शोध आलेख : पूर्वी उत्तर प्रदेश के रूदन गीतों का मानवशास्त्रीय अध्ययन / वीरेन्द्र प्रताप यादव एवं शिव बाबू

शोध आलेख : पूर्वी उत्तर प्रदेश के रूदन गीतों का मानवशास्त्रीय अध्ययन 

-वीरेन्द्र प्रताप यादव एवं शिव बाबू


शोध सार : प्रस्तुत शोध लेख पूर्वी उत्तर प्रदेश के रूदन गीतों पर आधारित है। रूदनगीत मानव ह्रदय की स्वाभाविक प्रतिकृया है। यह संवेदना एवं भावों को व्यक्त करने का माध्यम है। केवल भारत में बल्कि विश्व की विभिन्न संस्कृतियों में रूदन गीत की प्रथा पायी जाती है। रूदनगीत मानव जीवन, उनके उल्लास, उनकी करुणा एवं समस्त दुखों को चित्रित करता है। इसके द्वारा मानव अपनी संवेदनाओं पर नियंत्रण प्राप्त करता है। जिससे संस्कृति की निरंतरता बनी रहती है। संवेदनाओं को यदि अभिव्यक्त करने के माध्यम नहीं होंगे तो मानव स्वयंऔर अपनी संस्कृति दोनों के लिए खतरा हो सकता है। रूदनगीत एक प्रकार का लोकगीत ही है। रूदनगीत विश्व के लगभग सभी विकसित तथा अर्द्ध-विकसित देशों में शोक प्रकट करने का माध्यम है। यह कहीं मौलिक रुप में तो कही व्यवसायिक रुप से शोक प्रकट करने का माध्यम है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, जौनपुर, आजमगढ तथा भदोही जिलों से क्षेत्रकार्य द्वारा आंकड़ों संग्रहित कर उनका विश्लेषण किया गया है। शोध का एक मुख्य उद्देश्य पूर्वी उत्तर प्रदेश के रूदन गीतों का वर्गीकरण करना रहा है।

बीज शब्द : संस्कृति, रूदनगीत, लोक, लोकगीत, प्रतीक, प्रकार्य।

मूल आलेख : संस्कृति मानव को अन्य जीवों से पृथक करती है। टायलर ने अपनी पुस्तक प्रिमिटिव कल्चर (1871) में संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा है किसंस्कृति एक जटिल समग्रता है, जिसमें ज्ञान, कला, विश्वास, आचार, कानून तथा ऐसी ही अन्य आदतों तथा क्षमताओं का समावेश रहता है, जिसे मानव समाज का सदस्य होने के नाते ग्रहण करता है।एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में हस्तांतरित होने वाली संस्कृति ही किसी बच्चे को उस समाज के सदस्य के तौर पर तैयार करती है। अपनी पुस्तक साइंटिफिक थ्योरी ऑफ कल्चर (1944) में मेलिनोस्की ने संस्कृति को प्रकार्यवाद सिद्धांत के अनुसार परिभाषित किया है, उनके अनुसारसंस्कृति, मानव की आवश्यकता पूर्ति का साधन है।प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैकाइवर (1947) ने मानव की नैतिक, अध्यात्मिक और बौद्धिक उपलब्धियों के लिए संस्कृति शब्द का प्रयोग किया है। हर्षकोविट्स ने अपनी पुस्तक मैन एंड हिज वर्क (1956) मेंसंस्कृति को पर्यावरण का मानव निर्मित भागकहा है। मानवशास्त्रियों ने संस्कृति को भौतिक एवं अभौतिक में विभाजित किया है। रूदन गीतों को अभौतिक संस्कृति के लोक गीतों में शामिल किया जा सकता है।  रूदनगीत लोक संस्कृति का अंश है। राबर्ट रेडफ़ील्ड (1941) लोक शब्द का प्रयोग, लोक-नगरीय सातत्य में लोक तथा नगर की सभ्यता की पारस्परिक निर्भरता को बताने के लिए करते हैं। उन्होने परंपरा को आधार मानते हुये लोक तथा नगर सभ्यता को समझने का प्रयास किया। जिसे वे साधारण परंपरा एवं महान परंपरा विभेदित करते हैं। साधारण परंपरा का संबंध सरल समाज की मौखिक परंपरा से है तथा महान परंपरा का जटिल समाज की लिखित परंपरा से है। लोगों के रीति-रिवाजों, मान्यताओं, रहन-सहन, जीवन शैली, परंपराओं को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने का काम संस्कृति ही करती है। रूदनगीत को लोकगीत के अंतर्गत रखा जा सकता है तथा लोकगीत, लोक संस्कृति का एक हिस्सा है। चूंकि लोक संस्कृति अपने आप में बृहद अवधारणा है, अतः इसका वर्गिकरण किया गया है। रूदन गीतों को लोक साहित्य के वर्ग में रखा जा सकता है।

            इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (1768) के अनुसार Folksong (फोकसॉन्ग) जर्मनी के Volkslied का बदला रूप है। Volkslied का तीव्र स्वर में गीत गाना है। ग्रीम (1884) कहते हैं कि लोकगीत जनजीवन के स्वाभाविक उद्गार हैं, जिसमें जनसमाज की भावनाएं चेतन-अचेतन के रूप में व्यक्त होती हैं। लोक गीतों को समझते हुये कृष्णदेव उपाध्याय (2000) कहते हैं किलोकगीत लोक जीवन की अनुभूतियों का साक्षात्कार कराता है लोकगीत विभिन्न संस्कारों जैसे- पुत्र जन्म, मुंडन, यज्ञोपवित, विवाह, गवना, ऋतुओं (वर्षा, वसंत, ग्रीष्म) और पर्वों पर गाए जाने वाले गीत सम्मिलित हैं। जिनमें घर-गृहस्थी, प्रेम-विरह, वंध्या, विधवा आदि के सुख-दुख के वर्णन की प्रधानता मिलती है। कहीं कोई विधवा स्त्री अपने भाग्य पर कोसती है तो कहीं किसी वंध्या स्त्री का करुण प्रलाप सुनाई पड़ता है (कृष्ण उपाध्याय, 2000)

            यूरोप में रूदनगीतों को किन्स गीत से जाना जाता है। आयरलैंड, इटली फ्रांस आदि देशों में किन्स गीत का चलन पाया जाता है और यह पेशेवर महिलाओं द्वारा गाया जाता है। ठीक इसी तरह का उदाहरण भारत के राजस्थान राज्य में मिलता है, जहां रूदन गीतों को गाने वाली महिलाएं पेशेवर होती हैं और इन्हें रूदाली नाम से जाना जाता है।

शोध प्रविधि -

            प्रस्तुत शोध प्राथमिक आंकड़ों पर आधारित है। प्रस्तुत शोध में उद्देश्यपूर्ण एवं सुविधानुसार निदर्शन प्रणाली का प्रयोग किया गया है तथा क्षेत्रकार्य द्वारा पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, जौनपुर, आजमगढ़ तथा भदोही जिलों से अर्ध-सहभागी अवलोकन, साक्षात्कार, साक्षात्कार अनुसूची, साक्षात्कार निर्देशिका, केंद्रीय समूह परिचर्चा, वैयक्तिक अध्ययनों आदि द्वारा प्राथमिक आंकड़ों का संग्रहण किया गया है। प्राप्त आंकड़ों को विश्लेषित कर रूदन गीतों का वर्गीकरण किया गया है। क्षेत्रों का चुनाव पूर्णतः उद्देश्यपूर्ण निदर्शन द्वारा किया गया है।

रूदन गीतों का वर्गीकरण -

रूदनगीत सरल, असंरचित, स्वाभाविक और करुण होते हैं। जिसमें शब्द चयन का आडंबर नहीं होता। रूदनगीत भाव की अभिव्यक्ति होती है। जिसमें व्यक्ति की आशा-निराशा, सुख-दुख अभाव का वर्णन मिलता है। रूदनगीत संस्कारात्मक गीत होते हैं तथा ये परिस्थिति वश भी उपजते हैं। रूदनगीत की प्रकृति करुणा प्रधान होती है। रूदनगीतों को निम्नलिखित तीन भागों में बांट सकते हैं-

·         संयोगात्मक वियोग

·         वियोगात्मक रूदनगीत

·         अन्य वियोग गीत

संयोगात्मक वियोग (पुनर्मिलन) गीत -

            ये गीत तब जाए गाए जाते हैं, जब बिरहन विरह के भाव को पुनः अपने संबंधियों से मिलने पर अभिव्यक्त किया जाता है। इसमे कथात्मक ढंग से करुणा के भाव होते हैं। किसी वस्तु, व्यक्ति का अभाव परिलक्षित होता है। संयोगात्मक वियोग (पुनर्मिलन) गीत का उदाहरण निम्नलिखित है-

