शोध आलेख : कृषि कानूनों पर किसान आन्दोलन में मीडिया व ग्राम पंचायतों की भूमिका का आलोचनात्मक अध्ययन
-सुरेन्द्र एवं डॉ. तिलक राज आहुजा
शोध सारांश :
देश में साठ के दशक में कृषि संकट से निपटने के लिए हरित क्रांति के माध्यम से कृषि सुधार की दृष्टि से कुछ राज्यों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए सरकार ने किसानों को अनेक स्तर पर सुविधाएँ उपलब्ध करवाई। वर्तमान की मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों को लागू किया जिनका विरोध किसान आन्दोलन के रूप में सामने आया। किसान आन्दोलन को सफल बनाने में मीडिया ने अपना अहम योगदान दिया। किसानों ने अपनी मांगों को सरकार के समक्ष रखने से लेकर जन समर्थन हासिल करने व सरकार से अपनी मांगे मनवाने तक मीडिया का सहारा लिया। कृषि जो कि राज्य सूची का विषय है तथा राज्यों के अधिकार क्षेत्र में ग्राम पंचायतों को कृषि से सम्बन्धी स्वायत्तता की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं इस कारण से ग्राम पंचायतों का कृषि कानूनों से प्रत्यक्ष सम्बध रहा। कृषि कानूनों के निरस्त किए जाने की घोषणा के दौरान प्रधानमंत्री जी ने यह स्वीकार किया कि सरकार कानूनों के प्रति लोगों को जागरूक नही कर सकी जो कि कृषि कानूनों में जनजागरुकता लाने में ग्राम पंचायतों की भूमिका को नजरंदाज किये जाने को दर्शाता है।
प्रस्तावना:
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। किसी भी देश में लोकतान्त्रिक मूल्यों को जीवित रखने के लिए लोकतंत्र के चार मुख्य आधार स्तम्भ स्वीकार किये गये हैं, ये स्तम्भ है- विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका व मीडिया। लोकतंत्र के तीनों आधार स्तंभों के संतुलन व इनकी कार्यप्रणाली की जाँच के लिए स्वतंत्र मीडिया अपनी अहम भूमिका अदा करता है। बिना स्वतंत्र मीडिया के किसी भी देश में लोकतन्त्र की कल्पना नहीं की जा सकती। भारत देश की आधी से अधिक आबादी गावों में निवास करती है व देश की आधे से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अपना जीवन यापन कृषि या कृषि कार्यों से जुड़ी गतिविधियों के माध्यम से करती है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था व ग्रामीण जन जीवन का आधार है। ग्रामीण व्यवस्था का संचालन ग्राम पंचायतों के माध्यम से किया जाता है। ग्राम पंचायतें भारत में सरकार के तीसरे स्तर की स्थापना कर प्रशासन में जन भागीदारी को सुनिश्चित करती है ताकि ग्रामीण अपनी समस्याओं का समाधान जनतान्त्रिक तरीकों से स्वयं कर सके। ग्राम पंचायतें व मीडिया ग्रामीण जनता की आवाज को सरकार तक पहुचाने में महत्वपर्ण भूमिका अदा करती है।
बीज शब्द : मीडिया, ग्राम पंचायत, किसान आन्दोलन, मीडिया, ग्राम पंचायतें, कृषि कानून।
मूल आलेख :
वर्तमान में भारत देश कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व प्रगति कर रहा है तथा यदि खाद्यान्न के स्तर पर देश की आजादी के बाद के दौर से वर्तमान की तुलना करें तो प्रदर्शित होता है कि इस आधार पर देश आत्म निर्भर हो चूका है। 1960 के दशक में देश में खाद्यान संकट छाया हुआ था व आने वाली सरकारों के सामने खाद्यान्न संकट गंभीर रूप लेता जा रहा था परिणाम स्वरूप कृषि की और विशेष ध्यान दिया गया व इसके लिए उन प्रदेशों का चुनाव किया गया जहाँ उपजाऊ भूमि हो व सिंचाई की सुविधा को आसानी से उपलब्ध करवाया जा सके। केंद्र सरकार ने उत्तर भारत के राज्यों जिसमें विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश को चिन्हित कर यहाँ के किसानों को देश के लिए अधिक अन्न उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया गया व किसानों को