सोशल मीडियाः अभिव्यक्ति के जनतंत्र का विस्तार
- डॉ. प्रतिमा
शोध सार : प्रस्तुत लेख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अभिव्यक्ति में आए परिवर्तनों पर केंद्रित है। साथ ही यह लेख इस प्रक्रिया का विश्लेषण करता है कि संस्थागत मीडिया में जो अभिव्यक्ति मीडिया के सीमित धड़े तक मौजूद थी, उसे सोशल मीडिया ने कैसे जनतांत्रिक बनाया। इस लेख के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि सोशल मीडिया की भाषा औपचारिक हिंदी से कैसे भिन्न है। हिंदी भाषा की निर्मिति कैसे सोशल मीडिया के अनुरूप ढल गयी यह देखना दिलचस्प है। भाषिक जनतंत्र से अभिप्राय भाषा की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतिम आदमी तक पहुँचने में निहित है। यह अंतिम आदमी ही जनतंत्र का असल मुखिया है। इस भाषा को सोशल मीडिया में उपस्थिति मिलना भारतीय जनतंत्र को मजबूत बनाता है और निश्चित ही यह जनतंत्र अपनी अभिव्यक्ति अपनी भाषा से करता है।
बीज
शब्द : न्यू मीडिया, वैब मीडिया, इंटरनेट, हिंदी भाषा, सोशल मीडिया, प्लेटफॉर्म,
सूचना, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, वर्चस्व, गूगल, यूजर्स, प्रचारतंत्र, चुनाव।
मूल
शब्द : सोशल मीडिया को न्यू मीडिया1 या वैब मीडिया भी कहते हैं। बीसवीं सदी के आखिरी दशक में
इंटरनेट ने देशमें प्रवेश किया और कुछ ही वर्षों बाद हिंदी भाषा का प्रयोग इंटरनेट
पर किया जाने लगा। इंटरनेट पर हिंदी भाषा का प्रयोग होने से हिंदी भाषा के प्रचार- प्रसार में बहुत अधिक विस्तार हुआ। वर्तमान
समय में आमलोगों के संवाद एवं संप्रेषण को बढ़ाने और विस्तारित करने में सोशल
मीडिया मुख्यधारा से अधिक महत्त्वपूर्ण बनता जा रहा है। आज सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म
बन गया है जिसने सारे विश्व को एक सूत्र में पिरो दिया है। चाहे कोई राजनीतिक
मुद्दा हो या सामाजिक, आर्थिक मुद्दा हो या सांस्कृतिक मुद्दा, हर किसी विषय पर आज
प्रत्येक व्यक्ति इसखुले मंच से अपने भावों की अभिव्यक्ति कर सकता है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, ब्लॉग, टि्वटर, वॉट्सएप आदि ऐसे मंच हो गए हैं जहाँ
प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों की प्रस्तुति के लिए किसी अन्य व्यक्ति की
अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं बल्कि व्यक्ति स्वतंत्र होकर अपने विचारों की
प्रस्तुति यहाँ स्वतंत्र रूप से कर सकता है। इस तरह सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति के
जनतंत्र को प्रसारित और विस्तारित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहाँ
तक की भाषा के सुसज्जित या परिमार्जित होने का दबाव भी यहाँ अधिक नहीं होता। भाषा
से अधिक कथ्य पर बल देना ही सोशल मीडिया की विशेषता है जहाँ व्यक्ति का पूरा ध्यान
भाषा की वैज्ञानिकता पर नहीं बल्कि उसकी व्यावहारिकता पर होता है। वर्ष 2011 में यूजर्स की संख्या 10 करोड़ पार हो जाने पर गूगल कंपनी ने
अपनी वेबसाइट पर हिंदी इनपुट की व्यवस्था भी कर दी थी इसीसे हम हिंदी भाषा के
बढ़ते हुए प्रसार के बारे में समझ सकते हैं।2 हिंदी भाषा में लिखने से बहुत
से लोगों को अपनी एक अलग पहचान मिली है। ऐसे लोग जो दूसरों के सामने अपनी बात को
रखने में सहज महसूस नहीं करते थे आज उनके पास सोशल मीडिया जैसा एक बड़ा प्लेटफॉर्म
है जिसमें वह बिना रोक-टोक के बेझिझक अपनी बात को स्वतंत्र रूप से रख सकते हैं। इस
सोशल मीडिया ने बहुत से लोगों की अपनी एक अलग पहचान बनाई है। सोशल मीडिया के कारण
ही विश्व एक छोटे से समुदाय के रूप में स्थापित हो गया है और एक परिवार एक कुटुंब
बन गया है। माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी ने हमारे देश को एक नया
नारा दिया है डिजिटल इंडिया। ट्विटर का प्रयोग करने वाले जनसंख्या में आज हमारा
देश तीसरे नंबर पर है और फेसबुक में हम पहले पायदान पर हैं।3 सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के बढ़ते हुए
वर्चस्व को देखते हुए ही आज विभिन्न मंत्रालयों ने अपने मंत्रालय की विविध प्रकार
की सूचनाएँ हिंदी में प्रस्तुत करने की पहल की है।
नए साहित्यकार यूट्यूब चैनल पर अपनी कविताओं और कहानियों के
