- डॉ. अभिषेक कुमार यादव एवं श्री मुको देले
शोध सार : यह लेख अरुणाचल प्रदेश की एक प्रमुख जनजाति ईदु मिश्मी की लोककथाओं के एक प्रसिद्ध मिथकीय चरित्र का विश्लेषण करता है। दुनिया भर के जनजातीय समाजों में लोक-साहित्य की विपुल परम्परा मौजूद है। इस लोक-साहित्य के अध्ययन से हम इन समाजों की सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक मूल्य और विश्व-दर्शन को समझ सकते हैं। ईदु मिश्मी जनजाति की लोक-कथाओं का यह चरित्र मनुष्य और मनुष्येतर चीजों से बहुत गहरे से जुड़ा हुआ है और इसने न सिर्फ मनुष्यों के जीवन को प्रभावित किया है बल्कि समस्त जीव-जगत को भी प्रभावित किया है।‘आनो’ जैसे मिथकीय चरित्र अरुणाचल प्रदेश की दूसरी जनजातियों की लोककथाओं में भी देखने को मिलते हैं। मनुष्य अपने पर्यावास से बहुत प्रभावित होता है और वह उससे एक जीवंत संबंध रखने का आकांक्षी होता है। इसी कारण से ‘आनो’ जैसे मिथकीय चरित्र का निर्माण होता है।
बीज शब्द : मानव समाज, मनुष्य,
जनजाति, ईदु मिश्मी, लोक-कथा, आनो, आँसा, चतुराई, विरोधाभास, बुद्धि, तानी, मिथक।
मूल आलेख : अरुणाचल प्रदेश की ईदु
मिश्मी जनजाति की लोककथाओं का मिथकीय चरित्र ‘आनो’ चतुर और चालबाज
मनुष्य का प्रतीक है जो अपनी तेज बुद्धि से इंसानों और जीवों को बेवकूफ बनाता
है।यह, वह व्यक्ति है, जिसने इंसानों केअलावा अन्य जीव जंतुओंको भीअपने षड्यंत्र के
जाल मेंफँसाया है।इसका चरित्र तानी समूह की जनजातियोंके मिथकीय आदि पुरुष‘आबो तानी’के समान है। हालांकि ‘आनो’ को मिश्मी जनजातियों
का आदि पुरुष नहीं माना जाता है।वेरियर ऐल्विन ने अपनी पुस्तक ‘Myths of the North-East Frontier of India’ के दूसरे अध्याय में तानी का जो चरित्र पेश किया है, उसे देखने पर दोनों की
चालाकी से जुड़ी कथाओं में गहरी साम्यता दिखती है। तानी का कीड़ों, पेड़ों, आग,
साँप इत्यादि से शादी करना और फिर छोड़ देना, तानी द्वारा बंदरों को छलना, अपने
भाई तकी और तारो से चालबाजी करने की घटनाओं को देखने से पता चलता है कि तानी और
आनो के चरित्र में कुछ विशिष्ट समानताएं हैं।[1]‘आनो’ भी तारों, अप्सरा,
पेका पक्षी, पोको पक्षी इत्यादि से शादी करता है और इसके बाद कुछ कारणों से उनको
छोड़ भी देता है।
यदि हम ईदु लोककथाओं
का गहनता से अध्ययन करें तो हमें पता चलता है कि इन कहानियों में ‘आनो’ एक जरूरी और
महत्वपूर्ण चरित्र है। उसकी चालबाजी और शैतानी की कथाएँ ईदु लोककथाओं में खूब
देखने को मिलती हैं। वह आँसा, भालू, गिलहरी, मछली, चूहे, इंसान आदि को अपनी
चालबाजी का शिकार बनाता है।आँसा, ईदु समाज में बुराई का प्रतीक है। आँसा कोई एक
वस्तु या शक्ति नहीं है। आँसा के अस्तित्व को लेकर अलग-अलग धारणाएँ हैं। इनका कोई
एक रूप नहीं है, यह कहीं भी हो सकते हैं। सामान्य तौर पर दूसरी जनजातियों के लिए इस
