व्यतिरेकी भाषा विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्त्व
- डॉ.शिवम् चतुर्वेदी
व्यतिरेकी भाषा विज्ञान अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान की एक शाखा है। दो भाषाओं के बीच कुछ तथ्यों पर समानता एवं असमानता पायी जाती है, जिसका अध्ययन व्यतिरेकी विश्लेषण के माध्यम से किया जाता है। व्यतिरेकी विश्लेषण के अंतर्गत दो भाषाओं की व्याकरण, शब्दावली, ध्वनि व्यवस्था एवं लेखन व्यवस्था की तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। भाषा शिक्षण-प्रशिक्षण एवं अनुवाद कार्य में इसका प्रयोग किया जाता है। भाषा तत्त्वों के विभिन्न स्तरों पर दो भाषाओं के बीच व्यतिरेकी विश्लेषण किया जाता है। यह भाषा के संरचनागत विश्लेषण में भी सहायक होता है। अनुवाद कार्य करते समय स्रोत भाषा की विषयवस्तु को लक्ष्य भाषा में अन्तरित करते समय दोनों भाषाओ में समानता और असमानता का अध्ययन में व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भाषाओं के विश्लेषण में जो भाषा वैज्ञानिक प्रणाली अपनाई जाती है, वह व्यतिरेकी विश्लेषण और अनुवाद प्रक्रिया दोनों पर लागू होती है। आधार भाषा और लक्ष्य भाषा के बीच व्याघात की सम्भावना एवं व्याघातों की वास्तविक प्रक्रिया व्यतिरेकी विश्लेषण के द्वारा किया जाता है। व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रयोग मुख्यतः अनुवादक, मीडियाकर्मी, मशीनी अनुवाद, शिक्षण-प्रशिक्षण आदि में प्रासंगिक है। अनुवादक अनुवाद करते समय स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की असमानता को दूर कर अनुवाद कार्य करे तो अनुवाद सरल, सहज, सुबोध और सटीक होगा। भारत में लगभग 90 भाषाओं और अनेक बोलियाँ प्रयोग में लायी जाती है, इसलिए यहाँ व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
बीज शब्द : भाषा , व्यतिरेक, स्रोत भाषा, लक्ष्य भाषा , शिक्षण-प्रशिक्षण, अनुवाद ,विश्लेषण, अभिव्यक्ति, सम्रेषण।
मूल आलेख :
व्यतिरेकी विश्लेषण को अंग्रेजी में contrastive analisys कहा जाता है। भाषाओं की भिन्नताओं पर प्रकाश डालने वाले तुलनात्मक अध्ययन के लिए व्यतिरेकी विश्लेषण (contrastive
analisys) का प्रयोग किया जाता है। वूर्फ़ नामक विद्वान ने सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग किया। व्यतिरेकी भाषा विज्ञान अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान के अन्तर्गत आता है। प्रत्येक भाषा किसी न किसी अन्य भाषा से कुछ बिन्दुओं पर समानता रखती है तथा कुछ संरचनात्मक असमानताएं भी अवश्य प्राप्त होती है। इन दो भाषाओं की संरचनात्मक व्यवस्था के मध्य प्राप्त असमान बिन्दुओं या तत्त्वों को उद्घाटित करने के लिए व्यतिरेकी विश्लेषण का उपयोग किया जाता है।
भाषा शिक्षण-प्रशिक्षण का माध्यम है। इसके माध्यम से मानव विचाराभिव्यक्ति करता है। शिक्षा के क्षेत्र में भाषा विज्ञान के अनुप्रयोग पर जो प्रयास किये गये है। उनमें भाषा का व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। व्यतिरेकी शब्द का निर्माण संस्कृत की ‘रिच’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है– ‘अलग करना।’ ‘रिच’ के पूर्व ‘वि’ (विशेष) तथा अति उपसर्ग और अन्त में भाववाचक प्रत्यय ‘धअ’ जोड़ने से (वि+रिच+धअ) व्यतिरेकी शब्द बनता है। जिसका अर्थ है ‘विरोध’ या ‘असमानता।’ व्यतिरेक में ‘ई’ प्रत्यय लगाने से ‘व्यतिरेकी’ शब्द बना, जिसका अर्थ है ‘असमानता दिखने वाला।’ इसी अर्थ में ‘व्यतिरेकी’ शब्द को अंग्रेजी के ‘कन्ट्रस्टीव लिंग्विस्टिक’
