शोध आलेख : माध्यमिक स्तरीय बच्चों के व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि पर कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के प्रभाव
- नीतू सिंह एवं प्रो.बिनय कुमार चौधरी
शोध सार : शोधकर्ता ने “माध्यमिक स्तरीय बच्चों के व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि पर कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के प्रभाव” का अध्ययन किया एवं अनुसन्धान विवरणात्मक अनुसंधान प्ररचना से हुआ जिसमे सर्वेक्षण विधि के माध्यम से प्रश्नावली, साक्षात्कार भरकर तथ्यों का संकलन किया गया है। समस्या के अध्ययन के लिए लॉटरी पद्धति के आधार पर बिहार राज्य के पटना जिले से पटना नगर के 5 सरकारी माध्यमिक विद्यालयों का चयन किया है। प्रस्तुत शोधपत्र के अंतर्गत उपकरण के रूप में कामकाजी एवं ग़ैर-कामकाजी माताओं के बच्चो के व्यक्तित्व मापन हेतु डॉ. महेश भार्गव द्वारा विकसित 6 व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली ‘डी.पी.आई परीक्षण’ के हिंदी संस्करण का उपयोग कामकाजी और गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व को निर्धारित करने के लिए किया गया है. निष्कर्षतः आँकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व एवं शैक्षिक उपलब्धि में महत्त्वपूर्ण अन्तर पाया गया।
बीज शब्द : कामकाजी माताएँ, गैर-कामकाजी माताएँ, व्यक्तित्व, शैक्षणिक उपलब्धि, माध्यमिक स्तर।
मूल आलेख - “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात् माता एवं मातृभूमि स्वर्ग के समान हैं। माता ईश्वर की अद्वितीय रचनाओं में अपना प्रथम स्थान रखती है यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है। धरती पर माता की उत्पत्ति सभी प्राणियों के लिए वरदानस्वरूप है, क्योंकि सभी का अस्तित्व माता से ही जुड़ा है। माता अपनी संतान को नौ माह तक अपने गर्भ में धारण कर सभी कर्तव्यों का पालन पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ करती है। माता अपने स्नेह रूपी धागे से मोती रूपी सदस्यों को एक माला के जैसे पिरोकर रखती है। परिवार की देखभाल, आवश्यकताओं का ध्यान रखना एवं पूर्ति करना, परिवार को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहना, पौष्टिक आहार, सुसंस्कार प्रदान करना इत्यादि माता का धर्म होता है एवं इनके धर्मपालन में किसी कमी का आकलन करना कठिन कार्य है। माताएँ अपने बच्चों में अच्छे शीलगुण, संस्कार, आत्मविश्वास, व्यक्तित्व एवं संवेगों के विकास में अपना योगदान व मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।[1]
अपने बच्चों के व्यक्तित्व को आकार देने में माताओं का बहुत बड़ा योगदान होता है। हाल के वर्षों में शिक्षा के प्रसार, पहचान की खोज और तकनीकी परिवर्तनों की शुरूआत के कारण, भारत में बड़ी संख्या में महिलाएँ नौकरी के बाज़ार में प्रवेश कर रही हैं। स्वतंत्रता के बाद की अवधि में महिलाओं की शिक्षा में तेजी से विस्तार ने उनके रोजगार की संभावना में सुधार किया है। आज कोई ऐसा पेशा नहीं है जिसमें महिलाओं ने प्रवेश न किया हो। इसने माँ की पारंपरिक भूमिका में ‘देखभाल करने वाले’ के रूप में ‘रोटी कमाने वाले’ के रूप में आमूलचूल परिवर्तन किया है और बच्चे के पालन-पोषण के लक्ष्यों और प्रथाओं को बदल दिया है इसलिए, उनके किशोरों की उपलब्धि प्रेरणा पर इसके प्रभावों को देखने का प्रयास किया जाता है।[2]
