शोध आलेख : संचार की दुनिया में इंटरनेट, मोबाइल और सोशल मीडिया
-डॉ.कपिलदेव प्रसाद निषाद
शोध सार : वर्तमान समय सूचना और प्रौद्योगिकी का समय है। कंप्यूटर, मोबाइल के विकास के साथ ही साथ इंटरनेट सूचना को तीव्र गति से पहुँचाने में अहम भूमिका निभा रहा है जो सूचनाएँ आमजन तक नहीं पहुँचती थी; किन्तु अब वह पहुँच रहीं है। कारण चाहे जो भी हो जिन्हें आमजन अपने मोबाइल और दूसरे सोशल माध्यमों जैसे फेसबुक, टि्वटर, यू-ट्यूब, लिंक्डइन, स्नैपचैट, टेलीग्राम, टिकटॉक, ट्विच, ट्विटर, बाइबर, व्हाट्सएप के माध्यम से प्राप्त कर रहा है, और इन पर भेज भी रहा है। मुख्य मीडिया में जिन घटनाओं, सूचनाओं या जिन लोगों को जगह नहीं मिल पाती थी अब उस कमी को सोशल मीडिया पूरा कर रही है। सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिस पर किसी भी सूचना को संप्रेषित करने के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं पड़ती है, क्योंकि जिनके पास मोबाइल और इंटरनेट है, वह सूचना के स्तर पर पत्रकार की भूमिका में आ गया। यदि कहीं कोई घटना घट रही है तो वह उस घटना, दृश्य, वीडियो, ऑडियो या लिखित माध्यम को त्वरित गति से सोशल प्लेटफॉर्म ऊपर संप्रेषित कर रहा है जो आमजन को सहज ही सुलभ और प्राप्य हो रहा है।
बीज शब्द : ब्लॉकचेन, लिंक्डइन, स्नैपचैट, बाइबर, इंटरनेट, वेबीनार, सॉफ्टवेयर, स्मार्टफोन।
मूल आलेख : मोबाइल और इंटरनेट के आविष्कार ने समस्त संसार को एक दूसरे से
जोड़ने का काम किया है। बातचीत, हाल-चाल के साथ-साथ फोटो और वीडियो को स्वतंत्रता पूर्वक शेयर किया जा रहा है।
पाठ कुछ भी हो सकता है। लाइव वीडियो कॉलिंग ने परिवार को दूर से नजदीक ला दिया है।
संचार के परंपरागत माध्यमों के अलावा विश्व का एक बड़ा तबका नई मीडिया को जन्म
दिया। जहाँ पर खबरें, सूचनाएँ, घटनाएँ बिना किसी संपादन के क्षण भर में
ही एक बड़े जनसमूह तक पहुँच जा रही हैं। खबरें जब संपादित हो जाती है तो उनका
स्वरूप कुछ और ही हो जाता है और उसमें से बहुत कुछ छुपा लिया जाता है क्योंकि-“संपादकीय सामग्री का निर्धारण सिर्फ
संपादकीय विभाग में बैठे लोग और पत्रकार नहीं करते। विज्ञापन विभाग और संपादकीय
विभाग के बीच 'चीन की दीवार' का होना अब सिर्फ मीडिया नीति शास्त्र
की किताबों में ही संभव है।”1
ऐसे में आमजन ने खबरों को जिस रूप में और जिस अवस्था में
पाया, उसको उसी रूप में सोशल मीडिया पर
प्रसारित कर दिया। जिन लोगों, वर्ग एवं समूह को मुख्य मीडिया अपने प्लेटफार्म पर स्थान नहीं दे रही थी. उन्हें अब किसी का इंतजार नहीं करना
पड़ रहा है। वह यू-ट्यूब, फेसबुक, टि्वटर या दूसरे संचार का सामाजिक
माध्यमों का खूब प्रयोग कर रहा है। अब तो बड़े-बड़े टी.वी.चैनलों के मालिक छोटे-छोटे वर्ग-समूहों पर निगरानी रखने के लिए
अपने-अपने एग्जिकेटिव रखे हुए हैं, और अपने समाचारों को यू-ट्यूब, फेसबुक या अन्य किसी संचार माध्यम पर अपलोड करके लोगों तक पहुँचा रहे हैं। तथा वह चाह रहे हैं कि टेलीविजन की खबरें
जहाँ तक नहीं पहुँच पा रही है, वहाँ तक पहुँचे एवं समाज के उन वर्गों तक
उनकी पैठ बने। उनके विवर्स बढें, उनको सब्सक्राइब करें, लाइक करें और सिर्फ और सिर्फ उनके चैनलों को ही देखें। जिससे उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होती रहे। एक समय था जब प्रिंट
