शोध आलेख : किसानों पर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के प्रभावो का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
(जयपुर जिले के विशेष सन्दर्भ में)
-सुरेश कुमार भावरियॉ
शोध सार : भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। इसमें राजस्थान राज्य की भी लगभग 70% जनसंख्या कृषि कार्यो में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद शुष्क मरुस्थलिय जलवायु और पानी की कमी के कारण कृषि उत्पादन में पिछड़ा हुआ है। जिस देश और राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान हो और अधिकांश जनसंख्या प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कृषि से जुड़ी तो उस देश व राज्य सरकार का यह उत्तरदायित्व होता है कि किसानों की उन्नति पर विशेष ध्यान दें। किसान अनेक समस्याओं जैसे- अशिक्षा, अज्ञानता, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियां, आत्महत्या, ऋणग्रस्तता, मानसून की विफलता, इनपुट लागत में वृद्धि आदि समस्याओं से जूझ रहे है। किसानों की सामाजिक आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के साथ-साथ कृषि ऋण व्यवस्था, कृषि विपणन व्यवस्था, सतत कृषि विकास, योजनाबद्ध तरीकों से विभिन्न योजनाओं को लागू करना जरूरी है तथा विभिन्न सरकारी योजनाओं में दी जाने वाली सब्सिडी का सामाजिक अंकेशन (सोशल ऑडिट) करना जरूरी है, ताकि सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों एवं बिचौलिए किसानों को दिया जाने वाला लाभ को हड़प ना सके और योजना का लाभ केवल प्रभावशाली किसानों तक ही सीमित न रहे, लाभ सभी जरूरतमंद लघु एवं सीमांत किसानों को भी समान रूप से मिलना चाहिए। किसानों को शिक्षित करने के लिए विभिन्न प्रसार एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन, दूरदर्शन व एफएम रेडियो और निजी चैनलों पर कृषि संबंधित कार्यक्रमों का प्रसारण, किसान कॉल सेंटर के माध्यम से किसानों की विभिन्न समस्याओं का निवारण एवं प्रगतिशील किसानो के लिए कृषि भ्रमण यात्रा साथ ही उन्नत कृषि यंत्र एवं मशीनीकरण के प्रशिक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करना और किसानों को डिजिटल खेती के माध्यम से दूसरे किसानों के साथ जोड़ना आवश्यक है ताकि सभी किसानों को सभी योजनाओं का पर्याप्त लाभ मिल सके। जब हमारे अन्नदाता, धरतीपुत्र, माटी के लाल कहे जाने वाले किसानों की सामाजिक आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और उनके जीवन में हरियाली आएगी तभी हमारे राष्ट्र में भी उन्नति और खुशहाली आएगी। किसान हमारे देश की ‘रीड की हड्डी’ के समान है इसलिए इनके प्रत्येक स्तर सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक को ऊंचा उठाना जरूरी है। किसानों को कर्ज माफी की नहीं बल्कि एक नियमित आय की आवश्यकता है ताभी उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधर सकती है। आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण से शिक्षा व तकनीकी ज्ञान का प्रसार हुआ है और किसानों के जीवन में आशातीत परिवर्तन हुआ है, विकास व परिवर्तन के संबंध में प्रमुख पहलू सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक है, इन सभी मे विकास व परिवर्तन गति समान अवस्था में नहीं पाई गई, जहां परंपरागत खेती के तरीकों में परिवर्तन व विकास की गति तीव्र है वहीं सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक पहलुओं में विकास और परिवर्तन की गति धीमी है। सामाजिक संस्थाओं जैसे- परिवार, जाति, विवाह में परिवर्तन की गति धीरे है क्योंकि अब भी किसानों में अज्ञानता व अंधविश्वास आदि पाया जाता है, वहीं आर्थिक पहलु मे नई तकनीकी ज्ञान, मशीनीकरण, यंत्रीकरण एवं शिक्षा के कारण विकास व परिवर्तन की गति तीव्र है।
बीज शब्द : आधुनिकीरण, पश्चिमीकरण, वैश्वीकरण, सामाजिक संस्था, डिजिटल खेती, ट्रैक्टर, मशीनीकरण, ट्यूबवेल, हाइब्रिड बीज, रासायनिक उर्वरक।
मूल आलेख :
प्रस्तावना -
भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि ही हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार है, लगभग 70 प्रतिशत लोग कृषि से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। किसान हमारे देश की ‘रीढ की हड्डी’ के समान है। वर्तमान कीमतों के अनुसार वर्ष 1950-51 में भारत की जीडीपी में कृषि का योगदान 51.81%
था जो वर्तमान समय में गिरकर वर्ष 1919-20 में 17.8% और 1920-21 में 19.9% रह गया है। किसान ही भारत का ‘अन्नदाता’, ‘माटी का लाल’ और ‘धरतीपुत्र’ है। यदि हमें भारत को उन्नतशील और सबल राष्ट्र बनाना है तो सबसे पहले किसानों को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाना होगा, इसलिए किसानों से जुड़ा कोई भी अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है। किसान की परिभाषा से लेकर उसकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और जीवन स्तर के सभी पहलुओं पर गहराई से अध्ययन जरूरी है ताकि हम जान पाएंगे कि किसानों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और हम उन्हें दूर करने के उपाय सुझा पाएंगे। भारतीय किसान का जीवन ‘करुणा का महासागर’ है वह स्वयं उपजाने के बाद भी उसे तथा उसके परिवार को भरपेट खाने को नहीं मिलता। किसान के लिए ‘कृषि एक जुआ’ है क्योंकि यहां अधिकांश सिंचाई के साधनों के अभाव में उसे मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है।
किसान कौन है?