माध्यम से हिंदी भाषा का मान बढ़ा रहे हैं। 4किसने कब कौन सी कहानी या कविता लिखी, कौन किस उपन्यास पर काम कर रहा है आदि
सभी बातों की जानकारी हमें फेसबुक के माध्यम से पहले ही पता चल जाती है। इन नई
कहानियों तथा कविताओं के सुनने वालों की संख्या भी बहुत अधिक है। बहुत अधिक संख्या
में हम लाइक या कमेंट देख सकते हैं। इसमें फीडबैक और सृजनात्मकता दोनों की ही
भागीदारी होती है। इंटरनेट के माध्यम से ही विश्वभर के लोग किसी भी विषय पर अपने
विचार रखने उस पर सहमत या असहमत होने अथवा चर्चा करने में सक्षम होते हैं। इसमें
प्रयोक्ता के पास इस बात की पूरी सुविधा होती है कि वह अपनी सुविधानुसार किसी भी
विषय का चयन कर सकता है उस पर चर्चा परिचर्चा कर सकता है अन्य व्यक्ति भी
प्रयोक्ता के विचारों से सहमत या असहमत हो सकते हैं। इसके जरिये किसी एक व्यक्ति
की बात अनेक लोगों तक पहुँच सकती है। विश्व के 150 से अधिक देशों में भारतीय मूल के लोग
रहते हैं जिनकी मातृभाषा या दूसरी भाषा हिंदी भाषा है। इनमें से बहुत से लोग ऐसे
भी हैं जो हिंदी भाषा में साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं
या शामिल होते हैं। विश्व की 10 सबसे प्रभावशाली भाषाओं में हिंदी भाषा का नाम भी आता है।5
अपने देश से दूर बैठे लोग होली, दिवाली आदि त्यौहार न केवल अपने वर्चुअल मित्रों के साथ
मनाते हैं बल्कि अपने जीवन से जुड़े अन्य लोगों के साथ वे सांस्कृतिक गतिविधि भी
साझा करते हैं।
हम सोशल मीडिया के द्वारा एक टेक्स्ट्स मैसेज पर अपनी बात
लिखकर अपने चाहने वाले से आसानी से बात कर सकते हैं, भले ही वे दुनिया के किसी भी कोने में
बैठे हों। फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, इस्काइप,वॉट्सएपइत्यादि ने संचार के लिए मार्ग प्रशस्त किया है, जैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। सोशल
मिडिया के इन साधनों के आने से हमारा जीवन बेहद आसान हो गया है। जब पहली बार
टेक्स्ट मैसेज का आविष्कार किया गया था, तो उसमें वर्ण की सीमा निर्धारित थी। इस समय वाक्य को छोटा
बनाने के लिए प्लीज़ बन गया plz, “You” बन गया “u” तथा “thanks” बन गया “thx” और क्यूँ नहीं। हम इसकी वैज्ञानिकता की नहीं बल्कि
व्यावहारिकता के पक्ष की बात कर रहे हैं।
भूमंडलीकरण के इस दौर में जन संचार के माध्यमों का दायरा विस्तृत
हो गया है। इस वेब मीडिया का आकर्षण दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। न्यू मीडिया
के विभिन्न मंच लोगों के जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखने लगे हैं। यह लोगों
के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है विशेष रूप से कोरोना काल में तो
लगभग हम लोग इस पर ही निर्भर हो गए हैं। व्यक्ति अपने महत्त्वपूर्ण कार्य को छोड़
सकता है परंतु वह रात को सोने से पहले और सुबह उठने के बाद सबसे पहले अपने फोन में
सोशल मीडिया इन्हीं मंचोंकोसूचना प्राप्त करने या साझा करने के लिए खोजता है।
सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार बहुत अधिक
मात्रा में बढ़ता ही जा रहा है। फेसबुक, ट्विटर, गूगल आदि सोशल मीडिया पर विभिन्न चर्चाओं के माध्यम से
हम देख सकते हैं कि अनेक नए रचनाकारों के साथ-साथ पुराने रचनाकारों के विषय में भी
हम जान सकते हैं। समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक विषय वाद -विवाद का विषय बनते हैं।
इस प्लेटफॉर्म के द्वारा हमें एक ही जगह पर किसी भी समय में पढ़ने का मौका मिलता
है। हम अपनी सुविधा तथाअपनी रूचि के अनुसार कभी भी,किसी भी रचनाकार को पढ़ और लिख सकते हैं।
यह सभी बातें हिंदी के विकास के लिए बहुत उपयोगी हैं। इनमें केवल साहित्य से जुड़े
लोग ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग भी जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, खिलाड़ी, वकील, नेता औरअभिनेता सामाजिक
कार्यकर्ता आदि सभी अपनी सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा में संप्रेषण करना अधिक सुविधाजनक
मानते हैं।
यूट्यूब ने भी हिंदी भाषा के प्रचार- प्रसार में महत्त्वपूर्ण
भूमिका अदा की है। यूट्यूब पर साहित्यिक क्षेत्रों और भाषा से जुड़े कई वीडियो
ऑडियो तथा अन्य किस्म के प्रोग्राम है। लंबे या छोटे वीडियो को हम अपनी
