मास्टर का मतलब सिर्फ पढ़ाने वाला भर नहीं होता-2
यह संस्मरण
कामरेड रोशन अली को समर्पित करता
हूँ। कामरेड रोशन अली ने मुझे ‘असली प्रतापगढ़’ से परिचित करवाया। इस
दिहाड़ी मजदूर ने जो मजदूरों के संघर्ष के लिए हमेशा तत्पर रहता था उसने कोरोना की
पहली लहर और सख्त लॉकडाउन के समय शहर के मेहनतकश लोगों के एक-एक घर की तकलीफ से
मुझे रूबरू करवाया। आम आदमी की खिदमत में इतने लीन हो गए कि कोरोना ने उनको कब घेर
लिया उसका पता ही नहीं चला। अंत में इस बीमारी ने कामरेड को हमसे छीन लिया।
कामरेड! आपको क्रातिकारी लाल सलाम।
पहले भाग में
लॉक डाउन की घोषणा, सरकारी
सर्वे, बदहाल ग्रामीणों की हालत, उनके लिए मित्रों द्वारा भेजी गई मदद,
अनाज बैंक का विचार और उस विचार का जिले स्तर पर प्रशासन द्वारा
प्रयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। यह कार्य करते वक्त ऐसा तो हो नहीं सकता कि जिस
शहर से मैं आ रहा था, वहाँ
के हालात से अनजान रहूँ। सोशल मीडिया पर अकसर कई तरह की पोस्ट देखता था जिसमें
स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा वंचित लोगों को जरूरी सामान उपलब्ध करवाने की
जानकारियाँ होती थीं। प्रशासन की शहरों में पकड़ भी अधिक होती है, इस कारण भी कई जगह वितरित हो रही सामग्री का विवरण अकसर अखबारों में
पढ़ने को मिल जाता। कई शिक्षक संगठन जिसमें रेसला प्रतापगढ़, अंबेडकर शिक्षक संघ, शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) प्रमुख नाम है,
आपसी सहयोग से चंदा इकट्ठा कर जरूरतमंदों को पका-पकाया खाना पहुँचा
रहे थे। इस काम में कुछ स्वयंसेवी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता भी लगे हुए थे।
3
अप्रैल को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पूर्व कंट्रोलर और
एक्टु मजदूर संगठन के नेता शंकर जी चौधरी का फोन आया,
उन्होंने कहा, “आप जो मनोहरगढ़ में सामग्री वितरित कर रहे हैं, वह एक बहुत बेहतर योजना है। प्रतापगढ़ शहर के कई क्षेत्र हैं जहाँ पर
ऐसी सहायता की बहुत ज़रूरत है। रंगास्वामी बस्ती,
बगवास कच्ची बस्ती, तलाई मोहल्ला और वाटर वर्क्स रोड के क्षेत्रों के कई घरों तक
पर्याप्त सहायता सामग्री नहीं पहुँच पा रही है। आप किसी तरह से इन लोगों की मदद
करने का प्रयास करें। किन-किन क्षेत्रों में मेहनतकश लोग रहते हैं, इनकी जानकारी आपको कामरेड रोशन अली (एक्टु मजदूर संगठन के
कार्यकर्ता) दे देंगे।” मैंने गिरधारी लाल जी के सामने यह बात रखी। गिरधारी लाल जी जिला
कलेक्टर कार्यालय से सीधे जुड़े हुए थे। उनके पास भी कई जरूरतमंद लोगों की सूचियाँ
आ रही थी। उन्होंने कहा कि आपके पास इतने संसाधन नहीं हैं। इतने लोगों की हम मदद
कैसे करें? हां अगर प्रशासन और लोग मदद करें तो काम बन सकता है। मैंने कहा कि जो