बीज, कृषि उपकरण, फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य व अन्य प्रकार की कृषि से सम्बंधित सहायता उपलब्ध करवाई गई। सरकार के द्वारा ही किसानों की फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर राज्य द्वारा स्थापित मंडी समितियों के प्रांगण में लाकर खरीदी जाने लगीं। किसी और जगह फसलों की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी गई व खाद्यान्न के भण्डारण की सीमा तय कर दी गई, जिससे खाद्यान्न सरकार ही खरीद सके व देश में खाद्यान्नों की कमी को दूर किया जा सके। सरकार द्वारा किये गए प्रयास हरित क्रांति के रूप में सफल हुए व इसके प्रभावों में प्रमुख रूप से सम्पूर्ण देश को खाद्यान्न संकट से निजात मिली, वहीँ देश में खाद्यान्नों का भण्डारण अधिक मात्र में किया जाने लगा तथा किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हुए। किसानों की आर्थिक समृद्धि का दौर निरंतर मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के किसानों पर जारी रहा तथा देश के अन्य भागों के किसानों की तुलना में इन प्रदेशों के किसान धनाड्य होते चले गये। लगातार चले आ रहे इस अभियान में कुछ समस्याएं वर्तमान में आने लगीं जिसमे से पहली यह रही कि सरकार द्वारा फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर वर्षों से लगातार किये जाने के कारण किसान केवल उन्ही फसलों के उत्पाद पर अपना ध्यान केन्द्रित करने लगे जो सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जा रही है और अन्य फसलों को नजरंदाज किया जाने लगा, दूसरी यह रही कि वर्तमान बाजार ने वैश्विक बाजार का रूप ले लिया, सारी दुनिया के देशों ने अपने बाजार विश्व के लिए खोल दिए परन्तु भारत में कृषि क्षेत्र में मंडी समितियों के बाजार में ही फसलों की खरीद और बिक्री का काम जारी रहा जोकि कृषि व्यापार और वाणिज्य की सीमाओं को संकुचित करता है। भारत सरकार के सामने इस दिशा में प्रयास किये जाने की वैश्विक स्तर मांगे उठने लगी।
केंद्र सरकार के द्वारा कृषि सुधारों को लेकर तीन कृषि कानून लागू किए गये, इन तीन कृषि कानूनों में पहला- जिसमे कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2020, इसके अंतर्गत कृषि उत्पाद जो कि कृषि उत्पाद विपणन समिति अर्थात मंडी समिति में ही बेचे जाने को लेकर बाध्य थे कि बाध्यता को समाप्त कर मुक्त बाजार के प्रवाह को स्थापित करने का प्रयास किया गया। दूसरा- मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अधिनियम 2020, इसके अंतर्गत किसान सीधे तौर पर बिना बिचोलियों के कारोबारियों व निर्यातकों से समझौता करने में सक्षम हुए। तीसरे- कानून आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 इसमें मुख्यतः उत्पाद के भंडारण की सीमा पर रोक को समाप्त किया गया। देश में अनेक संगठनों, विद्वानों, संस्थाओं व कृषि विद्वानों ने एक और जहाँ कृषि क्षेत्रों में सुधार के लिए कृषि कानूनों की सराहना की वही दूसरी और इनका विरोध भी होने लगा। देश के किसानों विशेष तौर पर उतर भारत के किसानों ने तीनों कृषि कानूनों का विरोध शरू कर दिया तथा इन कानूनों को रद्द करने की मांग की।
