शोध आलेख : मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास ‘इदन्नमम’ में स्त्री सशक्तीकरण / पुरबी कलिता

 शोध आलेख : मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास इदन्नमम में स्त्री सशक्तीकरण

- पुरबी कलिता


शोध सार : मैत्रेयी पुष्पा नई पीढ़ी की बहुचर्चित लेखिका है। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में स्त्री-सशक्तीकरण की भावना दिखाई देती है। नारी सशक्तीकरण में नारी ने अपने पृथक अस्तित्व, अपने अहं, अपने गौरव की अभिलाषा में पुरुष के स्वामित्व के समक्ष झुकने से इन्कार कर दिया है। नारी सशक्तीकरण नारी के प्रति होने वाले शोषण के विरुद्ध सशक्त विद्रोह है। मैत्रेयी पुष्पा ने अपने कथा साहित्य में नारी से संबंधित मूलभूत प्रश्नों को उठाकर उनके आलोक में बदलते परिवेश, बदलती स्त्री और बदलते मानदण्डों द्वारा नारी सशक्तीकरण को रेखांकित किया है। हिन्दी कथा साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षरों में से मैत्रेयी पुष्पा ने नारी चेतना और नारी सशक्तीकरण को लेकर एक उच्चकोटि का कथा साहित्य हिन्दी को दिया है। मैत्रेयी पुष्पा का इदन्नमम उपन्यास बहुचर्चित, बहुपठित और बहुपुरस्कृत रहा है। सन् 1994 में किताबघर प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ, जिसने मैत्रेयी को सुविख्यात लेखिका का दर्जा प्रदान किया।

 

बीज शब्द : सशक्तीकरण, मंदा, राजनीति, नारी आदि।

 

मूल आलेख : समकालीन हिन्दी कथा साहित्य में लेखिकाओं के आगमन के साथ ही नारी की स्थिति तथा नारी चेतना को उजागर कर बहुत कुछ लिखा जा रहा हैं। अपने आस-पास त्रासदी एवं शोषण भोग रहे चरित्रों के तनाव को आत्मसात कर साहित्य में उसे स्थान दे रही हैं। हर देश की नारी चाहे वह अनपढ़ हो या पढ़ी -लिखी, अमीर हो या गरीब, उच्चवर्ग की हो या निम्नवर्ग की, गाँव की हो या शहर की, किन्तु सभी जगह स्त्रियों की आँखों के आँसू बोलते हैं।

 

स्त्री लेखिकाओं ने अपने लेखन के अंतर्गत स्त्री की विभिन्न समस्याओं, उनके  शोषण की अभिव्यक्ति करते हुये, उनमें पैदा होती चेतना पर नजर डाली। इन लेखिकाओं ने स्त्री समाज को मुक्ति का मार्ग दिखाया। इन्होंने अपने स्त्री पात्रों के माध्यम से स्त्री मुक्ति के विविध साधनों से उसे अवगत कराया। उषा प्रियवंदा, कृष्णा सोबती, ममता कालिया, मृदुला गर्ग, प्रभा खेतान, चित्रा मुदगल, मैत्रेयी पुष्पा, अलका सरावगी, गीतांजलिश्री आदि अंतिम दशक की ऐसी लेखिकाएं हैं, जिनका लेखन स्त्री संघर्ष एवं स्त्री मुक्ति की वकालत करता है। इन्हें पूरा विश्वास है कि –समय जरुर लगेगा मगर सीमाएँ हटेगी- भोग्या और देवी के बीच पिसती हुई स्त्री के लिए आत्म सम्मानपूर्ण समाधान खोज ही लेगी। ”1

 