ये मोरी भौउजउ, बहुतई दुखियवा भये मोरी भौउजउ

बहुतई दिन बदवा हमरई सुधिया लीहु मैगरिया

अब हमही के नइहर ससुरवा सुन लागे मैगरिया

पहिले जे रामवा बिना झंखी मैगरिया अबू माई बपइया बीन झंखबई मैगरिया

अब कइसे सबुरवा करीबई मैगरिया

(महिला के द्वारा रूदनगीत अभिव्यक्त किया गया है, जब महिला के घर पर उसकी हाल-चाल लेने उसकी भाभी आती है। इस गीत में महिला अपने भाभी से पुन: मिलने पर अपनी मनो-वेदना को अभिव्यक्ति करती है कि भाभी आप बहुत दिन बाद मेरा ख्याल की (सुधि ली), हम बहुत दुखित है, क्योकि पहले मेरे पति का साथ छुट गया (मृत्यु हो गई) अब मेरे माता-पिता भी मृत हो गये जिससे मुझे माइका और ससुराल दोनों अच्छा नहीं लगता। जिससे मेरे जीवन में पति के साथ-साथ माता-पिता की भी कमी महसूस होने लगी है।)

वियोगात्मक रूदनगीत -

            इस प्रकार के गीत में किसी व्यक्ति के जीवन में उपस्थित सगे संबंधियों के अन्यत्र संबंध जुड़ जाने के उपरांत जो बिछुड़न के भाव उत्पन्न होते है, किसी जीवन संबंधी के हमेशा अर्थात मृत्यु हो जाने पर जो बिछुड़न के भाव उत्पन्न होते है तथा सगे-संबंधियों से बहुत दिन दूर होने के उपरांत जो भाव उत्पन्न होते है उन्हे वियोगात्मक रूदनगीत कहते है। वियोगात्मक रूदनगीत को निम्नलिखित तीन भागों में बांट सकते हैं:- 

·          शोकगीत (मृत्यु गीत)

·          विच्छोह गीत

·          विरह गीत

शोकगीत या मृत्युगीत -

            इस प्रकार के गीत किसी व्यक्ति का सदैव या हमेशा के लिए भी छोड़ जाने का भाव, दुख: या वेदना से उत्पन्न होती है। यह दुखदाई होती है। इस प्रकार के गीतों को गाते हुए व्यक्ति द्वारा दुख: के कारण छाती पीटना, बाल नोचना और अचेत होकर गिर भी जाता है। यह करुणा का बोध कराता है। ये गीत किसी व्यक्ति प्राणी के अभाव के परिणाम स्वरूप उपजता है।

मृत्यु अथवा शोक गीत -

अरे मोरे बपई, आज बिना माई बपईया भये मोरे बीरना,

कौने जे माई-बपईया से आपन दुखवा सुनउबै मोरे बीरना,

ननही से बहुतई दुखीवा हैइ मोरे बीरना,

नाही पउनी माई बाबू संघ दुलार पहिले माई से साथवा जे छूटे,

आज बपईयू से जे टूटे नतवा मोर बीरना।

(महिला का विलाप है, जो भाई को संबोधित करके विलाप करती है। वह कहती है कि आज वह बिना मां-बाप के हो गई अर्थात उसके माई-बाप इस दुनिया में नहीं है। वह अपने मां बाप का कभी साथ में प्यार नहीं पा सकी। क्योंकि पहले मां गुजर गई और आज फिर पिता साथ छोड़ दिए।)

ये मोरे रमवा कहवा हेरान मोरे रमवा,

काऊने कसूरवा जे छोड़े मोर सथवा मोरे रमवा,

अपने गोहनवा लगउत मोर रमवा,

हमरउ दुखवा कटतई मोरे रमवा,

केकरे सहरवा छोड़े मोरे रमवा,

हमही अभागिन भये मोरे रमवा,

केकर रहिया निहरबइ मोरे रमवा,

अपने गोहनवा लगउत मोरे रमवा,

हमरउ दिनवा बनते मोरे रमवा।

(स्त्री का पति मर गया है और उसे ही संबोधित करके विलाप करती है कि वह कहां गायब हो गया है। अर्थात किस कारणवश उसका साथ छोड़ दिया अगर वह अपने साथ उसे भी मृत्यु को प्राप्त करा दे तो उसका भी कष्ट दूर हो जाए। क्योंकि उसके बिना उसका (स्त्री) का रहना (जीना) मुश्किल है। वह अकेले किसके सहारे रहेगी, वह भाग्यहीन हो गई है।)

