूमिका को अपने जीवन में बहुत अह्म मानते हैं।
-
डिजीटल मीडिया न केवल दृष्टिवान
व्यक्तियों के लिए बल्कि दृष्टिबाधित लोगों के लिए भी एक अच्छा माध्यम बन गया है।
ऑडियो,
वीडियो,
टैक्स
और चित्र के संपूर्ण मिश्रण ने इस मीडिया को अधिक लोकप्रिय बनाया है। ब्रेल लिपि
के आविष्कार से दृष्टिबाधितों का शैक्षणिक स्तर तो बढ़ा है, लेकिन इनको दुनिया से
जुड़े रहने,
इनके
व्यक्तित्व विकास व मनोरंजन के क्षेत्र में वृद्धि के लिए डिजीटल मीडिया
महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
-
शोध से प्राप्त आकड़ों के अनुसार
शोधकर्ता की पूरी उपकल्पना गलत साबित होती है। दृष्टिबाधित विद्यार्थियों का
वर्तमान में मीडिया का प्रयोग बहुत ही कम हो गया है, वहीं ये आधुनिक समय में
उपलब्ध नवीन मीडिया का इस्तेमाल बखूबी से कर रहे हैं साथ ही सोशल मीडिया में भी
सक्रिय हैं। डिजीटल मीडिया रेडियो संबंधी इनकी सारी जरूरतों को पूरा कर रहा है,
इसलिए दृष्टिबाधित विद्यार्थियों की निर्भरता रेडियो से अधिक डिजीटल मीडिया पर हो
गई है।
संदर्भ :
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के. राय डॉ. अनिल,
संचार
के सात सोपान", यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन नई दिल्ली
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आरती भट्ट, उत्तराखंड
में महिलाओं की मीडिया आवता का अध्ययन (2017), उतारखंड
मुक्त विश्वविद्यालय page 48
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NCERT. (n.d.).
Retrieved fromhttps://ncert.nic.in/textbook/pdf/kham102.pdf
प्रज्ञा गुप्ता
शोधार्थी, पीएचडी, एलएनसीटी
विश्वविद्यालय, भोपाल
डॉ. मनीषकांत जैन,
एसोसिएट
प्रोफेसर
शोध निर्देशक, एलएनसीटी विश्वविद्यालय,
भोपाल
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च 2022
UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )
लेख को पढ़ा। अनुभवजन्य पर आधारित यह लेख बहुत ही अच्छा लगा। विषय वस्तु ही बहुत ही अच्छी है।
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