(contrastive Linguistics) के लिए व्यतिरेकी भाषा विज्ञान का प्रयोग किया जाने लगा है।
डॉ.कविता रस्तोगी के अनुसार– “किन्ही दो भाषाओं के विविध स्तरों पर पाई जाने वाली समता–विषमता का गहन अध्ययन कर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने का प्रयत्न व्यतिरेकी भाषा विज्ञान कहलाता है।”
सुबोध कुमार सिंह के अनुसार- “व्यतिरेकी भाषा विज्ञान वह विज्ञान है, जो भाषा को अनुवाद कार्य और शिक्षण कार्य के लिए सुलभ बनाता है।”
प्रो.सूरज भान सिंह के अनुसार– “ध्वनि, लिपि, व्याकरण, शब्द, अर्थ, वाक्य और संस्कृति जैसे विभिन्न स्तरों पर दो भाषाओं की संरचनाओं की परस्पर तुलना करके उनमें समान और असमान तत्त्वों का विश्लेषण करना व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाता है।”
डॉ.ललित मोहन बहुगुणा के अनुसार– “भाषा विश्लेषण की यह तकनीक, जिसके द्वारा भाषाओं में व्यतिरेक इंगित किया जाता है, व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाती है।”
डॉ.शंकर बुंदेले के अनुसार- “भाषा विश्लेषण में जहाँ दो भाषाओं में व्यतिरेक या असमानताएं सूचित की जाती हैं, यह व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाता है।”
एम.जी. चतुर्वेदी के अनुसार– “मातृभाषा अथवा लक्ष्य भाषा व्याघात के विश्लेषण के लिए दो भाषाओं की तथा उनकी संरचनाओं के सभी स्तरों पर तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए, दोनों भाषाओं के समान, अर्द्धसमान तथा असमान प्रयोगों को पहचानने के लिए, त्रुटि विश्लेषण के लिए और लक्ष्य भाषा शिक्षण के लिए व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रयोग होता है।”
प्रो.उषा सिन्हा के अनुसार– “दो भाषाओं के मध्य उत्पन्न विषमता को दूर कर अनुवाद और शिक्षण कार्य के योग्य बनाने का अध्ययन व्यतिरेकी भाषा विज्ञान है।”
व्यतिरेकी भाषा विज्ञान को भेद दर्शी व्याकरण(Differential Grammer), व्यतिरेकी व्याकरण(Comprative
Grammer) आदि का अर्थ भी व्यतिरेकी भाषा विज्ञान के लिए किया जाता है। जिसमें स्रोत भाषा एवं लक्ष्य दो भाषाओं की तुलना करके समानताएं और विषमताओं की पहचान की जाती है तथा दो भाषाओं में सम्बन्ध स्थापित करने एवं मूल भाषा के निर्माण आदि के लिए किया जाता है। व्यतिरेकी भाषा विज्ञान के अन्तर्गत दो भाषाओं का अध्ययन किस स्तर पर समनता एवं किस स्तर पर असमानता है कि विवेचना की जाती है। इसमें दो भाषाओं में विरोधी या असमान बातों की खोज पर बल दिया जाता है।
तुलनात्मक भाषा विज्ञान और व्यतिरेकी भाषा विज्ञान में अंतर यह है कि तुलनात्मक भाषा विज्ञान में विविध भाषाओं में समानता खोजकर उन्हें एक वर्ग में रखा जाता है जबकि व्यतिरेकी भाषा विज्ञान का उद्देश्य दो भाषाओं के व्यतिरेकों और विरोधों का भाषा शिक्षण और अनुवाद कार्य में प्रयोग किया जाता है।