मीडिया की खबरें अखबारों में छप कर दिल्ली या दूसरे बड़े महानगरों से हवाई जहाज या
ट्रेन के द्वारा छोटे शहरों, कस्बों में पहुँचती थी। उन्हें गंतव्य
तक पहुँचने में समय लगता था; उनमें स्थानीय खबरें नहीं के बराबर होती थी, न ही उनकी भाषा में होती थी। किंतु अब
स्थानीय खबरें भी छपती हैं और उनकी भाषा में छपती हैं, और यदि प्रिंट मीडिया नहीं छापती और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम नहीं दिखाते तो वह काम सोशल
मीडिया करती है। लोगों को वीडियो के माध्यम से तमाम
भाषाओं में फेसबुक और यू-ट्यूब पर अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए तकनीकी
आधार मिल गया है जिसे आमजन गाँव, शहर, कस्बों की खबरों को अपनी भाषा में
संप्रेषित कर रहा है। इस संदर्भ में विजय शंकर का कहना ठीक ही लगता है कि-“तेजी से फैलते मोबाइल इंटरनेट के दौर
में भाषाई मीडिया नया आकार ले रहा है। सोशल मीडिया ने भाषाई मीडिया को फैलने के
लिए दमदार प्लेटफार्म दिया,जो अब दुनिया के नक्शे पर नया आकार ले रहा है।”2
सोशल मीडिया का विषय भी अन्य मीडिया की तरह चुनाव पर
आधारित नहीं है कि क्या प्रस्तुत करना है और क्या प्रस्तुत नहीं करना है? हालांकि कुछ कमियाँ हो सकती है। व्यक्ति
या समूह जैसा अनुभव करता है, उस घटना को सोशल मीडिया पर प्रसारित कर देता है। क्योंकि इंटरनेट और मोबाइल
धारण करने वाले व्यक्ति या समूह को आचार संहिता की जानकारी नहीं होती है। बस उसे
वह घटना नजर आती है जिसे वह पोस्ट करता है। खाद्य पदार्थों से लेकर पर्यावरण, शिक्षा, बाजार, मनोरंजन, विकास-पतन, सरकारी महकमों की कमजोरियाँ, भाषण, गीत, संगीत, खेलकूद, विकास से लेकर विनाश तक की खबरें आमजन
द्वारा आमजन के लिए सामाजिक माध्यमों पर त्वरित भेज दी जाती हैं; और उनका विस्तार इतना व्यापक होता है कि
क्षण भर में ही बहुत दूर तक वह अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देती है। देश और समाज
के विकास के लिए सरकारों की नीति और नियमों का पाठ नागरिकों का पढ़ाया जाता है और कहा जाता है कि उससे उनका कल्याण होगा। किंतु कितना कल्याण होता है यह विचारणीय प्रश्न है।
आमजन से जुड़ी समस्याएं और सरकारी योजनाएं उन तक
नहीं पहुंचती हैं तब वह ठगा हुआ महसूस करता है। इस स्थिति में वह अपनी समस्याओं को बताने के लिए जाए तो कहां जाए। कुछ संचार के माध्यम उन समस्याओं को इमानदारी से नहीं
उठाते हैं इससे लोगों का मोहभंग हुआ है। परिणाम
स्वरूप यह काम सोशल मीडिया कर रही है। एक प्रकार से सोशल मीडिया सरकार को
और उसके महकमे को नीति सम्मत, विधि सम्मत कार्य करने के लिए विवश करती है। अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ती है
तथा आमजन को जानकारी से लैस करती है कि अपने अधिकारों को पहचानों और भावी भविष्य
के लिए एक बेहतर देश, नागरिक, समाज बनाने में सहयोग करें। अंबरीश
सक्सेना के अनुसार-“सोशल मीडिया ने लोगों के
बीच आपसी संपर्क को बढ़ाया है जिसके परिणामस्वरूप साझा उद्देश्य के लिए, खासकर अलोकतांत्रिक निज़ामों के विरोध और मानव कल्याण के लिए समरसता
कायम करने के लिए उनके बीच एकजुटता बढ़ी है। मिस्र से लेकर भारत तक, हर जगह यही कहानी है। इस तरह मीडिया