महिलाएँ कुछ प्राकृतिक क्षमताओं से संपन्न होती हैं जो केवल महिलाओं के पास होती हैं। सेवा की भावना उनमें एक महत्वपूर्ण विशेषता है। महिलाएँ परिवार और समाज में कई तरह से योगदान करती हैं। एक माँ के रूप में, वह अपने बच्चों की सेवा करती है; एक पत्नी के रूप में, वह अपने पति की सेवा करती है; बहू के रूप में, वह परिवार के बड़ों की सेवा करती है; और एक परिचारिका के रूप में वह समाज के दु:खी, विकलांग और बीमार लोगों की सेवा करती है। एक महिला के रूप में माँ की भूमिका के महत्त्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। वर्तमान में महिलाएँ दो भूमिकाएँ निभा रही हैं। वह पहले एक माँ के रूप में बच्चों की देखभाल करती है, और फिर वह वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है। एक ओर, हम कह सकते हैं कि बच्चे पूरी तरह से अपनी माताओं पर निर्भर हैं लेकिन आधुनिक युग में कामकाजी समूहों में महिलाओं का बहुमत है। देश की गरीबी और आर्थिक विकास की संभावनाओं की जाँच करने पर पता चलता है कि इस क्षेत्र में महिलाओं का योगदान बढ़ा है।[3]
विगत वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि महिलाओं में शिक्षा के अधिक प्रसार के साथ-साथ उनमें विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने तथा लगभग सभी प्रकार की नौकरियों में आने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है। महिलाओं के कार्यरत रहने से उनके पास समय का अभाव हो गया है परिणामस्वरूप वे अपने बच्चों की पढ़ाई पर पर्याप्त समय व ध्यान नहीं दे पाती हैं लेकिन वे अपने बच्चों को अधिक-से-अधिक सुविधा मुहैया कराने का हर संभव प्रयास करती हैं। इसके लिए वे अपने बच्चों को अच्छे-से-अच्छे ट्यूशन/ कोचिंग के साथ ही उन्हें पढ़ने के लिए संपूर्ण सुविधा प्रदान करती है जिसका सकारात्मक प्रभाव उनके व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि पर पड़ता है। अच्छी ट्यूशन व्यवस्था एवं पढ़ाई के लिए संपूर्ण सुविधा प्रदान करने के लिए वे अधिक से अधिक पैसा खर्च करती हैं। स्पष्ट है कि बच्चों को संपूर्ण सुविधा एवं अच्छा पढ़ाई का माहौल मिलेगा तो उसका व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि स्वतः ही बेहतर होगी जबकि गैर-कामकाजी महिलाएँ अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान तो देती हैं लेकिन वे कामकाजी महिलाओं की तरह अपने बच्चों को पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करा पाती हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति कामकाजी महिलाओं की अपेक्षा न्यून होती है। दूसरी ओर कामकाजी महिलाएँ चूँकि खुद पढ़ी-लिखी होती है, इसलिए उन्हें अनुभव भी अधिक होता है। जिसका लाभ उनके बच्चों को मिलता है। जबकि गैर-कामकाजी महिलाओं के बच्चों को यह सुविधा नहीं मिल पाती।[4]
बालक के विकास में माँ के प्यार के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता है। वह बचपन से ही अपनी माँ के साथ सुरक्षित महसूस करता है। माँ के साथ रहने से बच्चों को उनकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों को पूरा करने की अनुमति मिलती है जबकि माँ को उनके विकास के लिए उपयुक्त मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान करने की भी अनुमति मिलती है। ऐसा होने के लिए, बच्चों के पास सर्वोत्तम शैक्षिक अवसरों के साथ-साथ एक बेहतर पारिवारिक और शैक्षिक वातावरण होना चाहिए तभी बच्चों के व्यक्तित्व और बौद्धिक विकास में सुधार होगा। एक माँ विशेष रूप से न केवल इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उसके पास अद्वितीय क्षमताएँ हैं, बल्कि इसलिए भी कि वह किसी अन्य व्यक्ति की तुलना में अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताती है और उसका प्रशिक्षण बच्चों के दृष्टिकोण, क्षमताओं और व्यवहार पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करता है। अधिकांश सफल और अच्छी तरह से समायोजित बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जहाँ माता-पिता का दृष्टिकोण सकारात्मक होता है और बच्चे और माता-पिता के बीच एक मजबूत रिश्ता होता है।[5]