भी हो हमें कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा,
इस तरह हाथ पर हाथ रखकर हम बैठ भी नहीं सकते। कई मित्रों के फोन
लगाये। उनसे सलाह मशवरा लिया। एक आम राय बनी कि शहर के धनाढ्य वर्ग से आर्थिक
सहायता लेने का प्रयास करें। हमारी स्कूल के कार्मिक दिनेश जी पंचोली ने सलाह दी
कि इन-इन पूंजीपतियों से आप संपर्क करके चंदा ले सकते हैं। गली-गली घूमकर
जीवन में कभी भी चंदा नहीं मांगा था। चलो यह अनुभव भी लिया जाए। कामरेड रोशन और
गिरधारी लाल जी के सहयोग से शहर के धनाढ्य सूची बनाई और तीनों निकल पड़े।
सबसे पहले हमारे आसपास यानी नई आबादी क्षेत्र के घोषित दानदाताओं के पास पहुँचे। कुछ नहीं मिला। फिर वेलोसिटी पहुँचे। वहाँ मौजूद दानदाताओं से हमने अपनी बात कही। पहले दानदाता ने यह कहा कि हमने पर्याप्त सामग्री पहले से ही जिला मुख्यालय के रसद विभाग को पहुँचा दी है और वे अपने हिसाब से वितरित कर
कॉमरेड रोशन अली |
साथियों की सलाह मानकर हमने चंदे की मुहिम उसी क्षण छोड़ दी। कामरेड रोशन और मैंने मिलकर अबएक नई रणनीति बनाई। दो दिनों में उन परिवारों को चिह्नित करना है जिनको सामग्री की सख्त ज़रूरत है। अगले दिन यानी 4 अप्रैल, 2020 को ही हम दोनों ने सर्वे शुरू कर दिया। सर्वे का समय सुबह 10:00 बजे से 2:00बजे तक का रखा गया। इसके बाद मुझे मनोहरगढ़ क्षेत्र में जरूरतमंदों और पैदल चलते मजदूरों को सामग्री बांटने के लिए जाना होता था। सुबह का समय सामान खरीदने के लिए निश्चित था।
सर्वे का श्री गणेश हायर सेकेंडरी स्कूल की दाहिनी तरफ बसी गजानन कॉलोनी से हुआ। दिहाड़ी मेहनतकश लोगों की बस्ती। कामरेड रोशन अली गलियों से परिचित कराता हुआ एक-एक दरवाजे तक लेकर गया और उनकी जानकारी हासिल की। सर्वे का पैमाना कुछ इस प्रकार था -
“घर के मुखिया का क्या नाम है?
घर में कुल कितने सदस्य हैं?
राशन कार्ड कौन सा है?
क्या घर में सप्ताह भर का राशन है?
परिवार के मुखिया के नाम के अलावा किसी भी प्रकार की निजी जानकारी नहीं ली गई। किसी भी प्रकार का कोई कागज या प्रमाण भी नहीं मांगें। यह कार्य आपसी विश्वास पर आधारित था। गरीबों की इस बस्ती के लोग पूरी इमानदारी से अपनी जानकारी दे रहे थे। लगभग 70 घरों की इस आबादी में सिर्फ 15 परिवार ही जरूरतमंद निकले। दोपहर को घर पहुँचकर विचार करने लगा कि सर्वे तो कर रहा हूँ, पर आखिर सामग्री आएंगी कहाँ से? उम्मीद केवल अपने उदयपुर, भीलवाड़ा के शोधार्थी मित्र, शंकर जी और उनकी टीम पर टिकी थीं। पहले दिन ही कड़ाके की धूप ने मन में यह द्वंद्व पैदा कर दिया कि आखिर कितने दिन और धूप में तपना पड़ेगा। क्या यह कार्य सफल होगा? पता नहीं। जो होना होगा, होता रहेगा। मैं प्रयास में कमी क्यों छोड़ू? या फिर रूहअफजा शरबत पी कूलर चलाकर सो जाऊं?