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में एक भागीदार बन गया है; यह सुशासन प्रदान करने का उपकरण बन गया
है; यह अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने का
एक हथियार बन गया है। अंतिम लक्ष्य अब भी परिवर्तन का ही है, अर्थात् समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन
लाने का लक्ष्य जिसे पाने के लिए जनता आकांक्षी है और जिसे प्रदान करने के लिए
सरकार बाध्य है।”3
सोशल मीडिया में जहाँ-तहाँ अच्छे और बुरे प्रभाव भी देखने
को मिलता है। आम नागरिक फोटो, वीडियो या पाठ को बिना देखे समझे ही शेयर कर देता है। वह
उसका नफा-नुकसान नहीं जानता। जबकि शेयर करने से पहले खबरों, घटनाओं आदि के स्रोतों को जान लेना चाहिए।
जैसे वह कहाँ से आया है और उसका उद्देश्य क्या है, यह जानकार ही उसको शेयर करना
चाहिए। क्योंकि इंटरनेट आधारित सोशल मीडिया पर जितनी भी जानकारियाँ, खबरें, तथ्य या टेक्स्ट हैं यह तय कर पाना
मुश्किल होता है कि कौन-सी खबर या घटना सच है और कौन-सी नहीं। किंतु यह सत्य है कि
इतने बड़े प्लेटफार्म पर जो भी खबरें होती हैं वे त्वरित गति से आम जनता को
पहुंचती हैं। अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति पत्रकार की भूमिका में आ जाता है।
यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, लाइन, लिंक्डइन, पिंटरेस्ट, स्काइप, स्नैपचैट, टेलीग्राम, टिकटॉक, ट्विच, ट्विटर, बाइबर, व्हाट्सएप
आदि इंटरनेट पर आधारित माध्यम है।
इंटरनेट के बिना इनकी कोई उपयोगिता
नहीं। दुनिया के किसी भी कोने में संदेश, कोई सूचना, फोटो, वीडियो को इंटरनेट और
डिवाइस के द्वारा ही भेजा जाता है। यह सब त्वरित गति से घटित होता है जिससे कि
आदमी भौचक रह जाता है। अपनी जादुई प्रभाव के कारण ही इसने लोगों की सोचने समझने की
प्रक्रिया को बदल दिया है। इंटरनेट और सामाजिक माध्यमों ने लोगों को बहुत गहरे तक
प्रभावित किया है। “इंटरनेट मुक्त सूचना विनिमय
का सबसे बड़ा लाभ माध्यम है। इंटरनेट को सचमुच की सूचना की पूर्णमुक्ति का दूसरा
नाम कहा गया है और इसी के अन्य नाम साइबर स्पेस, इंटरनेट स्पेस, अंतरंग जनतंत्र हैं।”4 यही कारण है कि तीज-त्यौहार, होली, दिवाली की खरीदारी से लेकर, शुभकामनाओं के संदेशों को भेजने का काम
इंटरनेट के द्वारा ही संभव हो पाता है। ऑफिस से लेकर दैनिक जीवन में एक व्यक्ति
जिसके पास, कंप्यूटर, लैपटॉप या
स्मार्टफोन है, वह 8 से 12 घंटे के बीच करीब घंटे-दो-घंटे का समय सोशल मीडिया पर ही बिता रहा
है। विकसित देशों में यह समय ज्यादा है। मेट्रो, रेल, बस यात्रा करते समय प्रायः यात्रियों को
देखा जाता है कि वह आपस में बातें न करके या पर्यावरण या प्रकृति को न देखकर सोशल
मीडिया पर कुछ सर्च करते हुए मिल जाता है। ऑनलाइन समाचारों को पढ़ने से लेकर मनोरंजन के आदान-प्रदान तथा
समय बिताने का बहुत बड़ा माध्यम बन गया है। इंटरनेट का प्रभाव इतना शक्तिशाली है
कि वह पठन-पाठन, ऑनलाइन क्लासेज, एक दिवसीय, दो दिवसीय संगोष्ठी के लिए वेबीनार भी
इंटरनेट और लैपटॉप, स्मार्टफोन, टेबलेट आदि डिवाइस के द्वारा ही संभव हो
पाता है। इन कार्यक्रमों से संबंधित व्यक्ति कहीं पर भी बैठा हो वह अपने
स्मार्टफोन या दूसरे डिवाइसों से जुड़कर उस कार्यक्रम का सहभागी बन पाता है। कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन
और इंटरनेट के अंत:संबंधों को रेखांकित करते हुए जवरीमल्ल पारख कहते हैं
कि-“आज वह
इंटरनेट के जरिए सारी दुनिया से जोड़ने वाला सर्वाधिक प्रभावशाली माध्यम भी है। विश्वव्यापी
जाल से पूरी दुनिया को अक्षरश: एक सूत्र में पिरोने वाला यह माध्यम ही दरअसल संचार
क्रांति की सर्वाधिक चमत्कारी अभिव्यक्ति है क्योंकि इसने टेलीविजन, रेडियो, मुद्रण, टेलीफोन, सिनेमा
आदि संचार के सभी माध्यमों की विशेषताओं को भी अपने में समाहित कर लिया है।”5 इसी समायोजन के कारण ही यह
एक ताकतवर माध्यम है। तमाम तरह की जानकारियों
के साथ-साथ मार्केटिंग भी इससे की जा रही है।
किसी वस्तु की खरीद-फरोख्त से लेकर बाज़ार में वस्तुओं के दाम के नए अपडेट भी
इंटरनेट के माध्यम से ही हो रहा है। इस प्रकार बाजार से संबंधित तमाम जानकारियाँ
क्षणभर में ही क्रेता और विक्रेता को मिल जाती है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में दुनिया के बड़े संचार माध्यम
इंटरनेट को एक बड़े प्लेटफार्म के रूप में प्रयोग में ला रहे हैं। इंटरनेट भविष्य
का सबसे तेज परिपथ बन गया है। कम से कम वर्तमान समय में संचार को फैलाने वाला यह
सबसे तेज माध्यम बन गया है। फिलहाल अभी इसका कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। इस प्रकार
इंटरनेट के प्रभाव को देखकर विशेषज्ञों का मानना है कि-“अब इंटरनेट के आने और समाचार संप्रेषण
का माध्यम बनने के साथ ही कहा जा रहा है कि पर सर्वप्रथम समाचार देने के टेलीविजन
के महत्व को झपट लेगा। ज्यादातर प्रमुख समाचार-पत्रों जैसे न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया ने इंटरनेट पर भी अपने
समाचार उपलब्ध करा दिए हैं। वर्तमान समय इंटरनेट का है।”6
इंटरनेट की उपयोगिता को समझते हुए बड़ी-बड़ी समाचार
एजेंसियों ने समाचार पत्रों, रेडियो, टेलीविजन की खबरों, वेब सीरीज या दूसरे समाचार के जो माध्यम
हैं, उनको आपस में विलय कर इंटरनेट से जोड़ दिया है जिससे कि खबरें तथा अन्य जरूरी
सामग्री त्वरित गति से एक साथ उपलब्ध हो जाएँ और उनका सर्कुलेशन भी बहुत तेजी से
एक साथ हो सके। इन एजेंसियों का मुख्य उद्देश्य
है, बाजार पर कब्जा। इस समझ लिए इंटरनेट रामबाण साबित हुआ। क्योंकि-“आज इंटरनेट का प्रयोग प्रत्येक क्षेत्र
में काफी सफलतापूर्वक किया जा रहा है। चाहे स्टॉक बाजार में उतार-चढ़ाव पर नजर
रखनी हो या फिर हॉलीवुड, बॉलीवुड की चकाचौंध में डुबकी लगानी हो या फिर पुस्तकों के संसार में भ्रमण
करना हो या संगीत का रसास्वादन, सभी कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध है।”7 तमाम तरह की जानकारियों की
उपलब्धता के कारण अधिकांश समाचार एजेंसियों ने इंटरनेट आधारित अपने-अपने चैनलों, समाचार पत्रों के समाचार संस्करण उपलब्ध
कराए। क्योंकि उनको आशंका है कि भविष्य में यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो उनकी साख और
उनकी पत्रकारिता पर आधारित व्यापार बाजार में भारी गिरावट आएगी।
भारतीय राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो वर्तमान समय
में उदाहरण स्वरूप-उत्तर प्रदेश के खीरी
लखीमपुर जिले में किसानों को गाड़ी से कुचल दिया गया। राजनीतिक, सामाजिक दबाव के चलते उत्तर प्रदेश