मैत्रेयी पुष्पा का कथा साहित्य समकालीन लेखिकाओं से वैचारिक दृष्टि से हटकर है। नारी विमर्श को ध्यान में रखकर समकालीन लेखिकाओं ने अपने साहित्य में विचार व्यक्त किये। किन्तु इन सभी लेखिकाओं में मैत्रेयी पुष्पा अपनी अलग पहचान खड़ी की है। वर्षों से नारी जिस तरह हमारे भारतीय समाज में उपेक्षित और दीन हीन वाली स्थिति में रही उसी स्थिति परिस्थिति से परिचय कराते हुये, मैत्रेयी पुष्पा हमारे समक्ष नारी की नवीन छवि को जन्म देती हैं। मैत्रेयी ने नारी जाति सम्बन्धित समस्त समस्याओं, कुप्रथाओं, रीति रिवाज, कानून, वैधता, अवैधता आदि को अपने उपन्यासों का आधार बनाया है एक नवीन विचारधारा के साथ। यही कारण मैत्रेयी पुष्पा अन्य उपन्यासकारों से अलग हटकर दिखलायी देती हैं। मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य में परम्परावादी विचारधारा को लेकर नारी विमर्श नहीं है बल्कि आधुनिक विचारों को व्यक्त करता नारी विमर्श है, जो साहित्य जगत में चर्चा का विषय बना है। उनके कथा साहित्य में भारतीय ग्राम्य समाज का वर्णन मिलता है। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों के पात्र अपने अधिकारों के प्रति सजग है। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास की मुख्य पात्र(स्त्रियाँ) हमेशा से स्वयं सिद्ध नायिकाएँ रही हैं, वह चाहे मंदाकिनी हो, सारंग हो, शीलो या फिर अल्मा या फिर अन्य कोई.....वैसी स्त्रियाँ जो हमारे  समाज और उसमें भी खासकर स्त्रियों के जीवन को बदलने का दम रखती हैं। अपने बल पर अपने जीवन चुनने-रचनेवाली, अपने दम पर समाज की दशा-दिशा को मोड़ने का दम रखने वाली सबल स्त्रियाँ। हालाकि यह सबलता उन्हें कोई बेमेल नहीं मिलती, इसके लिए उनका संघर्ष, उनकी बेचैनी, उनकी कश्मकश सब दुर्धर्ष होते हैं। 2

 

इदन्नमम विंध्याचल के तीन पीढ़ियों की कथा है। नारियाँ दुष्प्रवृत्तियों का शिकार होती हुई अपने अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़ती है। उपन्यास की केन्द्रीय पात्र मंदाकिनी एक ऐसी संघर्षशील युवती के रूप में सामने आती है जो परिवार और समाज द्वारा नारी के  लिए निर्मित बंधनों को तोड़ती है। समाज के कुछ कटु यथार्थ को लेखिका ने मंदाकिनी के संघर्ष के माध्यम से जीवंत अभिव्यक्ति प्रदान की है। मंदा की चरित्र में जीवटता है, साहस है, महत्त्वाकांक्षा और गजब का जुझारु व्यक्तित्व है। मंदा के संदर्भ में राजेन्द्र यादव का कहना है—महानगरीय मध्यवर्ग की संघर्ष करती और पाँवों के नीचे जमीन की तलाश करती कथा... नारियों के बीच गाँव की मंदा एक अजीब निरीह, निष्कवच, निष्छल दृढ़ संकल्प नारी का व्यक्तित्व लेकर उभरती है। ... उसकी लड़ाई दोहरी है, औरत होने की और वंचितों के अधिकारों की। ”3


            स्त्री विमर्श के क्षेत्र में मैत्रेयी पुष्पा का प्रमुख स्थान है। इनके उपन्यासों में सामाजिक परिस्थितियों और समस्याओं का ऐसा पटल है
, जिसमें ये परिस्थितियाँ और समस्याएँ अभिव्यक्ति पाती हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में इनके उपन्यास न केवल समाज, बल्कि जीवन का भी दर्पण है। उनके उपन्यासों के स्त्री चरित्र सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त होकर अपने जीवन को, अपने समाज को सुखदायक बनाने का प्रयत्न करती हैं। डॉ. निर्मला जैन ने अपने विचार व्यक्त करती हुई कहती हैं -कड़वी सच्चाई यह है कि पुरुष-प्रधान समाज में सदियों से महिलाओं का दमन और शोषण होता रहा है, समाज में उनकी भूमिका और उनकी सामाजिक हैसियत का निर्धारण पुरुष के द्वारा हुआ है। समाज के हाथों जो दर्जा स्त्री को दिया जाता है, वह किसी हद तक उसकी मानसिक बनावट का नियामक होता है। औपनिवेशिक मानसिकता इस पूरे प्रश्न को पुरुष के खिलाफ स्त्री या पुरुष बनाम स्त्री के ढाँचे में देखने की मजबूरी पैदा करती है। कुल जमा नतीजा यह होता है कि वह या तो पुरुष प्रदत्व परिभाषा में अपनी सार्थकता तलाशती हुई उसके समर्थन में खड़ी हो जाती है या विरोध में। इसलिए तमाम महिला-रचनाकारों ने इसी एंग्जाइटी ऑफ ऑथरशिप के मानसिक चौखटे में रचना कर्म को अंजाम दिया हैं। 4