कामकाजी माता को किसी भी महिला के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो घर से बाहर काम करती है और उसके बच्चे हैं। जबकि गृहिणी वह होती है जिसके बच्चे होते हैं लेकिन वह घर से बाहर काम नहीं करती है। कामकाजी माताएँ और गृहिणियाँ अपनी अलग-अलग गतिशीलता के कारण अपने बच्चों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती हैं। उपलब्धि प्रेरणा को एक विस्तारित व्यक्ति के रूप में माना गया है- आंतरिक प्रेरणा जो कुछ आंतरिक उत्कृष्टता मानकों को प्राप्त करने के प्रयास से जुड़े कार्यों, योजना और भावनाओं का एक पैटर्न दिखाती है। उपलब्धि की आवश्यकता को व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले व्यक्ति के व्यवहार के रूप में माना गया है। इसे एक सीखी हुई प्रेरणा भी माना जाता है। उपलब्धि प्रेरणा स्वयं उपलब्धियों के बजाय प्राप्त करने का दृष्टिकोण है। इसे विस्तारित व्यक्ति-आंतरिक प्रेरणा माना जा सकता है क्योंकि इसके सुदृढीकरण में देरी हो रही है। यह व्यक्ति के भीतर परस्पर क्रिया से उत्पन्न होता है। उपलब्धि प्रेरणा “कार्यों और भावनाओं की योजना बनाने का एक पैटर्न है जो उत्कृष्टता के कुछ आंतरिक मानकों को प्राप्त करने के प्रयास से जुड़ा है, उदाहरण के लिए, इच्छा शक्ति या मित्रता के विपरीत” चूंकि शैक्षणिक उपलब्धि केवल संज्ञानात्मक चर का कार्य नहीं है, पर जोरदार तनाव मनोवैज्ञानिक चर का योगदान अनिवार्य है। जैसे कि मनोवैज्ञानिक चर का यह प्रमुख महत्त्व है, उनके द्वारा मानदंड के प्रति अनुपात भिन्नता का कितना प्रतिशत कारण है, विस्तार और परिमाणीकरण की आवश्यकता है।[6]
कामकाजी माताएँ अपने बच्चों के अच्छे व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक
विकास के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। वे इसके लिए अधिक पैसा खर्च कर बच्चों को वे
सभी सुविधाएँ प्रदान करती हैं जिससे उसके बच्चों का व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक विकास
गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों की अपेक्षा बेहतर हो। ताकि उन्हें अपने बच्चों के
भविष्य में कोई खतरा नहीं दिखाई पड़े, जबकि
गैर-कामकाजी माताएँ अपने बच्चों को अधिक से अधिक समय तो देती हैं लेकिन वह सुविधा
नहीं दे पाती हैं जो कामकाजी माताएँ अपने बच्चों को देती हैं। गैर-कामकाजी महिलाओं
के पास शैक्षिक व व्यावसायिक अनुभव कम होता है। बाहरी दुनिया से उनका जुड़ाव कम
होता है। अतः समय के साथ हो रहे परिवर्तन से उनका जुड़ाव नहीं होता। साथ ही इनके
पास भी घरेलू काम रहते हैं और वह अपने बच्चों की स्वाभाविक प्रतिभा को परख नहीं
पाती, वैसी शैक्षिक दृष्टि भी नहीं होती। परिणामस्वरूप
गैर-कामकाजी माताओं की अपेक्षा कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व विकास एवं
शैक्षिक उपलब्धि सुदृढ़ एवं बेहतर होती है।[7]
संबंधित साहित्य का पुनरावलोकन
लिन क्रैज (2006) [8]के अनुसार जो माताएँ उच्च शिक्षित और कामकाजी हैं वे अपने बच्चों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। हंगल एस. और अमीनाभवी, वी.ए. (2007) [9]ने पाया है कि गृहिणियों के किशोर बच्चों में आत्म-अवधारणा काफी अधिक होती है। गृहिणियों के बच्चों में नियोजित माताओं के बच्चों की तुलना में उच्च आत्म-अवधारणा और उच्च उपलब्धि प्रेरणा होती है। गृहणियों की बालिकाओं की भावनात्मक परिपक्वता गृहणियों के पुत्रों की अपेक्षा अधिक होती है। गृहिणियों के बच्चों की तुलना में नियोजित माताओं के बच्चे सामाजिक रूप से अधिक कुसमायोजित होते हैं और उनमें स्वतंत्रता का बहुत उच्च स्तर तक अभाव होता है।