कृषक समाज की अवधारणा को सर्वप्रथम रॉबर्ट रेडफील्ड ने अपनी पुस्तक “पीजेंट सोसायटी एंड कल्चर” में परिभाषित करते हुए कहा है कि “वे ग्रामीण लोग जो जीवन निर्वाह के लिए अपनी भूमि पर नियंत्रण बनाए रखते हैं और उसे जोतते हैं तथा कृषि जिनके जीवन के परंपरागत तरीकों का एक भाग है और जो कुलीन वर्ग या नगरीय लोगों की ओर देखते हैं और उनसे प्रभावित होते हैं जिनके जीवन का ढंग उन्हीं के समान है लेकिन कुछ अधिक सभ्य प्रकार का है।”
रॉबर्ट रेडफील्ड ने स्वीकार किया कि “कृषक” शब्द को परिभाषित करना कठिन है, रेडफील्ड के अनुसार कृषक वह है जो अपने उपयोग के लिए कृषि करता है, न कि व्यापार के लिए जो व्यापार के लिए कृषि करता है उसे “किसान” (फार्मर) कहते हैं।
राष्ट्रीय किसान नीति 2007 में प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन अध्यक्षता में सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक “किसान उस व्यक्ति को माना जाएगा जो कृषि वस्तुओं का उत्पादन करता है। इनके मुताबिक किसान की परिभाषा में सभी कृषक, कृषि मजदूर, बटाईदार, मुर्गीपालन, पशुपालन, मधुमक्खी पालनकर्ता, माली, चरवाहे, गैर-कॉर्पोरेट बागान मालिक और रोपण मजदूरों के साथ-साथ कृषि संबंधित व्यवसाय जेसे सेरीकल्चर, वर्मीकल्चर, और कृषि वानिकी में लगे व्यक्ति शामिल है। इन शब्दों में आदिवासी परिवार, झूम खेती या स्थानांतरण कृषि और लघु एवं गैरवन उपज के संग्रह, उपयोग और बिक्री में शामिल लोग सम्मिलित हैं।”
भारतीय किसानों पर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, वैश्वीकरण के दोनों सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं, फिर भी कुल मिलाकर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण और वैश्वीकरण से किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पहले से मजबूत हुई है और उनके जीवन में परिवर्तन आया है। आधुनिकीरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण सभी प्रक्रियाओं का स्रोत बाहरी संस्कृति है, उदाहरणार्थ – आधुनिकीकरण आधुनिक देशों के साथ संपर्क के परिणाम स्वरुप परंपरागत समाजों में होने वाले परिवर्तन की प्रक्रिया है, पश्चिमीकरण पश्चिमी संस्कृति के साथ संपर्क से होने वाले सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया है, जबकि वैश्वीकरण विश्व के विभिन्न देशों से परस्पर संपर्क की परिणाम स्वरूप होने वाली परिवर्तनो से संबंधित प्रक्रिया है। इस के साथ ही संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिस का स्रोत भारतीय समाज में ही है, संस्कृतिकरण में निम्न जाति या वर्ग द्वारा किसी उच्च जाती या वर्ग के जीवन शैली को अपनाया जाता है।
1. किसान पर आधुनिकीकरण के प्रभाव
आधुनिकीकरण का सीधा और सामान्य मतलब यह है कि किसी भी समाज, संस्था व्यक्ति अथवा समुदाय का परंपरागत रूप छोड़कर उसका आधुनिक रूप स्वीकार करना। किसानों पर आधुनिकीकरण का प्रभाव उनके सामाजिक जीवन, रहन-सहन, आचार विचार, खेती करने के तरीके, उनकी पारिवारिक जीवन आदि में परंपरागतता को छोड़कर आधुनिकता को अपनाना है।
भारत में आधुनिकीकरण –
आधुनिकीकरण कोई ऐसी घटना या वस्तु नहीं है जो अचानक समाज में उत्पन्न हो जाए यह एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है जिसमें खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा, तर्क, बातचीत, विवेक, आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्रों आदि में देखा जा सकता है। भारत में आधुनिकीकरण अंग्रेजों के समय हुआ ऐसा नहीं है अंग्रेजों ने कभी भी भारत को आधुनिक बनाने का प्रयास नहीं किया और जो थोड़ा बहुत कोशिश की वह महज अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए की थी वास्तव में स्वतंत्रता के पश्चात ही भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का आरंभ हुआ है। कृषि में आधुनिकीकरण की शुरूआत वर्ष 1960 के बाद प्रारंभ हुई इससे पहले यहां पर कृषि परंपरागत तरीकों जैसे लकड़ी के हाल, बैलगाड़ी, सिंचाई कार्य में पशुओं का उपयोग आदि द्वारा की जाती थी परंतु वर्तमान में आधुनिकीकरण के कारण कृषि में बढ़ता मशीनों का उपयोग, नवीन तकनीकी व रासायनिक खाद व बीजों का प्रयोग होने लगा है। इसमें सबसे प्रमुख भूमिका ट्रैक्टर की है, ट्रैक्टर कृषि क्षेत्र में खेत को समतल करने, जुताई करने,खेत मे मेड बनाने, फसल काटने, फसलों को लाने वाले जाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया गतिशीलता,
अपरिवर्तनीयता, क्रांतिकारी प्रकृति और विकासवादी प्रकृति वाली है, इसे विकासवादी प्रक्रिया इसलिए कहा जाता है क्योंकि आधुनिकीकरण को होने में कई सालों का समय लग जाता है, आधुनिकीकरण किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है अपितु इस प्रक्रिया को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में घटित होते हुए देखा जा सकता है।
किसानों के सामाजिक जीवन पर आधुनिकीकरण का प्रभाव –
भारतीय किसान परिवारों में संयुक्त परिवार प्रथा, मुखिया का परिवार पर सत्ताधिकार, परिवार का कृषि पर आधारित जीवन, परंपराओं की प्रधानता, धार्मिक विश्वासों और पूर्वजों की पूजा आदि इसकी प्रमुख विशेषता थी। आधुनिकीकरण के कारण किसान परिवारों में सबसे बड़ा सामाजिक परिवर्तन यह पड़ा कि संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवार उभरकर सामने आने लगे है। परिवार के मुखिया की स्थिति में कमी हुई है, अब युवा पीढ़ी भी खुद निर्णय लेने लगे हैं।
आधुनिकीकरण के प्रमुख परिवर्तन इस प्रकार हैं-
i.
संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवारों ने स्थान ले लिया है
ii.
परिवार के मुखिया की स्थिति का हार्ष हुआ हैं, पहले परिवारों के विवादो का समाधान परिवार का मुखिया, वृद्ध व्यक्ति द्वारा ही किया जाता था लेकिन आज परिवारिक विवादों के समाधान का प्रमुख केंद्र न्यायालय है इस तरह परिवारों में मुख्य की स्थिति का हार्ष हुआ है
iii.