 

मैत्रेयी पुष्पा  के कथा साहित्य की स्त्री चरित्र में सामाजिक सचेतनता विद्यमान हैं। मैत्रेयी पुष्पा  के उपन्यासों  के स्त्री चरित्र सामाजिक  रूढ़ियों से मुक्त होकर अपने जीवन को, अपने समाज को सुखदायक बनाने का प्रयत्न करती है। इदन्नमम उपन्यास में मंदा अपने पिता के अस्पताल का स्वप्न पूरा करने के लिए निरंतर संघर्ष करती है। गोपालपूरा, खमा, डिकोली, झकनवारा, आदि लगभग पन्द्रह गाँवों में खबर करा दी। पंचायत बुलाकर गाँवों की जनसंख्या दर्ज की। सभी प्रधानों के हस्ताक्षर लेकर अपनी समस्याएँ लिखी। बीमारियों और मृत्यु का भयानक हवाला दिया गया। उस क्षेत्र के एम.एल.ए. राजासाहब से गुजारिश की पर राजासाहब जैसे राजनेता नही चाहते है कि सोनपुरा में अस्पताल  बने। फिर भी मंदा की लड़ाई रुकी नहीं। राजासाहब को भी मंदा का साहस देखकर आश्चर्य होता है –कैसी जहरीली हँसी है लड़की की ! कमाल है, गाँव गाँव नेता हुए जा रहे हैं लोग। पुरुष तो पुरुष इस लड़की की हिम्मत---! न- कुछ उम्र में कैसी उँची बातें करती है।5 अंततः राजासाहब को भी उसके सामने झुकना पड़ा और अस्पताल  में डाक्टर इंद्रनील और कम्पाउंडर को भेज दिया गया।

 

हमारे समाज में सदियों से नारी पात्र जिस तरह से उपेक्षित रहा है और समाज व स्वयं नारी एक विकृत मानसिकता से जकड़े हुए प्रतीत होते है, स्त्रियों पर अनेक नैतिक तथा सामाजिक वर्जनाएँ लागू की गई। इस संदर्भ में फ्रांसिसी लेखिका सिमोन द बोउमार ने स्त्री जाति की नियति को इस तरह व्यक्त किया है -----औरत जन्म से ही औरत नहीं होती बल्कि बढ़कर औरत बनती है। कोई भी जैविक मनोवैज्ञानिक या आर्थिक नियति आधुनिक स्त्री के भाग्य की अकेली नियंता नही होती। पूरी सभ्यता ही इस अजीबोगरीब जीव का निर्माण करती है।”6 मैत्रेयी पुष्पा ने उस छवि को तोड़ा है। अपनी स्त्री पात्र के माध्यम से एक सशक्त एवं दृढ़ चरित्र की रचना भी की। यही कारण है कि मैत्रेयी पुष्पा अन्य महिला उपन्यासकारों से पृथक दिखलायी देती है और नारी जगत को नवीन दृष्टिकोण दिखलाती हैं। मंदा का उद्देश्य है ग्रामीण विकास। वह अकेले ही ग्रामीण समाज, शोषित वर्ग और आदिवासी मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष का अभियान चलाती है। गाँव - गाँव जाकर रामायण का अर्थ समझाती। मंदा सामूहिक संघर्ष में विश्वास करती है और उसके लिए लोकशक्ति को जाग्रत करती है। मंदा ने मजदूरों को उनकी मेहनत का महत्त्व और मुल्य समझाती है। फिर आगे बढ़कर अभिलाख सिंह जैसी शक्तिशाली ठेकेदार को चुनौती देती है—तो क्या करोगे तुम ! क्या कर सकते हो ?अभिलाख, बऊ ने मताई- बाप का हश्र सुना नहीं दिया, गुना भी दिया है। तुम सही-सलामत क्रैशर सलाते रहो, बस इस बात के लिए ठाकुर जू से भजन माँगते रहना, वह सिर झटककर रास्ता काटती हुई आगे बढ़ गई। 7