हॉक, मैकब्राइड और गनेज़्दा (2004) [10] ने खुलासा किया है कि मातृ अलगाव की चिंता और बच्चों की चिंताओं और उनकी माताओं से अलगाव के बीच एक सकारात्मक संबंध मौजूद है। इसे बच्चे की भलाई और उसके अपने मनोवैज्ञानिक संतुलन के लिए खतरा माना जाता है। इस तरह की चिंता, उदासी या अपराध-बोध की भावनाओं में परिलक्षित हो सकती है, चूंकि कामकाजी माताएँ घर के बाहर काफी समय बिताती हैं, इसलिए वे अपने बच्चों को ऐसा गुणवत्तापूर्ण समय देने की कोशिश करती हैं, जिसमें वे उनका पालन-पोषण कर सकें। यह विशेष रूप से बच्चों का समय है। हालांकि गृहणियों के लिए चीजें थोड़ी अलग हैं। वे अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताती हैं लेकिन ज़रूरी नहीं कि वह समय गुणवत्तापूर्ण हो क्योंकि उन्हें एक साथ बच्चों की देखभाल और घर के काम करने होते हैं।
डॉ. मोहम्मद अहसान एवं डॉ. आनंद कुमार जी(2013) [11]ने अपने शोध कार्य कामकाजी और गैर-कामकाजी माताओं से संबंधित बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धि पर एक अध्ययन किया इस अध्ययन का उद्देश्य कामकाजी और गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धि में अंतर की जाँच करना था। ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने वाले एक सौ अस्सी छात्रों का चयन सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों से किया गया था। प्रत्येक स्कूल से तीस छात्रों का चयन कामकाजी और गैर-कामकाजी माताओं के आधार पर किया गया था। छात्रों को सामान्य जानकारी प्रश्नावली प्रदान की गई। सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए 'टी' परीक्षण का प्रयोग किया गया। दो समूहों के साधनों के बीच महत्त्व को निर्धारित करने के लिए, टी-मानकों की गणना की गई। महत्त्व के स्तर 0.05 का उपयोग किया गया था। अध्ययन के परिणाम से पता चला कि कामकाजी और गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धि के बीच कोई महत्त्वपूर्ण अंतर नहीं है। लिंग अंतर के आधार पर अध्ययन से पता चला है कि कामकाजी और गैर-कामकाजी माताओं के पुरुष और महिला बच्चों में भी कोई महत्त्वपूर्ण अंतर नहीं है। वर्तमान पीढ़ी ने अपनी माँ को बाहर काम करना स्वीकार किया है। इस प्रकार, माताओं का रोजगार बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन को प्रभावित नहीं कर सकता है।
डॉ अनु डंडोना (2016) [12] ने शोधकार्य कार्यरत माताओं और गृहणियों के बच्चों की उपलब्धि प्रेरणा के अंतर्गत अध्ययन में पाया कि जब से महिलाओं ने कार्यबल में प्रवेश करना शुरू किया है, तब से उन माताओं पर बहस चल रही है जो कार्य बल में प्रवेश करती हैं और जो अपने बच्चों के साथ घर पर रहना पसंद करती हैं। इस तरह की चिंता यह है कि कामकाजी माँ होने या न होने से उनके बच्चों पर भावनात्मक और/ या अकादमिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है या नहीं। एक और चिंता का विषय है तनाव का स्तर जो एक कामकाजी माँ प्रतिदिन सामना करती है। प्रस्तुत अध्ययन में किशोरों की उपलब्धि अभिप्रेरणा पर मातृ रोजगार के प्रभाव का आँकलन किया गया। नमूने में कार्यरत माताओं के 80 बच्चें और गृहिणियों के 80 बच्चे शामिल थे। इसके अलावा नमूने को लिंग(40 लड़के और 40 लड़कियों) के आधार पर विभाजित किया गया था। मिश्रा, ओ.पी. और श्रीवास्तव, एस.के., 1990 द्वारा अनुकूलित कॉस्टेलो अचीवमेंट मोटिवेशन स्केल(सी.ए.एम.एस) को उनकी उपलब्धि प्रेरणा का आकलन करने के लिए चयनित नमूने को प्रशासित किया गया था। प्राप्त आंकड़ों का माध्य, एसडी, टी-टेस्ट और एनोवा की मदद से इलाज किया गया था। परिणामों के विश्लेषण से पता चला कि गृहणियों के बच्चों की तुलना में नियोजित माताओं के बच्चों में उपलब्धि अभिप्रेरणा अधिक थी। इसके अलावा, निष्कर्षों ने संकेत दिया कि नियोजित माताओं की किशोर लड़कियों ने गृहणियों के किशोर लड़कों की तुलना में उपलब्धि प्रेरणा पर उच्च स्कोर किया।