सर्वे खत्म कर
और मनोहर गढ़ में सामग्री बांटकर जब घर पहुँचा तो एक संस्था में काम करने वाले
मित्र का कॉल आया “हमें
जानकारी मिली है कि आप प्रतापगढ़ शहर में भी जरूरतमंद लोगों को सामग्री देने के
लिए सर्वे कर रहे हैं। हमारी संस्था भी ऐसे लोगों को सामग्री बांटेगी। इसके लिए आप
सर्वे कीजिए। आप जमीनी स्तर पर जाकर लोगों से मिल रहे हैं,
इसीलिए आप का सर्वे ज्यादा प्रामाणिक होगा।”
इस कॉल ने मेरे पंख लगा दिए। अकसर मेरे साथ ऐसा ही होता है। जब काम
करने के लिए निकलता हूँ तो मदद के लिए बहुत से जाने-अनजाने हाथ बढ़ जाते हैं। अगले
दिन कामरेड रोशन के साथ वॉटर वर्क्स रोड की तरफ पहुँचा। यह क्षेत्र मिश्रित
अर्थव्यवस्था वाला क्षेत्र हैं। यहाँ पर नौकरी पेशा भी है,
कोई व्यापारी तो कुछ दिहाड़ी मजदूर। लगभग दो दिन इसके सर्वे में लगे।
कड़ाके की धूप में हमारा सर्वे लगभग 1:00 बजे तक चलता। अमन नगर के क्षेत्र में जानकारी मिली कि कुछ लोग राशन
पहुँचा गए हैं। पर यहाँ पर भी असमान वितरण था। इसी के पास सुदामा नगर और चमारों की
गली वाले क्षेत्र में जानकारी मिली कि यहाँ रोज एक समय बना बनाया खाना मिलता है।
पर यहाँ पर आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पा रही है। सूखी सामग्री अगर हो
तो हमें कुछ फायदा पहुँचा पाएगी। सर्वे के दरमियान इस क्षेत्र में कुछ लोग हम पर
बहुत नाराज हुए। कुछ तो धमकाने लगे, क्योंकि इनके पास खाद्य सामग्री का बहुत अभाव था। कई लोगों ने
नाराजगी में हमारे मुँह पर दरवाजे बंद कर दिए। गालियाँ अलग से बकी। इन सब को सुनते
रोशन अली और मैं अपने काम में लगे रहे।
सबसे ज्यादा
विसंगति और शिकायतें बगवास कच्ची बस्ती से मिली। यह पूरा क्षेत्र मिक्स आबादी वाला
मेहनतकश लोगों का क्षेत्र है। यहाँ शिकायत मिली कि पके-पकाए भोजन का वितरण असमान
तरीके से हो रहा है। कुछ ने भेदभाव का भी आरोप लगाया तो किसी ने कहा कि सरकारी
नुमाइंदों ने हमारी सुध तक नहीं ली। यह पूरा क्षेत्र झोपड़पट्टियों से आबाद है।
इसके पास ही रंगास्वामी बस्ती है। उसकी दशा भी कुछ ऐसी ही है।
यहाँ से फ्री
होने के बाद रोशन भाई को जब उनके घर छोड़ने के लिए तालाब खेड़ा जा रहा था तो
रास्ते में लौटते वक़्त तलाई मोहल्ला की रुस्तम गली वाले क्षेत्र पर नजर पड़ी। यह
शहर का वह भाग है जहाँ कई लोग झुग्गी झोपड़ियों में कचरे के ढेर और भयानक गंदगी
में रहते हैं। अगले दिन सर्वे करते हुए एक ऐसे इलाके में पहूँचा जो तंग गलियों से
घिरा हुआ था। यहाँ पर कुछ लोगों की अलग ही समस्या सामने आई। उन्होंने बताया, “उत्तर प्रदेश से उनके यहाँ पर 12-15
मेहमान आए हुए हैं। अब उनके लिए खाने की व्यवस्था के साथ रहने की
व्यवस्था करना बहुत मुश्किल हो पा रहा है। राशन भी लगभग खत्म हो चुका है और पड़ोसी
भी अब नहीं दे रहे हैं। आप मेहरबानी करके इन अतिथियों को वापस इनके घर भेजने की
मेहरबानी करिए।” आश्वासन देकर मैं वहाँ से बच निकला। सर्वे की लिस्ट बना बना कर उस