सरकार ने सबसे पहले वहाँ की इंटरनेट सेवा को बंद किया। ठीक उसी प्रकार हरियाणा में
भी किसान आंदोलन कर रहे थे। किसी भी घटना की आशंका को देखते हुए सरकार ने सबसे
पहले इंटरनेट को बंद किया जिससे लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस
प्रकार सूचनाओं के आदान-प्रदान की सेवाएँ वह ठप पड़ गई। इन घटनाओं का उल्लेख मात्र
उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। इंटरनेट सेवा विद्युत गति से खबरों को आमजन
से लेकर सरकार तक क्षण भर में कैसे पहुँचा देती है, इसे सहज ही समझा जा सकता है।
इसका कोई विकल्प नहीं। चूँकि-“दुनिया इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से इस प्रकार जुड़ गई है कि आज दुनिया
का कोई भी कोना दूसरे कोने से अछूता नहीं रहा है।”8 इसलिए इंटरनेट आधारित मोबाइल या इसी प्रकार के दूसरे उपकरण हैं,
अब वे किसी पत्रकार या टीवी
चैनल के रिपोर्टर की इंतजार नहीं करते। भारत में बहुत तेजी से स्मार्टफोन आम लोगों
तक पहुँच गया है जो तत्काल घट रही घटनाओं को अपने मोबाइल में कैद कर लेता है और
उसे सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मों पर भेज देता है जिससे खबर लोगों तक आसानी से
और क्षण भर में ही पहुँच जाती है। हर्षदेव के अनुसार-“असल में इंटरनेट और उस पर उपलब्ध नए
माध्यमों की बढ़ती लोकप्रियता की वजह यह भी है कि पारंपरिक संचार माध्यमों-अखबार, टी.वी. और रेडियो पर बड़ी पूँजी से चलने
वाली कंपनियों का कब्जा है, जबकि नए माध्यमों ने आम लोगों और नागरिक समाज के विभिन्न समूहों से लेकर
छोटी-मंझोली मीडिया कंपनियों और साझा वैकल्पिक उपक्रमों को
सूचना-समाचार-विचार-मनोरंजन के अनगिनत मंच मुहैया कराए हैं जहाँ एकतरफा संवाद के
बजाय ज्यादा लोकतांत्रिक और बराबरी के स्तर का संवाद और विचारों का साझा है। सच
पूछिए तो नए माध्यमों ने सूचना-समाचारों के आदान-प्रदान की मौजूदा व्यवस्था का
काफी हद तक जनतंत्रीकरण किया है।”9
इंटरनेट के द्वारा विश्व के कोने-कोने में ऑनलाइन वेबसाइट
बनाना,ऑनलाइन किसी सॉफ्टवेयर को सीखना, ऑनलाइन क्लास करना, ऑनलाइन रिपोर्टिंग के साथ-साथ सिनेमा और
टी.वी. सीरियल का संपादन भी किया जा रहा है। घर बैठे व्यक्ति ब्रॉडबैंड लगवाने के
बाद अपने लैपटॉप या डेक्सटॉप के माध्यम से दुनिया के किसी भी शहर के निजी समूह के
प्रोफेशनल स्कूल चलाने वाले केंद्र से जुड़कर वह ग्राफिक डिजाइनिंग, विज्ञापन बनाने की कला को सीख रहा है। ऑनलाइन बैंकिंग भुगतान, ऑनलाइन एडमिशन अर्थात बहुत कुछ इंटरनेट
के माध्यम से किया जा रहा है। यहाँ तक कि जीपीएस और इंटरनेट के माध्यम से किसी भी शहर के
गली, कूचे, मोहल्ले को सर्च करके आसानी से पहुँचा
जा सकता है। यह सब इंटरनेट के बदौलत ही संभव हो पाया है। आने वाले समय में
टेक्नोलॉजी के इस जमाने में ब्लॉकचेन एक ऐसा डिजिटल क्लाउड आधारित प्लेटफार्म होगा
जहाँ पर जमीन की खरीद-फरोख्त से लेकर बहुत सारी सरकारी चीजों को सुरक्षित रखा जा
सकता है किंतु इस प्रक्रिया को करने के लिए इंटरनेट की आवश्यकता होगी। अब इंटरनेट
की उपयोगिता को बहुत शिद्दत के साथ महसूस किया जाने लगा है। डॉ. विजय कुलश्रेष्ठ के अनुसार-“इंटरनेट नेटवर्क्स का नेटवर्क और सूचनाओं का