सुविधानुसार कभी भी देख सकते हैं। अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक,सांस्कृतिक, राजनैतिक व शैक्षणिक वीडियो को हम
सुविधानुसार देख सकते हैं। इसके अलावा हिंदी भाषा में अनेक न्यूज़ चैनल है
जिन्होंने अपनी वेबसाइट बनाई हुई है जिससे समय-समय पर और तुरंत ही खबर ली जा सकती
है।
शुरुआती दिनों में हिंदी भाषा के लोगों को सोशल मीडिया पर काम
करना मुश्किल जान पड़ता था परंतु आज हम देखते हैं कि सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का
ही बोलबाला दिखलाई पड़ता है। आज सोशल मीडिया पर हिंदी भाषी लोग न केवल हिंदी भाषा
में खुलकर लिखते हैं बल्कि लिखते हुए गर्व भी महसूस करते हैं। विशेष रूप से युवा
पीढ़ी न केवल हिंदी भाषा में अपनी बात लिखना चाहती है बल्कि उसे समझना भी चाहती है।
वर्तमान समय में अपने विचारों और भावों को आम लोगों तक पहुंचाने में सोशल मीडिया
ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चाहे कोई राजनीतिक मुद्दा हो या सामाजिक, आर्थिक मुद्दा हो या सांस्कृतिक हर किसी
विषय पर आज प्रत्येक व्यक्तिइस खुले मंच से अपने भावों की अभिव्यक्ति कर सकता
है।
प्रारंभ में सोशल मीडिया पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव अधिक दिखाई
पड़ता है किंतु वर्तमान समय में बदलते परिदृश्य के साथ-साथ हिंदी भाषा ने सोशल
मीडिया के क्षेत्र में, उसके प्रयोग में बहुत अधिक विकास किया है। जिस प्रकार से
हिंदी भाषा के विकास के लिए हिंदी फिल्मों ने बहुत अधिक योगदान दिया है, कुछ उसी प्रकार से आज सोशल मीडिया भी
हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आर्थिक
दृष्टिकोण से अंग्रेजी भाषा भले ही मजबूत हो परंतु हिंदी भाषा भी अपने पैर जमाए
हुए है। कोई भी व्यक्तिभले ही आर्थिक,राजनीतिक या सामाजिक कारणों से कोई दूसरी भाषा सीख ले
परंतु अपने भावों की अभिव्यक्ति करने के लिए वह सर्वप्रथम उसी भाषा का चुनाव करता
है जो उसकी मातृभाषा या प्रथम भाषा होती है।
कोई भी व्यक्ति उसी भाषा का प्रयोग अधिक करता है जिस भाषा में
वह सहज महसूस करता है। इसीलिए हिंदी भाषी लोगों ने सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का
चुनाव अपनी भावों की अभिव्यक्ति के लिए किया है। व्यक्तिअपने भावों की अभिव्यक्ति
जिस प्रकार अपनी मातृभाषा में कर सकता है उसी प्रकार वह किसी अन्य भाषा में अपने
भावों की अभिव्यक्तिनहीं कर सकता। इसीलिए हिंदी भाषा किसी भी हिंदी भाषा-भाषी
व्यक्ति के लिए सर्वोतम भाषा है तथा उसके भावों की अभिव्यक्तिका सबसे उपयुक्त
विकल्प है। सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का ग्राफ दिन रात बढ़ता ही जा रहा है। ना
केवल हिंदी भाषी व्यक्ति ही बल्कि अंग्रेजी भाषा का बहुत अधिक ज्ञान प्राप्त करने
वाले व्यक्तिभी फेसबुक या अन्य किसी सोशल मीडिया नेटवर्क पर हिंदी भाषा का
प्रयोग करना ही अधिक उचित समझते हैं क्योंकि उनका भी यही मानना है कि यह सोशल मीडिया एक ऐसा स्पेस जहाँ उनकी बात अधिक
से अधिक लोगों तक पहुँच सकती है। यही कारण है कि वह विचारों को प्रस्तुत करने के
लिए अंग्रेजी भाषा की अपेक्षा हिंदी भाषा का प्रयोग करना ही उचित मानते हैं। एक
ऐसी भाषा जो लगभग सभी लोगों के दिल को छूती हो, एक ऐसी भाषा जिसमें सभी लोग अपनापन
महसूस करते हैं, एक ऐसी
भाषा जो लगभग सभी लोग समझ और बोल सकते हैं। इसीलिए आप देख सकते हैं कि इस सोशल मीडिया के
प्लेटफॉर्म पर अधिक से अधिक बहस के मुद्दे होते हैं। किसी भी विषय पर सभी लोग बढ़
चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
वैश्वीकरण के इस दौर में भारत के लगातार बढ़ते हुए प्रभाव के
कारण अन्य देशों के लोगों की रुचि भी हिंदी भाषा में बढ़ती ही जा रही है। विदेशी
लोग न केवल यहाँ व्यापार करने के लिए रुचि रखते हैं बल्कि हिंदी भाषा को सीखना, पढ़ना और साथ साथ उस पर शोध भी करना
चाहते हैं। हिंदी भाषा को एक वैज्ञानिक भाषा का दर्जा तो प्राप्त हो ही चुका है
अगर हिंदी भाषा आर्थिक रूप से और अधिक मजबूत हो जाए तो वह विश्वभर में प्रयोग की
जाने वाली सर्वोच्च भाषा का दर्जा भी हासिल कर सकती है। सोशल मीडिया की भाषा की
एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें पाठक को बहुत अधिक सोचने समझने की जरूरत