परंपराओं, प्रथाओं, लोकाचारों एवं धार्मिक विश्वासों के बंधन ढिले पड़ते जा रहे हैं
वास्तविकता यह है कि आधुनिकीकरण इन परिवर्तनों ने कुछ नवीन समस्याओं को जन्म दिया देने के पश्चात भी किसान के जीवन को बहुत कुछ सीमा तक प्रगतिशील बनाने में योगदान दिया है।
जाति पंचायतों में परिवर्तन –
किसान समुदाय मे आधुनिकीकरण के कारण किसान समुदायों में जाति पंचायतों की संरचना में बहुत तेजी से विघटन हुआ है। आधुनिकीकरण एवं औद्योगिकरण के कारण विभिन्न जातियों और धर्मों के लोगों के बीच सामाजिक संपर्क बढ़ने लगे हैं जिसके फलस्वरूप जाति पंचायतों के फैसले, जाति बहिष्कार और अन्य प्रकार के दंड का कोई व्यवहारिक प्रभाव नहीं रहा गया। आधुनिकीकरण के कारण अब गांवो में स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता जैसे विशेषताओं का प्रसार हुआ है और जाति पंचायतों के प्रभाव को कम किया गया है।
आधुनिकीकरण के कारण धर्म में परिवर्तन –
किसानों का मुख्य व्यवसाय कृषि है और कृषि प्रकृति पर निर्भर है इसलिए प्राकृतिक शक्तियों में किसानों का अटूट विश्वास है और किसान उनकी पूजा एव आराधना में ही अपना भला समझते हैं, किसान जब चारों ओर से निराश हो जाता है तो वह ईश्वर की शरण में आता है परंतु कभी-कभी धर्म के नाम पर तनाव, संघर्ष, दंगे भी होते हैं इस तरह धर्म अनेक सामाजिक समस्याओं को जन्म भी देता है। धर्म कभी-कभी वैज्ञानिकता और तर्क से भी किसानों को दूर ले जाता है परंतु आधुनिकीकरण के प्रभाव से किसानों के धार्मिक अंधविश्वास में कमी आ रही है, जन्म मृत्यू, विवाह और जीवन के अन्य क्षेत्रों में आधुनिकीकरण व शिक्षा के कारण धार्मिक रूढ़ियों किसान अब कम महत्व देने लगे हैं।
आधुनिकीकरण के कारण विवाह में परिवर्तन –
आधुनिकीकरण के कारण किसानों में विवाह में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है, बाल विवाह मे कमी आई है।
आधुनिकीकरण के कारण किसानों के मनोरंजन के साधनों में भी परिवर्तन आ गया है अब वे नाटक या स्वांग देखने के बजाय सिनेमा देखना अधिक पसंद करते हैं साथ ही कबड्डी, कुश्ती के स्थान पर क्रिकेट, वॉलीबॉल खेलना पसंद करते हैं।
आधुनिकीकरण द्वारा कृषि में परिवर्तन –
हरित क्रांति, श्वेत क्रांति और नीली क्रांति आधुनिकरण के कारण आई है। किसानों द्वारा आधुनिक वैज्ञानिक चीजों का प्रयोग निम्नलिखित रुप से किया जा रहा है-
i.
किसानों द्वारा खेत जोतने के लिए अब बैलों की जगह ट्रैक्टर का प्रयोग किया जा रहा है।
ii.
आधुनिकीकरण से एक ही मौसम में कई फसलों को वैज्ञानिक ढंग से उत्पन्न करना
iii.
प्राचीन कृषि पद्धति की जगह नवीन वैज्ञानिक कृषि पद्धति को प्रोत्साहित करना
iv.
फसल को कीड़ों-मकोड़ा से बचाने के लिए कीटनाशकों एवं औषधियों का प्रयोग करना
v.
रसायनिक उर्वरकों का उपयोग - देश में हरित क्रांति लाने में उर्वरको का महत्वपूर्ण योगदान है, वर्तमान में कृषि के आधुनिकीकरण के कारण काफी महत्वपूर्ण प्रगति और परिवर्तन आया है
vi.
कृषि क्षेत्र में यंत्रीकरण - पहले के समय किसान बैल, हल और कुएं के अलावा अन्य बातों से सामान्यतः अनभिज्ञ थे आज आधुनिकीकरण की वजह से विज्ञान और तकनीकी के विकास के कारण बहुत से कृषि यंत्रों का प्रयोग होने लगा है। इसमें प्रमुख इस प्रकार है ट्रैक्टर, कंबाइंड ड्रिल, हार्वेस्टर, पंपिंग सेट एवं ट्यूबेल।
vii.