ऐसा संजाल है जो समस्त जालों को परस्पर जोड़ने की क्षमता रखता है। यह कंप्यूटर और संचार के संलयन की ऐसी प्रौद्योगिकी क्रांति है
जिससे उत्पादकता, उपलब्धि और उच्चतर विकास
प्राप्ति में सहायक है, सूचनाओं और संदेशों के आदान-प्रदान की तीव्रगामी व्यवस्था और सुविधाओं का
पिटारा है।”10
अन्य देशों की भांति भारत जैसे विकासशील देश
में भी इंटरनेट तो पहुँच गया है। इंटरनेट के साथ-साथ मोबाइल जैसे गैजेट भी उपलब्ध
हो गए हैं। किंतु भारतीय जनमानस खासतौर पर युवा पीढ़ी अभी उस पर वीडियो गेम खेलते
मिल रहा है या मनोरंजन जैसी वस्तुएँ ही सर्च कर रहा है। जबकि वह इसके माध्यम से
कृषि, जल कृषि या किसी अन्य क्षेत्र में भी
अपनी उत्पादकता को बढ़ा कर बाजार तक पहुँच सकता है। तथा
अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि बिल्कुल ही ऐसा नहीं
किया जा रहा है लेकिन अभी बड़ी संख्या में नहीं किया जा रहा है जिस दिन वीडियो गेम
या मनोरंजन की चीजों को छोड़कर उत्पादकता की ओर ध्यान दिया जाएगा इसकी सार्थकता
स्वतः ही लोगों को समझ में आ जाएगी। शिक्षा, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, मानविकी, चिकित्सा, फिल्म, मनोरंजन, सॉफ्टवेयर या किसी गैजेट से संबंधित
किसी भी वीडियो को यूट्यूब पर जब सर्च किया जाता है तो वीडियो खुलने के साथ ही उस
पर पाँच या दस सेकेंड के दो, तीन, चार विज्ञापन दिखाई पड़ते हैं। कुछ विज्ञापन तो जब तक प्रदर्शित नहीं हो जाते
उसको स्किप नहीं किया जा सकता। उसे देखना दर्शक की विवशता है, किन्तु जानकारी भी है। जैसे टेलीविजन
स्क्रीन पर किसी भी मैच के प्रसारण के समय दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे सभी दिशाओं में विज्ञापनों की
भरमार दिखाई देती है। यहाँ तक कि
टेलीविजन के सबसे निचले हिस्से में पट्टी चलती हुई दिखाई देती है, उस पर भी विज्ञापन प्रदर्शित किया जाता
है। विज्ञापन से हिंदुस्तान में भी लाखों, करोड़ों का टर्नओवर है। यू-ट्यूब पर
विभिन्न प्रकार के ट्यूटोरियल उपलब्ध हैं, किंतु वे हिंदी के अलावा दूसरी भाषा में
हैं। जिसे समझना मुश्किल होता है किंतु अब वह आसान होता जा रहा है। यदि वीडियो
किसी दूसरी भाषा में है तो उसे हिंदी या दूसरी भारतीय भाषाओं में भी देखा-पढ़ा जा
सकता है। बस थोड़ी-सी जरूरत होती है कि यू-ट्यूब के सेटिंग में जाकर के हिंदी या
जो भी भाषा आपको समझ में आती है उसका ऑप्शन वहाँ पर दिखाई देता है। बस उसे सेलेक्ट
करने की जरूरत पड़ती है और उसका अनुवाद यू-ट्यूब के स्क्रीन पर दिखाई देने लगता
है। कहने का भाव यह है कि यदि यू-ट्यूब पर किसी सॉफ्टवेयर या किसी भी प्रकार की
जानकारी अंग्रेजी या किसी दूसरी भाषा में है तो वह ट्रांसलेट होकर हिंदी में आने
लगता है जिसे पढ़कर समझा जा सकता है।
यू-ट्यूब कितना पॉपुलर और शेयर किए जाने वाला माध्यम है इस आंकड़े से समझा जा सकता
है-“यू-ट्यूब के अनुसार 500 वर्ष के बराबर यू-ट्यूब वीडियो प्रतिदिन
फेसबुक पर देखे जाते हैं और प्रति मिनट 700 से अधिक यू-ट्यूब वीडियो ट्विटर पर शेयर किए जाते हैं और
प्रत्येक सप्ताह 100 मिलियन लोग यू-ट्यूब पर
सामाजिक रूप से सक्रिय रहते हैं (पसंद करते हैं, शेयर करते हैं, टिप्पणियां करते हैं आदि)।”11
मनुष्य जन्म के साथ ही काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, घमंड या नफरत आदि लेकर पैदा होता है। यह