तीनो कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब, हरियाणा व उतर प्रदेश के किसानों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की तरफ प्रदर्शन के लिए कूच किया। किसान अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलीयों में भर-भर कर दिल्ली की तरफ बढ़ने लगे, प्रदेश की सम्बंधित राज्य सरकारों ने किसानों की इस भारी संख्या को देखते हुए अव्यवस्था फैलने के डर से किसानों को दिल्ली से पहले ही रोकने का प्रयास किया। इस घटना को मीडिया के द्वारा विस्तार से कवर किया गया तथा जल्द ही इस घटना को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के द्वारा कवर किया जाने लगा। किसानों ने दिल्ली सीमा पर अपने डेरे जमा लिए व कृषि कानूनों को लेकर शांतिपूर्वक अहिंसक प्रदर्शन किए। किसानों के द्वारा किये जाने वाले प्रदर्शन ने किसान आन्दोलन का रूप ले लिया। देश के विभिन भागों से किसान प्रदर्शन के लिए दिल्ली की सीमा पर पहुंचने लगे। किसानों की आवाज़ सरकार तक पहुँचने के लिए राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों जिनमे प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों शामिल थे ने अपनी अहम् भूमिका अदा की। किसानों ने अपने प्रदर्शन के दौरान कुछ विशेष मीडिया एजेंसियों पर आरोप भी लगाये की उनके प्रदर्शन को इन मीडिया एजेंसियों के द्वारा अलग दिखाने व प्रदर्शन को गलत तरीके से प्रस्तुत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। एक समय पर किसानों व किसान संगठनों ने इन मीडिया एजेंसियों से एक तरफा दूरी बना ली तथा सम्पूर्ण किसान आन्दोलन के दौरान किसानों के द्वारा बनाई गई इस दूरी को देखा गया। किसानों ने अपनी आवाज व मुद्दों को सरकार व देश की आम जनता तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। इसके लिए किसानों ने सोशल मीडिया की ताकत को पहचानते हुए बहुत ही बखूबी तरीके से इसका प्रयोग अपने आन्दोलन को सफल बनाने में किया, जिसमे व्हाट्स-अप ग्रुप, फेसबुक, इंस्ट्रग्राम, ट्विटर व यू-ट्यूब जैसे माध्यमों का सहारा लिया गया तथा अपने मुद्दों को देश ही नही अपितू विदेशों में भी पहुँचाने में सफलता प्राप्त की। किसानों ने मीडिया व पत्रकारिता के महत्व को समझते हुए एक अन्य महत्वपर्ण कदम इस दिशा में और आगे बढ़ाया, यह कदम था किसानों के द्वारा अपना खुद का अखबार निकालना। किसानों ने इस अखबार को नाम दिया “ट्रॉली टाइम्स”। किसानों द्वारा निकाला गया अखबार ट्रॉली टाइम्स जिसमे “ट्रॉली” नाम का भी अपने आप में एक अलग विशेष महत्व रहा। किसानों ने अपना प्रदर्शन ट्रैक्टर और ट्रॉलीयों के माध्यम से शुरू किया व प्रदर्शन स्थल पर लाई गई ट्रॉलीयां किसानों के प्रदर्शन की पहचान बनती चली गई तथा ट्रॉलीयों ने किसानों के प्रदर्शन को एक अलग पहचान दी। ट्रॉली टाइम्स ने किसानों के आन्दोलन को एकता के सूत्र में पिरोने, सद्भावना बनाए रखने, अपने मुद्दों को आवाम तक पहुँचाने व शान्तिपूर्वक वातावरण निर्माण करने में अहम भूमिका अदा की। किसानों ने एक और जहाँ मुख्यधारा के मीडिया के एक पक्ष को यह कहकर नकार दिया की उसके द्वारा किसानों को गलत रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है व किसान आन्दोलन को लेकर निष्पक्षता नहीं अपनाई जा रही वही दूसरी और इस आन्दोलन के दौरान मुख्यधारा के मीडिया का वह पक्ष भी उभर कर सामने आया जो निष्पक्ष रूप से किसानों के पक्ष में अपनी रिपोर्टिंग में जगह दे रहा था। मीडिया के इस वर्ग ने देश-विदेश में किसानों के द्वारा उठाई गई मांगो को बहुत ही सहज तरीके से प्रस्तुत किया जिसका प्रभाव यह रहा कि विश्व भर में अनेक राष्ट्राध्यक्षों ने इस मुद्दे पर अपने विचार प्रस्तुत किए। किसानों द्वारा किए गये प्रयासों व मीडिया द्वारा अदा की गई भूमिका के कारण किसान आन्दोलन जो कि तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए शुरू किया गया था| दुनिया के अनेक भागों से नैतिक समर्थन मिलने लगा जिससे किसान आन्दोलन और अधिक गतिशील होता चला गया।