हमरई दुयरिया सुन कइल बपई,

बहुतइ सहरवा रहा मोरे बपई,

तोहरइ सहरवा हम छोड़ी आपन लड़ीकवन,

दुवारिया हम खेतवा सेवरवा जाई मोर बपई,

अब केकर सहरवा करबई मोरे बपई,

सझवा बपई बोले बाबा से बतिया फोनवा से करौते दुलहिनिया,

अपने बाबा से बतिया किहे मोर बपई बोले ननकी के बीअहवा करत मोरे बाबा

ओकर बीअहवा हम देखित मोरे बाबा,

बपई के अहकीय पेटवइ रही मोरे रमवा।

(पत्नी अपने पति को संबोधित करके अपने ससुर की मृत्यु पर शोक प्रकट करती है। कहती है कि उसके ससुर के बिना उसके घर सूना हो गया है। अब वह उसके सहारे अपने बच्चे और घर को छोड़कर खेत में काम करने जाएगी। वह यह भी जिक्र करती है कि उस मृत्यु व्यक्ति की इच्छा थी वह अपनी नातिन का विवाह होते हुए देखे। वह अपने लड़के को भी फोन पर इस बात को कहती है। लेकिन वह इच्छा उसकी अधूरी रह जाती है वह मृत्यु को प्राप्त होता है।)

ये मोरे भईया हम केकर सहरवा करब मोरे भईया,

हमरइ नुनवा तेलवा के सहरवा रही मोर बलही,

तुरतही परनवा निकले मोरे बलही के सुईयव दवइया कराई पाये अपने बलही ,

हमरउ समइया बिगरे मोरे रामउ,

बलही सहरवा पाले लारिकवन के अब कौने सहरवा करबइ मोरे बलही।

(एक व्यक्ति की भैंस मर जाती है अचानक उस व्यक्ति को बहुत कष्ट होता है। अतः वह अपनी अभिव्यक्ति रूदन के माध्यम से करता है। बताता है कि वह भैंस उसकी रोजी-रोटी का साधन थी। उसकी अचानक मृत्यु हो गई जिसका वह तत्काल इलाज भी ना करा सका अब उसकी रोजी-रोटी मुश्किल में है। उसको लेकर अपनी चिंता व्यक्त करता है।)

ये मोरे भईया काऊनउ सनेसवा दिह मोरे भईया,

की हमरई बीरनवा के तबीयतीया खराब बाटे मोरे बीरना,

आज बीरना के बिना सुन भई महलिया मोरे रमवा,

आज से टूटे माई बपई संह भईया से नतवा मोरे रमवा,

टुटल दूनहु बीरना से नतवा मोरे बहिना बहुतई गुमनवा जे रहे मोरे बीरना,

दूनहु लड़ीकवन नोकरीय जे पाये सुखवा के दिनवा देखे पाये मोरे बीरना,

आज तोरे सबसे नतवा मोरे बीरना।

(स्त्री विलाप करते हुए गांव के भाई और पति से कहती है कि गांव के भाई कोई सूचना नहीं दिए कि उसके भाई की तबीयत खराब है। आज उसके भाई की मृत्यु हो गई जिससे उसका घर विरान लग रहा है। अब उसके मां बाप भाई इस दुनिया में नहीं रहे उसके भाई के दो लड़के थे दोनों नौकरी पा गए। जो हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उसके लड़के अपने पैर पर खड़े हो लेकिन अब वह है भाई इसको ज्यादा नहीं देख सका। जो एक समय सुखद एहसास होता। आज वह सब से अपना संबंध तोड़ कर किसी दूसरे लोक में चला गया।)

अरे मोरे रमवा कउने कसूरवा बोलत नाही रमवा,

हमरई संघवा छोड़े मोरे रमवा,

तोहरइ टहलिया बजउती मोरे रमवा,

काल्हइ सोनुआ से डढ़िया बनवाए मोरे रमवा

रतीयइ दुयरिया छोड़े मोरे रमवा,

अपने जे सथवा हमहू लगउत मोरे रमवा।

(पत्नी की वेदना का जिक्र है जो अपने पति की मृत्यु के उपरांत उस मृतक शरीर से बातें करती है और कहती है। किस गलती के कारण आप मुझसे बात नहीं कर रहे हैं। मेरा साथ क्यों नहीं दे रहे हैं। आप मेरे साथ रहते हम आपके द्वारा बताई गई सारी बातों को मानती और आपके दिनचर्या के कार्यों में आपकी मदद करती है। कल सोनू (नाती से) दाढ़ी बनवाए हैं और रात में ही घर छोड़ कर चले गए। मैं आपकी जीवन संगिनी आप अपने साथ मुझे भी ले चलिए (मृतक शरीर की आत्मा से बोध करती है))