मनोविकार मनुष्य में जन्मजात ही इनबिल्ट हैं। जब उसे माकूल परिवेश मिलता है तो यह
भाव स्वतः ही समय के साथ फूट पड़ता है। इसके लिए मात्र माध्यम ही दोषी नहीं है।
सोशल मीडिया पर क्या सिर्फ पढ़े लिखे शिक्षित ही लोग हैं? नहीं। आमजन भी है। अर्थात् संभ्रांत
जनों के साथ-साथ सृजन और उत्पादन करने वाला सबसे अंतिम वर्ग जैसे-कारीगर, मजदूर, मिस्त्री, कारपेंटर, किसान पेंटर भी सोशल मीडिया पर है। जो
भी स्मार्टफोन खरीद पा रहा है, वह यह भी चाह रहा है कि उसका एक अकाउंट फेसबुक या
यू-ट्यूब पर हो; और जब वह वहाँ पर है तो उसे जैसा परिवेश
मिलता है, उसके अनुरूप वह अपने माध्यम का प्रयोग करता है। इस स्थिति में हम उससे उम्मीद नहीं कर सकते कि वह विद्वान हो और
विद्वानों की भाषा लिखें या वीडियो अपलोड करे। अब प्रश्न उठता है कि सोशल मीडिया
पर ऐसे लोग क्यों हैं? उत्तर यह है कि सोशल मीडिया
का यही लोकतन्त्र है जहाँ पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी भावनाओं, अपनी सोच, अपने परिवेश को, अपने ढंग से, अपने हिसाब से, अपनी मर्जी से अपने को अभिव्यक्त कर रहा
है। इस महाजाल के संजाल में किसी से यह उम्मीद न की जानी चाहिए कि वह हमारे या
किसी के विचार के अनुरूप ही लिखेगा। यह डिजिटल जनसैलाब है, सभी तरह की अभिव्यक्ति
आएंगी।
सोशल मीडिया के खबरों के द्वारा देखने सुनने को मिलता है
कि किसी एक समुदाय या जाति को टारगेट करके उसे
सांप्रदायिकता का रंग दे दिया जाता है। मॉब लिंचिंग भी होती है और उन्हें
लड़ने-मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। टेलीविजन के कुछ चैनल लाई डिटेक्ट कार्यक्रम
के तहत झूठ और सच का पता लगाकर सच को लाने का प्रयास करते हैं। लेकिन तब तक यह घटना
घट चुकी होती है। देश के कुछ हिस्सों में युवाओं द्वारा खतरनाक स्टंट को भी सोशल
मीडिया के प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर दिया जाता है जो कि बहुत खतरनाक होता है। बाद
में जिसे टेलीविजन चैनल दिखाकर संदेश देते हैं कि आम नागरिक इस तरह का स्टंट न
करें और जो कर रहा है उसे भी नसीहत देते हैं कि यह उसके लिए तथा दूसरे लोगों के
लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।
निश्चित रूप से सोशल मीडिया के जो भी ऑपरेटर हैं या उसको संचालित करने वाली
कंपनियाँ है, उनको चाहिए कि असामाजिक, अलोकतांत्रिक पाठ, वीडियो, फोटो या किसी भी इस तरह के पढ़ने, देखने और सुनने वाले पाठ पर रोक लगानी
चाहिए, क्योंकि इसका बहुत ही दूरगामी परिणाम होता है। कई बार तो एक देश में ही
नहीं देश के पार दूसरे देशों की घटनाएँ दूसरे देश के लोगों को आंदोलित करती है। उस
देश के लोग उसके साथ अपना सह-संबंध जोड़ लेते हैं और यह मानते हैं कि हमारे वर्ग
के साथ, हमारे समुदाय के साथ ऐसी घटनाएँ घट रही
है; वह कभी भी हमारे साथ भी घट सकती हैं। इस
तरह की घटनाएँ लिटरेचर में भी देखी समझी जा सकती हैं। वहाँ पर स्थान, पात्रों के नाम बदल दिए जाते हैं और वे
हमें प्रत्यक्षवत् दिखाई नहीं पड़ते कि वह कहाँ की घटना है? किस गाँव की है? किस शहर की है? बस मान लिया जाता है कि किसी गाँव, शहर से मिलता-जुलता कोई नाम या स्थान