नहीं होती। लिखी हुई पोस्ट को पाठक उसी रूप में ग्रहण कर सकता है जिस रूप में वह
लिखी जाती है। यह अभिव्यक्तिका बहुत महत्त्वपूर्ण माध्यम बन चुका है। व्यक्ति ना
केवल सामाजिक,
राजनीतिक,
आर्थिक संवाद ही किसी अन्य व्यक्तिसे कर सकता है बल्कि अपने व्यक्तिगत संवाद
भी वह दूसरों के साथ साझा कर सकता है। कोई भी महत्त्वपूर्ण जानकारी देनी है तो आज
के दौर में सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण साधन बन चुका है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय
केप्रोफेसर मैन्युअल कैसट्ल के अनुसार ‘‘सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों फेसबुक, ट्विटर आदि के जरिये हम जो संवाद करते
हैं, वह मासकम्युनिकेशन न होकर सेल्फ
कम्युनिकेशन है। इस तरह वे इसे जनसंचार की अपेक्षा आत्मसंचार की संज्ञा देते हैं। ’’6लेकिन उनका यह कहना अव्याप्ति दोष से
संबद्ध है क्योंकि जनसंचार भी आत्मसंचार किए बिना संभव नहीं है। जिस तरह हर संवाद
के पीछे गहरा एकालाप होता है। उसी तरह से जनसंचार बिना आत्मसंचार के संभव नहीं। सोशल
मीडिया ने हमारी जीवन शैली पर बहुत अधिक प्रभाव डाला है। हमारी जरूरतें और हमारी
कार्यप्रणाली सभी सोशल मीडिया से प्रभावित हो रही हैं। इतना ही नहीं पारिवारिक और
सामाजिक संबंध भी इस सोशल मीडिया के प्रभाव से अछूते नहीं हैं। न केवल शहरों बल्कि
गांवों को भी इस सोशल मीडिया ने बहुत अधिक प्रभावित किया है। यह प्रभाव तब और भी
अधिक चिंतनीय हो जाता है जब इससे धार्मिक उन्माद और हिंसा फैलाने वाली पोस्ट लिखी
जाती हैं।
एक महत्त्वपूर्ण प्रश्नयहाँ पर यह भी उठता है कि क्या सोशल
मीडिया पर लोगों को अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता का दुरुपयोग क्यों करना चाहिए? क्या इस प्रकार न्यायपालिका की भी
अवहेलना नहीं होगी? स्वतंत्रता के अपने अलग मायने होते हैं पर हमें यह ध्यान रखना
चाहिए की स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता नहीं है। यही कारण है कि आज साइबरक्राइम
बहुत अधिक बढ़ गया है। किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए सोशल मीडिया एक
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है बशर्ते वह अपनी नैतिक जिम्मेदारी भी साथ- साथ
निभाए। सोशल मीडिया पर ऐसे कई कार्य भी हुए हैं जिसने इस लोकतांत्रिक देश को और
अधिक समृद्ध किया है। हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं
कि आज के दौर में सोशल मीडिया भी एक बहुत महत्त्वपूर्ण स्तंभ बन चुका है। उदाहरण
के लिए हम अन्ना आंदोलन को देख सकते हैं ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ऐसा आंदोलन था
जिसमें न केवल भौतिक रूप में ही बल्कि सोशल मीडिया पर भी लोग बहुत अधिक जुड़े। भ्रष्टाचार
के खिलाफ लड़ा जाने वाला यह एक ऐसा महाअभियान था जिसमें न केवल लोग सड़कों पर आए
थे और बहुत अधिक संख्या में जुड़े थे बल्कि सड़कों पर आने के साथ-साथ सोशल मीडिया
पर भी खूब गहमागहमी होती दिखी थी। इस आंदोलन का बहुत अधिक प्रभावशाली होने में
सोशल मीडिया का काफी महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। लेकिन उससे भी ज्यादा प्रभाव उस
मध्यवर्ग का रहा जो हिंदी में लिखे पोस्टरों और बैनरों के साथ इस आंदोलन में सैल्फ
को इंट्रोडयूज़ कर रहा था। स्वयं का पैसा, स्वयं का समय और स्वयं की मेहनत दे रहा
था। इस आंदोलन में जनता ने अपनी भाषा में इस आंदोलन को वायरल किया। 7हिंदी में ही सोशल मीडिया पर पोस्ट डाले
जाते। इस आंदोलन को सफल बनाने में भारत के मध्यवर्ग, हिंदी भाषा और सोशल मीडिया की
अग्रणी भूमिका है।
चुनाव के प्रचार-प्रसार के लिए भी सोशल मीडिया महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाता रहा है। 8फिर चाहे वह चुनाव राज्य स्तर के हों, देश स्तर के हों या
फिर विश्वविद्यालय स्तर के ही क्यों ना हो। लोगों को अधिक से अधिक जागरूक करने, उन्हें अधिक से अधिक सूचना देने में यह
सोशल मीडिया एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बन जा जाती है। नेता और जनता के बीच का संवाद
सीधे तौर पर सोशल मीडिया के बीच में देखा जा सकता है। निर्भया कांड में भी न्याय
दिलाने में सोशल मीडिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। निर्भया को न्याय दिलाने