किसान जो कि ग्रामीण परिवेश से आते हैं इसलिए इस आन्दोलन में गावों व ग्राम पंचायतों की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अनेक प्रदेशों की ग्राम पंचायतों ने किसानों को अपना समर्थन दिया। कृषि कानूनों को लेकर सरकार के द्वारा ग्राम पंचायतों की भूमिका को लगभग नजरंदाज किया जाता रहा। राज्य सरकारों के द्वारा कृषि कानूनों को लेकर ग्राम पंचायतों के माध्यम से किसानों को जागरूक करने के प्रयास नही किये गये। भारत का संविधान ग्राम पंचायतों की संवैधानिक स्थापना कर ग्राम पंचायतों को 29 विषय क्षेत्रों पर राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्रों के भीतर ग्राम पंचायतों को स्वायत रूप से कार्य करने की शक्तियां प्रदान करता है। इन 29 विषय क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों को कृषि विकास हेतु कार्य करने की शक्तियां भी प्रदान की गई है परन्तु तीनों कृषि कानूनों को लागू करने के दौरान ग्राम पंचायतों की कृषि पर स्वायत्तता की अवहेलना की गई। ग्राम पंचायतों के द्वारा कृषि कानूनों को लेकर किसी भी प्रकार के व्यवस्थित कार्यक्रम नहीं चलाये गए। ग्राम पंचायतें ग्रामीण जनता के रुख को धरातल पर आसानी से पहचान लेने की क्षमता रखती है चूँकि ग्राम ग्राम पंचायतें सीधे तौर पर ग्रामीण जनता के हर वर्ग से सम्बन्ध रखती है। तीनों कृषि कानूनों ने इस क्षेत्र से जुड़े हुए अनेक वर्गों को प्रभावित किया इन प्रभावित होने वाले वर्गों में व्यापारी, कारोबारी, कृषि उद्योगों से जुड़े मील मालिक, मंडी समितियों से जुड़े लाईसेन्सधारी कमीशन एजेंट व किसान थे। इन प्रभावित होने वाले वर्गों में किसानों की संख्या सबसे अधिक थी तथा अन्य वर्गों की तुलना में किसान ग्रामीण परिवेश से आते हैं। ग्रामीण परिवेश से आने के कारण ये ग्राम पंचायतों से सीधे तौर जुड़े रहते हैं तथा ग्राम पंचायतों में सहभागी भूमिका निभाते हैं। राज्य सरकारों के द्वारा ग्राम पंचायतों पर कृषि कानूनों को लेकर की जाने वाली अवहेलना के कारण कृषि कानूनों के प्रति ग्रामीण जनता को पूर्ण रूप से जागरूक नहीं किया जा सका।
किसानों के सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार व मीडिया के सहयोग से देश-विदेश से किसानों को मिलने वाले समर्थन में लगातार वृद्धि होती जा रही थी। किसानों ने दिल्ली से सटी हुई सीमाओं पर अपना प्रदर्शन जारी रखा। देश के तमाम बड़े राजनेताओं व यहाँ तक की देश के प्रधानमंत्री ने किसानों को कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का प्रयास किया व मीडिया के माध्यम से देश की जनता तक अपनी बात पंहुचाने का प्रयास किया तथा प्रधानमंत्री ने आकाशवाणी के माध्यम से “मन की बात” कार्यक्रम के द्वारा भी कृषि क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता पर विचार प्रस्तुत किए परन्तु किसान कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग को लेकर अड़े रहे। अन्ततः देश के प्रधानमंत्री ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर सीधे प्रसारण के द्वारा 19 नवम्बर 2021 के दिन देश को संबोधित किया जिसके तहत अपने सम्बोधन में कहा की “सरकार तीनों कृषि कानूनों के महत्व को समझाने में सफल नहीं हो सकी यद्यपि सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों को किसानों की भलाई, किसानों के हितों व किसानों के समृद्ध भविष्य के लिए लाया गया था तथा सरकार, कृषि विद्वानों ने व वैज्ञानिकों ने तीनों कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का अथक प्रयास किया परन्तु इस सत्य को किसानों तक नहीं पहुंचाया जा सका इस कारण सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा करती है।