शोध आलेख : विज्ञापन का
उद्भव एवं विकास
– डॉ. प्रियंका श्रीवास्तव
शोध सार : विज्ञापन मानव जीवन का लगभग हिस्सा बन गया है। विज्ञापन के प्रभाव से ही मानव जीवन में खान-पान, वेशभूषा, रहन-सहन तथा फैशन; सब कुछ प्रभावित होते रहते हैं। उनकी सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, वैचारिक गतिविधियां भी इससे प्रभावित होती रहती हैं और यह प्रभाव मानव मस्तिष्क पर समाचार पत्र, दूरदर्शन, रेडियो, इंटरनेट, होर्डिंग बोर्ड जैसे अनेक माध्यमों द्वारा विज्ञापन के दृश्य, ध्वनि, रंग, शब्द तथा संकेत के रूप में पड़ते हैं। विज्ञापन की शुरुआत कब से हुई, इसे लेकर अब तक बहुत सी बातें कहीं जा चुकी हैं। लेकिन इसके आरंभ के स्पष्ट साक्ष्य देना कठिन कार्य है। इस लेख में विज्ञापन के आरंभिक इतिहास को साक्ष्य के साथ प्रस्तुत किया गया है। 3 हज़ार साल पुराने पेपरिस से वर्तमान समय के इन्टरनेट तक विज्ञापन के विकास को ऐतिहासिक क्रम में प्रस्तुत किया गया है।
बीज शब्द : विज्ञापन, इतिहास, समाचार, रेडियो, टेलीविज़न, इन्टरनेट विज्ञापन।
मूल आलेख :
विज्ञापन का उद्भव एवं विकास -
विज्ञापन संचार का सशक्त माध्यम है। इसके द्वारा विभिन्न
प्रकार की सूचनाएं आसानी से प्रसारित होती हैं। विभिन्न प्रकार के व्यापार, सेवा तथा उत्पाद इसके माध्यम से बेचे जाते हैं। व्यापार, संस्था और व्यक्ति इसके माध्यम द्वारा संवाद करते हैं। अर्थ तथा ध्यानाकर्षण
की दृष्टि से भी यह तेजी से प्रभावित करने वाला माध्यम होता है। विज्ञापन की शुरुआत
कब से हुई, इसे लेकर अब तक बहुत सी बातें कहीं जा चुकी हैं। लेकिन इसके आरंभ के स्पष्ट
साक्ष्य देना कठिन कार्य है। विज्ञापन के इतिहास को बताने के लिए लोग परंपरागत तौर
पर थेब से 3 हज़ार साल पुराने पेपरिस का उदाहरण देते हैं। कुछ लोग विज्ञापन की प्रथम
पद्धति बाहरी दीवार पर प्रदर्शनी को मानते हैं जिसमें आंखों को आकर्षित करने वाली आकृति
होती थी जो किसी इमारत पर चित्रित होती थी। इजिप्ट व्यापारियों द्वारा जनता के बीच
मुनादी या चिल्लाकर तथा रोम निवासियों द्वारा नगर की दीवारों पर चित्रित करना विज्ञापन
की ऐतिहासिक शुरुआत माने जाते हैं। इसलिए विज्ञापन के इतिहास को मानव इतिहास जितना
ही पुराना माना जाना चाहिए (रेमोन्ड विलियम, 1980, पृ. 401)।
विज्ञापन की शुरुआत
को मनुष्य संप्रेषण के आरंभ से माना जाना चाहिए,
क्योंकि अधिकतर मनुष्य समाज ने संप्रेषण का विकास अपने बात पर ध्यान दिलाने
के उद्देश्य से ही किया था। जो विज्ञापन के स्वरूप के समान ही सभी प्राचीन समाजों में
उपस्थित था। इसलिए विज्ञापन के इतिहास को भी सभी प्राचीन सभ्यताओं में देखा जा सकता
है, जहां मुनादी या डुग-डुगी
बजा कर लोगों को सूचित किया जाता था। उस समय मुनादी या डुग-डुगी बजा कर लोगों को सूचित किया जाना विज्ञापन का ही प्रकार था। इन्हीं
के द्वारा सूचनाओं को विज्ञापन रूप में लोगों तक संप्रेषित किया जाता था। कुछ लोग विज्ञापन
करने की प्रथम पद्धति बाहरी दीवार पर प्रदर्शनी को मानते हैं। जिसमें आंखों को आकर्षित
करने वाली आकृति होती थी और जो किसी इमारत पर चित्रित होती थी। इससे स्पष्ट होता है
कि प्राचीन समय में विज्ञापन दीवारों पर चित्र,
चिन्हों, चिल्लाकर या डुगडुगी बजा कर किये जाते थे। इसकी जानकारी पंपई
शहर से प्राप्त अवशेषों को देख कर भी होती है। पंपई शहर में जहां सामान बेचे जाते थे, वहां बिकने वाले सामानों के खुदे हुए चिन्ह प्राप्त हुए हैं। इन खुदे
हुए चिन्हों से पता चलता है कि दुकान पर कौन-कौन से सामान बिकते थे। पंपई से प्राप्त लैटिन भाषा में लिखे गए विज्ञापनों
के अवशेष वर्गीकृत विज्ञापन के नमूने हैं। इन दीवारों पर खुदे वर्गीकृत विज्ञापनों
के उपरांत मुद्रित स्वरूप के विज्ञापनों का विकास हुआ। मुद्रित स्वरूप के विज्ञापनों
का विकास योहानेस गुटेनबर्ग के प्रिंटिंग मशीन के अविष्कार के साथ हुआ। लेकिन इस समय
के सभी विज्ञापन पोस्टरनुमा या वर्गीकृत स्वरूप के थे। सन् 1625 में समाचार पत्र वीकली न्यूज ऑफ लंदन
से अंग्रेजी भाषा के विज्ञापनों के प्रकाशन का आरंभ हुआ
(बारेस –बेकर
एवं मुसुईम, 2006, पृ.