18वीं-19वीं शताब्दी में ऐतिहासिक और तुलनात्मक भाषा विज्ञान में प्रत्यक्षत: या परोक्षत: व्यतिरेकी भाषा विज्ञान का विकास दिखाई पड़ता है। भाषा शिक्षण में व्यतिरेकी भाषा विज्ञान का प्रयोग सामान्य प्रयोग में लाया जाता है।
दो भाषाओं का व्याकरण पूर्णत: एक जैसा नहीं होता। प्रत्येक भाषा के अपने स्वरूप होता है। शब्द, वाक्य, अर्थ, ध्वनि, शैली, लेखन, व्याकरण एवं संस्कृति के स्तर पर दो भाषाओं के बीच समान और असमान तत्त्व पाए जातें है। तत्त्वों की विभिन्नता अन्य भाषा सीखने में बाधा होती है। प्रत्येक भाषा की अपनी आत्मा होती है। एक भाषा-भाषी को दूसरी भाषा सीखने के लिए दोनों भाषाओं के आत्मीक तत्त्वों का ज्ञान होना परमावश्यक है। नई भाषा सीखने के लिए उस भाषा के आचरण करने की सही आदतें विकसित करना है। इन आदतों के साथ अध्येता को इस भाषा के सामाजिक सांस्कृतिक सन्दर्भों से परिचित होना है। ऐसी स्थिति में अन्य भाषा सीखते समय आने वाले समस्याओं एवं व्यवधानों को हम व्यतिरेकी विश्लेषण के अन्तर्गत रखते हैं। भाषा विज्ञान में विश्लेषण की विधियों के विकास के साथ-साथ शिक्षण क्षेत्र में भाषा विज्ञान के अनुप्रयोगों के जो प्रयास किए गए हैं, उसमें व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
व्यतिरेक का अर्थ ‘अन्तर’ या ‘विरोधात्मक स्थिति’ है। “विभिन्न स्तरों पर दो भाषाओं को संरचनाओं की परस्पर तुलना कर उनमें समान और असमान तत्त्वों का विश्लेषण करना व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाता है।” इसमें दो भाषा को समझने के लिए उसका अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है। इसमें दो भाषाओं के मध्य समान.असमान एवं संरचनात्मक तत्त्वों को समझने का प्रयास किया जाता है। अनुवाद कार्य करते समय स्रोत भाषा की विषयवस्तु को लक्ष्य भाषा में अन्तरित करते समय दोनों भाषा में समानता और असमानता के अध्ययन में व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्वपूर्ण योगदान है। व्यतिरेकी विश्लेषण और अनुवाद प्रक्रिया दोनों का सम्बन्ध कम से कम दो भाषाओं और उनकी तुलना से है। भाषाओं के विश्लेषण में जो भाषा वैज्ञानिक प्रणाली अपनायी जाती है। वह व्यतिरेकी विश्लेषण और अनुवाद प्रक्रिया दोनों पर लागू होती है। इस प्रकार अनुवाद का सीधा सम्बन्ध व्यतिरेकी विश्लेषण से है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सैनिकों को दूसरी भाषाएँ सीखाने के लिए सर्वप्रथम व्यवस्थित अन्य भाषा शिक्षण की आवश्यकता पड़ी। इसी अवधि में अमेरिका में कई जातियों और कई भाषाओं के लोग आकर बसने लगे थे। उन्हें भी अग्रेजी सीखने की आवश्यकता पड़ी। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भाषा वैज्ञानिकों को भिन्न-भिन्न भाषाओं के अध्ययन और विश्लेषण के साथ-साथ उनकी शिक्षण सामग्री का निर्माण करना पड़ा। इसी के साथ अन्य भाषा शिक्षण के लिए अनेक व्यवस्थित प्रयास शुरू हुए। अन्य भाषा शिक्षण की बढ़ती मांग ने ही व्यतिरेकी भाषा विज्ञान को एक व्यवस्थित शाखा के रूप में विकसित करने का श्रेय दो अमेरिकी भाषा वैज्ञानिकों– चार्ल्स सी फ्रिज और राबर्ट लेडो की