स्वयंसेवी संस्था के लोगों को भेजता रहा। उनके द्वारा भी कई अलग-अलग लोगों द्वारा
प्राप्त लिस्ट को संशोधित करने का काम मिलता रहा। इस काम को पूरा करने में अक्सर
रात की 1:00 बजना आम बात थी। सुबह 8:00 बजे फिर से मोर्चे पर तैनात हो
जाता। तालाब खेड़ा का सबसे आखिर में नंबर आया। इस क्षेत्र में अक्सर वे लोग रहते
हैं जो ठेले से जुड़े अपने कारोबार करते हैं जैसे पानी पुरी, चाय नाश्ता, हमाली, आइसक्रीम, जूस का ठेला आदि। बिखरे हुए घरों की यह आबादी मिक्स आबादी है, यानी सभी समुदाय के लोग यहाँ रहते हैं। रोशन भाई का मकान भी यहीं पर
है। इस पूरे सर्वे में लगभग 7 दिन लगे। सर्वे के बाद रोशन भाई और हम लोग संतुष्ट थे कि चलो अब इन
लोगों तक जरूरी सामग्री पहुँच जाएगी।
पर हम सभी यह
जानते हैं कि जैसा हम सोचते हैं, अक्सर वैसे का वैसा नहीं होता है। कई बार ऐसी ऐसी घटनाएं या ऐसे
नजारे देखने को मिलते हैं जो हमारी पूर्व धारणा के विपरीत होते हैं। हमारी मेहनत
हमारे सारे प्रयास असफल हो रहे होते हैं और हम खड़े-खड़े देखने के अलावा कुछ नहीं
कर सकते। ऐसे में दोष किसे दिया जाए, यह तय कर पाना बहुत मुश्किल होता है। क्योंकि जिन्होंने पूंजी उपलब्ध
करवाकर लोगों तक सामग्री पहुँचाने की व्यवस्था की,
उनकी टीम उस सामग्री का इस्तेमाल किस तरह करती है और किन लोगों तक
पहुँचाती है, यह नीचे के चैनल पर निर्भर करता है। संस्था और संस्थाओं के लोग
सरकारी नियमों के साथ-साथ कई तरह के राजनीतिक दबाव से भी घिरे रहते हैं। उन्हें
सभी का दिल रखना होता है। न चाहते हुए भी उन्हें
‘तनी हुई रस्सी पर' एक बैलेंस बनाते हुए चलना पड़ता है।
जहाँ तक मुझे
याद है 9 अप्रैल से राशन सप्लाई का काम शुरू हुआ। एसडीएम साहब ने इस वितरण के
लिए उस संस्था के साथ मुझे भी लगाया। कामरेड रोशन को इस काम में नहीं लगाया गया, क्योंकि वह न तो सरकारी कर्मचारी था और न संस्था का कोई सदस्य। वह
अपने घर पर ही इस आस में इंतजार करता रहा कि सामग्री हमारे द्वारा बनाई गई लिस्ट
के अनुसार भी बँटेगी और हो सकता है, हमारे क्षेत्र तालाब खेड़ा में भी आएगी। पर उसका इंतजार इंतजार ही रह
गया।
गाड़ी पॉश इलाके
में जाकर रुकी। वहाँ किराए पर रहने वाले लोगों को सामग्री वितरित की गई। कुछ लोग
ऐसे भी थे जो कई बसों के मालिक होने के बावजूद उनके नाम लिस्ट में थे और निर्लज्ज
होकर सामान ले गए। सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि कुछ लोगों ने लिस्ट में नाम
होने के बावजूद सामान लेने के लिए मना कर दिया क्योंकि उनके अनुसार उनके घर में
सामग्री मौजूद है। इन खट्टे मीठे अनुभव से गुजरते हुए गाड़ी गाड़िया लोहार की तरफ
बढ़ी। गाड़िया लोहार परिवार वालों की काफी संख्या थी,
पर इन लोगों ने सिर्फ पांच किट लेकर और लेने से मना कर दिया।
उन्होंने बताया कि महाराज हमारे पास सामग्री पहले से आई हुई है हमें और ज़रूरत नहीं
है। मैं मन ही मन उन लोगों को गालियाँ देने लग गया जो साधन-संपन्न होने के बावजूद