7)। इस समय के प्रसिद्ध विज्ञापनदाता भी निर्यातक होते थे।
16वीं तथा 17वीं
शताब्दी में विज्ञापन में तेजी आयी। यह तेजी सन्
1658 के मरक्यूरियस पॉलिटिक्स में भी हो रही थी। इस बदलाव में विज्ञापन सीधे
संदेशों द्वारा ग्राहकों से संपर्क कर रहे थे। मरक्यूरियस पॉलिटिक्स समाचार पत्र में 1657 में कॉफी तथा सन् 1658 में चाय के विज्ञापन इसी आधार पर विज्ञापित
किए गए। विज्ञापन के स्पष्ट साक्ष्य 17वीं शताब्दी से मिलते हैं। इस समय विज्ञापन का विकास समाचार पत्रों, न्यूज़बुक तथा मरक्यूरियस के साथ हो रहा था। न्यूज़बुक (newsbook), मरक्यूरियस (mercurius) तथा समाचारों के विकास के
साथ विज्ञापन का प्रथम एवं ज्यादा व्यवस्थित स्वरूप
17वीं शताब्दी में दिखना शुरू होता है।
जैसे-जैसे समाचारपत्र तथा मरक्यूरियस का प्रसार प्रतिदिन होने लगा, वैसे-वैसे उसमें व्यक्तिगत सेवा की जरूरत तथा प्रस्ताव, किताबों के प्रकाशन की सूची,
भागे दासों, खोए घोड़ों और कुत्तों से संबंधित सूचनाएं,
व्यापारियों के प्रतिदिन के माल,
मूल्य और आयत-निर्यात
की सूची आदि प्रकाशित होने लगे। मरक्यूरियस में विशेष रूप से विदेशी समाचार, जहाजों के आने-जाने
का समय, आयत-निर्यात
की सूची, किताब बेचने वाले, विग बनाने वाले, व्यापारियों की सूचनाएं तथा विशेष दुकानों के नये समानों
की घोषणाएं होती थीं। मरक्यूरियस में प्रकाशित विज्ञापनों के समान ही समाचारपत्रों
के लिए भी ये विज्ञापन महत्त्वपूर्ण होने लगे थे। आगे चल कर इनमें से कुछ विज्ञापन
स्थायी रूप से समाचार पत्रों में प्रकशित होने लगे। समाचारपत्र तथा मरक्यूरियस में
प्रकाशित होने वाले सभी विज्ञापन, विज्ञापन देने तथा पढ़ने वालों के पास पहुंचते थे। इस समय विज्ञापित सबसे
महत्त्वपूर्ण विज्ञापन प्राचीन पेटेंट दवाओं और चमत्कारी इलाज के होते थे। हालांकि
अधिकतर विज्ञापन मूलरूप से तथ्यात्मक, सामान्य तथा विशिष्ट सूचना वाले होते थे, लेकिन इनके स्वरूप आज के वर्गीकृत
विज्ञापन जैसे ही होते थे। जिस प्रकार आज के वर्गीकृत विज्ञापन में स्थानीय खरीद-बिक्री, जरूरत, किराये, व्यापार
तथा शिक्षा आदि से संबंधित 3 या 4 पंक्तियों
की आवश्यकताएं एवं सूचनाएं होती हैं, वैसे ही प्रारंभिक दौर के विज्ञापन के स्वरूप
भी होते थे।
16वीं शताब्दी के अंत और 17वीं शताब्दी के प्रारंभ में समाचार पत्रों के प्रमुख विकास ने विज्ञापन
की संख्या में भी वृद्धि की थी। मुद्रित प्रेस के शुरुआत के समय विज्ञापन विकास ब्रिटेन
में तेजी से हो रहा था। इसके उपरांत अमेरिका में
17वीं शताब्दीं में विज्ञापन के क्षेत्र में महत्त्वूर्ण विकास हुए। सन् 1704 में अमेरिका के बोस्टन-न्यूजलेटर समाचारपत्र में ब्रिटेन की तर्ज पर ही दुकान और मकान बेचने
के लिए विज्ञापन निकाले गए। आगे चल कर सन्
1741 में अमेरिका के फिलाडेल्फिया से प्रकाशित दो पत्रिकाओं में भी विज्ञापन
प्रकशित हुए। धीरे-धीरे
विज्ञापन के तरीके और प्रकार बदलने लगे थे। पहले ये विज्ञापन शाब्दिक होते थे, लेकिन अब ये अत्यधिक स्पष्ट और आकर्षित करने वाली भाषा में बनने लगे थे।
फिर भी इस समय के लगभग सभी विज्ञापन वर्गीकृत ही होते थे जो अब पत्रिकाओं तथा अखबारों
में प्रतिदिन निकलने लगे थे।
विज्ञापनों के आरंभ
में मेडिकल, पेय तथा सौन्दर्य प्रसाधनों का सबसे ज्यादा विज्ञापन होता था। इसलिए इनके
विज्ञापनों को समाचार पत्रों में विशेष जगह मिलती थी। इसके अतिरिक्त सौन्दर्य प्रसाधन, नई किताब तथा नये प्रकार के सुख साधनों के सामानों का विज्ञापन अख़बार
के कालमों में भी किया जाता था। इस समय के विज्ञापन घोषणा या सूचना के पारंपरिक रूप
से मुद्रित होते थे। कोई भी चित्रात्मक प्रस्तुति विज्ञापन में नहीं होती थी। आगे चल
कर सन् 1712 में विज्ञापनों पर कर लगाया गया। यह
कर वास्तव में समाचार पत्रों के क्रियाकलापों को नियंत्रित करने के लिए था। इस कर कानून के अनुसार प्रत्येक विज्ञापन
चाहे वह एक लाइन का हो या कालम का हो, उसके लिए एक शिलिंग का कर देना होता था और अगर यह कर एक महीने के अन्दर
न दिया जाता तो विज्ञापन निर्माता को कर का तिगुना देना होता था।
इस समय के समाचार
पत्र पूर्ण रूप से कॉफ़ी हाउस के अमीर ग्राहकों के हिसाब के होते थे। इसलिए विज्ञापन
भी इन्हीं अमीर ग्राहकों के हिसाब से निर्मित किये जाते थे। कभी-कभी ग्राहकों के ध्यान को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन निर्माता साधारण
चित्र वाले विज्ञापन भी निर्मित करते थे। चित्रों वाले इन विज्ञापनों को उस समय के
समाचार पत्रों या पोस्टरों के शीर्ष पर प्रदर्शित किया जाता था। इसके अतिरिक्त भय दिखा
कर उत्पाद खरीदने की अपील वाला भी विज्ञापन किया जाता थी। यह तरीका आज के विज्ञापन
के लिए भी अपरिचित नही है। आज भी इस पद्धति को विज्ञापन में लाया जाता है। उस समय भी
विज्ञापन सेंसरिंग नेबर (Censoring
neighbours) पद्धति द्वारा किया जाता था जिसे आज के विज्ञापन की एक पद्धति में नाकिंग
कॉपी (knocking copy) के रूप में जाना जाता है।
इस प्रकार उस समय के अधिकतर विज्ञापन स्पष्ट,
सूचनात्मक तथा किसी एक विशेष समूह से प्रभावित होते थे। उनकी शैली तथा
भाषा औपचारिक, सत्कारपूर्ण तथा परंपरागत होती थी।
18वीं शताब्दी की शुरुआत में वर्गीकृत विज्ञापनों की संख्या बहुत बढ़ गयी
थी। इसलिए अधिकतर समाचार पत्रों ने इस तरह के विज्ञापनों को प्रतिबंधित कर दिया था।
सन् 1840 में बाल्नी पामर ने विज्ञापन के लिए
स्पेश ब्रोकर परंपरा की शुरुआत की, जो आगे चलकर विज्ञापन एजेंसी बनाने में सहायक बना। विज्ञापन के लिए बाल्मी