 

मंदा को आश्चर्य होता है कि समाज कल्याण हेतु उसके द्वारा संगठित शक्ति का गाँवों पर असर होने लगा है। मंदा का आत्मविश्वास बढ़ गयी। देखती है मंदाकिनी, गौर से देखती है उनका मुख। गौरवर्ण के प्रौढ़ मुख पर अपूर्व-सी आभा है। जैसे नए विहान की ओर बढ़ते हुए उनका मुख दमक रहा हो ! ऐसे जीवट की कामना तो की  थी मंदाकिनी ने, लेकिन कल्पना नहीं की थी कि अन्य गाँव भी उसके अभियान का इस कदर स्वागत करेंगे। ग्रामीण औरतें इस हिम्मत से सामने आ जाएँगी और जबर-पैसेवाले लोगों से भिड़ने-जूझने को आगे बढ़ चलेंगी। 8

 

मैत्रेयी पुष्पा ने मंदा जैसे युवती के रूप में उपन्यास यह प्रभाव छोड़ने में पूरी तरह सफल रहा है कि अब नारी शक्ति जाग उठी है। अब नारी सामाजिक ढाँचे को तोड़ती हुई न केवल वह अपने अधिकारों को सुरक्षित करेगी वरन समाज को नई दिशा में आगे बढ़ायेगी। मैत्रेयी पुष्पा ने मंदा के संघर्ष के द्वारा यह दिखाया है कि आज नारी अपने अधिकारों के लिए दृढ़ता व आत्मविश्वास अपने अंदर जगा चुकी है। मुक्ति की छटपटाहट निरंतर उसे संघर्ष के लिए प्रेरित कर रही है। पुरानी मान्यताओं को लकीरों को वह पार करने लगी है। तसलीमा नसरीन के अनुसार---जिस दिन यह समाज स्त्री शरीर का नही-शरीर के अंग-प्रत्यंग का नहीं, स्त्री की मेधा और श्रम का मूल्य सीख जाएगा, सिर्फ उस दिन स्त्री मनुष्य के रूप में स्वीकृत होगी।9 इदन्नमम की नारी पात्र मंदा और मैत्रेयी पुष्पा की अन्य उपन्यासों के नारी पात्र में कुछ अंतर दिखाई देती हैं। अन्य उपन्यासों के नारी जैसे—सारंग, अल्मा, शीलो, भूवन मोहिनी आदि अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया हैं। लेकिन मंदा की संघर्ष सदा समाज कल्याण है।

 