अरे मोरी अम्मा बिना मैगरी के किहु मोरी अम्मा,

सबही के मैगर देखात बाटी तू कउने कोठरिया लुकानु मोरी अम्मा,

जेतनई दुलारवा किहु मोरी मैगर उटनई दुखीवा बनाउ मोरी मैगर,

सबके मयरिया जे सजिहे अपने रनिया के तोहरे रनियन के साजी मोरी मैगर,

केकरे मयरिया से सुनाई आपन दुखवा मोरी मैगर।

(इस गीत में एक लड़की के विलाप का वर्णन किया गया है। वह कह रही है मां तूने हमें बिना मां के बना दिया है। सब की मां दिखाई दे रही है तुम कहां चली गई हो, किस घर में छिप गई हो। आपने हमें जितना प्यार किया हमें हमारा साथ छोड़कर उतना ही दुखी बना दिया है। शादी विवाह के अवसर पर जब सब की मां अपनी बेटी को सजाएंगे तो तुम्हारी बेटी को कौन सजाएगा। अब मैं किस माँ से अपना दुख सुनाऊँगी।)

ये मोरे भईया हमरई ललनवा हेराने मोरे भईया,

अपने भयनवन के चुनी चुनी नमवा रख्ख मोरे भईया,

बहुतई जे दुखवा देखे मोरे भईया,

हमरई मउटिया जे होते मोरे भईया येतना दुखवा देखती मोरे भईया।

(इस गीत में एक महिला का उसके भाई से वेदना का भाव साझा किया गया है। क्योंकि महिला का पुत्र की मृत्यु हो गई है महिला अपने भाई से कहती है भैया आप अपने सभी भांजे-भांजी का नाम बहुत चुन-चुन कर रखी है। मेरे भाई मेरा यह बेटा मर गया जिसकी वजह से असीम कष्ट है।  अगर हम मर जाते हैं तो इतना दुख देखती अर्थात माँ के सामने बेटे की मृत्यु बहुत दुखद है।)

अरे मोरे रनिया तोहरइ बीरनवा हेरानेन मोरे रनिया

कउने बीरनवा बोलउबू मोरे रनिया,

अरे मोरे माई हमरई बीरनवा हेराने मोरे अम्मा,

आज हमरई बीरनवा हमसे बोलत नाही,

कहे करनवा रूठे मोरे बीरना,

के मोर सुधिया लेई मोर बीरना,

हमरई भाई बहिन जोडवा फूटे मोरी माई।

(इस गीत में एक व्यक्ति की मृत्यु पर मृतक व्यक्ति की मां और बहन एक दूसरे से अपने दर्द को बयां करती है। मेरी बेटी (रनिया) तुम्हारे भाई की मृत्यु हो गई है। अब किस भाई से बात करोगी और अपने घर बुलाओगे। बहन कहती है मेरे भाई खो गए अर्थात मृत्यु हो गई। अब हमसे बातें नहीं कर रहा है। मां अब मेरी हाल कौन लेगा आज हम भाई-बहन में भाई ने साथ छोड़ दिया जीवन के सफ़र में।)

अरे मोरे ललना कउने महलिया लुभाने मोरे बचवा

हमसे कहई माई भईया वियहवा करतू मैगरिया

अपने जे भईया के सथवा छोड़े मोरे बचवा

सझवा सवेरवा घरवा मे पनिया डाले मोरे बचवा

नाही जानत रहे आज के दिनवा काल होई जन्हे मोरे ललना

कइसे बोधवा करी मोर भईया

(इस गीत में एक मां द्वारा पुत्र की मृत्यु के उपरांत हुए वेदना का भाव प्रकट किया गया है। जो पुत्र को उलाहना तथा पुत्र के गुणों का वर्णन शब्दों में किया है। मेरे बेटे तुम किस सुंदरवन पर लोभित हो गए जो मेरे घर को छोड़ दिए। हम से कह रहे थे मां भैया का विवाह कर दो लेकिन तुम तो अपने भाई का साथ छोड़ कर चले गए। सुबह शाम मकान (नवनिर्माण) घर पर पानी डालते थे, निहारते (देख-रेख) करते थे। हम नहीं जान रहे थे कि आज का दिन अशुभ है मृत्यु को लेकर आएगा। मेरे बेटे हम कैसे संतोष करे तुम्हारे बिना।)

विच्छोह गीत -

            इस प्रकार के रूदनगीत की परिणति विदाई, गवना गीतों में दिखाई देती है। यह गीत प्रियजन के अल्पकाल अथवा लंबे समय तक दूर होने पर गया जाता है। इसमें व्यक्ति और परिवार के लोग साथ बिताए हुए पल को याद करके तथा नई जगह की अनभिज्ञता को लेकर अपने दुखात्मक अनुभूतियों को साझा करते हैं। विच्छोह गीतों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