अधिकतर पत्र तथा पत्रिकाओं में स्थान खरीदता तथा उसे विज्ञापन निर्माताओं को ऊंचे दामों
पर बेचता था। सन् 1853 में
विज्ञापन पर टैक्स तथा उसके दो साल बाद समाचार पत्र पर स्टाम टैक्स ख़त्म हो गया था
जिससे विज्ञापन की संख्या बढ़ी। इसके बाद विज्ञापन के डिजाइन और ले आउट पर अत्यधिक ध्यान
दिया जाना शुरू हुआ। अब विज्ञापन के बड़े-बड़े वाक्य तथा शब्दों की शैली को शब्दों के ब्लाक, वाक्यों के बीच अत्यधिक स्थान,
टाइप के विषम आकार से बदल दिया गया था। इस शताब्दी के अंत में झूठे प्रचार
संबंधित विज्ञापन ज्यादा हो गए थे जिससे विज्ञापन पर बढ़ा चढ़ा कर कहने का स्थायी प्रभाव
भी पड़ा था। विज्ञापनदाताओं की अलगी पीढियां प्रसारण और प्रभावित करने में निपुण थीं।
इसलिए इस समय के विज्ञापन की प्रत्येक पद्धति में बढ़ा-चढ़ा के कहने की प्रवृत्ति समाहित हो गई थी।
19वीं शताब्दी में वर्गीकृत विज्ञापन का प्रचलन बना रहा। लेकिन विज्ञापन
का विस्तार इस शताब्दी में बढ़ता गया। इस शताब्दी में विज्ञापन आज के मानकों के समान
ही आधुनिक थे। इस शताब्दी के आरम्भ में विज्ञापन के लिए कॉपीराइट की कला का भी विकास
हुआ जिसने भाषा में नये शब्दों के निर्माण तथा विकास में योगदान दिया। कवियों को विज्ञापन
के लिए कविता लिखने के काम पर रखा जाने लगा था। बिलबोर्ड तथा स्ट्रीट पोस्टर का भी
उपयोग विज्ञापन के लिए ज्यादा होने लगा, क्योंकि बिल बोर्ड तथा पोस्टर द्वारा विज्ञापन उद्योग ज्यादा बड़ा तथा
व्यवस्थित हो गया था। बिलबोर्ड तथा स्ट्रीट विज्ञापन को चिपकाने के लिए आदमी तथा तकनीकी
का उपयोग किया जाता था। आगे चल कर गर्म हवाओं के गुब्बारों का उपयोग उत्पाद के बाहरी
विज्ञापन के लिए किया जाने लगा। विज्ञापन निर्माताओं द्वारा जल्दी तथा स्पष्ट संवाद
करने की आवश्यकता को समझ कर सिनेमाघरों के टिकटों
(playbil) पर विज्ञापन किया जाने लगा था। अब विज्ञापनों के माध्यमों पर भी ध्यान
दिया जाने लगा था। इसलिए विज्ञापन संदेश को आंखों को आकर्षित करने वाले मोटे टाइप में
देना ज्यादा प्रचलित हो गया। उसके नीचे या बाद के संदेश को सामान्य टाइप में लिखा जाता
था। लेकिन उनके उच्चारण एवं शैलियां 18वीं शताब्दी जैसी ही थीं। अब भी अधिकांश विज्ञापन स्थानीय व्यापारियों
द्वारा दिए जाते थे। कुछ व्यापारियों द्वारा प्रकाशनों को विशिष्ट लोगों तक सीमित किये
जाने तथा विज्ञापनों द्वारा झूठा प्रचार किये जाने के आरोप भी लगे।
सामान्य घरेलू सामानों
का विज्ञापन अब बाज़ार में आने लगा था। एक अनुमान के मुताबिक पहला राष्ट्रीय स्तर का
विज्ञापन वारेन की ब्लैकिंग जूते का उत्पाद था। इसके बाद रोवलैंड के मैकासर ऑयल, स्पेंसर की तरल हेयर डाई और मॉरिसन यूनिवर्सल पिल्ल का विज्ञापन क्रमानुसार
प्रसारित हुए। इन सभी उत्पादों के प्रचार के लिए
18वीं शताब्दी के क्वेक तकनीकी का उपयोग किया गया था। क्वेक तकनीकी द्वारा
निर्मित विज्ञापनों को संपादक अपने अखबार में अपनाने के इच्छुक नहीं थे, क्योंकि इसके तकनीकी से निर्मित विज्ञापन समाचार की चौड़ाई के मानक से
ज्यादा की जगह ले रहे थे। संपादकों का मानना था कि ये विज्ञापन समाचार के डिजाइन को
बिगाड़ सकते हैं। क्वेक तकनीकी लगातार समाचार के संपादकों पर दबाव बना रही थी कि वे
कॉलम के नियम को त्याग कर, डिस्प्ले विज्ञापन को बड़ा दिखाएं,
काले टाइप फेस का उपयोग करें तथा विलासी स्त्रियों को दिखाएं। इसके विरोध
में कुछ संपादकों ने तर्क दिए कि इस तरह के विज्ञापनों से बड़े व्यापारियों का फायदा
छोटे व्यापारियों के खर्च पर होगा जो आगे चल कर सही साबित हुआ। इस समय तक विज्ञापनों
में अंतहीन पंच लाइनों के उपयोग की एक पद्धति भी शुरू हो गई थी। इस पद्धति के अनुसार
विज्ञापनों में पंच लाइनों को आंखों को आकर्षित करने वाले छोटे टाइप तथा कॉलम के अन्दर
दिया जाता था। टाइम्स समाचार पत्र ने इस अंतहीन पंच लाइन के उपयोग के पद्धति को समाप्त
कर एक नई पद्धति की शुरुआत की थी जिसमें शब्द और पंक्ति के लगातार दुहराव की जगह प्रत्येक
पंक्ति के ख़त्म होने पर उसके बारे में एक विवरण दिया जाता था। इसी समय विज्ञापन की
दूसरी पद्धति भी शुरू हुई जिसमें छोटे अक्षरों को जोड़ कर बड़ा शब्द बनाया जाता था। उत्पाद
के नाम इसी पद्धति में लिखे जाते थे। इस पद्धति द्वारा आठ कॉलम में विज्ञापन का उपयोग
किया जाता है। आगे चल कर विज्ञापन के कॉलम उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसलिए आउटडोर
तथा बिलबोर्ड विज्ञापन की मांग तेज़ी से बढ़ी। एक समय बिल बोर्ड विज्ञापन का प्रचलन इतना
बढ़ गया था कि लंदन की हर एक इमारत पर बिलबोर्ड वाले विज्ञापन दिख जाते थे।
19वीं शताब्दी की शुरुआत में ज्यादातर विज्ञापन ब्रिटेन में बनते थे तथा
ये विज्ञापन आज के मानकों के समान ही आधुनिक थे। अमेरिका के विज्ञापन भी ब्रिटेन की
विज्ञापन पद्धति से प्रभावित थे। इसके उपरांत अमेरिकी विज्ञापन कला में क्रांतिकारी
विकास हुआ और अमेरिका में आधुनिक विज्ञापन की कला का आरंभ हुआ। तब से ले कर आज तक विज्ञापन
की नई पद्धतियों का विकास अमेरिका में ही होता आ रहा है। अमेरिका 19वीं शताब्दी से ले कर अब तक विज्ञापन का सबसे बड़ा बाज़ार बना हुआ है। अमेरिका
में 18वीं शताब्दी में किसी भी समाचार पत्र तथा विज्ञापन पर कर न लगने के कारण
ब्रिटेन की तुलना में विज्ञापन बहुत सस्ता था। इस कारण विज्ञापन का उपयोग भी यहां तेजी
से होता था। विज्ञापन के लिए यहां कभी-कभी समाचार पत्र का आधे से अधिक स्थान का भी उपयोग होता था।
आगे चल कर अमेरिका