श्रीमती रीता अरोड़ा (2016)[13] ने अपने शोधकार्य में गैर-कामकाजी और कामकाजी माताओं के किशोरों के व्यक्तित्व लक्षण का अध्ययन किया। वर्तमान अध्ययन गैर-कामकाजी और कामकाजी माताओं के किशोरों के व्यक्तित्व लक्षणों का अध्ययन करने के लिए किया गया था। अध्ययन के नमूने में ज़िला मोगा के वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों से यादृच्छिक रूप से चुने गए 200 किशोरों(काम करने वाली माताओं में से 100 और गैर-कामकाजी माताओं में से 100) शामिल थे। कैटेल 16 पी.एफ. आँकड़ों के संग्रह के लिए प्रश्नावली का उपयोग किया गया और डेटा के विश्लेषण के लिए टी-टेस्ट का उपयोग किया गया। अध्ययन के परिणाम से पता चलता है कि गैर-कामकाजी और कामकाजी माताओं के किशोरों के व्यक्तित्व लक्षणों में महत्त्वपूर्ण अंतर पाया गया है। यह भी दर्शाता है कि कामकाजी माताओं के किशोर गैर-कामकाजी माताओं के किशोरों की तुलना में कम ठोस विचारक, कम भावनात्मक रूप से स्थिर, अधिक मुखर स्वतंत्र, अधिक खुश-भाग्यशाली, अधिक कर्तव्यनिष्ठ, कम कोमल दिमाग, अधिक कल्पनाशील, अधिक चतुर होते हैं। आशंकित और अधिक आत्मनिर्भर जबकि गैर-कामकाजी और कामकाजी माताओं के पुरुष किशोरों के व्यक्तित्व लक्षणों में कोई महत्त्वपूर्ण अंतर नहीं पाया गया है।
अनुसंधान अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व - बालक के विकास में माता के स्नेह का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जन्म से ही माँ के भविष्य में उसे एक सुरक्षा का बोध होता है। माँ के साथ रहकर बच्चे जहाँ शारीरिक व मनोवैज्ञानिक आवश्यकता की पूर्ति करने में समर्थ रहते हैं, वहाँ साथ ही साथ माँ का उचित निर्देशन व प्रशिक्षण उनके विकास को सही दिशा प्रदान करता है। इसके लिए आवश्यक है कि माताएँ अधिक से अधिक समय बच्चों के सम्पर्क में व्यतीत करें। जो स्त्रियाँ नौकरी करने लगती हैं, उसका दिन का अधिकांश समय घर के बाहर स्कूलों, दफ्तरों आदि में बीतता है लेकिन ऐसी माताओं का मानना है कि बच्चे को अकेले छोड़ने से बहुत कुछ काम वह स्वयं करना सीखता है, और आत्मनिर्भर होता है। नौकरी करने वाली महिला जबरदस्त द्वंद्व से गुजरती है, घर और बाहर दुगुना काम करती है। ऐसी स्थिति में कामकाजी महिला का अपने किशोर बच्चों के साथ कैसा सम्बन्ध है वह किशोर बच्चों की तरफ ध्यान दे पाती है।
वर्तमान परिदृश्य में कामकाजी महिलाएँ अपने बच्चों को
बेहतर से बेहतर सुविधाएँ एवं वातावरण मुहैया कराने के लिए रोजगार का सहारा लेती है
जिस कारण वह अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाती जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव
उसके व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि पर पड़ता है जबकि गैर-कामकाजी महिलाएँ अपने
बच्चों को पर्याप्त समय देती हैं। साथ ही उसके अध्ययन-अध्यापन में मदद करती हैं
लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण वे अपने बच्चों को वह सुविधा उपलब्ध नहीं करा पाती है
जो कामकाजी महिलाएँ अपने बच्चों को देती हैं। इसका प्रभाव उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर
कैसा पड़ता है यह एक खोज का विषय है इस नई खोज की गति व उद्देश्य दोनों इस विषय के
गहन अध्ययन के लिए बाध्य करते हैं। परिणामस्वरूप कामकाजी महिलाओं के बच्चों का
व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि गैर-कामकाजी महिलाओं के बच्चों की अपेक्षा बेहतर
होता है। आजकल की सभी महिलाएँ नौकरी करना पसंद करती हैं। अतः उनके बच्चों के
व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि का अध्ययन करना आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है।
अध्ययन के उद्देश्य -
·
कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व का तुलनात्मक अध्ययन
करना।
·
कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के शैक्षणिक उपलब्धि का तुलनात्मक
अध्ययन करना।