“ प्रधानमंत्री की इस घोषणा को प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने विशेष महत्व देते हुए प्रकाशित व प्रसारित किया। प्रधानमंत्री के संबोधन के उपरांत संसद के शीतकालीन सत्र में संसद के दोनों सदनों के द्वारा तीनों कृषि कानूनों को रद्द किए जाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया व इस पर 1 दिसम्बर 2021 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के उपरांत तीनों कृषि कानून रद्द हो गए। कृषि कानूनों के रद्द होने से आन्दोलनकारी किसानों ने इसे लोकतन्त्र की जीत माना। कृषि कानूनों को लेकर देश में लगभग एक वर्ष किसान आन्दोलन जारी रहा तथा इसमें मीडिया व सोशल मीडिया ने अहम भूमिका अदा की तथा बिना किसी जनसंचार के इतने व्यापक स्तर व इतने लम्बे समय तक किसी जन आन्दोलन या प्रदर्शन की कल्पना नही की जा सकती जो अपना मुकाम हासिल कर ले परन्तु यहाँ यह भी ध्यान दिए जाने योग्य पहलू है कि कृषि कानूनों में ग्राम पंचायतों की भूमिका की अवहेलना की गई, जो धरातल पर कार्य करती है व जन जागरूकता में सक्रिय भूमि का निर्वहन करती है।
निष्कर्ष:
आधुनिक समय की मांग को देखते हुए कृषि क्षेत्रों से जुड़े तीन कानूनों को लागू किया गया। लागू किये गये तीनों कानूनों को लेकर सरकार जन समर्थन हासिल नहीं कर सकी। किसानों जो उतर भारत के उन प्रदेशों से सम्बन्ध रखते थे जिन पर हरित क्रांति का मुख्य प्रभाव रहा| उनमे कृषि कानूनों को लेकर व्यापक असंतोष देखा गया। किसानों ने मीडिया के माध्यम से अपने मुद्दों को उठाया जिसमे किसानों ने मुख्यधारा के मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया का भी सहारा लिया गया। किसानों ने अपने आन्दोलन को सफल बनाने के लिए अख़बार का प्रकाशन भी शुरू किया। सरकार के द्वारा ग्राम पंचायतों का उपयोग कृषि कानूनों के प्रचार-प्रसार व जागरूकता के लिए पर्याप्त रूप से नहीं किया जा सका व ग्राम पंचायतों ने धरातल पर वास्तव में किसान आन्दोलन का ही समर्थ किया। मीडिया ने किसान आन्दोलन में अपनी भूमिका इस स्तर पर तो अदा की कि आन्दोलन लोकप्रिय बना दिया गया परन्तु मीडिया द्वारा कृषि कानूनों पर सरकार के पक्ष को आम जन तक नहीं पहुंचाया जा सका। इन सब का परिणाम यह रहा कि लोकतान्त्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए तीनों कृषि कानून केंद्र सरकार द्वारा रद्द कर दिए गए।
संदर्भ सूची:
- https://www.ndtv.com/india-news/bill-cancelling-3-farm-laws-gets-presidential-sign-off-2632039
- https://www.amarujala.com/india-news/president-ramnath-kovind-signed-the-bill-to-withdraw-the-three-farm-laws-earliar-the-bills-has-been-passed-by-parliament-latest-news-updat
- https://www.bbc.com/hindi/india-55187312
- https://www.drishtiias.com/hindi/daily-updates/daily-news-editorials/farm-acts-unwanted-constitutional-adventurism
- https://thecsrjournal.in/pm-modi-repeals-farm-bills-whos-social-responsibility-hindi/
- NDTV,Prime time,https://youtu.be/mdS3tv-Aefo
- प्रो.संजय द्विवेदी, मीडिया की भूमिका, योजना, प्रकाशन विभाग, सूचना भवन, नई दिल्ली, जनवरी
2022,पृष्ठ 43-45
- http://hindigazette.com/2018/02/24/four-piller-of-democracy/amp/
- Sansad TV, Loktantermeritaqat, https://youtu.be/8F082gzb0jA
सुरेन्द्र (शोध छात्र), डॉ. तिलक राज आहुजा (शोध पर्यवेक्षक)
राजनीति विज्ञान विभाग, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज एंड ह्युमिनिटीज
ओम स्टर्लिंग ग्लोबल यूनिवर्सिटी, हिसार, हरियाणा.
skumar786adr@gmail.com, 8901277555
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च 2022
UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )
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