शब्द को प्रयुक्त किया जाता है, खासकर उन जनजातियों के लिए जिनके साथ ईदु मिश्मी
लोगों की लड़ाई होती रहती थी। घर के भीतर भी आँसा के होने की धारणाएँ समाज में आम
हैं। ऐसा माना जाता है कि इन्हें रक्त और माँस की जरूरत होती है इसीलिए वे इंसानों
को बीमार कर देते हैं ताकि इंसान धार्मिक अनुष्ठान के दौरान बलि चढ़ाये। इसे ‘ऐपाड़ा’ भी कहा जाता है।
आमतौर पर आँसा को जंगल से जोड़ा जाता है। आँसा का निवास स्थान पेड़ो में माना जाता
है, खासकर उन बड़े पेड़ों में जिनमें बड़ी-बड़ी लताएं होती हैं। युवाओं को यह
हिदायत दी जाती है कि वे इस तरह की लताओं को काटने से बचें।आँसा हमेशा इंसानों को
हानि पहुँचाने के लिए तत्पर रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि उनको केवल बहाना चाहिए
इंसानों को परेशान करने के लिए। जब कोई बीमार पड़ जाता है तो उपरोक्त धारणा या
लोकविश्वास के कारण लोग ईगु (पुजारी) के माध्यम से आँसा से समझौता करते हैं और इस
दौरानउसे कुछ भेंट देते हैं,जिसमें बलि भी शामिल है।सामान्य लोग इनसे डरते हैं तथा
मानते हैं कि ऐसी अदृश्य शक्ति का आम जनता कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। इसीलिए समाज
में आँसा को लक्ष्य करके ऐसी लोककथाएँबन गयीं,जिनमें यह दिखाया गया कि आँसा को सबक
सिखाया जा सकता है। ऐसी ही परिस्थिति में चालबाज आनो और दुख देने वाले आँसा की एक
कहानी बन गयी। कहानी यह है कि ‘आनो’ और आँसा एक ही गाँव
में रहते थे। दोनों में मामा-भाँजे का रिश्ता था। एक दिन आँसा ने देखा कि उसके
मामा यानि कि आनो ने अपने बेटे के सिर के बालों को बहुत ही खूबसुरती एवं सफाई के
साथ काटा है तो उसका भी मन हुआ कि वह भी अपने बेटे का बाल वैसे ही काटे। आँसा ने अपनी
यह इच्छा अपने मामा के सामने जाहिर की तो ‘आनो’ने कहा कि मैंने अपने
बेटे के सिर को जलती हुई आग में डाल दिया था तो देखा कि उसके बाल इस तरह कटकर आए
हैं। आँसा ने वैसा ही किया जैसा मामा ने कहा था। पर उसका बेटा बुरी तरह से झुलस
गया और जल्दी ही उसकी मृत्यु हो गयी। उसे ‘आनो’ के ऊपर बेहद क्रोध
आया। अब आँसा को अपने बेटे की मृत्यु पर पूजा करवाना था। पूजा के दौरान मुर्गे की
बलि दी जानी थी। आँसा ने बदला लेने के लिए ‘आनो’ के बेटे की बलि देने
के लिए उसे पकड़ लिया और आमपो (बाँस से बनी टोकरी) में कैद कर दिया। उसने सुन रखा
था कि इफुमे (उल्लू) बहुत बड़ा पुजारी है,इसीलिए उसने आँसातोंगो (छोटे आकार का
चूहा) को इफुमे को बुलाने के लिए भेजा लेकिन ‘आनो’ने इफुमे का भेष धर
लिया और वहाँ पहुँचकर अपने बेटे को बचाकर ले भागा। आँसा ने उसका पीछा करना शुरू
किया।‘आनो’ आगे-आगे भागता रहा,
जंगलों में, नदी के किनारे, मैदानों में मगर आँसा ने पीछा करना नहीं छोड़ा।
भागते-भागते ‘आनो’ कांदिआंगुरू (आसमान)