के लिए हजारों लाखों की संख्या में युवा लोग सड़कों पर उतर आए थे और इसी कारण
सरकार पर भी बहुत अधिक दबाव बना जिससे निर्भया को न्याय तो मिल ही पाया इसके साथ
ही कई महत्त्वपूर्ण कानून भी पास किए गए।9
व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो सोशल मीडिया की भूमिका
अत्यंत प्रभावशाली रही है। चाहे किसी प्रोडक्ट का प्रचार करना हो, किसी फिल्म का ट्रेलर दिखाना हो, किसी बात की कोई सूचना देनी हो या टीवी
का कोई प्रसारण करना हो इन सभी के लिए भी सोशल मीडिया महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा
करता है। हाल ही में किसान आंदोलन को लेकर भी पक्ष और विपक्ष में लोगों ने बहुत से
मुद्दे रखे बहुत ही तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई। ध्यान रखने वाली बात यह है
कि सोशल मीडिया पर भाषा के सुसज्जित होने या परिष्कृत सांस्कृतिक होने पर ध्यान
नहीं दिया जाता बल्कि यहां कथ्य को ही मुख्य समझा जाता है। सोशल मीडिया पर न केवल
आप अपनी बात को लिख सकते हो बल्कि उसे सुन और समझ भी सकते हो। यूट्यूब पर अनेक
घटनाओं के विषय में साहित्य के विषय में या अन्य किसी विषय में विषय में भी बहुत
सी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। अब सवाल यह उठता है कि सोशल मीडिया का प्रभाव
हमारे दैनिक जीवन पर इतना अधिक क्यों पड़ रहा है? वास्तव में सोशल मीडिया एक तेज गति से संप्रेषित
होने वाला संचार माध्यम है इसके लिए हमें किसी खबर के आने विशेष का इंतजार नहीं
करना पड़ता और ना ही टीवी चलाकर उसमें एडवरटाइजमेंट आने तक का इंतजार करना पड़ता
है किसी भी समय हम किसी भी सूचना की तुरंत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ किसी
भी जानकारी सूचना फोटो आदि को बहुत ही आसानी से साझा किया जा सकता है। एक खबर बहुत
कम समय में बहुत अधिक लोगों तक पहुँचाई जा सकती है। किसी भी विषय पर कोई भी
व्यक्ति अपनी वैयक्तिकसोच के अनुसार अपने भावों और विचारों की अभिव्यक्त कर सकता
है। कोई व्यक्ति चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित वह इस प्लेटफार्म का आसानी से
प्रयोग कर सकता है। सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहाँ व्यक्ति स्वतंत्र रूप
से अभिव्यक्ति कर सकता है वह जो भी लिखना चाहता है उसका अपना कंटेंट होता है उस पर
किसी का दबाव नहीं होता ना तो किसी सरकार का और ना ही किसी कंपनी के मालिक का.
यूजर के द्वारा कहे गए शब्द उसके अपने शब्द होते हैं जिनको वह दबाव रहित होकर लिख
सकता है।
सोशल मीडिया के इतने पास होने के बावजूद भी इसके कुछ नकारात्मक
ऐसे पक्ष भी है जो कभी- कभी बहुत असहनीय हो जाते हैं और क्राइम का विषय बन जाते
हैं या उन्माद अथवा दंगे फसाद का कारण भी बन सकते हैं। जैसे सोशल मीडिया पर कई बार
सही जानकारी के अभाव में भ्रामक करने वाली जानकारी को फैला दिया जाता है। सोशल
मीडिया के आने के बाद साइबर क्राइम बहुत अधिक संख्या में बढ़ते जा रहे हैं। किसी
भी चीज की कोई प्राइवेसी अब नहीं रह गई है। अपनी छोटी-छोटी जरूरतों और अन्य बातों
को भी लोग सोशल मीडिया पर साझा करते हैं ऐसे में कई बार उसके नकारात्मक प्रभाव भी
देखने को मिलते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि सही जानकारी का रूप बदलकर उसे आगे
फॉरवर्ड कर दिया जाता है आदि।
सोशल मीडिया ने आज के दौर में समाज के हर वर्ग में अपनी
पैठ बना ली है। एंड्रॉयड फोन के आने के बाद तो इसकी संख्या और भी अधिक बढ़ गई है। हर
कोई सोशल मीडिया की विभिन्न माध्यमों से जुड़ना चाहता है। जबसे सोशल मीडिया पर
हिंदी भाषा का प्रयोग होने लगा है तब से तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसका भरपूर
प्रयोग किया जा रहा है। भारतवर्ष में आज भी 70% ऐसी जनता है जो हिंदी
भाषा का प्रयोग करना ही अधिक सुविधाजनक मांगती है। आज व्लॉग ना केवल शहरी लोग बना
रहे हैं बल्कि बहुत अधिक संख्या में गांव में रहने वाले लोग भी व्लॉग के माध्यम से
अपनी पूरी दिनचर्या के बारे में बताते हैं बल्कि पूरा वीडियो शूट करके उसको दिखाते
भी हैं इससे फिर चाहे वह व्यक्ति किसी भी भाषा या क्षेत्र का हो उसके भावों को
समझने में कोई परेशानी नहीं होती। सोशल मीडिया की भाषा के संबंध में प्रोफेसर ग.फू.