मैत्रेयी पुष्पा  के  उपन्यासों में राजनीतिक  चेतना सम्पन्न नारी  पात्रों में  प्रायः ऐसी ग्रामीण  नारियों  का चित्रण हुआ  हैं, जिनमें  वर्ग-संघर्ष  की  भावना तीव्र रूप से चिह्नित है। अपने अधिकारों  के प्रति सचेत होने के कारण उनमें  शोर्षक वर्ग  के प्रति विद्रोह  की भावना  है। इनके यहाँ  कुछ  नारी पात्र  सक्रिय तथा कुछ  निष्क्रय रूप से राजनीतिक क्रियाकलापों में भाग लेते हैं। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में यह  महसूस किया गया है कि यदि महिलाओं को निर्णयकारिता के स्तर पर पहुँचना सुलभ कर दिया जाए तो महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने में सरलता होगी। आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के विभिन्न  कार्यक्रमों को सम्पादित करने में भी महिलाओं को रचनात्मक क्षमता का सदुपयोग हो सकेगा। यह दृष्टिकोण भी सामने आया है कि महिला सशक्तीकरण के लिए महिलाओं को निर्णय करने की प्रक्रिया से जोड़ना होगा, चाहे  यह घर की चार दीवारों  में लिए जानेवाले निर्णय हो या सरकारी स्तर पर। अतः राजनीतिक  सहभागिता  को  बढ़कर महिला  सशक्तीकरण के प्रयासों को सार्थक बनाया जा सकता हैं। मैत्रेयी पुष्पा ने नारी को अधिक से अधिक राजनीति के साथ जोड़ने का प्रयास  किया हैं। उसका यह भी मानना है कि जिस नारी के पास सत्ता हैं वो अपने अधिकार  का उपयोग करें। कितनी ही स्त्रियाँ सत्ता में आने के बाद यह देखने को मिलता है कि- समाज से लेकर राजनीति तक यह बात अक्सर देखने में आती है कि औरत आदमी के स्वर में स्वर ही मिलाती है। वह पुरुष चाहे पति हो, बेटा हो या प्रेमी हो, वह मर्दाने पक्ष में झुकी रहती हैं, वकील की तरह भी और लठैत की तरह भी। यह सब नहीं दिखता हमें तो वह ऐसी ही मालिक हो जाना चाहती हैं, जैसा की मर्द होता है। वह हर हाल में पुरुष की नकल करती है। 10

मैत्रेयी पुष्पा  अपने उपन्यासों में कुछ ऐसे स्त्री पात्र सामने लाती है जिन्होंने भ्रष्ट राजनीति, राजनेताओं, वोट की राजनीति, धोखाधड़ी करनेवाले राजनेताओं के खिलाफ संघर्ष का अभियान चलाती है। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर दस्तक देते भारतीय ग्रामीण परिवेश का दर्पण है। मैत्रेयी ने गाँव की गंदी राजनीति को करीब से देखा है। उसी राजनीति में गाँव की औरतों को खड़ी करती है। इदन्नमम उपन्यास की स्त्री पात्र मंदाकिनी राजनीतिक व्यवस्था के साथ संघर्ष करती है। वह पाँचवी कक्षा तक पढ़ी हुई है, फिर भी एम.एल.ए.राजासाहब को भी झुकने के लिए मजबूर करती है । गाँव वालों ने मंदा का साथ दिया। अंत में गाँव की मंदा ने राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर की लोकतांत्रिक प्रणाली में गाँव का अस्तित्व सिद्ध किया।

 

मैत्रेयी पुष्पा ने अपने कथा साहित्य में स्त्रियों को न्यायतंत्र के विरुद्ध लड़ते हुए प्रदर्शित किया है। इदन्नमम उपन्यास के कथा क्षेत्र सोनपुरा, श्यामली आदि लगभग 15 गाँवों की माटी से जुड़ा है। यह सभी गाँव अत्यंत पिछड़े और राजनेताओं के वक्र दृष्टि का शिकार हैं। सोनपुरा गाँव की लड़की मंदा सर्वप्रथम अपने पिता का सपना पूरा करने की कोशिश करते है। पचांयत बुलाकर गाँवों की सभी प्रधानों के हस्ताक्षर लेकर गाँव की जनसंख्या दर्ज की और अपनी परेशानियाँ लिखी। इस क्षेत्र के एम.एल.ए. राजासाहब है। मंदा तय किया कि----अबकी बार हम किसी आफिस में नहीं, सीधे राजा साहब के पास भेजेंगे अपना प्रार्थना पत्र। प्रधान काका और कायलेवाले महाराज इसे ले जाएँगे स्वयं अपने हाथो। राजा साहब यहाँ के एम.एल.ए. है। मन्त्री है। प्रतिनिधि हैं। जिम्मेदार है। यह कहो कि भाई-बाप हैं इस क्षेत्र के। कुछ-न-कुछ सोचेंगे अवश्य।11  लेकिन मंदा क्या जाने राजनीति क्षेत्र का षड़यंत्र। इस बात पर महाराज टीकमसिंह ने मंदा को समझाने लगे कि----राजकाज में तेजी लाना अपने हाथ की बात नहीं। वे लोग अपने तरीके से करतें हैं हर काम। नौकरशाह और राजनेताओं के हाथ का खिलौना हो गया है हमारा जीवन। यहाँ प्रजातन्त्र नहीं, शोषणतन्त्र लागू है। 12तब मंदा ने निश्चय किया राजनेताओं को सही रास्ते में लाने के लिए एक ही उपाय है चुनाव में वोट न डालने का निर्णय। मंदा ने राजनेताओं को चुनौती देती है ---सो क्या करें? अबकी बार ठान लिया है कि हम कहे की नही करे की परतीत करेंगे। और अगर नही तो ऐन खाली उठा ले जावें पेटी आपके आदमी। वोट नही पड़ेगा एक भी। 13 अंत राजा साहब को उसके सामने झुकना पड़ा और मंदा अपनी मंजिल तक पहुँच गयी।