पुस्तक “लिंग्विस्टिक एक्रास कल्चर व्यतिरेकी भाषा विज्ञान का आकार ग्रन्थ है। भारत में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं तथा हिन्दी और अंग्रेज़ी के व्यतिरेकी अध्ययन और विश्लेषण पर कार्य हो रहे हैं। अन्य भाषा सीखते समय आने वाली कठिनाईयों को जानने के लिए यह जानना आवश्यक होता है कि आधार भाषा और लक्ष्य भाषा के बीच व्याघात की क्या सम्भावना है। इसके साथ यह भी देखना पड़ता है कि भाषा अधिगम प्रक्रिया में इन व्याघातों की वास्तविक प्रकृति क्या होगी। यह कार्य व्यतिरेकी विशेषण के द्वारा किया जाता है।
व्यतिरेकी भाषा विज्ञान न तो सामान्य भाषा विज्ञान है और न भाषा सापेक्ष भाषा विज्ञान। इसका स्थान दोनों के बीच का है। व्यतिरेकी भाषा विज्ञान का सम्बन्ध अध्येय भाषाओं के अंतर्निहित विशिष्टताओं को प्रकाश में लाने से है। इसलिए इसका सम्बन्ध भाषा विज्ञान से जोड़ा जा सकता है और साथ ही तुलनात्मक भाषा विज्ञान से।
व्यतिरेकी विश्लेषण के अन्तर्गत दो भाषाओं की व्याकरण शब्दावली, ध्वनि व्यवस्था एवं लेखन व्यवस्था की तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। इस तुलना के द्वारा दोनों भाषाओं में पाई जाने वाली संरचनागत समानताओं और असमानताओं की विवेचना की जाती है। इसमें दोनों भाषाओं का तात्त्विक विवेचना किया जाता है। डॉ.भोलानाथ तिवारी के अनुसार “व्यतिरेकी भाषा विज्ञान भाषा के उस प्रकार को कहते है, जिनमें दो भाषाओं या भाषा रूपों के विभिन्न स्तरों पर तुलना करके उनके आपसी विरोधों या व्यतिरेक का पता लगाते हैं।
डॉ.रामनाथ सहाय के अनुसार, – व्यतिरेकी भाषा वैज्ञानिक विवरणों के आधार पर स्रोत और लक्ष्य भाषाओं के विविध पक्षों की गहराई में समानताएं और असमानताएं खोजी जाती हैं। सामान्यत: दो भाषाओं के स्तर पर अनेक असमानताएं पाई जाती है क्योंकि प्रत्येक भाषा की अपनी आत्मा होती है। अनुवाद स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की असामनता को खोजकर अनुवाद किया जाए तो अनुवाद सरल, सहज और सटीक हो पायेगा। पाठक के लिए विषयवस्तु समझना सरल हो जाएगा।
व्यतिरेकी विश्लेषण का उपयोग भाषा सीखने एवं सिखाने वाले दोनों के द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। व्यतिरेकी विश्लेषण एक ऐसा माध्यम है। जिसके द्वारा भाषा के विभिन्न स्तरों पर कार्य किया जाता है तथा सही सम्प्रेषण किया जाता है। व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रयोग मुख्यतः– अनुवादक, मीडियाकर्मियों, मशीनी अनुवाद आदि में प्रासंगिक है। गूगल अनुवाद के सुधार में भी व्यतिरेकी विश्लेषण का उपयोग किया है। सांस्कृतिक असमानता के कारण कभी भी मशीन के द्वारा सही अनुवाद नहीं हो पाता।