में जा पहुँचा। वहाँ पहुँचकर ‘आनो’ ने बड़ी मासूमियत के
साथ कहा-‘भाँजे, मैं यहाँ से कहीं और नहीं
भाग सकता। भागते-भागते मैं थक गया हूँ। यदि तुम मुझे पकड़ना ही चाहते हो तो ठीक
है, मैं तुम्हारे लिए यह रस्सी की सीढ़ी देता हूँ।’ आँसा सीढ़ी के सहारे
ऊपर चढ़ने लगा। लेकिन उसे नहीं पता था कि ‘आनो’ ने यहाँ भी चालाकी की
है। ‘आनो’ ने सीढ़ी के ऊपरी भाग
को मुर्गे कीअँतड़ी से तैयार किया था ताकि कुछ देर में आँसा के वजन से वह टूट
जाये। हुआ भी वही और आँसा जमीन पर गिरकर मर गया।’[2]किन्तु, आँसा के मरने के बाद उसकी हड्डियों से कई रोगों
का जन्म हुआ। जैसे- चेदे (leprosy), वा (cancer), वनों में पाया जाने वाला भूत(आँसा), मिथुन का रक्त पीने वाला आँसा इत्यादि।[3]
आशांगो यानी कि जंगली
चूहे को भी ‘आनो’ द्वारा बेवकूफ बनाने
की कथा ईदु लोककथाओं में मिलती हैं। कथा के अनुसार धूर्तता से भरा हुआ‘आनो’, आशांगो से कहता है
कि “यदि तुम्हेंकिसी गुफा में कुछ अच्छी गंध मिलती है तो
तुम्हें गुफा के सबसे भीतरी भाग में जाना चाहिए और यदि वहाँ कुछ खाने योग्य दिखायी
देता है तो उसे खा जाना चाहिए। इससे तुम और भी बुद्धिमान और तेज हो जाओगे।”[4] इस सलाह को मानने के
चक्कर में चूहा इंसानों द्वारा बिछाए गये पत्थर के फंदे में फंस जाता है। इसे ईदु में
‘देप्रा-ड्रा’ (दिप्रा-ड्रा) कहते
हैं। यह चपटे पत्थर से तैयार किया जाता है तथा इसके बीच में चावल, फल, मक्का आदि
चारे के तौर पर रखा जाता है। इस फंदे को लगाने का दूसरा तरीका यह है कि चूहे की
पगडंडी का पता लगाकर उस स्थान पर फंदे तैयार करना। फंदे के आगे-पीछे डंडों से
बेड़ा बनाया जाता है ताकि चूहे बगल से न जाएं। पत्थर से इस तरह फंदे लगाने का
प्रचलन सबसे आम है। इसमें दो-तीन पहाड़ की दूरी तय की जाती है तथा सबके अपने
अलग-अलग पहाड़ या शिकारगृह होते हैं। शिकार की यह प्रणाली स्त्री-पुरुष दोनों
इस्तेमाल करते हैं। शिकार के इस स्थान पर दूसरा व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
यह एक सामाजिक नियम है। यदि कोई ऐसा करता है तो एक सामाजिक बखेड़ा खड़ा हो जाता
है।
प्रश्न यह है कि चूहे
जैसे छोटे जीव के शिकार को लेकर इतनी सख्ती क्यों? इस सवाल के उत्तर को
जानने के लिए हमें ईदु मिश्मी खान-पान के तरीकों तथा उसके स्त्रोत को देखना पड़ेगा।
आधुनिक जीवन शैली और सुविधाओं के आने से पहले ईदु मिश्मी लोगों के जीवन का
बुनियादी काम और जरूरत थी पेट पालना। झूम खेती से पैदा हुआ खाद्य-अन्न दो-तीन
महीने मुश्किल से चलता था। इसीलिए समाज के आहार में शिकार से प्राप्त माँस का बहुत
महत्व रहा है।चूँकि इस क्षेत्र में चूहे काफी तादाद में मिलते हैं तथा उन्हें फंदे
में फंसाना भी आसान होता है इसीलिए चूहे का माँस प्रायः हर घर में पाया जाता है,