राशन लेने के लिए एक पाँव पर खड़े थे। और इन गाड़िया लोहार पर बलिहारी होने का मन
हुआ। इस तरह पहले दिन का वितरण खत्म हुआ।
अगले दिन हमने
कुछ अलग योजना बनाई। सामग्री बांटते समय अक्सर भीड़ हो जाती थी जो कोविड-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन था । इस को ध्यान में रखते हुए हमने अगले दिन
कलेक्ट्री के पास वाले क्षेत्र में अलग-अलग घेरे में राशन के किट रख दिए और कुछ
लोगों को बुलाकर उनको वितरित किए। यह क्षेत्र भी किरायेदारों से भरा पड़ा था। यहाँ
पर भी दिहाड़ी मजदूर और छोटी-मोटी नौकरियाँ करने वाले लोग रहते थे। पर कहने का
अभिप्राय यह है कि यहाँ पर भी कुछ मात्रा में बंदरबांट हुई तो किसी ने ईमानदारी
दिखाते हुए राशन लेने से मना कर दिया। कलेक्टर आफिस के सामने रंगास्वामी नाम की एक बस्ती है। उस बस्ती में
अधिकतर मकान झुग्गी झोपड़ियों में है। लगभग सौ घरों की बस्ती वाले इन लोगों ने
मुश्किल से 10 किट अपने क्षेत्र में वितरित करवाए होंगे। बाद में यह कहकर सामग्री
लेने के लिए मना कर दिया कि सभी के पास सामग्री पहुँच चुकी है।
सबसे ज्यादा
मशक्कत कलेक्ट्री के गेट के सामने डेरे वाले लोगों को नियंत्रण करने में हुई। लंबी
लाइन लगाने के बावजूद लोग राशन घर पर पहुँचाकर फिर से दूसरे सदस्य को लाइन में लगा
देते हैं। इनकी निगरानी के लिए हमें बहुत चौकस रहना पड़ा। समझ में नहीं आ रहा था
कि हम राशन बांट रहे हैं या फिर किसी प्राइमरी कक्षा के विद्यार्थियों के झुंड को
मिठाई बांट रहे हैं। पुलिस वालों को खूब लट्ठ सड़क पर बजाने पड़े। डेरों की तलाशी भी
लेनी पड़ी। तलाशी और सख्ती के बाद जब यह निश्चित हो गया कि सभी के पास बराबर
सामग्री पहुँच गई है, तब
हमारा कारवां फिर बगवास कच्ची बस्ती की ओर गया। दिल में खुशी हुई कि अब जिन लोगों
का सर्वे मैंने किया, उन
लोगों तक सामग्री पहुँच पाएगी। पर यह धारणा फिर निर्मूल साबित हुई। यह सामग्री
बगवास कच्ची बस्ती का एक हिस्सा जिसे कुछ लोग जबरिया कॉलोनी भी कहते हैं को छोड़कर
दूसरे क्षेत्र में बांटी गई। जब मैंने साथियों से कारण पूछा तो बताया कि यहाँ
सरकार के द्वारा जो लिस्ट आई हुई है, उसी के अनुसार सामग्री बांट रहे हैं। मैं उनकी मजबूरी और नियमों को
समझ कर खामोश रहा। साथियों ने आश्वासन दिया कि हो सकता है कल हम वापस इधर आए हैं
तब शायद सामग्री बाटेंगे।
घर पहुँचकर बहुत
उधेड़बुन में पड़ गया। सोच रहा था कि आखिर संस्था वालों ने मुझे क्यों अपने लिए
सर्वे करने को कहा। मैं उनके पास भी नहीं गया उन्होंने ही आग्रह किया था बाकी मैं
तो अपना काम अपनी सीमा तक कर ही रहा था। जो जमीनी स्तर पर सर्वे करवाया था उसकी
लिस्टें कहाँ है। क्यों मुझे बरसती आग में तपाया? अपनी यह पीड़ा किसे बताता? समझ नहीं आ रहा था। इस पूरे काम की जानकारी डॉ. मनीष रंजन को थी।
कोरोना काल में इस सर्वे और वितरण को लेकर हो रही हर गतिविधि की लंबी चर्चा रोज
मोबाइल पर सर के साथ होती। कल क्या करना है,