 

मैत्रेयी पुष्पा के रचनाओं की स्त्री भले ही गाँव की है, किन्तु वह अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जीना चाहती है। आधुनिक नारी आज नई संकल्प-शक्ति  के साथ जीने लगी है। अपने अधिकारों के प्रति वह सचेत हो चुकी है। निर्मल वर्मा के अनुसार ----नारी अपने अधिकारों की इच्छा करे, अधिकारी भी बने, अधिकारी के इच्छुक व्यक्ति को अधिकारी भी होना चाहिए। 14

 

मंदा की दूसरी लड़ाई है गाँव में स्कूल स्थापना। मंदा देख रही है कि स्कूल होते हुए भी दूसरे स्कूल खोले जा रहे है। उधर जहाँ स्कूल नही है, जहाँ जिसकी जरुरत है वहाँ  खोले जाने के संदर्भ में कोई चर्चा नही। मंदा कहती है-----अबकी बार हम भी ऐन चेतन्त हैं। वे बेईमानी से नहीं चूक रहे तो हम ईमानदारी से क्यों चुकें। देखते हैं, ये कितनी चालाकी चलते हैं हमारे साथ। अपनी आँखों देखकर आए है हम। मबूसा गए थे, रिश्तेदारी है हमारी। वहाँ एक स्कूल होते हुए भी उसके बराबर में दूसरा बन गया। हमने पूछा, भइया, तुम्हारे गाँव में यह दूसरा स्कूल ? बोल, पहला खारिज कर दिया ओवरसियर ने और प्रधानजी ने। अब यह मिलीभगत ही तो एसा अन्धेर कर रही है हमें सो ऐन  उजागर हैं। कहनेवालों ने भी हमें बता दिया कि पन्द्रह प्रतिसत कमीसन लिया है ओवरसियर ने। कुछ ऊपर भी  पहुँचाया होगा, ऊपरवालों ने और ऊपर। और एम.एल.ए. जी के लिए सत प्रतिसत वोट। 15 मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी रचनाओं में यह समाचार दिया है कि –भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, अकर्मण्यता, अवसरवाद, स्वार्थलिप्सा आदि से सरकारी व्यवस्था जर्जर बन चुकी है।

 

राजनीति के द्वारा समाज का कल्याण संभव होता है। राजनीतिक चेतना का अर्थ ही है----वह चेतना जो मनुष्य में अपने हक, अधिकार और कर्तव्यों का निर्धारण करे। राजनीतिक चेतना द्वारा ही मनुष्य समाज, राज्य, राष्ट्र यहाँ तक कि विश्व में अपना इच्छित स्थान निरूपित करता है। चेतना ही राजनीति को संयमित, अनुशासित और कल्याणकारी बनाती है। 16

 