बशर्ते उस घर के लोग जरा मेहनती हों। इसी वजह से चूहे का माँस घर की सामान्य और
बुनियादी जरूरत होती थी। यहाँ तक कि उसकीअंतड़ियों को भी उबालकर रखा जाता था ताकि
माँस न होने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। येअंतड़िया विशेष तौर पर फल खाने वाले
चूहे की रखी जाती है, कीड़े खाने वाले की नहीं। चूहे का माँस ईदु मिश्मी लोगों के दैनिक
आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है इसलिए इनका लोककथाओं में आना स्वाभाविक है।
ईदु मिश्मी लोग
सामान्य जीवन-यापन संबंधी सभी कौशलों को आनो से जोड़ते हैं। आनो से संबंधित
लोककथाएँ यह साबित करती हैं कि मनुष्य दूसरे जीवों से चतुर है तथा वह अपने जीवन को
व्यवस्थित करना जानता है। ऐसी ही एक कथा मछली से संबंधित है। ‘एक दिन ‘आनो’ नदी तट पर मछलियों को
कूदते और तैरते हुए देखते हैं। मछली ने उनसे पूछा कि वे इतने शांत और विचारशील
क्यों है। आनो ने उत्तर दिया, “क्या तुमने आकाश से छतरी
जैसे तारों को गिरते देखा है?” मछली ने उत्तर दिया
कि उसने ऐसा छाता नहीं देखा है। तब ‘आनो’ ने उससे कहा, “यदि कभी तुम्हें एक
सफेद छतरी दिखे, जैसे कि कोई तारा आकाश से गिरता है, तो तुम्हें जितना ऊँचा हो सके
पानी से बाहर कूदना चाहिए। तभी तुम इसे साफ तौर पर देख पाओगी।” उसने आगे कहा, “तुम्हें दूर से एक कीप
(funnel) जैसी चीज दिखायी देगी। इस कीप के अंत में एक बड़ा रहस्य
है। इसीलिए यदि तुम इसके बारे में जानना चाहती हो तो तुम्हें पूरी ताकत के साथ कीप
की ओर बढ़ना चाहिए और अंत तक पहुँचना चाहिए।”[5]
कीप को स्थानीय भाषा
में ‘था’ कहते हैं जो मछली
पकड़ने की आदिम प्रणाली है। इसे बाँस से तैयार किया जाता है। इसे लगाने का सही समय
सर्दी को मौसम है, जब नदी में पानी कम रहता
है। इसे नदी की उन जगहों पर डाला जाता है, जहाँ नदी की धारा तेज होती है या नदी
झरने की तरह गिरती है। एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुँचने वाली एक भारी लकड़ी
को पत्थर से दबाकर रखा जाता है तथा बीच में बाँस से बनी कीप को बेंत की रस्सी से
बाँधकर रखा जाता है। तेज धारा के कारण मछली कीप से बाहर नहीं निकल पाती है।
मछली और चूहे का मांस
ईदु समाज में अपना महत्व रखता है। यह केवल दैनिक आहार की दृष्टि से ही महत्व नहीं
रखता बल्कि इसे ‘रेंह’ जैसे समाज के सबसे
महत्वपूर्ण त्योहार पर बहनों-माताओं को भेंट में देते हैं। यह आदर और प्रेम
प्रदर्शित करने का एक सामाजिक जरिया है। आज भी गाँवों में पुरुष मछली, चूहे और
पक्षी को अगर रास्ते में कोई औरत मिल जाती तो उसे दे देते हैं। सामान्यतः औरतें
मछली देने पर खुश होती हैं। लड़के अपनी माँ के अतिरिक्त गाँव की अन्य औरतों को इस
तरह का शिकार देते हैं। यह आपसी संबंध को सुदृढ़ करने का अच्छा तरीका है।
‘आनो’ की कथा में जीवों के