इसकी भावी रूपरेखा भी अक्सर हम मिलकर बनाते। सो उनके सामने ही अपना
दुखड़ा सुनाकर सो गया। अगले दिन तलाई मोहल्ला क्षेत्र में सामग्री वितरण का आदेश
था। इस बार मेरी आशा कुछ हद तक सही साबित हुई। साथियों ने सरकारी लिस्ट के साथ-साथ
मेरी लिस्ट को भी समाहित किया। तलाई मोहल्ला की रुस्तम गली का क्षेत्र जो झुग्गी
झोपड़ी से घिरा हुआ है, वहाँ एक-एक दहलीज पर जाकर हमने सामग्री बाटी। यहाँ बुला बुलाकर
सामग्री देना मुनासिब नहीं था, क्योंकि तंग गलियों से घिरा हुआ यह क्षेत्र कोविड-19 प्रोटोकॉल को तोड़ रहा था। घर-घर जाकर एक-एक व्यक्ति को टोकन देते
वक्त इस बात का विशेष तौर से ध्यान रखा गया कि सामग्री जरूरतमंद तक ही पहुँचे। इस
बार सामग्री सही हाथों में पहुँची। पर यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि कुछ
सरकारी कर्मचारी के घर भी इस बहती गंगा में हाथ धोने में सफल रहे। खैर जो भी हो
लगभग 200 परिवारों को सामग्री संस्था वालों ने वितरित की। संस्था के साथियों
के चेहरे पर भी इस बार खुशी देखने को मिली। वह कह रहे थे कि वास्तव में एक-एक घर
पर उसकी वास्तविक स्थिति देखकर सामग्री वितरित करना सही रणनीति है। यहाँ से
सामग्री वितरण करने के बाद घांची मोहल्ले में भी कुछ किट बांटे गए। यहाँ की सूची
क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों द्वारा बनाई हुई थी। रात को रोशन भाई का फोन आया। वह
बता रहे थें कि तलाई मोहल्ला के लोग फोन कर के आपकी टीम को धन्यवाद दे रहे हैं।
क्योंकि आप लोगों ने बहुत सारा सामान सही हाथों में पहुँचाया है।
तालाब खेड़ा के
लिए सामग्री वितरण के लिए निकला टेंपो इंदिरा कॉलोनी में ही रुक गया। यहाँ भी
जनप्रतिनिधियों द्वारा बनाई गई सूची के अनुसार सामग्री वितरण हुआ। यहाँ किराएदार
कुछ ज़्यादा परेशानी में थे। सामग्री का वितरण यहाँ पर भी घर-घर जाकर किया गया, पर कुछ कोठी वालों तक भी सामान पहुँचा है। क्या करें आपदा में अवसर
तलाशने का नारा चारों तरफ चल रहा था । ऐसे में इसे भुनाने में कौन पीछे रहना चाहता
है भला? उनके कई माजने भी फाड़ें पर वे ढीठ बनकर राशन का झोला उठाकर चलते
बने। जहाँ तक मुझे याद है सो डेढ़ सौ किट संस्था वालों ने यहाँ दिए होंगे। धूप अधिक
होने के कारण हम लोगों ने यह तय किया कि तालाब खेड़ा और बगवास कच्ची बस्ती में
सामग्री अब कल बाटेंगे।
राशन वितरण के
अनुभव ने बताया कि लॉक डाउन की इस भयानक त्रासदी में केवल झुग्गी झोपड़ी वाले
लोगों की ही समस्या को ध्यान में रखना एकपक्षीय दृष्टिकोण था। बड़ी-बड़ी इमारातों
में जो लोग किराए पर रह रहे थे, उनकी सुध लेना भी बहुत जरूरी था। ये वे क्षेत्र थे जहाँ पर सामग्री के
नाम पर एक वक़्त का खाना पहुँच रहा था। वह भी पांच पूड़ी और आलू की सब्जी के रूप
में। ऐसे में भला कोई एक ही सब्जी रोज़ कैसे खाएगा और 5
पुड़ी में क्या पेट भरेगा। जो लोग बीमार है उनको तेल में तली और गैस
बनाने वाले आलू की सब्जी किस तरह से फायदा पहुँचा पाएगी?