·         विदाई गीत

·         गवना गीत

            विदाई के समय गाये जाने वाले गीतों को विदाई गीत तथा गवाना के समय गाये जाने वाले गीतों को गवाना गीत कहते है अर्थात ये दोनों गीत अलग-अलग अवसरों पर गाये जाते है। किन्तु इन दोनों गीतों की प्रकृति एक समान होती है।

विदाई गीत अथवा गवना गीत -

अरे मोरी मावा हमही बेगनवा मावा बनाउ मोरी मावा,

कउने रनियवा बोलउबे मैगरिया बहुतई दुलरवा किहु मैगरिया,

के तोहरे कमवा मे हथवा बटन्हे मैगरिया,

अपनइ देशवा छोड़ाउ मैगरिया हमहू बेगरिया बनाउ मैगरिया,

(विवाह के बाद बेटी अपने घर जाते समय अपनी मां से अपनी वेदना को साझा करती है। मां आप हमें अपने से अलग कर दिया। मुझे आप गैर बना दिया। अब मेरे चले जाने के बाद किस बेटी को बुलाओगी। क्योंकि आप मुझे इतना प्यार करती थी। मां अब कौन आपके साथ आपके घर गृहस्थी के कार्यों में आपका साथ देगा। आपने हमें अपने से अलग कर दिया। हमें दूसरे गांव में भेजकर गैर बना दिया अर्थात पराया बना दिया।)

ये मोरे रनिया हम जे कइसे बोधवा करबई मोरे रनिया,

हमही बेगनवा बनाये मोरे रनिया दुनिया के रीतिया निभाए मोरे रनिया

पेटवा अगिनीय बरे मोरे रनिया कइसे सबुरवा करी मोरी रनिया

तू रहु हाथे कलछुलिया मोरे रनिया कइसे बेगनवा बनाइब मोरी रनिया।

(इस विदाई गीत में मां अपनी बेटी से भावनाओं को बताती है। मेरी प्यारी बेटी हम तुम्हारे ससुराल चले जाने पर कैसे मन को संतोष दिला पाऊंगी। बेटी हमने तुम्हें गैर नहीं बनाया यह तो समाज की परंपरा है। जिसका निर्वहन हमने किया है। मेरे पेट अर्थात अंतरात्मा में विरह की ज्वाला जल रही है। तुमसे अलग होने पर तुम तो हमारे साथ घर के कार्यों में हाथ बटाती थी। हम तुम्हें कैसे पराया बना सकते हैं।)

बहुतई दुखीयवा हई मोरी मैगर ये मोरी भौजउ

बचपन से नाही देखली माई बाबू सुरतिया,

तोहरइ सहरवा बाटे मोरी मैगर

अपनई बिटियवा समझु मैगरिया

तोहरइ गुमनवा बाटे मैगरिया

(इस बिदाई गीत में लड़की ससुराल जाते समय अपनी भाभी से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति करती है। भाभी हमने बचपन से ही दुख का सामना किया है क्योंकि बचपन में मां-पिता की मृत्यु हो गई थी और उनको मैंने कभी देखा भी नहीं जिससे उसके प्यार से वंचित हो गई। भाभी आप मेरी मां के समान हैं और आप मुझे अपनी बेटी मांनकर प्यार दीजिएगा क्योंकि मुझे आप पर ही विश्वास और अभिमान है।)

बाबा के रोयले गंगा बढ़ी अइली

अम्मा के रोयले अनोर

भईया के रोयले चरण धोती भिजे

भौजी नयनवा ना लोर

(इस भोजपुरी गीत के अनुसार पिता के रोल रोने से मानो गंगा में बाढ़ जाती है। मां के बहुत ज्यादा रोने के कारण उसके आंखों से अंधेरा दिखाई देता है। भाई के ज्यादा रोने से उसकी धोती पैर तक भीग गई है, जबकि भौजाई के आंख से आंसू तक नहीं निकलते।)

दुयारा भूली भूली बाबा जे रोवेले

कतही देखो हो बेटी नूपुरवा हो तोहर

अगना भूली भूली आमा जे रोयेली

कतही देखो हो बेटी रसूइया झाझाकाल

रसोइया भूली भूली जो रोये ली

कतही देखो हे बेटी रसूइया झाझाकाल

(इस विदाई गीत के अनुसार बेटी की विदाई से व्याकुल होकर पिता घर के दरवाजे पर बैठा हुआ रो रहा है। कह रहा है ये बेटी अब मैं कभी भी तुम्हारा नूपुर (पैजेब) नहीं देख पाऊंगा। आंगन में बैठकर मारो रही है। घर में बैठकर भौजाई रो रही है, सभी कह रहे हैं बेटी तुम्हारे बिना यह रसोईया सुनी हो गई है।)