में भी बड़े कॉलम तथा आधे पेज के विज्ञापन पर प्रतिबंध लग गया। धीरे-धीरे पुनरावृत्ति तकनीकी का उपयोग अमेरिकी विज्ञापन में भी ख़त्म हो गया।
अब विज्ञापन में ग्राहकों को संबोधित करने के लिए बोलचाल,
व्यक्तिगत और अनौपचारिक भाषा का उपयोग होने लगा। उत्पाद पर ध्यानाकर्षित
करने के लिए विनोदपूर्ण भाषा का भी उपयोग विज्ञापन में शुरू हुआ। पुनरावृत्ति तकनीकी
का फैशन ख़त्म होने पर विज्ञापन बनाने वालों ने नयी पद्धति से विज्ञापन करना शुरू किया
था। इसके लिए अब वे नारे तथा आकर्षित करने वाले मुहावरों का उपयोग करने लगे थे। इस
शताब्दी के मध्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की शुरुआत हुई थी जिसे विज्ञापन ने घर-घर पहचान दिलाई थी। कैडबरी, वोरविल, नेस्ले
तथा फ्राई एंड केलॉग जैसे खाद्य पदार्थ की कंपनी विज्ञापन द्वारा हर घर का हिस्सा बन
गयी थीं। औषधि तथा खाद्य व्यापारी अपने उत्पाद के प्रचार के लिए उस समय के प्रसिद्ध
लोगों द्वारा उत्पाद के बारे मिले प्रशंसा पत्र का उपयोग करते थे। ये आज के समय में
बड़े-बड़े टीवी कलाकार, खिलाड़ी, प्रसिद्ध
व्यक्ति के प्रशस्ति पत्र का उपयोग कर विज्ञापन करने जैसा ही था।
अधिक शुद्ध और प्राकृतिक
गुणों का दावा करने के कारण बहुत बार उत्पाद के विज्ञापनों को कठिनाइयां झेलनी पड़ती
थीं। नये खाद्य पदार्थों के प्रचार के साथ-साथ नये आविष्कृत यंत्र, साईकिल तथा सिलाई मशीन का भी विज्ञापन किया जा रहा था। लेकिन इन सभी उत्पादों
के विज्ञापन खाद्य पदार्थों के विज्ञापन की तुलना में काफी संतुलित होते थे। इसमें
झूठे दावे नहीं किये जाते थे। खाद्य और तकनीकी संबंधित वस्तु विज्ञापन बहुत तेज़ी से
अपने पैर पसार रहे थे। इसलिए साबुन और दवा बनाने वाली कंपनियों को अपने उत्पाद के प्रचार
के लिए नई पद्धतियों तथा शैलियों पर विचार करना पड़ रहा था। इसमें पियर्स साबुन के आकर्षित
करने वाले स्लोगन नई शैली के विज्ञापन के अग्रदूत तथा मार्गदर्शक बन गये थे। आगे चल
कर पियर्स अपने उत्पाद प्रचार को विस्तार देने के बारे में सोचने लगा था। इसके लिए
उसने अपने उत्पाद का नाम तथा उसकी पंच लाइनों को बाहरी होर्डिंग तथा समाचार पत्र में
बार–बार तथा लगातार दोहरा कर प्रचार करना शुरू कर दिया था। इसके आलावा पहेलियां
बुझा कर भी उत्पाद का प्राचर किया जा रहा था। इस समय चित्रकारी, क्रमबद्ध तरीके से कहानी कह कर तथा रंगीन विज्ञापनों की पद्धतियों द्वारा
विज्ञापन किये जाने लगे थे।
विज्ञापन बनाने वाली
एजेंसियों ने अपने आप को एक छोटे से दुकान में तब्दील कर दिया था और अब अत्यधिक संख्या
में विज्ञापन बनाने वाली इन संस्थाओं की अपनी प्रतिबद्धता समाचारपत्रों के स्थान पर
विज्ञापन देने वालों की ओर हो गयी थी। इसके लिए वे समाचार में विज्ञापन के लिए जगह
को बेचने का कार्य कर रही थीं। समाचारों की बढ़ी संख्या के कारण उत्पाद बनाने वाली कंपनियों
के लिए कठिनाइयां भी उत्पन्न हो गई थीं कि वे किस समाचार पत्र में अपने उत्पाद का विज्ञापन
दें। उस समय कोई पद्धति उपलब्ध भी नहीं थी जिससे यह जाना जाए कि कौन सा समाचार पत्र
ज्यादा पढ़ा जाता है। लेकिन जब विज्ञापन एजेंसियों ने विज्ञापन के लिए समाचार पत्रों
में स्थान देना शुरू किया तो उससे उत्पाद के लिए प्रतिपुष्टि का पता लगना शुरू हुआ
और विज्ञापन देने वालों के लिए यह अत्यधिक प्रचलित माध्यम बन गया। विज्ञापन एजेंसियों
के एजेंटों ने अपनी एजेंसियों के फायदे के लिए व्यापारियों तथा प्रकाशकों को सहमत कराने
में सफलता भी प्राप्त कर ली थी। आगे चल कर समाचार एजेंसियों के संपादकों ने विज्ञापन
की नई शैली के लिए सिंगल कॉलम के कड़े नियम में ढिलाई करवाई। अब बड़े टाइप फेस तथा 2 या 3 कॉलमों
का उपयोग विज्ञापन के लिए किया जाने लगा था। इसके पश्चात समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं
में विज्ञापन चित्र बना कर किये जाने लगे थे। इस तरह के विज्ञापन पद्धति का उपयोग आज
भी किया जाता है। धीरे-धीरे
विज्ञापन का बहुत प्रचलित तरीका उत्पाद के नाम,
नारे तथा चित्रों के साथ विज्ञापन को प्रस्तुत करना हो गया था। इस प्रकार
की पद्धति में बने विज्ञापन को कपड़े, परदे तथा महिला की खुली छाती पर उत्पाद का नाम तथा उसके नारे मुद्रित
कर विज्ञापित किया जाता था। आज के कम कपड़े या अंग प्रदर्शन वाले उत्पाद विज्ञापन इन्हीं
विज्ञापनों के उदाहरण हैं। स्थापित चित्रकारों की कला का उपयोग भी उत्पाद विज्ञापन
के लिए किया जाने लगा। हालांकि फ्रांस तथा ब्रिटेन के बहुत से चित्रकारों ने प्रारंभ
में इसे नकारा था। सबसे पहले उस समय के प्रसिद्ध चित्रकार
“जॉन एवरेट मिलिस” के “बबल्स” चित्र को पियर्स साबुन ने अपने उत्पाद के लिए उपयोग किया था। मिलिस अपने
चित्र के व्यावसायिक उपयोग की सफलता को लेकर संदेह से भरे तथा भयभीत भी थे। उस समय
चित्रकला का उपयोग विज्ञापन के लिए किये जाने पर इसे कला की वेश्या कह कर निंदा की
गयी थी। जबकि आज चित्र विज्ञापन के लिए महत्त्वपूर्ण साधन हैं। इस प्रकार पियर्स साबुन
पहला उत्पाद था जिसके विज्ञापन के लिए संस्कृति का उपयोग किया गया था।
विज्ञापन अपील के
लिए बच्चा, जानवर, फूल, युवा तथा स्त्री इत्यादि का उपयोग किया जाता था। इस तरह के उपयोग तथा
हथकंडे विज्ञापन में कुछ हद तक अस्वीकृत हो रहे थे। इसे देखते हुए सन् 1898 में
“सोसाइटी फॉर चेकिंग ऑफ़ एब्यूज इन पब्लिक एडवरटाइजिंग” (SCAPA) की स्थापना की गयी थी। “स्कापा” की
स्थापना समाचार प्रकाशकों पर अधिक प्रभाव डालने,
अच्छे विज्ञापनों के निर्माण तथा विज्ञापनों की उनके आलोचकों के आलोचना