महिला सशक्तीकरण के लिए महिलाओं को निर्णय करने की प्रक्रिया से जोड़ना होगा, चाहे यह घर की चार दीवारों में लिए जानेवाले निर्णय हो या सरकारी स्तर पर। अतः राजनीतिक सहभागिता को बढ़कर महिला सशक्तीकरण के प्रयासों को सार्थक बनाया जा सकता है। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में यह महसूस किया गया है कि यदि महिलाओं को निर्णयकारिता के स्तर पर पहुँचना सुलभ कर दिया जाए तो महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने में सरलता होगी। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास चाक में सारंग, ‘अल्मा कबूतरी में अल्मा ने चुनाव तंत्र में भाग लिया है, परंतु इदन्नमम कुछ अलग है। यहाँ स्त्री पात्र भ्रष्ट राजनेताओं के विरुद्ध खड़ा होकर पुरुष सत्ता की राजनीतिक षड़यंत्र का पर्दाफाश किया है।

 

इदन्नमम उपन्यास में मैत्रेयी पुष्पा ने राजनीति का एक ऐसा चेहरा सामने लाया है जो आदिवासी, मजदूरों जैसा पिछड़े लोगों को वोट बैंक के सिवाय कुछ नही मानता है। इन बरसों से चली आयी व्यवस्था को बदलने की कौशिश मंदा करती है। मैत्रेयी ने अपने उपन्यासों में वोट की राजनीति करनेवाले राजनेताओं और उनके गिरोहों का पर्दा फाश किया हैं। डॉ. क्षितिज धुमाठ्ठ के राष्ट्रों में ----चुनाव घोषित होने पर नेता लोग अपने-अपने चुनाव क्षेत्र के दौर करके मतदाताओं की स्थिति का अंकन करते हैं। आज लोक प्रतिनिधि को ग्राम का विकास न करने पर प्रश्न पूछने वाले मतदाता निर्माण हो चुके हैं। निष्क्रिय उम्मीदवार को वोट देने से इन्कार करते हैं। इस उपन्यास के राजासाहब की भी यही स्थिति होने के कारण वे रात-बे-रात चुनाव क्षेत्र का दौरा करते हैं, वे कायले वाले महाराज से मिलने सोनपुरा आते हैं, सोनपुरा के लोग उनकी निष्क्रियता पर आलोचना करते हुए आने वाले चुनाव में मतदान पर बहिष्कार करने की सूचना देते हैं। 17मंदा ने लोकशक्ति को जाग्रत करती है और राजनीति के वोट बैंक को बंद करना चाहती है। इसके लिए  सोनपुरा के आसपास के गाँवों में  दौर करती है। उसके  दौर तेजी पकड़ने  लगे। नरसिंहतगढ़, खमा, डिकौली के अलावा पहाड़ो पर लगे क्रैशरों पर जाना होता है। प्रत्याशियों के कार्यकर्ता सौ-पचास रुपए या अद्धा बोतल शराब दो-चार दिन लगातार पिलाकर भरमा ले जाएँगे उन्हें। गोपालपुरा की ठाकुराइन को लेकर वह गाँव-गाँव गई, पहाड़ियों पर फिरती डोली। समझाया कि वोट नही देना है तुमको, लालच में नही आना है किसी भी तरह। 18

 

मंदा ने जनमानस को जाग्रत करके राजनेताओं को चुनाव पर बहिष्कार कर अपना संघर्ष आरंभ करती है। गाँव के लोगों को वह वोट की दलाली करने से सावधान रहने की बातें समझाती है। मंदा ने गाँवों में सलाह करके गोपालपुरा में  वोट की राजनीति के संदर्भ बैठक बुलाकर जनसाधारण को सावधान किया। सुख-दुख, लाभ-हानि, खुशी-गमी हमें नही व्यापती, हम तो इनके इस्तेमाल की चीज हैं, जिसे वे चाहे जब प्रयोग करें, चाहे जब खारिज कर दें। मुँह देखा, नासमझ दीन-हीन है, चाहे तो भीख दें, चाहें तो हाथ खींच लों। वे गुड़ डालेंगे, हम चोटों की तरह इकटठे हो जाएँगे। 19

 