यह एक नई समस्या थी। इन सबका इलाज सूखा राशन था। सूखा राशन वितरण
करने की इस संस्था वालों की यह सोच वास्तव में सराहनीय थी।
हालांकि कई लोग
इन सभी झुग्गी झोपड़ियों वालों पर राशन बेचने का भी आरोप लगा रहे थे। लोगों का
कहना था कि बांटने वालों से सामान लेकर यह लोग शहर के दुकानदारों को बेच रहे हैं।
यह लोग दिखने में ही भोले हैं, बाकी बहुत बेईमान और मुफ्तखोर हैं। मैं उनकी बात को यह कहकर नजरअंदाज
कर देता कि आपदा में अवसर ढूंढने का अधिकार केवल बड़े सेठों को ही नहीं है। अगर ये
लोग राशन दुकानदारों को बेच रहे हैं तो खरीदने वाले भी उतने ही दोषी होने चाहिए।
बेईमानी कहाँ नहीं है। असल में चंद लोगों की बेईमानी के कारण अधिक लोगों की
ईमानदारी को बलि नहीं चढ़ा सकते।
सुबह सामग्री
वितरण का कोटा केवल एक टेंपो ही था। टेंपो इस बार फिर बगवास कच्ची बस्ती न जाकर नई
कृषि मंडी की आबादी वाले नए क्षेत्र की तरफ चला गया। यह बगवास गाँव का ही एक भाग
है। यहाँ पर संस्था के साथियों के साथ मिलकर एक-एक घर का जमीनी सर्वे करते हुए
सामग्री बांटने गए। यहाँ सामग्री बांटने में हमने अलग रणनीति अपनाई। क्योंकि हमारे
पास सामग्री कम थी, इसीलिए
हमने एक किट को दो-दो परिवारों में साझा करने के लिए कहा और वे लोग मान गए। इस तरह
से अधिक लोगों तक सामग्री पहुँचाने की प्रयास रहा। हायर सेकेंडरी स्कूल के पास की
गजानंद कॉलोनी, वाटर वर्क्स रोड का क्षेत्र,
अमन नगर, चमारों
की गली, सुदामा नगर, बगवास कच्ची बस्ती और तालाब खेड़ा के लोगों को इस संस्था के राशन
वितरण का लाभ नहीं मिल पाया, क्योंकि संस्था वालों को और भी दूसरे शहरों में राहत सामग्री
पहुँचाने थी।
कोठियों वाले
लोग कितने निर्मम होते हैं, यह भी इस सर्वे के दरमियान जानने को मिला। प्रतापगढ़ में एक वर्ग के
लोग जो अक्सर विदेशों में रहते हैं और उनकी कोठियों की निगरानी के लिए नौकर रखते
हैं। लॉकडाउन की उस त्रासदी में कई सेठ ऐसे भी थे जिन्होंने इन गरीब नौकरों की कोई
सुध नहीं ली और भूखा मरने के लिए छोड़ दिया। रोशन भाई ने ऐसे चार परिवारों से मेरा
परिचय करवाया। शहरी क्षेत्र का कोटा खत्म हो जाने के कारण दोस्तों द्वारा उपलब्ध
राशन इन चार परिवारों को मैं नहीं दे पाया। पर इन परिवारों को अपने घर से राशन
ज़रूर उपलब्ध करवाता रहा। खैर जो भी हो संस्था
वालों ने जिन लोगों को भी सामग्री दी उसके लिए ये संस्था के हमेशा एहसानमंद
रहेंगे।