फिंग कहते हैं कि ‘‘आज सोशल मीडिया में फेसबुक और वॉट्सएप
पर कई रचनात्मक और भाषाई समूह बन गए हैं जहाँ दुनियाभर के लोग संवाद कर
रहे हैं भाषा की दृष्टि से इस तरह की सामूहिकता एक नई भाषा को जन्म देती है
क्योंकि वहाँ नए- नए शब्द संवाद में आकर सहज
हो रहे हैं मोबाइल फोन पर वॉट्सएप पर तो लगता है कि रचनात्मक क्रांति हो रही है
हजारों की तादाद में यहां समूह बने हुए हैं जहाँ
नियमित रूप से कविता,कहानी, लेख, यात्रा संस्मरणआदि पोस्ट
किए जाते हैं और उन पर लंबी बहस तक होती हैं। यह तुरंत किस्म की बहस से या संवाद
का एक बड़ा बड़ा प्लेटफार्म बना रही है इस समूह में देशी-विदेशी ही नहीं भारतीय
स्थानीय भाषाओं से भी अनूदित रचनाएँ पोस्ट की जाती हैं जिससे हिंदी का एक नया वैश्विक
रूप बन रहा है। ’’10
विडियो व्लॉग द्वारा कोडमिश्रित भाषा की उत्पत्ति
विडियो व्लॉग ने एक नई तरह की भाषाई संस्कृति को जन्म दिया
है जो कोडमिश्रण और कोड अंतरण की तर्ज पर कार्य करती है। हम हरियाणवी, बांग्ला,
अंग्रेजी, पंजाबी और हिंदी भाषा आदि अनेक भाषाओं के वीडियो व्लॉग जब लगातार देखते सुनते
हैं तो उसका असर हमारी भाषा पर भी पड़ता है। हम यदि लगातार किसी व्लॉग का फॉलोअर
बन जाए तो उस विडियो व्लॉगर की भाषा को समझना शुरू कर देते हैं जिससे बिना कुछ
विशेष जतन के दूसरी भाषा के अनेक शब्दों और उसकी शैली से परिचित हो जाते हैं। उस
भाषा के शब्दों को हम बोल भी पाते हैं असल में भाषा का ज्ञान अथवा किसी भी भाषा का
विकास उसके व्याकरण को जानने भर से नहीं आता बल्कि उसके अनुकरण से आता है। यही
कारण है कि एक बच्चा जिस परिवेश में पैदा होता है उसी परिवेश की भाषा बिना किसी व्यावहारिक
ज्ञान के सीख जाता है। सुधीश पचौरी का इस संबंध में कथन है कि हिंदी महज भाषा नहीं,
बल्कि हिंदी एक विराट व्यवहार है यह दूसरी भाषा के शब्दों को अपने में कुछ ऐसे
समाहित कर लेती है कि अलग से उसका फर्क
करना मुश्किल हो जाता है। व्याकरण कीरूढियों को तोड़ना और संप्रेषण का स्वनियमन ही
दरअसल हिंदी भाषा की व्यापकता और बढ़ते बाजार का प्रमुख कारण है हिंदी बाजार की
भाषा है और संप्रेषण वाली हिंदी के बगैर यहां कारोबार करना संभव नहीं है। 11सोशल मीडिया न केवल
अभिव्यक्ति का सरल माध्यम है बल्कि वह तेजी से बढ़ते और फैलते बाजार का भी साधन
है सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों का प्रयोग करते हुए हम बहुत सी एडवर्टाइजमेंट
भी देख सकते हैं जिसका उद्देश्य अपनी वस्तु की बिक्री ही होता है। उन विज्ञापनों की
भाषा में हमें हिंग्लिश शब्दों का प्रयोग अधिक दिखाई देता है, क्योंकि ये विज्ञापन जिस
वर्ग विशेष के लिए बनाए जाते हैं उन पर हिंग्लिश भाषा का ही अधिक प्रभाव दिखाई
देता है, इससे हिंदी भाषा का शब्द भंडार भी
बढ़ता है और एक नई भाषा हिंग्लिश के रूप में जन्म लेती है। सोशल मीडिया पर हिंदी
भाषा के रचनाकारों एवं साहित्य प्रेमियों को काफी स्पेस मिला है। जिनकी अंग्रेजी
भाषा अच्छी है वे भी सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा का ही प्रयोग करना चाहते हैं। ऐसे
साहित्य प्रेमी जिन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं मिलता था वे भी हिंदी भाषा में
रचनाएँलिखकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं इस तरह से उन्हें अपनी बात कहने का
प्लेटफार्म मिला है जिस पर न केवल वे अपनी रचनाएँलिख सकते हैं बल्कि उसके बारे में
चर्चा भी कर सकते हैं। महामारी के दौर में यह सोशल मीडिया किसी संजीवनी से कम नहीं
है जब हम कोविड पॉजिटिव होकर एक कमरे में कैद थे और घर का कोई सदस्य पीड़ित व्यक्ति
के पास नहीं जा पा रहा था ऐसे में सोशल मीडिया ने उस कोविड पॉजिटिव व्यक्ति को इन
विपरीत परिस्थितियों में भी सहारादिया। इसके अतिरिक्त यदि कोई व्यक्ति ऐसे समय में
ऑनलाइन अखबार पढ़ना चाहता है तो इसके लिए उसे किसी के पास नहीं जाना पड़ा बल्कि
सबकुछ ऑनलाइन ही उपलब्ध हो गया। हिंदी साहित्य समारोहअत्यंत लोकप्रिय हैं, कई समारोहो का सीधा
प्रसारण सोशल मीडिया पर सीधे देखा जा सकता है।