मैत्रेयी पुष्पा ने अपने चिंतनपरक लेखन द्वारा पुरुष सत्ता की राजनीतिक षड़यंत्र का पर्दाफाश किया है। उनकी ग्रामीण नारी आंचलिक भूमि पर संगठित होकर स्त्री शक्ति के रूप में विकसित होती  है और अंत में राजनीतिक जीवन में प्रवेश करती दिखाई देती है। अपने स्वतन्त्र अस्तित्व के प्रति जागरूक नारी राजनीति में अत्यन्त सफल दिखाई देती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री अपने व्यक्तित्व को स्थापित कर रही है।

 

निष्कर्ष : मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास की नारी पात्र शक्ति, विद्रोह के प्रतीक रूप में गढ़ी गई है। जहाँ पराजय, हताशा और कुंठा के बावजूद स्वप्न और सृजन की अनगिनत सम्भावनाएँ है। मंदा के माध्यम से इस दो मुँहे समाज को यही संदेश दिया है कि जिस प्रकार पुरुष के हर अपराध व पाप समाज में क्षम्य माने जाते है उसी प्रकार स्त्री भी अपने छोटे से अपराध  को अक्षम्य मान  अपने को स्वाहा  न कर समाज से अपने हर अधिकार  मांगने चाहिए। मैत्रेयी पुष्पा के स्त्री पात्र स्वयं की व्यक्तिगत लड़ाई के बदले सामाजिक तथा  सामूहिक  संघर्ष भी लड़ते है। उनकी नारी चरित्र वर्चस्व को चुनौती देकर अपनी अलग राहों के ऐलान और अन्वेषण में स्त्री सशक्तीकरण  का महती स्वप्न तैयार करती है। मैत्रेयी पुष्पा के इदन्नमम उपन्यास में ग्रामीण परिवेश व प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद नारी की महत्त्वपूर्ण और गरिमामय भूमिका की प्रतिष्ठापना हुई। मंदा अपने सारें निर्णय स्वयं लेती है। बलात्कार जैसी घटना से वह टूटती नही अपितु अपना प्यार ठुकराकर दूसरों की भलाई करने के रास्ते में चल पड़ती है। गहरे अच्छवासों के बीच तेज गति से चल दी मंदाकिनी। किसी की पदचाप अब भी उसके पीछे है। 20

 

संदर्भ :

1.चित्रा मुदगल, ‘एक जमीन अपनी’, पृःसः83

2.हंस, सितम्बर 2006, पृ. 89

3.पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृःसः भूमिका के उद्धरण से।

4.डॉ0 निर्मला जैन, ‘लेख-कथा और नारी संदर्भ’, जुलाई, 1994, पृ. 40

5.पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  354

6.द सेकेण्ड सेक्स’, सीमोन द बोउवार का हिन्दी रूपांतर, डॉ. प्रभा खेतान द्वारा, हिंद पाकेट बुक्स, दिलसाद गाडेंन्स, संस्करण 1998, पृ. 121

7. पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  264

8. पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  265

9.नसरीन तसलीमा, अनुवाद, मुनमुन सरकार, ‘औरत के हक में’, पृ.  99

10. पुष्पामैत्रेयी, ‘गुनाह -बेगुनाह’, राजकमल प्रकाशन, संस्करण 2012, पृ. 124-125

11. पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  192

12. पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  206

13. पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  354

14.वर्मा निर्मल, ‘महादेवी एक मूल्यांकन’, लोकभारती  प्रकाशन, इलाहाबाद (1969), पृ.  208

15. पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  265

16.डॉ. सरोज यादव, ‘हिन्दी के आँचलिक उपन्यासों में राजनीतिक चेतना’, पृ. 30

17. डॉ. क्षितिज धुमाठ्ठ, ‘बीसवी सदी के अंतिम दशक के हिन्दी उपन्यासों का प्रवृतिमूलक अनुशीलन’, पृ.

132

18. पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  409

19.  पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.  409

20. पुष्पा मैत्रेयी, ‘इदन्नमम’, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी संस्करण (2012), पृ.

 

पुरबी कलिता

शोधार्थी हिन्दी विभाग असम विश्वविद्यालय, सिलचर

8638247885


अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च  2022

UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )

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