स्वरूप और स्वभाव की चर्चा है, जो स्थानीय लोकमानस को प्रतिबिंबित करती है। समाज
में किसी जीव का जिक्र आने पर बुजुर्ग, बच्चों को बताते हैं कि अमुक जानवर क्यों
और कैसे बना तथा उसकी हरकतें या स्वभाव क्यों ऐसा है। ‘आनो’ और कुत्ते की कथा में
कहा गया है कि पहले कुत्ते इंसानों की तरह बातचीत कर सकते थे। आनो ने इंसानों को
संदेश देने के लिए अपने कुत्ते को बुलाया और कहा कि ‘अब से, सभी लोग सप्ताह
में तीन बार भोजन करें, प्रतिदिन स्नान करें, अपने घरों और अपने आस-पास की सफाई
करें और कड़ी मेहनत करें।’ लेकिनकुत्ते ने
रास्ते में सोचा कि अगर मैं अपने मालिक के संदेश को लोगों तक पहुँचाता हूँ तो मुझे
सप्ताह के बाकी चार दिन भूखा रहना होगा। जब वह गाँव पहुँचा तो उसने गाँव वालों से
कहा, ‘मेरे मालिक ने आप सभी को प्रतिदिन
खाने और सप्ताह में तीन बार स्नान करने के लिए कहा है। कुछ दिनों के बाद ‘आनो’को पता चला कि कैसे
उनका संदेश उनके कुत्ते ने बदले हुए रूप में गाँव वालों तक पहुँचाया है। उसने
कुत्ते को बुलाया और अपने दोनों हाथों से उसका मुंह पकड़ लिया और कहा, “यदि तुमको और बोलने की
अनुमति दी जाती है तो तुम सभी के लिए परेशानी का कारण बनोगे, तुम्हारे गूँगे होने
में ही लोगों की भलाई है।[6]
‘आनो’ और आँसा की कथा के प्रसंग में रात को
उड़ने वाली दो गिलहरी ‘कामे’ और ‘अग्रिपा’ का भी जिक्र आता है। आज तक ‘कामे’ की पीठ झुकी या टेढ़ी
है क्योंकि ‘आनो’ ने उसकी पीठ पर लोहे
के डंडे से मारा था जबकि ‘अग्रिप्रा’ को प्यार से सहलाने
के कारण उसकी पीठ पर सुन्दर रेखाएँ बन गयी। इसी कथा में ‘आनो’ का पीछा करते हुए
आँसा ने डंडे से ‘आनो’ को मारना चाहा लेकिन
चूक गया। उसकी लाठी ‘एक्रेम्बो’ पेड़ पर लग गयी। तब
से लेकर आजतक इस पेड़ की ऊपरी खाल निकलती रहती है।[7]
भालू कैसे पेड़ पर
चढ़ने लगे, यह भी‘आनो’ और भालू की कथा में देखने
को मिलता है। भालू अपना काम ‘आनो’ से करवाता था इसीलिए ‘आनो’ ने परेशान होकर उसे
पानी ढोने वाले बाँस(अचिगम्बो) में पानी लाने को भेजा लेकिन चालाकी से उसने बांस
में छेद कर दिया। भालू नदी से पानी लाता तो था लेकिन वह रास्ते में खाली हो जाता।
थककर वह घर वापस आ गया। ‘आनो’ ने उसके लिए बाजरे की
रोटी बनायी थी। भालू रोटी खाने लगा। जब रोटी आधी रह गयी तो उसने उसे एक तरफ रखा
कहा कि यह मेरे शावक जंबाहू के लिए है। ‘आनो’ को शरारत सूझी। उसने
भालू से कहा कि यह तो तुम्हारे शावक के मांस की रोटी है। भालू ‘आनो’ को मारने के लिए दौड़ा
पर ‘आनो’ पेड़ पर चढ़ गया। भालू
को पेड़ पर चढ़ना नहींआता था। भालू इस बात से इतना दुखी हुआ कि उसने इस घटना के
बाद अपने शावकों को पेड़ पर चढ़ना सिखाया और तब से भालू पेड़ पर चढ़ने लगे।[8]
एक और कथा है जो भालू और ‘आनो’ से जुड़ी हुई है। कथा