सिंचाई क्षमता - आधुनिकीकरण के कारण सिंचाई सुविधाओं में बहुत अधिक परिवर्तन आया है, अब क्यारी-धोरों के स्थान पर स्प्रिंकलर सिस्टम, बूंद बूंद सिंचाई पद्धति, का उपयोग होने लगा है साथ ही आधुनिकीकरण से डिजिटल खेती को प्रोत्साहन मिला है। डिजिटल खेती के अंतर्गत ग्रीन-हाउस, नेट- हाउस, पॉलीहाउस आदि से कृषि क्षेत्र में परिवर्तन आया है
किसानों पर आधुनिकीकरण से सामाजिक ढांचे में विसंगतिया भी बढ़ रही है, जैसे संयुक्त परिवार का टूटना जिससे संयुक्त परिवार टूटने से खेत के भी टुकड़े हो जाते हैं, और छोटे होते खेत जोत किसानों के लिए कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करते हैं। वृद्धों के प्रति अनादर की भावना का बढ़ना, व्यक्तिवाद पनप रहा है। साथ ही खेती में अधिक फसल प्राप्त करने के लिए खूब भूमिगत जल और खाद, कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है जिससे पर्यावरण संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो रही है और भूमि का जल स्तर भी निरंतर गिरता जा रहा है, साथ ही किसी में यंत्रीकरण के उपयोग से कृषि श्रमिकों में बेरोजगारी जैसी समस्याओं उत्पन्न होती जा रही है।
2. किसानों पर पश्चिमीकरण का प्रभाव –
किसानों के रहन-सहन, वेशभूषा, खानपान, शिक्षा, रूचियो, पारिवारिक संगठन, धर्म, नैतिकता, परंपराओं, पर्दा प्रथा, रीति रिवाज, सामाजिक व्यवस्था एवं जीवन पद्धति में आशातीत परिवर्तन आए हैं। किसानों के कपड़ों पर ही नहीं पश्चिमीकरण से विचारधाराओं और दर्शन पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। युवा किसानों में धोती कुर्ते के स्थान पर पेंट कमीज का प्रचलन बढ़ गया है, परिवारों के सदस्यों के प्रति संबोधन में पश्चिमीकरण का प्रभाव साफ-साफ दिखाई देता है, अब गांव में भी मां-बाप की जगह मम्मी डैडी का प्रचलन हो गया है, खान-पान से लेकर जीवनशैली सब पर पश्चिमीकरण का प्रभाव साफ दिखाई देता है।
3. किसानों पर वैश्वीकरण का प्रभाव –
वैश्वीकरण का अर्थ - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, उसके जीवन की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति समाज में ही होती है, वह अकेला रह कर अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता है। उसी प्रकार आज वैश्वीकरण में कोई देश (राज्य) बिना दूसरे देश से व्यापार या संपर्क किए अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता। संसार में रोज नए अनुसंधान हो रहे हैं, उनका फायदा दूसरे देश को तभी मिल सकता है जब वह देश आपस में एक दूसरे से संपर्क में रहेंगे। जब कोई एक देश दूसरे देश के साथ वस्तु, सेवा पूंजी और बौद्धिक संपदा आदि का बिना किसी प्रतिबंध के आदान प्रदान करता है तो इसे वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण का जाता है।
वैश्वीकरण का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव जो कृषि पड़ा उसके परिणाम स्वरूप भारतीय कृषक जहॉ पहले अपने समुदाय से संबंधित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पैदावार करता था वहीं अब वे लाभ के उद्देश्य से वस्तुओं का उत्पादन करता है। वैश्वीकरण ने भारतीय ‘कृषक’ को ‘किसान’ बना दिया है। वैश्वीकरण से मशीनीकरण, उन्नत तकनीक और हाइब्रिड बीजो, उर्वरको आदि की आसान आसान पहुंच बना दी है। उत्पादकता और फसल की प्रगति पर भारी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वैश्वीकरण के 90% सकारात्मक प्रभाव हैं वहीं 10% नकारात्मक प्रभाव भी है, नकारात्मक प्रभाव इसलिए है क्योंकि वैश्वीकरण की प्रक्रिया से पूंजीवाद को बढ़ावा मिलता है साथ ही प्रतिस्पर्धा की वजह से राष्ट्र हितों को नुकसान पहुंचता है।
जयपुर
जिले में
कृषि प्रशिक्षण
और अनुसंधान
केंद्र
जिला |
कृषि
विज्ञान केंद्र (KVK) |
कृषि
अनुसंधान केंद्र (ARS) |
कृषि
अनुसंधान उप-केंद्र |
जयपुर |
कोटपुतली, टाकरेड़ा(चौमू) |
दुर्गापुरा
|
कोटपुतली |
साहित्य
की समीक्षा :
शेखावत, धीर
सिंह (2018) ने
अपने अध्ययन
“कृषि
का आधुनिकीकरण - आलोचनात्मक
अध्ययन”
में बताया
कि आधुनिक
वैज्ञानिक प्रयास
से आज कृषि
में अनेक
नवीन तकनीकी
एवं मशीनों
का प्रादुभार्व हुआ है, जिसमें
ट्रैक्टर,
हार्वेस्टर,
नलकूप,
थ्रेसर,
स्प्रिंकलर सिस्टम
आदि के साथ
ऊर्जा के
साधन एवं रासायनिक
खाद में बीजों
का आविष्कार
हुआ है।
कुलदीप, अरविंद
कुमार (2019) ने
अपने अध्ययन
“कोटपूतली
तहसील में
कृषि आधुनिकीकरण
के पर्यावरण
पर प्रभाव
का भौगोलिक
अध्ययन”
में विभिन्न पारिस्थितिक
अध्ययन और
पर्यावरण पर
प्रभाव कोटपूतली
तहसील के अंतर्गत किया है। रवि, खरीफ
और जायद
में उत्पादित
कृषि फसलों
के निरंतर
संतुलित विकास
के लिए किया
है।
शोध समस्या चयन :
आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण और वैश्वीकरण के प्रभाव से जयपुर जिले में पिछले दशकों में तीव्र गति से विकास हुआ है। ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियों ग्रामीण विद्युतीकरण, डेयरी विकास, सिंचाई परियोजनाओं, कृषि प्रौद्योगिकी विकास, कृषि विपणन, उच्च कृषि शिक्षा, राजस्व सुधार आदि जैसे क्षेत्रों में तीव्र गति से विकास हुआ है। इसलिए जयपुर जिले मे आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण और वैश्वीकरण के प्रभाव का आंकलन करने के लिए इसे चुना गया है, जयपुर जिले में आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं और वैश्वीकरण का सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव भी पड़ा है। उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, “किसानों पर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के प्रभावों का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन (जयपुर जिले के विशेष सन्दर्भ में)” लिया गया है।