समस्या कथन - प्रस्तुत शोध के अंतर्गत शोधकर्ता ने “माध्यमिक स्तरीय बच्चों के व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि पर कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं का प्रभाव” किया है।
अनुसंधान प्ररचना - किसी भी शोध कार्य का महत्वपूर्ण अंग शोध विधि होता है। जब कभी वर्तमान संदर्भ में शिक्षा के विकास को देखने का प्रयास किया जाता है तथा वर्तमान स्थिति से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण कर भविष्य में सुधार हेतु सुझाव दिया जाता है, प्रस्तुत शोध कार्य के अंतर्गत विवरणात्मक अनुसंधान प्ररचनासे हुआ है जिसमे सर्वेक्षण विधि के माध्यम से प्रश्नावली, साक्षात्कार भरकर तथ्यों का संकलन किया गया है।
अनुसंधान उपकरण - प्रस्तुत शोध के सर्वेक्षण स्वरूप के कारण शोधकर्ता द्वारा अध्ययन के उद्देश्यानुरूप शोध सम्बन्धी उपकरणों का चुनाव किया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र के अंतर्गत उपकरण के रूप में कामकाजी एवं ग़ैर-कामकाजी माताओं के बच्चो के व्यक्तित्व मापन हेतु डॉ. महेश भार्गव द्वारा विकसित 6 व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली ‘डी.पी.आई परीक्षण’ के हिंदी संस्करण का उपयोग कामकाजी और गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व लक्षणों को निर्धारित करने के लिए किया गया है एवं कामकाजी एवं ग़ैर-कामकाजी माताओं के बच्चो की शैक्षिक प्रगति हेतु डॉ. ए. के. सिंह एवं डॉ० (श्रीमती) ए. सेन गुप्ता द्वारा निर्मित ‘‘सामान्य कक्षा-कक्ष उपलब्धि परीक्षण’’ का उपयोग किया गया है।
न्यादर्श चयन विधि - प्रस्तुत शोध अध्ययन के अंतर्गत शोधकर्ता ने समस्या के न्यादर्श के चुनाव हेतु
स्तरित दैव निदर्शन पद्धति के आधार पर चयनित प्रत्येक माध्यमिक विद्यालय से
उत्तरदाताओं के रूप में 20-20 छात्र एवं छात्राओं
अर्थात् दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले कुल 200 छात्रों का
चयन किया गया है। जिसमें अध्ययनकर्ता सम्पूर्ण जनसंख्या में से अपने
उद्देश्य के अनुसार अध्ययन इकाइयों का चयन करता है।
प्रयुक्त
जनसंख्या विवरण
उन
समस्त जनसंख्या से तात्पर्य समस्त व्यक्तियों से जो उत्तरदाता हो सकते हैं अर्थात्
शोध का विषय जिन व्यक्तियों पर केंद्रित है, तथा जिसमें से न्यादर्श(Sample) का चुनाव होता है। प्रस्तुत शोध कार्य
में चयनित समस्या के अध्ययन के लिए जनसंख्या के रूप में लॉटरी पद्धति
के आधार पर पटना नगर से 5 सरकारी माध्यमिक विद्यालयों के दसवीं
कक्षा में पढ़ने वाले छात्र एवं छात्राओं का चयन किया गया है।
तालिका सं० 1.1 उत्तरदाताओं का चयन
माध्यमिक विद्यालयों की
संख्या |
5 |
कामकाजी माताओं के
बच्चे |
20 |
गैर-कामकाजी माताओं के
बच्चे |
20 |
कुल छात्र-छात्रों की संख्या |
200 |
प्रयुक्त
चर
· स्वतंत्र चर - व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि।
· आश्रित चर - माध्यमिक स्तर के बच्चे एवं कामकाजी एवं गैर-कामकाजी
माताएँ।
प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि
प्रस्तुत
शोध में शोधकर्ता द्वारा आँकड़ों के विश्लेषण हेतु मध्यमान, मानक विचलन एवं एनोवा परीक्षण आदि सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया गया
है।
v
चयनित उत्तरदाताओं का लैंगिक विवरण
तालिका सं० 1.2 लिंग के आधार पर उत्तरदाताओं का
वर्गीकरण
|
आवृत्ति |
प्रतिशत |
वैधप्रतिशत |
संचित प्रतिशत |
|
वैध |
छात्र |
100 |
50.0 |
50.0 |
50.0 |
छात्राएँ |
100 |
50.0 |
50.0 |
100.0 |
|
कुल |
200 |
100.0 |
100.0 |
|
उपरोक्त
तालिका 1.2 एवं लेखाचित्र 1.1 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित
उत्तरदाताओं का लिंग के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200
उत्तरदाताओं में से 100(50 प्रतिशत) उत्तरदाता छात्र एवं 100(50 प्रतिशत)
उत्तरदाता छात्राएँ हैं।
तालिका
सं० 1.3 माताओं
की रोजगार स्थिति के आधार पर उत्तरदाताओं का वर्गीकरण