भारत सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। अनेकता में एकता भारत की पहचान है। विश्व में लगभग 400 भाषाओं का प्रयोग किया जाता है एवं भारत में लगभग 90 भाषाओं और अनेक बोलियों का प्रयोग किया जाता है। भाषाई विविधता का कारण भारत में भाषा शिक्षण काफी महत्त्वपूर्ण कार्य है जिसमें भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। भाषा विज्ञान के विविध स्वरूप है। जिसमें व्यतिरेकी भाषा विज्ञान भी दो भाषाओं को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भारत एक बहुभाषा–भाषी देश है। यहाँ की प्रान्तीय भाषाएँ अपने राज्यों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। ऐसी अवस्था में भाषा शिक्षण काफी महत्त्वपूर्ण है। यहाँ मातृभाषा के अलावा भी लोगों को कई भाषाएँ सीखनी पडती हैं जिसमें एक निश्चित उद्देश्य निहित होता है। शिक्षा, पर्यटन, संचार एवं पत्रकारिता, सम्प्रेषण, व्यापर-वाणिज्य, सांस्कृतिक आदान-प्रदान आदि के लिए हम भाषा सीखते हैं| आज की परिस्थिति में यह भाषा शिक्षण आवश्यक बन गया है। मानव सांसारिक गतिविधियों एवं जीवनचर्या के उद्देश्य की पूर्ति के लिए भी अन्य भाषा सीखता है। भाषा सीखते समय शब्द, अर्थ, ध्वनि, रूप, वाक्य, शैली आदि स्तर पर अनेक समस्याएं आती हैं। भाषा संरचना की विविधता के कारण भाषा शिक्षार्थी भाषा सीखते समय यह महसूस करता है कि भाषाओं का व्याकरण एवं संरचना पूरी तरह समान नहीं होते। भाषा के विभिन्न अंगों के स्तर पर दो भाषाओं के बीच समान और असमान तत्त्व पाए जाते हैं जिसमें ध्वनि, शब्द, अर्थ, रूप, वाक्य, शैली, लेखन, व्याकरण और संस्कृति के स्तरों पर भाषाओं के बीच विभिन्नता पाई जाती है। यही तत्त्व एक भाषा-भाषी को दूसरे भाषा सीखते समय उस भाषा की आत्मा एवं आचरण को समझना पड़ता है तथा उसके अनुसार सही आदतें विकसित करनी पड़ती हैं। इनकी आदतों एवं व्यवहारों के साथ-साथ अध्येता को इस भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से परिचित होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में दूसरी भाषा सीखते समय आने वाली समस्याओं एवं कठिनाइयों को व्यतिरेकी विश्लेषण के अन्तर्गत रखते हैं। भाषा विज्ञान में विश्लेषण की विधियों के विकास के साथ-साथ शिक्षण क्षेत्र में भाषा विज्ञान के अनुप्रयोगों के जो प्रयास किए गए हैं। उसमें व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। व्यतिरेकी का तात्पर्य दो भाषाओं के बीच अंतर या विरोधात्मक स्थिति है। दो भाषा के विभिन्न स्तरों पर उसकी संरचनाओं की परस्पर तुलना कर उनमें समान और असमान तत्त्वों का विश्लेषण करना व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाता है।
व्यतिरेकी विश्लेषण के अध्ययन एवं अनुसन्धान का प्रारम्भ सुप्रसिद्ध भाषाविद हागेन और वाईनरिख(1953) के द्विभाषिकता के अध्ययन से माना जाता है। किन्तु इसे सैद्धांतिक आधार देने का श्रेय राबर्ट लाडो को दिया जाता है। लाडो ने अपने पूर्ववर्ती भाषाविद फ्रिज(1945) के मत को आधार बनाकर बताया है कि– “दोनों भाषाओ की तुलना द्वारा समान असमान और अर्द्धसमान संरचनाओं का पता लगाया जा सकता है।”
इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण का क्षेत्र दो भाषाओं के बीच विभिन्न स्तरों पर पाई जाने वाली समानता और असमानताओं से सम्बद्ध भाषा वैज्ञानिक सिद्धांत और प्रणाली से है। समानता और अमानता के क्षेत्र का निर्धारण करने में अनुवाद का व्यतिरेकी विश्लेषण में विशेष योगदान है। दोनों भाषाओं का ज्ञान होने के बावजूद किसी न किसी भाषा विशेषकर अपनी भाषा के नियम व्याघात उत्पन्न करते है। यहाँ अनुवाद की सहायता से दोनों भाषाओं का अध्ययन–विश्लेषण किया जाता है। क्योंकि व्यतिरेकी विश्लेषण और अनुवाद प्रक्रिया दोनों का सम्बन्ध कम से कम दो भाषाओं और उनकी तुलनीयता से है। अत: भाषाओं के विश्लेषण में जो भाषा वैज्ञानिक प्रणाली अपनाई जाती है, वह व्यतिरेकी विश्लेषण और अनुवाद प्रक्रिया दोनों पर लागू होती है। इस दृष्टि से अनुवाद का सीधा सम्बन्ध व्यतिरेकी विश्लेषण से है।