अध्ययन
क्षेत्र का
चयन : राजस्थान
की राजधानी
जयपुर जिला
जो कृषि
उत्पादन में
अग्रणी जिलों
में से एक
है। जहां आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण
एवं वैश्वीकरण
का सबसे
अधिक प्रभाव
पड़ा है।
अनुसंधान कार्य के उद्देश्य :
1. अध्ययन क्षेत्र के किसानों पर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के प्रभाव का मूल्यांकन।
2. अध्ययन क्षेत्र के किसानों से संबंधित विभिन्न समस्याएं एवं उन्हें दूर करने के लिए सरकारी योजनाओं का मूल्यांकन।
उपकल्पना /परिकल्पना :
- कृषि के आधुनिकीकरण से कृषि विकास तेजी से हो रहा है।
- आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण का रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा एवं जीवन पद्धति और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं (जैसे- परिवार, विवाह, जाति) में भारी परिवर्तन आया है।
- आधुनिकरण एवं वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण पर्यावरण से संबंधित समस्या उत्पन्न होने लगी है और भूमि की गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है।
- विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी योजनाओं से किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधर रही है।
- अध्ययन क्षेत्र में आधुनिकरण और वैश्वीकरण के प्रभाव परिणाम स्वरूप अध्ययन क्षेत्र के किसानों में ‘डिजिटल खेती’ को अपनाना शुरू कर दिया है।
अध्ययन विधि और डेटा का संकलन :
प्रस्तुत शोध हेतु अन्वेषणात्मक (वर्तमान ज्ञान में वृद्धि के लिए) एवं वर्णनात्मक शोध विधि का प्रयोग किया गया है। किसी शोध कार्य के लिए शोधकर्ता को तथ्यों (आंकड़ों) का संकलन, संकलन के तरीकों, डेटा और शोध रिपोर्ट के वर्गीकरण, सारणीयन, विश्लेषण के लिए एक निश्चित प्रारूप का अध्ययन करना होता है और अन्त मे निष्क्रर्ष सामान्यीकरण द्वारा प्रस्तुत किए जाएंगे।
निदर्शन :
जयपुर जिले की विभिन्न तहसीलों से कुल 60 उत्तर दाताओं का चयन
स्वनिर्णयात्मक प्रतिदर्श/सुविधाजनक प्रतिचयन विधि द्वारा किया गया है।
अध्ययन स्रोत : यह शोध कार्य मुख्य रूप से प्राथमिक एवं द्वितीयक आंकड़ों (सूचनाओं) पर आधारित है।
·
प्राथमिक स्रोत - प्राथमिक स्रोत के अंतर्गत शोधकर्ता द्वारा नए सिरे से प्रथम बार उत्तरदाताओ से सूचना संग्रह की गई है, साथ ही साक्षात्कार अनुसूची से प्राप्त आंकड़ों की संपुष्टि के लिए अवलोकन व अनुभवात्मक पद्धति का प्रयोग किया जाएगा।
·
द्वितीयक स्रोत - द्वितीयक स्रोत के अंतर्गत भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित व अप्रकाशित सूचनाओं और पत्र-पत्रिकाओं से प्राप्त सूचनाओं का सहारा लिया गया है, साथ ही कृषि विभाग, उद्यान विभाग, भू-अभिलेख विभाग, मौसम विभाग एवं विभिन्न कार्यालयों से प्रकाशित वह प्रकाशित सामग्री का सहारा लिया गया है साथ ही कृषि क्षेत्र में संबंधित विभिन्न दैनिक, साप्ताहिक, मासिक और वार्षिक पत्र-पत्रिकाओं और रिपोर्ट व सूचनाएं प्राप्त की गई है।
आंकड़ो का विश्लेषण व प्रस्तुतिकरण :
(1) कृषि का आधुनिकीकरण
जयपुर जिले में कृषि का आधुनिकीकरण का सूत्रपात वर्ष 1960 के बाद प्रारंभ हुआ, इससे पहले यहां के किसानों द्वारा लकड़ी के हल, बैलगाड़ी, सिंचाई कार्य में पशु आदि का प्रयोग किया जाता था एवं खेती परंपरागत तरीकों से की जाती थी परंतु आधुनिकीकरण के प्रभाव फलस्वरुप कृषि यंत्रो और औजारों का उपयोग बढ़ गया है, अब लकड़ी के हल व बैलगाड़ी की जगह ट्रैक्टर और ट्रैक्टर ट्रॉली ने ले लि हैं। जयपुर जिले में वर्तमान में कृषि परिस्थितिकी में बढ़ती मशीनों का उपयोग कृषि आधुनिकीकरण का सूचक है। ट्रैक्टर कृषि उपकरणों में सबसे अधिक किसान के लिए वरदान साबित हुआ है, ट्रैक्टर खेतों की जुताई, बुवाई, अनाज निकालने, खेत को समतल करने, फसलों को लाने ले जाने, फसल की कटाई करने आदि कृषि कार्य कम समय में करने के लिए कृषि क्षेत्र में वरदान साबित हो रहा है। यह एक बहुउद्देशीय मशीन है जिसके द्वारा किसानों के अनेक उद्देश्य की पूर्ति आसानी से हो जाती है, कृषि आधुनिकीकरण में ट्रैक्टरों को कृषि मशीनीकरण का आधार भी कहा जा सकता है और कृषि मशीनीकरण में ट्रैक्टर को कृषि का आधार स्तंभ माना गया है। जयपुर जिले में हरित क्रांति के आगमन के साथ ही ट्रैक्टरों की संख्या में आशातीत वृद्धि हुई है, जयपुर जिले की चौमू तहसील में सर्वाधिक ट्रैक्टर एवं थ्रेसर है। जिले में विभिन्न किसानों से प्राप्त सूचनाओं से साफ नजर आता है कि किसान अब आधुनिकीकरण के इस युग में परंपरागत लकड़ी के हल, बैलगाड़ी आदि को छोड़कर ट्रैक्टर से खेती कर रहे हैं और जिन किसानों के पास ट्रैक्टर नहीं है वह भी अपने साथी किसानों से किराए पर ट्रैक्टर लेकर अपने खेत में बुवाई से लेकर कटाई व फसल को लाने ले जाने के सभी काम ट्रैक्टर द्वारा करा रहे हैं, क्योंकि ट्रैक्टर द्वारा एक आदमी ही काफी विस्तृत क्षेत्र में जुताई आसानी से कर लेता है और ट्रैक्टर के उपयोग के उपरान्त किसान सही समय पर विस्तृत क्षेत्र में आसानी से खेती कर रहे हैं और उत्पादन में दिनों दिन तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। इस तरह आधुनिकरण के प्रभाव से जयपुर जिले के किसानों ने ट्रैक्टर से विस्तृत भू-भाग पर समय पर गहन खेती करने में कामयाबी हासिल की है और कृषि क्षेत्र में स्वर्णिम भविष्य का श्रीगणेश हुआ है ।