विरह गीत -

            इस प्रकार के रूदनगीतों में किसी महिला या पुरुष द्वारा जो एक दूसरे से प्रेम संबंध द्वारा जुड़े होते हैं, ये लोग प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी, माता-पुत्री, पिता-पुत्री, भाई-बहन, बहन-बहन आदि प्रेम संबंधों द्वारा जुड़े होते हैं। जब यह लोग काफी समय से एक दूसरे से दूर होते हैं तो व्यक्ति विशेष की कमी से वेदना प्रफुटित होती है उसे विरह गीत कहते हैं।

ये मोरे भईया हमरई सुधिया भुलान मोरे भईया,

सझवा सवेरवा तोहरइ डगरीय निहारी मोरी भईया

पाच महीनवा से जे मोर सुधिया लिह मोर भईया,

बहुतई निर्मोहिया भय मोर बीरना,

(यह एक विरह गीत है। इस गीत के माध्यम से एक स्त्री अपने ससुराल में है और उसका भाई उसके घर बहुत दिनों बाद जाता है। तो वह स्त्री अपने परिवार से अलग होने की वेदना अपने भाई से कहती है। भाई आप तो हमें भूल गए हम आपके आने की दिनों से सुबह और शाम डगर देखती थी। आपने पाँच महीने से मेरी हाल खबर नहीं लिया। आपका हमसे मोह अर्थात लगाव नहीं रहा।)

घरवा रोवे घरीनी ये लोभिया

बहरवा राम हरिनीया

दाहावा रोये चकवा चकइया

विछोहवा कईले निर्मोहिया

(इस बिरह गीत के अनुसार किसी स्त्री के पति के परदेश जाने पर पत्नी के लिए सारा संसार सुना लगता है। घर काटने को दौड़ता है। प्रिय के प्रवास के समय समस्त प्रकृति एक अनोखी विषमता छाई हुई है। और वह कह रही है अरे निर्मोही तुम्हे देखे बिना कितने लोग रो रहे हैं। घर में तुम्हारी घरनी  रो रही है, बाहर तुम्हारी हरिणी रो रही है, तालाब में चकवा और चकवी रो रहे हैं।)

जुगति बतावे जाव

कवन विधि रहबों राम

जो तूह साम बहुत दिन बितही

बीरना बोलाई मोको नइहर पाहुचाए जाव

जुगति बतावे जाव

(इस बिरह गीत के अनुसार एक स्त्री के वियोग के दिनों को बिताने के लिए अपने प्रियतम से युक्ति पूछ रही है। वह कहती है तुम यदि परदेश में बहुत दिनों तक रहोगे तब तक अपनी आकृति मेरे बाहों में चित्रित कर दो जिसे देखती हुई मैं अपने दिनों को व्यतीत करूंगी और ऐसा नहीं करते तो मेरे भाई को बुला दो और मुझे मायके भिजवा दो।)

आजू के गइल भवरा कहिया ले लउटव

कतेना दिनवा हम जोहिब तोहरी बटिया,

कतेना दिनवा

दिन गिनत गिनत मोरी अगुरी खियानी

चितउते दिनवा नयना से चुये लोर

(इस गीत में विरह के दिनों को याद करते हुए एक स्त्री का विलाप है जो कह रही है आज परदेश जाकर कितने दिनों में लौट आओगे। मैं कितने दिनों तक तुम्हारा आगमन की प्रतीक्षा करूंगी। जब पति बहुत दिनों तक परदेश से नहीं लौटता तब वह इस्त्री दुखी होकर कहती है पति के आने की अवधि को गिनते गिनते मेरी अंगुली घिस गई और मेरी आंखों से आंसू गिरते रहते हैं इस गीत में भंवरा पति का प्रतीक है।)

बाबा सिर मोरा रोयेला सेनूर बिनु

नयना कजरवा बिनु राम

बाबा गोद मोरा रोये ला बालक बिन

सेजिया कन्हइया बिन ये राम।

(विधवा स्त्री अपने पिता से पूछती है आपने मेरी शादी क्यों कर दी क्योंकि उसके पति की मृत्यु हो गई है। जिसके कारण वह कह रही है मेरा सिर सिंदूर के बिना रो रहा है। आंखें काजल के बिना रो रही हैं। तथा गोद बेटे के बिना रो रही है तथा मेरी सेज पति के बिना रो रही है।)