इस प्रकार है कि ‘भालू अपने दोस्त गिलहरी की मदद से
खाई में शहद का आनन्द ले रहा था। यह देखकर ‘आनो’ ईर्ष्या के चलते
ततैया का रूप धारण करके गिलहरी को पूरी ताकत के साथ काटने लगा। गिलहरी ने उस रस्सी
को ऊपर से पकड़ रखा था जिससे लटककर भालू खाई में शहद खा रहा था। ततैया के काटने के
कारण होने वाले असहनीय दर्द की वजह से गिलहरी ने रस्सी छोड़ दिया और ततैया को
मारने दौड़ी। रस्सी छोड़ने के कारण भालू नीचे गिर कर मर गया। इसीलिए आज भी भालू के
दिल में आठ निशान मिलते हैं।’[9]
लोक-विश्वास के अनुसार
बंदर, इंसानों से क्यों अलग हुएऔर उनका पिछला भाग क्यों सपाट और लाल हो गया, इसका
कारण भी आनो ही है।‘आनो’ ने देखा कि बंदर तीर
चलाने में माहिर है तो उसे लगा कि इस तरह तो वह इंसानों को तबाह कर सकता है। उसने
चालाकी से बंदर के तीर नदी में बहा दिए। बंदर खाली हाथ लौटा तो ‘आनो’ ने उसे‘आरुपु’ पक्षी के द्वारा गर्म
किये गये पत्थर के ऊपर बैठने के लिए कहा। ज्यों ही बंदर पत्थर पर बैठा, उसका पिछला
भाग बुरी तरह से झुलस गया और वह ‘आँ’ करता हुआ ‘बीमबो’ पेड़ पर चढ़ गया। ‘आनो’ द्वारा छल किये जाने
के कारण बंदर ने उसे श्राप दिया कि तुमने मुझे जलाया है इसलिए तुम्हारे शरीर भी
जलेंगे। तब से इंसानों के शरीर का तापमान बढ़ने की बीमारी (बुखार) शुरु हुई। बंदर
ने आगे कहा कि तुम्हारे कारण मेरा तीर नदी में बह गया है, इस कारण तुम्हें उसका
दर्द मिलेगा। तब से इंसानों के पेट, दिल व शरीर के अन्य भागों में दर्द की बीमारी
पैदा हुई।बंदर ने यह भी कहा कि तुम्हारे कारण मेरा शरीर जलकर सड़ गया है इसीलिए
तुम्हें भी सड़न की यह बीमारी होगी। तब से इंसानों के शरीर में कई तरह की सूजन और
सड़न की बीमारी शुरु हुई। चूंकि आरुपु पक्षी ने पत्थर को गर्म किया था इसीलिए उसका
चेहरा सदा के लिए लाल हो गया। बंदर द्वारा ‘बीमबो’ पेड़ पर कूदने के
कारण आज तक यह पेड़ सीधा नहीं बढ़ता है।[10]
‘आनो’ ने सिर्फ जीव-जगत को
ही नहीं बल्कि अपने जैसे इंसानों को भी अपने षड़यंत्र का शिकार बनाया। यह कथा यूँ
है कि तुदू और तोन्लो दो भाई थे। एक दिन दोनों ‘अजुम्बो’ सांप को बांस में पका
रहे थे। तुदू, तोन्लो को आग और साँप की रखवाली का जिम्मा सौंप कर स्वयं पत्ते और
लकड़ी की तलाश में चला गया। इसी बीच सांप उबलते बांस से रेंग कर बाहर निकल गया और
वापस जंगल में चला गया। वापस लौटने पर जब तुदू ने साँप को नहीं देखा तो उसने इस
बारे में तोन्लो से पूछा। तोन्लो ने जवाब दिया कि साँप का शरीर अपने आप जुड़ गया
और वह निकलकर जंगल में चला गया। तुदू को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ और गुस्से
में वह अपने भाई को छोड़ कर चला गया। तोन्लो अपने भाई की खोज करने के लिए ‘आनो’ से मदद मांगने गया।‘आनो’ ने आश्वासन दिया कि वह उसके लिए तुदू को ढूढ़ेंगा। मगर ‘आनो’ बहुत चालाक था और दोनों भाईयों के लिए उसकी अपनी एक