सारणी 1 : जयपुर जिले में कृषि यंत्रों का प्रयोग 2011 से 2017
वर्ष |
विधुत कुँए एवं ट्यूबेल |
डीजल पंपसेट
|
2011-12 |
139933 |
20631 |
2012-13 |
148631 |
18362 |
2013-14 |
149610 |
18920 |
2014-15 |
148009 |
21312 |
2015-16 |
152541 |
22458 |
2016-17 |
172161 |
19369 |
स्रोत - राजस्थान एग्रीकल्चरल
स्टैटिक्स एट
ए ग्लांस
2017-18
सारणी 2 : जयपुर मे ट्यूबवेल एवं खुले कुँए की संख्या वर्ष 2018-19
ट्यूबवेल |
खुला कुआं |
||||
विधुत द्वारा |
डीजल द्वारा |
कुल |
विधुत द्वारा |
डीजल द्वारा |
कुल |
293350 |
779 |
294129 |
40001 |
9240 |
49241 |
स्रोत - एग्रीकल्चरल
स्टैटिक्स 2018-19, डिपार्टमेंट
ऑफ प्लानिंग, जयपुर https://rajas.raj.nic.in/PDF/99202135102PMPDFAG.pdf
सारणी 3 : जयपुर मे कुँए एवं ट्यूबवेल की संख्या वर्ष 2016-17
जयपुर
1 |
पुराने कुएं
2
|
नए कुएं
3 |
पुराने मरमत
4 |
कुल
5=2+3+4 |
उपयोग से बाहर कुएं
6 |
पीने के पानी के लिए कुआं
7 |
कूल
8 |
ट्यूबवेल
9 |
जयपुर |
86859 |
6 |
607 |
81472 |
61713 |
230 |
143415 |
61264 |
स्रोत- राजस्थान एग्रीकल्चरल
स्टैटिक्स एट
ए ग्लांस
2017-18
अध्ययन क्षेत्र में नवीन तकनीकी व आधुनिकीकरण का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग हो रहा है। सारणी संख्या: 1 और सारणी संख्या:
2 से प्रमाणित होता है कि सन् 2011-12 से 2016 -17
तक एक और ट्यूबवेल की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है तो दूसरी ओर कुछ अपवादो को छोड़कर डीजल पंप सेटों की संख्या में निरंतर कमी हो रही है साथ ही जिले में तेजी से विधुतीकरण हो रहा है और डीजल पंपसेटों का स्थान विधुत संचालित मोटर ले रही है। ट्यूबवेलो की बढ़ती संख्या का मुख्य कारण पहला गिरता भूजल स्तर दूसरा संयुक्त परिवारों का विघटन, गिरते भू-जल स्तर के कारण किसान पानी कम पड़ने पर नया ट्यूबवेल खुदवा रहे हैं वहीं संयुक्त परिवार के विघटन के कारण जब दो भाई अलग होते हैं तो वे व्यक्तिवाद भावना के कारण अपना-अपना ट्यूबेल बनवाना चाहते हैं ताकि आपसी विवाद न हो इसलिए इस तरह ट्यूबवेलो को संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। वहीं अध्ययन क्षेत्र में डीजल पंपसेट का अधिकतम उपयोग 1990 से पहले हो रहा था किंतु घटते जलस्तर आधुनिकीकरण से विधुतीकरण में तेजी आई और डीजल पंपसेटों की जगह विधुत पंप सेट ने ले ली है, विधुत पंप सेट में लागत भी डीजल पंपसेट से कम आती है और विधुत पंप सेटों की क्षमता पानी खींचने में डीजल पंप सेटों से अधिक होती है। इस तरह आधुनिकीकरण से नवीन तकनीक व यांत्रिक उपकरणों के प्रयोग से कम समय में कम लागत में अधिक कार्य का संपादन होने लगा है।
सारणी संख्या : 3 से साफ सिद्ध होता है कि ट्यूबलो से भूमिगत जल लगातार घटता जा रहा है और क्षेत्र में लगभग 6713 कुँए ऐसे हैं जिनका अब खेती में उपयोग नहीं हो रहा है, वही लगभग 230 कुँए केवल पीने के पानी के लिए ही उपयोग में ले जा रहे हैं। आधुनिकीकरण का यह नकारात्मक परिणाम है कि पानी के अत्यधिक दोहन के कारण जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है, वर्तमान में सरकार ने फव्वारा पद्धति, बूंद बूंद सिंचाई से पानी को बर्बाद होने से काफी बचाया जा रहा है। आधुनिक सिंचाई पद्धति जैसे- स्प्रिंकलर सिस्टम व ड्रिप इरिगेशन पर केंद्र व राज्य सरकार दोनों मिलकर क्षेत्र के किसानों को 90% तक सब्सिडी प्रदान कर कर रही है ताकि पानी की बर्बादी को रोका जा सके। अध्ययन क्षेत्र में अवलोकन से साफ जाहिर है कि अब क्यारी धोरो का स्थान फव्वारा पद्धति ने ले लिया है जो आधुनिकीकरण का सूचक है। अतः हमारी पहली उपकल्पना कृषि के आधुनिकरण से कृषि विकास तेजी से हो रहा है सही सिद्ध होती है।
(2) आधुनिकीकरण एवं पश्चिमीकरण का रहन-सहन पर प्रभाव –