अन्य रूदनगीत -

            वे गीत जो व्यक्ति के जीवन में घटनाओं जैसे, सूखा पड़ने, बाढ़ आने, आग लगने तथा किसी पालतू जानवर के मृत हो जाने से जो आर्थिक क्षति होती है उसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाले रूदनगीत अन्य रूदनगीत की श्रेणी में आते है।

अरे मोरे बलही हमरई दुयरिया छोडु मोरी बलही,

कइसे गुजरवा होईहे मोरी बलही,

तोहरइ सहरवा रहा मोरी बलही,

तोहरइ दवईया कराये मोरे बलही तबहु दुखवा छोड़े मोरे बलही,

केकर गोरुयारिया करबइ मोर बलही,

हमरई दइयवा रूठे मोरी बलही।

(इस गीत में मृतक जानवर भैंस के प्रति महिला द्वारा शोक प्रकट किया जाता है। वह कहती है मेरी बलही मतलब शक्ति क्षमता लक्ष्मी वह भैंस थी। वह अब उसके घर को छोड़ दिया। अर्थात मर गई। उसी का माध्यम था जिसके द्वारा महिला के परिवार का खर्च चलता था। भैंस के दूध दही आदि बेचकर घर पर रुपए-पैसे का स्रोत था। अब उसके नहीं होने पर यह समाप्त हो गया, बता रही है। उसकी दवा भी कराई फिर उसका बीमारी ठीक नहीं हुई और वह मर गई। अब वह किस जानवर की देखभाल करें और हमारे देव भगवान हमसे नाराज हो गए हैं। जिससे तुम्हारी मृत्यु हो गई।)

निष्कर्ष : रूदनगीत भी मानव जीवन के अनुभवों की अभिव्यक्ति का माध्यम है जो सामाजिक व्यवस्था में मनुष्य की समाजिक-सांस्कृतिक प्रणाली के रूप में प्रयुक्त होता है। जिसकी प्रकृति का करुणात्मक होती है। रूदनगीत सामाजिक व्यवस्था का अभिन्न अंग है अतः व्यवस्था को बनाए रखने में इसकी प्रकार्यात्मक उपयोगिता भी है। जो संस्कृति के विभिन्न अंगों के बीच अंत: संबंधों को स्थापित कर सामाजिक व्यवस्था को अस्तित्व में बनाए रखने का कार्य करती है। किसी संस्कृति या संस्था का निर्माण मानवीय गतिविधियों या क्रियाकलापों के योग से होता है, अतः रूदनगीत मानवीय अंत: संबंधों को स्थापित करती है जिससे लोगों की सामाजिक व्यवस्था के प्रति प्रकार्यात्मक एकता देखने को मिलती है। यह मानव के बीच अंतरसंबंध स्थापित करने तथा लोगों को मानसिक अवसादों, कष्टों से मुक्ति दिला कर सामान्य जीवन बिताने में उपयोगी प्रकार्य करती है। क्योंकि अवसाद से ग्रसित व्यक्ति स्वयं तथा समाज दोनों के लिए घातक होता है। रूदनगीत व्यवस्था की अन्य इकाइयों के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार्यों को संपादित कर संपूर्ण व्यवस्था को अस्तित्व में बनाए रखती है। इस तरह रूदनगीत व्यवस्था की भिन्न-भिन्न इकाइयों के लिए भिन्न-भिन्न कार्य करती है। जैसे, मानसिक अवसाद से मुक्ति दिलाने में, धार्मिक प्रणाली एवं आर्थिक प्रणाली के रूप में कार्य करने, पारिस्थितिक दशाओं का बोध कराने तथा सामाजिक एकता को बनाए रखने के लिए प्रकार्य करती है। रूदनगीत का प्रकार्य सामाजिक एकता और सहयोग को बढ़ाता है। मानसिक अवसाद पीड़ा से मुक्ति में सहायक होता है। प्रतीकात्मक स्तर समाज की सांस्कृतिक एकता बनाए रखता है।

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वीरेन्द्र प्रताप यादव

सहायक प्रोफ़ेसर, मानवविज्ञान विभागमहात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र,

virupy@gmail.com


शिव बाबू

सहायक प्रोफ़ेसर (अस्थायी), मॉडल डिग्री कॉलेज, नुआपाड़ा, ओड़ीशा.

shivbabuanthropo@gmail.com

 अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च  2022

UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )

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