व्यतिरेकी विश्लेषण को भाषा सीखने-सिखाने वालों के लिए महत्त्वपूर्ण रूप से प्रयोग में लाया जा सकता है। व्यतिरेकी विश्लेषण ऐसा माध्यम है, जिसके आधार पर भाषा के विभिन्न स्तरों को ढूंढकर मौखिक भाषा में भी सुधार किया जा सकता है। व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रयोग मुख्य रूप से अनुवाद, जनसंचार एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में मशीनी अनुवाद तथा भाषाकर्मियों के लिए प्रासंगिक है। अनुवाद में व्यतिरेकी विश्लेषण के माध्यम से अनुदित रचनाओं में सुधार किया जा सकता है। दूसरी भाषा सीखने के लिए अनुवाद का सहारा लिया जाता है। सही अनुवाद में व्यतिरेकी विश्लेषण का आधार बनाकर अनुवाद किया जाए तो सही अनुवाद होगा। अनुवादक को अनुवाद करते समय ध्वनि, लेखन, व्याकरण, शब्द, अर्थ लिए संस्कृति के आधार पर दो भाषाओं में समता और विषमता को ढूढना चाहिए। तभी सटीक व सही अनुवाद हो पायेगा। अनुवादक को अनुवाद करते समय व्यतिरेकी विश्लेषण के सिद्धांतों को अपनाना चाहिए। जिसका प्रभाव साहित्य और समाज पर भी पड़ेगा।
पलित्जर का कहना है कि– भाषाओं के शिक्षण व्यतिरेकी विश्लेषण अध्येता की कठिनाइयों को अर्थवत्ता प्रदान कर सकता है और उनके बारे में अनुमान लगा सकता है।
इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण और त्रुटि विश्लेषण के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसके आधार पर व्यतिरेकी विश्लेषण के तीन उद्देश्य निर्धारित किये गये है- पूर्वानुमान, निरूपण और परीक्षण सामग्री निर्माण। पूर्वानुमान समान स्रोत भाषा-भाषियों के लक्ष्य भाषा अधिगम में होने वाली त्रुटियों का आकलन करता है और इन्हें देखते हुए सामग्री निर्माण में सहायक बनता है। पूर्वानुमान को चार दृष्टियों से देखा जा सकता है– वे स्थल जो समस्या को जन्म दे सकते है, कठिनाइयों का पूर्वानुमान, त्रुटियों का पूर्वानुमान और दृढ हो चुकी त्रुटियाँ। निरूपण के अंतर्गत यह देखा जाता है कि वास्तव में ये त्रुटियाँ क्यों होती है। त्रुटि के कारणों की पहचान से छात्र और अध्यापक दोनों को लाभ होता है। अध्यापक इसके माध्यम से ही त्रुटियों को दूर करने के लिए सुधारात्मक शिक्षण सामग्री तैयार करता है और उन्हें प्रयोग में ले आता है। परीक्षण सामग्री निर्माण में व्यतिरेकी विश्लेषण की दो भूमिकाएँ होती हैं। पहली भूमिका के अनुसार पूर्वानुमान के आधार पर यह वह बतलाता है कि क्या-क्या परिक्षणीय है। उसकी दूसरी भूमिका में यह बताना होता है कि परीक्षण की आवश्यकता किन सीमाओं पर कितनी मात्रा में अपेक्षित है।