|
आवृत्ति |
प्रतिशत |
वैधप्रतिशत |
संचित प्रतिशत |
|
वैध |
कामकाजी माताएँ |
129 |
64.5 |
64.5 |
64.5 |
गैर-कामकाजी माताएँ |
71 |
35.5 |
35.5 |
35.5 |
|
कुल |
200 |
100.0 |
100.0 |
|
लेखाचित्र
सं०1.2 माताओं की रोजगार स्थिति के आधार पर उत्तरदाताओं के प्रतिशत को दर्शाया गया
है।
उपरोक्त
तालिका 1.3 एवं लेखाचित्र 1.2 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित
उत्तरदाताओं की माताओं की रोजगार स्थिति को दर्शाया है। स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200
उत्तरदाताओं में से 129 (64.5प्रतिशत) बच्चों की माताएँ कामकाजी
एवं 71(35.5 प्रतिशत) बच्चों की माताएँ गैर-कामकाजी हैं।
परिकल्पना
परीक्षण
v
परि० कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के
व्यक्तित्व एवं शैक्षिक उपलब्धि में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया गया।
तालिका सं०1.4 कामकाजी एवं गैर-कामकाजी
माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व एवं शैक्षिक उपलब्धि के मध्यमान एवं मानक विचलन
विश्लेषण को दर्शाया गया है।
वर्णनात्मक विश्लेषण |
|||||||||
|
संख्या |
माध्य |
मानक विचलन |
मानक त्रुटि |
माध्य के लिए 95% विश्वास अंतराल |
न्यूनतम |
अधिकतम |
||
निम्नपरिबंध |
उच्चपरिबंध |
||||||||
व्यक्तित्व |
कामकाजीमाताएँ |
119 |
71.7143 |
16.13877 |
1.47944 |
68.7846 |
74.6440 |
46.00 |
100.00 |
गैर-कामकाजीमाताएँ |
81 |
76.5926 |
14.68824 |
1.63203 |
73.3448 |
79.8404 |
40.00 |
100.00 |
|
कुल |
200 |
73.6900 |
15.71428 |
1.11117 |
71.4988 |
75.8812 |
40.00 |
100.00 |
|
शैक्षिकउपलब्धि |
कामकाजीमाताएँ |
119 |
109.8487 |
19.82023 |
1.81692 |
106.2507 |
113.4467 |
67.00 |
160.00 |
गैर-कामकाजीमाताएँ |
81 |
116.3951 |
25.885517 |
2.87613 |
110.6714 |
122.1187 |
60.00 |
157.00 |
|
कुल |
200 |
112.5000 |
22.64251 |
1.60107 |
109.342 |
115.6572 |
60.00 |
160.00 |
लेखाचित्र सं०1.3 अध्ययन के माध्यम एवं
मानक विचलन को निम्न आकृति में प्रस्तुत किया गया है।
उपरोक्त तालिका सं० 1.4 व लेखाचित्र सं० 1.3 के आँकड़ों की गणना
करने से स्पष्ट होता है कि वर्णनात्मक विश्लेषण के तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर
कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व पर कुल मध्यमान अंक 71.7143 और कुल मानक
विचलन 16.13877 एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व का कुल मध्यमान
अंक 76.5926 और कुल मानक विचलन 14.68824 है,इसी प्रकार कामकाजी माताओं के बच्चों की
शैक्षिक उपलब्धि पर कुल मध्यमान अंक 109.8487 और कुल मानक विचलन 19.82023 एवं
गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि का कुल मध्यमान अंक 116.3951 और
कुल मानक विचलन 25.885517 प्राप्त हुआ।
तालिका सं०1.5 कामकाजी एवं गैर-कामकाजी
माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व एवं शैक्षिक उपलब्धिका मध्य सम्बन्ध को दर्शाया
गया है
एनोवा परीक्षण |
||||||
|
|
वर्गों का योग |
डीएफ |
माध्यवर्ग |
सार्थकता स्तर एफ |
|
व्यक्तित्व |
समूहों के मध्य |
1146.939 |
11 |
1146.939 |
4.732 |
.031 |
समूहों के भीतर |
47993.841 |
198 |
242.393 |
|
|
|
कुल |
49140.780 |
199 |
|
|
|
|
शैक्षिक उपलब्धि |
समूहों के मध्य |
2065.365 |
1 |
2065.365 |
4.091 |
.044 |
समूहों के भीतर |
9958.635 |
198 |
504.842 |
|
|
|
कुल |
102024.000 |
199 |
|
|
|
उपरोक्त
तालिका सं० 1.5 के अंतर्गत कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व एवं
शैक्षिक उपलब्धि के मध्य तुलनात्मक अध्ययन हेतु आँकड़ों की स्पष्टता के लिए एनोवा
परीक्षण का प्रयोग किया गया हैं तथ्यों के माध्यम से यह अनुमान लगाया गया है कि
कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के मध्य व्यक्तित्व के सम्बन्ध में
सार्थकता स्तर 0.031 एवं कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के मध्य शैक्षिक उपलब्धि के
सम्बन्ध में सार्थकता स्तर 0.044 पाया गया। सार्थकता स्तर 348 की डिग्री के लिए महत्त्व के स्तर के 5 प्रतिशत से कम पाया गया। अतः निर्धारित
शून्य परिकल्पना को अस्वीकृत कर दिया गया है। निष्कर्षतः आँकड़ों के विश्लेषण से
स्पष्ट है कि कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व एवं शैक्षिक
उपलब्धि में महत्त्वपूर्ण अन्तर पाया गया।
निष्कर्ष
:
- आँकड़ों के निष्कर्ष के आधार पर यह
स्पष्ट है कि कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व की तुलना में
गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के व्यक्तित्व में भिन्नताएँ देखने को मिली है।
कामकाजी माताओं के बच्चों का व्यक्तित्व अत्यधिक प्रभावी होता है। कामकाजी
माताओं के बच्चों का व्यक्तित्व में शील, गुणों की अपेक्षा सकरात्मक रूप
देखने को मिला है। कामकाजी माताएँ अपने बच्चों को गैर-कामकाजी माताओं की
तुलना में पर्याप्त समय नहीं दे पाती है जिसके अभाव से बच्चों के व्यक्तित्व
पर प्रभाव पड़ता है परन्तु गैर-कामकाजी माताएँ अपने बच्चों को पर्याप्त समय
देने के कारण उनके व्यावहारिक जीवन को संतुलन में बनाए रखने में पूर्ण सहयोग
देती है।
- आँकड़ों के निष्कर्ष के आधार पर यह
स्पष्ट है कि कामकाजी और गैर-कामकाजी माताओं के बच्चे अपनी शैक्षणिक उपलब्धि
के समग्र स्कोर पर काफी भिन्न हैं। कामकाजी माताओं के बच्चों की तुलना में
गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों ने शैक्षणिक उपलब्धि कम दिखाई है।
- आँकड़ों के निष्कर्ष के आधार पर यह
स्पष्ट है कि कामकाजी माताओं के बच्चों का औसत अंक अंग्रेजी, गणित और सामाजिक विज्ञान विषयों
में गैर-कामकाजी माताओं के बच्चों के औसत अंक से अधिक है।
उपसंहार :
प्रस्तुत अध्ययन में माध्यमिक स्तरीय बच्चों के व्यक्तित्व एवं
शैक्षणिक उपलब्धि पर कामकाजी एवं गैर-कामकाजी माताओं के प्रभाव का आकलन करने का
प्रयास किया गया है। वर्तमान पीढ़ी ने अपनी माँ को बाहर काम करना स्वीकार किया है।
इस प्रकार माताओं का रोजगार बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन को प्रभावित नहीं कर सकता
है। इसके अलावा माताएँ अपने बच्चों को जितना गुणवत्तापूर्ण समय देती हैं, वह दोनों ही मामलों में लगभग समान होता है क्योंकि घर पर
रहने वाली माँ ज़्यादातर समय घर के कामों में व्यस्त रहती हैं। शोधकर्ता ने कामकाजी
माताओं के बच्चों के सामने आने वाली समस्याओं पर प्रकाश डाला और पाया कि माँ
द्वारा प्रदान की जाने वाली देखभाल बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत
जिम्मेदार है। घर ही ऐसा होता है, जहाँ बच्चे का सर्वांगीण विकास होता है।
वर्ष 2008 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई मातृत्व वृद्धि, चाइल्ड केयर लीव जैसी पहलों को प्रोत्साहित किया जा सकता
है। आगे यह भी सुझाव दिया गया है कि सरकार द्वारा ऐसे कुछ और कदम उठाए जाने चाहिए
जिससे कामकाजी महिलाओं को अपने बच्चों की उचित देखभाल करने में सुविधा हो।
संदर्भ :
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किशोरों की संवेगात्मक बुद्धि का अध्ययन”, जय माँ सरस्वती ज्ञानदायिनीः एक अंतर्राष्ट्रीय बहु-विषयक
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नीतू सिंह(व्याख्याता)
शोधार्थी, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार
neetusingh.2352@gmail.com, 9835804333
शोध निर्देशक- प्रो. बिनय कुमार चौधरी
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च 2022
UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )
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