से बचाने के लिए किया गया था। विज्ञापन संबंधित इस प्रकार की संस्था की स्थापन से विज्ञापन
आचार सहिंता बहस शुरू हो गयी थी। इसके पक्ष तथा प्रतिपक्ष में बहस जारी रही जिसके अंतर्गत
अमेरिकन विज्ञापन एजेंसी की स्थापना सन् 1917 में की गयी थी। धीरे-धीरे
विज्ञापन भी अपने मौलिक स्वरूप से बदलता गया।
विज्ञापनों में रूपांतरण
ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के परिवर्तन के कारण हो रहे थे। आगे चल कर 19वीं शताब्दी के अंत में वैश्विक अर्थव्यवथा के कारण यह रूपांतरण हुए।
औद्योगिक क्रांति के समय विज्ञापन प्रत्यक्ष संप्रेषण या घोषणा का साधन था। इसका उपयोग
नये और द्वितीयक उत्पाद के प्रचार के लिए किया जाता था। लेकिन जब फैक्टरी उत्पादन अपने
चरम पर था और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ जैसे नये उत्पाद बाज़ार में आए तो सभी राष्ट्रीय
विज्ञापनों में उत्पादों के नाम का नामकरण आवश्यक हो गया। बड़े फक्ट्रियों के आने से
पहले सभी उत्पादन इकाइयां छोटी होती थीं और इनके उत्पादों को बेचने का काम होलसेलर
करते थे। लेकिन सन् 1873 से 1894 के आर्थिक गिरावट ने व्यापारिक संस्थाओं
के निर्माण तथा वितरण में परिवर्तन कर दिया था। जो नई और पुरानी पद्धतियों के बीच की
भिन्नता को व्यक्त कर रहा था। सन् 1870 से 19वीं
शताब्दी के प्रारंभ तक उत्पादन वृद्धि होती रही। इन वृद्धियों को खुदरा दुकानों पर
देखा जा रहा था। लेकिन अधिक उत्पादन तथा कम खपत के कारण फिर आर्थिक गिरावट आयी। उत्पादित
सामान बिना बिक्री के एकत्रित होने लगे जिससे दाम और लाभ दोनों में गिरावट आयी। इस
कारण विज्ञापन महत्त्वपूर्ण हो गए थे। 19वीं शताब्दी के मध्य में विज्ञापन के महत्त्वपूर्ण होने के लिए जॉन डव्ल्यु
क्रेकफोर्ड (1965) ने भी यही कारण गिनाएं हैं।
लार्ड लेवरहल्मे
पहले ऐसे उद्योगपति थे जिन्होंने समझा कि विज्ञापनों में तार्किक तथा विचारयुक्त विषय
वस्तु होने चाहिए। साथ ही साथ आंखों को आकर्षित करने वाले तथा विनोदपूर्ण नारे भी शामिल
होने चाहिए। इस विचार को बहुत से विज्ञापन निर्माताओं ने अपनाया और अपने विज्ञापनों
को तर्कपूर्ण बनाना शुरू किया। इस पद्धति द्वारा उस समय के पियर्स साबुन ने भी अपने
विज्ञापनों में विस्तृत जानकारी देना शुरू किया था। कैडबरी और कोका कोला ने भी इस पद्धति
द्वारा अपने विज्ञापनों की विषयवस्तु में न केवल शुद्धता का दावा किया था, बल्कि अपने उत्पाद के अन्य फायदों की भी जानकारी दी थी। लेखक ई. एस. टर्नर (1953) ने इस पद्धति द्वारा विज्ञापन किये जाने
पर कहा कि इस समय का विज्ञापन बार-बार
कहने या घोषणा से आगे जा कर विश्वास की विशिष्टता को मजबूती से प्रस्तुत करने वाले
हो गए थे। धीरे-धीरे विज्ञापन भव्य तथा महंगे भी होते जा रहे थे। बाजार में तेजी से आने
वाले नये अविष्कार या उत्पाद को विज्ञापन द्वारा प्रस्तुत और प्रसिद्ध किया जा रहा
था। इन आविष्कारों में सबसे पहले कार का निर्माण था जिसे प्रचार द्वारा प्रस्तुत किया
गया था। लेकिन कार के ब्रांडों को तब तक विज्ञापन द्वारा बहुत प्रचारित नहीं किया जा
सका था। जब तक हेनरी फोर्ड ने ब्रिटिश बाज़ार के लिए प्रचार की पद्धति को ज्यादा बड़ा
कर अपने कार का प्रचार नहीं किया। विज्ञापन की महत्ता ही थी कि अमेरिकी तम्बाकू कंपनी
के प्रचार से परेशान होकर सन् 1901 में आयी ब्रिटिश तम्बाकू कंपनी ने एक बड़ा विज्ञापन किया। तंबाकू का यह
विज्ञापन अनुमान के अनुसार अब तक का सबसे महंगा राष्ट्रीय स्तर का विज्ञापन था। तम्बाकू
विज्ञापन की होड़ में एक अन्य तम्बाकू की कंपनी ने स्टार न्यूज़ समाचारपत्र में अपना 4 पेज का विज्ञापन दिया। यह पूरे विश्व में शाम के समाचार पत्र में अब तक
का सबसे महंगा, बड़ा और संप्रेषणीय विज्ञापन था। अब विभिन्न प्रकार के विदेशी और घरेलू
उपभोक्ता सामान विशेषकर खाद्य पदार्थों से संबंधित बाज़ार में आने-जाने लगे थे। जैसे-जैसे
उत्पादन का विस्तार होता जा रहा था, वैसे-वैसे
उत्पादक और व्यापारियों को बड़े बाज़ार की आवश्यकता होती जा रही थी। इस बाज़ार की आवश्यकता
को पूरा करने के लिए व्यापारी संप्रेषण के सबसे लोकप्रिय माध्यम विज्ञापन को तेजी से
चुन रहे थे।
19वीं शताब्दी के मध्य तक अत्यधिक संख्या में प्रसिद्ध समाचार पत्र और पत्रिकाएं
निकलीं। लेकिन इन्हें निकालना दिन-प्रतिदिन महंगा भी होता जा रहा था। इसलिए विभिन्न
समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं के मालिक विज्ञापनों का उपयोग आर्थिक स्रोत के सहयोग के
रूप में कर रहे थे। समाचार पत्र में विज्ञापन द्वारा मुनाफे की इस पद्धति के मार्गदर्शक
अल्फ्रेड हार्म्सवर्थ तथा लार्ड नार्थक्लिफ थे। इन्होंने ही “विज्ञापन स्वयं में समाचार है”
की पद्धति दी थी। डेली न्यूज ने इस पद्धति को ध्यान में रखते हुए अपने
प्रथम पृष्ठ को विज्ञापन के लिए निश्चित कर दिया था जिसमें विशेष रूप से कपड़े और नये
डिपार्टमेंटल स्टोर के लिए विज्ञापन होते थे। जैसे-जैसे 19वीं
शताब्दी आगे बढ़ रही थी, विज्ञापन राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण होता जा रहा था।
विज्ञापन अपने पुराने सिद्धांत तथा अव्यावसायी प्रकृति को छोड़ भी रहा था। इससे अब लोग
विज्ञापन को एक पेशेवर और सार्वजनिक व्यवसाय के रूप में जानने लगे थे। विज्ञापन द्वारा
लोगों को संप्रेषित तथा आकर्षित करने के लिए बहुत सी नई तकनीकों का उपयोग भी किया जा
रहा था जिसमें बहुत सी अमेरिकी तथा मनोविज्ञान संबंधित नई तकनीकी शामिल थीं। विज्ञापन
की मनोवैज्ञानिक पद्धति मनुष्य द्वारा किसी वस्तु के साथ स्वयं का जुड़ाव महसूस करने