भाषा शिक्षण के समय भाषा अधिगम प्रक्रिया में जो त्रुटियाँ होती है, उनकी व्याख्या और उनका निरूपण व्यतिरेकी विश्लेषण द्वारा ही सम्भव हो पाता है। शिक्षण प्रक्रिया के अन्तर्गत आने वाली इन कठिनाइयों को सांचा अभ्यास (Pattern practice) द्वारा अधिक वैज्ञानिक तरीके से दूर किया जा सकता है। व्यतिरेकी विश्लेषण और त्रुटि विश्लेषण में कुछ अंत:सम्बन्ध देखे जा सकते है; जैसे- भाषा की सम्यक जानकारी न होने के कारण त्रुटियाँ होती हैं। जिन्हें व्यतिरेक द्वारा स्पष्ट किया जाता है। व्यतिरेक विश्लेषण द्वारा भाषा से भाषा के नियमों की जो भिन्नता है वह भी विवेचित होती है। व्यतिरेकी विश्लेषण भाषा और भाषा की कठिन–सरल ईकाइयों को स्पष्ट करता है। भाषा अधिगम प्रक्रिया में भाषा की कठिन ईकाईयां ही त्रुटि का कारण बनती है।
त्रुटियों का विश्लेषण भाषा के अभिव्यक्ति पक्ष से सम्बन्धित होता है, बोधन पक्ष से नहीं। अत: व्यतिरेकी विश्लेषण द्वारा कठिनाईयों के स्तरों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। व्यतिरेकी विश्लेषण त्रुटि की सम्भावना से भी बच सकता है, क्योंकि इसके माध्यम से कठिन संरचनाओं को पहचान कर उनके विकल्प दिए जा सकते है। त्रुटियों का विश्लेषण व्यतिरेकी विश्लेषण का एक मात्र विकल्प है। व्यतिरेकी भाषा विज्ञान भाषा शिक्षण की व्यावहारिक पद्धति है, व्यतिरेकी भाषा विज्ञान के माध्यम से दो भाषाओं के समानताओं और व्यतिरेको के बारे में विश्लेषण करके भाषाओं के सुगम बनाने पर जोर दिया जाता है। एक से ज्यादा भाषा शिक्षण की मांग ने व्यतिरेकी भाषा को जन्म दिया है। व्यतिरेकी भाषा विज्ञान की सहायता से पाठ्यक्रम के निर्माता तथा शिक्षक अपने कार्यों को योजनाबद्ध कर सकते हैं और सुनिश्चित पाठ्यसामग्री तैयार कर सकते हैं। पाठ्य बिन्दुओं का चयन कर सकते हैं। शिक्षार्थी की कठिनाईयों को जान सकते हैं और त्रुटियों को दूर कर सकते हैं।
व्यतिरेकी विश्लेषण की उपयोगिता किसी अन्य भाषा शिक्षण पाठ्यसामग्री निर्माण में सहायक होती है तथा स्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा में व्याप्त समानता एवं असमानता की तुलना करके पाठ्य बिन्दुओं के चयन के कार्य को सरल कर देती है। शिक्षार्थी की शिक्षण समस्याओं को समझने, शिक्षण विधियों का आविष्कार करने एवं त्रुटियों के निदान करने में उपयोगी सिद्ध होता है। व्यतिरेकी विश्लेषण लक्ष्य भाषा की संरचना और शैली की स्वाभाविक प्रकृति को पहचान कर कृत्रिम और असहज अनुवाद से बचा जा सकता है। अनुवाद में अनुवादक व्यतिरेकी विश्लेषण से एक से अधिक समानार्थ अभिव्यक्तियों को खोज लेता है, सन्दर्भ के अनुसार उपयुक्त विकल्प का चुनाव करता है एवं अनुवाद में मूल पथ का सूक्ष्म अर्थ को सुरक्षित रख सकता है।
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श्रीवास्तव,रवीन्द्रनाथ, अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान ,
प्रो.(डॉ.) शिवम् चतुर्वेदी
प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, हिन्दी और पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,
अरुणाचल यूनिवर्सिटी आफ स्टडीज, नाम्साई,
अरुणाचल प्रदेश – ७९२१०३,
drshivam1972@gmail.com, 7085574654
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )
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