योजना थी। उसने उस रास्ते का पता लगाया जिससे तुदू गया था। उसे पता चला कि तुदु
केले के जंगल से होते हुए निकला है और रास्ते में उसके द्वारा काटे गये केले के
पेड़ थे। लेकिन तोन्लो को वह रास्ता दिखाने की बजाय, आनो ने काटे गये केले के पेड़
के अंदरूनी हिस्से को बाहर निकाला और उस पर जली हुई कालीराख को लगा दिया। इसके बाद
वह तोन्लो को उस जगह ले आया और कहा कि“तुम्हारा
भाई इस रास्ते से बहुत पहले ही गया था,क्योंकि उसके द्वारा काटे गए पेड़ और पौधे
काले हो गये हैं और जिन केले के पौधों को काटा गया था वे फिर से बड़े हो गयेहैं।” उसने आगे तोन्लो से कहा, “अपनी
आध्यात्मिक शक्तियों के प्रयोग से मुझे पता चला है कि तुम्हारा भाई आकाश में चला
गया है इसलिए अब उसे पाना असंभव है।’ किन्तु तोन्लो
ने हिम्मत नहीं हारी और अपने भाई को वापस पाने के लिए जिद पर अड़ा रहा। उसने अपने
भाई तुदू तक पहुँचने के लिए आकाश को छूती हुई सीढ़ी बनाने की सोची। सीढ़ी बनाने
में हर तरह की जरूरी सामग्री का उपयोग किया गया लेकिन फिर भी वह आसमान तक नहीं
पहुँच सका। आखिरकार आकाश तक पहुँचने के लिए सीढ़ी के अंत में केले का पौधा जोड़ा
गया। तोन्लो सभी सामान, धन और ज्ञान की किताब के साथ सीढ़ी पर चढ़ गया। जब वह
सीढ़ी के आखिरी हिस्से में पहुँचा तभी केले की सीढ़ी टूट गयी और तोन्लो एक नदी की
गहरी घाटी में गिर गया। उसका सारा सामान नदी में बिखर गया और नीचे बहकर हर जगह फैल
गया।‘हीरा’ नीचे बहकर
पानी के सर्प ‘बेका’ के सिर
में प्रवेश कर गया। ज्ञान की पुस्तक बहते हुए पश्चिम में ‘सिलीरा’ की भूमि तक पहुँच गयी। इसीलिए यह माना जाता है कि ज्ञान
पश्चिम में रहने वालों को मिल गया और वहाँ से पूरी दुनिया में फैल गया।[11]
आन्नो की साजिश के कारण दोनों भाई अलग हो गए। धन और
ज्ञान भी बिखर गया। अलग होने के बाद तुदू खानाबदोश जीवन व्यतीत करने लगा। उसकी
संतान का नाम ‘इनीशी दिबी’ था,
जिन्होंने बाद में ‘इनी मेंगा-आ-आना’ (इनी केरा-आ-आना) को जन्म दिया। इसी इनी मेंगा-आ-आना से ईदु लोगों का पहला
कबीला बना जिसने खानाबदोश जीवन त्याग दिया और एक जगह पर रहने, बसने और खेती करने
के बारे में सोचा। उन्होंने घर बनाना शुरु किया, खेतों में खेती की और सामाजिक
संरचना का निर्माण शुरु किया।
‘आनो’ का चरित्र
विराधाभासों और कौतुकों से भरा हुआ है।उसने केरा-आ (ईदु) के साथ भी चालबाजी की है।
एक दिन दोनों खेत के बगल में आराम कर रहे थे कि ‘आनो’ ने पेड़ के खोखले
टुकड़े को नीचे घाटी में गिरा दिया। केरा-आ ने पूछा कि तुमने ऐसा क्या गिरा दिया
जिससे मधुर ध्वनि उत्पन्न हुई है। ‘आनो’ ने उत्तर दिया कि
उसने अपनी माँ को नीचे गिरा दिया है। इसी से यह ध्वनि निकली है। आनो की बात मानकर केरा-आ