की प्रवृत्ति से संबंधित थी। विज्ञापन के इस मनोवैज्ञानिक पद्धति का उपयोग प्रथम विश्व
यद्ध के समय सेना में जवानों को भर्ती करने के लिए किया गया था। इसलिए प्रथम विश्व
युद्ध के समय इस पद्धति पर आधारित विभिन्न प्रकार के पोस्टर विज्ञापन निकाले गए थे।
मनोवैज्ञानिक पद्धति पर आधारित इस समय का प्रसिद्ध पोस्टर विज्ञापन था – डैडी, व्हाट
डीड यू डू इन द ग्रेट वॉर? पोस्टर के रूप में यह एक साधारण चित्र वाला विज्ञापन था। लेकिन यह विज्ञापन
मनगढ़ंत और कट्टर देशभक्ति से अलग विज्ञापन था जिसमें देशभक्ति और पारिवारिक रिश्तों
के प्रति संवेदनशीलता दिखायी पड़ रही थी। यह बहुत ही प्रभावशाली साबित हुआ।
सन् 1918 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के
बाद; एक बार पुनः कारखानों ने उपभोक्ताओं का उत्पादन की ओर ध्यानाकर्षित करने
के बारे में सोचा। प्रथम विश्व युद्ध के बाद विज्ञापन निर्माताओं ने इस युद्ध के प्रोपगेंडा
तकनीक वाले पोस्टर विज्ञापनों से भी बहुत कुछ सीखा था। इसलिए उन्होंने उद्योग की गति
बनाए रखने तथा नई पीढ़ी को उपभोक्ता बनाए रखने के लिए सामाजिक मनोविज्ञान तथा सांस्कृतिक
व्यवस्था का उपयोग विज्ञापन में करना प्रारंभ किया। इसमें एक पद्धति उपयोग की गई थी
जिससे लोगों को उपभोक्ता बनाने तथा उत्पाद में रुचि पैदा करने के लिए उन्हें उनकी स्थिति
से असंतुष्ट कर देना तथा उनमें असुरक्षा की भावना पैदा करना होता था। इस पद्धति के
तहत ही सन् 1920 में अमेरिका में लोगों को खुद की परिस्थितियों
से असंतुष्ट किया गया था। विज्ञापन निर्माताओं का मानना था कि संतुष्ट करना अब लाभप्रद
कार्य नहीं रह गया है। इसके लिए अमेरिका की दुकानों पर जूते की गंध, त्वचा की सिकुड़न, बांह के नीचे की महक तथा बदबूदार सांस से बचाव के लिए चीजों की उपलब्धता
का विज्ञापन प्रसारित किया जाता था। लोगों को विज्ञापन द्वारा यह सिखाया जाता था कि
वे अपनी हर समस्या से बचाव कर सकते हैं, अगर वे इन विज्ञापित सामानों का उपयोग करते हैं तो। विज्ञापन द्वारा औद्योगिक
वर्चस्व परिवार पर भी प्रभाव डालने लगे थे जिसकी आलोचना जनता ने करनी शुरू कर दी थी।
इसलिए सन् 1924 में अंतरराष्ट्रीय विज्ञापन संघ की स्थापना
हुई।
सन् 1922 से रेडियो का उपयोग भी विज्ञापन के लिए
किया जाने लगा था। “एटी
एंड टी” (AT&T) ने अमेरिकी रेडियो के लिए
विज्ञापन की शुरुआत की थी। रेडियो का यह पहला विज्ञापन
15 मिनट का था जो रियल स्टेट अपार्टमेंट के लिए था। न्यूयार्क सिटी रेडिओ
स्टेशन ने टाल ब्रोडकास्टिंग के लिए समय बेचना शुरू किया था। इससे विज्ञापन एजेंटों
को रेडियो विज्ञापन की संभावना दिखी। अब अमेरिका में विज्ञापनदाता रेडियो पर विज्ञापन
प्रसारण को महत्त्व देने लगे थे क्योंकि रेडियो द्वारा कम समय में अधिक उपभोक्ता को
संदेश भेजा जा सकता था। विज्ञापन की भूमिका को देखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट
ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय वॉर एंड काउन्सिल की स्थापना की थी। इससे युद्धों के
समय अमेरिका में पब्लिक सर्विस एडवरटाइजिंग अपने चरम पर पहुंच गया था। सभी रेडियो स्टेशनों
को इस समय विज्ञापन के लिए धन भी उपलब्ध कराया जाता था। सन् 1940 में आलोचनाओं के बाद विज्ञापन निर्माताओं
ने उपभोक्ताओं के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा मानवशास्त्र संबंधित भावनाओं को समझ कर उनसे व्यक्तिगत
संबंध बनाना शुरू किया था। इसके लिए उन्होंने प्रेरक तथा उपभोक्ता अनुसंधान आरंभ किया।
इससे वे उपभोक्ता के खरीद शक्ति को समझने लगे थे। क्रिसलर
(Chrysler), एक्सान/एस्सो (Exxon/Esso) जैसे बड़े ब्रांड के प्रचार
अभियान के लिए विज्ञापन निर्माताओं ने मनोवैज्ञानिक,
सांस्कृतिक तथा मानव शास्त्र संबंधित शोध विधि का उपयोग किया था। इन ब्रांडों
ने 20वीं शताब्दी के सबसे स्थायी विज्ञापन अभियानों का नेतृत्व भी किया। यंग
और रुबिकम के उपाध्यक्ष जार्ज गैलुप तथा विज्ञापन के क्षेत्र के अन्य विशेषज्ञों ने
जनमत सर्वेक्षण विधि को स्वीकार किया था। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका की नाज़ी
और जापान से लड़ाई में विज्ञापन उद्योग ने बड़ी सहायता की थी। विज्ञापन निर्माताओं ने
उपभोक्ता संस्कृति का दबदबा कायम करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है जिससे
इन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिकी समाज में अपना प्रभुत्व स्थापित किया
था।
द्वितीय विश्व युद्ध
के बाद संचार के साधनों का विकास तेजी से हो रहा था। संचार के साधनों के विकास द्वारा
विज्ञापनों का विस्तार भी तेजी से हो रहा था। नई पद्धतियां उपभोक्ताओं को प्रभावित
करने के लिए बड़ी तादाद में तैयार हो रही थीं। विभिन्न प्रकार के प्रचार तथा बाज़ार शोध
हो रहे थे तथा नई विज्ञापन कंपनियों की स्थापना की जा रही थी। इस दौरान प्रचार विधियों
में सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली विधि जिंगगल की थी। जिंगगल का प्रथम उपयोग अमेरिका
में रेडियो द्वारा व्यापारिक विज्ञापन प्रसारण में किया गया था। जल्द ही इसका उपयोग
यूरोप और अमेरिका के विज्ञापन निर्माताओं द्वारा टीवी माध्यम से किया जाने लगा। जिंगगल
के लिए किसी भी प्रसिद्ध संगीत के धुन को उपयोग किया जाता था। अच्छे गीत लिखने वाले
और संगीतकार विज्ञापन के लिए गीत लिखते और संगीत देते थे। जिंगल्स लिखने संबंधित दावे
में कहा जाता है कि कवि बायरन ने वॉरेन जूते के विज्ञापन के लिए सर्व प्रथम जिंगल्स