सोशल मीडिया पर इस तरह से दो प्रकार की भाषाओं का प्रयोग
हम कर रहे हैं एक ऐसी भाषा जो साहित्यिक भाषा है और दूसरी ऐसी भाषा जो केवल बोलचाल
की भाषा है साहित्य की भाषा एक ओर समाज और संस्कृति से जोड़ती है वहीं बोलचाल की
भाषा हमें समाज से जोड़ती है। कुछ शब्दों ने अपना अर्थ खोकर उसका नया अर्थ प्रचलित
कर लिया है जैसे पप्पू, भक्त,धो डाला आदि इसी प्रकार
के शब्द हैं। इसी प्रकार ऐसे शब्द जिनका
प्रयोग मुख्यधारा की मीडिया प्रयोग करने मे असहज महसूस करती है जैसे यौन,यौनि, गालियाँ आदि ऐसे शब्दों
का प्रयोग भी सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से हो रहा है। फेसबुक और ट्वीटर पर हिंदी के
साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं जैसे भोजपुरी, अवधी, पंजाबी, ब्रज आदि का प्रयोग भी खूब
हो रहा है इन भाषओं के शब्दों और मुहावरों का प्रयोग भी लगातार बढ़ रहा है। कम से
कम शब्दों में ही सही और सटीक तरीके से अपनी बात कहने की कला ट्वीटर के माध्यम से
देखी जा सकती है। नेता और अभिनेता दोनों ही ट्वीटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म का
प्रयोग अपने प्रचार के लिए करते है। इससे उनकी फैन फॉलोइंग बढ़ती है।
सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा में काम करने वाले लोगों को दो
वर्गों में बाँटा जा सकता है। पहला वर्ग वह है जो भाषा की गरिमा को बनाए रखना
चाहता है और दूसरा वर्ग वह जो भाषा के अनुशासन को ध्यान में रखकर उसके निहितार्थ
की बात करता है। सोशल मीडिया विमर्श और संवाद करने के लिए एक बेहतर मंच देता है। अन्ना
हजारे प्रकरण हो या निर्भया का सामूहिक बलात्कार और वहशीयान सलूक, किसान आंदोलन हो
या अन्य किसी प्रकार का विमर्श सभी के लिए सोशल मीडिया एक जरूरी मंच के रूप में
उभरा है जिसमें विभिन्न भाषाभाषी लोग अपने
विचारों को रखते हैं अपनी सहमति-असहमति दर्ज करते हैं। इस तरह सोशल मीडिया ने भाषा
के इस जनतंत्र को ताकतवर बनाया है और साथ
ही मीडिया के इस नए रूप से जनसंपर्क की भाषा में परिवर्तित परिवर्द्धित हुई है। मीडिया
का यह नया रूप पुरानी मीडिया की भाषा को एक कलेबर में प्रस्तुत करता है उससे जुड़ा
प्रत्येक व्यक्ति भाषा के रूप से विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर वैश्विक स्तर पर
चर्चा करता है मुख्यधारा की मीडिया के लिए जहाँअलग- अलग व्यक्ति अलग अलग पेज पर काम
करते हैं वहीं यहाँ पर एक ही व्यक्ति विभिन्न मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा करता है
और इस प्रकार भाषा का रूप दिन प्रतिदिन परिवर्तित होता जा रहा है जहाँ औपचारिक
भाषा का स्थान अनौपचारिक भाषा ले रही है। सोशल मीडिया पर हम हिंदी भाषा के नाम पर
देवनागरी लिपि के साथ एक नए तरह की कोडमिश्रित भाषा को रूपायित होते देख रहे हैं
जिसे न्यू मीडिया ने नए शब्दों से सजाकर हमारी भाषा का हिस्सा बना दिया है। जहाँ
विभिन्न भाषी शब्द कोड मिश्रण द्वारा नए तरह के संक्षिप्त शब्दों को अपनी भाषा के
चलन का हिस्सा बना रहे हैं। यदि कहा जाए कि सोशल मीडिया में प्रयुक्त हिंदी हिंदी
न होकर हिंग्लिश या हिंग्लिशिया हो गयी है तो ऐसा कहना गलत न होगा।12
स्टीकर, इमोजी, और हिमोजी की दुनिया :
भाषा का रूप बदल रहा है, संवाद का तरीका बदल रहा
है, शब्दों का स्थान हिमोजी,इमोजी या कोई आईकन ले रहा
है। चित्रों की भाषा ने वार्तालाप में जीवंतता ला दी है। हिमोजी के सबंध में
अपराजिता शर्मा का कहना है कि देवनागरी हिंदी के इन चैट स्टीकर्स की खासियत यह है
कि वह अपनी भाषा की सांस्कृतिक छवियों को, राजनीतिक हलचलों को
सामाजिक अस्मिता मूलकबहसों को उनकी जटिलताओं में बखूबी पकड़ते हैं इनकी पहुँच भाषा
के भीतरी क्रोड तक है इनकी बनावट में लोककला का आशीर्वाद है तो अंदाज ए बयां विमर्शात्मक।
13 बातचीत में इन स्टीकर का प्रयोग सर्वाधिक हो रहा है जिसका कारण समय
की बचत, कम शब्दों में अपनी बातकहना और कभी कभी किसी बात को कहने में नजरअंदाज
करना भी शामिल है।
अब सवाल यह उठता है कि इस प्रकार की हिंदी के इस बदलते रूप
का कारण आखिर क्या रहा। पहला कारण युवाओं की भाषा और उनके बोलने के तरीके में अंतर