होगा। जहाँ पर अमुक घटना घटी होगी। किंतु सोशल मीडिया पर सब कुछ प्रत्यक्षवत् घटित
होता है। रूप, रंग, भाव-भंगिमा और आवाज के साथ। तो इसका
प्रभाव तीव्र गति से होगा ही। इस प्रकार-“सूचनाएं अब मुक्त हैं। वे उड़ रही हैं
इंटरनेट के पंखों पर। कई बार वे असंपादित भी हैं, पाठकों को आजादी है कि सूचनाएं लेकर
उसका संपादित पाठ स्वयं पढ़ें। सूचना की यह ताकत अब महसूस होने लगी है।”12
कुल मिलाकर कंप्यूटर और इंटरनेट के गिरफ्त में मनुष्य है।
वर्तमान समय में इसका उपयोग तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है। मनुष्य के आसपास घट रही तमाम घटनाओं को इंटरनेट के द्वारा
संप्रेषित किया जा रहा है। इंटरनेट सूचना का महामार्ग बन गया है। इस हाईवे पर तमाम
तरह की जानकारियाँ तीव्र गति से गतिशील हैं। आने वाले समय में इंटरनेट की
महत्वपूर्ण भूमिका होगी जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी बात या सूचनाओं के
आदान-प्रदान करने के लिए किसी से परमिशन लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। देवेंद्र
इस्सर के अनुसार-“जिस पर किसी राज्य का
नियंत्रण नहीं होगा। जिसमें समस्त संसार के लोग मजहब, जाति, राष्ट्र, नस्ल, रंग, लिंग, वर्ग-वर्ग आदि के विभेदों से मुक्त संवाद
करेंगे।”13
संदर्भ :
- दिलीप मंडल: मीडिया का अंडरवर्ल्ड, राधाकृष्ण प्रकाशन
प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली,2013,पृष्ठ-8
- कुमार कौस्तुभ (संपा.):
विश्वमीडियाविमर्श, कल्पनाप्रकाशन, दिल्ली, 2017, पृष्ठ-38
- अंबरीश सक्सेना (संपा.): मीडिया की नई
चुनौतियाँ, कनिष्क पब्लिशर्स डिस्ट्रिब्यूटर्स, नई दिल्ली, 2015, पृष्ठ-XII
- भगवान देव पाण्डेय, मिथिलेश कुमार पाण्डेय, नरेंद्र प्रताप सिंह: ग्लोबल मीडिया टुडे, तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011, पृष्ठ-112
- पंकज बिष्ट, भूपेन सिंह (संपा.): मीडिया बाजार और
लोकतंत्र, शिल्पायन, दिल्ली, 2012, पृष्ठ-21
- हर्षदेव: ऑनलाइन पत्रकारिता, भारतीय पुस्तक परिषद्, नई दिल्ली, 2015, पृष्ठ-25
- सुरेश कुमार: इंटरनेट पत्रकारिता, तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली, 2004, पृष्ठ-7
- राकेश कुमार: हमारा समय, संस्कृति और नया मीडिया, अनामिका पब्लिशर्स एंड
डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, 2018, पृष्ठ-155
- हर्षदेव: ऑनलाइन पत्रकारिता, भारतीय पुस्तक परिषद्, नई दिल्ली, 2015, पृष्ठ-14
- डॉ.विजय कुलश्रेष्ठ: इंटरनेट जर्नलिस्ट, इण्डियन पब्लिशिंग
हाउस, जयपुर, 2015, पृष्ठ-62
- जगदीश्वर
चतुर्वेदी: डिजिटल कैपिटलिज़्म फेसबुक संस्कृति
और मानवाधिकार, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रिब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, 2014, पृष्ठ-158
- संजय द्विवेदी (संपा.): सोशल नेटवर्किंग नए समय का संवाद, यश पब्लिकेशंस, दिल्ली, 2013, पृष्ठ-7
- देवेंद्र इस्सर: मीडिया मिथ्स और मूल्य, इंद्रप्रस्थ प्रकाशन, दिल्ली, 2006, पृष्ठ-32-33
डॉ. कपिलदेव प्रसाद निषाद
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग पी.जी.डी.ए.वी.कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय
nishadkapil121@gmail.com, 9013260706
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