लिखा था। आज भी बड़े कवि तथा नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित लेखक या कवि भी विज्ञापन
के लिए जिंगल्स लिखते हैं। सन् 1950 से 1960 के
दशक में महिला पत्रिकाओं की संख्या बढ़ी। घरेलू सामानों का उपभोग भी इसके साथ में बढ़ा।
इससे विज्ञापनों की संख्या में भी अधिकता आयी। इन पत्रिकाओं और उनके विज्ञापनों का
प्रमुख ध्यान महिलाओं की घरेलू जीवन में महत्त्व को दिखाने में रहता था। आगे चलकर उपभोग
करने वाले सामानों के क्षेत्रों तथा प्रकारों में विस्तार हुआ जिससे अब विज्ञापन में
कपड़े और सौन्दर्य के सामानों का आगमन हो गया था। युद्ध के बाद तथा टेलीविज़न के विकास
के साथ टेलीविज़न विज्ञापनों का भी महत्त्व बढ़ गया था और दो महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए
थे। पहला टेलीविज़न ने रेडियो को प्रमुख प्रसारण माध्यम के रूप में रहने नहीं दिया।
अब सभी विकसित देशों में रेडियो और टेलीविज़न का विस्तार तथा उपलब्धता थी। जैसे पानी, गैस और बिजली की उपलब्धता होती थी। दूसरा वैकल्पिक व्यापारिक नेटवर्क
का विकास हुआ जो समय के साथ अपना विस्तार करते जा रहा था।
विज्ञापन बनाने वालों
ने भी टेलीविज़न विज्ञापन की क्षमता को समझने में देरी नहीं की और टेलीविज़न के लिए विज्ञापन
निर्मित करने लगे। टेलीविज़न के विज्ञापन चित्र तथा ध्वनि द्वार लोगों पर गहरा प्रभाव
डालने लगे थे। सन् 1950 में
ड्यूमॉन्ट टेलीविज़न नेटवर्क ने प्रायोजकों को टेलीविज़न पर विज्ञापन के लिए समय बेचने
का कार्य शुरू किया था। अमेरिका में टेलीविज़न पर व्यापारिक प्रचार के उद्योग की स्थापना
हो गयी थी। उस समय एक ही कंपनी के व्यापारिक विज्ञापन कार्यक्रमों के दौरान दिखाए जाते
थे। कुछ मामलों में आयोजकों का कार्यक्रमों के विषयवस्तु पर नियंत्रण हो जाता था। तब
टीवी विज्ञापन सभी विज्ञापनों की तुलना में प्रभावी तथा महंगे होते थे। संप्रेषण के
माध्यमों के विकास के साथ विज्ञापनों की संख्या तेजी से बढ़ी। विज्ञापन की लागत भी बढ़ी।
जिससे विज्ञापन बहुत महंगे बन रहे थे। द टाइम्स के मालिक तथा स्कॉटिश टेलीविज़न के अध्यक्ष
लार्ड थॉमसन टेलीविज़न के व्यावसायिक विज्ञापन की फ्रेंचाइजी को पैसे छापने का लाइसेंस
कहते थे क्योंकि टीवी प्रसारण का लाइसेंस खरीदने वाले विज्ञापन से अपनी आय बनाते थे।
टीवी प्रसारक को विज्ञापनदाताओं को आकर्षित करने के लिए दर्शकों को आकर्षित करना होता
था। कोई भी लोकप्रिय टीवी प्रसारित कार्यक्रम या जिन्हें दर्शक ज्यादा देखते थे, उसका
समय विज्ञापन देने वाले अपने संदेशों के लिए खरीदते थे। टेलीविज़न पर विज्ञापन समय का
मूल्य कार्यक्रम के प्रसारण समय, प्रकार तथा उसके दर्शक आकर्षण की क्षमता पर निर्भर होता था। आज भी यह
व्यवस्था टीवी प्रसारण में दिखती है। विज्ञापन प्रसारण के लिए प्राइम टाइम का समय सबसे
ज्यादा महंगा होता था। इस स्थिति के कारण ही दर्शक सर्वेक्षण की शुरुआत हुई। व्यावसायिक
विज्ञापन कंपनियों ने टीवी विज्ञापन से बहुत ही लाभ कमाया। विज्ञापनदाताओं के लिए टेलीविज़न
एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बन गया था। सन् 1980 में टेलीविज़न विज्ञापन से 2.53 बिलियन यूरो अर्थात मीडिया का
22 प्रतिशत हिस्सा टेलीविज़न विज्ञापन को मिला जबकि राष्ट्रीय मीडिया केवल 16.5 प्रतिशत ही आकर्षित कर पाया (डायर, 1982, पृ. 52)। आरंभ में टेलीविज़न विज्ञापन केवल ब्रांडेड
कंपनियों या घरेलू सामानों जैसे साबुन, डिटर्जेंट, पेटेंट खाद्य पदार्थों के होते थे। सन्
1960 के अंत और 1970 तक पैक घरेलू सामानों के टेलीविज़न विज्ञापन कम हो गए जो टेलीविज़न विज्ञापन
के 40% होते थे। सन् 1970 में टेलीविज़न विज्ञापन का राजस्व 177 मिलियन यूरो से बढ़ कर 347 मिलियन यूरो हो गया (डायर, 1982, पृ. 52)। लेकिन अब घरेलू सामानों के विज्ञापन
की जगह रिटेल, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं, छुट्टियों में घुमाने की व्यवस्था करने वाले पर्यटन उद्योग, रियल स्टेट तथा अन्य वित्तीय औद्योगिक सेवाओं ने ले लिया था।
सन् 1980 में सेटेलाइट, केबल, पे
टेलीविज़न, वीडियो टेप, वीडियो डिस्क सिस्टम, टेलीटेक्स तथा व्यूडाटा के आने से टेलीविज़न विज्ञापन के लिए अधिक समय
की मांग की समस्या समाप्त हो गयी। इससे सूचना के देखने तथा संरक्षित करने की समस्या
भी समाप्त हो गयी। नैरोकास्टिंग का विस्तार हुआ। अब विज्ञापनदाता को दर्शकों तक पहुंच
बनाने में आसानी होने लगी तथा दर्शकों के आकर में वृद्धि भी हुई। सन् 1990 की शुरुआत में एम. टीवी दर्शकों के सामने केबल तार द्वारा उपलब्ध हुआ। एम. टीवी ने संगीतयुक्त चैनल की प्रस्तुति दर्शकों के सामने की। इससे विज्ञापन
करने की एक नई पद्धति का आगाज हुआ। इससे संगीत के धुनों का महत्त्व विज्ञापन में अत्यधिक
बढ़ गया। केवल टेलीविज़न द्वारा क्यूवीसी (QVC), होमशॉपिंग नेटवर्क तथा शॉप टीवी कनाडा जैसे विज्ञापन के नये तरीके सामने
आए। इसी वर्ष इंटरनेट के आने से डॉट काम द्वारा विज्ञापन में तेजी आयी। इंटरनेट के
माध्यम से सीमा विहीन व्यापारिक विज्ञापन का मार्ग खुला। इस माध्यम से किये जाने वाले
विज्ञापन को ऑनलाइन विज्ञापन, मार्केटिंग तथा वेब विज्ञापन के नाम से जाना जाने लगा।
इंटरनेट के आरंभ
में ज्यादातर ऑनलाइन विज्ञापन प्रतिबंधित थे। इंटरनेट,
आरपनेट तथा एनयेसएफ नेट का नीतियों या नियम के अंतर्गत उपयोग होता था।
इसलिए इस पर व्यावसायिक विज्ञापन प्रतिबंधित थे। सन्
1991 में एनयेसएफ ने अपने व्यावसायिक उपयोग के प्रतिबंध को हटा दिया। इसके
पहले 3 मई, 1978 में