अब जिन लोगों का सर्वे मैंने किया उनको सामग्री पहुँचाने का क्या हुआ? इसके लिए फिर से दोस्तों के सामने हाथ फैलाया। यह सामग्री लेकर जितने परिवारों तक पहुँचा सकता था, वहाँ तक सामग्री पहुँचाई। इस सामग्री वितरण मुहिम में कामरेड रोशन का योगदान नहीं भूल सकता। इस व्यक्ति ने भरी गर्मी में न केवल मेरे साथ सर्वे करते हुए लिस्टें तैयार की, बल्कि खुद ने किसी भी तरह का राशन लेने के लिए से इंकार कर दिया। हालांकि उनकी माली हालत बहुत दयनीय थी। कुछ दिनों बाद जुलाई, 2020 में खबर मिली कि रोशन भाई नहीं रहे। कोरोना ने उनको हमसे छीन लिया। एक जमीनी कार्यकर्ता गुमनाम रहकर किस तरह से लोगों की सेवा करते हुए अपनी जान तक न्योछावर कर देता है, यह रोशन भाई की कुर्बानी से हम सीख सकते हैं। रोशन भाई लोगों की मदद करने को लेकर केवल शहर तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि आस-पास के गाँव में भी उनके साथी सर्वे करने में लगे हुए थे। गादोला, चनिया खेड़ी, बसाड़ जैसे कई गाँवों में भी ये और उनकी टीम जमीनी स्तर पर काम में लगी हुई थी।
अब नीचे उन लोगों की सूची दे रहा हूँ जिन्होंने इन लोगों तक सामग्री पहुँचाने के लिए मुझे राशि पहुँचाई - प्रतापगढ़ में मेरे मकान मालिक निरंजन सिंह जी सिसोदिया, प्रतापगढ़ टीम नरेंद्र कुमार स्वर्णकार व्याख्याता (किशनगढ़) बाबूलाल जी मीणा, दिनेश जी पंचोली, सत्यनारायण जी, जितेंद्र कुमार जी टेलर, शिवराज सिंह जी, टीम उदयपुर के शंकर जी चौधरी, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर की शोधार्थी टीम (हिंदी विभाग) डॉ. आरती शर्मा, डॉ. रजनी, डॉ. नीलम ओला, डॉ. कला अमेरा, डॉ. ममता नारायण बलाई, डॉ. इरम खान, डॉ. गीता खटीक, डॉ. फहीम अशरफ शेख, डॉ. जीनत आबेदीन, डॉ. भागीरथ कुलदीप, डॉ. चतराराम माली, डॉ. मैना शर्मा, डॉ. कैलाश भाभोर, टीम भीलवाड़ा के साथी डॉ. मनीष रंजन, नरेंद्र कुमार स्वर्णकार, व्याख्याता माधुरी शर्मा, व्याख्याता पवन कुमार, शुभम सोनी आदि। कुछ साथियों के नाम में भूल रहा हूँ। मेरी भूलने की इस आदत से वे परिचित हैं, शायद वे मुझे माफ करेंगे। अगले अंक में पैदल चलते मजदूरों की पीड़ा और उनके लिए किए गए प्रयासों पर बात करेंगे। धन्यवाद।
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-41, अप्रैल-जून 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन : सत्या सार्थ (पटना)
एक टिप्पणी भेजें