होना रहा है। हम देख सकते हैं कि आज के युवा वर्ग की भाषा और युवाओं से अलग लोगों
की भाषा में एक बहुत बड़ा अंतर दिखलाई देता है। आज का युवा जहाँ ट्रैंडी शब्दों का
प्रयोग करता है वहीं एक अन्य वर्ग ऐसा भी है जो इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग
करना उचित नहीं समझता। जो भाषा के शुद्धतावादी व्यवहार का समर्थक है। इस प्रकार दो
पीढ़ियों के बीच लगभग भाषा के प्रयोग का अंतर देखा जा सकता है। दूसरा, हर प्रकार
की सूचनाओं जैसे खेलकूद, मनोरंजन, चुनाव आदि का एक ही स्थान पर एक ही व्यक्ति
द्वारा लिखा जाने से एक प्रकार की मिश्रित भाषा बन जाती है क्योंकि विषय के अनुसार
शब्दों का प्रयोग तो होता है परंतु शब्दों का प्रयोग केवल एक व्यक्ति कीसीमित
शब्द संपदा द्वारा ही होता है। इससे मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया की भाषा में
बड़ा अंतर दिखता है। हमें इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि विभिन्न प्रकार की
संस्कृतियों के लोगों का एक ही स्थल पर एक ही समय में एक ही मुद्दे पर चर्चा करना
और अपनी भाषिक अभिव्यक्तियों को व्यक्त करने से भी हिंदी भाषा के रूप में परिवर्तन
देखा जा सकता है क्योंकि इससे न केवल भाषा का आदान प्रदान बल्कि विचारों का आदान
प्रदान भी होता है।
सोशल मीडिया के लिए भाषा, कथ्य, और विचारों की यह अभिव्यक्ति
उसे एक जनतांत्रिक प्लेटफॉर्म के रूप में स्थापित करती है। इसने न केवल सांस्थानिक
मीडिया को चुनौती दी है बल्कि आम जनता की अभिव्यक्ति को प्राथमिकता देते हुए जिस
अभिव्यक्ति की आज़ादी को किताबी मान लिया गया था उसे उसके वास्तविक अर्थ में
उपलब्ध कराया है। आज कोई भी व्यक्ति चाहे वह कोई विशिष्ट जन(सैलेब्रिटी) हो या
आमजन, या हाशिये पर छोड़ दिये गए गली, नुक्कड़ और प्लेटफॉर्म पर सोने और रहने वाले
लोग सबकी कहानियाँ अगर यह मीडिया सुना रहा है तो इससे लोकतंत्र मजबूत ही हुआ है। महात्मा
गाँधी जिस अंतिम जन को केंद्र में या मुख्यधारा में लाने की बात कर रहे थे इस सोशल
मीडिया ने उस अंतिम जन को मुख्यधारा में ला खड़ा किया है और यह हुआ है उसकी अभिव्यक्ति
से। इसे ही अभिव्यक्ति का जनतंत्र कहते हैं और इसमें सोशल मीडिया की भूमिका
अग्रणी है।
सदर्भ :
1. https://www.snhu.edu/about-us/newsroom/liberal-arts/what-is-new-media देखा गया 20.01.2022 11.27पूर्वाह्न
2.
गूगल वैबसाइटhttps://www.google.com/intl/hi/inputtools/ देखा गया 21.01.2022 2बजे अपराह्न
3. https://www.statista.com/statistics/304827/number-of-facebook-users-in-india/ देखा गया 21.01.2022 2बजे अपराह्न
4. http://kavitakosh.org देखा गया 21.01.2022 2.15 बजे अपराह्न
6.https://newschrome.com/social-media-affecting-society/ डॉ.एम रहमतुल्ला के आलेख से उद्धृत
देखा गया 22.01.22 3.00बजे अपराह्न
7. https://www.bbc.co.uk/blogs/hindi/2011/08/post-189.html देखा गया 22.01.22 3.10बजे अपराह्न
8. https://www.jagran.com/punjab/nawanshahr-the-trend-of-election-campaign-changed-after-social-media-increased-demand-for-content-writers-22405681.html देखा गया 22.01.22 4.10बजे अपराह्न
9. https://www.patrika.com/opinion/nirbhaya-got-justice-but-something-is-still-missing-5913221/ देखा गया 22.01.22 5.00बजे अपराह्न
10.
सोशल मीडिया में साहित्य का बदलता स्वरूप सं.) आरती सिंह, विभा ठाकुर स्वराज प्रकाशन,
दिल्ली संस्करण 2018 पृष्ठ 26
11.
उपरोक्त, पृष्ठ 29
12. http://www.hindikunj.com/2019/07/hindi-media-bhasha.htmlदेखा गया 21.01.22 2.00बजे अपराह्न
13.
देखें अपराजिता शर्मा का लेख हिमोजीःहिंदी वेब स्टिकर्स का आग़ाज़ हंस सं.) विनीत
कुमार, रविकांत सितंबर 2018 पृष्ठ 50
डॉ. प्रतिमा, सहायक प्रोफेसर
शहीद भगत सिंह कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
dr.pratimadu@gmail.com, 9811391418
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
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