विज्ञापन व्यवसायी गैरी थुर्केक ने डीइसी
(DEC) से अमेरिका के पश्चिमी तट के आरपनेट उपयोगकर्ता को एक ईमेल भेजा। जो डीइसी
के नये मॉडल के लिए घर का विज्ञापन था। इंटरनेट ज्यादातर नीतियों के लिए उपयोग होने
वाला माध्यम था। पर अब इंटरनेट द्वारा मेल व्यापार तेज़ी से हो रहा था जो स्पैम के रूप
में जाना जाता था। सन् 1994 में मार्क एबेरा ने डोमेन इनसाइडकनेक्शन डाटकॉम के तहत ईमेल सूची में
ऑप्ट-इन करने के लिए पहले ऑनलाइन मार्केटिंग की शुरुआत की। आगे चल कर क़ानूनी
व्यवसाय में सहयोगी लॉरेंस कैंटर और मार्था सिगेल ने यूज़नेट पर अपने कानून व्यवसाय
के प्रचार के लिए कार्ड लॉटरी-फाइनल
वन नाम से स्पैम बनाया। यह ऑनलाइन प्रोफाइल विज्ञापन बन गया और इंटरनेट विज्ञापन के
रूप में यूज़नेट तथा ईमेल पर फ़ैल गया। ऑनलाइन बैनर विज्ञापन की शुरुआत भी इसी समय से
हुई। ऑनलाइन बैनर विज्ञापन के लिए इसके मालिक ने अपने पृष्ठ द्वारा विज्ञापन सहयोग
के लिए अतिरिक्त राजस्व मांगना शुरू कर दिया था। ऑनलाइन सेवा प्रोडिजी उत्पादों के
विज्ञापन को पृष्ठ के सबसे ऊपर देना शुरू किया था। सिलिकान वैली ला फर्म को ग्लोबल
नेटवर्क विगेटर ने सन् 1993 में पहला क्लिक विज्ञापन बेचा। सन्
1994 में वेब बैनर विज्ञापन प्रमुख विज्ञापन हो गया। जब हॉटवायर्ड ने एटी एंड
टी (AT&T) तथा अन्य कंपनियों को इसे
बेचा। गो टू डॉट काम ने सन् 1998 में विज्ञापन की खोज का एप्लीकेशन बनाया था। सन् 2002 में गूगल ने अपना एडवर्डस विज्ञापन खोजने
के प्रोग्राम की शुरुआत की।
वर्तमान समय में
ऑनलाइन विज्ञापन के तरीके हर दिन बदल रहे हैं। अब सभी कंपनियां अपने विज्ञापन संदेश
को संपादकीय विषयवस्तु या अन्य महत्त्वपूर्ण सेवाओं में शामिल करने की मांग कर रही
हैं। उदाहरणार्थ रेड बूल मीडिया हाउस ने फेलिक्स बाउमगार्टनर की अंतरिक्ष से कूदने
के स्टंट को ऑनलाइन दिखाया। कोका कोला ने ऑनलाइन मैगज़ीन प्रकाशन तथा नाइके ने अपने
उत्पाद के प्रदर्शन के लिए फ्री अप्लीकेशन देना शुरू किया है। ये सभी विज्ञापन करने
के तरीके हैं। सोशल मीडिया द्वारा विज्ञापन तेजी से हो रहा है। इससे अब ऑनलाइन विज्ञापन
पर खर्च बढ़ गया है। सन् 1998 से रेडियो और टेलीविज़न विज्ञापन के प्रमुख माध्यम बन गए थे जो सन् 2017 तक प्रमुख माध्यमों में गिने जाते हैं।
ऑनलाइन विज्ञापन पर खर्च ज्यादा किया जा रहा है,
क्योंकि इंटरनेट अब से पहले कभी भी इतना लोकप्रिय नहीं था। अब इंटनेट
तकनीकी सभी चीजों को प्रभावित कर रही है। इसलिए विज्ञापन के तरीके भी इससे प्रभावित
हुए हैं। ऑनलाइन विज्ञापनों में डिसप्ले विज्ञापन,
वेब बैनर, फ्रेम विज्ञापन, पॉप्स अप/पॉप
अंडर विज्ञापन, फ्लोटिंग विज्ञापन, एक्स्पेंडिंग विज्ञापन, ट्रिकी बैनर तथा न्यूज़फीड विज्ञापन का उपयोग किया जाता है। डिसप्ले विज्ञापन
में टेक्स्ट, लोगो, एनीमेशन, वीडियो, फोटोग्राफ
का उपयोग कर इंटरनेट द्वारा विज्ञापन किया जा रहा है। ये विज्ञापन अपने उपयोगकर्ता
के कुछ गुणों की जानकारी उसके इंटरनेट उपयोग से प्राप्त करते हैं। फिर उपयोगकर्ता के
ऑनलाइन खोज के आधार संबंधित विज्ञापन उसे दिखाते हैं। ऑनलाइन विज्ञापन में कूकीज का
उपयोग किया जाता है। ये कूकीज उपयोगकर्ता द्वारा खोजे गए वस्तुओं का पता लगा कर, वस्तु संबंधित ही विज्ञापनों को दिखा कर आकर्षित करता है। विज्ञापन निर्माता
ऑनलाइन उपयोग करने वाले के सभी ब्राउजरों तथा वेबसाइटों से उसकी ऑनलाइन गतिविधियों
का डेटा तैयार कर प्रोफाइल बनाते हैं। फिर उस व्यक्ति के व्यवहार से संबंधित विज्ञापनों
का प्रदर्शन कर लोगों को प्रभावित करते हैं। उपयोगकर्ता के भौगोलिक स्थिति या स्थान
के आधार पर भी ऑनलाइन डिसप्ले विज्ञापन दिखाया जाता है। उपयोगकर्ता के आईपी एड्रेस
से उसके जगह की जानकारी ले कर। उसे स्थान विशेष संबंधित विज्ञापन दिखाए जाते हैं। वेब
बैनर विज्ञापन का उपयोग ऑनलाइन ग्राफिकल विज्ञापन करने के लिए किया जाता है। यह विज्ञापन
सर्वर द्वारा उपभोक्ता को भेजा जाता है। यह विज्ञापन जावा,
एडोब फ़्लैश, एचटीएमएल तथा अन्य प्रोग्रामों का उपयोग कर श्रव्य, दृश्य-श्रव्य, एनीमेशन, बटन, फॉर्म्स तथा अन्य इंटरेक्टिव अप्लिकेशन द्वारा किया जाता है। फ्रेम विज्ञापन
वेब विज्ञापन का प्रथम स्वरूप था। वेबसाइट प्रकाशक इस विज्ञापन को अपने वेबसाइट पर
फ्रेम में निश्चित स्थान पर प्रदर्शित करता है। पॉप-अप विज्ञापन नये वेब ब्राउजर विंडो में प्रदर्शित होता है जो वेबसाइट
विजिटर की प्रारंभिक वेब ब्राउजर में खुलता है। फ्लोटिंग या ओवेरले विज्ञापन अधिक मीडिया
तत्त्वों से बना विज्ञापन है जो एक निश्चित समय सीमा के बाद गायब हो जाता है। यह टेक्स्ट, विडिओ, फोटोग्राफ
तथा ऑडियो वाला एक समृद्ध मीडिया विज्ञापन कहलाता है। ऑनलाइन विज्ञापन में ट्रिक बैनर
तथा न्यूज़ फीड विज्ञापन का उपयोग होने लगा है। ट्रिक विज्ञापन एक बैनर विज्ञापन है
जो उपयोगकर्ता के स्क्रीन को अनुशरण करता है।
21वीं शताब्दी में प्रद्यौगिकी के साथ मीडिया के विभिन्न रूप आए हैं जो
विज्ञापन के स्वरूप को हर दिन बदल रहे हैं। अब विज्ञापन कुछ सिद्धांतों पर आधारित नहीं
रह गया है। आज विज्ञापन की कई पद्धतियां हैं जो उपभोक्ताओं को प्रभावित कर रही हैं।
पहले की तुलना में आज के विज्ञापनों पर बहुत ज्यादा पैसे भी खर्च किये जा रहे हैं।
विज्ञापन अपने विकास के प्रारंभिक स्वरूप से बहुत विकसित हो चुका है।
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पोस्ट डॉक्टरल फेलो, भारतीय सामाजिक विज्ञान परिषद्
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