अध्ययन क्षेत्र में आधुनिकीकरण एवं पश्चिमीकरण का प्रभाव साफ नजर आता है। सभी उत्तरदाताओं ने माना कि पश्चिमीकरण के फलस्वरूप उनके खान-पान, रहन-सहन और व्यवहार प्रतिमान में काफी परिवर्तन आया है। वेशभूषा में अब युवा किसान धोती कुर्ते के स्थान पर पेंट कमीज पहनने लगे हैं, संयुक्त परिवार का विघटन हो रहा है, पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप शिक्षा का विकास हुआ है खेती में ज्यादा लाभ न मिल पाने के कारण वह नौकरी एवं अन्य व्यवसाय की तलाश में लोग अपने परिवार को छोड़कर शहरों में आ रहे हैं, स्त्रियां भी अपनी अधिकारों की मांग करने लगी है जिसके परिणाम स्वरूप संयुक्त परिवारों का स्थान एकाकी परिवार ले रहे हैं। सामाजिक संस्थाओं जैसे- जाति, विवाह और धर्म में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। आधुनिकीकरण एवं पश्चिमीकरण से शिक्षा का प्रसार हुआ और किसानों में जन चेतना विकसित हुई है। पहले किसानों में अज्ञानता व अशिक्षा के कारण अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, देवी देवताओं में आस्था, भाग्यवादीता, भूत प्रेत, छुआछूत, बाल विवाह, विधवा विवाह निषेध, मृत्यु भोज, जादू टोना आदि अनेक कुर्तियां धर्म में के नाम से प्रभावि थी, अध्ययन क्षेत्र में 28% लोग ऐसे हैं जो इन अंधविश्वासों, पुराने रीति-रिवाजों, मृत्यु भोज, जादू टोना आदि में अब भी विश्वास रखते हैं। परंतु अब आधुनिकीकरण एवं पश्चिमीकरण की शिक्षा के प्रभाव से किसानों के रहन-सहन, वेशभूषा, खानपान और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं जैसे परिवार, विवाह, जाति में परिवर्तन देखने को मिल रहा है अतः हमारी दूसरी उपकल्पना सही सिद्ध होती है।
(3) आधुनिकीकरण
का पर्यावरण पर प्रभाव –
हरित क्रांति के पश्चात जिले में कृषि के आधुनिकीकरण, मशीनीकरण, उन्नत बीजों में प्रयोग, रासायनिक खाद का उपयोग, सिंचाई सुविधाओं का विकास के परिणाम स्वरुप अन्न उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई है, इस रिकार्ड तोड़ उत्पादन के लिए प्रयोग में खरपतवारनाशक, कीटनाशकों, फफूंदनाशको और रासायनिक खाद ने हमारे अन्न भण्डारों को तो भर दिया है, परंतु इन के अंधाधुंध प्रयोग ने पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित करना भी शुरू कर दिया है। अध्ययन क्षेत्र के किसानों ने माना के अधिक उपज प्राप्त करने के लिए वे अब संकर (हाइब्रिड) बीजों का प्रयोग कर रहे हैं साथ ही कीटनाशकों एवं रसायनिक खादों का प्रयोग भी पिछले 20-25 सालों में लगातार बढ़ता ही जा रहा है, क्षेत्र में विशेषकर फल व सब्जियों में रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, जहरीले रंगो आदि का अत्यधिक उपयोग हो रहा है जिनसे स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं जैसे- सिरदर्द, जी-घबराना, चक्कर आना, सफेद दाग तथा कैंसर जैसे प्राणघातक रोगों के होने की आशंका हमेशा बनी रहती है। अतः व्यक्तिगत सर्वेक्षण से स्पष्ट हुआ है कि कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले कीटनाशक हमारे परिवार को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। हमारी तीसरी परिकल्पना भी सिद्ध होती है।
(4)
विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी योजनाओं का प्रभाव –
अध्ययन क्षेत्र में चल रही विभिन्न योजनाएं जैसे- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, फार्म पॉन्ड आदि प्रमुख रूप से चल रही है, सर्वेक्षण में किसानों ने माना कि उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति इन योजनाओं से सुधर रही है, परंतु बहुत सारी योजनाओं का लाभ केवल शिक्षित व प्रभावशाली किसानों को ही अभी तक मिला है अभी भी इन योजनाओं को सुनिश्चित तरीके से लागू करना एक बड़ी चुनौती है। अध्ययन क्षेत्र में भ्रमण करने से अब हम खेतों में देख सकते हैं कि जगह-जगह किसान फव्व्रारा पद्धति, बूंद बूंद सिंचाई, सोलर पंप का उपयोग कर रहे हैं तथा कई जगह हमें फॉर्म पॉण्ड, पॉलीहाउस ग्रीनहाउस, नेटहाउस भी देखने को मिलते हैं परंतु यह सब प्रभावशाली किसानों ने ही सब्सिडी लेकर अपने खेतों में लगवा रखे हैं, सरकार को चाहिए कि वह लघु व सीमांत किसानों को ध्यान में रखकर ज्यादा से ज्यादा योजनाएं बनाये। कुल मिलाकर अध्ययन क्षेत्र के विभिन्न योजनाओं के फल स्वरुप किसानों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति पहले से बहुत सुधरी है।
(5)
आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण का डिजिटल खेती पर प्रभाव –
डिजिटल खेती यानी फसलों की पैदावार बढ़ाने और खेती को सक्षम व लाभदायक बनाने के लिए आधुनिक तकनीकों और सेवाओं का इस्तेमाल करना। अध्ययन क्षेत्र में आज भी ज्यादातर खेती मानसून पर टिकी हुई है जिसमें ज्यादा जोखिम है, लेकिन किसान घर बैठे कृषि वैज्ञानिकों बताए तरीकों से इन समस्याओं से निपट सकते है, कम पढ़े लिखे किसान भी वीडियो देखकर और सुनकर खेती के बारे में जानकारी ले सकते हैं। किसानों से जुड़े गई एप्स के माध्यम से किसान चुटकियों में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, अब घर बैठे ही फसल की पिक्चर या फोटो भेज कर कृषि सलाहकारों से सलाह ले सकते हैं। सर्वेक्षण में सामने आया है कि लगभग 20% किसान डिजिटल खेत के विभिन्न एप्स का फायदा उठा रहे हैं। अतः धीरे-धीरे किसानों ने डिजिटल खेती को अपनाना शुरू कर दिया है। कम पढ़े लिखे किसानों ने भी दूसरों की मदद से सोशल मीडिया पर आईडी बनवाई है और यूट्यूब, फेसबुक और व्हाट्सएप का इस्तेमाल कर रहे हैं।
निष्कर्ष :
उपरोक्त अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि आधुनिकीकरण,