ने अपनी माँ को खाई में ढकेल दिया पर वैसी ध्वनि नहीं निकली। बाद में जब उसको ‘आनो’ की शैतानी का पता चला
तो बदले की आग में वह ‘आनो’ का पीछा करने लगा।
आनो भागने लगा। इसके बावजूदउसकी चालाकी नहीं रुकी। भागते हुए उसने मुड़े हुए पत्ते
के भीतर कीड़े रख दिये।पीछा करते हुए केरा-आ ने जिज्ञासावश उस पत्ते को खोलकर देखा
और उसे ‘मेमे थू’ (कई प्रकार के खतरनाक
रोग जैसे किसी नजदीकी रिश्तेदार से यौन संबंध बनाने पर यौन संबंधी रोग होना, पेट
का फूलना, मल-मूत्र में रोग, खाँसी इत्यादि रोग) हो गया। इस तरह केरा-आ,‘आनो’ का पीछा नहीं कर पाया
और ‘आनो’ बच निकला।[12]
निष्कर्ष: मानव समाज के प्रारंभ
से ही मनुष्य, प्रकृति में होने वाली अनोखी घटनाओं, अपने अनुभवों और स्मृतियों को
कथाओं के माध्यम से समझने, समझाने और अभिव्यक्त करने की कोशिश करता रहा है। आदिवासी
ईदु मिश्मी समाज की लोककथाओं में भी हम इसे देख सकते हैं। आनो का चरित्र साधारण
मनुष्यों की तरह ही विरोधाभासों से भरा हुआ है। उसकी असली ताकत चालाकी से भरा हुआ
उसका दिमाग है। उसकी चतुराई की कहानियाँ असल में मानव समाज की अपनी सफलताओं,
विफलताओं, लाचारी और मजबूती को अभिव्यक्त करती हैं। आनो के माध्यम से ईदु समाज
प्रकृति के अनसुलझे रहस्यों से भी टकराता है और उसकी अपनी एक व्याख्या करने की
कोशिश करता है। इसी तरह से किसी समाज के मिथक और लोकविश्वासों का निर्माण होता है।
संदर्भ :
[1]Verrier Elwin, Myths
of the North-East Frontier of India, Directorate of Research Government of
Arunachal Padesh, Third Reprint- 2012, Frontier Printers and Publishers
Itanagar- 791111. Page-149-197
[2]शोधार्थी
द्वारा संकलित लोककथा, ‘आनो’ और आँसा (गोते मिमी, गाँव- आपोगु, रविवार, 24/08/2019,
08:14 pm)
[3]वही
[5]Anno and
the Fish, Misimbu Miri, Revelations from Idu Mishmi hymns, Published by-
Research Institute of Worlds Ancient Traditions Cultures and Heritage
(RIWATCH),Page- 73.
[6]Anno and
the Dog, Misimbu Miri, Revelations from Idu Mishmi hymns, Published by-
Research Institute of Worlds Ancient Traditions Cultures and Heritage
(RIWATCH),Page- 65.
[7]शोधार्थी द्वारा संकलित लोककथा,‘आनो’ और आँसा (गोते मिमी, गाँव- आपोगु, रविवार, 24/08/2019, 08:14 pm)
[9]Ya,
Dr.Razzeko Dele, The Idu Mishmi Cultural and Literary Society (IMCLS), Publised
by Bookwell Delhi, Page- 68.
[10]शोधार्थी
द्वारा संकलित लोककथा,‘आनो’ और बंदर (गोते मिमी, गाँव-आपोगु, रविवार 24/08/2019, 08:23 pm)
[12]शोधार्थी
द्वारा संकलित लोककथा,ईदु और ‘आनो’ (गोती
मिली, गाँव-आपांगो, रविवार
25/08/2019, 07:39 pm)
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