पश्चिमीकरण, एवं वैश्वीकरण से अध्ययन क्षेत्र के किसानों पर सामाजिक व आर्थिक प्रभाव एवं परिवर्तन साफ दिखाई देता है, और पहले से किसानो सामाजिक आर्थिक स्थिति सुधरी है। परिवर्तन एवं विकास की गति के संबंध में मुख्य पहलू सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक है। इन सभी में विकास एवं परिवर्तन की गति सामान अवस्था में नहीं पाई गई है, जहां आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप परम्पागत खेती के तरीकों में परिवर्तन एवं विकास की गति तीव्र है वहीं सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक पहलुओं में बहुत धीमी गति से परिवर्तन हो रहा है। अध्ययन में पाया गया कि सामाजिक परिवर्तन की गति धीमी है क्योंकि अभी भी किसानो ने पूरी तरह से परंपराओं, अंधविश्वासों, झाड़-फूंक, जादू टोना, पर्दा प्रथा, मृत्यु भोज, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह आदि कुरीतियों और बुराइयों से पूरी तरह छुटकारा नहीं पाया है, लगभग 30% किसान आज भी इन परंपराओं में विश्वास रखते हैं वहीं आर्थिक परिवर्तन की गति तीव्र है, खेतों में नवाचारा, यंत्रीकरण, डिजिटल खेती एवं शिक्षा के कारण तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। आधुनिकीकरण के फलस्वरुप एकाकी परिवार की प्रवृत्ति बढ़ी है, व्यक्तिवाद को बढ़ावा मिला है, खेतों के टुकड़ों के कारण खेत जोत छोटे होते जा रहे हैं। वही हरित क्रांति के पश्चात खेतों में ट्रैक्टर, स्प्रिंकलर सिस्टम,ड्रिप इरीगेशन, सोलर पंप सेटो और रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का तेजी से उपयोग बड़ा है, आधुनिक खेती ने हमारे अनाज के गोदामों को तो भर दिया है परंतु पर्यावरण से ॥ समस्या भी उत्पन्न कर दी है। निष्कर्ष के तौर कहा जा सकता है कि यदि हमें अपने खेतों से लगातार उत्पादन करना है तो हमे परंपरागत खेती व आधुनिक खेती के बीच समन्वय स्थापित करना होगा, हमें उर्वरको, कीटनाशको का सीमित उपयोग कर जैविक खाद व गोबर खाद की ओर भी ध्यान देना चाहिए।
सुझाव:
I. सामाजिक
कुरीतियों और
बुराइयों को
दूर करने
के लिए किसानों
में शिक्षा
का प्रचार-प्रसार करना
जरूरी है।
II. आधुनिक
यंत्रों व नावाचार को
अपनाना चाहिए, जिससे
समय की बचत
और अच्छी
पैदावार
प्राप्त की
जा सके।
III. नवीन
वैज्ञानिक सिंचाई
पद्धतियों को
कृषि में अपनाना
चाहिए,
जिससे कृषि
में जल की
मांग
को कम किया
जा सकता
है,
इसके अंतर्गत
कम फसल अवधि वाले पौधे, जिन्हे
जलापूर्ति
की कम आवश्यकता
हो को उगाया जा
सकता है
IV. मृदा कि उर्वरा शक्ती
बनाए रखने
के लिए जैविक
खाद व गोबर
खाद के प्रयोग
के
साथ फसलों
को हेरफेर कर बोना चाहिए।
V. कृषि
निर्यात नीति
लागू करना।
VI. कृषि
जोखिम को
कम करने
के लिए ‘प्रधानमंत्री
फसल बीमा
योजना’
का क्रियान्वित
करना।
VII. खेती
में वित्तीय
समस्याओं से
निबटने के
लिए ‘किसान
क्रेडिट कार्ड
और ‘न्यूनतम
समर्थन मूल्य’ जैसी
पहल की जानी चाहिए ।
VIII. कृषि
अनुसंधान एवं
विकास को
बढ़ावा दिया
जाए और जलवायु परिवर्तन
के अनुसार
खेती को बढ़ावा
दिया जाए जिसमें पर्यावरण
में हो रहे
बदलाव के
बुरे प्रभाव
से बचा जा
सके और पर्यावरण
को भी नुकसान
ना हो।
संदर्भ :
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के., “ग्रामीण
समाजशास्त्र”,
रिसर्च पब्लिकेशंस, जयपुर
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2. पालीवाल, दीपक, (2020), “ग्रामीण समाजशास्त्र –1”, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय प्रकाशन, हल्द्वानी. पृ.सं-86
https://www.uou.ac.in/sites/default/files/slm/MASO-504.pdf
3. शर्मा, वीरेंद्र प्रकाश (2004),
“ग्रामीण समाजशास्त्र”, पंचशील प्रकाशन, जयपुर जयपुर पृ. सं-73
4. राष्ट्रीय किसान नीति 2007, कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार. पृ. सं-6-7
https://agricoop.nic.in/sites/default/files/npfhindi.pdf
5. शेखावत, धीर सिंह
(2018), “कृषि
का आधुनिकीकरण
- आलोचनात्मक अध्ययन”,JMME ,पीपी. 565-569
6. कुलदीप
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“कोटपूतली तहसील
में कृषि
आधुनिकीकरण के
पर्यावरण पर
प्रभाव का
भौगोलिक अध्ययन”, जर्नल
ऑफ़ एडवांसेज
एंड स्कॉलरली
रिसर्चस इन
एलाइड एजुकेशन. पृष्ठ
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(5)
7. राजस्थान
एग्रीकल्चरल स्टैटिक्स
एट ए ग्लांस
2017-18, डिपार्टमेंट
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ऑफ राजस्थान
संख्या-:
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8. एग्रीकल्चरल
स्टैटिक्स 2018-19, डायरेक्टरेट
आफ इकोनॉमिक्स
एंड स्टैटिक्स, डिपार्टमेंट
ऑफ प्लानिंग, जयपुर, राजस्थान पृष्ठ संख्या-50
https://rajas.raj.nic.in/PDF/99202135102PMPDFAG.pdf
9. राजस्थान
एग्रीकल्चरल स्टैटिक्स
एट ए ग्लांस
2017-18, डिपार्टमेंट
ऑफ एग्रीकल्चर, गवर्नमेंट
ऑफ राजस्थान
संख्या-:
60 https://agriculture.rajasthan.gov.in/content/dam/agriculture/Agriculture%20Department/agriculturalstatistics/rajasthan%20agriculture%20statistics%20at%20a%20glance%202017-18-merged.pdf
सुरेश
कुमार भावरियॉ
शोधार्थी, समाजशास्त्र विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी, उदयपुर, राजस्थान
bhawaria.suresh@gmail.com, 9571038764
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च 2022
UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )
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